चंबा से लाहौल ट्रैक (जोतनु जोत और कुगती जोत, भाग-02) Chamba to Lahaul trek (Jotnu Pass & Kugti Pass, Part-02)

14 सितम्बर 2015

पहले भाग में मणिमहेश झील पर हमें कुछ पुराने साथी मिले जिनके साथ हमने दो रात गुजारी । इस भाग में ये दो मानुष वनमानुष की तरह जोतनु जोत और कुगती जोत को पार करते हैं, जोतनु की बुद्धि-तोड़ चढ़ाई और कुगती पे छिपी क्रिवासों का सामना करते हुए दोनों हरी-भरी लाहौल घाटी में पहुंचते हैं जहाँ इनका एक ही उद्देश्य था कि “आलू-गोभी की सब्जी कहाँ मिलेगी?” । 

Jotnu jot dhamghodi jot
कुजा ग्लेशियर फ्रॉम जोतनु जोत / धामधोड़ी 

इस यात्रा का पहला भाग  (फरीदाबाद से मणिमहेश कैलाश) पढने के लिए यहाँ क्लिक करें 

Day 03 (मणिमहेश-जोतनु जोत/धामघोड़ी-नैनोनी)

सुबह उठते ही मन इतना विचित्र हुआ मानो उल्टी हो जाएगी, सब सोये हैं और बाहर तेज़ धूप को देखते हुए सोचता हूँ कि कल रात बड़ी भयानक बीती । कमर दर्द से पीड़ित मैं स्लीपिंग बैग में मीना कुमारी टाइप पड़ा था कि अचानक विक्की की पूरी गैंग आ जाती है, मैं विक्की से पूछता हूँ कि तुम सब भी यहीं सोओगे क्या?, जिसपर उसका कहना है “सब हमारा है जी, हम जान दे देंगे इसके लिए, आप क्या बात कर रहे हो” । चार लोगों वाले टेंट में बारह लोग फिट हो गये हैं, अब दृश्य ये है कि लड़का लोग एक के ऊपर एक हैं अगर जीडी. बक्शी साब इस नजारे को देख लेते तो अपना यूनिवर्सल डायलोग पक्का बोलते “ये कोई.....” ।

chamba to lahaul trek
मणिमहेश कैलाश सूरज की पहली किरण के साथ 

पूरी रात चले गैंगबैंग के बाद नौ बजे सब उठ जाते हैं । नवीन उर्फ़ सेव व्यापारी रात के हालातों को मध्यनजर रखते हुए बोलता है “गजब खराब व्यवस्था है” । ब्रेकफास्ट करके 09:20 हम सभी मेम्बरान को “हर हर महादेव” बोलकर अपनी आगे की यात्रा शुरू करते हैं । 

chamba to lahaul trek
जोतनु जोत जाते हुए 

सूरज की तेज होती रोशनी के साथ हम जूते गले में लटकाकर गहोई नाला पार करते हैं जिसका उद्गम स्थान कुजा ग्लेशियर है । एक रेस्ट के बाद तेजी से बढ़ते हुए 10:30 कमल कुण्ड पहुंचते हैं, इस घाटी की दूसरी सबसे खुबसूरत जगह । यहाँ की ऊँचाई 4320 मीटर है और यहाँ का माहौल मणिमहेश डल से बिलकुल अलग है, न लोग, न लंगर और न हवा...एकदम गहरी शांति पसरी पड़ी है । 

Chamba to lahaul trek
कमल कुण्ड 

कुछ साधु बाबा बैठे चिलम पी रहे हैं, सारा माहौल धुआंधार कर रखा है, हम कुछ देर कमल कुण्ड के किनारे बिताते हैं जोकि मणिमहेश पर्वत के चरणों में स्थित है । लाहौल जाने के सपने को एक ओर रखकर यहाँ की शांति को महसूस करते हैं । कुछ लड़कों का ग्रुप और आ जाता है पीछे से जिनका पूछना है कि आप क्या करते हो?, सूरज की तरफ देखकर मेरा बोलना है “एन्जोयिंग लाइफ और ऑप्शन ही क्या है” । 

Chamba to lahaul trek
कमल कुण्ड पर नवीन की आत्मा अलग और शरीर अलग देखा गया 

थौबड़े पर सनबर्न लेकर यहाँ से 11:15 चलते हैं । ऊँचाई बढ़ने पर बड़े-छोटे पत्थरों को देखकर ख्याल आता है कि 10-20 भालुओं का जत्था इनमें छुपा हो सकता है । बोल्डर जोन को क्रोस करने में जान निकल रही है, बंदरों की तरह उछल-कूद शुरू हो जाती है जिससे स्पीड बेहद कम होती जाती है लेकिन नजारों ने हममें जान फूंकना बंद नहीं किया । 

Chamba to lahaul trek
नवीन खड़ी चढ़ाई से टक्कर लेता हुआ देखा गया 

कुजा ग्लेशियर पर स्थित बर्फ का मुकुट पहने चोटियाँ चमक रही हैं, कुजा को देखकर मन करता है चलो बर्फ पे फिसलते हैं । 5-6 लड़कों का दल मिलता है, सभी पठानकोट से हैं और कैलाश परिक्रमा कर रहे हैं । हम रास्ते की जानकारी लेते हैं जिसपर उनका कहना है कि ये जो दीवार दिख रही है इसे चढ़ते ही जोत आ जायेगा । थूक निगलकर हम आँखों ही आँखों में “लेट्स डू दिस अमीगो” बोलकर चल पड़ते हैं ।

