छह हजारी बनने का सफर : स्टोक बेस कैंप-समिट-लेह (Story Of 'The First Summit' : Stok Base Camp-Summit-Leh)

27 जून 2018
पहली बार 6000 मी. पर पहुंचने की चाहत देश की अर्थव्यवस्था की तरह खतरे में पड़ गई । रात से हो रही बारिश व बर्फबारी ने स्थिति को पेचीदा बना दिया । खराब मौसम को देखते हुआ बागी-4 ने आज जाना अवॉयड कर दिया, गौरव के सिरदर्द ने उसे समिट से रोक लिया, नूपुर की उखड़ती सांसों ने उसे वापस लौटने पर मजबूर कर दिया । रास्ते की जीरो जानकारी और खराब मौसम को नजरंदाज करते हुए मैं अकेला ही आगे बढ़ गया, बिना सोचे-समझे कि परिणाम क्या होंगे । 

3 guys did stok kangri own their own only in 5540 INR. Rohit kalyana www.himalayanwomb.blogspot.com
स्टोक कांगड़ी बेस कैंप (जून 2018)

नूपुर के पुकारने पर रात 2 बजे आंख खुली, उठते ही हमने दुम कटे सांप की तरह बाकी तैयारियां पूरी करके 2:34 पर 6000 की ओर कदम बढ़ाएं । ताजा स्थिति के अनुसार खराब मौसम को देखते हुए बागी-4 ने आज जाना अवॉयड कर दिया है, गौरव कल शाम से होते सिरदर्द से अभी तक पीड़ित है, सुबह ढाई बजे ‘ही वाज लूकिंग लाइक शिट’ । “आराम करो, पानी ज्यादा पियो”, बोलकर हम निकल पड़े स्टोक की ओर जबकि यह कार्यवाही वो पहले से ही कर रहा था फिर भी बड़ा-बूढा बनने का अपना ही मजा है । 

बाहर मौसम को देखकर प्रतीत हो रहा है कि जैसे-जैसे सूरज निकलेगा वैसे-वैसे मौसम साफ़ हो जायेगा । आसमान बादलों से घिरा है, बारिश के साथ-साथ बर्फ के फोहे गिर रहे हैं । रकसैक में पानी की बोतल, पैक्ड लंच, क्रैम्पोंस और कुछ चाकलेट्स साथ है । नूपुर का पता नहीं लेकिन मैंने 3 लेयर नीचे और 4 ऊपर पहन रखी हैं, हाथों में ग्लव्स, सिर पर गर्म टोपी और उसपर हेडलैंप, फिलिंग एस्त्रोनॉट ऐट स्टोक बेस कैंप विद 1 अदर । 

कल रात को मेरे फ़ोन की बैटरी खत्म हो गई, इसलिए अब हमारे पास नूपुर का फोन और गौरव की घड़ी है जो रूट को रिकॉर्ड करेगी । 

बेस कैंप से ही धीरे-धीरे चढ़ती चढ़ाई दिखाई देती है, जिसके टॉप पर हम 20 मिनट में पहुंचे । नूपुर की हालत यहां इतनी अच्छी नहीं दिख रही थी और वही हुआ जिसका डर था । थोड़ा आगे जाकर उसे सांस लेने में प्रॉब्लम होने लगी, रिजल्ट: उसने खून का घूंट पीकर वापस जाना पड़ा । अब जी.पी.एस वाच और नूपुर का फ़ोन मेरे पास आ गया । उसने अंधेरे में मुझे अपने फ़ोन का पैटर्न अनलॉक करना सिखाया । नूपुर की ‘आल द बेस्ट’ लेकर मैं आगे बढ़ गया । 

