चादर ट्रेक : शिर्ख योंग्मा से लेह, Chadar Trek (Shirakh Yongma - Leh)

02 फरवरी 2016 
नेटजियो पर चादर की डॉक्यूमेंट्री देखकर हम किसी जमाने में पूरी तरह अपना संतुलन खो बैठे थे, फिर बहुत साल बाद पागलपन के चलते हवाई जहाज की टिकट बुक करी और आखिरकार 2016 में अपुन ने पहला कदम जमी हुई नदी पर रखा । बहुत खुश था अपना सीना मोदी जी से ज्यादा वाइड हो गया था लेकिन चादर टूट गयी और हमें वापस आना पड़ा ।

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चादर ट्रेक 2016

Day 05
स्लीपिंग बैग अच्छी क्वालिटी का है, बाहर चाहे -10 हो या -25 एकबार आप स्लीपिंग बैग में घुस जाओ तो 5-10 मिनट में बॉडी का टेम्प्रेचर 30-35 डिग्री पहुंच जाता है । मौसम कल शाम से ही खराब था लेकिन आज तो कुछ ज्यादा ही खराब हो गया, धूप का नामो-निशान नहीं है । पैकिंग करते वक्त किस्मत और नजरें दोनों ही तेज रही क्योंकि हमने ब्लू शीप देखी, देखी ही नहीं फोटो खींचने का मौका भी मिल गया ।

सामान और हम तैयार हैं, तो 10 बजे खराब मौसम के बीच कदमताल शुरू करते हैं । आज पैरों की हालत अच्छी है क्योंकि कल पूरे दिन मनहूस गमबूट्स नही पहनने पड़े । मेरा रकसैक थोड़ा और भारी हो गया, भीगे स्लीपिंग बैग और पानी की बड़ी कैन जो बैग पर झूलती रही और तीसरा रात को बोतल में गर्म पानी भरकर था और सुबह तक वो पानी बोतल के भीतर ही जम गया, अब इसे पिघलाने के लिए दिल्ली ही जाना पड़ेगा ।

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साइकिलिंग ओन चादर 

हम 10 बजे चले और 03 घंटे लगातार चलकर दोपहर एक बजे शिर्ख योंगमा पहुंच गये । चादर जमी मिली, कहीं भी पानी में बूट डालना नहीं पड़ा । अरे हाँ एक जगह बूट पानी में गया था और वहीँ मैंने एक NRI को साइकिल पर देखा । वो अमेरिका से है और चादर को MTB पर कर रहा है, साइकिल में स्पाईक्स वाले टायर लगे हैं जिससे साइकिल फिसल तो रही है लेकिन कम । आल द बेस्ट बोलकर हम आगे बढ़ते हैं । बाकुला क्रोस किया जहां सबसे पहले दिन रुके थे । कहते हैं यहाँ बाकुला लामा ने मेडिटेशन किया था, स्थानीय इस स्थान को पवित्र मानते हैं । जाते टाइम जो फ्रोजेन वाटर फाल मिला था उसे एक बार फिर से क्रोस करना बड़ा रोमांचक रहा । आज ज्यादा ट्रेकर नहीं मिले, न आते हुए न जाते हुए ।

