30-जुलाई-2019
पार्वती घाटी में तीनों का यह चौथा दिन है, सर पास की अपार सफलता के बाद टीम के हौसले बुलंद है लेकिन एक कोमरेड के विद्रोह के बाद टीम पर मानसिक आघात होता है । एक कोमरेड गद्दार की उपाधि ग्रहण करके बर्शेनी से जम्मू निकल गया जबकि बाकि दोनों ने पार्वती घाटी को साक्षी मानकर पिन पार्वती पास को पार करने की शपथ ग्रहण करी । तो चलिए जानते हैं कि कैसे दो लोग बर्शेनी से मुद पहुंचे वाया पिन पार्वती पास ।
यह बर्शेनी है जहाँ हम तीनों लंच करते हुए अपने कुछ ही मिनटों पहले खत्म हुए सर पास ट्रेक के बारे में बात कर रहे हैं । अरुण वापसी के लिए बर्शेनी बस स्टैंड की तरफ बढ़ जाता है और हम दोनों दोपहर ढाई बजे यह सोचकर आगे बढ़ते हैं कि “आज जहाँ तक पहुंच पाएंगे वहां तक चलेंगे” । बर्शेनी पर बने विशालकाय बांध को अलविदा बोलकर हम पीपीपी की तरफ बढ़ने लगते हैं, चलते हुए ज्यादा देर नही हुई है और हमारी बातचीत का मुद्दा यह है कि “अरुण ने अच्छा नहीं किया वापस जाकर या सरकार ने ठीक नहीं किया बांध बनाकर” ।
Day 01: बर्शेनी से खीरगंगा
नक्थान गाँव से मैं जीपीएस डिवाइस के लिए 6 बैटरी सेल लेता हूँ, 120 रूपये चुकाकर हमारा पार्वती वैली में स्वागत होता है । 2 साल में यहाँ काफी बदलाव और विकास दिखाई देता है, घाटी के बाकी हिस्सों की तरह यहाँ भी भरपूर इजरेली हैं । ताजा बने डैम को देखते हुए महसूस होता है कि “इसके निर्माण में भी इजरेलियों ने अहम भूमिका निभाई होगी” । नक्थान गाँव पार्वती वैली में आखिरी गाँव है जोकि 2250 मीटर पर स्थित है । हम खीरगंगा की तरफ बढ़ रहे हैं, यहाँ पहुंचने के लिए पार्वती नदी के दोनों तरफ से रास्ता है ।
55 एक मिनट में हम रुद्रनाथ झरने पर पहुंचते हैं, जहाँ पानी की बोतलों को भरा जाता है और कुछ फोटोग्राफी की जाती है । पंखू से बर्शेनी तक हम पहले ही 7.5 किमी. की दूरी तय कर चुके हैं, इसके बावजूद हौसला अभी भी बुलंद है । गीला टेंट मेरे बैग में है, कन्धों पर वजन अब और भी ज्यादा बढ़ गया है जो मुझे रेती के ट्रक की फीलिंग दे रहा है । 5 मिनट के ब्रेक के बाद हम रुद्रनाथ से चल पड़ते हैं, आगे चलते-चलते नवीन का बोलना है कि “कंधे टूट रहे हैं”, जिसपर मेरा यही सोचना है कि “खच्चर बनना इतना भी आसान नहीं है” । बीच में एक जगह आती है जिसका नाम आईसी है, वहाँ एक लड़का मिलता है जो मुझे सांकरी (उत्तराखंड) में मिला था । हम बातचीत करते हुए चलते हैं । उसका नाम जीत है, वह कुक है और ग्रुप के साथ पिन पार्वती पास जा रहा है । आगे हुई बात से कोई फायदा नहीं हुआ, उनका ग्रुप 10 दिन में मुद पहुंचेगा इसलिए रास्ते में हमें कोई मदद नहीं मिलने वाली ।
अच्छी बात यह है कि इस बार हम सही मौसम मे हैं, घाटी में गद्दी और जड़ी-बूटी वाले मिलेंगे और साथ ही कुछ ग्रुप पीपीपी (पिन पार्वती पास) भी क्रोस कर चुके हैं” । अगर मानतलाई के बाद बर्फ हुई तो हमें बर्फ पर पैरों के निशान मिलेंगे जिनका पीछा करना हमें बखूबी आता है । लेट चलने की वजह से आज हम हिमाचल की पहली स्मार्ट सिटी “खीरगंगा” में रुकेंगे, कल उड़ी थाच, परसों मानतलाई और उससे अगले दिन पीपीपी पार कर देंगे । चिंता का विषय यह है कि इस बार हमारे पास स्टोव नहीं है और 4-5 दिन बिना खाने के हमारी मैगी बनना तय है, इसलिए गद्दियों से अपील करेंगे कि हमें अपनी शरण में लें और इस महान कौज में अपना भारी योगदान दें ।
खीरगंगा की दूरी बर्शेनी से 8 किमी. है जिसमें 800 मीटर का एलेवेशन गेन होता है, इसे तय करने में हमें 3 घंटे लगे । पुलगा गाँव के ऊपर से तीन पासों को चढ़ा जा सकता है, पहला तो सर पास ही है, दूसरा बुनीबुनी पास है जो सीधा खीरगंगा उतरता है और तीसरा फंग्ची ग्लू पास है जो सैंज पहुंचता है । बाकी अगर तोष नाले के साथ-साथ आगे बढ़ा जाये तो छोटा दड़ा भी पहुंचा जा सकता है सारा उमगा पास क्रोस करके, चलने वाले ट्रेकर इसे 6-7 दिन में पूरा कर सकते हैं ।