पहली बार 6000 मी. की ओर, उसपर मैं अकेला, ऊपर से मौसम खराब और घना काला अंधेरा । आज तो पहाड़ ही मालिक है । नूपुर राज की बात बताकर गई कि “रात 12 बजे कुछ लोग निकले हैं समिट के लिए, हो सकता है थोड़ी देर में आप उन्हें पकड़ लो”, साफ़ था ‘देवपुरुष’ आगे हैं । पहले 15 मिनट सब ठीक चला लेकिन थोड़ी देर बाद मानो सारा पहाड़ जिंदा हो गया । पहाड़ के रैंगने, पत्थरों के गिरने, भालू की हुंकार और लैपर्ड की दहाड़ मानो मुझे साफ़-साफ़ सुनाई देने लगी । फियर अपने चर्म पर था । 

अब तक आगे निकले देवपुरुषों तक पहुंचना ही मेरे जीवन का पहला और अंतिम लक्ष्य बन गया । तेज चलना मजबूरी नहीं यातना बन गया, परिणामस्वरूप दुखती किडनी के फैल होने की सम्भावनाएं अति प्रबल हो गई । आधे घंटे बाद दूर पहाड़ पर अंधेरे में 2 प्रकाश-पुंज दिखाई दिए, जिन्होंने इतनी दूर से ही फैल होती किडनी को सहारा दिया । सांसों के सामान्य होते ही मैं उन जीवनदायी रोशनियों की ओर मशीनी तरीके से बढ़ चला । 

एक बहुत बड़े रॉक गार्डन ने अचानक से पगडंडी को निगल लिया, जिसने लक्ष्य को और जटिल बना दिया परन्तु देवपुरुषों के चमकते प्रकाश-पुंज दूर से ही अंतहीन ऊर्जा भेज रहे थे । जल्द ही रॉक गार्डन पार करके मैं अगली बाधा पर पहुंचा, यहां एक बड़ा ग्लेशियर हाथ में लठ्ठ लिये छाती ताने खड़ा था मानो बोल रहा हो “आगे बढ़ते ही मोर बना दूंगा” । हैडलैंप से उजागर होती क्रिवासों ने सच में  मोर टाइप एहसास कराया । ग्लेशियर बेस कैंप से 2.75 किमी. दूर स्थित है और यहां की उंचाई 5413 मी. है । सही रास्ते तक पहुंचने में मुझे 20 से 25 मिनट लग गये । यह लगभग 40 मीटर लम्बा ग्लेशियर रहा होगा जिसे क्रॉस करते-करते जांघों का तेल खत्म होने लगा । 

ग्लेशियर पार करते ही अगले 15 मिनट में मेरा देवपुरुषों से सामना हुआ, जहां पहुंचकर पता चला की देवगणों में दो देवपुरुष (गाइड) और एक देवमहिला (ट्रैकर) है । मेरी ही भांति तीनों की सांसें फूं-फा हो रही थी और देवमहिला की भावभंगिमा को देखकर प्रतीत हो रहा था जैसे उसे केजरीवाल ने डस लिया हो । ऊपर चमकती अन्य दो रोशनियों को देखकर मैं तीनों को ‘आल द बेस्ट’ बोलकर आगे बढ़ गया । तेज होती बर्फ़बारी ने थोड़ी-थोड़ी दिखती पगडंडी को भी अपने गर्भ में समा लिया । 

अगले 20 मिनट में आगे वाली पार्टी के पास पहुंचा, इस स्थान की उंचाई 5579 मी. है और बेस कैंप से दूरी 3.72 किमी. है । यहां एक ट्रैकर और एक गाइड मिला, मैंने धीरे-धीरे इनके साथ ही चलने का फैसला किया क्योंकि अब तक स्नो फिल्ड शुरू हो चुकी थी । थोड़ी देर तो मैं उनके साथ-साथ चलता रहा लेकिन अचानक मैंने उन्हें पीछे छोड़ दिया और एकदम से गलत रास्ते पर पहुंच गया, इस चक्कर में मुझे पूरे 300 मी. वापस आना पड़ा । अब मैं समझ गया था कि दिव्यनक्शा जिनके पास है उन्हीं के साथ चलूंगा तभी खजाने तक पहुंचूंगा । मेरे मन में चलती उधेड़बुन शायद गाइड को दिखाई दे गई, उसने मुझे फूलती सांसों के साथ खजाने का रास्ता समझाया । उसके हिसाब से मुझे ऊपर दिखती एक काली चट्टान तक जाना है जिसके बाद मैं स्टोक कांगड़ी के शोल्डर पर पहुंच जाऊंगा, वहां से राईट लेकर रिज पर चलते हुए समिट पर पहुंचना है । सबकुछ ठीक है लेकिन ये काली चट्टान आखिर है कहां? । 