कैंप साईट पर पहुंचकर सोनम लंच बनाने लगा और मैं टेंट लगाने लगा । मैक्रोनी खाकर अब सिवाय टाइम पास करने के कुछ नहीं था । कल रात को आग पर हाथ सेकते हुए सोनम ने अपनी कहानी बताई । जब वो 12 साल का था तब उसकी मां गुजर जाने पर बाप ने दूसरी शादी कर ली । दूसरी बीवी से 4-5 बच्चे हुए लेकिग सोनम को कभी बाप का प्यार नसीब नहीं हुआ जबकि दूसरी मां काफी अच्छा ख्याल रखती थी । सोनम ने परिवार के साथ ज्यादा समय नहीं बिताया, ये लेह में रेंट के रूम में रहने लगा । यहीं रहते हुए कई साल पहले इसने एक ज़न्स्कारी लड़की से शादी कर ली । एक लड़का भी हुआ लेकिन बीवी बिलकुल भी समझदार न होने के कारण कुछ टाइम से इससे अलग लेह में रहती है । बचपन से ही इसे सबकुछ खुद ही करना पड़ा । लेह में जमीन ली जिसपर अभी एक छोटा सा कमरा लगभग तैयार है, बस पलस्तर बाकी है । तो ये थी इस लडके की छोटी सी भावुक स्टोरी ।
लकड़ियाँ लाने के बाद हम हाथ सेकते हैं और डिनर तैयार करते हैं । स्नोफाल स्टार्ट हो जाता है, डिनर के बाद सोनम अपने बाकी पोर्टर साथियों के पास चला गया और मैं अपने टेंट में । यहाँ हमारा 2-3 दिन रुकने का प्लान है ।

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सोनम और उसका साथी, खुले में सोते हुए 

Day 06
हम इस जगह पर 02 दिन और रुकेंगे उसके बाद एक फरवरी को वापस लेह के लिए रवानगी होगी । नींद अच्छी आई, रात गर्म रही, स्नोफाल भी हुआ लेकिन ज्यादा नही । टेंट की ज़िप खोलकर बाहर की खूबसूरती का नजारा देखता हूँ, सबकुछ वाइट दिखता है । सोनम ने टेंट में ही गर्मागर्म कॉफ़ी पकड़ा दी । कुछ देर बाद मैं फ्रेश होने गया उसके बाद पता चला कि सोनम रात भर बर्फ़बारी में ही लेता रहा अपने मित्रों के संग । उसके स्लीपिंग बैग का आउटर एकदम भीग गया लेकिन इनर की वजह से उसे ठण्ड नहीं लगी । आज मौसम अच्छा है और धूप भी निकली है इसलिए सभी ने अपने गीले कपड़े और स्लीपिंग बैग धूप में डाल दिए ।

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धूप आती है तो टेंट में स्वर्ग महसूस होता है 

पूरा दिन कुछ नहीं करने से अच्छा है मैं फ्रोजेन वाटर फाल तक घूमकर आऊँ । ये वाटरफाल बोकालु बाओ से थोड़ा आगे है । नाश्ता पानी निपटाकर सुबह धूप आने के बाद मैं 10:30 बजे निकलता हूँ, साथ में कैमरा और सेल्फी स्टिक है । कल रात हुई बर्फ़बारी की वजह से आज चादर पर चलना ज्यादा आसान है । तेल के ऊपर बुरादा डालने जैसा है ये । आने-जाने वालों से मिला काफी बातें हुई, इसी बीच लिंगशेड से आते हुए एक आदमी मिला...बन्दा अकेला ही चला हुआ है और सिर्फ दूसरे दिन यहाँ पहुंच गया । ऐसे लोग बीहड़ों में भटकने के लिए मोटिवेट करते हैं ।

12:30 पर मैं अपने लक्ष्य पर पहुंच गया, जमा हुआ झरना मेरा लक्ष्य है । सेल्फी स्टिक की हेल्प से बहुत सारे बेमिशाल फोटो खींचे । करीब 30 मिनट बिताने के बाद मैं यहाँ से रवाना हुआ अपने बसे कैंप की ओर । धीर-धीरे 02 बजे कैंप साईट पर पहुंच गया जहाँ सोनम लंच बनाने की तैयारी कर रहा है । चादर पर एक और दिन पूरा हुआ ।

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जमा हुआ झरना 

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Day 07 (शिर्ख योग्मा)
आज और यहाँ, कल वापस लेह । समझ नहीं आ रहा कि 05 दिन लेह में कहाँ रहूँगा और क्या करूंगा । कभी-2 सोचता हूँ कि लेह के आसपास कहीं टेंट लगाकर 5-6 दिन बिताऊं । कभी-कभी सोनम से इस बारें में बात करता हूँ । मन मुताबिक जवाब न मिलने पर सोचता हूँ कि तेनजिंग से बात करूँगा, क्या पता वो ही कोई सोलुशन निकाल दे ।

