12 जून 2014
पिछले पार्ट में आपने पढ़ा कि कैसे चार निब्बा टाइप साइकिलिस्ट तीन दिन साइकिल चलाकर पत्सेओ पहुंचते हैं मनाली से । इस भाग में लड़का लोग जान की बाजी लगाकर डेबरिंग पहुंचते हैं मनाली-लेह हाईवे के तीन पास क्रोस करके । लेखक प्योर हिंदीभाषी है जिसपर अन्य साइकिलिस्ट को जरा भी तरस नहीं आता, आइये जानते है असली खानाबदोशों और एड्वेंचर्र कैसे बना जाता है ।
पार्ट-01 पढने के लिए यहाँ क्लिक करें
Day 06 (09 जून 2014, पत्सेओ से जिंगजिंग-बार)
दुरी 12 किमी, साइकिल पर समय लगा 04 घंटे, एलेवेश्न गेन 429 मीटर, (पत्सेओ एलेवेश्न 3774 मीटर, जिंगजिंग-बार एलेवेश्न 4194 मीटर, खर्चा 337 रूपये)
सुबह पी एक कप चाय की सारी एनर्जी हम लोग अपने बिखरे हुए सामान को समेटने में खर्च कर देते हैं । पांचवा दिन है और बिना ब्रुश के मुंह से ऐसी बास आ रही है मानो बायो-वॉर शुरू होने वाला है ऊपर से जींस ने भीतर माहौल सागो-साग कर दिया है । 07:25 पर महापुरुष को गुडबाय बोलकर सभी युवा लोग आज बारालाचा-ला से पहले कहीं रुकने के बारें में विचार-विमर्श करते हैं, तीनों अंग्रेजी में बिना सांस लिए बोले जा रहे हैं वहीं मेरा सोचना है कि “दो दिन से आई नहीं है क्या आज आयेगी?” ।
साइकिल को साइकिल-रिक्शा बनाने में काफी समय लग जाता है, सबसे ज्यादा वक्त रकसैक को बाँधने में लगता है जिसमें इतना वजन है मानो दो बी.आर.ओ. के मजदूर भर रखे हों । पहले पैडल के बाद उतराई है फिर रोड़ समतल शुरू होता है । प्लान के मुताबिक हम नाश्ता जिंगजिंग-बार नामक स्थान पर करेंगे । पीछे कैरिएर पर दोनों मजदूर रकसैक की पोजीशन को टेड़ा कर देते हैं जिसे मैं निराश मन से दो लात मारके ठीक करता हूँ । जिंगजिंग-बार में बी.आर.ओ के टेंट और उनके लिए डेडिकेटेड छोटा सा पेट्रोल पंप हैं, यहाँ पूछने पर पता चलता है कि आगे जाकर कुछ टेंट हैं जहाँ खाने और रहने की व्यवस्था है ।
72 घंटे में 56 करोड़ फोटो खींचने के रिकॉर्ड को तोड़ने के चक्कर में हमारे एक छपरी निब्बा को उ से उल्टी हो जाती है, यहाँ हम एक लम्बा ब्रेक लेते हैं और धनुष को पहाड़ों का ब्रह्मास्त्र कहे जाने वाली दवा “डायमोक्स” देते हैं । उसका बेसुध चेहरा देखकर मैं खुश होता हूँ कि शायद अगले स्टेशन पर हम लोग लंगर डाल देंगे ।
11:30 हम जिंगजिंग-बार पहुंचते हैं, राजमा-चावल खाते-खाते एक बार फिर तीनों अंग्रेजी में बतिया रहे हैं जिसपर मैं यह बोलना चाहता हूँ कि “राक्षसों आज यहीं रुक जाओ” लेकिन अंग्रेजी में ऐसा डायलोग बोलना हाई-एलटी पर आत्महत्या करने जैसा होता । मेरे सिवा तीनों अब बोइल्ड-अण्डों का भोग लगाते हुए बोल रहे हैं कि आज यहीं रुकते हैं, मैं थोड़ा उदास होकर दिखाता हूँ कि “आज तो सरचू पहुंचने का टारगेट था लेकिन टीम पहले” ।
100 रूपये प्रति-व्यक्ति बिस्तर मिलने के बाद हम दो लोग ढाबे वाले के साथ ड्यूल करना चाहते हैं कि “अपुन को दूध मांगता है”, सस्ते टिकटोकियों भांति थर्ड क्लास एक्टिंग करके हमें दूध का पैकेट गालियों के साथ रिसीव होता है, जिसे उसी के गैस पर गर्म करके उसी के सामने पीते हैं । दोपहर को थोड़ी देर सोते हैं और शाम को पेट भर दाल-चावल ठूंसकर अपने-अपने स्लीपिंग बैग में बंद हो जाते हैं । पांचवा दिन समाप्त होता है जिसमें 04 घंटे में सिर्फ 12 किमी. साइकिल चलायी जाती है ।
Day 07 (10 जून 2014, जिंगजिंग-बार से सरचू)
दुरी 51 किमी, साइकिल पर समय लगा 08 घंटे, एलेवेश्न गेन 871 मीटर, (जिंगजिंग-बार एलेवेश्न 4194, सरचू एलेवेश्न 4294 मीटर, खर्चा 100 रूपये)
कल पूरी रात ठीक से नींद नहीं आ सकी कारण टूरिस्टों में रातभर अफरा-तफरी का माहौल था । सुबह उठकर पता चला कि कल रात को लैंड-स्लाइड हुआ था जिसे रात को ही सबकी प्रिय जेसीबी ने साफ़ कर दिया । छह बजे उठकर 08:30 निकलते हैं, यहाँ का बिल 377 रूपये रहा । मनाली-लेह हाईवे का दूसरा पास क्रोस करने के लिए निकल गये, कल रेस्ट करने से आज शरीर में ऊर्जा बनी हुई है साइकिल तो ठीक चल रही है मगर पिछवाड़े का तंदूरी चिकन बन गया है । यहाँ रोहतांग से भी ज्यादा बर्फ है सबकुछ सफ़ेद है ऊपर से सड़क पर ब्लैक-आइस जमी है । ठण्ड बहुत है और जींस से टकराती भागा नदी से आती हवाएं प्रत्येक अंग...आई रिपीट प्रत्येक अंग को शिथिल किये जा रही है, मुझे डर है कि वास्को-डी-गामा के साथ कोई अनहोनी न हो जाये ।
ऊँचाई और बर्फ तेजी से बढ़ रही है, घड़ी तापमान 02 डिग्री बता रही है, रास्ता समतल महसूस हो रहा है और प्रत्येक पैडल के साथ ढाई हजार हॉर्स-पॉवर लगानी पड रही है जिससे 50 हजार कैलोरी प्रति पैडल पर खर्च हो रही हो । बर्फ ही बर्फ को देखकर अपने को स्नोवाइट जैसे फील आ रही है और मुंह से ओस्कर प्राप्त सोंग “पक चिक पक राजा बाबू...चल गया कोई जादू” निकलता है, जोकि इस बात की सूचना देता है कि आप पर हाई-एलटी के कब्जे में आ चुके हो ।