गाइड को धन्यवाद और लड़के को ‘गुड लक’ बोलकर मैं आगे निकल गया । बर्फ में दबी ट्रेल को ढूंढना सांप-सीड़ी का खेल हो गया,  ऊपर से गिरते तापमान ने हाथ-पैरों की उंगलियों को लुल्ल कर दिया । तापमान शोल्डर से पहले 0 से -5.2 डिग्री तक गिर गया । बादलों की गडगडाहट बेशक मेरी लेने पे तुली है वहीं धीरे-धीरे फैलती रोशनी मुझे समिट तक पहुंचने की हिम्मत भी भरपूर दे रही है । 

जब बढ़ती धुंध ने सबकुछ निगलना शुरू कर दिया तब मुझे एकदम से फ़ोन की याद आई । मैं रुका पहले पानी पिया फिर फ़ोन को अनलॉक करने का भरसक प्रयास किया लेकिन फ़ोन तस से मस ने हुआ मानो बोल रहा हो, “लीव मी अलोन” । उसकी अंग्रेजी सुनकर मैंने उसे वापस जैकेट में रख लिया कि शायद इसका दिमाग ठंडा हो गया है इसलिए अनलॉक नहीं हो रहा, आगे हो जायेगा । 

सच बताऊं शोल्डर से पहले मेरी हालत खराब होनी शुरू हो गई, शरीर ठीक काम कर रहा था, न सिर में दर्द था लेकिन बढ़ती उंचाई ने मानसिक तौर पर तोड़ना शुरू कर दिया । सांसें तो मानो 200 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से भाग रही थी । बार-बार पानी पीने के बाद भी मुंह सूख रहा था । आखिर ये काली चट्टान आखिर है कहां?, खीजते हुए मैंने आसमान की ओर देखा जहां खराब मौसम ने बादल मेरे सिर पर ही पार्क कर दिए थे । मुंह से खुद-ब-खुद “बुद्धि दे या शक्ति दे” के स्वर फूटने लगे । पवित्र पहाड़ से अर्चना शुरू कर दी कि “बुद्धि दे वापस लौट जाने की या शक्ति दे समिट तक आने की” । 

इस वीरान बीहड़ में बर्फ में दबा एक डंडा मिल गया, जिसने एडर्लिन को फिर से बढाने में कोई कसर न छोड़ी । आगे का सफर दोनों ने एकसाथ शुरू किया । 

शोल्डर की उंचाई लगभग 5900 मीटर है, यहां मैं सुबह सवा छह बजे पहुंचा । अब तक 4.8 किमी. दूरी तय की जा चुकी है । शोल्डर पर पहुंचकर मैंने पानी पिया, एक टॉफी खाई और वहां लगे झंडों को देखकर मन-ही-मन बुदबुदाया “बुद्धि दे या शक्ति दे” । गाइड और मेरी जानकारी के हिसाब से मुझे शोल्डर से राईट चलना है और तब तक चलना है जबतक टॉप तक न पहुंच जाऊं । 

