जब मैंने कोंकर किया माउंट त्रियुण्ड को (When I Conquered Mount Triund)

20 सितम्बर 2019
हेलो फ्रेंड्स, वन्स अपॉन ऐ टाइम बिना माउंटेंस कॉल के हम हिमाचल प्रदेश निकल गए थे अकेले, ऑल अलोन विद फ्यू रशियन गर्ल्स। बाद में दोस्तों ने धिक्कारा कि "फेसबुक के जमाने में तुमने न फोटो डाला और न ही चेक इन किया, ये तो फेक ट्रिप है,  बिल्कुल माना नही जाएगा, थू है तुमपे"। फोटो तो हमने खींचे नहीं थे हाँ रशियन गर्ल्स ने जरुर खींचे थे। कई सालों तक रह रहकर यह टीस उठती रही मन में कि फोटो ना खींचा पाया।

त्रियुंड ट्रेक 

अंतत 20 सितम्बर को हमें दोबारा माउंटेंस से कॉल आया, इस बार वाला एकदम असली था, खरा सोना। पहले मैं टूरिस्ट बनकर घूमने जाता था पर जबसे सोशल मिडिया से जुड़ा हूँ तबसे ट्रेवलर बनकर ही घर से निकलता हूँ, थैंक्स टू फेसबुक मेरी आँखें खोलने के लिए ।

इस ऐपिक जर्नी में अपने सहभागी रहे बन्दरलस्ट पार्टी के एक्स-सरपंच ‘विश्वास सिंधु’। कई दिन सर्वे ऑफ इंडिया के नक्शे  खंगालने के बाद हमने कई एक्सपर्ट्स से भी सलाह ली, एक मित्र जो आजकल बीड़ में रह रहे हैं उनका कहना था कि "गाइड, क्रेमपॉन्स और आइस एक्स के बिना जाना मौत को दावत देना होगा"। उनकी इस सलाह पर कई दिन विचार करके अंतत हम धर्मशाला पहुंच ही गए। सस्ता रूम ढूंढने के प्रयास में पूरा एक घंटा लग जाता है, अपने बारगेनिंग स्किल्स यहाँ खूब काम आये, 1249 रूपये का रूम हमने 1200 रुपये में हथिया लिया । रूम में अब हम तीन लोग बैठे हैं, पहाड़ों वाला अपनी उपस्थिति से हमें वशीभूत करता है, ये वही बंदा है जिसके तीन नाम हैं।

धर्मशाला

"ग्लू से जाओ ज्यादा आसान रहेगा", ये पहाड़ों वाला के बोल हैं। "कोई ऐसा रास्ता बताओ जहां से हम रास्ते मे फंस जाएं या जहां जंगली जानवर हमपर अटैक कर दें", बोलकर सिंधु साब मेरी ओर देखते हैं। अब हम अमिताभ बच्चन तो हैं नहीं कि ऐसे ब्यानों के बाद यह बोले कि "अब बोल ही दिया तो देख लेंगे", फिर भी हम "एडवेंचर में सब जायज है" बोल देते हैं।


अगले दिन महा माउंट त्रियुण्ड ट्रैक सुबह 7 बजे इन्द्रूनाग मन्दिर से शुरू होता है। अब दो सोलो ट्रेवलर अकेले निकले हैं हिमालय के अति फेमस ट्रैक पर। यह वही ट्रैक है जहां पिछले साल एक लड़का कई दिनों तक फंसा रहा था। एक-दो गावों को कोंकर करते हुए पहले एक घंटे में हम सेल्फी लेने का विश्वकीर्तिमान स्थापित करते हैं।
यहां के घरों को देखकर यहीं रह जाने का ख्याल, मिट्टी के घरों की सुंदरता, ऊंचे-ऊंचे हरे खड़े पेड़, बर्फ से लधी धौलाधार पर्वत श्रृंखला के नजारे आत्मा को शुद्ध कर रहे हैं, सहसा मुंह से निकल जाता है "मैं शहर से नहीं बल्कि पहाड़ों से बिलोंग करता हूँ"। मैं और विश्वास इस अप्रितम दृश्य को देखकर अब तक खुदको भूल चूके हैं, यहां पूरे 300 क्लिक किये जाते हैं 450 एमबी के और 2 विडिओ 3 जीबी के। हमने जो देखा उसका फोटो खींच डाला और जो नहीं भी देखा "उसी का तो खींचने आएं हैं"।





अब तक चढ़ाई ने हमारी सारी बन्दरलस्टी को चकनाचूर कर दिया है। इतनी तीखी चढ़ाई है कि अब हमें हमारे दोस्त की बात याद आ रही है जिसने गाइड और बाकी के माउंटेनियरिंग गियर्स साथ ले जाने की बात सुझाई थी । रास्ते मे एक ग्रुप मिलता है जो हो-हल्ला करता चल रहा है, जिन्हें देखकर हमारा यही कहना है "नेचर को ऐसे ही लोग गन्दा करते हैं"। रास्ते में हमें प्लास्टिक रेपर, बोतल मिलते हैं...जिन्हें हम नहीं उठाकर अपने जिम्मेवार पर्यटक होने का परिचय देते हैं, कचरे का फोटो खींचकर आगे निकल जाते हैं, बाद में इन फोटोस का इस्तेमाल सोशल मिडिया पर किया जायेगा लाइक्स और कॉमेंट्स पाने के लिए ।