शाम साढ़े पांच बजे हम खीरगंगा स्थित गर्म कुण्ड से लगभग 50 मीटर पीछे अपना टेंट लगाते हैं । नवीन यहाँ के शॉपिंग मॉल को देखते हुए कहता है कि “इतनी बड़ी मार्किट तो शिमला में भी नही है” । आज मौसम साफ़ रहा, धूप का फायदा उठाते हुए हम अपने गीले कपड़े सुखाकर गर्म पानी के कुण्ड में नहाने चले जाते हैं । चार दिन की थकावट गर्म पानी में घुसते ही गायब हो जाती है । पास ही दो कूल ड्यूड आपस में लड़ रहे हैं, लड़ाई का मुद्दा है "लड़कियां" । पहला दूसरे को समझा रहा है कि “4000 रूपये कौन खर्च करता है, लड़कियों ने तेरा काट दिया”, बोलकर पहला लड़का हमें देखकर अपना दुःख शेयर करता है । वो सलाह देता है कि “भाई कभी अपने साथ लडकियों को मत लाना, एक तो पैसे की बर्बादी ऊपर से न उनसे चला जाये न पैसा खर्च किया जाये” । नवीन को देखकर वो बोलता है “आप ही बताओ भाई 30 लाख सेल्फी कौन खींचता है, बंदरियां का मुंह भी बत्तख जैसा हो गया है” । अपरम्पार ज्ञान ग्रहण करने के बाद हम टैंट में वापस आते हैं और साथ लाये पराठों को चाय के साथ खाने के लिए पास ही स्थित ताज होटल में प्रवेश करते हैं ।
ताज होटल की तरफ बढ़ते हुए नवीन का बोलना है “मिल्क टी, ब्लैक टी या कोई भी 'टी' बोलने की जरूरत नही है, हमें संयम से काम लेना होगा और काली चाय या दूध-चीनी वाली चाय बोलना होगा, तभी हम एक चाय के बदले अपनी किडनी बचा पाएंगे” । दोनों इस विचार से सहमत होकर ताज होटल में प्रवेश करते हैं ।
“भाई जी किसी भी होटल में जाकर देख लो 80 रूपये से कम में कोई टी देता हो तो आपको फ्री टी दूंगा”, यह ताज होटल के मालिक का बोलना है जोकि सैंज से है । “चलो आप तो लोकल हो खास आपके लिए 70 रूपये लगा देंगे”, बोलकर मालिक नए लाये तंदूर में लकड़ी डालने लगता है । मालिक का साथी नवीन से पूछता है कि “तो बताओ कौनसी वाली टी लोगे”, जिसपर नवीन का बोलना “भईया देशी वाली चाय लाओ दूध चीनी डालके” । बाहर बोर्ड तो नहीं लगा था कि “बाहर से लाये खाने पर प्रवेश वर्जित है”, फिर भी पूछ ही लेता हूँ “भाई जी क्या यहाँ साथ लाये खाने को खा सकते हैं?”, मेरे बोलने के बाद मालिक अकड से बोलता है “कैसी बातें करते हो भाई जी, हम बाकी लोगों जैसे नहीं है...खाओ आराम से खाओ” । कांच के गिलासों में चाय आती है, हम चाय-पराठे का डिनर कर रहे हैं और मालिक नई लाये तंदूर को सेट करने का प्रयास ।
यहाँ से फोन कॉल भी हो सकती है जिसका चार्ज 50 रूपये 10 मिनट का है, अगर रौंग नंबर लगता है तब तो आपके लग गये, नाश्ता 250 रूपये का है जिसमें चाय, और 2 पराठे होंगे, रुकने का किराया 1500 रूपये से शुरू होकर 5000 तक जाता है । इतनी जानकारी देकर मालिक हमारी तरफ देखता है, हम हंसकर एक-दूसरे को देखते हुए मन में सोचते हैं कि “घर से यह बोलकर निकले हैं कि ट्रेक पे जा रहे हैं न कि किडनी बेचने” ।
नौ बजे हम टैंट में सोने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन बाहर से आते अलग-अलग जोनर के म्यूजिक ने हमें और आधे घंटे जगाने का काम किया, जिसमें खास रोल सपना चौधरी के बहूचर्चित सोंग “सॉलिड बॉडी” का रहा । देश की पहली स्मार्ट सिटी खीरगंगा में जनरेटर, सेनिटरी पेड से लेकर कंडोम, चकाचौंध कर देने वाली लाइटें, 50 हजार वाट के जम्बो स्पीकर और घाटी का प्रिय मादक पदार्थ भारी मात्रा में उपलब्ध है । मैं राज्य सरकार से एक और अनुरोध करना चाहूँगा कि “यहाँ एक छोटा-मोटा एअरपोर्ट और बना दिया जाये ताकि हमारे इंटरनेशनल व डोमेस्टिक बन्दरलस्ट भाई-बहन बिना समस्या के यहाँ की सुविधाओं को भोग सकें” ।
सिर्फ एक रात गुजारने के लिए कौन भला सिलिंडर-चूल्हा, परात, 10 लिटर का कुक्कर, अनगिनत स्टील की थालियाँ, पानी की केनियाँ, 20 बाय 20 की तिरपाल, आलू-प्याज-टमाटर, चम्मच, स्टील ग्लास और 2 विस्की की बोतल...लायेगा वो भी खीरगंगा में?, इसका जवाब है कुल्लू से आया 5 लड़का लोगों का ग्रुप । उनके पास हाईकिंग टेंट था जिसे उन्होंने तिरपाल में लपेट दिया । देर रात तक उनकी गलियों की आवाजें हमारे कानों में ऐसे आती रही जैसेकि हमसे ही बात कर रहे हों ।
