05 जून 2014
कई महीने लगातार यह सोचकर खुद को तैयार किया कि “तू फ्री सोल है कुछ भी कर सकता है बावा” । खुद का ही माइंडवाश करने के बाद मैं साइकिल खरीदता हूँ और ‘मुसाफिर हूँ यारों ना घर है ना ठिकाना’ बोलकर मनाली-लेह हाईवे पर साइकिलिंग के लिए निकलता हूँ वो भी एकदम सोलो । लेह तक पहुंचने में मानो कई जन्मों का समय लगा और बीच में आयी अनेकों मुसीबतों का लेखक ने बड़े घटिया तरीके से विवरण दिया है ।
मनाली से लेह हाईवे एक्सट्रीम चुनौतियों से भरा है, यह महान हाईवे आपको 5 उच्च शिखरिय माउंटेन पास तक ले जाता है जिसमें आप 5319 मीटर ऊँचाई तक पहुंचने के गवाह बनते हो । अच्छी फिटनेस के साथ साइकिलिस्ट लगभग 7-8 दिन में 469 किमी. की विशाल दुरी तय करके लेह तक पहुंचते हैं । हर साइकिलिस्ट की तरह अगर आपका भी सपना है इस अलौकिक हाईवे पर साइकिल चलाने का और अगर आपमें अभी भी एक एडवेंचर्र जिन्दा है तो आपको मनाली-लेह हाईवे पर साइकिलिंग एक्सपीडिशन अवश्य करना चाहिए, यह खूबसुरत हाईवे आपको विश्व-भ्रमण का अनुभव कराएगा और यह यात्रा आपको जीवनभर याद रहेगी ।
Day 01 (04 जून 2014, फरीदाबाद से मनाली)
दुरी 571 किमी., एच.आर.टी.सी. से समय लगा 18 घंटे, खर्चा 1515 रूपये
कई महीनों से चलती तैयारियां ने ऐसा माहौल बना दिया मानो मैं अपनी दो लड़कियों की शादी एक साथ करने जा रहा हूँ । अब तो बस रास्ता खुलने का इंतजार था, तो सुनने में आया कि “03 जून को कुछ गाड़ियों ने रोहतांग दर्रा क्रोस किया है” । महान घुमक्कड़ नीरज जाट से प्रेरणा लेकर मैं अगले ही दिन हड़बड़ी में कश्मीरी गेट पहुंचता हूँ साइकिल और सामान के साथ । कश्मीरी गेट तक ऑटो वाले ने 350 रूपये चार्ज किये, यहाँ मैं सुबह 10:45 पहुंचा । सामान चेक करवाकर साइकिल की भी आई.एस.बी.टी. में एंट्री करा ली । 640 रूपये का दिल्ली से मनाली आर्डिनरी बस का टिकट लेकर साइकिल को बस की छत्त पर बांध देता हूँ जिसका 315 रूपये किराया अलग से देना पड़ा, एच.आर.टी.सी. पौने 12 बजे चल पड़ी । इतना पैसा खर्च करने के बाद ऐसा लगा मानो लड़कियां विदा हुईं ।
डिस्क्लेमर: अगर आपकी टांगों में पीतल भरा हो और पिछवाडा लोहे से बना हो तभी सिर पे कफन बांधकर इस हाईवे पर साइकिलिंग के लिए निकलना ।
एयरटेल पोस्टपेड के 100 लोकल मिनट के बदले 40 मिनट एसटीडी आउटगोइंग के ले लिए हैं और 3जी 135एमबी डाटा के बदले और अतिरिक्त 40 मिनट एसटीडी आउटगोइंग के ट्रान्सफर करवा लिए हैं एयरटेल अकाउंट में । अब अपने पास टोटल 80 मिनट हैं अदर स्टेट से कॉल करने के लिए, उस वक्त अपने लिए मोबाइल डाटा मतलब एचडी डेक्सटॉप वालपेपर था ।
पानीपत के आसपास लंच होता है, फिर गाड़ी चंडीगढ़ रुकी जहाँ मैं एक कोका-कोला की बोतल लेता हूँ । बस रात में अनेकों बार रुकी शायद ड्राईवर को नींद लगी थी । सड़कें घुमने लगी साथ में खोपड़ी भी, बस में बैठी कुछ सवारियों ने यत्र-तत्र उल्टी फैंकना शुरू कर दिया, अबतक आँख खुल चुकी है और बाहर झांकते ही बोर्ड दिखता है जिसपर हिंदी में लिखा है “देवभूमि हिमाचल प्रदेश में आपका स्वागत है” ।
Day 02 (05 जून 2014, मनाली से मढ़ी)
दुरी 34 किमी., एलेवेश्न गेन 1517 मीटर, साइकिल से समय लगा 12 घंटे (मनाली एलेवेश्न: 1904 मी., मढ़ी एलेवेश्न: 3328 मी., खर्चा 175 रूपये)
मनाली-लेह हाईवे विश्वभर में इतना फेमस है जितना नार्थ कोरिया में किम जोंग । मनाली से लेह की दुरी लगभग 469 किमी. है जिसमें तकरीबन 8260 मीटर का टोटल एलिवेशन गेन होता है । इस हाईवे की सुन्दरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसपर 05 मोटरेबल माउंटेन पास और 02 झीलें इसकी सुन्दरता में चार-चाँद लगाती हैं ।
17 घंटे की आरामदायक लॉन्ग जर्नी के बाद कानों में “शिलाजीत लेलो, केसर लेलो, होटल, रूम, रोहतांग, टैक्सी, चलो कसोल” पड़ते ही मुझे समझ आ गया कि मनाली पहुंच गये । रशिया की भावी राजधानी फरीदाबाद की चिलचिलाती गर्मी के बाद एकदम 12 डिग्री में उतरते ही नथुनों से पानी रिसना शुरू हो गया । अब तक बगल में पड़ी जैकेट बॉडी पर आ चुकी है । साइकिल को बस की छत्त से अकेले उतारने में हमने ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया । मैं घर से जींस में चला था और प्लान के मुताबिक जींस को अब तक टागों से उतर जाना चाहिए था ।
अब नजारा कुछ यूँ है कि “चाय की रेहड़ी पर मैं गर्मागर्म चाय के साथ फैन खा रहा हूँ वहीँ साथ ही अपनी साइकिल खड़ी है जिसके साथ 45 लीटर का खचाखच भरा रकसैक, एक टू-मैन टेंट, स्लीपिंग बैग और कैमरा बैग सड़क पर ही पड़ा है” । सारे सामान को देखकर चायवाले का पूछना है बाकी लोग कहाँ हैं? । जिसपर अपुन के भीतर ठंड से कांपते मित्थुन का कहना है कि “इतने सामान के लिए तो मैं अकेला ही काफी हूँ” ।
80 मिनट सिर्फ यही फिगर आउट करने में खर्च हो गए कि इतने सामान को साइकिल पर बांधू या एक खच्चर किराये पर उठा लूं । 45 लीटर के बैग जिसमें 60 लीटर जितना सामान भरा था को साइकिल के कैरियर पर बांधता हूँ, हैंडल पर टेंट को, स्लीपिंग बैग को रकसैक के ऊपर और कैमरा बैग को गले में टांगकर मुझे दिहाड़ी पे जाते रिक्शे वाले की फिलिंग आती है । जितना सामान साइकिल पर है उससे ज्यादा भार मेरे दिमाग में है इस ट्रिप को लेकर, हजारों सवालों को ब्यास में बहाकर आखिकार सुबह 06 बजे मनाली से पैडलिंग शुरू करता हूँ ।