अगले कुछ किलोमीटरों बाद हम सूरज ताल पर कांपती टांगों के साथ खड़े हैं जोकि पिछली झील से काफी बड़ा और पूरी तरह जमा हुआ है । इस झील को भागा नदी का उद्गम स्थान बताया जाता है, यहाँ की ऊँचाई 4950 मीटर है । इंटरनेशनल अख़बार ‘द पंजाब केसरी’ की माने तो इस झील को भारत की दूसरी हाईऐस्ट लेक होने का खिताब प्राप्त है और विश्व की 21वी, इन आंकड़ों की जांच पहले ही जासूस लोमड़ी द्वारा की जा चुकी है ।
सूरज ताल से बारालाचा-ला की दुरी 3 किमी. है जिसे दोपहर एक बजे क्रोस करते हैं । बारालाचा-ला की ऊँचाई 4850 मीटर है और यहाँ ऊँचाई से कहीं ज्यादा मात्रा में बर्फ है, पास कहाँ था चारों में से किसी को नहीं दिखा । बताते हैं यहाँ से एक रास्ता चंद्रताल के लिए भी जाता है जिसे हमने एक बार ट्राई किया था उस वक्त हम दो लोग चंद्रा नदी में बहते-बहते बचे थे । सूरज ताल पार करने के बाद कुछ टूटे शेड आते हैं जहाँ के भूतों का जिक्र ट्रक वालों के बीच बड़ा मशहूर हैं ।
अब डाउन हिल स्टार्ट हो गया जोकि पिछले जन्म से मेरा फेवरेट पार्ट है, सड़क पूरी तरह टूटी हुई है, यहाँ चाँद से भी गहरे गढ्ढे हैं जिनमें बड़ी आसानी से तीन-चार साइकिलिस्ट एक नैनो के साथ इसमें समा सकते हैं । पानी और कीचड़ ने उड़-उड़कर मुंह को दीपक कलाल टाइप बना दिया है फिर भी छपरी साइकिलिस्ट इतना तेज साइकिल भगा रहे हैं जैसे उन्हें ‘मोस्ट क्रिएटिव एक्टर’ का अवार्ड मिलने वाला हो । बिना मडगार्ड के 90% पानी और कीचड़ सीधा मुंह पर आ रहा है बाकी बचा 10% नीली जींस को काला बना रहा है ।
जिंगजिंग-बार में सुना था कि अगला स्टेशन भरतपुर होगा जहाँ खाने और रहने की व्यवस्था होगी लेकिन यहाँ तो बर्फ के अलावा कुछ भी नहीं है, यहीं एक छह हजार मीटर ऊँची पीक है, नाम माउंट युनम... जिसे कुछ-एक साल पहले समिट किया था । दोपहर ढाई बजे बिना रुके भरतपुर को क्रोस कर देते हैं । 03:20 पर किलिंग सराय पार करते हैं जहाँ बहुत तेज बहते नाले को क्रोस किया जाता है, इस जोखिमभरे कारनामे को अंजाम देने में भीगे जूते और जींस और भीग जाते हैं । कई किमी. खराब रास्ते पर चलने के बाद आखिरकार सड़क आती है जो सरचू तक कायम रहती है ।
साढ़े चार बजे सरचू (4290 मीटर) पहुंचते हैं, यह हिमाचल और कश्मीर का बॉर्डर है और यहीं कहीं है सरचू नाम से एक पीक भी जिसकी ऊँचाई 5000 मीटर से थोड़ी ज्यादा है । यहाँ दो स्थान पर एंट्री होती है एक हिमाचल के बॉर्डर पर और दुसरा कश्मीर के...तो हम कश्मीर वाले सरचू में है और ठेके के साथ ही टेंट लगाते हैं । मोटरबाइक वाले किंग-फिशर पीकर अजय माल्या को याद करते हैं ।
पिछले पांच दिनों में पहली बार रोटी नसीब होती है । यहाँ हवा इतनी तेज है कि टेंट उड़कर लेह जाना चाहता है । शाम को साइकिल को साफ़ करके ओइलिंग करते हुए सोचता हूँ कि आज आठ घंटे में 51 किमी. साइकिलिंग करके जांघों का जर्दा बन गया । सरचू नदी पार करके अगर कुछ दिन पैदल चले तो वंडरलस्ट ज़न्स्कर पहुंच सकते हैं ।
मनाली से लेह के बीच सबसे महंगे टेंट शायद सरचू में ही मिलते हैं, यहाँ स्विस टेंटों की बड़ी-बड़ी कलोनियाँ हैं जिन्हें तुरंत प्रभाव से बोस्टन टाइप कोई शहर घोषित कर देना चाहिए । प्रत्येक टेंट का किराया 1500 रूपये से शुरू होकर 3500 तक जाता है जिसमें दो वक्त का खाना भी शामिल होता है । इसलिए अगर इस हाईवे पर घुमने का मन है तो मनाली से या लेह से भरपूर कैश लेकर चलें नहीं तो चोग्ल्मसर के भोले लोग आपसे पूरा एक सीजन नदी के पानी से बर्तन धुलवायेंगे । हिमाचल वाले सरचू में एक आर्मी बेस कैंप है जहाँ पर्यटकों को आपातकालीन स्थिति में बेसिक मेडिकल सुविधा दी जाती है ।
Day 08 (11 जून 2014, सरचू से पांग)
दुरी 75 किमी, साइकिल पर समय लगा 10:45 घंटे, एलेवेश्न गेन 1281 मीटर, (सरचू एलेवेश्न 4294, पांग एलेवेश्न 4483 मीटर, खर्चा 70 रूपये)
नाश्ते में चाय के साथ पराठे लेते हैं । मेरे पास एकदम ब्रांड न्यू स्लीपिंग बैग है केंचुआ का ‘एस-0’ मॉडल, विदआउट मैट्रेस एक भी दिन ठण्ड नही लगी जबकि बाकी तीनों रोज ही ठण्ड की शिकायत करते । 08:45 पर पैडलिंग शुरू करते हैं, आज पहले पैडल से ही गाटा लूप का रोमांच बना हुआ है । गाटा लूप के बेस से 21 हेयर पिन बैंड को हमने 10:45 पर चढना शुरू किया । बेस तक रास्ता लगभग समतल ही मिला, सरचू नदी ने हमारा साथ दिया यहाँ तक पहुंचने में ।