Chamba to lahaul trek
पठानकोट की जुझारू टीम 

Chamba to lahaul trek
जोतनु जोत की चढ़ाई बच्चों का खेल नहीं है 

यह दीवार पीर-पंजाल रेंज का हिस्सा है और लगभग सीधी खड़ी है, दीवार काली रेत और पत्थरों से बनी है । इसे चढ़ने में हम करीबन 32 मिनट का समय लेते हैं । जोतनु जोत (4830 मीटर) जिसे धाम घोड़ी और शिव जी का जोत भी कहा जाता है... के टॉप पर मराली माता का खुली छत्त का एक छोटा सा माता मंदिर है । हम मणिमहेश कैलाश के कंधे पर खड़े होकर कुजा ग्लेशियर पर स्थित कुजा का टीला (5170 मीटर) और मणिमहेश झील के दर्शन करते हैं जबकि दूसरी तरफ शाह जोत, ललुणी जोत, शिखर बह और मुकर बह के साफ़-साफ़ दर्शन होते हैं...अगर हम थोड़ी और ऊँचाई पर होते तो हनुमान टिब्बा और घेपन पर्वत के दर्शन भी हो जाते । 

Chamba to lahaul trek
जोतनु जोत, यात्रा 2015 

chamba to lahaul trek
जोतनु जोत से दिखाई देता कुगती साइड का दृश्य 

टॉप पर धूप जलाकर हम पीछे की तरफ उतरने लगते हैं, यह रास्ता हमें कुगती गाँव ले जायेगा । दूर तक देखने पर कुछ नहीं दिखाई पड़ता, न कोई ट्रेल और न कोई बंदा । जितनी खड़ी चढ़ाई रही उतनी ही जानलेवा उतराई शुरू हो जाती है, हम कांपती टांगों के सहारे लगभग डेढ़ घंटे में एक जमी हुई छोटी सी झील के किनारे खड़े हैं, ऊँचाई तकरीबन 4200 मीटर है ।

chamba to lahaul trek
नवीन ने लीड किया हनुमान शिला तक 

टूटी टांगों और भन्नायें मन के साथ हम हनुमान शिला (4080 मीटर) शाम सवा चार पहुंचते हैं । अब तक हमारा ये हाल हो चुका है कि कोई अपने हाथों से आलू-गोभी की सब्जी खिला दे ताकि हम फिर से जिन्दा हो सकें । हनुमान शिला पर मौजूद गाइड से बात होती है तो पता चलता है यहाँ जितनी भी ठहरने की जगह है उसको पहले ही आंध्रा और पठानकोट वालों ने कैप्चर कर लिया है । आन्ध्रा वालों का गाइड हमें थोड़ा और नीचे जाने को बोलता है जहाँ कुगती गाँव के निवासी की दुकान है वहाँ खाने को और टेंट लगाने को जगह मिल जाएगी । हम थैंक्स बोलकर बैग उठाते हैं जिसपर उसका चेहरा देखकर लगता है मानो बोल रहा हो “ये मजा मैं सबको देना चाहता हूँ” । निराशाओं को कंधों पर रखकर पैर पटकते हुए हम कुगती वालों की दुकान की ओर चल पड़ते हैं । 

Hanuman shilla
हनुमान शिला 

05:15 शुरू करते हैं, ये रास्ता खून का पसीना बना देता है । अब मैं और नवीन बिना कुछ बोले बस चल रहे हैं मानों अगर बोले तो आग उगलकर एक-दूसरे को भस्म कर देंगे । 40 मिनट की कदमताल के बाद कुगती निवासी की दुकान आती है, इस जगह का नाम शायद नैनोनी है (3500 मीटर) नदी किनारे यह जगह खुली है...हम इसी थाच में अपना टेंट लगा लेते हैं । यहाँ पठानकोट वालों की एक टीम है जो सभी प्रकार के ट्रेकिंग गियर्स से लेस है ।

kugti village camp site
नोनौनी में हमारा कैंप 

 अति प्राचीन नक्शा देखकर पता चलता है कि यहाँ से एक रास्ता बड़ा भंगाल को जाता है, जिसके लिए पहले निकौडा ग्लेशियर पार करना होगा फिर निकौडा पास । पास और ट्रेल दोनों अब इतिहास का हिस्सा बन चुके हैं ।

चाय के बाद दाल-चावल खाते हैं जोकि बेहद स्वादिष्ट बनते हैं । पठानकोट वाले लड़के शराब पी रहे हैं और कुगती का स्थानीय निवासी उन्हें देख रहा है । वो हमसे भी पूछते हैं जिसपर हमारा कहना है “हमें अपने में मत मिलाइये हम अलग हैं” । ये लोग देर रात तक जागते हैं हो-हल्ला करते हैं । यहाँ एक नार्थ-ईस्ट (त्रिपुरा) का लड़का है जो किसी तरुण गोयल के ब्लॉग को पढ़कर मणिमहेश परिक्रमा पर निकल आया है वो भी बिना किसी सामान के एकदम अकेला । पूछने पर कहता है “अपुन को कुछ डेयरिंग करना था” । ये पीता नहीं है फिर भी पठानकोटिये इसे धुत्त कर देते हैं । लड़का शायद उल्टियाँ मार रहा है, “कौन हैं ये लोग, कहाँ से आते है?” ।

Day 04 (नैनोनी से कार्तिक स्वामी मंदिर/केलंग वजीर)

खैमा-पठानकोट पहले ही निकल चुका है खाली रम की बोतलों को छोड़कर, चाय के बाद टेंट पैक करते ही हम भी निकल पड़ते हैं लाहौल के लिए । जिन्होंने यहाँ दुकान लगायी है वो कुगती गाँव के रहने वाले हैं...उनका नाम रामलाल है, रामलाल जी आगे के रास्ते की जानकारी यंत्रवत देकर हमें विदा करते हैं । 

kugti village gaddi
गद्दी अंकिल, "दिल तोडके हँसते हो मेरा, वफायें मेरी याद करोगे"

