31-जुलाई-2019
कसोल से चलकर सर पास पहले ही क्रोस किया जा चुका है, लगातार 2 दिन चलते हुए हम दो लोग मानतलाई झील पहुंचे जहाँ गद्दी न मिलने पर भूखे ही सोना पड़ाता है । आगे बड़ा ग्लेशियर है, कमर तक गहरे नाले हैं और ऊपर से तेज बारिश है । भारी ठण्ड और भूख के बीच हम पार्वती के महा ग्लेशियर को पार करके पिन पार्वती पास पहुंचते हैं जहाँ से आगे का समस्त रास्ता ग्लेशियर में दबा है । पार्वती के बाद पिन नदी रास्ता रोकती है, जानें आगे की कहानी ।
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पिन पार्वती पास ट्रेक 2019 |
Day 05: मानतलाई झील से मानतलाई कैंप (बेस कैंप से 2 किमी. पहले)
हम मानतलाई झील से आगे हैं, दो कूल ड्यूड यहाँ अकेले हैं थ्री मेन टेंट में । पिछले कल कच्ची मैगी खाकर सोते हैं, कल शाम से शुरू हुई बरखा अभी भी जारी है । सुबह के 7 बजे हैं और बाहर सिवाय धुंध के कुछ नहीं दिख रहा है । हम स्लीपिंग बैग में लेटे-लेटे पिन पार्वती पास को पार कर रहे हैं । सबसे बड़ी आफत है गीले टेंट को पैक करना, रकसैक में जाते ही गीला टेंट स्लीपिंग बैग के साथ-साथ 2 जोड़ी कच्छों को भी भिगो देगा । दोनों के चेहरे ऐसे हो गये हैं जैसे फंगस लग गया हो, सवा सात बजे आगे बढ़ने का निर्णय करते हैं, यहाँ तो कोई गद्दी नही है लेकिन ऊपर जरुर है उसके मिलने पर चाय पीकर पीपीपी क्रोस कर देंगे आज ही । मानतलाई झील के थोड़ा आगे से शुरू हुए नीले पेंट के निशान अब एक-डेढ़ किमी. तक चलने के बाद समाप्त हो जाते हैं ।
केचुआ का पोंचो लिया था इस ट्रेक से पहले जिसने बारिश से ज्यादा भिगो दिया । बारिश बेरहम है जिसपर मुश्किल यह है कि 50 मीटर बाद ही एक उफनता नाला पार करना है जिसके साथ ही घुटने का सोया दर्द फिर से जाग जाता है । अबतक जूते और पैंट रकसैक पर बंध चुकी है, इस नाले को 2 साल पहले सफलता पूर्वक पार किया गया था लेकिन इस बार तेज बारिश ने इसे उत्तेजित कर रखा है, आवाज इतनी तेज है जैसे बोल रहा हो “एक की बली लगेगी” । यहाँ से नहीं वहाँ से, थोड़ा आगे जाते हैं जैसे शब्द हम अनर्गल बक रहे हैं, ज्यादा समय नहीं है अपने पास क्योंकि पिन पार्वती भी आज ही पार करना है । हम एक विडियो रिकॉर्ड करते हैं जिसमें आजतक का सबसे बेहतरीन मोटिवेशन ब्यान जारी किया जाता है, “जिन्दा लौटे तो..बेस्ट ऑफ़ लक फॉर अस”।
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इसे नदी बोलना ज्यादा उचित होगा |
एक-दूसरे का हाथ पकड़कर हम पानी में घुस जाते हैं, अगले 4 कदमों बाद पानी कमर तक आ जाता है । मुझे कच्छे के भीगने का डर है, नवीन को शायद बह जाने का । अब हम खड्ड के बीच में हैं और पानी कच्छे के बाद दिल्ली-6 की गलियों को चीरता हुआ नाभि तक पहुंच जाता है, हम जल्दबाजी करते हैं और नवीन बहने लगता है, वो तेज बहाव की चपेट में आकर मेरे पीछे पहुंच जाता है, मैंने उसका हाथ और कसकर पकड़ लिया, अगले 3-4 कदमों में यह मौत का नंगा नाच समाप्त होता है । नवीन के पैर की ऊँगली घायल हो गई है जिससे खून बह रहा है, भीगने की वजह से हमारा हाल दुम कटे सांप का हो गया है ।
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बेस कैंप का रास्ता इस प्रकार है |
बिलकुल 8 बजे फिर से पैरों पर आ जाते हैं, अब आगे चढ़ाई और ग्लेशियर है । नवीन का हाल पूछता हूँ, “ठीक हूँ भईया”, बोलकर वो पीछे-पीछे चलने लगता है । नाला पार करने के बाद मुझे वो काफी डाउन महसूस हो रहा है, मुझे निमोनिये का डर सता रहा है । हम थोड़ी-थोड़ी दूर रुककर पानी पीते हैं और एक-दूसरे का हाल पूछते हैं । नवीन कहता है कि “बाल-बाल बचे”, जिसपर मेरा कहना है कि “मुझे दिक्कत पानी में बह जाने की नहीं है लेकिन 2500 रूपये में एक तोला माल कौन देता है वो भी नकली” ।