रात की बारिश के बाद सुबह मौसम साफ है । आगे के लम्बे रास्ते को देखते हुए आज हम यहाँ से पराठा खाकर निकलने का फैसला करते हैं । हम टेंट पैक करने के बाद वंस अगेन ताज होटल में जाते हैं जहाँ मालिक गेंदे के फूलों के पौधे लगा रहा है । “2 पराठे और 2 चाय कितने के पड़ेंगे आप ये बताओ भाई जी”, बोलकर मैं साँस खींचता हूँ । “औरों से तो 400 लेता हूँ लेकिन आप 360 दे देना”, हम हाँ बोल देते हैं जिसपर मालिक कमीनी स्माइल पास करता है मानो बोल रहा हो “फंस गये जाल में” । चाय ठीक थी बाकि पराठे तो मानो किसी ने घास काटकर रेत में मिलाकर खिला दिए हों । 360 का नाश्ता और 120 की दो कच्ची मैगी के पैकेट लेकर हमने हिमाचल की पहली स्मार्ट सिटी खीरगंगा को साढ़े आठ बजे छोड़ा ।
आज का टारगेट उड़ी थाच पहुंचने का है और अगले कल मानतलाई झील । भारी बैगों के बावजूद एक अच्छी स्पीड से हम आगे बढ़ते हैं । रास्ता ज्यादा मुश्किल नहीं है और मौसम भी अभी तक ठीक है । पार्वती खूंखार तरीके से हमारी बाएं तरफ बह रही है । सर पास से नीचे उतरते हुए मेरे सीधे पैर में झटका लगा था जिसका असर अब होने लगा है, पिछले कल तक घुटना सिर्फ उतराई मे दुःख रहा था अब समतल में भी बगावत कर रहा है । रास्ते में सिवाय 2 गुज्जरों के हमे कोई नही मिला, जल्द ही हम पहले गुज्जर डेरे पर पहुंचते हैं जोकि मुख्य पगडण्डी से लगभग 100 मीटर दूर है । जिसको देखकर मेरा बोलना है कि “अगले डेरे पर दूध पियेंगे” । करीब डेढ़ घंटे चलने के बाद हम अगले गुज्जर डेरे पर पहुंच जाते हैं, यहाँ हम एक लीटर दूध लेते हैं जिसमें से एक-एक गिलास यहीं पी लेते हैं और बाकी पानी की बोतल में भर लेते हैं । 50 रूपये प्रति लीटर के हिसाब से कीमत अदा करने के बाद कदमों को टुंडाभुज की तरफ बढाते हैं ।
2 लड़के मिलते हैं, वो ग्रुप के साथ हैं और पीपीपी जा रहे हैं । मैं घुटने के दर्द से घुटन महसूस करता हूँ जिसपर नवीन का आज भी यही कहना है “कंधे टूट रहे हैं” । 12 बजे हम टुंडाभुज पहुंचते हैं, यहाँ फारेस्ट वालों ने एक बिल्डिंग बनाई हुई है जिसमें एक बाबा रहता है । चाय 50 रूपये, दाल-चावल की प्लेट 150 रूपये...यहाँ के रेटों की जानकारी पाकर यह स्थान स्मार्ट सिटी खीरगंगा की कोई शाखा प्रतीत हुई ।
बाबा टूरिस्ट को कूड़ा फ़ैलाने पर गाली दे रहा है, गाँव वालों को खीरगंगा में गंद डालने के लिए गाली देता है, कहीं भी हगने के लिए गाली देता है, गुज्जरों की तारीफ करता है । गुज्जरों की तारीफ का रहस्य बाद में ज्ञात हुआ बाबा को गुज्जरों से दूध मिलता है । हम चुप हैं और बाबा केजरीवाल की भांति लगातार बारम्बार यही बोले जा रहा है, “सब गंद डालते हैं” । “खीरगंगा दिव्य स्थान था सालों ने नर्क बना दिया, वहीं मंदिर है वहीं लडकियाँ लाते हैं” । बाबा का मिजाज देखकर लग रहा था कि किसी ने उनके साथ कुछ गलत किया है । आखिरकार बाबा ने गुस्से-गुस्से में बोल दिया कि “हरामजादे ढाई हजार रुपया तौला माल बेचते हैं वो भी नकली” । दुखती रग का पता चल गया था । नवीन के कहने पर हमने चाय ली और 20 रूपये की 10 टॉफी खरीदी । अब तक पीछे छूटे दोनों लडके भी आ चुके हैं जिन्होंने हमें खाने के लिए पराठे दिए । 40 मिनट के ब्रेक के बाद हमने टुंडाभुज छोड़ा, बाबा अभी भी टूरिस्टस को गाली दे रहा था और कुछ ही मिनटों में फटने वाला है ।
पार्वती के साथ चलते-चलते हम कई नालों को पार करते हैं, अभी तक उफनते नालों से कोई परेशानी नहीं हुई । पटरा घाट से पहले सभी नालों पर लकड़ी के कच्चे पुल बने हैं । हम तेजी से भाग रहे हैं, कारण बाबा की सलाह “2 बजे से पहले पटरा घाट पार कर लेना नही तो पानी बढ़ जायेगा । आसमान मे काले बादल हैं, बारिश किसी भी वक्त हो सकती है और हम कुछ ही देर में पीपीपी की पहली चुनौती को टक्कर देने वाले हैं । बताया जाता है कि टुंडा भुज की धार पर अगर ऊपर चढ़ जाएँ तो नेटवर्क आ जाता है और यहाँ से अगर और आगे जाएँ तो आदमी ग्लेशियरों को पार करता हुआ बहुत दूर स्थित न्यूली भी पहुंच सकता है, लेकिन वहाँ तक सिर्फ जिगरवाला ही पहुंच सकता है ।