एक और गर्मागर्म रात के बाद सोनम के हाथ की गर्मागर्म कॉफ़ी और चादर का साथ । उठा और रोज की तरह नमी की वजह से भीगे स्लीपिंग बैग को टेंट में ही फैला दिया ताकि दिन की गर्मी से सुख जाएँ, होता क्या है कि रात भर शरीर की गर्माहट और गर्म सांसों की वजह से स्लीपिंग बैग का आउटर थोड़ा भीग जाता है, वैसे टेंट के इनर पर भी बर्फ जम जाती है । फ्रेश हुआ और नाश्ता करके वहां चल पड़ा जहां कल ही सोच लिया था कि जाना है । 11 बजे निकला, आज मैं कैंप साईट के सामने वाले पहाड़ों पर जाऊंगा जहाँ से पोर्टर लकड़ियाँ लाते हैं । लेकिन इसके लिए करीब एक किमी. पीछे जाकर पहले चादर को पार करने होगा । तो यही किया पीछे गया और चादर को क्रोस किया रास्ते में महात्मा बुद्ध का चित्र भी दिखाई दिया जो कल सुबह बनाया था । चादर क्रोस करी और अब वक्त है पहाड़ पर चढ़ने का, ऊपर तो चढ़ा पहाड़ के लेकिन बिलकुल टॉप तक नहीं।

इस जगह से नजारा बेहद सुंदर है, काफी देर तक नजरें दौड़ाई लेकिन कहीं भी किसी भी जानवर की परछाई तक नहीं दिखाई दी । एक-डेढ़ घंटा यहाँ बिताकर अब वक्त था इस जगह को अलविदा कहने का और कैंप साईट पर जाने का जहां सोनम शायद लंच की तैयारी कर रहा होगा । जब वहां पहुंचा तो ऐसा ही हुआ । वो लंच बना रहा था । आज यहाँ बहुत से टूरिस्ट ने लंगर डाला है । 02 लड़के तो ऐसे देखे जिन्हें मैं शाम तक देखता ही रहा, मैं ही क्या सभी उन्हें ही देख रहे हैं क्योंकि चादर के माइनस तापमान में एक सिर्फ टी-शर्ट में घूम रहा है तो वहीं दूसरा सिर्फ कमीज में । भगवान न करें अपनी इस मुर्खता की वजह से इन्हें बीमार होना पड़े या वापस जाना पड़े ।

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ऊपर जाते हुए 

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रास्ते में कहीं 

लंच किया और एक पोर्टर जो कि सोनम का जानने वाला है वो हमारे साथ रहा, रात को सोनम को कंपनी मिल गयी । उस लड़के ने बताया कि यहाँ 02 बहुत अच्छे ट्रेक हैं, पहला किस्तवार से ज़न्स्कर वाया पोडर और दूसरा है तिलद दो या मारखा वैली से एक ट्रेक निकलता है जो एक शिवलिंग के पास जाता है । दोनों ही जगह सुनकर मेरा मन किया कि फ्यूचर में दोनों जगह कवर की जा सकती हैं ।

रात को चावल और मशरूम+पानीर खाकर टेंट में घुस गये । सामान तो कल ही पैक करूँगा सुबह उठकर । आज आखिरी रात है चादर पर । क्या पता भविष्य में फिर से आना हो, क्या पता एकदम अकेला या क्या पता किसी ग्रुप के साथ । खैर छोड़ो इन भविष्य की बातों को ।