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पार्वती ग्लेशियर पर स्थित झीलें |
अबतक बारिश काफी धीरे हो चुकी है, कहीं-कहीं से बादल छंटते हैं तो पार्वती ग्लेशियर पर स्थित रंग-बिरंगी झीले दिखाई देती हैं । आज हर साँस के साथ सिर्फ एक ही आवाज आ रही है “बस गद्दी मिल जाये” । और 55 मिनट की तूफानी चढ़ाई चढ़ने के बाद पहाड़ों के रखवाले मिल ही जाते हैं । आग के पास बैठकर म्यूच्यूअल एग्रीमेंट साइन हो जाता है कि “आज यहीं रुकेंगे” । दोनों गद्दी बैजनाथ के रहने वाले हैं, एक का नाम सोहनसिंह और दूसरे का धर्मचदं है, सोहनसिंह बताते हैं कि कल ऊपर से हमने तुम दोनों को देखा था जिसपर हम भी उन्हें यही बताते हैं ।
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इतनी ख़ुशी की आदमी मर जाएं |
गर्मागर्म चाय पीने के बाद दोनों के शरीर में ताकत आती है । धर्मचंद के मुंह से बात कम और गाली ज्यादा निकलती हैं, कुछ देर बाद वो बकरियों को लेकर चला जाता है, भेडूओं की देखबाल सोहनसिंह के हाथ है । सोहनसिंह बताते हैं कि वो एक बार मुद गया था सिर्फ यह देखने की वहाँ का इलाका दिखने में कैसा है । “बहुत से बाबाओं से मिला हूँ जिनमें अरुण बाबा और रशियन बाबा खास हैं, और ये टुंडा भुज वाला तो चोर है” । दो दिन पहले एक नेपाली लडकों का ग्रुप निकला यहाँ से, रोटियां उन्होंने यहीं बनाई थी, बीच-बीच में पाल ने मोदी जी की भी खूब तारीफ की । यहाँ सबकुछ ठीक है लेकिन लकड़ियाँ उड़ी थाच से लानी पडती हैं इसलिए हम यहाँ सिर्फ 15 दिन ही बैठते हैं, अब 5 दिन बाद नीचे जाना शुरू कर देंगे ।
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गद्दियों के धन |
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गद्दी डेरा |
दोपहर सोहनसिंह हमने दाल-रोटी बनाकर खिलाता है, स्वाद इतना कि नापा न जा सके । पूरा दिन हमारा आसपास घूमने, फोटो खींचने और गीले कपड़ों को सुखाने में निकल जाता है । हम डेरे के पीछे ही अपना टेंट लगा लेते हैं । शाम को देर रात तक बात होती है, घड़ी तापमान 3.5 डिग्री और ऊँचाई 4251 मीटर दिखाती है । डिनर में चावल, दाल और रोटी खाकर हम 9 बजे लम्बे हो जाते हैं । खराब मौसम की मार अभी तक जारी है, गद्दियों का कहना है कि कल मौसम साफ हो जायेगा और यहाँ से 3 घंटे में तुम लोग पास क्रोस कर लोगे ।
आज हम सिर्फ 2.5 किमी. चले जिसमें 117 मीटर का गेन हुआ, गद्दी डेरा 4251 मीटर की ऊँचाई पर है ।
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लेफ्ट वाले सोहनसिंह और राईट वाले धर्मचंद |
Day 06: बेस कैंप से 2 किमी. पहले से केदारचा (पिन वैली)
टेंट का गेट खुलते ही आज भी वही दृश्य रिपीट कर रहा है जो कल था, हल्की बरिश है और कोहरा ही कोहरा । मुझे कल कही गद्दियों की बात पर विश्वास था कि मौसम साफ हो जायेगा लेकिन हम पिन पार्वती पास के बिलकुल नजदीक हैं, कुछ घंटे का जोर और हम पहुंच जायेंगे पिन वैली में । सात बीस तक हम अपने मुर्दा चेहरों के साथ जीवित होने का नाटक करते हैं, मन कर रहा है सुपरमैन आये और दोनों को उठाकर पास पर लैंड करा दें, इस वारदात के लिए हम उसे 100-200 फालतू देने को भी तैयार हैं” ।
