26-जनवरी-2016
भाग-01 : तैयारियाँ चादर ट्रेक
सामान पहले से ही तैयार था और हम भी । चाय पीकर हम तीनों 08:30 बजे निकल पड़े चिलिंग के लिए जोकि लेह से 60 किमी. दूर है । अच्छा रात को किराये वाले स्लीपिंग बैग की टेस्टिंग भी हो गयी जिसमें उसने 10 में से 10 नम्बर हासिल किये, अब इसका परिक्षण चादर पर किया जायेगा । “लेट्स वाक ओन चादर”
Day 02 (लेह-चिलिंग-शिर्ख योंग्मा)
लेह से निकलते ही तेनजिंग ने कहा कि “आगे एक चेक पोस्ट आयेगा, यहाँ पर्ची कटती है आप बोल देना कि मैं टीचर हूँ और लिंगशेड जा रहा हूँ” । बचपन में अपुन ने खूब झूठ बोला और पांचवी तक अपुन ने इसमें पीएचडी कर ली लेकिन बाद में हमारी शक्तियों का गलत इस्तेमाल किया गया जिस कारण इस खेल में अपन कच्चे खिलाड़ी साबित हुए । गणतन्त्र दिवस के चलते चेक पोस्ट पर कोई नहीं मिला, जबकि आज तो यहाँ किसी-न-किसी का होना बनता ही है ।
35 किमी. निम्मू है जिसको जल्द ही हमने क्रोस कर लिया, नदी के किनारे जमे हैं लेकिन फोटो खींचने में कामयाबी हाथ न लगी जिसका अफ़सोस हमें तब हुआ जब सोशल मिडिया पर लोगों ने इस संगम की फोटो डाल-डालकर अपुन को पश्चाताप के अन्देरे कुएं में धकेल दिया । यहाँ ज़न्स्कर और इंडस नदी का संगम है, ज़न्स्कर नदी यहाँ से इंडस में मिलकर इंडस रिवर का रूप धारण कर लेती है । लेह में तो गड्डे, नाले, गाड़ी, बाथरूम और बन्दे भी जम चुके हैं । निम्मू से चिलिंग 25 किमी. दूर है और ‘तिलद दो’ कुछ और किमी. ।
तेनजिंग ने हमें सगार उतारा, यह स्थान चिलिंग से आगे आता है और आजकल ट्रैक यहीं से शुरू होता है । हर साल सड़क बनने से ट्रैक की दूरी कम होती जा रही है और सड़क की बढती । सड़क बनने से सबसे ज्यादा फायदा लिंगशेड निवासियों को होगा, फिर वो भी हमारी तरह सभी सुख-सुविधायों का इस्तेमाल कर पाएंगे । यहाँ हम 11 बजे पहुंचते हैं, कुछ गाड़ियाँ खड़ी हैं जो शायद वापस आने वाले ग्रुप का इंतजार कर रही हैं । यहाँ सामान समेटते बहुत से पोर्टर हैं और टनों के हिसाब से बन्दरलस्ट, जिन्होंने लगातार फोटो खींचकर एक नया विश्व कीर्तिमान स्थापित कर दिया है ।
सोनम ने कुछ सामान अपनी स्लैज पर बांध लिया और बाकी का सामान मैंने अपने रकसैक पर । यहाँ अपने पास रकसैक में एक जोड़ी गर्म कपड़े, रेन वियर, एक फ्लीज, एक जैकेट, एक मोटी जैकेट, कई जोड़ी जुराबें, एक जोड़ी थर्मल सेट, स्लीपिंग बैग, मैट्रेस, वाटर बोतल, एक 5 लीटर की पानी की कैन, कैमरा, ट्रेकिंग शूज और एक ट्रैकिंग पोल है ।
12:30 पर हमने चादर पर पहला कदम रखा, यहाँ चादर टूटी हुई है और पानी की गहराई लगभग 8 इंच है । हम गमबूट पहनकर बर्फीले पानी में घुस जाते हैं, पानी कितना ठंडा है ये तो पता नहीं चलता लेकिन लेफ्ट वाला बूट पिंकी ऊँगली की बैंड बजा रहा है । अगले चंद ही कदमों के बाद वो चादर आई जिसके फोटो देखकर हम सभी इसपर चलने का सपना देखते हैं ।