5-5 मीटर के हिसाब से उंचाई बढ़ रही है, तापमान -7.2 हो गया । यकीन मानो शोल्डर के बाद सबसे बुरा मौसम देखने को मिला, दिल्ली से भी बुरा । दाढ़ी पर बर्फ की कीले जमकर लटकते ही मुझे ग्लेशियर टाइप फीलिंग आने लगी । बर्फ 2 इंच प्रति घंटे की रफ्तार से गिर रही है और तेज होता तूफान जैसे न्यायधीश बनके आज ही सारे फैसले करेगा । बर्फ के नीचे दबे पत्थरों पर जमी ब्लैक-आइस ने एक अलग ही रायता फैला रखा है, यहां रेंगना बेज्जती नहीं मजबूरी बन गया । लेकिन शुक्र था उस डंडे का जिसने मुश्किल समय में मेरा साथ दिया । समझदार बनिये पंजाब केसरी पढिये, मौसम नहीं पर कम-से-कम राशिफल जरुर पढकर पहाड़ पर निकलिये । हैश टैग संकट में ‘तुला’ ।

“बुद्धि दे या शक्ति दे”, “बुद्धि दे या शक्ति दे”, बार-बार लगातार इस वाक्य को ऐसे दोहरा रहा था मानो ये कोई शक्तिशाली मन्त्र है और मेरे लिए टॉप को यहीं ले आयेगा । 

5-5 मीटर ऊपर खिसकते हुए आखिरकार टॉप पर सुबह के 07:13 पर पहुंचा । सांसों को नियंत्रित करते-करते आंखे नम हो गई और रौंगटे खड़े होते ही पूरे शरीर में सिहरन सी दौड़ गई । सीने में छिपी ऊर्जा का मिलन पर्वत से हुआ । छह हजारी बनने पर मैं खुद को बधाई दिए बिना न रह सका । 
तेज हवा टॉप पर लगे झंडों को उखाड़ने पर अडिग है । कहां तो आशा थी कि टॉप पर मौसम साफ मिलेगा तो के2 व सासेर कांगड़ी देखूंगा लेकिन मौसम ने ऐसी करवट बदली कि आज बर्फ़बारी और घने बादलों के दीदार के सिवाय कुछ नजर नहीं आने वाला । 

स्टोक कांगड़ी की उंचाई 6130 मी. है, टॉप बेस कैंप से 5.05 किमी. दूर स्थित है और यहां तक पहुंचने में लगभग 1147 मी. का हाईट गेन होता है । शोल्डर से समिट की दूरी 640 मीटर है जिसमें लगभग 230 मीटर का हाईट गेन होता है, जिसे तय करने में मुझे 58 मिनट का समय लग गया । अगर मौसम साफ़ हो तो स्टोक कांगड़ी टॉप से लगभग 50 से ज्यादा पर्वतीय चोटियों के स्वर्णिम दर्शन हो सकते हैं । कहते हैं जिन्होंने पाप न किया हो यह अद्भुत दर्शन सिर्फ उन्हें ही होता है, और यह बात झूठ है...हा हा हा लोल । 


3 guys did stok kangri own their own only in 5540 INR. Rohit kalyana www.himalayanwomb.blogspot.com
यह पर्वतीय चोटियां स्टोक कांगड़ी से दिखाई देती हैं (डाटा सोर्से : पीक फाइंडर)

झंडों के नीचे बैठ गया और कांपते हाथों से बैग खोलकर पैक्ड लंच निकाला । दो टॉफी और एक बिस्किट पवित्र चोटी को अर्पण करके मैंने पानी पिया जो लगभग 80% जम गया है, बिस्किट और एक उबला आलू खाकर शरीर को ‘खुद में उमड़ती’ ऊर्जा के हवाले कर दिया । अब वक्त था फोटो खींचने का लेकिन फोन ने अनलॉक होने से साफ़-साफ़ इन्कार कर दिया । जितनी बार पेटर्न डालता उतनी बार ऐरर आता कि “प्लीज ट्राई अगेन इन 4 मिनट्स”, और ये सिलसिला काफी देर चला । 