सामने सूरज की पहली किरणों से हनुमान टिब्बा, शितिधार, मुकर बह आदि पीकों का स्वागत किया, इन चोटियों के समूह में एक मैंने एक पीक को समिट भी किया है जिसका नाम फ्रेंडशिप पीक है । वशिष्ट हॉट स्प्रिंग के रास्ते को देखते हुए आगे बढ़ता हूँ और ‘रोहतांग टनल वेलकम यू बोर्ड’ को निहारता हूँ ।
भांग तक पहुंचते-पहुंचते लेह पहुंचने के सपने में क्रैक आ चुका है । साइकिल चलाने से ज्यादा मैं पैदल चल रहा हूँ, समझ नहीं आ रहा है कि क्यूँ मैंने खुदको इस मुसीबत में फंसाया । अभी तक मैंने साइकिल सिर्फ मैदानी इलाकों में ही चलायी है पहाड़ों में यह पहली बार है और मैं दावे से कह सकता हूँ कि पहाड़ों में साइकिल चलाने के लिए लोहे का पिछवाडा चाहिए ।
पल्चान पहुंचकर मैं एक ढाबे के बेंच पर बेहोश हो जाता हूँ, लेटते ही मुझे सपना आता है “मैं दिल्ली में हूँ और साइकिल खरीदने गया हूँ, वहां एक सुंदर लड़की भी आई हुई है खुद के लिए साइकिल खरीदने । मैं कभी अपनी साइकिल को तो कभी उसे देख रहा हूँ, दुकान का मालिक पता नहीं क्यूँ चिल्ला रहा है? । उसकी चीख धीरे-धीरे तेज होती जा रही है, सर आप ठीक हैं?, सर आप ठीक हैं?”, अचानक मेरी आँख खुलती है ढाबे का लाहौली मालिक मशीनी तरीके से जोर-जोर से चिल्ला रहा है “सर आप ठीक हैं?, सर आप ठीक हैं?” । मैं उसे कहना चाहता हूँ कि मेरी साइकिल को खाई में फैंक दो लेकिन “एक मैगी और एक चाय बना दो प्लीज” बोलकर मैं रोहतांग की तरफ जाते रास्ते को देखता हूँ ।
बेहोशी की हालत में साइकिल चल रही है, अबतक मैंने फैसला कर लिया है कि आज गुलाबा रुकुंगा और धीरे-धीरे मंजिल की तरफ बढूँगा चाहे लेह अगले जन्म में ही पहुंचू । गुलाबा से पहले गियर का तार एकदम लूज हो जाता है...मतलब टेक्निकल फाल्ट, अब मैं वापस जाने के बारे में सोच रहा हूँ कि तभी मुझे दो साइकिलिस्ट दिखाई देते हैं । वो मेरे पास आकर अंग्रेजी में कुछ बोलते हैं, मैं लगभग बेहोशी में उन्हें बताता हूँ कि “साइकिल खराब हो गयी है, गियर के तार में कुछ प्रॉब्लम हो गयी है” ।
उनमें से एक फटाफट अपने बैग से प्लायर निकालता जिसे हम आमतौर पर पिलास हैं और गियर के तार को ठीक करना शुरू कर देता है, जबकि दूसरा मुझसे बात करते हुए बार-बार रोहतांग रोहतांग बोल रहा है अंग्रेजी में । उसकी अंग्रेजी सुनकर मेरा दिल बैठा जा रहा है कि ये लोग आज ही रोहतांग जायेंगे या उससे भी आगे ।
साइकिल ठीक हो चुकी है हम तीनों एक साथ चल पड़े हैं, साँसे फूल रही हैं फिर भी बातें चल रही हैं और साइकिल भी । सारी अंग्रेजी दाव पर लगाने के बाद समझ आता है कि दोनों आज मढ़ी रुकेंगे, एक का नाम धनुष है और दूसरे का सनोज है, दोनों ही दिल्ली आई.आई.टी. में पढ़ने वाले हैं । हम जल्दी ही गुलाबा चेकपोस्ट क्रोस करते हैं अब मैं भी इनके साथ मढ़ी रुकने का सोचते हुए ये भी सोच रहा हूँ कि “क्या इनके पिछवाडों में भी दर्द हो रहा होगा?” ।
शाम छह बजे हम मढ़ी पहुंचते हैं, मेरी कमर टूट गयी है और पिछवाडा भुन गया है । रास्ते में धनुष की साइकिल दो पर पंचर होती है, दोनों बार वो नई ट्यूब डालता है । हम एक ठीक सी जगह ढूंढकर टेंट लगाते हैं, मैं अपने टेंट में घुसकर पेट के बल लेट जाता हूँ और जोर से चिल्लाता हूँ “मुझे घर जाना है” ।
हम तीनों शाम सात बजे डिनर करने जाते हैं, खाते-खाते पता चलता है कि इनका एक दोस्त कन्याकुमारी से कश्मीर साइकिलिंग कर रहा है और वो कल यहाँ पहुंचेगा इसलिए ये लोग कल भी यहीं रुकेंगे और वो कल मनाली से मढ़ी पहुंचेगा । एक दिन रेस्ट की बात मेरे थके हुए मन को भलीभांति समझ आ जाती है ।
तो अब प्लान ये है कि मैं भी कल यहीं रुकुंगा और परसों हम चारों लेह के लिए निकलेंगे । #एक_से_भले_चार
06 जून 2014 (मढ़ी – रेस्ट डे)
मढ़ी 3328 मी., आज का खर्चा 200 रूपये
कुछ दिनों पहले खरीदे केंचुआ के स्लीपिंग बैग (S-0) का अनुभव अच्छा रहा, मैं मैट्रेस नहीं लाया फिर भी ठण्ड नही लगी, वैसे रात में बारिश भी हुई थी । सुबह साढ़े आठ बजे बाहर धूप निकल आई है साथ ही रोहतांग से आती ठंडी हवा लगातार छींकने पर मजबूर कर रही है । हम नाश्ते में आलू के पराठे खाते हैं, यकीन मानोगे उस वक्त 20 रूपये का पराठा मिलता था मढ़ी में । यहाँ बहुत टूरिस्ट है, लोग घोड़ों पर घूम रहे हैं, खरगोशों के साथ फोटो खिंचा रहे हैं, गाड़ियाँ लगातार काला धुंआ फैंक रही हैं, चाय लेलो चाय की आवाज चारों तरफ से आ रही है, और दूर लोग टायर की ट्यूब पर फिसलकर पब्लिक पिकाचू बनी हुई है । लंच तक यही सब देखते हैं, बार-बार रिपीट मोड़ पर ।
शाम होने को है मल्लुओं के दोस्त का कुछ अता-पता नही है, हम ट्रक वालों से पूछते हैं कि कोई मनाली से साइकिल पर आता हुआ दिखा आपको?, हर ट्रक वाले का कहना है कि “हाँ एक लड़का आ तो रहा है” । हम फिर भी परेशान है कि इतनी बारिश में वो कैसे पहुंचेगा और अगर पहुंच भी गया तो क्या हमें ढूंढ पायेगा?, इसलिए हम रोड़ के साथ ही खड़े हैं अपने-अपने पोंचो पहनकर । रोहतांग बादलों के पीछे छिप गया है और सूरज पहाड़ों के पीछे ।
शाम साढ़े छह बजे मल्लुओं का दोस्त पहुंच जाता है, वो भीगा हुआ है । कपड़े चेंज करने के बाद चारों डिनर करते हैं, अब बारिश बंद हो चुकी है और योगेश मेरे साथ मेरे टेंट में सोएगा । उसके साथ टेंट शेयर करना मेरे लिए सम्मान की बात महसूस होती है ।
07 जून 2014 (मढ़ी से तांदी)
दुरी 73 किमी., एलेवेश्न गेन 1199 मी., साइकिल पर समय लगा 10 घंटे 39 मिनट (मढ़ी एलेवेश्न 3328 मी., तांदी एलेवेश्न 2901 मी., आज का खर्चा 125 रूपये)