25 मिनट बाद हम पटरा घाट की चढ़ाई शुरू करते हैं, बारिश अभी भी शुरू नहीं हुई है इसलिए काला पहाड़ सूखा है । हम धीरे-धीरे व ध्यान से काली चट्टान पर चलने लगते हैं, नीचे एक बड़ा स्नो ब्रिज है जिसको पार्वती ठोकर मारती बह रही है । मैं नवीन को बार-बार ध्यान से चलने की नसीहत दे रहा हूँ, कुछ कदम चलकर मैं फिर उसे टोकता हूँ “सावधान रहें सतर्क रहें”, हो सकता है बाद में नवीन को भी यह महसूस हुआ होगा कुछ ज्यादा ही अनूप सोनी हो गया है । पटरा घाट पौने दो घंटे में बिना किसी क्षति के पार होता है, पार करने से पहले हमें कई छोटे-बड़े नाले क्रोस करने पड़े जिनमें दो सबसे बड़े थे । अगर इस पहाड़ को 12 बजे से पहले पार किया जाये तो ज्यादा बेहतर होगा, मेरी यह सलाह जनहित में जारी है ।
ढाई बज चुके हैं हम अभी पैरों पर हैं और अब तक किसी भी गद्दी पार्टी से कोई एनकाउंटर नही हुआ । मेरा घुटना दर्द की तरंगें छोड़ रहा है जो मुझे आह से अहा तक बोलने पर मजबूर कर रहा है । अब बड़ी घास शुरू हो गई है, सुना है ऐसी घासों में भालू छुपकर रहता है, डर से हम जोर-जोर से बात करते हैं तो कभी सिटी बजाते हैं । हमारी बाईं तरफ गुस्सेल डीबीबोकरी नाला पार्वती में मिल रहा है, यहाँ से डीबी के दायीं तरह दो ऊँची चोटियां दिखती हैं, अभी दोनों ने ही बादलों का ताज पहना हुआ है । यहीं डीबी के सामने एक हट बना है और एक तार बंधा है आरपार आने-जाने को । यहाँ गद्दियों को होना चाहिये था पर अभी यहाँ कोई नहीं है ।
पार्वती घाटी को फूलों की चादर ने पूर्णत काबू किया है, तरह-तरह के फूलों में नीले फूलों ने बाजी मार रखी है । आगे बढ़ते हुए ब्लू कारपेट पर चलने की फीलिंग आ रही है । नजरें तरस गयीं हैं गद्दियों को देखने को लेकिन सभी पता नहीं कहां गायब हैं । अब समय दोपहर के 3 बज चुके हैं और सिवाय दो घोड़ों के हमें कुछ नहीं दिखाई दिया । मायूसी, टूटी टांगों और कुचलते कन्धों को लेकर हम ओन द वे हैं । लगभग 2 दर्जन से ज्यादा नालों को पार करके हमें दूर कुछ टेंट दिखाई देते हैं । हमारी टांगों में बस इतनी भी शक्ति नहीं बची है कि वहां तक पहुंच सकें । घिसड़ते हुए हम शाम 4 बजे उस स्थान पर पहुंचते हैं जहाँ हमें डेरे दिखाई दिए थे । मैं मुआइने के लिए जाता हूँ, मुख्य रास्ते से लगभग 100 मीटर दूर कुछ टेंट लगे हैं, वहाँ एक कुत्ता हैं जो मुझपर टूट पड़ना चाहता है । मैं हेल्प-हेल्प चिल्लाता हूँ और भागकर बंद टेंटों में घुसकर जान बचाना चाहता हूँ, अंतत 5-7 मिनट के बाद मेरी फरियाद सुनकर एक बंदा टेंट से निकलता है, जिसके बाद कुत्ता अपना दोस्त टाइप हो जाता है ।
मैं भागकर नवीन को लेकर आता हूँ, उसे बताता हूँ कि “अभी चाय मिल जाएगी और रात को खाना भी मिल जायेगा” । लड़के से बात करके हम अपना टेंट लगाते हैं । गद्दियों के बारें में पूछने पर लड़का बताता है कि “सभी आजकल ऊपर बैठे हैं और बाकी आगे निकल गये हैं” । आगे भी गद्दी हैं ये हमारे लिए गुड न्यूज थी । चाय पीते-पीते आगे लड़का बताता है कि “हम लोग तो जड़ी-बूटी वाले हैं, मेरे बाकि साथी अभी ऊपर गये हैं, आएंगे थोड़ी देर में” । कुछ देर में बाकी लोग भी आ जाते हैं, सभी मिलाकर कुल 7-8 जने हैं । सूरज ढल रहा हैं, बादल छट गये हैं और ऊपर से आये लड़का लोग सामने एक पहाड़ की ओर ऊँगली करके बताते हैं कि “ऊपर एक शिवलिंग रूपी पत्थर है और हम वहाँ जाना चाहते हैं” । मैं शिवलिंग वाले पर्वत के फोटो खींचता हूँ, धूप की रोशनी में शिवलिंग सोने की तरह चमकता दिखाई देता है ।