सरचू से गाटा लूप बेस तक हम तीन स्पाइन ब्रिज को क्रोस करते हैं जिसमें ‘ट्विन-ट्विन ब्रिज’, ‘ब्रांडी ब्रिज’ और ‘व्हिस्की ब्रिज’ शामिल रहे । गाटा लूप बेस्ट से अगर सरचू नदी का पीछा किया जाये तो हेमिस नेशनल पार्क तक पहुंचा जा सकता है और फिर वहां से आगे लेह । गाटा लूप को स्थानीय जुग्त्था या जुगता कहते हैं जिसका मतलब अपुन को नहीं मालूम ।
गाटा लूप बेस की ऊँचाई 4201 मीटर है, मैं सबसे पीछे हूँ बाकी तीनों ठीक गति से चले हुए हैं, 21 लूप सोच-सोचकर मेरा बीपी बढ़ता जा रहा है । जिगजैग के बीच में जेसीबी और ट्रकों ने शार्टकट बना रखे हैं जिनमें से एक पर हम भी चल पड़ते हैं । योगेश और धनुष सकुशल आठवें मोड़ पर बने शॉर्टकट को पार कर जाते हैं जबकि सनोज की हेल्प धनुष कर देता है और बजरी पर मैं और साइकिल दोनों के पैर उखड़ रहे हैं । साइकिल के अगले टायर को उठते ही योगेश मुझे सरचू नदी में पहुंचने से बचा लेता है । बेशक हमने आठ और नौ लूप को एक साथ क्रोस किया है फिर भी तीनों एक साथ शपथ लेते हैं कि “आगे से नो शॉर्टकट” ।
इन 21 लूप्स के बीच एक ऐसा स्थान भी आता है जहाँ पर्यटकों ने बहुत सारी पानी की बोतल फैंक रखी हैं, इसे गाटा लूप का भूत कहा जाता है । माना जाता है कि एक बार यहाँ ट्रक के ड्राईवर और उसके हेल्पर की प्यास के कारण मृत्यु हो गयी थी तो उनकी याद में पानी की बोतल चढ़ाई जाती हैं ।
हम घिसड़ते-घिसड़ते गाटा लूप के टॉप पर दोपहर साढ़े बारह बजे पहुंचते हैं, जहाँ की ऊँचाई 4667 मीटर है । यहाँ बी.आर.ओ. के कुछ मजदूर काम कर रहे हैं, कुछ लेटे हैं और कुछ बस एकटक हमें देख रहे हैं, शायद पूछना चाहते हैं “कौन देस से आये हो?” । तेज हवाओं के बीच टॉप पर बैठकर ही हम सरचू से लायी रोटी खाते हैं आम के आचार के साथ । आज तो बुरे फंसे हैं, अब नकी-ला की चढाई शुरू हो चुकी है जिसने हमारी मानसिकता को तोड़ना शुरू कर दिया है, अबतक जींस टांगों से कर्ण के कवच की तरह चिपक गयी है । धीरे-धीरे पैडलिंग करते हुए मैं अपने दायीं तरफ बनी एक लम्बी पगडण्डी को देखता और सोचता हूँ वहाँ कौन जाता होगा ? ।
03:05 मिनट पर हम नकी-ला पर खड़े हैं, 4739 मीटर पर अनेकों पत्थरों की असंख्य ढेरियाँ हैं और रंग-बिरंगे प्रेयर फ्लैग्स लगे हैं । स्थानीय लोग नकी-ला को डोंगी चंद नाम से पुकारते हैं । ज्यादा समय न बिताते हुए हम जल्द ही डाउन हिल का मजा लेने लगते हैं, आगे जाकर धनुष शपथ तोड़कर शॉर्टकट ले लेता है जिसके पीछे योगेश और मैं जोश-जोश में चल पड़ते हैं जबकि सनोज समझदारी का परिचय देते हुए रोड़ से जाना ही तय करता है । यह बहुत रिस्की शॉर्टकट है, भारी सामान के साथ साइकिल को हैंडल करना मुश्किल हो रहा है तो मैं और योगेश उतरकर इस शॉर्टकट को पार करते हैं, वहीँ धनुष एक एक्सपर्ट की तरह इस शॉर्टकट को बिजली की गति से पार कर जाता है ।
03:35 पर हम व्हिस्की नाले के किसी ढाबे में बैठकर चाय पी रहे हैं, हमें आज यहीं रुकना है लेकिन तीनों अंग्रेजी में ऊंट-पटांग तरीके से मुझपर ‘लैंग्वेज-स्ट्राइक’ कर देते हैं, मैं निराश मन से अपनी सहमती दर्ज कराता हूँ । यहाँ से चढ़ाई शुरू हो जाती है जो सीधा हमें लाचूचुंग-ला तक ले जाएगी जोकि इस हाईवे का चौथा पास है । सरचू से व्हीस्की नाला तक हमने 53 किमी. साइकिलिंग करी । व्हिस्की नाले का स्थानीय नाम चाटंगगुरु है ।
04:20 पर शुरू करते हैं फिर से जिगजैग भरा रास्ता, यहाँ से पास की दुरी कुल 07 किमी. है, धीरे-धीरे ही सही लेकिन लगातार चलते हुए हम लाचूचुंग-ला शाम छह बजे पहुंचते हैं । 5065 मीटर पर बर्फ है और तेज हवा जींस में मच्छरदानी की भांति घुस रही है । हमारे नक्शे की माने तो अब पांग तक डाउन हिल है जिसकी दुरी यहाँ से 22 किमी. है ।
उतराई है लेकिन रास्ता बेहद खराब, उबड़-खाबड़ पर साइकिल हवा से बातें कर रही है । ढलते सूरज को देखते हुए हम तेजी से पांग पहुंचना चाहते हैं, यहाँ हम से तात्पर्य सिर्फ मुझसे है । इस पूरी यात्रा के दौरान यह पहली बार होता है जब मैं सबसे आगे हूँ । साइकिल ऐसे चल रही थी जैसे इसमें ब्रेक है ही नहीं कि तभी रास्ते में पड़े एक बड़े पत्थर पर अगला टायर जैसे ही चढ़ता है वैसे ही साइकिल और मैं पूरी तरह डगमगा जाते हैं, साइकिल खाई की तरफ जा रही है और मैं पेनिक मोड़ में, मरने से पहले अचानक ब्रेक लग जाते हैं । रुककर साँस लेता हूँ और साथियों का इंतजार करता हूँ । अँधेरे में हमने कुछ बेहद अजीब डिजाईन भी देखे जो शायद हवा और बर्फ के कटाव से बने होंगे ।
07:30 बजे हम पांग पहुंचते हैं, सरचू से पांग तक हमने 75 किमी. साइकिलिंग करी । यहाँ हवा तेज है और बहुत सारे इंसानों को देखकर अच्छा लगता है । हम पद्मा होम स्टे के साथ ही अपने टेंट गाड़ लेते हैं । जल्द ही डिनर करके लेट जाते हैं, बाद में बाथरूम के लिए बाहर जाकर एहसास होता है कि “हम चाँद पर हैं” और अकड़ी जींस को छूकर मामला डाउन टू अर्थ हो जाता है ।