साढ़े छह उठकर हम सबकुछ समेटकर साइकिल पर लाध लेते हैं, नाश्ते के बाद सवा आठ बजे यात्रा शुरू करते हैं । योगेश का कहना है कि आज केलोंग रुकेंगे जिसे सुनने के बाद पिछवाडों का दुख लौट आता है । मेरे पास एक नक्शा है जिसमें मढ़ी से केलोंग की दूरी 80 किमी. देखकर मैं बार-बार थूक निगल रहा हूँ । मढ़ी से रोहतांग टॉप 15 किमी. दूर है और पहले ही कुछ किमी. में थकावट और ऊँचाई सभी पर अपना असर दिखाने लगी । कई दर्जन ब्रेकों के बाद हम ग्यारह बजे मनाली-लेह हाईवे पर स्थित पहले पास रोहतांग पर पहुंचते हैं ।
यहाँ की ऊँचाई 3955 मीटर है और इतनी ऊँचाई के हिसाब से यहाँ बेहिसाब बर्फ है । दोनों तरफ लगभग 20-30 फीट ऊँची बर्फ की दीवारें खड़ी हैं । यहाँ गाड़ियों का जाम लगा है, हमें साइकिल से उतरकर इन बर्फीली गलियों को पार करना पड़ता है । बर्फ पिघल रही है इसलिए हमारे जूते भीग जाते हैं, जितनी तेजी से पानी बह रहा है उतनी तेजी से हमारी बॉडी आइस-क्यूब बनती जा रही है । मैं अभी भी जींस में हूँ और यह बता पाना मुश्किल है कि उसे मैंने पहना भी है या नहीं ।
रोहतांग टॉप पहुंचकर चारों तय करते हैं कि केलोंग नहीं तांदी रुकेंगे, मैं भीगी जींस में कांपते हुए अपनी ख़ुशी का इज़हार नहीं कर पा रहा हूँ । रोहतांग के बाद खोक्सर तक बहुत ही खराब रास्ता आता है, टूटा हुआ, कीचड़युक्त और पानी और बर्फ से लबालब । साइकिल में मडगार्ड नही है और अब हममें और बीआरओ में फर्क करना नामुमकिन हो गया है । चश्मों के साथ अलग ही समस्या है, पहने तो उसपर कीचड़ लग जाती है और नही पहनों तो आँखों में कीचड़ जाती है और जब कीचड़ नही होती तब सांसों की भांप से चश्मे भाप इंजन बन जाते हैं ।
रोहतांग पार करते ही हम चंद्रा घाटी या लाहौल में प्रवेश कर जाते हैं । रोहतांग दर्रे के इस तरफ दुनिया बड़ी खुबसुरत है, यहाँ हरियाली है और किसान खेतों से मटर निकल रहे हैं । अगर चंद्रा नदी की दिशा में बढ़ा जाये तो चंद्रताल और स्पीति पहुंचा जा सकता है ।
खोक्सर पहुंचकर हम दाल-चावल खाते हैं, यहाँ से आगे का रास्ता अच्छा मिलता है और पहली बार इस ट्रिप पर मजा आने लगता है । बाईं तरफ चंद्रा नदी बड़े आकर्षक तरीके से बह रही है, अनेकों छोटे-बड़े झरने बच्चों की तरफ उछल-कूद करते हुए चंद्रा नदी के गर्भ में समा रहे हैं । सिस्सू, गोंदला पार करके हम तांदी पेट्रोल पंप के सामने कैंप लगाते हैं । पास ही के ढाबे में खाना खाकर हम अपने दिन को विराम देते हैं ।
08 जून 2014 (तांदी से पत्सेओ)
दुरी 54 किमी, एलेवेश्न गेन 1452 मी, साइकिल पर समय लगा 11 घंटे 55 मिनट (तांदी एलेवेश्न 2901 मी, पत्सेओ एलेवेश्न 3774 मी, आज का खर्चा 170 रूपये)
सुबह पांच पच्चीस उठकर सबसे मुश्किल काम शुरू किया ‘टेंट पैक करना’ और सारे सामान को साइकिल पर लाधना, जिसे पूरा करने में लगभग एक घंटा लग गया । कल शाम एक गाड़ी साइकिलें देखकर रुकी, बातों-बातों में एक बंदा मेरी चप्पल ही पहनकर चलता बना, अपन तो बस यही सोचकर खुश हो गए कि चलो कुछ तो वजन कम हुआ । तो 07:25 पर निकलते हैं तांदी पेट्रोल पंप से ।
चंद्रा नदी और भागा नदी के संगम को देखना बहुत ही सुखमय है, दोनों अपने तटों को अलविदा कहकर एक-दूसरे में गुथ गयी हैं, संगम के दर्शन तांदी पुल क्रोस करने से पहले हो जाते हैं । चंद्रा नदी चंद्रताल से आती है जबकि भागा नदी सूरजताल से आती है, यहाँ दोनों मिलकर चंद्रभागा बनती हैं । आज का टारगेट दारचा रुकने का है । “योगेश की फिटनेस अच्छी है वो कन्याकुमारी से साइकिल चलाते हुए आया है लेकिन हमने क्या कसूर किया है?”, सोचकर ही दिमाग की धज्जियाँ उड़ रही हैं ।
सुबह नौ बजे हम केलोंग पहुंचते हैं जहाँ आलू-पराठा खाते हैं और बड़े दिनों बाद दूध पीते हैं, मार्किट से प्रेयर फ्लेग्स खरीदते हैं, 50 का एक पड़ता है । चारों की साइकिल प्रेयर फ्लैग से सजते ही हम रियल बन्दरलस्ट बन जाते हैं । केलोंग इतना छोटा भी नही था जितना सोचा था, यहाँ पर लाहौल और स्पीति का एडमिनिस्ट्रेटिव हेडक्वाटर है और मार्किट के साथ होटल, रेस्ट हाउस और होम स्टे बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं । यहाँ से हम अपने-अपने घरों को कॉल करके अपनी कुशलता का समाचार देते हैं ।
12 बजे के आसपास हम गेमुर क्रोस करते हैं, यकीन मानोगे यहाँ एसबीआई एटीएम की सुविधा है, एक बार हमने यहाँ से केश निकाला था तब 20-20 के करारे नोट निकले थे । यहाँ से जिस्पा 5 किमी. है जहाँ हम दोपहर दो बजे पहुंचते हैं । जिस्पा रूककर हम चाय और पारले-जी बिस्कुट खाते हैं । यहाँ की सुन्दरता के बारे में क्या कहें, जहाँ एक तरफ भागा नदी अपने वेग से बह रही है वहीँ दूसरी ओर यहाँ से दिखते बर्फ से ढके पहाड़ मोहित किये बिना न रह पाते । हमारा आज का टारगेट दारचा है जो यहाँ से सिर्फ सात किमी. दूर है । दूरी सोचकर ख़ुशी हो रही है और सीट पर बैठने के बारें में सोचकर दुख ही दुख ।
शाम 04:20 पर हम दारचा पहुंचते हैं जहाँ हम सबकी डिटेल्स नोट की जाती हैं, यहाँ स्थानीय पुलिस का चेक पोस्ट है जोकि मनाली और लेह से आने-जाने वालों की डिटेल्स नोट करता है । मैं ख़ुशी-ख़ुशी सबकी डिटेल्स नोट करवा कर आता हूँ कि अब हम टेंट पिच करेंगे लेकिन राक्षस योगेश के शब्द हम सबपर बिजली की तरफ गिरते हैं । वो सामने वाले पहाड़ पर दिखाई देते टेंट दिखाकर बोलता है “चलो वहां टेंट लगाते हैं ताकि कल ये चढ़ाई न चढ़नी पड़े” । माँ कसम मैं इस आदमी से नफरत करता हूँ, पता नही किस जन्म का बदला ले रहा है हम तीनों से । धनुष और सनोज के मुंह से “लेट्स गो” सुनकर मेरा इंसानियत पर से विश्वास कतई उठ जाता है ।