हम आठ बजे निकलते हैं यहाँ से और तीस मिनट बाद एक गद्दी अंकिल मिलते हैं जोकि हमें देखकर “मसीहा आ गये...मसीहा आ गये” चिल्लाने लगते हैं । हमारे पास माल ना मिलने के बाद वो बेहद निराश महसूस करते हैं । थोड़ा आगे जाकर हल्का अपहिल शुरू हो जाता है जैसा रामलाल अंकिल ने बताया था । 11 बजे के लगभग हम बुढहिल नाले को क्रोस करते हैं । यहाँ से तीखी चढ़ाई शुरू होती है जोकि एक घंटे तक चलने के बाद हमें एक थाच पे पहुंचाती है जहाँ से हमें कुगती गाँव (3000 मीटर) और कार्तिक मन्दिर के साफ-साफ दर्शन होते हैं ।

budhhil river crossing
ऐसे नाले पार करने पड़े, पिन पार्वती की तरह थोड़ी... कि घुस जाओं सर पे कफन बांधकर

कई बार रास्ता भटकने के बाद आखिरकार कुछ लोकल मिलते हैं जो हमें सर से पाँव तक देखकर कहते हैं “भालू यहाँ से मशीन में डालेगा और वहां से कीमा-ऐ-टूरिस्ट निकालेगा”, इसलिए चिल्लाते हुए चलना इस जंगल में भालू बड़े भारी हैं । चीखते-चिल्लाते हम उतराई को तेजी से चीरते हुए पार कर रहे हैं, थोड़ा आगे जाकर एक छोटा नाला मिलता है जहाँ हम नहाने की सोचते हैं... लेकिन भालू का क्या?, नवीन का बोलना है “सह लेंगे” । ठन्डे पानी में नहाकर हम “तुम हुस्नपरी, तुम सबसे जवां, सौन्दर्य साबुन निरमा” वाली लड़की बन जाते हैं । नहाकर स्पीड बढ़ाते हैं, अब मंदिर सिर्फ तीन किमी. ही रह गया है । रास्ते में आडू समझकर हम कच्ची अखरोट तोड़ लेते हैं जो मुंह का सारा स्वाद ही खराब कर देती है । 

bath at kugti village
हिमाचल में ऐसे लोगों को कौन घुसने देता है?

सुबह 08 बजे चलकर हम 03:15 कार्तिक स्वामी मंदिर पहुंचते हैं, यहाँ की ऊँचाई 3090 मीटर है और स्थानीय भाषा में इस मंदिर को केलंग वजीर के नाम से भी जाना जाता है । यहाँ स्थित लंगर में पहुंचते हम बस लेट जाना चाहते हैं । हल्का खा-पीकर हम मंदिर घूमते हैं और वहीँ मौजूद एक एस.टी.डी. से अपने-अपने घर पर अपने कुशल-मंगल की जानकारी देते हैं । मंदिर के भीतर फोटो लेना माना है इसलिए हम कार्तिक स्वामी के दर्शन करके मन्दिर परिसर में ही घूमते हैं । 

Kartik swami temple / kelang wazir
कार्तिक स्वामी मंदिर / केलंग वजीर 

यहाँ हमें पठानकोट का एक और ग्रुप मिलता है जो पिछले वालों से बिल्कुल अलग है, इनसे मैं आज भी जुड़ा हूँ, उनके नाम शायद इस प्रकार हैं: चिराग महाजन, लवकेश मेहरा, मोहित अरोड़ा, गौतम महाजन, मुनीश कुमार, विशाल तलवार और रोहित रॉय । सभी लड़कों में उत्साह है हमारी यात्रा को लेकर और अपनी मणिमहेश कैलाश परिक्रमा को लेकर । 

Pathankot friends at Kartik swami temple
पठानकोट के सभी मित्र

कार्तिक मंदिर से ऊपर ही मराली माता का मंदिर है जहाँ असंख्य त्रिशूल रखे हैं । हम इस खुली छत के मंदिर में सिर्फ एक विचार लेकर जाते हैं कि “आशीर्वाद दें कि हम इस अनजाने सफर को सकुशल पूरा कर सकें”, और जब पलटकर मराली माता की मूर्ति की ओर देखा तो उनका आशीर्वाद देता हाथ ही नजर आया । यहीं एक बाबा जी मिले जो त्रिलोकीनाथ मंदिर से आये हैं, वो आहावन अखाड़े से हैं और पुरानी दिल्ली गोपालगंज में उनका डेरा है ।

Mata marali temple
माता मराली मंदिर

बड़े कम साधू देखे हैं इनके जैसे, एकदम बच्चों जैसा सीधापन और आपकी किसी भी बात पर हँस देने वाले एकदम जीवंत हंसमुख इंसान । कोई भी साधू-महात्मा अपने बारें में कभी नहीं बताते लेकिन इन्होने बिना किसी शक-सवाल के बताया कि “मैंने 2006 में सन्यास लिया, समय बीतता गया और सर के और दाढ़ी के बाल लम्बे होते चले गये, फिर मन नहीं लगा इस सब में तो दुबारा पैंट-शर्ट पहन लिए और दाढ़ी-बाल कटवा दिए । इस तरह उन्होंने 2-3 बार ऐसा किया...और आखिरकार अब वो बोलते हैं कि अगर फिर मन किया वापस जाने का तो चला जाऊंगा । इस सबको सुनकर मैं कहे बिना ना रह सका कि “सन्यासी आपको भला-बुरा कहते होंगे?”, जिसपर वो असमान की तरफ ऊँगली करके बोले “उसकी मर्जी के बिना जब पत्ता भी नहीं हिलता तो जो मैं कर रहा वो भी तो उसी की रजा है” ।

sunset at manimahesh
बाबा ने जोगटा को पकड़ लिया फोटो खींचते हुए 

Chamba manimahesh kailash
मणिमहेश कैलाश के दर्शन केलंग वजीर से 

लंगर के पर्दे ठंडी हवा में लहरा रहे हैं, बाबा जी भी ढलते सूरज की रोशनी के बीच कैलाश को देख रहे हैं । नीचे से बुढहिल नाले के बहने की आवाज़ आ रही है वहीँ सामने ऊपर पहाड़ पर मराली माता का मंदिर सोने की भांति चमक रहा है । वहां से उड़कर आये पक्षी कार्तिक स्वामी मन्दिर का चक्कर लगाकर कुगती गाँव की ओर रुख करते हैं शायद कैलाश जा रहे हैं ।