तरह-तरह की अटकलों के बावजूद हम माउंट त्रियुण्ड पहुंचने में कामयाब होते हैं। इनक्रेडिबल माउंट त्रियुंड को कोंकर किये हुए 5 मिनट बीत चुके थे, विश्वास के भाव-विभोर चेहरे को देखकर मुझे सर एडमंड हिलेरी याद आ गयी, सेल्फी लेते वक्त खुद भी मैंने जबरदस्ती सर तेनजिंग नोर्वे टाइप को फील किया। हम उस स्थान तक नहीं जाते जहां टेंट लगे हैं...कारण "हम बन्दरलस्ट हैं और हमें भीड़ से सख्त नफरत है लेकिन ट्रेक हमेशा ग्रुप में करते हैं और हम फेसबुक पर अकेले पाएं जाते हैं"।

वैसे ‘खास त्रियुंड’ तक न जाने का एक कारण वहां फैली महंगाई भी है, सुना है महंगाई इतनी ज्यादा है कि पैसे चुकाने के बाद भी जीएसटी के लिए टूरिस्ट के मुंह को निशाना बना लेते हैं, अच्छा है हम तो ‘सोलो ट्रेवलर’ हैं। एक बार हम इजराइल की शीतकालीन राजधानी ‘खीरगंगा’ गये थे जहाँ की महंगाई देखकर हमने सरकार से पर्यटकों के लिय सब्सिडी और एक सर्जन की डिमांड भी थी, ताकि भुगतान किडनी के रूप में भी किया जा सके ।

एक्स-सरपंच साब 

युवाओं से अनशन तोड़ने की अपील करते हुए सिन्धु साब 

भालू से बचने की अनोखी कला का प्रदर्शन करते हुए 

बेरहम सरकार 

यहाँ की ऊँचाई 2721 मीटर है, ये हम दोनों की जिन्दगी का अबतक का सबसे टफेस्ट ट्रेक था, थकावट में मुझे हेल्यूशनेशन हो रहे हैं, कभी दिल्ली मेट्रो तो कभी ओर्गेजम जैसी फिलिंग आ रही है । चट्टानों के पीछे से किसी जानवर की आवाज आ रही है, अब तक हम वापस भागने की योजना पर विचार कर चुके हैं कि तभी दो गाय रंभाती हुई सामने आती हैं । उफ्फ....हम बन्दरलस्ट किसी भी जानवर को भालू मान लेने की कला में कितने निपुण हो चुके हैं।

यहां तक पहुंचने में पसीना कनपटी से लुढकर घुटनों तक पहुंच जाता है वाया लोकी का अंडरवियर। अब तक नजारों का नशा छू हो चुका है, मुंह से "उई माँ" के अलावा कुछ और निकल ही नहीं रहा है। कभी मैं विश्वास को तो कभी अपने सूजे हुए पैरों को देखता हूँ । दोनों के चेहरे थकावट और सेल्फी ले ले कर देवगौड़ा जैसे हो गए हैं। आखिर के 20 मिनट हम मौन रहकर बीताते हैं, इस दौरान सिर्फ मोबाइल कैमरे से लगातार क्लिक की आवाज आती रही।

अब उतराई है, हर कदम सम्भाल कर रखा जा रहा हैं फिर भी टांगें हमारे कंट्रोल से बाहर हो चुकी हैं, एक टांग पत्थर पर दूसरी बिच्छू बूटी पर गिर रही है, एक्स-सरपंच साहब कटीली झाड़ियों पर गिरकर पिछवाड़े को पहले ही परम आनंद के हवाले कर चुके हैं । इसे रियल एडवेंचर बोलकर आखिकार हम इन्द्रूनाग मन्दिर पहुंचते हैं, यहां कुछ लाख सेल्फियों के बाद हम खुदको गाड़ी द्वारा होटल तक पहुंचाते हैं। अब इन फोटोज का इस्तेमाल सोशल मीडिया पर तब तक किया जायेगा जब तक तरुण गोएल की अगली किताब प्रकाशित नहीं हो जाती।

घर वापसी की ओर

तो फैन्स कैसा लगा आपको हमारा ये रियल सोलो बैकपैकर ट्रिप?, कमेन्ट के माध्यम से जरुर बताएं ।
आशा करता हूँ हैश टैग्स पर भी ध्यान दिया जायेगा ।

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येस, वी डीड इट

उतराई में टांगों का आयताकार होना तय है 

अनशन तोड़ने का एक और बेअसर प्रयास 




नीचे धर्मशाला शहर 






Comments

  1. माउंट त्रिउंड को सफलतापूर्वक फतह करने पर आप दोनों सोलो ट्रेकर्स को दिल से मुबारकबाद रोहित भाई

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  2. बाकी सब ठीक है पर #pkmkb इस पोस्ट को काफी फेमस कर देगा

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    1. एक शरलॉक होम्स तो है आपमें भी।

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