तीनों लगभग तीन किमी. आगे निकल जाते हैं और मैं खुद को घिसेड़ते हुए पैदल चल रहा हूँ, यहाँ से दारचा गाँव दिखाई दे रहा है वहीँ कहीं योचे भी है कहते हैं कि वहां से खोक्सर जाने का रास्ता है वाया'टेम्पो ला' । तरुण गोएल का कहना है कि पहले लोग योचे से गर्म रोटियां लेकर चलते थे और खोक्सर भी वो गर्म ही रहती थी । कुछ किमी. आगे एक जंक्शन आता है जहाँ लिखा है “ज़न्स्कर सुम्दो”, बाद में पता चला की यह रास्ता अभी बना नहीं है जब बन जायेगा तो ज़न्स्कर को जोड़ेगा यहाँ से वाया सींगो ला (5091 मी)।
कुछ किमी. आगे बढ़ने के बाद इस हाईवे की पहली ग्लेशियर झील दिखाई देती है जिसका नाम ‘दीपक ताल’ है, यहाँ की ऊँचाई 3750 मीटर है । मैं दुखी मन से साइकिलिंग कर रहा था लेकिन झील को देखकर मन में बस एक ही ख्याल आया “साइकिल से उतर जा और पिछवाड़े को रेस्ट दे”, तो मन की सुनते हुए हम सबने यही किया और उतरकर झील को निहारा और फोटो खींचकर फिर से आगे बढ़ गये ।
ये लोग टेंटों के पास नहीं रुकते और आगे निकल जाते हैं, मैं अब इसलिए इनके पीछे चल रहा हूँ कि रास्ता लगभग प्लेन है । मेरी टाँगे टूट गयी और हिम्मत भी, अब और नहीं लेकिन एक-एक किमी. करते हुए आखिरकार हम शाम साढ़े छह बजे पत्सेओ पहुंचते हैं । ऊपर एक पी.डब्ल्यू.डी. का रेस्ट हाउस दिख रहा है और सभी का सोचना है कि आज टेंट में नहीं सोना । गार्ड से बात करते हैं लेकिन बात नहीं बनती वो साफ-साफ शब्दों में गेट-आउट बोल देता है । लेकिन आधे घंटे तक प्यार से समझाने मतलब गिड़गिड़ाने के बाद वो हमें रेस्ट हाउस की गैलरी में सोने को बोल देता है, यहाँ मुझे ‘अंदाज अपना-अपना’ फिल्म का वो डायलॉग याद आ जाता है कि “आप पुरुष नहीं महापुरुष हो” ।
तो आज टेंट नहीं लगाना पड़ा, चारों ने साइकिल को बाहर पार्क कर दिया और सारा सामान गैलरी में रख लिया । दो ट्रेक्टर ट्राली जितने सामान को देखकर महापुरुष का पूछना है कि “कौनसी गाड़ी से आये हो”, जिसपर मेरा बोलना है “साइकिल रिक्शा चलाये हो कभी” । महापुरुष हमारे लिए दाल-चावल बना देता है जिसे खाकर लेटते ही हमारी गुड नाईट हो जाती है ।
यहाँ की ऊँचाई 3774 मीटर है, आज हमने 11 घंटे में कुल 54 किमी. साइकिल दौडाई । पत्सेओ से राईट साइड में जो गली जाती है उसमें एक छह हजार मीटर की पीक है जिसे बंगाली समुदाय ने कई बार क्लाइंब किया है ।
कई महीने लगातार यह सोचकर खुद को तैयार किया कि “तू फ्री सोल है कुछ भी कर सकता है बावा” । खुद का ही माइंडवाश करने के बाद मैं साइकिल खरीदता हूँ और ‘मुसाफिर हूँ यारों ना घर है ना ठिकाना’ बोलकर मनाली-लेह हाईवे पर साइकिलिंग के लिए निकलता हूँ वो भी एकदम सोलो । लेह तक पहुंचने में मानो कई जन्मों का समय लगा और बीच में आयी अनेकों मुसीबतों का लेखक ने बड़े घटिया तरीके से विवरण दिया है ।
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Pc: Dhanush k dev मनाली-लेह साइकिलिंग टूर 2014 |
खर्चा बढ़ता है तो अपना हिमोग्लोबिन कम हो जाता है |
Day 01 (04 जून 2014, फरीदाबाद से मनाली)
दुरी 571 किमी., एच.आर.टी.सी. से समय लगा 18 घंटे, खर्चा 1515 रूपये
कई महीनों से चलती तैयारियां ने ऐसा माहौल बना दिया मानो मैं अपनी दो लड़कियों की शादी एक साथ करने जा रहा हूँ । अब तो बस रास्ता खुलने का इंतजार था, तो सुनने में आया कि “03 जून को कुछ गाड़ियों ने रोहतांग दर्रा क्रोस किया है” । महान घुमक्कड़ नीरज जाट से प्रेरणा लेकर मैं अगले ही दिन हड़बड़ी में कश्मीरी गेट पहुंचता हूँ साइकिल और सामान के साथ । कश्मीरी गेट तक ऑटो वाले ने 350 रूपये चार्ज किये, यहाँ मैं सुबह 10:45 पहुंचा । सामान चेक करवाकर साइकिल की भी आई.एस.बी.टी. में एंट्री करा ली । 640 रूपये का दिल्ली से मनाली आर्डिनरी बस का टिकट लेकर साइकिल को बस की छत्त पर बांध देता हूँ जिसका 315 रूपये किराया अलग से देना पड़ा, एच.आर.टी.सी. पौने 12 बजे चल पड़ी । इतना पैसा खर्च करने के बाद ऐसा लगा मानो लड़कियां विदा हुईं ।
डिस्क्लेमर: अगर आपकी टांगों में पीतल भरा हो और पिछवाडा लोहे से बना हो तभी सिर पे कफन बांधकर इस हाईवे पर साइकिलिंग के लिए निकलना ।
एयरटेल पोस्टपेड के 100 लोकल मिनट के बदले 40 मिनट एसटीडी आउटगोइंग के ले लिए हैं और 3जी 135एमबी डाटा के बदले और अतिरिक्त 40 मिनट एसटीडी आउटगोइंग के ट्रान्सफर करवा लिए हैं एयरटेल अकाउंट में । अब अपने पास टोटल 80 मिनट हैं अदर स्टेट से कॉल करने के लिए, उस वक्त अपने लिए मोबाइल डाटा मतलब एचडी डेक्सटॉप वालपेपर था ।
पानीपत के आसपास लंच होता है, फिर गाड़ी चंडीगढ़ रुकी जहाँ मैं एक कोका-कोला की बोतल लेता हूँ । बस रात में अनेकों बार रुकी शायद ड्राईवर को नींद लगी थी । सड़कें घुमने लगी साथ में खोपड़ी भी, बस में बैठी कुछ सवारियों ने यत्र-तत्र उल्टी फैंकना शुरू कर दिया, अबतक आँख खुल चुकी है और बाहर झांकते ही बोर्ड दिखता है जिसपर हिंदी में लिखा है “देवभूमि हिमाचल प्रदेश में आपका स्वागत है” ।
Day 02 (05 जून 2014, मनाली से मढ़ी)
दुरी 34 किमी., एलेवेश्न गेन 1517 मीटर, साइकिल से समय लगा 12 घंटे (मनाली एलेवेश्न: 1904 मी., मढ़ी एलेवेश्न: 3328 मी., खर्चा 175 रूपये)
मनाली-लेह हाईवे विश्वभर में इतना फेमस है जितना नार्थ कोरिया में किम जोंग । मनाली से लेह की दुरी लगभग 469 किमी. है जिसमें तकरीबन 8260 मीटर का टोटल एलिवेशन गेन होता है । इस हाईवे की सुन्दरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसपर 05 मोटरेबल माउंटेन पास और 02 झीलें इसकी सुन्दरता में चार-चाँद लगाती हैं ।