सवा सात कार्तिक स्वामी की आरती के बाद लंगर में खाना खाते हैं । आज स्लीपिंग बैग की जरूरत नहीं है, लंगर वालों ने हम दोनों को 3-3 कम्बल दे दिए हैं, रात साढ़े दस सभी के लेटने के बाद मैं भी यह सोचते हुए लेटता हूँ कि “आगे अनजाने रास्तों पे हमारे साथ क्या होने वाला है?” ।

Day 05 (कार्तिक स्वामी मंदिर/केलंग वजीर से अल्यास)

स्थानियों ने कहा है कि आज जल्दी निकलना क्योंकि रास्ता बेहद लम्बा है, नहीं तो अल्यास तक पहुंचते-पहुंचते तुम दोनों के मटर छिल जायेंगे । यह 13 सितम्बर 2015 इतवार का दिन है और हम लंगर से सवा छह बजे विदा लेते हैं । केलंग वजीर और मराली माता को हाथ जोड़कर अपनी यात्रा शुरू करते हैं । डेढ़ घंटे लगातार चलने के बाद हम पहला ब्रेक एक गोठ पर लेते हैं, बिस्कुट खाते-खाते नजारे देख रहे हैं । यहाँ घोड़े भाग रहे हैं, गाय चर रही हैं, नालों की तेज आवाज कानों में पड़ रही है और इस सब पर तेज़ धूप इसको और सुहाना बना रही है । 

Duggi goth
डुग्गी गोठ 

मैं और सेब व्यापारी दोनों के चेहरे कन्फ्यूज हैं कि अब आगे किस तरफ जाना है । थोड़ी देर बैठकर विचार-विमर्श कर रहे हैं कि किधर जाना है कि तभी एक स्थानीय निवासी जोकि कुगती गाँव से हैं, आ जाते हैं और घोड़ों को नमक खिलाने लगते हैं । हम उनसे आगे का रास्ता जानना चाहते हैं जिसपर उनका कहना है “घोड़े पकड़वाओगे?”, हम करते हैं प्रबंध, आप चिंता मत कीजिये बोलकर अगले सीन में हम दोनों डुग्गी गोठ में अपने रकसैक फैंककर घोड़ों के पीछे काऊबॉय टाइप भाग रहे हैं जैसे घोड़े हाथ आ जायेंगे और हम उन्हीं पर बैठकर लाहौल जायेंगे । 

Shepard giving salt to horses
पहले नमक खिलाया अंकिल ने 

Duggi goth
फिर घोड़ों के पीछे दौड़ाया हमें 

नवीन 3240 मीटर पर आज तक का अपना सबसे बेस्ट स्प्रिंट मारकर मेरी तरफ देखता है, वहीं मैं फ़िल्मी अंदाज में ऐसे दौड़ रहा हूँ जैसे गुंडे अबला हिरोइन के पीछे पड़े हों । अंकिल मेरे तरफ ऐसी नजर से देखते हैं मानो कहना चाह रहे हो “उनके पाँव में महंदी लगी है, अरे आने जाने के काबिल नहीं हैं” ।

एक घंटे भाग-दौड़ के बाद हम बैठ जाते हैं और खुद को कोसने लगते हैं कि क्यों भागे घोड़ों के पीछे और यह सोचने लगते हैं कि “आखिर ये किसके घोडें पकड़ रहे हैं? । इसपर सेब व्यापारी का बोलना है कि “हमें क्या माचो...बस रास्ता बता दें” । अब तक अंकिल भी थक हार कर हमारे पास आ चुके हैं और बीड़ी पीते हुए रास्ता ऐसे बता रहे हैं जैसे किसी खजाने का नक्शा बता रहे हों । खजाने का रास्ता जानकर हम चल पड़ते हैं अल्यास की ओर, पीछे मुडकर देखते हैं तो अंकिल अभी भी घोड़ों के पीछे भाग रहे हैं । #पुअर फेला

Chamba to lahaul trek

आगे डुग्गी नाले पर लक्कड़ के दो कुंदे पड़े हैं जिन्हें हम बड़ी आसानी से पार कर लेते हैं । रिजुल गिल बताते हैं कि इस डुग्गी नाले के साथ-साथ अगर ऊपर जाएँ तो दो जोत आते हैं जो सीधा लाहौल उतरते हैं, पहला डुग्गी का जोत और दूसरा डुग्गा का जोत । हम नाला क्रोस करके लेफ्ट ही लेफ्ट चलते रहते हैं, अब पगडंडी थोड़ी-थोड़ी दिखाई देने लगी है । रास्ता तिरछा है लेकिन चढ़ाई ज्यादा नहीं है, हम पुरे एक घंटे बाद रेस्ट लेते हैं । यहाँ नाला पार करते ही एक सराय भी आती है, इन दोनों सिम्पटम्स को देखकर हम इस जगह को डुग्गी घोषित कर देते हैं । 