मसीहाओं के पास जाते हैं दोनों ने अपने टेंट में बीड़ी का धुंआ ही धुंआ कर रखा है । “आओ चाय पियो”, सोहनसिंह के शब्द कानों में पड़ने के बाद हम चाय पीने लगते हैं । खराब मौसम पर हम चिंता जताते हैं जिसपर सोहनसिंह का बोलना है “परे मौसम साफ होगा, यहाँ भी ज्यादा बारिश नहीं होती बस ये कोहरा बहुत परेशान करता है” । धर्मचंद हिंदी जानता है लेकिन वो डायरेक्ट हमसे बात नहीं करता, बीडियों और गलियों का दौर आज भी पूरे शबाब पर है, वो हमें ऐसे देखता है जैसे भेडूओं को देख रहा हो ।
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बेस कैंप की ओर बढ़ते हुए |
कोहरे और हल्की बारिश के बीच हम 08:05 पर गद्दियों से विदा लेते हैं । अगर मौसम साफ होता तो यहाँ से हमें कोकशेन, गुशु पिशु पीक, साउथ पार्वती और कुछ अननोन पीक भी दिखाई देती । हर कदम के साथ मुझे सारा रास्ता ऐसे याद आ रहा है मानो दो साल पहले किया ट्रेक कल की ही बात हो । मानतलाई झील के बाद शुरू हुआ रॉक गार्डन बेस कैंप तक फैला है, बीच-बीच में बने कैर्न का पीछा करते हुए हम 40 मिनट में बेस कैंप पहुंच जाते हैं । यहाँ स्थित पिघलती बर्फ पर स्थित एक स्नो ब्रिज पार करते हैं । बर्फीला रास्ता शुरू हो चुका है परन्तु अभी तक हमसे पहले गये किसी भी ग्रुप के पैरों के निशान दिखाई नहीं दिए । जहाँ से पिछली बार रोंग टर्न लिया था वहां तक रास्ते का नक्शा ज्यों-का-त्यों आज भी दिमाग में छपा हुआ है, तो उसी आधार पर हम आगे बढ़ते हैं ।
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पिन पार्वती पास बेस कैंप, आगे का रास्ता नाले के राइट साइड से है। |
गद्दियों ने बताया था कि बेस कैंप के बाद 4-5 किमी. लम्बे ग्लेशियर पर चलना होगा पास तक पहुंचने के लिए । अब हम पार्वती ग्लेशियर पर हैं, यह बर्फ, हैंगिंग ग्लेशियर, GLOF, ताजा बनी झीलों और खुली क्रिवासों से सुशोभित है । ग्लेशियर चढ़ते हुए नवीन का फिर वही कहना है “कंधें टूट रहे हैं”, जिसपर आज मेरा जवाब है “धूप निकले तो दुखते घुटने की सिकाई हो” । जैसे-जैसे आगे बढ़ रहे हैं विजिब्लिती बढती जा रही है, अब तक कुछ-एक ही क्रिवास खुली थीं जोकि ग्लेशियर पर साफ-साफ देखी जा सकती हैं ।
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हैंगिंग ग्लेशियर |
ऊपर दिखती धार पर रुकते हैं, बैठकर काजू और बादाम खाते हैं, मैं घुटने के दर्द और किशमिश न मिलने पर खज्जल हूँ । यहाँ से नजारा अद्भुत है, हमारे बाईं तरफ एक बड़ा हैंगिंग ग्लेशियर है जो ऐसे देख रहा है मानो बोल रहा हो “तुमसे ना हो पायेगा” । आगे बढ़ते ही सामने स्थित एक और पहाड़ दिखने लगता है जिस पर पिन पार्वती पास स्थित है, यही तो पार करना था पिछली बार । अभी भी पिछली टीम के पैरों के निशान नहीं दिखाई दिए हैं, हम यही अंदाजा लगाते हैं कि हवा और ताजा बर्फ़बारी में दब गये होंगे । एक और छोटे ब्रेक में हम आगे के रास्ते पर विचार करते हैं, नवीन बताये गये रास्ते पर बढ़ने लगता है, अब मैं पीछे हूँ और घुटना मुझसे भी पीछे ।
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"भैया कंधें टूट गये हैं" |
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पार्वती ग्लेशियर पर |
पार्वती ग्लेशियर पर चलते हुए तीन घंटे हो चुके हैं और आखिरकार अब हम उस स्थान पर पहुंच गये हैं जहाँ से पिछली बार अपुन ने रोंग टर्न लिया था जिसके बाद हम दो लोग 5400 मीटर की ऊँचाई पर पहुंच गये थे । लेकिन आज वो गलती नहीं होने वाली चाहे टैंट यहीं ग्लेशियर पर लगाकर पास को ढूँढना पड़े । आगे बढ़ते हैं एक छोटी काली झील दिखती है ऐसी झीलों को माउंटेन टर्मिनोलॉजी में ग्लोफ़ (GLOF) कहा जाता है । हम समय पर हैं पिछली बार यहाँ डरावनी क्रिवासों का राज था ।