17 घंटे की आरामदायक लॉन्ग जर्नी के बाद कानों में “शिलाजीत लेलो, केसर लेलो, होटल, रूम, रोहतांग, टैक्सी, चलो कसोल” पड़ते ही मुझे समझ आ गया कि मनाली पहुंच गये । रशिया की भावी राजधानी फरीदाबाद की चिलचिलाती गर्मी के बाद एकदम 12 डिग्री में उतरते ही नथुनों से पानी रिसना शुरू हो गया । अब तक बगल में पड़ी जैकेट बॉडी पर आ चुकी है । साइकिल को बस की छत्त से अकेले उतारने में हमने ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया । मैं घर से जींस में चला था और प्लान के मुताबिक जींस को अब तक टागों से उतर जाना चाहिए था ।
अब नजारा कुछ यूँ है कि “चाय की रेहड़ी पर मैं गर्मागर्म चाय के साथ फैन खा रहा हूँ वहीँ साथ ही अपनी साइकिल खड़ी है जिसके साथ 45 लीटर का खचाखच भरा रकसैक, एक टू-मैन टेंट, स्लीपिंग बैग और कैमरा बैग सड़क पर ही पड़ा है” । सारे सामान को देखकर चायवाले का पूछना है बाकी लोग कहाँ हैं? । जिसपर अपुन के भीतर ठंड से कांपते मित्थुन का कहना है कि “इतने सामान के लिए तो मैं अकेला ही काफी हूँ” ।
80 मिनट सिर्फ यही फिगर आउट करने में खर्च हो गए कि इतने सामान को साइकिल पर बांधू या एक खच्चर किराये पर उठा लूं । 45 लीटर के बैग जिसमें 60 लीटर जितना सामान भरा था को साइकिल के कैरियर पर बांधता हूँ, हैंडल पर टेंट को, स्लीपिंग बैग को रकसैक के ऊपर और कैमरा बैग को गले में टांगकर मुझे दिहाड़ी पे जाते रिक्शे वाले की फिलिंग आती है । जितना सामान साइकिल पर है उससे ज्यादा भार मेरे दिमाग में है इस ट्रिप को लेकर, हजारों सवालों को ब्यास में बहाकर आखिकार सुबह 06 बजे मनाली से पैडलिंग शुरू करता हूँ ।
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ब्यास के माथे पर चमकती धौलाधार और पीर पंजाल का संगम |
सामने सूरज की पहली किरणों से हनुमान टिब्बा, शितिधार, मुकर बह आदि पीकों का स्वागत किया, इन चोटियों के समूह में एक मैंने एक पीक को समिट भी किया है जिसका नाम फ्रेंडशिप पीक है । वशिष्ट हॉट स्प्रिंग के रास्ते को देखते हुए आगे बढ़ता हूँ और ‘रोहतांग टनल वेलकम यू बोर्ड’ को निहारता हूँ ।
भांग तक पहुंचते-पहुंचते लेह पहुंचने के सपने में क्रैक आ चुका है । साइकिल चलाने से ज्यादा मैं पैदल चल रहा हूँ, समझ नहीं आ रहा है कि क्यूँ मैंने खुदको इस मुसीबत में फंसाया । अभी तक मैंने साइकिल सिर्फ मैदानी इलाकों में ही चलायी है पहाड़ों में यह पहली बार है और मैं दावे से कह सकता हूँ कि पहाड़ों में साइकिल चलाने के लिए लोहे का पिछवाडा चाहिए ।
पल्चान पहुंचकर मैं एक ढाबे के बेंच पर बेहोश हो जाता हूँ, लेटते ही मुझे सपना आता है “मैं दिल्ली में हूँ और साइकिल खरीदने गया हूँ, वहां एक सुंदर लड़की भी आई हुई है खुद के लिए साइकिल खरीदने । मैं कभी अपनी साइकिल को तो कभी उसे देख रहा हूँ, दुकान का मालिक पता नहीं क्यूँ चिल्ला रहा है? । उसकी चीख धीरे-धीरे तेज होती जा रही है, सर आप ठीक हैं?, सर आप ठीक हैं?”, अचानक मेरी आँख खुलती है ढाबे का लाहौली मालिक मशीनी तरीके से जोर-जोर से चिल्ला रहा है “सर आप ठीक हैं?, सर आप ठीक हैं?” । मैं उसे कहना चाहता हूँ कि मेरी साइकिल को खाई में फैंक दो लेकिन “एक मैगी और एक चाय बना दो प्लीज” बोलकर मैं रोहतांग की तरफ जाते रास्ते को देखता हूँ ।
बेहोशी की हालत में साइकिल चल रही है, अबतक मैंने फैसला कर लिया है कि आज गुलाबा रुकुंगा और धीरे-धीरे मंजिल की तरफ बढूँगा चाहे लेह अगले जन्म में ही पहुंचू । गुलाबा से पहले गियर का तार एकदम लूज हो जाता है...मतलब टेक्निकल फाल्ट, अब मैं वापस जाने के बारे में सोच रहा हूँ कि तभी मुझे दो साइकिलिस्ट दिखाई देते हैं । वो मेरे पास आकर अंग्रेजी में कुछ बोलते हैं, मैं लगभग बेहोशी में उन्हें बताता हूँ कि “साइकिल खराब हो गयी है, गियर के तार में कुछ प्रॉब्लम हो गयी है” ।
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गियर का तार जब लूज हो गया |
उनमें से एक फटाफट अपने बैग से प्लायर निकालता जिसे हम आमतौर पर पिलास हैं और गियर के तार को ठीक करना शुरू कर देता है, जबकि दूसरा मुझसे बात करते हुए बार-बार रोहतांग रोहतांग बोल रहा है अंग्रेजी में । उसकी अंग्रेजी सुनकर मेरा दिल बैठा जा रहा है कि ये लोग आज ही रोहतांग जायेंगे या उससे भी आगे ।
साइकिल ठीक हो चुकी है हम तीनों एक साथ चल पड़े हैं, साँसे फूल रही हैं फिर भी बातें चल रही हैं और साइकिल भी । सारी अंग्रेजी दाव पर लगाने के बाद समझ आता है कि दोनों आज मढ़ी रुकेंगे, एक का नाम धनुष है और दूसरे का सनोज है, दोनों ही दिल्ली आई.आई.टी. में पढ़ने वाले हैं । हम जल्दी ही गुलाबा चेकपोस्ट क्रोस करते हैं अब मैं भी इनके साथ मढ़ी रुकने का सोचते हुए ये भी सोच रहा हूँ कि “क्या इनके पिछवाडों में भी दर्द हो रहा होगा?” ।
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गुलाबा क्रोस करते हुए |
शाम छह बजे हम मढ़ी पहुंचते हैं, मेरी कमर टूट गयी है और पिछवाडा भुन गया है । रास्ते में धनुष की साइकिल दो पर पंचर होती है, दोनों बार वो नई ट्यूब डालता है । हम एक ठीक सी जगह ढूंढकर टेंट लगाते हैं, मैं अपने टेंट में घुसकर पेट के बल लेट जाता हूँ और जोर से चिल्लाता हूँ “मुझे घर जाना है” ।
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Pc: Dhanush k dev |