अंत में 43 मिनट टॉप पर बिताकर मैंने वापसी की राह पकड़ी, एक बार तो फोन को टॉप पर ही छोड़ने का मन भी हुआ लेकिन फिर फ़ोन को वापस जैकेट में रख लिया । उतरना बिना क्रैम्पोंस के नामुमकिन था इसलिए मैंने क्रैन्पोंस पहनना शुरू किया, बड़ी जद्दोजहद के बाद सुन्न हो चुकी उंगलियों से सिर्फ एक ही पहन पाया, इतनी उंचाई पर यह ख्याल ही नहीं आया कि दूसरा क्रैम्पोंस भी पहनना होता है, अगर ख्याल आता भी तो मेरा हाइपोथारामिया के घेरे में आना तय था । एक पैर में क्रैम्पोंस और एक हाथ में डंडे के सहारे धीरे-धीरे लेकिन सुरक्षित मैंने नीचे उतरना शुरू किया । 

ऊपर चढ़ते हुए इतना डर नहीं लगा जितना उतरने में लगने लगा, यह वह वक्त था जब आपके पास कुछ न होते हुए भी आप अपनी वसीयत लिखना चाहते हो । कई बार काल का ग्रास बनते-बनते बचा, गिरा, उठा और सम्भला । 15 मिनट बाद पिछली पार्टी मिली, गाइड और ट्रैकर रोपअप हैं और दोनों क्रैम्पोंस व आइस-एक्स से लेस हैं । दोनों ने मुझे मुबारकबाद दी और आगे के मौसम की स्थिति पूछी । बेशक मौसम ऊपर भी यहां जैसा ही था लेकिन फिर भी मैंने पूरे होशोहवास में प्रेरणादायक शब्द कहे, “ऊपर मौसम साफ़ है और 15 मिनट का रास्ता रह गया है”, सुनकर ट्रैकर ने गहरी सांस छोड़ी मानो वह सुनना चाह रहा हो कि मुझे नीचे कौन ले जायेगा?  । 

उनके क्रोस करते ही मैं गिरा और पांच फीट नीचे लुढ़का, यमराज की हंसी सुनाई देने लगी, अगर धुंध न होती तो शायद दिख भी जाता । “राशिफल के हिसाब से आज तुलाराशी वालों पर मौत का संकट नहीं है”, सोचकर मैंने हिम्मत करी और एक पत्थर को पकडकर खुद को खाई में गिरने से बचा लिया लेकिन मेरा साथी ‘डंडा’ छुटकर सीधा खाई में विलीन हो गया । “रेस्ट इन पीस ब्रो” बोलकर मैं आगे बढ़ा ।

नीचे उतरते हुए मैं सोच रहा था कि बाकी देवपुरुष कहां रह गये जिनमें एक देवमहिला भी शामिल थी । बाद में पता चला कि उन्होंने रेडियो पर सुनी ‘मन की बात’ से उत्तेजित होकर स्टोक कांगड़ी आना तय किया था जिसकी वेलिडिटी शोल्डर पहुंचने से पहले ही छीन-भिन्न हो गई ।

शोल्डर से नीचे बर्फ का बड़ा पैच आया जिसपर मैं फिसलकर तेज गति से नीचे उतरने लगा और जल्द ही ग्लेशियर पर पहुंच गया । अब तक हो चुके उजाले ने सिद्ध किया कि अंधेरे में ग्लेशियर ज्यादा डरावना लगता है । ग्लेशियर के बाद आया रॉक गार्डन जहां कोई फिक्स ट्रेल नहीं थी, परन्तु थोड़ी-थोड़ी दूर कैरेन रखे थे जिहोने मुझे माईलेज बढाने में मदद करी । 

घड़ी में बजते सवा नो को देखते हुए मैंने तय कर लिया कि बेस कैंप 10 बजे से पहले पहुंचना है । समिट की ख़ुशी ने पैरों में पहियें लगा दिए और अंतत मैं बेस कैंप 09:48 पर पहुंचा । 

गौरव, नूपुर, बागी-4, कल्याण, सूर्या और बाकि अन्य लोगों ने मुझे मुबारकबाद दी, पर्वत ने मुझे मुबारकबाद दी । 

