एक बार फिर हनुमानगढ़ (Once Again Hanumangarh)

22-अगस्त-2019
माउंट त्रियुंड की अपार सफलता के बाद अपने हौसले बुलंद थे । हमने इतने फोटो और वीडियोज इकठ्ठा कर लिए थे कि अब 25 साल तक सोशल मीडिया पर रायता फैलाने से हमें कोई नहीं रोक सकता और अब वक्त था इसे आसमानी ऊँचाइयों पर ले जाना का। त्रियुंड से उतरते ही हम दोनों ने एक साथ पाऊट अंदाज में कहा “चलो हनुमानगढ़”।

हनुमानगढ़ मंदिर 3080 मीटर

समय न गंवाते हुए एक बार फिर हम काँगड़ा घाटी में स्थित बीड़ की धरती पर खड़े थे, ऊपर पैराग्लाइडर मंडरा रहे थे और नीचे टूरिस्टों में अफरा-तफरी का माहौल था । हमने एक रात प्रत्युष ठाकुर के साथ बितायी, शाम को 500 मीटर का वाक किया जिसने हमें अगले टारगेट के लिए पूरी तरह अक्लमटाईज कर दिया। छिना जोत से आते नाले के साथ हमने ढलते सूरज को निहारा और प्लान के मुताबिक कल के बेहद दुर्गम ट्रैक के लिए सभी चीजें तैयार कर ली ।

वो 5 नवम्बर 2018 था जब मैं आखिरी बार हनुमानगढ़ गया था, उस वक्त मुझे लगा था कि अब वापस नहीं आ पाऊंगा यहाँ लेकिन रशियन फ्रेंड की भविष्यवाणी सच हो गयी। मैं फिर से तैयार था चलने को, उड़ने को, हनुमानगढ़ और धौलाधार की बातचीत सुनने को । अगली सुबह हमें देर हो जाती है निकलने में ।

ट्रैक पर हम तीन हैं, मैं (हिमालयन वुम्ब कम्पनी का सी.ई.ओ), झाड़सा गाँव के पूर्व-सरपंच श्रीमान विश्वास सिन्धु जी और द्रोणाचार्य अवार्डी मिस्टर प्रत्युष ठाकुर । हम इस प्रकार निकले सज-धज कर मानो लड़की देखने जा रहे हो। ट्रैक शुरू होता है और पहले एक किमी. में 2 किमी. लम्बी जीभ बाहर निकल आती है । ठाकुर साब की रफ्तार बुलेट ट्रेन से भी तेज है, सिन्धु साब चल रहे हैं या नहीं ये बता पाना मुश्किल टास्क है और अपने तो बतासे पहले 200 मीटर में ही फूट चुके थे ।

बाड़ी पार करने के बाद 

धूप है, दूर धौलाधार है, चीड़ में लिपटी लीच हैं और थकावट बेहिसाब है । हम बाड़ी गाँव क्रोस कर चुके हैं और गद्दी डेरे की तरफ इतनी तेजी से बढ़ रहे हैं मानो गद्दियों ने हमारे सम्मान में चाय-फैन की व्यवस्था कर रखी हो । चलते हुए ढाई किमी. हो चुका है और अब तक हमने 5 से ज्यादा बार जूतों को व कपड़ों को उतारकर चैक कर लिया है, सभी जौंक से भयभीत हैं कि पिछवाड़े में न घुस जाये ।

प्रत्युष लीच ढूंढते हुए जबकि विश्वास "हाउ टू गेट रीड ऑफ़ लीच" गूगल करते हुए 

लीच चेकिंग पार्ट - 02 

डेरा मुख्य पगडंडी से लगभग 100 मीटर दूर है, अपन निराशा में डूब गये हैं, ऐसी फिलिंग आ रही है जैसे गद्दियों ने धौका दिया हो । अब सभी ख़ामोशी से चढ़ाई चढ़ रहे हैं, धीरे-धीरे धुंध आ चुकी है अब हमें एक-दूसरे की सिर्फ आवाज ही सुनाई दे रही है, “100-200 ज्यादा ले लो गढ़ के टॉप पर लैंड करा दो”, प्रत्युष का बोलना है जिसपर झाड़सा गाँव के पूर्व-सरपंच का कहना है “चाहे तो मेरा दूध निकाल लो लेकिन चाय पिला दो” । 2600 मीटर पर ऐसे वाक्य मुंह से निकलने पर ऐ.एम्.एस. को गाली देना महापाप माना जायेगा ।

भौत ऊपर, धुंध ही धुंध 

कई छोटे-बड़े बोल्डरों को चढ़कर ठाकुर साब ने “फ्री सोलो” का फील ले लिया, बाकी हममें तो मानो साक्षात् ऐलेक्स की आत्मा ही आ चुकी थी । 2750 मीटर तक पहुंचते ही ओले शुरू हो जाते हैं, कच्छे और बनियान में मेरा ऐलेक्स भीग जाता है, ठाकुर साब रेन जैकेट लाये हैं वहीँ विश्वास के पास गदरीले पेट के रूप में अतिरिक्त पॉवर बैंक है। ओले और बारिश तक ठीक था लेकिन जैसे ही ऊपर से बिजली गिरनी शुरू हुई वैसे ही नीचे से अपनी फटनी शुरू हो जाती है मानो जंगल में घुसी लीचें अब बाहर निकलने की तैयारी कर रही हों ।