हम तीनों शाम सात बजे डिनर करने जाते हैं, खाते-खाते पता चलता है कि इनका एक दोस्त कन्याकुमारी से कश्मीर साइकिलिंग कर रहा है और वो कल यहाँ पहुंचेगा इसलिए ये लोग कल भी यहीं रुकेंगे और वो कल मनाली से मढ़ी पहुंचेगा । एक दिन रेस्ट की बात मेरे थके हुए मन को भलीभांति समझ आ जाती है ।
तो अब प्लान ये है कि मैं भी कल यहीं रुकुंगा और परसों हम चारों लेह के लिए निकलेंगे । #एक_से_भले_चार
06 जून 2014 (मढ़ी – रेस्ट डे)
मढ़ी 3328 मी., आज का खर्चा 200 रूपये
कुछ दिनों पहले खरीदे केंचुआ के स्लीपिंग बैग (S-0) का अनुभव अच्छा रहा, मैं मैट्रेस नहीं लाया फिर भी ठण्ड नही लगी, वैसे रात में बारिश भी हुई थी । सुबह साढ़े आठ बजे बाहर धूप निकल आई है साथ ही रोहतांग से आती ठंडी हवा लगातार छींकने पर मजबूर कर रही है । हम नाश्ते में आलू के पराठे खाते हैं, यकीन मानोगे उस वक्त 20 रूपये का पराठा मिलता था मढ़ी में । यहाँ बहुत टूरिस्ट है, लोग घोड़ों पर घूम रहे हैं, खरगोशों के साथ फोटो खिंचा रहे हैं, गाड़ियाँ लगातार काला धुंआ फैंक रही हैं, चाय लेलो चाय की आवाज चारों तरफ से आ रही है, और दूर लोग टायर की ट्यूब पर फिसलकर पब्लिक पिकाचू बनी हुई है । लंच तक यही सब देखते हैं, बार-बार रिपीट मोड़ पर ।
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मढ़ी में भारी जाम |
शाम होने को है मल्लुओं के दोस्त का कुछ अता-पता नही है, हम ट्रक वालों से पूछते हैं कि कोई मनाली से साइकिल पर आता हुआ दिखा आपको?, हर ट्रक वाले का कहना है कि “हाँ एक लड़का आ तो रहा है” । हम फिर भी परेशान है कि इतनी बारिश में वो कैसे पहुंचेगा और अगर पहुंच भी गया तो क्या हमें ढूंढ पायेगा?, इसलिए हम रोड़ के साथ ही खड़े हैं अपने-अपने पोंचो पहनकर । रोहतांग बादलों के पीछे छिप गया है और सूरज पहाड़ों के पीछे ।
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मौसम की भयानक मार शुरू हो चुकी है |
शाम साढ़े छह बजे मल्लुओं का दोस्त पहुंच जाता है, वो भीगा हुआ है । कपड़े चेंज करने के बाद चारों डिनर करते हैं, अब बारिश बंद हो चुकी है और योगेश मेरे साथ मेरे टेंट में सोएगा । उसके साथ टेंट शेयर करना मेरे लिए सम्मान की बात महसूस होती है ।
07 जून 2014 (मढ़ी से तांदी)
दुरी 73 किमी., एलेवेश्न गेन 1199 मी., साइकिल पर समय लगा 10 घंटे 39 मिनट (मढ़ी एलेवेश्न 3328 मी., तांदी एलेवेश्न 2901 मी., आज का खर्चा 125 रूपये)
साढ़े छह उठकर हम सबकुछ समेटकर साइकिल पर लाध लेते हैं, नाश्ते के बाद सवा आठ बजे यात्रा शुरू करते हैं । योगेश का कहना है कि आज केलोंग रुकेंगे जिसे सुनने के बाद पिछवाडों का दुख लौट आता है । मेरे पास एक नक्शा है जिसमें मढ़ी से केलोंग की दूरी 80 किमी. देखकर मैं बार-बार थूक निगल रहा हूँ । मढ़ी से रोहतांग टॉप 15 किमी. दूर है और पहले ही कुछ किमी. में थकावट और ऊँचाई सभी पर अपना असर दिखाने लगी । कई दर्जन ब्रेकों के बाद हम ग्यारह बजे मनाली-लेह हाईवे पर स्थित पहले पास रोहतांग पर पहुंचते हैं ।
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Pc: Dhanush k dev रोहतांग पास आपका स्वागत करता है |
यहाँ की ऊँचाई 3955 मीटर है और इतनी ऊँचाई के हिसाब से यहाँ बेहिसाब बर्फ है । दोनों तरफ लगभग 20-30 फीट ऊँची बर्फ की दीवारें खड़ी हैं । यहाँ गाड़ियों का जाम लगा है, हमें साइकिल से उतरकर इन बर्फीली गलियों को पार करना पड़ता है । बर्फ पिघल रही है इसलिए हमारे जूते भीग जाते हैं, जितनी तेजी से पानी बह रहा है उतनी तेजी से हमारी बॉडी आइस-क्यूब बनती जा रही है । मैं अभी भी जींस में हूँ और यह बता पाना मुश्किल है कि उसे मैंने पहना भी है या नहीं ।
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Pc: Dhanush k dev बर्फीले गलियारों में घुसते हुए |
रोहतांग टॉप पहुंचकर चारों तय करते हैं कि केलोंग नहीं तांदी रुकेंगे, मैं भीगी जींस में कांपते हुए अपनी ख़ुशी का इज़हार नहीं कर पा रहा हूँ । रोहतांग के बाद खोक्सर तक बहुत ही खराब रास्ता आता है, टूटा हुआ, कीचड़युक्त और पानी और बर्फ से लबालब । साइकिल में मडगार्ड नही है और अब हममें और बीआरओ में फर्क करना नामुमकिन हो गया है । चश्मों के साथ अलग ही समस्या है, पहने तो उसपर कीचड़ लग जाती है और नही पहनों तो आँखों में कीचड़ जाती है और जब कीचड़ नही होती तब सांसों की भांप से चश्मे भाप इंजन बन जाते हैं ।
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Pc: Dhanush k dev क्या आपके साथ भी हुआ है ऐसा कभी? |
रोहतांग पार करते ही हम चंद्रा घाटी या लाहौल में प्रवेश कर जाते हैं । रोहतांग दर्रे के इस तरफ दुनिया बड़ी खुबसुरत है, यहाँ हरियाली है और किसान खेतों से मटर निकल रहे हैं । अगर चंद्रा नदी की दिशा में बढ़ा जाये तो चंद्रताल और स्पीति पहुंचा जा सकता है ।
खोक्सर पहुंचकर हम दाल-चावल खाते हैं, यहाँ से आगे का रास्ता अच्छा मिलता है और पहली बार इस ट्रिप पर मजा आने लगता है । बाईं तरफ चंद्रा नदी बड़े आकर्षक तरीके से बह रही है, अनेकों छोटे-बड़े झरने बच्चों की तरफ उछल-कूद करते हुए चंद्रा नदी के गर्भ में समा रहे हैं । सिस्सू, गोंदला पार करके हम तांदी पेट्रोल पंप के सामने कैंप लगाते हैं । पास ही के ढाबे में खाना खाकर हम अपने दिन को विराम देते हैं ।
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Pc: Dhanush k dev तांदी पेट्रोल पंप के सामने अपने टेंट |
08 जून 2014 (तांदी से पत्सेओ)
दुरी 54 किमी, एलेवेश्न गेन 1452 मी, साइकिल पर समय लगा 11 घंटे 55 मिनट (तांदी एलेवेश्न 2901 मी, पत्सेओ एलेवेश्न 3774 मी, आज का खर्चा 170 रूपये)