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लास्ट टाइम यहीं से रोंग टर्न लिया था, पास सामने वाले पहाड़ के राईट में है |
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जोर लगा बेजोड़ |
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सामने दिख रही धार में स्थित है पिन पार्वती पास |
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GLOF |
हम पानी का घूंट लेते हैं और एक साथ दोनों की ऑंखें ऊपर धार पर स्थित पत्थर की ढेरियों पर पड़ती है । “वो रहा पास” बोलकर हम आखिरी चढ़ाई से टक्कर लेते हैं । बादल हटते तो धूप की रोशनी में दूर तक दिखाई देता, वहीँ सामने कहीं शकारोड़ पास (Shakarode Pass) भी स्थित है । धूप की गर्माहट से ग्लेशियर का आंचल पिघल रहा है, हम घुटनों के बाद कमर तक बर्फ में धसने लगे हैं । इस आखिरी चढ़ाई पर सांसें इंजन के पिस्टन की तरफ तेजी से आ-जा रही हैं । यहाँ कमर तक घुसने का एक मुख्य कारण यह है कि “चढ़ाई पर स्थित यह बर्फ का वह हिस्सा है जिसके बाद मिट्टी या जमीन शुरू हो जाती है” । मैं नवीन के बनाये निशानों पर चलता हूँ तो और ज्यादा भीतर घुस जाता हूँ इसलिए मैं फ्रेश बर्फ पर चलता हूँ जिसके बाद कई बार बर्फ पर लेटकर खुद का रेस्क्यू करना पड़ता है ।
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सामने कहीं Shakarode Pass है |
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पार्वती ग्लेशियर पर |
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आखिरी सांसें |
अगले 10 कदम चलते ही हम दोनों जिन्दगी में पहली बार पिन पार्वती पास पर खड़े हैं । हाथ मिलाकर हम एक दूसरे को मुबारकबाद देते हैं । पास पर बुद्धिस्ट झंडे हैं, पत्थरों की अनगिनत ढेरियाँ हैं और अगरबत्ती व घूपबत्ती के खाली पैकेट हैं । सभी यहाँ की ऊँचाई 5319 मीटर बताते हैं लेकिन अपने गारमिन जीपीएस डिवाइस ने यहाँ की ऊँचाई 5308 मीटर बताई । गद्दी डेरे से पिन पार्वती पास तक हमें सवा चार घंटे लग गए । वहाँ से यहाँ तक की दूरी 6.7 किमी. रही और एलेवेश्न गेन 958 मीटर रहा । इसी धार पर बाईं तरफ चलते जाएँ तो उसी अंजान कोल पर पहुंच जायेंगे जहाँ अपुन दो साल पहले पहुंच गया था, वहां की ऊँचाई 5400 मीटर है ।
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पिन पार्वती पास |
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पिन पार्वती पास |
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पिन पार्वती पास |
20 मिनट के ब्रेक के बाद पिन वैली में कदम रखते हैं, घाटी में इस तरफ भी जहाँ तक नजर जाती है ग्लेशियर ही ग्लेशियर है । भीगने और ठण्ड की वजह से घुटना बिखरने को तैयार है । हमारा उद्देश्य यह है कि वहां तक चलना है जहाँ पर गद्दी होंगे । कपिल मेहता के शानदार प्रदर्शन के बाद हम भी पिन ग्लेशियर पर खूब जोर का फिसले, इतना फिसले कि पिछवाडा आइस क्यूब बन गया ।
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पिन ग्लेशियर |
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सामने दिखाई देती पिन घाटी |
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पिन ग्लेशियर से नीचे उतरते हुए |