Duggi goth / duggi ka jot / duggi ki jot
डुग्गी गोठ पर स्तिथ सराय

हमारा आज का टारगेट अल्यास पहुंचने का है लेकिन उससे पहले हमें वो बड़ा पत्थर ढूँढना है जिसपर ढाई अक्षर हिंदी के “लाहौल जाने का रास्ता” लिखा है । यहाँ अनेकों बड़े पत्थर हैं लेकिन ट्रेल पर चलते हुए हमें एक नहीं दो-दो पत्थर मिलते हैं जिनपर संजीव भाई ने “लाहौल जाने का रास्ता लिखा है” । ऊपर चढ़ते समय हमें तीन लोग मिलते हैं, इन्होने अपने कंधों पर 40 किलो के हिसाब से जड़ीबूटी उठा रखी है । ये लोग अल्यास से आ रहे हैं और अब सीधा कुगती गाँव जायेंगे । हम इन्हें पानी पिलाते हैं और इनमें से एक जिसका नाम सतपाल है हमें अल्यास का रास्ता बताते हुए कहते हैं कि आज रात वहीँ रुक जाना, माई बोइज्स आर देयर ।

Way to lahaul valley
संजीव भाई का धन्यवाद

Chamba to lahaul trek
टीम जड़ीबूटी

जडीबूटी वालों के अनुसार अभी भी हमें अल्यास पहुंचने में कम से कम दो घंटे का समय लगेगा । आगे बढ़ते हैं तो हमारा पानी खत्म हो जाता है आई मीन बोतल का । भयंकर प्यास लगने लगती है लेकिन पानी का कोई अता पता नहीं, ऊपर से धूप बहुत तेज मानो खून भी चूस लेगी । थककर एक रेस्ट लेते हैं, मैं नवीन का चेहरा देख रहा हूँ उसके चेहरे का रंग बदलता जा रहा है...फिर अपने चेहरे को कैमरे में देखता हूँ, मुझे भैरों बाबा याद आ जाते हैं ।

water source at alyash kugti paas
प्यास बुझाता एक छपरी नौजवान 

जल्द ही मिनरल वाटर से लबालब नीले पानी का नाला आ जाता है जिससे पेट और बोतल भरकर हम पहाड़ों को देखकर सोचते हैं “क्या करना लाहौल जाकर यहीं सो जाते हैं” । लगातार एक किमी. की चढ़ाई चढ़कर, गुर्दे घिसवाकर अंतत हम दोपहर सवा बारह बजे अल्यास पहुंच जाते हैं जहाँ पत्थर की छोटी सी टपरी है और एक-दो टेंट भी लगे हैं । “स्वागत नही करोगे हमारा” डायलोग बेकार चला जाता है क्योंकि यहाँ कोई नहीं है । 4070 मीटर की ऊँचाई पर हम खिली धूप में कुगती जोत को देख रहे हैं, उसके साथ लटके जम्बो ग्लेशियर को देख रहे हैं वहीँ सेब व्यापारी अपने स्लीपिंग बैग में घुसकर सो जाता है ।

Alyash kugti jot
कुगती अल्यास पर सोता नवीन 

जड़ीबूटी वालों का इंतजार करते हैं जो साढ़े तीन बजे आते हैं । अब तक हम अपना टेंट पिच कर लेते हैं और जडीबूटी वाले हमारे लिए चाय बना देते हैं । सूरज ढल रहा है और हवा तेज और तेज होती जा रही है मानो हमारे टेंट को हमसे पहले लाहौल पहुंचा देगी । कुछ देर में बारिश और तेज हवा भी शुरू हो जाती है जिसपर जड़ीबूटी वालों का बोलना है छह बजे के बाद हवा रुक जाएगी और सच में ऐसा ही हुआ। यहाँ टोटल चार लोग हैं और चारों ही कुगती निवासी हैं, जड़ीबूटी चुनकर बेचते हैं किसी कम्पनी को, उससे मिले पैसों से घर चलाते हैं । 

Camping at alyash / kugti pass
अल्यास पर हमारा टेंट और सनसेट 

चाय के बाद हम हम वेज सूप पीते हैं जिसे अपने साथ भरमौर से ढ़ोकर लाए हैं । रात को दाल-चावल बनाकर खिलाते हैं ये लोग, इस ट्रिप पे अभी तक का सबसे स्वादिष्ट खाना खाकर हम अपने टेंट में आ जाते हैं । स्लीपिंग बैग में लेटे-लेटे नवीन का बोलना है “कल जल्दी निकलते हैं ताकि शाम तक लाहौल पहुंच जाएँ”, इस पर मेरा सोचना है “आलू-गोभी की सब्जी ही सब्जी होगी” ।

alyash kugti pass
जड़ीबूटी वालों के साथ (अल्यास)

Day 06 (अल्यास-कुगती जोत-लाहौल)

रात नींद अच्छी और गर्म आई इसलिए आँख सुबह जल्दी खुल जाती है । 05:54 उठकर जब बाहर निकलकर देखते हैं तो टेंट की आउटर शीट पर पाले की एक परत जम चुकी है । बर्फ के साथ ही टेंट को पैक करके मैं रकसैक में डाल लेता हूँ । उनमें से एक जिसका नाम थेतिराम है वो हमें आगे के रास्ते की जानकारी देते हैं कि “तुम लोग आये तो लेट हो लेकिन कोई बात नहीं, वो सामने जो बर्फ दिख रही उसकी तरफ मत जाना बिल्कुल भी बल्कि उसके लेफ्ट से एक रास्ता ऊपर को जायेगा...बस उसी पर भेडू की तरह बढ़ते रहना" ।

Alyash kugti pass
टेंट पे जमा पाला

Kugti jot
जोगटा की स्प्रिंट देख रहे हो 

जड़ी वालों ने अब तक चाय बना दी है जिसे हम अपने साथ हड़सर से लाए पार्ले-जी और कार्तिक स्वामी पर लगे लंगर वाली बेसन की मिठाई के साथ खाते हैं । ये लोग पैसे नहीं लेंगे इसलिए हम एक पार्ले-जी का पैकेट और सूप के पैकेट जड़ीबूटियों वालों के पास ही छोड़ देते हैं । अब हमारा पास राशन लगभग खत्म हो चुका है सिवाय दो छोटे पार्ले-जी के पैकेट छोडकर ।