साढ़े नौ बजे हम खाना खाकर सोते हैं । आज हमें उड़ी थाच पहुंचना था लेकिन पटरा घाट के बाद घुटने की वजह से मेरी स्पीड काफी कम हो गई थी । अब कल का टारगेट मानतलाई झील रखा है और परसों का पिन पार्वती पास क्रोस करने का । लडकों ने बताया कि “यहाँ से लगभग 20-25 मिनट का रास्ता है पांडू पुल का” । आज हमने खीरगंगा से जड़ी-बूटी वालों तक 16 किमी. की दूरी 8 घंटे में तय करी, जिसमें 600 मीटर का हाईट गेन हुआ, काफी खराब प्रदर्शन रहा ।
Day 03: पांडू पुल से थोड़ा पहले से मानतलाई झील
रात को नींद बढ़िया आई, सुबह छह बजे उठकर हमने टेंट पैक किया । बाहर धूप के साथ ठंडी हवा के बीच जड़ी बूटी गैंग हमें दाल-चावल का नाश्ता कराती है और बदले में कोई पैसा लेने से मना कर देती है । हम इस स्थान को साढ़े आठ बजे छोड़ते हैं । बढ़िया मौसम को देखते हुए हम फोटो खींचते हुए चल रहे हैं । जल्द ही इस रूट की दूसरी बड़ी चुनौती पर पहुंचते हैं, पत्थरों के सूखे होने के कारण पांडू पुल आराम से पार हो जाता है, अगला पुल भी पार हो जाता है । अब इस घाटी की सबसे बड़ी चुनौती बाकी बची है जिसे हम परसों पार करेंगे ।
10 बजे हम उड़ी थाच पहुंचते हैं जहाँ कुछ टेंट लगे हैं । स्टाफ से बात करके पता चलता है कि उनका ग्रुप मानतलाई झील के दर्शन करके आज यहीं वापस आयेगा” । वो हमें नाश्ते को पूछते हैं जिसपर हम दोनों का एक साथ कहना है “धन्यवाद भाई जी” । यहाँ भी घाटी की सुन्दरता चरम पर है, रंग-बिरंगे फूलों के बीच चलना एक अलग ही ऊर्जा प्रदान कर रहा है । आगे एक गद्दी मिलता है, 15 मिनट का ब्रेक लेकर हम उनसे बात करते हैं । वो बताते हैं कि “आगे भी कई डेरे हैं, झील से पहले भी और झील के बाद भी” । पिछली बार मैंने कई गुफाओं को देखा था झील के आसपास अगर वहाँ गद्दी मिल गये तो सोने पे सुहागा हो जाएगा ।
फूलों का कारवां अभी भी कायम है, चारों तरफ हरियाली है और जब भी चोटियां बादलों के पीछे से झांकती तो हमें अपने गर्भ में समेटे ग्लेशियर दिखाती । 12 बजे हम एक गुफा के पास ब्रेक लेते हैं जहाँ कोई नहीं है । मैं मौके का फायदा उठाते हुए अपने दांत साफ करता हूँ, मुंह धोता हूँ और साथ में गंदे जुराबों को धोकर बैग से बंधे ट्रेकिंग पोल पर सुखा देता हूँ । समतल रास्ता समाप्त होते ही हल्की चढ़ाई में बदल जाता है । यहाँ चारों तरफ पत्थर ही पत्थर हैं, सामने ऊपर मानतलाई झील है और हमारे दाहिनी तरफ बादलों के बीच बर्फ से ढकी सफेद चोटियां हैं । दो बकरी वाले मिलते हैं जो एक कुत्ते को घसीटते हुए नीचे ले जा रहे हैं । थोड़ा आगे एक अंकिल मिलते हैं, उनका कहना है कि “वो पिछले कई दिनों से बुखार से पीड़ित हैं अगर तुम्हारे पास कोई गोली-वोली हो तो दे दो” । हमारे पास तो खाने को खाना भी नहीं था फिर गोली तो बहुत आगे की चीज है । बकरियों के साथ वो आगे निकल जाते हैं यह बोलकर कि “पैरासिटामोल तो वो कई दिनों से ले रहा हूँ लेकिन कुछ फर्क नहीं पड़ रहा” ।
दोपहर दो बजे हम मानतलाई झील पहुंचते हैं, पिछली बार यहाँ खूब बारिश हुई थी । इस बार मौसम बढ़िया है, उड़ी थाच वाला ग्रुप झील के दर्शन करके अब वापस जा रहा है । हम रुककर सुस्ताते हैं, खूब फोटो खींचते हैं बाकी नवीन को बताता हूँ कि मंढेर वाला गद्दी इस झील को पानी में घुसकर पार कर देता है । अभी तो पानी बहुत है और रंग बिलकुल मटियाला, सुना है कभी यह नीला भी होता है ।
जितने परेशान हैं उतने ही हैरान भी कि आखिर ये गद्दी गये तो गये कहाँ । हम मानतलाई से काफी आगे आ चुके हैं और अभी तक कोई गद्दी नहीं दिखाई दिया । शाम होने जा रही है और सूरज भी तैयारी कर रहा है डूबने की, दोनों खोजी बीहड़ में भटक रहे हैं । अब तक हमारी स्पीड काफी कम हो जाती है और जब गद्दियों को पहाड़ के बिलकुल ऊपर देखते हैं तो हम खुद को मृत समझने लगते हैं । मौसम के खराब होते मिजाज और गर्म चाय के मोह को छोड़ते हुए हम थोड़ा आगे जाकर टेंट लगाने का फैसला करते हैं । यहाँ घास है लेकिन पीने के लिए पानी नहीं है, गद्दियों के बाद पानी खोजते हुए हम अंततः अपने टेंट को गाड़ते हैं । टेंट लगते ही मौसम ठीक हो जाता है, अब रकसैक का सारा सामान तेज आती धूप में सुखाया जा रहा है । रात होने में बहुत समय बाकी है लेकिन हमने अभी से ड्राई फ्रूट्स खाने शुरू कर दिए हैं । यहाँ से आगे एक नाला है जिसे पिछले साल भी क्रोस किया था, उस समय पानी घुटने तक था लेकिन इस बार इसका बहाव तेज महसूस हो रहा है ।