धुंध छटने के बाद पिन घाटी का खूबसूरत नजारा दिखाई देता है, दूर-दूर तक बर्फ से लधी पहाड़ियां हैं, नीचे हरियाली और पिन नदी के दर्शन हो रहे हैं । जितना नीचे जा रहे हैं टांगे उतनी ज्यादा बर्फ और मिट्टी में घुसती जा रही हैं । पहला नाला लम्बी छलांगों से पार हो जाता है लेकिन दूसरा जूते और पेंट उतरावा देता है, पानी भयानक ठंडा और बहने का डर उससे भी ज्यादा घातक । पिन पार्वती पास और अभी पार किये दो उत्पाती नालों की अपार सफलता का उत्साह ज्यादा देर नहीं चलता ।
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छोटा नवीन बड़े नालों से पार पाता हुआ |
हम पिन नदी की एक ट्रिब्यूट्री शाखा के सामने खड़े हैं, नदी पागल सांड की तरफ बेख़ौफ़ बह रही है । दोपहर 2:47 पर हम यहाँ खड़े हैं, दिन के इस समय पानी का बहाव और करंट पूरे चरम पर है । ज्यादा समय न गंवाते हुए हम जूते और पैंट उतारकर रकसैक पर बाँध चुके हैं, 5 मिनट में एक सुरक्षित स्थान ढूंढ लिया जाता है । यहाँ नदी के बीच में मिट्टी और पत्थर है, प्लान के मुताबिक पहला गेड़ा वहाँ तक और अगला फूल पॉवर सीधा नदी पार । मैं नवीन को एक्टिंग करते बताता हूँ कि “पानी में चार पैर रहेंगे और एक वक्त पर सिर्फ एक पैर को आगे खिसकायेंगे”, नवीन की “हाँ” में गर्दन हिलती देख मैं मन ही मन सोचता हूँ कि “इतनी प्रेक्टिस के बाद ज्यादा मुश्किल नहीं आनी चाहिए” ।
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यहाँ से आती है वो ट्रिब्यूट्री रिवर |
दोनों ने फिर से एक-दूसरे के हाथों को थाम लिया है, गहरी सांस लेकर हम नदी में घुस जाते हैं, यहाँ हाल और भी बुरा है, पहले ही कदम पर पानी घुटनों तक आ जाता है, बहने का विचार आने ही वाला था लेकिन घुटनों से चढ़ी ठण्ड ने दिमाग को सुन्न कर दिया । अब हम नदी के बीच स्थित उस स्थान पर आ चुके हैं जहाँ मिट्टी और पत्थर हैं । आगे बहाव तेज दिख है, मुझे बहने की फीलिंग आ रही हैं, नवीन का चेहरा नीला पड़ गया है । मैं बनावटी हंसी हंसने का प्रयास करता हूँ और “ट्रेनिंग याद रखो” बोल रहा हूँ ।
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इस नदी को किया था पार, फोटो से इसका उग्र स्वभाव पता नहीं चलता |
अगले कुछ कदमों के बाद हम नदी के बीच में हैं, पानी कमर से ऊपर आ चुका है । बहाव इतना तेज है कि पैर तल से उखड़ रहे हैं । सारी प्रेक्टिस बेकार हो गई है और चारों पैर एक साथ हरकत कर रहे हैं, नदी के बीच में हम अपना आपा खो बैठे हैं । शरीर सुन्न होता जा रहा हो और बह जाने का अनजाना दबाव लगातार बढ़ता जा रहा है, मैं बीच नदी नवीन को ज्ञान देता हूँ “अपने आप को सम्भालो, साँस लेते रहे, पेनिक मत होओ, बस पहुंच ही गये”, बोलकर नवीन को देखता हूँ उसका चेहरा और नीला दिख रहा है मानो बोल रहा हो “ज्ञान मत पेलो नदी पार करवाओ बस” ।
नदी पार हो जाती है, समझ नहीं आता कि ज्ञान का कमाल था या ट्रेनिंग का । दोनों की भीगी टांगे पालक की तरह काँप रही हैं मानो दौरा पड़ रहा हो । शुक्र है यहाँ धूप है, दोनों अपना-अपना मुआयना करते हैं । एकलौती सुखी पेंट गीली हो जाने का गम नवीन एक कौने में बैठकर पी रहा है वहीं मैं सिकुड़ते अंडाश्यों को देखकर उलझन में हूँ । फिर से तैयार होकर हम चल पड़ते हैं वह बात याद करते हुए जो आज सुबह हमें सोहनसिंह ने बताई थी कि “पास क्रोस करने के बाद नीचे एक नाला आयेगा उसे पार करने के लिए बहाव की विपरीत दिशा में जाना होगा, वहाँ ग्लेशियर से पार करना बेहद आसान होगा” । नवीन का बोलना है “भैया यही तो वो नाला था जो गद्दी ने बताया था” ।