थेतिराम ने शाम को मेरा हैडलेम्प देखा था और वो काफी टाइम से ऐसा लैम्प ढूँढ रहे हैं लेकिन मिल नहीं रहा, मैं अपने लैम्प को दे देता लेकिन हमारा रास्ता बड़ा लम्बा है । इसलिए मैं घर आकर उनके एड्रेस पर डीकैथ्लोन स्टोर से एक हेडलैम्प डिलीवर करवाता हूँ लेकिन डीकैथ्लोन वालों ने न जाने कौनसे आयाम में डिलीवर करवा दिया जबकि थेतिराम को मिला भी नहीं । डीकैथ्लोन वालों से बात करता हूँ तो बोलते हैं “देअर  आर 40 मोर पीपल लाइक यू”, सारी इंग्लिश दाव पे लगाकर मैं सिर्फ “गो टू हेल” ही बोल पाया ।

07:05 हम दोनों लाहौल के लिए निकल पड़े हैं और जैसे ही पीछे मुड़कर देखते हैं वैसे ही थेतिराम चिल्लाकर बोलता हैं “खबरदार अगर ग्लेशियर की तरफ गये तो, माई डिअर फ्रेंड मैं फिर कहता हूँ खबरदार अगर ग्लेशियर की तरफ गये तो” । सेव व्यापारी का जोश देखते ही बन रहा हैं, वो मुझसे 200 मीटर दूर ही दिखा जबकि मैं ये सोच-सोचकर परेशान होता रहा कि सेम-टू-सेम दाल-चावल तो मैंने भी खाए हैं फिर इसके दाल-चावल मेरे वालों से तेज कैसे? 

Kugti jot
नवीन वाज अनस्टोपेबल

मौरेन तक पहुंचते-पहुंचते हम भेडू बन चुके हैं, यहाँ एक पिछतिस इंच चौड़ा नाला मिलता है जिसे क्रोस करने के लिए 40 मिनट उसके साथ-साथ ऊपर तक चलना पड़ा । 08:14 पर पहला ब्रेक लेकर हम क्रोसिंग का मुआयना करते हैं, यहाँ पत्थरों पर शीशा जमा हुआ है, सेब व्यापारी का कहना है कि “एक गलत हरकत और नितम्ब रहित कुल्हे की हड्डी के चार टुकड़े हो जायेंगे”, मैं सूखे पत्थर ढूंढते हुए उसको बोलता हूँ “आई नीड दैट इन राइटिंग फर्स्ट” । 

कुछ सूखे पत्थर डालकर हम क्रोसिंग बनाते हैं और सेफ्ली पार करते हैं । अब ढीले लुढ़कते पत्थरों पर सीधा चढ़ना है, नवीन आगे हैं और पीछे मुड़कर बोलता है टक्कर खड़ी है जिसपर मेरा सिर्फ इतना ही बोलना है “सह लेंगे” । कोई फिक्स पगडंडी नहीं है फिर भी इतना अंदाजा तो लग रहा है कि किधर से जाना है । 4500 मीटर पर भी थेतिराम के शब्द ऐसे सुनाई दे रहे हैं मानो वो हमारे साथ चल रहा हो । हम उन्हीं के शब्दों का अनुसरण करते हुए ग्लेशियर के लेफ्ट से ही ऊपर की तरफ चढ़ते जा रहे हैं । पहाड़ इतना ढीला प्रतीत हुआ जैसे उसने अपना सत ही छोड़ दिया हो, 4 कदम ऊपर चढ़ो 2 कदम नीचे खिसको । 

Kugti jot
कुगती जोत के कठिन रास्ते में पस्त एक मैक्स प्रो शहरी युवा

धूप तेज है, पसीना शरीर पर जोगनी वॉटरफॉल की तरह बह रहा है । चढ़ाई को देखते हुए मन चिढचिढ़ा हो रहा है, बीच में आये एक सुसाइड पॉइंट पर बैठकर मणिमहेश पर्वत को निहार रहे हैं । दोनों को भूख लग रही है, हमारा सोचना है काश जोत पर कुछ खाने को मिल जाये, कुछ नहीं तो कम-से-कम सेब और ड्राई फ्रूट्स ही मिल जाएँ । मैं लेफ्ट साइड टंगे फुटबॉल फिल्ड जितने बड़े ग्लेशियर को देखता हूँ कि तभी थेतिराम का बोलना है “माई डियर फ्रेंड...”, हाँ भाई याद है अब क्या ग्लेशियर की तरफ देख भी नहीं सकते? 

Kugti jot
दौड़ता नवीन देख सकते हो आप फोटो के बीच में 

सेब और ड्राई फ्रूट्स के लालच में हम फिर से चलना शुरू करते हैं और करीबन आधे घंटे बाद टॉप पॉइंट पर पहुंच जाते हैं जहाँ से जोत तक पहुंचने के लिए थोड़ा नीचे उतरना पड़ेगा । और चंद ही मिनटों में हम इस यात्रा के दूसरे पास पर खड़े हैं । नाम कुगती जोत है जिसकी ऊँचाई घड़ी 5171 मीटर दिखाती है और पीर-पंजाल रेंज में स्थित यह पास चंबा को लाहौल से जोड़ने का काम करता है । हम यहाँ 12:15 पर पहुंचते हैं, इस 1000 मीटर के गेन को तय करने में हमें 4 घंटे 15 मिनट का समय लगा । तेज हवा का झौंका कुगती की तरफ गया तो लगा फाइनली थेतिराम कह रहा है “ठीक है भाई, अब मैं चलता हूँ” । 