सुबह पांच पच्चीस उठकर सबसे मुश्किल काम शुरू किया ‘टेंट पैक करना’ और सारे सामान को साइकिल पर लाधना, जिसे पूरा करने में लगभग एक घंटा लग गया । कल शाम एक गाड़ी साइकिलें देखकर रुकी, बातों-बातों में एक बंदा मेरी चप्पल ही पहनकर चलता बना, अपन तो बस यही सोचकर खुश हो गए कि चलो कुछ तो वजन कम हुआ । तो 07:25 पर निकलते हैं तांदी पेट्रोल पंप से ।
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तांदी पेट्रोल पंप |
चंद्रा नदी और भागा नदी के संगम को देखना बहुत ही सुखमय है, दोनों अपने तटों को अलविदा कहकर एक-दूसरे में गुथ गयी हैं, संगम के दर्शन तांदी पुल क्रोस करने से पहले हो जाते हैं । चंद्रा नदी चंद्रताल से आती है जबकि भागा नदी सूरजताल से आती है, यहाँ दोनों मिलकर चंद्रभागा बनती हैं । आज का टारगेट दारचा रुकने का है । “योगेश की फिटनेस अच्छी है वो कन्याकुमारी से साइकिल चलाते हुए आया है लेकिन हमने क्या कसूर किया है?”, सोचकर ही दिमाग की धज्जियाँ उड़ रही हैं ।
सुबह नौ बजे हम केलोंग पहुंचते हैं जहाँ आलू-पराठा खाते हैं और बड़े दिनों बाद दूध पीते हैं, मार्किट से प्रेयर फ्लेग्स खरीदते हैं, 50 का एक पड़ता है । चारों की साइकिल प्रेयर फ्लैग से सजते ही हम रियल बन्दरलस्ट बन जाते हैं । केलोंग इतना छोटा भी नही था जितना सोचा था, यहाँ पर लाहौल और स्पीति का एडमिनिस्ट्रेटिव हेडक्वाटर है और मार्किट के साथ होटल, रेस्ट हाउस और होम स्टे बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं । यहाँ से हम अपने-अपने घरों को कॉल करके अपनी कुशलता का समाचार देते हैं ।
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वेलकम टू केलोंग |
12 बजे के आसपास हम गेमुर क्रोस करते हैं, यकीन मानोगे यहाँ एसबीआई एटीएम की सुविधा है, एक बार हमने यहाँ से केश निकाला था तब 20-20 के करारे नोट निकले थे । यहाँ से जिस्पा 5 किमी. है जहाँ हम दोपहर दो बजे पहुंचते हैं । जिस्पा रूककर हम चाय और पारले-जी बिस्कुट खाते हैं । यहाँ की सुन्दरता के बारे में क्या कहें, जहाँ एक तरफ भागा नदी अपने वेग से बह रही है वहीँ दूसरी ओर यहाँ से दिखते बर्फ से ढके पहाड़ मोहित किये बिना न रह पाते । हमारा आज का टारगेट दारचा है जो यहाँ से सिर्फ सात किमी. दूर है । दूरी सोचकर ख़ुशी हो रही है और सीट पर बैठने के बारें में सोचकर दुख ही दुख ।
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Pc: Dhanush k dev क्रोसिंग गेमूर गाँव (लाहौल वैली) |
शाम 04:20 पर हम दारचा पहुंचते हैं जहाँ हम सबकी डिटेल्स नोट की जाती हैं, यहाँ स्थानीय पुलिस का चेक पोस्ट है जोकि मनाली और लेह से आने-जाने वालों की डिटेल्स नोट करता है । मैं ख़ुशी-ख़ुशी सबकी डिटेल्स नोट करवा कर आता हूँ कि अब हम टेंट पिच करेंगे लेकिन राक्षस योगेश के शब्द हम सबपर बिजली की तरफ गिरते हैं । वो सामने वाले पहाड़ पर दिखाई देते टेंट दिखाकर बोलता है “चलो वहां टेंट लगाते हैं ताकि कल ये चढ़ाई न चढ़नी पड़े” । माँ कसम मैं इस आदमी से नफरत करता हूँ, पता नही किस जन्म का बदला ले रहा है हम तीनों से । धनुष और सनोज के मुंह से “लेट्स गो” सुनकर मेरा इंसानियत पर से विश्वास कतई उठ जाता है ।
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Pc: Dhanush k dev दारचा चेक पोस्ट |
तीनों लगभग तीन किमी. आगे निकल जाते हैं और मैं खुद को घिसेड़ते हुए पैदल चल रहा हूँ, यहाँ से दारचा गाँव दिखाई दे रहा है वहीँ कहीं योचे भी है कहते हैं कि वहां से खोक्सर जाने का रास्ता है वाया'टेम्पो ला' । तरुण गोएल का कहना है कि पहले लोग योचे से गर्म रोटियां लेकर चलते थे और खोक्सर भी वो गर्म ही रहती थी । कुछ किमी. आगे एक जंक्शन आता है जहाँ लिखा है “ज़न्स्कर सुम्दो”, बाद में पता चला की यह रास्ता अभी बना नहीं है जब बन जायेगा तो ज़न्स्कर को जोड़ेगा यहाँ से वाया सींगो ला (5091 मी)।
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सामने दिखता योचे |
कुछ किमी. आगे बढ़ने के बाद इस हाईवे की पहली ग्लेशियर झील दिखाई देती है जिसका नाम ‘दीपक ताल’ है, यहाँ की ऊँचाई 3750 मीटर है । मैं दुखी मन से साइकिलिंग कर रहा था लेकिन झील को देखकर मन में बस एक ही ख्याल आया “साइकिल से उतर जा और पिछवाड़े को रेस्ट दे”, तो मन की सुनते हुए हम सबने यही किया और उतरकर झील को निहारा और फोटो खींचकर फिर से आगे बढ़ गये ।
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पिघलता दीपक ताल |
ये लोग टेंटों के पास नहीं रुकते और आगे निकल जाते हैं, मैं अब इसलिए इनके पीछे चल रहा हूँ कि रास्ता लगभग प्लेन है । मेरी टाँगे टूट गयी और हिम्मत भी, अब और नहीं लेकिन एक-एक किमी. करते हुए आखिरकार हम शाम साढ़े छह बजे पत्सेओ पहुंचते हैं । ऊपर एक पी.डब्ल्यू.डी. का रेस्ट हाउस दिख रहा है और सभी का सोचना है कि आज टेंट में नहीं सोना । गार्ड से बात करते हैं लेकिन बात नहीं बनती वो साफ-साफ शब्दों में गेट-आउट बोल देता है । लेकिन आधे घंटे तक प्यार से समझाने मतलब गिड़गिड़ाने के बाद वो हमें रेस्ट हाउस की गैलरी में सोने को बोल देता है, यहाँ मुझे ‘अंदाज अपना-अपना’ फिल्म का वो डायलॉग याद आ जाता है कि “आप पुरुष नहीं महापुरुष हो” ।
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Pc: Dhanush k dev रेस्ट हाउस जहाँ महापुरुष मिले |