चादर पर पहले दिन का अनुभव अच्छा रहा । जांघों में खिचाव महसूस हो रहा है क्योंकि चलते वक्त पैरों पर पूरा कण्ट्रोल रखना पड़ता है । चादर ऐसी है जैसे कांच पर किसी ने तेल डाल दिया हो फिर ऐसे फ्लोर पर एपिक फॉल तो बनता है । हमने 3 घंटे में सिर्फ 3 किमी. चलने के बाद चादर पर पहला लंगर डाला, कैंप साईट का नाम शिर्ख योंग्मा है । टेंट लगाने के बाद मैं और सोनम बाकी लोगों की भांति पहाड़ पर चले जाते हैं लकड़ियां इकठ्ठी करने । वापस आकर हम चाय बनाते हैं फिर मैगी खाते हैं, डिनर में मशरूम-पनीर की सब्जी के साथ चावल की पार्टी दी जाती है खुद को ।
ना घड़ी है और न ही मोबाइल, इसलिए ना समय पता चल रहा है, ना तामपान और ना ही ऊँचाई । ठण्ड का हिसाब इस तरह से लगाया जा रहा है कि खोलती चाय 30 सेकेण्ड में ठंडी हो रही है और पेशाब गिरने के तुरंत बाद जम रहा है । आग के पास बैठकर आलम यह है कि आदमी आग में घुसकर सती होना चाहता है ।
08:30 बजे अपन टेंट में चले जाते हैं और अब यहाँ की असली ठण्ड का एहसास होता है, अब अगर स्लीपिंग बैग ने काट दिया तो कल सुबह तक हमारी मौत निश्चित है । सोनम अपने साथियों के साथ बाहर स्थित एक गुफा में सो जाता है जिसपर अपना सोचना है कि अगर उसे कुछ होता है तो वापसी में बॉडी स्लेज पर लेता चलूँगा ।
Day 03
उठते ही पहले सोनम को देखा, वो ठीक है और चाय बनाने की तैयारी कर रहा है । बातचीत से पता चला कि ये स्थानीय अपने स्थानीय साथियों के साथ ही सोते हैं और आगे भी वो ट्रेक पर इसी प्रकार बाहर ही सोयेगा । उसने एक स्टोरी भी शेयर करी कि “एक बार मैं तीन स्पेनिश लडकियों के साथ चादर ट्रेक पर था, रात का समय था तीनों ने रम का जमकर सेवन किया, फिर उनमें से एक मुझे अपने साथ टेंट में ही सोने के लिए बोलने लगी, नाटी हाईट वाली मुझे टेंट में ले जाने लगी । मुझे डर लगने लगा और मैं भागकर अपने साथियों के पास चला गया” । शायद इस किस्से का सोनम पर मानसिक प्रहार हुआ । बाद में कई दिनों तक मैं बस यही सोचता रहा कि अगर मैं उसकी जगह होता तो क्या होता? ।
स्लीपिंग बैग चादर के माइनस टेम्प्रेचर में पास हो गया है, भले ही इसका आउटर मोश्चर की वजह से गीला हो गया लेकिन इनर के भीतर अपनी सॉलिड बॉडी एकदम गर्म बनी रही । टेंट में मैं पूरी रात ज़न्स्कर नदी के बहने की तेज आवाज सुनता रहा । सुबह 07:30 आँख खुली, रकसैक पैक करने के बाद टेंट पैक किया । चाय-बिस्कुट खाकर हम लोग 9 बजे रवाना हुए । चलने के 5 मिनट बाद ही एक बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ा । इस जगह चादर जमी नहीं थी, पानी ही पानी था इसलिए हमें पहाड़ पर कुछ ऊपर चढ़कर इसे पार होगा । टनों के हिसाब से लोग एक के ऊपर एक ऊपर चढ़ने लगे लेकिन ट्रेल की कंडीशन कुछ खास अच्छी नहीं थी इसलिए जापानी ग्रुप लीडर ने रोप फिक्स कि जिससे एक-एक करके हम सभी क्रोस हुए । इतना ही काफी नहीं था कि सामने से भी लोग मना करने के बावजूद ऊपर चढ़ आये जिससे इस छोटी सी जगह में बहुत भीड़ इकठ्ठा हो गयी । जैसे-तैसे हम और जापानियों का ग्रुप क्रोस हो हुआ, इस सबसे निकलने में सवा घंटा लग गया ।