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चादर और खाना 

Day 08 (शिर्ख योंग्मा – लेह)
इस दिन के बारें में लिखने पर चादर ट्रेक पूरा हो जायेगा । ये एक आसान ट्रेक है जिसे जल्दबाजी में करने का कोई फायदा नहीं है । यह ट्रेक तैयारी और खर्चा मांगता है वो भी बहुत ज्यादा, चादर एकदम प्लेन है इसलिए थकावट होना तो बनता ही नहीं है । कहीं-कहीं कभी-कभी पहाड़ों पर चढ़ना पड़ता है लेकिन वो भी कभी-कभी । इस ट्रेक पर ज्यादा से ज्यादा ऊपर के लिए 04 लेयर और नीचे के लिए 03 लेयर कपडे ले सकते हैं, जिसे ज्यादा ठण्ड लगती है वो अतिरिक्त लेयर साथ रख सकता है । वाटर बोतल की जरुरु नहीं है, फिर भी फ्लास्क ठीक रहेगा, वातावरण इतना ठंडा होता है कि नमी की वजह से ज्यादा प्यास नहीं लगती । रेन वियर ले ले तो ठीक है क्योंकि कभी-कभी हैवी स्नोफाल भी हो जाता है ।

अगर गुम्बूट्स खरीद रहे हो तो एक नम्बर बड़ा ही खरीदें ताकि दो जोड़ी जुराबें पहनने के बाद पैर टाइट न हों । अगर चादर पर गिरकर या फिसलकर हड्डी नहीं तुडवानी तो माइक्रो स्पिकेस लेना बहुत अच्छा ऑप्शन रहेगा । ये गुम्बूट्स पर भी आसानी से फिट हो जाती हैं । अगर गुम्बूट्स के साथ आपका पैर एकदम कम्फर्टेबल फील करता है तो अपने पर्सनल शूज चादर पर लाने की कोई आवश्यकता नहीं है, आप उन्हें लेह में ही छोड़ सकते हैं । एक जोड़ी गर्म लेयर बैग में रखें क्योंकि क्या पता कब आप चादर में गिरकर खुद को भिगो लो । सनग्लासेस बेहद जरूरी हैं, अगर नहीं लेते तो आँखों को चुंधिया जाना मुमकिन है । पैरों के आलावा 3-4 जोड़ी जुराबें एक्स्ट्रा रखो क्योंकि गुम्बूट्स में पसीना आता है । एक छोटा हैण्ड टावेल और सनक्रीम, टूथ ब्रूस, पेस्ट आदि अपनी जरूरत के हिसाब से रखा जा सकता है ।

सुबह 07:30 पर उठकर सबसे पहले मैंने अपने रकसैक पैक किया फिर टेंट को । पैकिंग के बाद हम दोनों ने नाश्ता किया और 09:30 पर अपने-अपने सामान के साथ कुछ किया जहां से हमें लेह के लिए गाड़ी मिलेगी ।
04 दिन पहले एक लोकल को तेनजिंग का नम्बर दिया था ताकि वो बता सके कि हमें लेने एक फरवरी को आना है लेकिन कल पता चला कि तेनजिंग कल आया था और हमारा इंतजार करके चला गया । सोनम ने गलत डेट पर आने की इन्फोर्मेशन देने वाले लोकल को बहुत सारी गालियाँ दी । अब हमें किसी भी गाड़ी में लेह तक जाना होगा । डेढ़ घंटे के ट्रेक के बाद आखिरकार हम वहां पहुंच गये जहां से हमें गाड़ी मिलनी है । सोनम ने इस जगह का नाम सगार बताया । जब यहाँ पहुंचे तब कोई गाड़ी यहाँ नहीं थी । अब इंतजार करने के बाद कोई और चारा नहीं था, तब तक आग जलाकर हमने खुदको गर्म किया ।

बाद में मैं जब पेट हल्का करने गया तब-तक कई गाड़ियाँ यहाँ आ चुकी थी, जिनमें से एक पीकअप ट्रक वाला सोनम का जानने वाला था । हम उसी ट्रक में सवार हो गये, रास्ते में कई जगह बीआरओ बाले काम कर रहे थे इसलिए काफी टाइम लगा निम्मू तक पहुंचने में ।