Day 09 (12 जून 2014, पांग से डेबरिंग)
दुरी 43 किमी, साइकिल पर समय लगा 03:55 घंटे, एलेवेश्न गेन 398 मीटर, (पांग एलेवेश्न 4483, डेबरिंग एलेवेश्न 4636 मीटर, खर्चा 521 रूपये)
सुबह 7 बजे घड़ी दो डिग्री तापमान दिखा रही है, स्लीपिंग बैग में पड़े-पड़े ही ख्याल आ रहे हैं कि आज यहीं रुक जाते हैं लेकिन एक राक्षस जोकि कन्याकुमारी से साइकिल चलाकर यहाँ तक पहुंचा है इस जर्नी को जल्द-से-जल्द खत्म करना चाहता है । रोज सामान को साइकिल पर बांधने से हाथों में छाले पड़ गये हैं, जैसे ही निकलने के लिए तैयार होते हैं तभी बर्फ़बारी शुरू हो जाती है । अब तापमान गिर गया है और हवा बहुत तेज चलने लगी है, धनुष और सनोज की ये पहली मुलाकात है ताजी बर्फ़बारी के साथ । सुबह 11:20 पर जाकर बर्फ रूकती है, यहाँ से पांच किमी. की चढ़ाई है जिसके बाद बताया जा रहा है कि 40 किमी. तक रास्ता एकदम समतल है, रशिया की भावी राजधानी फरीदाबाद के माफिक ।
मौरे प्लेन्स को स्थानीय लोग क्यांगुथांग कहते हैं और ऐसा इसलिए क्योंकि यहाँ सदियों से क्यांग घास चरने आते रहे हैं ।
ये पहले पांच किमी. मटर छिल देते हैं, मौरे प्लेन्स के स्टार्ट पॉइंट पर पहुंचकर बेहद सुकून मिलता है कि अब प्लेन रास्ते का मजा लेंगे लेकिन कुछ किमी. चलने के बाद ही फिर से बर्फ़बारी शुरू हो जाती है । अब सबका सोचना है कि तेजी से साइकिल चलाकर डेबरिंग पहुंचते हैं, इस डायलाग के बाद योगेश और धनुष तेज होती बर्फ़बारी में इंविसिबल हो जाते हैं । मैंने और सनोज ने पूरी ताकत लगा रखी है उन्हें पकड़ने की लेकिन जितनी तेज साइकिल चलाते उतनी ही तेज बर्फ आँखों में घुसती । हवा के साथ बर्फ टेड़ी गिर रही है और साइकिल को सड़क के दुसरी तरफ फैंक रही है ।
रास्ता अच्छा है लेकिन खराब मौसम ने इसे भी मुश्किल बना दिया । योगेश और धनुष को पकड़ने के चक्कर में हम दोनों कुत्तों की तरह साइकिल चला रहे हैं लेकिन फिर भी हमें वो दोनों नहीं दिखाई देते । स्नोफ्लैक्स ने आँख और नाक दोनों में चक्के-जाम कर दिए हैं, मेरे हाथ ठण्ड से ऐसे हो गये हैं मानो बिच्छू ने काट लिया हो । अब तक बर्फ की वजह से ग्लब्स, जैकेट, जुराबें, जुतें और जींस के भीतर कच्छा पूरी तरह भीग चूका है ।
अब कहीं-कहीं टेंट दिखाई देने लगे हैं लेकिन अभी तक दोनों शूमाकरों की फरारी दिखाई नहीं दी, हम अब साइकिल के सबसे बड़े गियर में चल रहे हैं और अंतत दोनों की साइकिल हमें रोड़ के राईट साइड में पड़ी दिखाई देती हैं । हम दोनों भी अपनी साइकिलों को फैंककर सीधा टेंट में घुसते हैं । सनोज गुस्से में अपने मल्लू दोस्त को अंड-बंड बकता है वहीँ मैं टेंट में जलते गैस पर हाथ रख देता हूँ । टेंट वाली आंटी मुझपर गुस्सा करते हुए दूर से ही बोल रही है “तू...हाँ तू...वहीँ आके मारूंगी” ।
गर्म चाय पीकर हमारे ठन्डे शरीरों में ऊर्जा का संचार शुरू होता है । हम 03:15 बजे डेबरिंग पहुंचे हैं और आज 43 किमी. साइकिलिंग हुई । आज हमने टेंट नहीं लगाया बल्कि आंटी के टेंट में ही रुके, यहाँ हमें 100 रूपये प्रति-व्यक्ति बेड मिला । स्थानीय भाषा में डेबरिंग को समारोक्छिन कहा जाता है, सरचू से तांगलंग-ला तक का इलाका समारोक्छिन के भीतर ही माना जाता है, ये एक प्रकार की प्राचीन सीमा है जो स्थानियों ने निर्धारित करी थी ।
तीनों इतनी ऊँचाई पर भी हाई-फाई अंग्रेजी बोल रहे हैं, उनके अनुसार “यहाँ से पास की दुरी 24 किमी. है तो कल इस हाईवे का आखिरी पास तांगलंग-ला क्रोस करके ऊपशी रुकेंगे”, जिसपर मेरा सोचना है “नया पिछवाड़ा कितने का आता होगा?” ।
पिछले पार्ट में आपने पढ़ा कि कैसे चार निब्बा टाइप साइकिलिस्ट तीन दिन साइकिल चलाकर पत्सेओ पहुंचते हैं मनाली से । इस भाग में लड़का लोग जान की बाजी लगाकर डेबरिंग पहुंचते हैं मनाली-लेह हाईवे के तीन पास क्रोस करके । लेखक प्योर हिंदीभाषी है जिसपर अन्य साइकिलिस्ट को जरा भी तरस नहीं आता, आइये जानते है असली खानाबदोशों और एड्वेंचर्र कैसे बना जाता है ।
मनाली-लेह साइकिलिंग, बारालाच-ला, जून 2014 |
Day 06 (09 जून 2014, पत्सेओ से जिंगजिंग-बार)
दुरी 12 किमी, साइकिल पर समय लगा 04 घंटे, एलेवेश्न गेन 429 मीटर, (पत्सेओ एलेवेश्न 3774 मीटर, जिंगजिंग-बार एलेवेश्न 4194 मीटर, खर्चा 337 रूपये)
सुबह पी एक कप चाय की सारी एनर्जी हम लोग अपने बिखरे हुए सामान को समेटने में खर्च कर देते हैं । पांचवा दिन है और बिना ब्रुश के मुंह से ऐसी बास आ रही है मानो बायो-वॉर शुरू होने वाला है ऊपर से जींस ने भीतर माहौल सागो-साग कर दिया है । 07:25 पर महापुरुष को गुडबाय बोलकर सभी युवा लोग आज बारालाचा-ला से पहले कहीं रुकने के बारें में विचार-विमर्श करते हैं, तीनों अंग्रेजी में बिना सांस लिए बोले जा रहे हैं वहीं मेरा सोचना है कि “दो दिन से आई नहीं है क्या आज आयेगी?” ।