आज का टारगेट स्पीड पर निर्भर करता है । तेज चले तो टिब केव नहीं तो सूमो पहुंचकर कैम्पिंग करेंगे । चादर की कंडीशन अच्छी मिली, किनारों से जमी हुई लेकिन बीच से पानी तो बह ही रहा है । 30-40 मिनट बाद जिसका डर था वही हुआ, मैं धड़ाम से चादर पर गिरा, जल्दबाजी में उठने के चक्कर में फिर से गिरा, ऐसा लगा जैसे किसी ने पिछवाड़े पर बैट से प्रहार किया हो । फिर गिरने का सिलसिला शुरू होगा और अपन ने सबसे ज्यादा गिरे हुए इन्सान से ज्यादा बार गिरकर गिरे हुए इन्सान का ख़िताब हासिल किया । बड़ी अजीब सिचुएशन थी जब लगता है कि अब चादर पर चलना आ गया है तभी बन्दा गिर जाता । परिणाम कलाई का मुड़ना, कोहनी की हड्डी में जोरदार प्रहार, घुटने में लगी, कमर की हड्डी में लगी, इतना गिरने के बाद सोनम का कहना है आप बाकियों से कम गिर रहे हो ।
ट्रेक के दौरान हम लोगों को वापस जाते हुए देख रहे हैं । कुछ के हाथ और कुछ के पैर में फ्रेक्चर हुआ है । हम लोगों ने स्पीड अच्छी रखी और शिर्ख जोंगमा क्रोस किया फिर एक फ्रोजेन वाटर फाल भी मिला । सूमो जैसे ही पहुंचे तो पता चला कि आगे चादर बिलकुल भी जमी नहीं है इसलिए सभी ग्रुप वापस आ रहे हैं, इवन जो लोग आगे निरख तक गये थे वो भी वहीँ फंस गये हैं ।
हमने उसी जगह तक जाने का फैसला किया जहाँ बन्दरलस्ट फंसे हैं’। दोपहर एक बजे हम वहां पहुंच गये । यहाँ बहुत भीड़ थी, 200 लोग तो यहाँ जरुर होंगे । सभी यहीं से वापस लौट रहे हैं । सोनम ने स्लेज से सामान उतारकर पहले चाय बनाई फिर मैगी । इसी दौरान सभी की तरह हमने भी वापस जाने का फैसला कर लिया । हमने यहाँ आधा घंटा गुजारा, धूप तेज है, सन ग्लासेस नहीं पहनने की वजह से बर्फ की सफेदी आँखों में सुई की तरह चुभ रही है । टिब केव से एक ग्रुप वापस आया उसने भी वापस लौटने को ही अच्छा बताया । 2 बजे हम लोग यहाँ से वापस चल पड़े । अब प्लान ये है कि हम दोनों 2-2 दिन रुक-रूककर वापस लेह जायेंगे, कम-से-कम इसी बहाने चादर पर और दिन बिताने का मौका तो मिलेगा ।
2 साल से इस ट्रेक की प्लानिंग चल रही थी, इतनी तैयारियाँ और खर्चे के बाद हाथ क्या लगा, सिर्फ दो दिन का चादर ट्रेक । लेकिन कोई समस्या नहीं मैं अकेला यहाँ तक आया और इतना करने पर भी दिल में संतुष्टि है, 2 बजे वापस चल पड़े । वापस जाने से दिल नहीं दुखा लेकिन पैर जरुर दुखा । गमबूट्स ने पैरों की ऐसी की तैसी कर डाली । अब तो इन्जार था जल्द-से-जल्द वहां पहुंचने का जहाँ कैम्पिंग करनी है । 2 घंटे लगातार चलकर हम शिर्ख योंग्मा पहुंचे जहां धूप रहते टेंट लगा लिया । ये एक खुली जगह है जहाँ हवा बहुत तेज चलती है और यहाँ 27 छोटे-बड़े टेंटों से सजी है । पत्थरों की एक दीवार बनाकर सोनम ने तुरंत चाय बना दी, कभी तेज फ़ास्ट चाय बनाने का कोई अवार्ड दिया गया तो ये बन्दा उसका प्रबल दावेदार होगा ।
आज लकड़ी नहीं है इसलिए कोई आग भी नहीं है । रात को सोनम ने मैक्रोनी बनाई, खाकर जल्द ही मैं तो टेंट में चला गया और सोनम अपने बाकी साथियों के पास । दूसरा दिन समाप्त होने को है, आज का सफ़र लगभग 7 किमी. का रहा । कोहनी में बहुत दर्द है गिरने की वजह से ।
Day 04