देसी मकड़ामानव 

झाड़सा गाँव के पूर्व सरपंच अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए 

तीनों खतरनाक तरीके से भीगे हैं लेकिन काँप बस मैं ही रहा हूँ, थैंक्स टू कुलदेवता पीटर जिनको देखकर अपुन ने कच्छे-बनियान में ट्रैक करने की प्रेरणा ली । हम गढ़ से शायद 200 मीटर दूर हैं, यहाँ तक तीनों अपना सबकुछ खर्च कर चुके हैं। “यहाँ से तीनों एक साथ आगे चलेंगे” बोलकर हम फिर से कुदरत ले लोहा लेते हैं । जूते कीचड़ से कीचड़मयी हो चुके हैं, हर 30 सैकेंड बाद गिरती बिजली ने तीनों के दिलों में “दिल्ली के स्मोग” जैसा डर फैला दिया है ।

भारी बारिश से जूझते हुए सिन्धु साब 

दोपहर डेढ़ बजे तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए हम हनुमानगढ़ शिखर पर खड़े हैं, यहाँ की ऊँचाई 3080 मीटर है। बारिश और ओलों का कहर अभी भी जारी है, ठण्ड से अपनी आत्मा भी कांपने लगी है । यहाँ कुछ और भी लोग हैं जो पास ही किसी बोल्डर के नीचे छुपे हुए हैं । अब एक ही टारगेट है छिना पास पहुंचना जहां चाचू होंगे और गर्म चाय होगी लेकिन उससे पहले हमें भागना होगा ताकि शरीर को कुछ गर्मी मिल सके । सिर्फ 5 मिनट ऊपर रुकने के बाद ही हम नीचे भागने लगते हैं, हम मतलब सिर्फ मैं ।

ठाकुर साब की खास फरमाईश पर फोटो को धुंधला कर दिया गया है 

गिरती बिजलियों से बचते-बचाते पहुंचे शिखर पर 
कहाँ तो साफ मौसम का सपना लेकर घर से निकले थे और अब देखो कडकडाती बिजली के बीच तीनों सुध-बुध खोकर ऐसे भाग रहे हैं जैसे मोबाइल पापा के हाथ लग गया हो। साफ़ मौसम में यहाँ से थम्सर पास, बड़ा ग्राम, कोठीकोड, लंधा किन्नौरी, घोडालोटनू, भगमच्छर आदि स्थान दिखाई देते हैं ।

नजारों के नाम पर बस यही हाथ लगा 

उतरने में हम इतनी बार गिरते हैं मानो पिछवाड़े की कमांडो ट्रेनिंग चल रही हो। कीचड़ इतनी ज्यादा है कि अपने ही कदमों पर विश्वास होना बंद हो गया। थोड़ा नीचे उतरकर एक डेरा आता है जोकि पूरी तरह खाली है। अगला पड़ाव सतबहनी माता का मन्दिर है जो जंगल के बीच अकेला खड़ा है मानो पहाड़ों की रक्षा कर रहा हो । मन्दिर से थोड़ा नीचे सराय आती है और फिर बिलिंग-राजगुन्दा रोड पर स्थित छिना जोत जो बीड को छोटा भंगाल से जोड़ता है ।

चाचू अपनी टपरी में ही मिलते हैं, चाय-मैगी और पारले-जी बिस्कुट का सेवन हो रहा है जिसपर जलती आग इस मजे को दुगना कर रही है। अगला बहस का मुद्दा यह है कि यहाँ से गुन्हेड़ चलते हैं जोकि एक अच्छा आईडिया है क्योंकि यह रास्ता हमें लगभग डेढ़ घंटे में नीचे उतार देगा जबकि अगर बिलिंग से जाते हैं तो यहाँ से लगभग सवा घंटा बिलिंग तक ही लगेगा फिर उसके बाद गाड़ी का वेट करो बीड़ के लिए ।

चाचू, चाय और छिना जोत 

मेरी कांपती टांगों को देखकर सभी “मन की बात” कहते हैं “बिलिंग से चलेंगे । प्रत्युष दौडकर निकल जाता है मैं और विश्वास साथ चल रहे हैं लेकिन तेज कदमों के साथ । अब तक बारिश काफी हलकी हो चुकी है, हम गो-नाले को निहारते हैं और दूसरी तरफ ढलते सूरज की रौशनी को देखना अपने आप को नयेपन के हवाले करने जैसा है ।

बिलिंग में हम चाय पीकर काफी देर गाडी के इंतजार करते हैं, पूरा एक घंटा यहाँ बिताकर हम आखिरकार हम बीड़ पहुंच जाते हैं । तो इस प्रकार एक और बार हनुमानगढ़ का ट्रैक सकुशल सम्पन्न होता है ।

सतबहनी मंदिर 

मैलोडी खाओ खुद जान जाओ 

चीड को भेदती कटीली हंसी

ठाकुर साब अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए 

दिल्ली के स्मोग और पहाड़ों की चढ़ाई पर हाल एक जैसा हो जाता है 


कभी छिना जोत जाओ तो जरुर मिलना इनसे, इस बंदे में किसी की बकेट लिस्ट में शामिल होने के पूरे गुण हैं 

नीचे दीखता बिलिंग 

बिलिंग से 

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