साइकिल को साइकिल-रिक्शा बनाने में काफी समय लग जाता है, सबसे ज्यादा वक्त रकसैक को बाँधने में लगता है जिसमें इतना वजन है मानो दो बी.आर.ओ. के मजदूर भर रखे हों । पहले पैडल के बाद उतराई है फिर रोड़ समतल शुरू होता है । प्लान के मुताबिक हम नाश्ता जिंगजिंग-बार नामक स्थान पर करेंगे । पीछे कैरिएर पर दोनों मजदूर रकसैक की पोजीशन को टेड़ा कर देते हैं जिसे मैं निराश मन से दो लात मारके ठीक करता हूँ । जिंगजिंग-बार में बी.आर.ओ के टेंट और उनके लिए डेडिकेटेड छोटा सा पेट्रोल पंप हैं, यहाँ पूछने पर पता चलता है कि आगे जाकर कुछ टेंट हैं जहाँ खाने और रहने की व्यवस्था है ।
जिंगजिंग-बार |
72 घंटे में 56 करोड़ फोटो खींचने के रिकॉर्ड को तोड़ने के चक्कर में हमारे एक छपरी निब्बा को उ से उल्टी हो जाती है, यहाँ हम एक लम्बा ब्रेक लेते हैं और धनुष को पहाड़ों का ब्रह्मास्त्र कहे जाने वाली दवा “डायमोक्स” देते हैं । उसका बेसुध चेहरा देखकर मैं खुश होता हूँ कि शायद अगले स्टेशन पर हम लोग लंगर डाल देंगे ।
न जाने क्या हो गया है लड़के को, नीला पड़ गया है |
11:30 हम जिंगजिंग-बार पहुंचते हैं, राजमा-चावल खाते-खाते एक बार फिर तीनों अंग्रेजी में बतिया रहे हैं जिसपर मैं यह बोलना चाहता हूँ कि “राक्षसों आज यहीं रुक जाओ” लेकिन अंग्रेजी में ऐसा डायलोग बोलना हाई-एलटी पर आत्महत्या करने जैसा होता । मेरे सिवा तीनों अब बोइल्ड-अण्डों का भोग लगाते हुए बोल रहे हैं कि आज यहीं रुकते हैं, मैं थोड़ा उदास होकर दिखाता हूँ कि “आज तो सरचू पहुंचने का टारगेट था लेकिन टीम पहले” ।
100 रूपये प्रति-व्यक्ति बिस्तर मिलने के बाद हम दो लोग ढाबे वाले के साथ ड्यूल करना चाहते हैं कि “अपुन को दूध मांगता है”, सस्ते टिकटोकियों भांति थर्ड क्लास एक्टिंग करके हमें दूध का पैकेट गालियों के साथ रिसीव होता है, जिसे उसी के गैस पर गर्म करके उसी के सामने पीते हैं । दोपहर को थोड़ी देर सोते हैं और शाम को पेट भर दाल-चावल ठूंसकर अपने-अपने स्लीपिंग बैग में बंद हो जाते हैं । पांचवा दिन समाप्त होता है जिसमें 04 घंटे में सिर्फ 12 किमी. साइकिल चलायी जाती है ।
इस फोटो में एक जापानी भी है, नहीं नहीं तेल नहीं बेच रहा है टूरिस्ट है सिर्फ |
Day 07 (10 जून 2014, जिंगजिंग-बार से सरचू)
दुरी 51 किमी, साइकिल पर समय लगा 08 घंटे, एलेवेश्न गेन 871 मीटर, (जिंगजिंग-बार एलेवेश्न 4194, सरचू एलेवेश्न 4294 मीटर, खर्चा 100 रूपये)
कल पूरी रात ठीक से नींद नहीं आ सकी कारण टूरिस्टों में रातभर अफरा-तफरी का माहौल था । सुबह उठकर पता चला कि कल रात को लैंड-स्लाइड हुआ था जिसे रात को ही सबकी प्रिय जेसीबी ने साफ़ कर दिया । छह बजे उठकर 08:30 निकलते हैं, यहाँ का बिल 377 रूपये रहा । मनाली-लेह हाईवे का दूसरा पास क्रोस करने के लिए निकल गये, कल रेस्ट करने से आज शरीर में ऊर्जा बनी हुई है साइकिल तो ठीक चल रही है मगर पिछवाड़े का तंदूरी चिकन बन गया है । यहाँ रोहतांग से भी ज्यादा बर्फ है सबकुछ सफ़ेद है ऊपर से सड़क पर ब्लैक-आइस जमी है । ठण्ड बहुत है और जींस से टकराती भागा नदी से आती हवाएं प्रत्येक अंग...आई रिपीट प्रत्येक अंग को शिथिल किये जा रही है, मुझे डर है कि वास्को-डी-गामा के साथ कोई अनहोनी न हो जाये ।
ऊँचाई और बर्फ तेजी से बढ़ रही है, घड़ी तापमान 02 डिग्री बता रही है, रास्ता समतल महसूस हो रहा है और प्रत्येक पैडल के साथ ढाई हजार हॉर्स-पॉवर लगानी पड रही है जिससे 50 हजार कैलोरी प्रति पैडल पर खर्च हो रही हो । बर्फ ही बर्फ को देखकर अपने को स्नोवाइट जैसे फील आ रही है और मुंह से ओस्कर प्राप्त सोंग “पक चिक पक राजा बाबू...चल गया कोई जादू” निकलता है, जोकि इस बात की सूचना देता है कि आप पर हाई-एलटी के कब्जे में आ चुके हो ।
बारालाच-ला की ओर |
अगले कुछ किलोमीटरों बाद हम सूरज ताल पर कांपती टांगों के साथ खड़े हैं जोकि पिछली झील से काफी बड़ा और पूरी तरह जमा हुआ है । इस झील को भागा नदी का उद्गम स्थान बताया जाता है, यहाँ की ऊँचाई 4950 मीटर है । इंटरनेशनल अख़बार ‘द पंजाब केसरी’ की माने तो इस झील को भारत की दूसरी हाईऐस्ट लेक होने का खिताब प्राप्त है और विश्व की 21वी, इन आंकड़ों की जांच पहले ही जासूस लोमड़ी द्वारा की जा चुकी है ।
मनाली-लेह हाईवे पर स्थित दुसरी झील जिसे सूरज ताल कहा जाता है |