आज हम कहीं नहीं गये, पूरा दिन अजगर की तरह पड़े-पड़े बिता दिया । आज हम यहीं रहेंगे और कल शिरख योंग्मा के लिए निकलेंगे । मैं सुबह तब उठा जब सूरज की रौशनी ने टेंट गर्म कर दिया । सुबह-सुबह ज्यादा ठंडा होता है लेकिग धूप निकलने के बाद ठण्ड ज्यादा महसूस नहीं होती । कॉफ़ी के साथ दिन शुरू होता है ।
धूप तेज थी, धीरे-धीरे सभी ग्रुप्स यहाँ से चले गये वापस लेह की ओर । हम दोनों ने टेंटों की बची हुई लकड़ियों को इकठ्ठा कर लिया । लकड़ियों से हमने पानी गर्म किया और आज कई दिन बाद ब्रूश करके फेसवाश से थोबड़ा चमकाया, चंद ही सेकंडों में दाढ़ी में जमकर कीलें बन गयी । नाश्ते में थुपका खाते हैं । आज कहीं नहीं जाना इसलिए मैंने तय किया कि पीछे स्थित माउंटेन पर जाऊंगा । कैमरा और मोनोपोड लेकर मैं चल निकल पड़ा, चलते हुए मैं ऐसी जगह पहुंच गया जहाँ से गिरकर आसानी से मेरी जान जा सकती है, बहुत डर लग रहा है और अच्छा भी । सोनम ने बताया था कि ऊपर स्थित गुफा में ब्लू शिप रहती हैं, लेकिन यहाँ तक पहुंचते-पहुंचते हमारी टांगों को मानो बवासीर हो गया । बहुत धीरे-धीरे करीब एक घंटे बाद आखिरकार सिंगल पीस मैं नीचे पहुंच जाता हूँ ।
आज सुबह से सिर्फ 2 ही ग्रुप आगे गये हैं । टाइम पास करने के लिए मैं चादर के पार वाली गुफा तक गया फिर ऊपर पहाड़ों पर भी घूमकर आता हूँ । वापस आकर हम मैक्रोनी खाते हैं और शाम तक आने-जाने वालों को देखते रहे, इतना मैक्रोनी खाकर मुझे अंग्रेज बनने की फिलिंग आने लगती है । धीरे-धीरे धूप जाने लगी और सूरज पहाड़ों के पीछे चला गया । हमें उम्मीद थी कि शाम तक ये जगह कल की तरह भर जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ । आज की रात हम दोनों को अकेले ही बितानी होगी शाम को सोनम ने दाल-चावल बनाये । बाहर मौसम खराब हो गया है, तेज ठंडी हवा चल रही थी और बाद में हल्का-हल्का स्नोफाल भी स्टार्ट हो गया । देर रात सोनम का एक मित्र आ जाता है ग्रुप के साथ तो सोनम उसी के साथ सो जाता है ।
आज सोनम को चोट लग गयी, दरअसल हुआ ये कि वो लकड़ियाँ लेने गया था वहां एक लक्कड़ को तोड़ने के चक्कर में वो फिसल गया जिससे उसको कई जगह चोट लगी । जबतक मैं उसके पास रहा तबतक वो दर्द से तिलमिलाता ही रहा । आशा करता हूँ आराम करके वो ठीक महसूस करेगा ।
भाग-01 : तैयारियाँ चादर ट्रेक
सामान पहले से ही तैयार था और हम भी । चाय पीकर हम तीनों 08:30 बजे निकल पड़े चिलिंग के लिए जोकि लेह से 60 किमी. दूर है । अच्छा रात को किराये वाले स्लीपिंग बैग की टेस्टिंग भी हो गयी जिसमें उसने 10 में से 10 नम्बर हासिल किये, अब इसका परिक्षण चादर पर किया जायेगा । “लेट्स वाक ओन चादर”
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चादर ट्रेक 2016 |
Day 02 (लेह-चिलिंग-शिर्ख योंग्मा)