यह हमने ठीक किया कि आज शाम को इस गहरे नाले को पार नहीं किया, कल सुबह-सुबह इसका पानी कम होगा तब काफी आसानी होगी इससे जंग । सूरज डूबने के साथ ही बारिश शुरू हो जाती है, तेज बारिश । हम कल पास क्रोस करने की बातें करते हैं, बाहर होती बारिश से भीतर मन परेशान हो उठता है । रात नौ बजे हम सो जाते हैं, बारिश अभी भी जारी हैं ।
आज जड़ी बूटी वालों से लेकर यहाँ तक 16.4 किमी. की दूरी तय हुई, हाईट गेन सिर्फ 776 मीटर ही हुआ और यहाँ की ऊँचाई 4134 मीटर है ।
पार्वती घाटी में तीनों का यह चौथा दिन है, सर पास की अपार सफलता के बाद टीम के हौसले बुलंद है लेकिन एक कोमरेड के विद्रोह के बाद टीम पर मानसिक आघात होता है । एक कोमरेड गद्दार की उपाधि ग्रहण करके बर्शेनी से जम्मू निकल गया जबकि बाकि दोनों ने पार्वती घाटी को साक्षी मानकर पिन पार्वती पास को पार करने की शपथ ग्रहण करी । तो चलिए जानते हैं कि कैसे दो लोग बर्शेनी से मुद पहुंचे वाया पिन पार्वती पास ।
यह बर्शेनी है जहाँ हम तीनों लंच करते हुए अपने कुछ ही मिनटों पहले खत्म हुए सर पास ट्रेक के बारे में बात कर रहे हैं । अरुण वापसी के लिए बर्शेनी बस स्टैंड की तरफ बढ़ जाता है और हम दोनों दोपहर ढाई बजे यह सोचकर आगे बढ़ते हैं कि “आज जहाँ तक पहुंच पाएंगे वहां तक चलेंगे” । बर्शेनी पर बने विशालकाय बांध को अलविदा बोलकर हम पीपीपी की तरफ बढ़ने लगते हैं, चलते हुए ज्यादा देर नही हुई है और हमारी बातचीत का मुद्दा यह है कि “अरुण ने अच्छा नहीं किया वापस जाकर या सरकार ने ठीक नहीं किया बांध बनाकर” ।
बर्शेनी पार्वती रिवर डैम |
Day 01: बर्शेनी से खीरगंगा
नक्थान गाँव से मैं जीपीएस डिवाइस के लिए 6 बैटरी सेल लेता हूँ, 120 रूपये चुकाकर हमारा पार्वती वैली में स्वागत होता है । 2 साल में यहाँ काफी बदलाव और विकास दिखाई देता है, घाटी के बाकी हिस्सों की तरह यहाँ भी भरपूर इजरेली हैं । ताजा बने डैम को देखते हुए महसूस होता है कि “इसके निर्माण में भी इजरेलियों ने अहम भूमिका निभाई होगी” । नक्थान गाँव पार्वती वैली में आखिरी गाँव है जोकि 2250 मीटर पर स्थित है । हम खीरगंगा की तरफ बढ़ रहे हैं, यहाँ पहुंचने के लिए पार्वती नदी के दोनों तरफ से रास्ता है ।
नक्थान गाँव |
कैसे रोकी जाएँ ये हरकतें |
55 एक मिनट में हम रुद्रनाथ झरने पर पहुंचते हैं, जहाँ पानी की बोतलों को भरा जाता है और कुछ फोटोग्राफी की जाती है । पंखू से बर्शेनी तक हम पहले ही 7.5 किमी. की दूरी तय कर चुके हैं, इसके बावजूद हौसला अभी भी बुलंद है । गीला टेंट मेरे बैग में है, कन्धों पर वजन अब और भी ज्यादा बढ़ गया है जो मुझे रेती के ट्रक की फीलिंग दे रहा है । 5 मिनट के ब्रेक के बाद हम रुद्रनाथ से चल पड़ते हैं, आगे चलते-चलते नवीन का बोलना है कि “कंधे टूट रहे हैं”, जिसपर मेरा यही सोचना है कि “खच्चर बनना इतना भी आसान नहीं है” । बीच में एक जगह आती है जिसका नाम आईसी है, वहाँ एक लड़का मिलता है जो मुझे सांकरी (उत्तराखंड) में मिला था । हम बातचीत करते हुए चलते हैं । उसका नाम जीत है, वह कुक है और ग्रुप के साथ पिन पार्वती पास जा रहा है । आगे हुई बात से कोई फायदा नहीं हुआ, उनका ग्रुप 10 दिन में मुद पहुंचेगा इसलिए रास्ते में हमें कोई मदद नहीं मिलने वाली ।