तो आकड़ें यह रह रहे कि रात 2:34 पर शुरू करके 5 घंटे 21 मिनट में 07:13 पर स्टोक कांगड़ी के टॉप पर पहुंचा और 01:52 मिनट में टॉप से नीचे आ गया, बेस कैंप से बेस कैंप कुल दूरी 10.01 किमी. रही और 1147 मी. का हाईट गेन हुआ । अगर मौसम साफ़ होता तो कुल समय को लगभग सवा घंटा कम किया जा सकता था । 


3 guys did stok kangri own their own only in 5540 INR. Rohit kalyana www.himalayanwomb.blogspot.com
स्टोक कांगड़ी समिट के ट्रैकिंग आंकडें व खर्चा

क्रैम्पोंस लौटा दिए गये, गीला टैंट रकसैक में पैक हो गया, जल्द ही हल्का नाश्ता करके हम तीनों ने बेस कैंप सुबह 11:26 पर छोड़ा । कल मौसम साफ रहेगा तो बागी-4 समिट अटेम्प्ट करेगा, ‘आल द बेस्ट व किप इन टच’ जैसे शब्दों से हमने बागी-4 की हौसलाअफजाई की । 

बेस कैंप का कुल खर्चा 2130 रु. रहा । वापसी में हम 40 मिनट में मनकर्मों, 56 मिनट में चांगमा और सवा घंटे में स्टोक गांव पहुंचने में कामयाब रहे । और इस प्रकार हमारी पहली 6000 मी. की यात्रा सकुशल सम्पन्न हुई । लेह से लेह तीनों का तीन दिनों का खर्चा 5445 रूपये रहा, प्रति व्यक्ति 1815 रु. । टॉप पर फोटो न खींच पाने का दुःख हो सकता है मुझे दोबारा प्रेरित करें 6000 मी. पर जाने के लिए तब तक के लिए स्टे ट्यूनड । 


3 guys did stok kangri own their own only in 5540 INR. Rohit kalyana www.himalayanwomb.blogspot.com
स्टोक कांगड़ी पीक का उंचाई का नक्शा व अन्य जानकारी (Created by नूपुर सिंह)


3 guys did stok kangri own their own only in 5540 INR. Rohit kalyana www.himalayanwomb.blogspot.com
खर्चे की जानकारी

और कुछ वापसी के चित्र :

3 guys did stok kangri own their own only in 5540 INR. Rohit kalyana www.himalayanwomb.blogspot.com
मनकर्मों

3 guys did stok kangri own their own only in 5540 INR. Rohit kalyana www.himalayanwomb.blogspot.com
मनकर्मों से दिखती स्टोक कांगड़ी

3 guys did stok kangri own their own only in 5540 INR. Rohit kalyana www.himalayanwomb.blogspot.com
स्टोक बेस कैंप पर फैली फूलों की चादर

3 guys did stok kangri own their own only in 5540 INR. Rohit kalyana www.himalayanwomb.blogspot.com
चांगमा की ओर (PC: नूपुर सिंह)

3 guys did stok kangri own their own only in 5540 INR. Rohit kalyana www.himalayanwomb.blogspot.com
एंटी हरियाली दृश्य (PC: नूपुर सिंह)

3 guys did stok kangri own their own only in 5540 INR. Rohit kalyana www.himalayanwomb.blogspot.com
कहीं चांगमा और मनकर्मों के बीच (PC: नूपुर सिंह)

स्टोक कांगड़ी पीक की जी.पी.एक्स. फाइल (GPX) का लिंक

Comments

  1. Bahut Bahut badhai ho apko.. wishing you many more successful summits in future..

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुभकामनाओं का स्वागत है राजीव जी...

      Delete
  2. Replies
    1. शुक्रिया महेश जी, पहाड़ आप पर कृपा बनाये रखें ।

      Delete
  3. बहुत बहुत शुभकामनाएं भाई छे हजारी बनने की

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद शर्मा जी, कभी-कभी लगता है आपका सम्बन्ध कपिल शर्मा से है ।

      Delete
  4. बहुत बहुत शुभकामनाएं भाई छे हजारी बनने की

    ReplyDelete

Post a Comment

Youtube Channel