लेह से निकलते ही तेनजिंग ने कहा कि “आगे एक चेक पोस्ट आयेगा, यहाँ पर्ची कटती है आप बोल देना कि मैं टीचर हूँ और लिंगशेड जा रहा हूँ” । बचपन में अपुन ने खूब झूठ बोला और पांचवी तक अपुन ने इसमें पीएचडी कर ली लेकिन बाद में हमारी शक्तियों का गलत इस्तेमाल किया गया जिस कारण इस खेल में अपन कच्चे खिलाड़ी साबित हुए । गणतन्त्र दिवस के चलते चेक पोस्ट पर कोई नहीं मिला, जबकि आज तो यहाँ किसी-न-किसी का होना बनता ही है ।
35 किमी. निम्मू है जिसको जल्द ही हमने क्रोस कर लिया, नदी के किनारे जमे हैं लेकिन फोटो खींचने में कामयाबी हाथ न लगी जिसका अफ़सोस हमें तब हुआ जब सोशल मिडिया पर लोगों ने इस संगम की फोटो डाल-डालकर अपुन को पश्चाताप के अन्देरे कुएं में धकेल दिया । यहाँ ज़न्स्कर और इंडस नदी का संगम है, ज़न्स्कर नदी यहाँ से इंडस में मिलकर इंडस रिवर का रूप धारण कर लेती है । लेह में तो गड्डे, नाले, गाड़ी, बाथरूम और बन्दे भी जम चुके हैं । निम्मू से चिलिंग 25 किमी. दूर है और ‘तिलद दो’ कुछ और किमी. ।
तेनजिंग ने हमें सगार उतारा, यह स्थान चिलिंग से आगे आता है और आजकल ट्रैक यहीं से शुरू होता है । हर साल सड़क बनने से ट्रैक की दूरी कम होती जा रही है और सड़क की बढती । सड़क बनने से सबसे ज्यादा फायदा लिंगशेड निवासियों को होगा, फिर वो भी हमारी तरह सभी सुख-सुविधायों का इस्तेमाल कर पाएंगे । यहाँ हम 11 बजे पहुंचते हैं, कुछ गाड़ियाँ खड़ी हैं जो शायद वापस आने वाले ग्रुप का इंतजार कर रही हैं । यहाँ सामान समेटते बहुत से पोर्टर हैं और टनों के हिसाब से बन्दरलस्ट, जिन्होंने लगातार फोटो खींचकर एक नया विश्व कीर्तिमान स्थापित कर दिया है ।
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सामान बांधते हुए |
सोनम ने कुछ सामान अपनी स्लैज पर बांध लिया और बाकी का सामान मैंने अपने रकसैक पर । यहाँ अपने पास रकसैक में एक जोड़ी गर्म कपड़े, रेन वियर, एक फ्लीज, एक जैकेट, एक मोटी जैकेट, कई जोड़ी जुराबें, एक जोड़ी थर्मल सेट, स्लीपिंग बैग, मैट्रेस, वाटर बोतल, एक 5 लीटर की पानी की कैन, कैमरा, ट्रेकिंग शूज और एक ट्रैकिंग पोल है ।
12:30 पर हमने चादर पर पहला कदम रखा, यहाँ चादर टूटी हुई है और पानी की गहराई लगभग 8 इंच है । हम गमबूट पहनकर बर्फीले पानी में घुस जाते हैं, पानी कितना ठंडा है ये तो पता नहीं चलता लेकिन लेफ्ट वाला बूट पिंकी ऊँगली की बैंड बजा रहा है । अगले चंद ही कदमों के बाद वो चादर आई जिसके फोटो देखकर हम सभी इसपर चलने का सपना देखते हैं ।
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पोर्टर और उनकी गाड़ियाँ जिन्हें स्लेज या स्की कहते हैं |
चादर पर पहले दिन का अनुभव अच्छा रहा । जांघों में खिचाव महसूस हो रहा है क्योंकि चलते वक्त पैरों पर पूरा कण्ट्रोल रखना पड़ता है । चादर ऐसी है जैसे कांच पर किसी ने तेल डाल दिया हो फिर ऐसे फ्लोर पर एपिक फॉल तो बनता है । हमने 3 घंटे में सिर्फ 3 किमी. चलने के बाद चादर पर पहला लंगर डाला, कैंप साईट का नाम शिर्ख योंग्मा है । टेंट लगाने के बाद मैं और सोनम बाकी लोगों की भांति पहाड़ पर चले जाते हैं लकड़ियां इकठ्ठी करने । वापस आकर हम चाय बनाते हैं फिर मैगी खाते हैं, डिनर में मशरूम-पनीर की सब्जी के साथ चावल की पार्टी दी जाती है खुद को ।