भीगने का एक फायदा यह हुआ कि हमारी स्पीड तेज हो गई, यह एक ट्रिक है पैरों की मसल्स को रिलेक्स करने की । ठंडा पानी हमेशा थकी मसल्स की रिकवरी के लिए अच्छा होता है, अब ऐसा कहकर ही हम अपनी हौसलाअफजाई कर सकते हैं । यहाँ फैली हरियाली देखकर बहुत सुकून मिलता है । दूर-दूर तक नजर दौड़ाने के बाद भी कोई बकरी वाला नहीं मिलता । अब तक हम कई स्नो ब्रिजों के साथ-साथ कई खाली डेरों को भी पार कर चुके हैं ।
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हरियाली और बर्फ (पिन वैली) |
अंतत शाम चार बजे भेड़-बकरी वाले मिलते हैं । इस स्थान का नाम पालों ने केदार चा बताया । यहाँ तीन लडके हैं कोई भी बुजुर्ग नहीं, तीनों ही किन्नौर रामपुर के रहने वाले हैं । । चे गुवेरा जैसे दिखने वाले का नाम रविन्द्र है, एक का नेगी और फिर अमित । सबसे ज्यादा उम्र वाला चे गुवेरा ही है 26 साल बाकी दोनों उससे छोटे हैं । इतने छोटे पाल मैंने अपनी लाइफ में पहली बार देखें हैं, जिसपर अमित का कहना है कि “हमारे यहाँ काम तो है नहीं इसलिए सभी लड़के इस लाइन में आ जाते हैं, कुछ तो 15 साल के भी हैं और अकेले ही माल के साथ रहते हैं । अच्छी बात यह है कि पिन घाटी में जानवर ज्यादा नुकसान नहीं करता इसलिए सभी सुरक्षित हैं” ।
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केदार चा (पिन वैली) |
डेरे में इन्होंने मिटटी के तेल से चलने वाला स्टोव रखा है, यहाँ लकड़ियाँ नहीं है दूर-दूर तक । इनके पास खोते, भेडू और बकरियां मिलाकर कुल 800 माल है । इनका डेरा कुछ दिन पहले वहीं था जहाँ से हमने आज नदी से टक्कर ली थी । जल्द ही चाय बना दी जाती है जिसके बाद तुरंत ही टेंट लगाकर आराम और कुछ फोटो खींचे जाते हैं ।
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राईट वाला अमित है, उम्र 24 साल |
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यह रविन्द्र है, उम्र 26 साल |
लड़का लोग रात को आलू की सब्जी और रोटी खिलाते हैं, देर रात तक बातों का सिलसिला चलता है तकरीबन 11 बजे हम सोते हैं इस आस में की कल ही काजा पहुंच जायेगें । “पिछले दो रोज पहले ही एक नेपाली निमोनिया होने से मारा गया, उन्होंने शाम में नदी को पार किया था जिसका भुगतान एक बन्दे को अपनी जान गंवाकर करना पड़ा”, अमित बोलकर बीड़ी जलाता है । इसी नेपाली ग्रुप की स्टोरी सोहनसिंह ने भी सुनाई थी, सुनकर दुःख होता है ।
आज सुबह 8 से शाम 4 के बीच हम 18.78 किमी. की दूरी तय करते हैं जिसमें 1072 मीटर का एलिवेशन गेन होता है । केदार चा की ऊँचाई 4120 मीटर है ।
Day 07: केदार चा से मुद गाँव (पिन घाटी)
यहाँ से मुद की दूरी का किसी को कोई अंदाजा नहीं है, हाँ इतना जरुर जानते हैं कि 5-6 घंटे लग जाते हैं वहां पहुंचने में । लड़का लोग मुद वालों को खूब गलियां देते हैं, बोलते हैं कि 10 का बण्डल 20 में देते हैं और दाल-चावल भी बहुत महंगा देते हैं, जिसपर चे गुवेरा का बोलना है कि कम से कम बकरी वालों को तो ठीक रेट पर दे सकते हैं । बाकी लड़का लोग पार्वती घाटी घूमने भी जाना चाहते हैं और उनकी बातचीत से यहीं समझ आया कि पैसा कमाने के बाद ही जायेंगे ।
लड़का लोग बिना नाश्ते के जाने नहीं देते इसलिए खाना बनने तक हम इन्तजार करते हैं । चे गुवेरा नाश्ते के साथ कॉफ़ी पिलाता है और अपने दोनों साथियों को गाली देकर मकरा बोलता है । 9:30 हम प्रस्थान करते हैं यह पूछकर कि आज तो कोई नदी नाला पार नहीं करना होगा जिसपर अमित का कहना है आएंगे कुछ लेकिन इतने बड़े नहीं ।