सूरज ताल से बारालाचा-ला की दुरी 3 किमी. है जिसे दोपहर एक बजे क्रोस करते हैं । बारालाचा-ला की ऊँचाई 4850 मीटर है और यहाँ ऊँचाई से कहीं ज्यादा मात्रा में बर्फ है, पास कहाँ था चारों में से किसी को नहीं दिखा । बताते हैं यहाँ से एक रास्ता चंद्रताल के लिए भी जाता है जिसे हमने एक बार ट्राई किया था उस वक्त हम दो लोग चंद्रा नदी में बहते-बहते बचे थे । सूरज ताल पार करने के बाद कुछ टूटे शेड आते हैं जहाँ के भूतों का जिक्र ट्रक वालों के बीच बड़ा मशहूर हैं ।
अब डाउन हिल स्टार्ट हो गया जोकि पिछले जन्म से मेरा फेवरेट पार्ट है, सड़क पूरी तरह टूटी हुई है, यहाँ चाँद से भी गहरे गढ्ढे हैं जिनमें बड़ी आसानी से तीन-चार साइकिलिस्ट एक नैनो के साथ इसमें समा सकते हैं । पानी और कीचड़ ने उड़-उड़कर मुंह को दीपक कलाल टाइप बना दिया है फिर भी छपरी साइकिलिस्ट इतना तेज साइकिल भगा रहे हैं जैसे उन्हें ‘मोस्ट क्रिएटिव एक्टर’ का अवार्ड मिलने वाला हो । बिना मडगार्ड के 90% पानी और कीचड़ सीधा मुंह पर आ रहा है बाकी बचा 10% नीली जींस को काला बना रहा है ।
जवानी के जोश में होश खो चुके कुछ निब्बास |
जिंगजिंग-बार में सुना था कि अगला स्टेशन भरतपुर होगा जहाँ खाने और रहने की व्यवस्था होगी लेकिन यहाँ तो बर्फ के अलावा कुछ भी नहीं है, यहीं एक छह हजार मीटर ऊँची पीक है, नाम माउंट युनम... जिसे कुछ-एक साल पहले समिट किया था । दोपहर ढाई बजे बिना रुके भरतपुर को क्रोस कर देते हैं । 03:20 पर किलिंग सराय पार करते हैं जहाँ बहुत तेज बहते नाले को क्रोस किया जाता है, इस जोखिमभरे कारनामे को अंजाम देने में भीगे जूते और जींस और भीग जाते हैं । कई किमी. खराब रास्ते पर चलने के बाद आखिरकार सड़क आती है जो सरचू तक कायम रहती है ।
सामने कहीं भरतपुर है लेकिन कहाँ है ये बता पाना मुश्किल है |
साढ़े चार बजे सरचू (4290 मीटर) पहुंचते हैं, यह हिमाचल और कश्मीर का बॉर्डर है और यहीं कहीं है सरचू नाम से एक पीक भी जिसकी ऊँचाई 5000 मीटर से थोड़ी ज्यादा है । यहाँ दो स्थान पर एंट्री होती है एक हिमाचल के बॉर्डर पर और दुसरा कश्मीर के...तो हम कश्मीर वाले सरचू में है और ठेके के साथ ही टेंट लगाते हैं । मोटरबाइक वाले किंग-फिशर पीकर अजय माल्या को याद करते हैं ।
सरचू, शराब और सूर्यास्त |
पिछले पांच दिनों में पहली बार रोटी नसीब होती है । यहाँ हवा इतनी तेज है कि टेंट उड़कर लेह जाना चाहता है । शाम को साइकिल को साफ़ करके ओइलिंग करते हुए सोचता हूँ कि आज आठ घंटे में 51 किमी. साइकिलिंग करके जांघों का जर्दा बन गया । सरचू नदी पार करके अगर कुछ दिन पैदल चले तो वंडरलस्ट ज़न्स्कर पहुंच सकते हैं ।
मनाली से लेह के बीच सबसे महंगे टेंट शायद सरचू में ही मिलते हैं, यहाँ स्विस टेंटों की बड़ी-बड़ी कलोनियाँ हैं जिन्हें तुरंत प्रभाव से बोस्टन टाइप कोई शहर घोषित कर देना चाहिए । प्रत्येक टेंट का किराया 1500 रूपये से शुरू होकर 3500 तक जाता है जिसमें दो वक्त का खाना भी शामिल होता है । इसलिए अगर इस हाईवे पर घुमने का मन है तो मनाली से या लेह से भरपूर कैश लेकर चलें नहीं तो चोग्ल्मसर के भोले लोग आपसे पूरा एक सीजन नदी के पानी से बर्तन धुलवायेंगे । हिमाचल वाले सरचू में एक आर्मी बेस कैंप है जहाँ पर्यटकों को आपातकालीन स्थिति में बेसिक मेडिकल सुविधा दी जाती है ।
Day 08 (11 जून 2014, सरचू से पांग)
दुरी 75 किमी, साइकिल पर समय लगा 10:45 घंटे, एलेवेश्न गेन 1281 मीटर, (सरचू एलेवेश्न 4294, पांग एलेवेश्न 4483 मीटर, खर्चा 70 रूपये)
नाश्ते में चाय के साथ पराठे लेते हैं । मेरे पास एकदम ब्रांड न्यू स्लीपिंग बैग है केंचुआ का ‘एस-0’ मॉडल, विदआउट मैट्रेस एक भी दिन ठण्ड नही लगी जबकि बाकी तीनों रोज ही ठण्ड की शिकायत करते । 08:45 पर पैडलिंग शुरू करते हैं, आज पहले पैडल से ही गाटा लूप का रोमांच बना हुआ है । गाटा लूप के बेस से 21 हेयर पिन बैंड को हमने 10:45 पर चढना शुरू किया । बेस तक रास्ता लगभग समतल ही मिला, सरचू नदी ने हमारा साथ दिया यहाँ तक पहुंचने में ।
गाटा लूप का बेस |
सरचू से गाटा लूप बेस तक हम तीन स्पाइन ब्रिज को क्रोस करते हैं जिसमें ‘ट्विन-ट्विन ब्रिज’, ‘ब्रांडी ब्रिज’ और ‘व्हिस्की ब्रिज’ शामिल रहे । गाटा लूप बेस्ट से अगर सरचू नदी का पीछा किया जाये तो हेमिस नेशनल पार्क तक पहुंचा जा सकता है और फिर वहां से आगे लेह । गाटा लूप को स्थानीय जुग्त्था या जुगता कहते हैं जिसका मतलब अपुन को नहीं मालूम ।
गाटा लूप बेस की ऊँचाई 4201 मीटर है, मैं सबसे पीछे हूँ बाकी तीनों ठीक गति से चले हुए हैं, 21 लूप सोच-सोचकर मेरा बीपी बढ़ता जा रहा है । जिगजैग के बीच में जेसीबी और ट्रकों ने शार्टकट बना रखे हैं जिनमें से एक पर हम भी चल पड़ते हैं । योगेश और धनुष सकुशल आठवें मोड़ पर बने शॉर्टकट को पार कर जाते हैं जबकि सनोज की हेल्प धनुष कर देता है और बजरी पर मैं और साइकिल दोनों के पैर उखड़ रहे हैं । साइकिल के अगले टायर को उठते ही योगेश मुझे सरचू नदी में पहुंचने से बचा लेता है । बेशक हमने आठ और नौ लूप को एक साथ क्रोस किया है फिर भी तीनों एक साथ शपथ लेते हैं कि “आगे से नो शॉर्टकट” ।