ना घड़ी है और न ही मोबाइल, इसलिए ना समय पता चल रहा है, ना तामपान और ना ही ऊँचाई । ठण्ड का हिसाब इस तरह से लगाया जा रहा है कि खोलती चाय 30 सेकेण्ड में ठंडी हो रही है और पेशाब गिरने के तुरंत बाद जम रहा है । आग के पास बैठकर आलम यह है कि आदमी आग में घुसकर सती होना चाहता है ।
08:30 बजे अपन टेंट में चले जाते हैं और अब यहाँ की असली ठण्ड का एहसास होता है, अब अगर स्लीपिंग बैग ने काट दिया तो कल सुबह तक हमारी मौत निश्चित है । सोनम अपने साथियों के साथ बाहर स्थित एक गुफा में सो जाता है जिसपर अपना सोचना है कि अगर उसे कुछ होता है तो वापसी में बॉडी स्लेज पर लेता चलूँगा ।
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चादर पर पहला कैंप |
Day 03
उठते ही पहले सोनम को देखा, वो ठीक है और चाय बनाने की तैयारी कर रहा है । बातचीत से पता चला कि ये स्थानीय अपने स्थानीय साथियों के साथ ही सोते हैं और आगे भी वो ट्रेक पर इसी प्रकार बाहर ही सोयेगा । उसने एक स्टोरी भी शेयर करी कि “एक बार मैं तीन स्पेनिश लडकियों के साथ चादर ट्रेक पर था, रात का समय था तीनों ने रम का जमकर सेवन किया, फिर उनमें से एक मुझे अपने साथ टेंट में ही सोने के लिए बोलने लगी, नाटी हाईट वाली मुझे टेंट में ले जाने लगी । मुझे डर लगने लगा और मैं भागकर अपने साथियों के पास चला गया” । शायद इस किस्से का सोनम पर मानसिक प्रहार हुआ । बाद में कई दिनों तक मैं बस यही सोचता रहा कि अगर मैं उसकी जगह होता तो क्या होता? ।
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ऐसा माहौल होता है चादर पर टेंट के भीतर |
स्लीपिंग बैग चादर के माइनस टेम्प्रेचर में पास हो गया है, भले ही इसका आउटर मोश्चर की वजह से गीला हो गया लेकिन इनर के भीतर अपनी सॉलिड बॉडी एकदम गर्म बनी रही । टेंट में मैं पूरी रात ज़न्स्कर नदी के बहने की तेज आवाज सुनता रहा । सुबह 07:30 आँख खुली, रकसैक पैक करने के बाद टेंट पैक किया । चाय-बिस्कुट खाकर हम लोग 9 बजे रवाना हुए । चलने के 5 मिनट बाद ही एक बड़ी मुसीबत का सामना करना पड़ा । इस जगह चादर जमी नहीं थी, पानी ही पानी था इसलिए हमें पहाड़ पर कुछ ऊपर चढ़कर इसे पार होगा । टनों के हिसाब से लोग एक के ऊपर एक ऊपर चढ़ने लगे लेकिन ट्रेल की कंडीशन कुछ खास अच्छी नहीं थी इसलिए जापानी ग्रुप लीडर ने रोप फिक्स कि जिससे एक-एक करके हम सभी क्रोस हुए । इतना ही काफी नहीं था कि सामने से भी लोग मना करने के बावजूद ऊपर चढ़ आये जिससे इस छोटी सी जगह में बहुत भीड़ इकठ्ठा हो गयी । जैसे-तैसे हम और जापानियों का ग्रुप क्रोस हो हुआ, इस सबसे निकलने में सवा घंटा लग गया ।
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जब चादर टूट जाएं तब ये फार्मूला काम करता है |