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गाड़ियों का इंतजार 

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इसी गाड़ी में गये थे 

तेनजिंग से सोनम ने फोन पर बात की जब नेटवर्क में आये । उन्होंने मुझे अपने रूम पर आने को कहा । थोड़ी देर एअरपोर्ट के सामने वाली कॉलोनी में भटकने के बाद आखिरकार हम तेनजिंग के रूम पर पहुंच गये । सारा सामान उनके रूम में रखा । कैम्पर वाले ने पर-पर्सन 600 रूपये चार्ज लिया । सोनम को फिलहाल के लिए 2000 रूपये दिए ताकि वो हॉस्पिटल जाकर अपना ट्रीटमेंट करा सके । घर पर कोई नहीं था लेकिन रूम ओपन ही था । मैं सोचने लगा कि ऐसे में लोग रूम को खुला छोड़कर कैसे जा सकते हैं? । इसका जवाब बाद में उनके आने के बाद पता चला, दरअसल सर्दी की वजह से लकड़ी का दरवाजा अकड गया है और वो अब सर्दी-सर्दी बंद ही नहीं होगा इसलिए रूम को खुला रखना मजबूरी है ।

मेरे कपड़े धूल से भरे पड़े थे, इन्हें जल्द ही मैंने साफ़ कर लिया । रकसैक को साफ़ करके रूम में रख लिया । छोटा वाला रूम हीटर जलाकर खुद को गर्म किया । लंच में चादर वाले राशन से एक नमकीन बिस्कुट खाया । कुछ देर बाद रिगजिन और उसकी मम्मी आ गयी जिन्होंने दूध वाली चाय बनाई । फिर आधे घंटे बाद तेनजिंग भी आ गया । हम दोनों पहले तो स्लीपिंग बैग रिटर्न करने गये फिर सोनम के बचे हुए 6600 रूपये देने गये । मुझे लगा कि शायद टेंट कहीं रह गया है लेकिन वो सोनम के बैग से मिल गया । सारे काम पूरे करके हम लोग रूम पर वापस आ गये ।

तेनजिंग ने मेरा 2-3 का प्रोग्राम बनाया । 02 को शांति स्तूप और लेह पैलेस घूमना, 3 फरवरी को स्पिटुक गोम्पा । मुझे भी ये ठीक लगा और सबसे बड़ी प्रॉब्लम तब सोल्व हुई जब उन्होंने कहा कि 4-5 दिन मेरे घर ही रुक जाओ । ये सब अजीब था लेकिन पैसों की कमी के कारण मुझे ये परेशानी और शर्मिंदगी उठानी पड़ी ।
डिनर के बाद मैं तेनजिंग वाले स्लीपिंग बैग में घुसकर सो गया जिसपर उन्होंने एक रजाई और एक कम्बल भी डाल दिया था । तो साहब अब कल से लेह दर्शन शुरू होगा ।

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वेलकम टू लेह 
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लिंगशेडवासी 

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लिंगशेडवासी 

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बोकालु केव 

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गाइड बनने की राह पर 

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बातें और खुशियाँ 

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एक और लड़का गाइड बनने की राह पर 

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टाइम पास और स्थानीय खेल 

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कैमरा अच्छा हो तो फोटो बेहतरीन आते 

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ब्लैक टी 

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टुकड़े-टुकड़े चादर 

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बेपरवानगी

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अपना टेंट 

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पीने का पानी 

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टूटती चादर 

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अपना किचेन 

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किचेन की खिड़की से दिखता नजारा 

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बर्तन धोना सबसे मुश्किल समय था 

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ढलता दिन 

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भाग 01: लिंक
भाग 02: लिंक  

Comments

  1. Don't become Gama in the land of lama.
    कमाल हो भाई आप।

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  2. बिल्कुल सर, आपकी बात से सहमत हैं। 🙏🏼

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