शार्ट कट |
इन 21 लूप्स के बीच एक ऐसा स्थान भी आता है जहाँ पर्यटकों ने बहुत सारी पानी की बोतल फैंक रखी हैं, इसे गाटा लूप का भूत कहा जाता है । माना जाता है कि एक बार यहाँ ट्रक के ड्राईवर और उसके हेल्पर की प्यास के कारण मृत्यु हो गयी थी तो उनकी याद में पानी की बोतल चढ़ाई जाती हैं ।
गाटा लूप का भूत |
हम घिसड़ते-घिसड़ते गाटा लूप के टॉप पर दोपहर साढ़े बारह बजे पहुंचते हैं, जहाँ की ऊँचाई 4667 मीटर है । यहाँ बी.आर.ओ. के कुछ मजदूर काम कर रहे हैं, कुछ लेटे हैं और कुछ बस एकटक हमें देख रहे हैं, शायद पूछना चाहते हैं “कौन देस से आये हो?” । तेज हवाओं के बीच टॉप पर बैठकर ही हम सरचू से लायी रोटी खाते हैं आम के आचार के साथ । आज तो बुरे फंसे हैं, अब नकी-ला की चढाई शुरू हो चुकी है जिसने हमारी मानसिकता को तोड़ना शुरू कर दिया है, अबतक जींस टांगों से कर्ण के कवच की तरह चिपक गयी है । धीरे-धीरे पैडलिंग करते हुए मैं अपने दायीं तरफ बनी एक लम्बी पगडण्डी को देखता और सोचता हूँ वहाँ कौन जाता होगा ? ।
नकी-ला की ओर |
03:05 मिनट पर हम नकी-ला पर खड़े हैं, 4739 मीटर पर अनेकों पत्थरों की असंख्य ढेरियाँ हैं और रंग-बिरंगे प्रेयर फ्लैग्स लगे हैं । स्थानीय लोग नकी-ला को डोंगी चंद नाम से पुकारते हैं । ज्यादा समय न बिताते हुए हम जल्द ही डाउन हिल का मजा लेने लगते हैं, आगे जाकर धनुष शपथ तोड़कर शॉर्टकट ले लेता है जिसके पीछे योगेश और मैं जोश-जोश में चल पड़ते हैं जबकि सनोज समझदारी का परिचय देते हुए रोड़ से जाना ही तय करता है । यह बहुत रिस्की शॉर्टकट है, भारी सामान के साथ साइकिल को हैंडल करना मुश्किल हो रहा है तो मैं और योगेश उतरकर इस शॉर्टकट को पार करते हैं, वहीँ धनुष एक एक्सपर्ट की तरह इस शॉर्टकट को बिजली की गति से पार कर जाता है ।
नकी-ला |
03:35 पर हम व्हिस्की नाले के किसी ढाबे में बैठकर चाय पी रहे हैं, हमें आज यहीं रुकना है लेकिन तीनों अंग्रेजी में ऊंट-पटांग तरीके से मुझपर ‘लैंग्वेज-स्ट्राइक’ कर देते हैं, मैं निराश मन से अपनी सहमती दर्ज कराता हूँ । यहाँ से चढ़ाई शुरू हो जाती है जो सीधा हमें लाचूचुंग-ला तक ले जाएगी जोकि इस हाईवे का चौथा पास है । सरचू से व्हीस्की नाला तक हमने 53 किमी. साइकिलिंग करी । व्हिस्की नाले का स्थानीय नाम चाटंगगुरु है ।
व्हिस्की नाला और साइकिल के सैडल पर दिखता लाचूलुंग-ला |
04:20 पर शुरू करते हैं फिर से जिगजैग भरा रास्ता, यहाँ से पास की दुरी कुल 07 किमी. है, धीरे-धीरे ही सही लेकिन लगातार चलते हुए हम लाचूचुंग-ला शाम छह बजे पहुंचते हैं । 5065 मीटर पर बर्फ है और तेज हवा जींस में मच्छरदानी की भांति घुस रही है । हमारे नक्शे की माने तो अब पांग तक डाउन हिल है जिसकी दुरी यहाँ से 22 किमी. है ।
मनाली-लेह हाईवे का चौथा पास, लाचूलुंग-ला |
उतराई है लेकिन रास्ता बेहद खराब, उबड़-खाबड़ पर साइकिल हवा से बातें कर रही है । ढलते सूरज को देखते हुए हम तेजी से पांग पहुंचना चाहते हैं, यहाँ हम से तात्पर्य सिर्फ मुझसे है । इस पूरी यात्रा के दौरान यह पहली बार होता है जब मैं सबसे आगे हूँ । साइकिल ऐसे चल रही थी जैसे इसमें ब्रेक है ही नहीं कि तभी रास्ते में पड़े एक बड़े पत्थर पर अगला टायर जैसे ही चढ़ता है वैसे ही साइकिल और मैं पूरी तरह डगमगा जाते हैं, साइकिल खाई की तरफ जा रही है और मैं पेनिक मोड़ में, मरने से पहले अचानक ब्रेक लग जाते हैं । रुककर साँस लेता हूँ और साथियों का इंतजार करता हूँ । अँधेरे में हमने कुछ बेहद अजीब डिजाईन भी देखे जो शायद हवा और बर्फ के कटाव से बने होंगे ।
जब मून लैंड से मून दिखाई दिया |
07:30 बजे हम पांग पहुंचते हैं, सरचू से पांग तक हमने 75 किमी. साइकिलिंग करी । यहाँ हवा तेज है और बहुत सारे इंसानों को देखकर अच्छा लगता है । हम पद्मा होम स्टे के साथ ही अपने टेंट गाड़ लेते हैं । जल्द ही डिनर करके लेट जाते हैं, बाद में बाथरूम के लिए बाहर जाकर एहसास होता है कि “हम चाँद पर हैं” और अकड़ी जींस को छूकर मामला डाउन टू अर्थ हो जाता है ।
पद्मा रेस्टोरेंट, पांग |
Day 09 (12 जून 2014, पांग से डेबरिंग)
दुरी 43 किमी, साइकिल पर समय लगा 03:55 घंटे, एलेवेश्न गेन 398 मीटर, (पांग एलेवेश्न 4483, डेबरिंग एलेवेश्न 4636 मीटर, खर्चा 521 रूपये)