आज का टारगेट स्पीड पर निर्भर करता है । तेज चले तो टिब केव नहीं तो सूमो पहुंचकर कैम्पिंग करेंगे । चादर की कंडीशन अच्छी मिली, किनारों से जमी हुई लेकिन बीच से पानी तो बह ही रहा है । 30-40 मिनट बाद जिसका डर था वही हुआ, मैं धड़ाम से चादर पर गिरा, जल्दबाजी में उठने के चक्कर में फिर से गिरा, ऐसा लगा जैसे किसी ने पिछवाड़े पर बैट से प्रहार किया हो । फिर गिरने का सिलसिला शुरू होगा और अपन ने सबसे ज्यादा गिरे हुए इन्सान से ज्यादा बार गिरकर गिरे हुए इन्सान का ख़िताब हासिल किया । बड़ी अजीब सिचुएशन थी जब लगता है कि अब चादर पर चलना आ गया है तभी बन्दा गिर जाता । परिणाम कलाई का मुड़ना, कोहनी की हड्डी में जोरदार प्रहार, घुटने में लगी, कमर की हड्डी में लगी, इतना गिरने के बाद सोनम का कहना है आप बाकियों से कम गिर रहे हो ।
ट्रेक के दौरान हम लोगों को वापस जाते हुए देख रहे हैं । कुछ के हाथ और कुछ के पैर में फ्रेक्चर हुआ है । हम लोगों ने स्पीड अच्छी रखी और शिर्ख जोंगमा क्रोस किया फिर एक फ्रोजेन वाटर फाल भी मिला । सूमो जैसे ही पहुंचे तो पता चला कि आगे चादर बिलकुल भी जमी नहीं है इसलिए सभी ग्रुप वापस आ रहे हैं, इवन जो लोग आगे निरख तक गये थे वो भी वहीँ फंस गये हैं ।
हमने उसी जगह तक जाने का फैसला किया जहाँ बन्दरलस्ट फंसे हैं’। दोपहर एक बजे हम वहां पहुंच गये । यहाँ बहुत भीड़ थी, 200 लोग तो यहाँ जरुर होंगे । सभी यहीं से वापस लौट रहे हैं । सोनम ने स्लेज से सामान उतारकर पहले चाय बनाई फिर मैगी । इसी दौरान सभी की तरह हमने भी वापस जाने का फैसला कर लिया । हमने यहाँ आधा घंटा गुजारा, धूप तेज है, सन ग्लासेस नहीं पहनने की वजह से बर्फ की सफेदी आँखों में सुई की तरह चुभ रही है । टिब केव से एक ग्रुप वापस आया उसने भी वापस लौटने को ही अच्छा बताया । 2 बजे हम लोग यहाँ से वापस चल पड़े । अब प्लान ये है कि हम दोनों 2-2 दिन रुक-रूककर वापस लेह जायेंगे, कम-से-कम इसी बहाने चादर पर और दिन बिताने का मौका तो मिलेगा ।
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यहीं से वापस जाना पड़ा |
2 साल से इस ट्रेक की प्लानिंग चल रही थी, इतनी तैयारियाँ और खर्चे के बाद हाथ क्या लगा, सिर्फ दो दिन का चादर ट्रेक । लेकिन कोई समस्या नहीं मैं अकेला यहाँ तक आया और इतना करने पर भी दिल में संतुष्टि है, 2 बजे वापस चल पड़े । वापस जाने से दिल नहीं दुखा लेकिन पैर जरुर दुखा । गमबूट्स ने पैरों की ऐसी की तैसी कर डाली । अब तो इन्जार था जल्द-से-जल्द वहां पहुंचने का जहाँ कैम्पिंग करनी है । 2 घंटे लगातार चलकर हम शिर्ख योंग्मा पहुंचे जहां धूप रहते टेंट लगा लिया । ये एक खुली जगह है जहाँ हवा बहुत तेज चलती है और यहाँ 27 छोटे-बड़े टेंटों से सजी है । पत्थरों की एक दीवार बनाकर सोनम ने तुरंत चाय बना दी, कभी तेज फ़ास्ट चाय बनाने का कोई अवार्ड दिया गया तो ये बन्दा उसका प्रबल दावेदार होगा ।
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ये आदमी मैगी से जल्दी चाय बनाता है |
आज लकड़ी नहीं है इसलिए कोई आग भी नहीं है । रात को सोनम ने मैक्रोनी बनाई, खाकर जल्द ही मैं तो टेंट में चला गया और सोनम अपने बाकी साथियों के पास । दूसरा दिन समाप्त होने को है, आज का सफ़र लगभग 7 किमी. का रहा । कोहनी में बहुत दर्द है गिरने की वजह से ।