पूरे एक घंटे चलने के बाद कई छोटे-मोटे नाले पार करने के बाद एक बड़ा पार करते हैं जिसके लिए जूता और पेंट उतारने पड़ते हैं । पौने ग्यारह बजे किन्नौर के एक और डेरे पर चाय पी रहे हैं । लोग इतने सीधे व सरल है की उनकी ऊर्जा छुए बगैर रह ही नहीं पाती । पाल बताता है कि “कुछ दिन पहले एक घोड़े वाला घोड़े के साथ ही पुल से नदी में गिर गया, घोड़ा बच गया लेकिन बन्दा नहीं” । अलविदा के साथ आगे बढ़ते हैं, जल्द ही एक और डेरा पार करते हैं । एक बड़े नाले पर रुक जाते हैं इसे पार करने में लगभग 35 मिनट लग जाते हैं, पानी तेज और गहराई दो फुट ।
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पिन घाटी में कोई पुल नही है क्रोसिंग के लिए |
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रामपुर वाले नमक पीस रहे हैं, स्टोव पर इन्होने 3 मिनट में चाय बना दी थी |
12:30 हम कच्चे बने जीप ट्रैक पर पहुंच जाते हैं, बताते हैं कि यह रास्ता काफनू तक जायेगा वाया पिन भाभा पास, इस स्थान का नाम तीया बताया जाता है और यह केदार चा से 5.49 किमी. दूर है और पिन पार्वती पास से 22.7 किमी. । घुटने का दर्द न होता तो मेरा प्लान पिन भाभा भी जाने का भी था । रोड़ पर चलते हुए स्पीड बढ़ाते हैं । सामने लाल और तरह-तरह रंग के पहाड़ दिखाई दे रहे हैं । चलते हुए बातचीत करते हैं कि आज ही काजा पहुंच जायेंगे और कल काजा से रिकोंगपियो वाली बस पकड़ लेंगे, सुनकर नवीन बताता है कि “भैया काजा के लिए पहली और अकेली बस सुबह 6 बजे मुद से निकलती है, उससे पहले तो टैक्सी ही बुक करनी पड़ेगी” । टैक्सी का नाम सुनते ही मेरा कलेजा बैठ जाता है, “आज हम सस्ता सा ठिकाना देखकर मुद गाँव में ही रुकेंगे” बोलकर मैं छोटे नाले को पार करता हूँ ।
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भेड़ का मीट काटकर सुखाते हुए |
पिन भाभा पास का रास्ता दिखाई दे रहा है, यहाँ से वो रास्ता ऐसा लग रहा है जैसे पिन भाभा के बाद चाँद पर ले जायेगा । दोनों उस सेवेन चैनल लम्बी ट्रेल को देखकर डिप्रेशन में जा रहे हैं । दो बकरी वाले मिलते हैं, दोनों ही किन्नौर से हैं और बताते हैं कि थोड़ी देर बाद मुद नजर आने लगेगा और सुबह से शाम तक बस दिखता ही रहेगा आयेगा नहीं । आदमी यहाँ से जवान चलना शुरू करता है और मुद तक पहुंचते-पहुंचते 55 का हो जाता है ।
अगले कुछ मोड़ों के बाद मुद नजर आ जाता है, मुद के दर्शन के बाद हम एक-दूसरे को देखकर सिर्फ यही बोल पाते हैं “माखुच” । अगले 2 घंटे तक नॉन-स्टॉप चलकर हम मुद पहुंचते हैं जहाँ हमारा स्वागत एक काला कुत्ता करता है, नवीन गलियां बक रहा है क्योंकि उसे यहाँ भी एक नाला पार करना पड़ गया ।
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और रोड़ शुरू हो गया जो काफनु तक जायेगा |
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रंग देखो आप |
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सामने दिखता मुद गाँव |
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नाले पार करने का विश्वकीर्तिमान स्थापित करते जोगता जी |
“बारह सौ तो बहुत ज्यादा है, हम मणिकर्ण से चलकर यहां तीन साल में पहुंचे हैं, कुछ तो रहम करो”, बोलकर मैं मुद वाली की तरफ देखने लगता हूँ । हम हर दो शब्द के बाद जुले का बेतरतीब तरीके से प्रयोग कर रहे हैं, इस उम्मीद में कि किराया कम हो जायेगा । एक मिनट में तीन हजार जुले सुनकर मुद वाली जोर से ठहाका मारकर 800 बोलती है, मैं 200 बोलता हूँ फिर वो मना ही कर देती है । मोल-भाव में हम लंच कर चुके हैं जिसमें चाय हमें खुद बनानी पड़ती है । स्मार्ट सिटी खीरगंगा की दुहाई काम कर जाती है और कमरा 500 का मिल जाता है, रेट ज्यादा था लेकिन ले लेते हैं क्योंकि मुद वाली हमें 80 रूपये का डिस्काउंट भी दे देती है । जल्द ही नहाकर मुद साईटसीन पर निकलते हैं, हम आठ बजे डिनर करके बैड में धंसजाते हैं ।