view from Kugti jot
कुगती जोत से दिखाई देता मणिमहेश कैलाश 

View from kugti jot
कुगती जोत से दिखाई देती लाहौल घाटी

कुगती पास पर मराली माता का मंदिर है, यहाँ भेडू के सींग, त्रिशूल, लाल रंग की चुन्नियाँ, देवी की मूर्ति, दिया-बाती, धूप, माचिस, सेब और ड्राई फ्रूट्स हैं । हम जूते साइड में उतारकर धूप जलाते हैं और धन्यवाद करते हैं यहाँ तक सही सलामत पहुँचाने के लिए । चंबा की तरफ देखते हुए हम मणिमहेश कैलाश के अलावा धौलाधार में स्थित गौरी झुंडा और मून पीक को पहचानने में सफल होते हैं । वहीँ लाहौल की तरफ शिलिंग, सत्तूदा-पर, गंगस्टंग पीक, गुमाश्बेही, खोलुम्बर पीक्स के साफ-साफ दर्शन होते हैं । नवीन का कहना है “देखो वहां बहुत दूर सड़क के साथ एक लाहौली गाँव दिख रहा है”, जिसपर मेरा कहना है “आलू-गोभी की सब्जी खायेंगे पहुंचकर” । 

Marali mata temple on kugti pass
कुगती जोत (5171 मीटर)

40-45 मिनट जोत पर बिताकर हम 01:05 पर नीचे उतरना चाहते हैं लेकिन लाहौल की तरफ काफी ध्यान से देखने पर भी कोई रास्ता समझ नहीं आता । ज्यादा वक्त खराब ना करते हुए हम सीधा नीचे की तरफ उतरकर नीचे दिख रहे ग्लेशियर से लेफ्ट साइड से चलने का प्लान बनाते हैं । उतराई एकदम खड़ी दिख रही है, अब हम हाथ-पैर और पिछवाड़े का भरपूर इस्तेमाल करते हुए फिसल-फिसलकर उतर रहे हैं । लगभग एक घंटे के बाद हम ऐसी जगह पहुंच जाते हैं जिसे नर्क का रास्ता कहना ज्यादा सही होगा । यहाँ मौरेन में छिपी क्रिवास हैं, कुछ तो साफ़-साफ़ दिखाई भी दे रही हैं । नवीन कहता है “ऐसा अद्भुत दृश्य देखने का सौभाग्य पहली बार मिला है”, और मन-ही-मन सोचता हूँ “अगर वापस जाएँ तो शाम तक थेतिराम के पास पहुंच जायेंगे” । 

Chamba to lahaul trekChamba to lahaul trek
Chamba to lahaul trekChamba to lahaul trek
 

हमारे होश उड़ चुके हैं । मैं नवीन को बताता हूँ कि इनमें गये तो हमेशा के लिए गये ऊपर से यहाँ क्रिवास के ऊपर तो याद के तौर पर पत्थर भी नहीं लग पायेगा । नवीन थोड़ा भयभीत हो जाता है मेरी बातों से, होना भी चाहिए आखिर हमने भी माउंटेनियरिंग का कोर्स जो किया हुआ है । नवीन बोल रहा है लाहौल पहुंचना तो बहुत मुश्किल हो गया, जिसपर मेरा कहना है “मुश्किल तो नहीं कह सकते, लेकिन टफ जरुर होगा” ।

इस ट्रैक पर पहली बार मैं आगे चल रहा और सेब व्यापारी पीछे । इस भसड से निकलने में तकरीबन सवा एक घंटे का समय लग जाता हैं । हम कुड्डी गोठ (4330 मीटर) पहुंच गये हैं, यहाँ 2-3 लोग एक सराय बना रहे हैं । यहाँ मिली एक छोटी लड़की को हम अपना आखिरी पार्ले-जी बिस्कुट भी दे देते हैं । लोग स्थानीय हैं जिनसे सेब व्यापारी आगे का रास्ता पूछता है जबकि मैं जानना चाहता हूँ कि “क्या आलू-गोभी की सब्जी मिलेगी वहां? 

Lahaul alyash
आखिरी पार्ले-जी 

Sarai at alyash of lahaul
सराय बन रही या डंगे लगा रहे, कुछ समझ नहीं आया 

और एक घंटे के बाद हम लाहौल साइड के अल्यास पहुंच जाते हैं । यहाँ घास का मैदान हैं, 4080 मीटर की ऊँचाई पर छोटा सा मंदिर और पीने का पानी है । यहाँ रुककर हम बहते ठन्डे पानी में मुंह-हाथ धोते हैं और मंदिर में हाथ जोड़कर आखिरी धक्का देते खुद को । शाम होने लगी है ऊपर से रास्ते में ग्लेशियर आ गया है...इसे पार करके नदी पार की जा सकती है लेकिन ये बीच में से टूटा हुआ है । 

“हाँ थोड़ा दर्द हुआ पर चलता है” बोलकर हम यु-टर्न लेते हैं और नाले के राईट बैंक से 600-700 मीटर और ऊपर चढ़ते हैं । मेहनत कामयाब होती है और गाँव तक हमें ट्रेल मिल जाती हैं । एक नाला है जिसके साथ-साथ अच्छा बना रास्ता नीचे उतर रहा है, उसी को लेकर हम 14 सितम्बर 2015 की शाम 05:20 पर लाहौल घाटी में कदम रखते हैं । यहाँ का नजारा देखकर खुद-ब-खुद मुंह से निकलने लगा “एकदम से वक्त बदल गया, जज्बात बदल गये, जिंदगी बदल गयी” ।

alyash of lahaul

Open roof temple at alyash of lahaul
लाहौल के अल्यास पर स्थित मंदिर से नवीन की डायरेक्ट रिपोर्टिंग 