Day 04
आज हम कहीं नहीं गये, पूरा दिन अजगर की तरह पड़े-पड़े बिता दिया । आज हम यहीं रहेंगे और कल शिरख योंग्मा के लिए निकलेंगे । मैं सुबह तब उठा जब सूरज की रौशनी ने टेंट गर्म कर दिया । सुबह-सुबह ज्यादा ठंडा होता है लेकिग धूप निकलने के बाद ठण्ड ज्यादा महसूस नहीं होती । कॉफ़ी के साथ दिन शुरू होता है ।
धूप तेज थी, धीरे-धीरे सभी ग्रुप्स यहाँ से चले गये वापस लेह की ओर । हम दोनों ने टेंटों की बची हुई लकड़ियों को इकठ्ठा कर लिया । लकड़ियों से हमने पानी गर्म किया और आज कई दिन बाद ब्रूश करके फेसवाश से थोबड़ा चमकाया, चंद ही सेकंडों में दाढ़ी में जमकर कीलें बन गयी । नाश्ते में थुपका खाते हैं । आज कहीं नहीं जाना इसलिए मैंने तय किया कि पीछे स्थित माउंटेन पर जाऊंगा । कैमरा और मोनोपोड लेकर मैं चल निकल पड़ा, चलते हुए मैं ऐसी जगह पहुंच गया जहाँ से गिरकर आसानी से मेरी जान जा सकती है, बहुत डर लग रहा है और अच्छा भी । सोनम ने बताया था कि ऊपर स्थित गुफा में ब्लू शिप रहती हैं, लेकिन यहाँ तक पहुंचते-पहुंचते हमारी टांगों को मानो बवासीर हो गया । बहुत धीरे-धीरे करीब एक घंटे बाद आखिरकार सिंगल पीस मैं नीचे पहुंच जाता हूँ ।
आज सुबह से सिर्फ 2 ही ग्रुप आगे गये हैं । टाइम पास करने के लिए मैं चादर के पार वाली गुफा तक गया फिर ऊपर पहाड़ों पर भी घूमकर आता हूँ । वापस आकर हम मैक्रोनी खाते हैं और शाम तक आने-जाने वालों को देखते रहे, इतना मैक्रोनी खाकर मुझे अंग्रेज बनने की फिलिंग आने लगती है । धीरे-धीरे धूप जाने लगी और सूरज पहाड़ों के पीछे चला गया । हमें उम्मीद थी कि शाम तक ये जगह कल की तरह भर जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ । आज की रात हम दोनों को अकेले ही बितानी होगी शाम को सोनम ने दाल-चावल बनाये । बाहर मौसम खराब हो गया है, तेज ठंडी हवा चल रही थी और बाद में हल्का-हल्का स्नोफाल भी स्टार्ट हो गया । देर रात सोनम का एक मित्र आ जाता है ग्रुप के साथ तो सोनम उसी के साथ सो जाता है ।
आज सोनम को चोट लग गयी, दरअसल हुआ ये कि वो लकड़ियाँ लेने गया था वहां एक लक्कड़ को तोड़ने के चक्कर में वो फिसल गया जिससे उसको कई जगह चोट लगी । जबतक मैं उसके पास रहा तबतक वो दर्द से तिलमिलाता ही रहा । आशा करता हूँ आराम करके वो ठीक महसूस करेगा ।
1st पार्ट की तरह ये पार्ट भी जबरदस्त लिखा है। किसी ट्रेक पे तुम्हारे साथ जरूर चलना चाहूंगा।
ReplyDeleteगुड लक
आप कतार में हैं कृपया अपनी बारी की प्रतीक्षा करें, धन्यवाद सर
Deleteबाबा जी ये ब्लू शीप क्या होता है
ReplyDeleteसर ये वो जीव है जो कहीं से भी ब्लू नहीं होता।
Deleteबहुत ही खूबसूरत चित्र
ReplyDeleteथैंक्स ब्रो
Deleteअद्भुत। ये 'बन्दरलस्ट' क्या है?
ReplyDeleteहमारे देश में wanderlust बन्दरलस्ट बोलते हैं
DeleteVery beautiful pics. Which camera you use brother?
ReplyDeleteThanks for stopping by, Sony H100 point and shoot.
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