अच्छी बात यह है कि इस बार हम सही मौसम मे हैं, घाटी में गद्दी और जड़ी-बूटी वाले मिलेंगे और साथ ही कुछ ग्रुप पीपीपी (पिन पार्वती पास) भी क्रोस कर चुके हैं” । अगर मानतलाई के बाद बर्फ हुई तो हमें बर्फ पर पैरों के निशान मिलेंगे जिनका पीछा करना हमें बखूबी आता है । लेट चलने की वजह से आज हम हिमाचल की पहली स्मार्ट सिटी “खीरगंगा” में रुकेंगे, कल उड़ी थाच, परसों मानतलाई और उससे अगले दिन पीपीपी पार कर देंगे । चिंता का विषय यह है कि इस बार हमारे पास स्टोव नहीं है और 4-5 दिन बिना खाने के हमारी मैगी बनना तय है, इसलिए गद्दियों से अपील करेंगे कि हमें अपनी शरण में लें और इस महान कौज में अपना भारी योगदान दें ।
खीरगंगा की दूरी बर्शेनी से 8 किमी. है जिसमें 800 मीटर का एलेवेशन गेन होता है, इसे तय करने में हमें 3 घंटे लगे । पुलगा गाँव के ऊपर से तीन पासों को चढ़ा जा सकता है, पहला तो सर पास ही है, दूसरा बुनीबुनी पास है जो सीधा खीरगंगा उतरता है और तीसरा फंग्ची ग्लू पास है जो सैंज पहुंचता है । बाकी अगर तोष नाले के साथ-साथ आगे बढ़ा जाये तो छोटा दड़ा भी पहुंचा जा सकता है सारा उमगा पास क्रोस करके, चलने वाले ट्रेकर इसे 6-7 दिन में पूरा कर सकते हैं ।
शाम साढ़े पांच बजे हम खीरगंगा स्थित गर्म कुण्ड से लगभग 50 मीटर पीछे अपना टेंट लगाते हैं । नवीन यहाँ के शॉपिंग मॉल को देखते हुए कहता है कि “इतनी बड़ी मार्किट तो शिमला में भी नही है” । आज मौसम साफ़ रहा, धूप का फायदा उठाते हुए हम अपने गीले कपड़े सुखाकर गर्म पानी के कुण्ड में नहाने चले जाते हैं । चार दिन की थकावट गर्म पानी में घुसते ही गायब हो जाती है । पास ही दो कूल ड्यूड आपस में लड़ रहे हैं, लड़ाई का मुद्दा है "लड़कियां" । पहला दूसरे को समझा रहा है कि “4000 रूपये कौन खर्च करता है, लड़कियों ने तेरा काट दिया”, बोलकर पहला लड़का हमें देखकर अपना दुःख शेयर करता है । वो सलाह देता है कि “भाई कभी अपने साथ लडकियों को मत लाना, एक तो पैसे की बर्बादी ऊपर से न उनसे चला जाये न पैसा खर्च किया जाये” । नवीन को देखकर वो बोलता है “आप ही बताओ भाई 30 लाख सेल्फी कौन खींचता है, बंदरियां का मुंह भी बत्तख जैसा हो गया है” । अपरम्पार ज्ञान ग्रहण करने के बाद हम टैंट में वापस आते हैं और साथ लाये पराठों को चाय के साथ खाने के लिए पास ही स्थित ताज होटल में प्रवेश करते हैं ।
खीरगंगा गर्म पानी का कुण्ड |
ताज होटल की तरफ बढ़ते हुए नवीन का बोलना है “मिल्क टी, ब्लैक टी या कोई भी 'टी' बोलने की जरूरत नही है, हमें संयम से काम लेना होगा और काली चाय या दूध-चीनी वाली चाय बोलना होगा, तभी हम एक चाय के बदले अपनी किडनी बचा पाएंगे” । दोनों इस विचार से सहमत होकर ताज होटल में प्रवेश करते हैं ।
5 स्टार जगह पर हमारा एक स्टार टेंट |
“भाई जी किसी भी होटल में जाकर देख लो 80 रूपये से कम में कोई टी देता हो तो आपको फ्री टी दूंगा”, यह ताज होटल के मालिक का बोलना है जोकि सैंज से है । “चलो आप तो लोकल हो खास आपके लिए 70 रूपये लगा देंगे”, बोलकर मालिक नए लाये तंदूर में लकड़ी डालने लगता है । मालिक का साथी नवीन से पूछता है कि “तो बताओ कौनसी वाली टी लोगे”, जिसपर नवीन का बोलना “भईया देशी वाली चाय लाओ दूध चीनी डालके” । बाहर बोर्ड तो नहीं लगा था कि “बाहर से लाये खाने पर प्रवेश वर्जित है”, फिर भी पूछ ही लेता हूँ “भाई जी क्या यहाँ साथ लाये खाने को खा सकते हैं?”, मेरे बोलने के बाद मालिक अकड से बोलता है “कैसी बातें करते हो भाई जी, हम बाकी लोगों जैसे नहीं है...खाओ आराम से खाओ” । कांच के गिलासों में चाय आती है, हम चाय-पराठे का डिनर कर रहे हैं और मालिक नई लाये तंदूर को सेट करने का प्रयास ।
यहाँ से फोन कॉल भी हो सकती है जिसका चार्ज 50 रूपये 10 मिनट का है, अगर रौंग नंबर लगता है तब तो आपके लग गये, नाश्ता 250 रूपये का है जिसमें चाय, और 2 पराठे होंगे, रुकने का किराया 1500 रूपये से शुरू होकर 5000 तक जाता है । इतनी जानकारी देकर मालिक हमारी तरफ देखता है, हम हंसकर एक-दूसरे को देखते हुए मन में सोचते हैं कि “घर से यह बोलकर निकले हैं कि ट्रेक पे जा रहे हैं न कि किडनी बेचने” ।