सुबह 7 बजे घड़ी दो डिग्री तापमान दिखा रही है, स्लीपिंग बैग में पड़े-पड़े ही ख्याल आ रहे हैं कि आज यहीं रुक जाते हैं लेकिन एक राक्षस जोकि कन्याकुमारी से साइकिल चलाकर यहाँ तक पहुंचा है इस जर्नी को जल्द-से-जल्द खत्म करना चाहता है । रोज सामान को साइकिल पर बांधने से हाथों में छाले पड़ गये हैं, जैसे ही निकलने के लिए तैयार होते हैं तभी बर्फ़बारी शुरू हो जाती है । अब तापमान गिर गया है और हवा बहुत तेज चलने लगी है, धनुष और सनोज की ये पहली मुलाकात है ताजी बर्फ़बारी के साथ । सुबह 11:20 पर जाकर बर्फ रूकती है, यहाँ से पांच किमी. की चढ़ाई है जिसके बाद बताया जा रहा है कि 40 किमी. तक रास्ता एकदम समतल है, रशिया की भावी राजधानी फरीदाबाद के माफिक ।
धनुष जीवन की पहली बर्फ़बारी में शर्माता हुआ |
मौरे प्लेन्स को स्थानीय लोग क्यांगुथांग कहते हैं और ऐसा इसलिए क्योंकि यहाँ सदियों से क्यांग घास चरने आते रहे हैं ।
ये पहले पांच किमी. मटर छिल देते हैं, मौरे प्लेन्स के स्टार्ट पॉइंट पर पहुंचकर बेहद सुकून मिलता है कि अब प्लेन रास्ते का मजा लेंगे लेकिन कुछ किमी. चलने के बाद ही फिर से बर्फ़बारी शुरू हो जाती है । अब सबका सोचना है कि तेजी से साइकिल चलाकर डेबरिंग पहुंचते हैं, इस डायलाग के बाद योगेश और धनुष तेज होती बर्फ़बारी में इंविसिबल हो जाते हैं । मैंने और सनोज ने पूरी ताकत लगा रखी है उन्हें पकड़ने की लेकिन जितनी तेज साइकिल चलाते उतनी ही तेज बर्फ आँखों में घुसती । हवा के साथ बर्फ टेड़ी गिर रही है और साइकिल को सड़क के दुसरी तरफ फैंक रही है ।
मौरे प्लेन्स का बेस |
रास्ता अच्छा है लेकिन खराब मौसम ने इसे भी मुश्किल बना दिया । योगेश और धनुष को पकड़ने के चक्कर में हम दोनों कुत्तों की तरह साइकिल चला रहे हैं लेकिन फिर भी हमें वो दोनों नहीं दिखाई देते । स्नोफ्लैक्स ने आँख और नाक दोनों में चक्के-जाम कर दिए हैं, मेरे हाथ ठण्ड से ऐसे हो गये हैं मानो बिच्छू ने काट लिया हो । अब तक बर्फ की वजह से ग्लब्स, जैकेट, जुराबें, जुतें और जींस के भीतर कच्छा पूरी तरह भीग चूका है ।
आंधी हो या तूफ़ान हम फोटो खिंचाना न भूलते |
अब कहीं-कहीं टेंट दिखाई देने लगे हैं लेकिन अभी तक दोनों शूमाकरों की फरारी दिखाई नहीं दी, हम अब साइकिल के सबसे बड़े गियर में चल रहे हैं और अंतत दोनों की साइकिल हमें रोड़ के राईट साइड में पड़ी दिखाई देती हैं । हम दोनों भी अपनी साइकिलों को फैंककर सीधा टेंट में घुसते हैं । सनोज गुस्से में अपने मल्लू दोस्त को अंड-बंड बकता है वहीँ मैं टेंट में जलते गैस पर हाथ रख देता हूँ । टेंट वाली आंटी मुझपर गुस्सा करते हुए दूर से ही बोल रही है “तू...हाँ तू...वहीँ आके मारूंगी” ।
अंटी गुस्से में मुंह पिचकाती हुई |
गर्म चाय पीकर हमारे ठन्डे शरीरों में ऊर्जा का संचार शुरू होता है । हम 03:15 बजे डेबरिंग पहुंचे हैं और आज 43 किमी. साइकिलिंग हुई । आज हमने टेंट नहीं लगाया बल्कि आंटी के टेंट में ही रुके, यहाँ हमें 100 रूपये प्रति-व्यक्ति बेड मिला । स्थानीय भाषा में डेबरिंग को समारोक्छिन कहा जाता है, सरचू से तांगलंग-ला तक का इलाका समारोक्छिन के भीतर ही माना जाता है, ये एक प्रकार की प्राचीन सीमा है जो स्थानियों ने निर्धारित करी थी ।
तीनों इतनी ऊँचाई पर भी हाई-फाई अंग्रेजी बोल रहे हैं, उनके अनुसार “यहाँ से पास की दुरी 24 किमी. है तो कल इस हाईवे का आखिरी पास तांगलंग-ला क्रोस करके ऊपशी रुकेंगे”, जिसपर मेरा सोचना है “नया पिछवाड़ा कितने का आता होगा?” ।
सात दिन की सारी जानकारी |
वाईल ही वाज प्युकिंग वी वर ईटिंग ऑरेंज बाईट |
जिंगजिंग-बार की ओर |
जितने पहाड़ विशाल हैं उतने ही हम तुच्छ |
जिंगजिंग-बार स्थित ढाबे के मालिक |
ये बुलडोजर आज भी यहीं खड़ा है, एक बार हमने इसके पास टेंट लगाकर रात बितायी थी |
सूरज ताल से थोड़ा पहले बर्फ के आगोश में |
इतना बर्फ देखे हो कभी? |
पीछे दिखाई देता माउंट युनम पीक की बैकसाइड |
और सड़क शुरू हुई |
ये सरचू नदी के पठार हैं |
ड ग्रैंड केन्यन ऑफ़ मनाली-लेह हाईवे |
क्या ये ब्रिज बन गया है अब ? |
ठेके के साथ हमारा टेंट |
ट्विन ट्विन ब्रिज |
ब्रांडी ब्रिज |
व्हिस्की ब्रिज |
गाटा लूप |
अगेन गाटा लूप |
गाटा लूप टॉप पॉइंट |
नकी-ला की ओर |
शार्ट कट ने लेने की शपथ लेने के बाद |
दूर दिखती प्राचीन पगडंडी |
लाचूलुंग-ला चढ़ते हुए |
आगे लाचूलुंग-ला और पीछे व्हिस्की नाला |
मून लैंड में आपका स्वागत है |
पद्मा रेस्तौरेंट के सामने |
नीचे दिखता पांग |
मौरे प्लेन्स बेस की ओर बढ़ते हुए |
मौरे प्लेन्स बेस |
मौरे प्लेन्स |
टेडी बर्फ़बारी और तूफ़ान का निशाना बना एक नवयुवक |
सनोज का अपना अलग ही चल रहा था |
डेबरिंग में दिखाई दिए सैंकड़ों याक |
उम्दा 🙏❤️
ReplyDeleteधन्यवाद जी
Delete