हम लाहौल में स्थित रापे गाँव (2890 मीटर) में उतरते हैं जहाँ से पैदल मुख्य रोड़ तक आते हैं, यहाँ स्थित एक नेपाली ढाबे में हमारे रुकने और खाने का प्रबंध हो जाता है । रात साढ़े नौ बजे आंटी हमारे लिए आलू-गोभी की सब्जी बनाती है, रोटी का पहला टुकड़ा तोड़कर मेरा बोलना है “अरे यार भावुक कर दिया” । आंटी हमारे चेहरे देखकर कुछ सोच रही है और हँस रही है । एक रोटी के चार टुकड़े मुंह में डाले-डाले मेरा सोचना है कि “क्या आंटी को हममे सर एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्वे तो नहीं दिख रहे? मैं तेनजिंग नोर्वे की तरफ देखता हूँ जो हँसते हुए डोरेमोन ज्यादा लग रहा है ।

Shanha village lahaul valley
वेलकम टू लाहौल 
Shansha village lahaul valley
रापे गाँव 
Kamal kund and manimahesh lake
कमल कुण्ड और मणिमहेश डल एक साथ 


manimahesh kailash
मणिमहेश कैलाश के चरणों से सीधा 

manimahesh kailash
मणिमहेश कैलाश

kuja glacier
कुजा ग्लेशियर  

jotnu jot / dhamghodi pass
जोतनु की खड़ी चढ़ाई 
jotnu jot / dhamghodi jot
जोगटा ऑन जोतनु जोत 


jotnu jot / dhamghodi jot
जोतनु से हनुमान शिला जाते हुए 

hanumanshila kugti
जोतनु से हनुमान शिला जाते हुए देखो क्या मिला 

hanuman shila kugti

nonauni camp site

view from nonauni camp site
नोनौनी से दिखाई देता दृश्य 

nonauni kugti
स्थानीय निवासी जोकि नोनौनी में छोटी दुकान लगाते हैं 

shepherd hut
गद्दी डेरा 

on the way to kartik swami temple
नोनौनी और कुगती गाँव के बीच में 

on the way to kugti village
नजारे हरकुछ थे 

on the way to kugti village

kugti village jotnu pass
वहीं सामने से चलकर यहाँ पहुंचे हैं 

kartik swami temple / kelang wazir temple
कार्तिक स्वामी मंदिर / केलंग वजीर 

on the way to kartik swami temple

kugti village
कुगती गाँव 

kugti village
कुगती गाँव 

river crossings

Kartik swami way
सामने कार्तिक स्वामी मंदिर

STD booth at kartik swami temple
कार्तिक स्वामी मंदिर पर एसटीडी भी है 

mata marali temple
माता मराली मंदिर पर रखें असंख्य त्रिशूल 

kartik swami temple / kelang wazir
कार्तिक स्वामी मंदिर / केलंग वजीर

lungar at kartik swami temple
कार्तिक स्वामी मंदिर पर स्थित लंगर 

manimahesh kailash view from kartik swami
एक फ्रेम में कार्तिक स्वामी मंदिर और मणिमहेश कैलाश 

towards kugti jot

view of Manimahesh kailash from Duggi goth
डुग्गी गोठ से दिखाई देता मणिमहेश पर्वत 

wallnut
आडू समझकर कच्चा अखरोट खा गये 

alyash kugti jot

duggi goth

alyash kugti pass
अल्यास और सामने दिखता कुगती जोत 

alyas kugti jot

camping on alyash kugti jot
अल्यास, कुगती जोत और अपना टेंट 

alyas kugti jot

kugti jot
कुगती जोत चढ़ते हुए 

kugti jot
ग्लेशियर के लेफ्ट से ही गये फिर 

Kugti jot
जोगटा जी के दाल-चावल बड़े तेज निकले 

kugti jot
हाई एलटी पर आलू-गोभी के सब्जी के बारें में सोचता एक इन्सेन

kugti jot
कुगती जोत पर 

Kugti pass
कुगती जोत पर स्थित माता मराली का मंदिर 

Kugti Jot
कुगती जोत पर स्थित माता मराली का मंदिर 

Alyash lahaul valley
लाहौल साइड से कुगती जोत का नजारा

Alyash lahaul valley
लाहौल साइड के अल्यास की ओर 

Lahaul valley alyash
लाहौल का अल्यास 

Alyash lahaul valley
इसी ग्लेशियर ने ऊपर चढ़ने पर मजबूर किया 
lahaul valley
ये रास्ते हैं लाहौल के 
Lahaul valley
चंद्रभागा पर बने जोबरंग रशेअल रापे ब्रिज को पार करके हम तांदी-किश्तवाड़ मार्ग पर पहुंच गये 


इस यात्रा का पहला भाग  (फरीदाबाद से मणिमहेश कैलाश) पढने के लिए यहाँ क्लिक करें

Comments

  1. रोहित जी आपके यात्रा संस्मरण बहुत बढ़िया और बहुत खुबसरत होते है काफी बड़ा ट्रैक था और आप दोनों ने लगातार अपनी स्पीड से इसे छोटा साबित कर दिया आप जैसे साहसी लोगो के साथ भगवान् भी साथ देते है आपना आशीर्वाद दे कर कच्चे अखरोट ने तो मुंह का स्वाद बहुत खराब कर दिया होगा ऐसा लग रहा था आप दोनों की जी तोड़ चढ़ाई के साथ हम भी आपके साथ चल रहे है और फाइनली कड़ी मेहनत का फल आलू गोबी की सब्जी लगे रहो बाबाजी अशोक ठाकुर

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    1. ठाकुर स़ाब स्वागत है । बस हिमालय उतार-चढाव का एक रोलर कोस्टर जैसा है जहाँ हर कदम पर एडवेंचर और परीक्षा के क्षण है ।

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  2. ऐसी बेहतरीन जानकारी साझा करने के लिए धन्यवाद। लेख में प्रत्येक और मूल्यवान जानकारी शामिल है और चित्र सुंदर हैं।

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    1. बड़े बड़े लोगों के कमेंट्स से अपुन को भी प्राउड फील होता है

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  3. Kya mujhe kisi guide ka contact no mil sakta hai.

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