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मुद गाँव (पिन वैली) |
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तारा होम स्टे में रुके थे हम |
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सामने पहाड़ से दायें जाएँ तो पिन पार्वती पास पहुंचेंगे और बाएं जाएँ तो पिन भाभा पास |
आज हमने केदार चा से मुद तक 20.25 किमी. का ट्रेक किया, वैसे तो सारा रास्ता समतल ही था फिर भी 412 मीटर का गेन हो गया, समय छह घंटा लगता है ।
कसोल से चलकर सर पास पार किया फिर पिन पार्वती पार क्रोस करके हम मुद पहुंचे, एक साथ दो पास क्रोस करने में त्रिभुज बनी टांगों से 8 दिन में हमने 122 किमी. की पैदल दूरी नापी जिसमें कुल एलेवेश्न गेन 8558 मीटर का हुआ । टोटल खर्चा 6060 रूपये रहा, मुद से घर का खर्चा इसमें नहीं जोड़ा है, उसके साथ इस आंकड़ा 8392 रुपये हो जाता है ।
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महाट्रेक का आकड़ा (कसोल-मुद) |
Day 08: मुद से फरीदाबाद वाया स्पीती वैली
अगली सुबह 5 बजे उठकर हम 6 वाली बस लेते हैं जो हमें अटार्गु ब्रिज (Atargu Bridge) पर उतारती है, बस से उतरते ही नवीन का बोलना है “कंधे टूट रहे रहे हैं” और मेरा सोचना है “लगता है घुटना गया” । मुद से अटार्गु ब्रिज तक दूरी 33 किमी. है और बस का किराया 90 रूपये लगता है । अभी तक इस बस वाले ने काजा से चली बस को कॉल कर दिया है ताकि इस बस की सवारियों को पियो वाली बस में बैठाया जा सके । अटार्गु ब्रिज पर काजा टू रिकोंगपियो बस का टाइम 9 बजे का लेकिन वो साढ़े नौ बजे पहुंचती है । बस खचाखच भरी है, दोनों का 400 का टिकट बनता है, कंडक्टर का कहना है कि “ओवरलोडिंग मना है” । अब तक उसने सभी सवारियों को बस की फर्श और तीन सीटों पर 5 को एडजस्ट कर दिया है । ताबो आकर हमें सीट मिलती है, यहाँ पराठे खाकर सो जाते हैं जिसके बाद शाम 5 बजे नींद सीधा पियो में खुलती है । डिनर के बाद सवा सात वाली शिमला में सवार होते हैं, नवीन संजौली उतर जाता है और मैं शिमला से हरियाणा रोडवेज लेता हूँ ।
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मुद-काजा सुबह 6 वाली बस |
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मटर तोड़ने जाते हुए स्थानीय |
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टूरिस्ट को ताड़ते हुए कुछ स्थानीय युवक |
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मुद-काजा बस का दृश्य |
लाजवाब ट्रेक रोहित बाबा मज़ा आ गया पढ़ कर
ReplyDeleteधन्यवाद सर आपका पढने के लिए
Deleteक्या कहे भाई... पूरी यात्रा टांग तोड़ी रही। बस आप जैसे जनूनी लोग ही जा सकते है ऐसी जगह।
ReplyDeleteपढ़ना और फ़ोटो देखना रोमांचक रहा।
हाहा...जबसे घर वापस आया हूँ तबसे बुजुर्ग होने की फीलिंग आ रही है
Deleteबहुत ही बढ़िया भाई जी, वैसे आप फरीदाबाद से हो?
ReplyDeleteजी सर ऐसे तो मैं फरीदाबाद से हूँ।
Deleteबहुत ही शानदार भाई जी ।।।
ReplyDeleteशुक्रिया
DeleteBhai Yar apn bhi gye the mantalai mja aa Aya
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