तो आज टेंट नहीं लगाना पड़ा, चारों ने साइकिल को बाहर पार्क कर दिया और सारा सामान गैलरी में रख लिया । दो ट्रेक्टर ट्राली जितने सामान को देखकर महापुरुष का पूछना है कि “कौनसी गाड़ी से आये हो”, जिसपर मेरा बोलना है “साइकिल रिक्शा चलाये हो कभी” । महापुरुष हमारे लिए दाल-चावल बना देता है जिसे खाकर लेटते ही हमारी गुड नाईट हो जाती है ।
यहाँ की ऊँचाई 3774 मीटर है, आज हमने 11 घंटे में कुल 54 किमी. साइकिल दौडाई । पत्सेओ से राईट साइड में जो गली जाती है उसमें एक छह हजार मीटर की पीक है जिसे बंगाली समुदाय ने कई बार क्लाइंब किया है ।
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इसकी पंचर की दुकान भी पुरे हाईवे पर खुली ही रही |
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मेरा साइकिल-रिक्शा रोहतांग पास पर |
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Pc: Dhanush k dev मढ़ी की ओर |
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Pc: Dhanush k dev बन्दरलस्ट चरम पर |
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Pc: Dhanush k dev |
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Pc: Dhanush k dev स्नो शूट पहनकर साइकिल के साथ फोटोग्राफी अलग किस्म का नशा है |
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Pc: sanoj vazhiyodan रेस्ट डे पर धूप सेकते हुए |
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Pc: Dhanush k dev रोहतांग की गलियाँ |
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Pc: Dhanush k dev लाहौल घाटी में भेड़पाल प्रवेश करते हुए, ये लोग चंद्रताल जा रहे हैं |
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Pc: sanoj vazhiyodan मढ़ी पर टेंट लगाने की तैयारी |
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Pc: sanoj vazhiyodan और जब पिछवाड़े और मेरा कम्युनिकेशन बंद हो गया |
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किधर जाना है? |
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Pc: sanoj vazhiyodan झारखंडी मजदूर |
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अब तो यहाँ सीमेंट का पुल बन गया है |
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कुछ अनमोल मुस्कुराहटें और पीछे चमकता सिस्सू झरना |
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केलोंग बस स्टैंड |
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शायद ये तिन्नो गाँव है (लाहौल वैली) |
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जिस्पा लाहौल की शान |
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प्रेयर फ्लैग लगने के बाद हमने बन्दरलस्ट बनने की शपथ खायी |
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प्त्सेयो गेस्ट हाउस की गैलरी में बंदे बेहोश |
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Pc: Dhanush k dev केलोंग में नाश्ता करते हुए |
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Pc: Dhanush k dev इसी एडवेंचर की तो बात कर रहा हूँ मैं |
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Pc: Sanoj vazhiyodan साइकिल से तेज चल रहे थे ये लोग |
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Pc: Sanoj vazhiyodan खोक्सर के बाद इस जगह को हर कोई अपनी यादों में बसा लेता है |
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Pc: Sanoj vazhiyodan |
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Pc: sanoj vazhiyodan जब मेरी टांगो ने मेरा ही साथ छोड़ दिया |
आपने बहुत शानदार लिखा है, अब आप भी अपने ब्लॉग्स को एक साथ इकट्ठा करके किताब में निकाल हो दो.....
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बहुत बाद में पता चला कि केलोग्स कॉर्नफ्लेक्स ही नही जगह का भी नाम है
😂😂😂
पढ़ने के बाद इस बुढापे में फिर से जोश जागा है ट्रेकिंग्स का
हम भी सोच रहे हैं कि हो हीं आये इस बार किन्नर कैलाश
लेटस गो तू फुलफिल माइ ओल्ड ड्रीम्स इन माई ड्रीम्स
😈😈😈
हाहा, आपकी सलाह पर लालडाउन के बाद विचार किया जाएगा।
DeleteBAHUT HI BAHDIYA... MJA AA GYA PADH KAR
ReplyDeleteअच्छा लगा जानकर 🙏
Deleteआप का ब्लॉग पढ़ कर ऐसा लगा की मैं खुद साईकल चला रहा हूँ इस सफर में ।तरुण भाई से मुलाकात तो हो गई साइकिलिंग के वजह से आप से बाकी है लेकिन ये साइकिलिंग का कीड़ा मुझे में प्रवेश कर चुका है,उम्र के इस पड़ाव में ।आपकी लेखनी सच में कमाल की है।आपके संस्मरण की किताब छप जाए तो अच्छा रहेगा।
ReplyDeleteअच्छा लगा जानकर कि आप भी हाथ से निकल गये हो, ऐसे ही बिगड़े रहो
Deleteअद्भुत दृश्य और व्याख्यान किया गया है, लौह पुरुष बहोत देखे है लेकिन लौह पिछवाड़े वाले नहीं, दण्डवत प्रणाम आपकी ईच्छा शक्ति को 😭❤️❤️
ReplyDeleteइस यात्रा के बाद 14 दिन तक ठीक से बैठ नहीं पाए थे...
Deleteमुझे पढ़कर बहुत अच्छा लगा। एक para पढ़ा तो इतना अच्छा लगा कि पढ़ती चली गई। हर एक पंक्ति पर इतनी हसी आ रही थी, इतने अच्छे से व्याखान किया है। राक्षस योगेश.. हाहाहा। तुम्हारी बातों में बहुत दम है। तुम्हारी इच्छाशक्ति को सलाम 👍। Ladakh हर एक ट्रैवलर का सपना होता है, तुमने अपने सपने के लिए जितनी मुश्किलों को उठाया, उसे हमने यह पढ़कर जिया है।
ReplyDeleteहाहा, साथी राक्षस हो तो यात्रा और रोमांचक हो जाती है लेकिन इस यात्रा के बाद मैं ऐसा नहीं मानता.....हाहाहा । आपको मजा आया तो हमें भी मजा आया
Delete