नौ बजे हम टैंट में सोने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन बाहर से आते अलग-अलग जोनर के म्यूजिक ने हमें और आधे घंटे जगाने का काम किया, जिसमें खास रोल सपना चौधरी के बहूचर्चित सोंग “सॉलिड बॉडी” का रहा । देश की पहली स्मार्ट सिटी खीरगंगा में जनरेटर, सेनिटरी पेड से लेकर कंडोम, चकाचौंध कर देने वाली लाइटें, 50 हजार वाट के जम्बो स्पीकर और घाटी का प्रिय मादक पदार्थ भारी मात्रा में उपलब्ध है । मैं राज्य सरकार से एक और अनुरोध करना चाहूँगा कि “यहाँ एक छोटा-मोटा एअरपोर्ट और बना दिया जाये ताकि हमारे इंटरनेशनल व डोमेस्टिक बन्दरलस्ट भाई-बहन बिना समस्या के यहाँ की सुविधाओं को भोग सकें” ।
खीरगंगा "द स्मार्ट सिटी" |
सिर्फ एक रात गुजारने के लिए कौन भला सिलिंडर-चूल्हा, परात, 10 लिटर का कुक्कर, अनगिनत स्टील की थालियाँ, पानी की केनियाँ, 20 बाय 20 की तिरपाल, आलू-प्याज-टमाटर, चम्मच, स्टील ग्लास और 2 विस्की की बोतल...लायेगा वो भी खीरगंगा में?, इसका जवाब है कुल्लू से आया 5 लड़का लोगों का ग्रुप । उनके पास हाईकिंग टेंट था जिसे उन्होंने तिरपाल में लपेट दिया । देर रात तक उनकी गलियों की आवाजें हमारे कानों में ऐसे आती रही जैसेकि हमसे ही बात कर रहे हों ।
रात की बारिश के बाद सुबह मौसम साफ है । आगे के लम्बे रास्ते को देखते हुए आज हम यहाँ से पराठा खाकर निकलने का फैसला करते हैं । हम टेंट पैक करने के बाद वंस अगेन ताज होटल में जाते हैं जहाँ मालिक गेंदे के फूलों के पौधे लगा रहा है । “2 पराठे और 2 चाय कितने के पड़ेंगे आप ये बताओ भाई जी”, बोलकर मैं साँस खींचता हूँ । “औरों से तो 400 लेता हूँ लेकिन आप 360 दे देना”, हम हाँ बोल देते हैं जिसपर मालिक कमीनी स्माइल पास करता है मानो बोल रहा हो “फंस गये जाल में” । चाय ठीक थी बाकि पराठे तो मानो किसी ने घास काटकर रेत में मिलाकर खिला दिए हों । 360 का नाश्ता और 120 की दो कच्ची मैगी के पैकेट लेकर हमने हिमाचल की पहली स्मार्ट सिटी खीरगंगा को साढ़े आठ बजे छोड़ा ।
Day 02: खीरगंगा से पांडू पुल से पहले
आज का टारगेट उड़ी थाच पहुंचने का है और अगले कल मानतलाई झील । भारी बैगों के बावजूद एक अच्छी स्पीड से हम आगे बढ़ते हैं । रास्ता ज्यादा मुश्किल नहीं है और मौसम भी अभी तक ठीक है । पार्वती खूंखार तरीके से हमारी बाएं तरफ बह रही है । सर पास से नीचे उतरते हुए मेरे सीधे पैर में झटका लगा था जिसका असर अब होने लगा है, पिछले कल तक घुटना सिर्फ उतराई मे दुःख रहा था अब समतल में भी बगावत कर रहा है । रास्ते में सिवाय 2 गुज्जरों के हमे कोई नही मिला, जल्द ही हम पहले गुज्जर डेरे पर पहुंचते हैं जोकि मुख्य पगडण्डी से लगभग 100 मीटर दूर है । जिसको देखकर मेरा बोलना है कि “अगले डेरे पर दूध पियेंगे” । करीब डेढ़ घंटे चलने के बाद हम अगले गुज्जर डेरे पर पहुंच जाते हैं, यहाँ हम एक लीटर दूध लेते हैं जिसमें से एक-एक गिलास यहीं पी लेते हैं और बाकी पानी की बोतल में भर लेते हैं । 50 रूपये प्रति लीटर के हिसाब से कीमत अदा करने के बाद कदमों को टुंडाभुज की तरफ बढाते हैं ।
टुंडा भुज से पहले गुज्जर डेरे की एक लड़की |
पहले यह टूटा पुल ठाकुर कुआं ले जाता था लेकिन अब कहीं नहीं |
2 लड़के मिलते हैं, वो ग्रुप के साथ हैं और पीपीपी जा रहे हैं । मैं घुटने के दर्द से घुटन महसूस करता हूँ जिसपर नवीन का आज भी यही कहना है “कंधे टूट रहे हैं” । 12 बजे हम टुंडाभुज पहुंचते हैं, यहाँ फारेस्ट वालों ने एक बिल्डिंग बनाई हुई है जिसमें एक बाबा रहता है । चाय 50 रूपये, दाल-चावल की प्लेट 150 रूपये...यहाँ के रेटों की जानकारी पाकर यह स्थान स्मार्ट सिटी खीरगंगा की कोई शाखा प्रतीत हुई ।
टुंडा भुज स्थित फारेस्ट सराय |
बाबा टूरिस्ट को कूड़ा फ़ैलाने पर गाली दे रहा है, गाँव वालों को खीरगंगा में गंद डालने के लिए गाली देता है, कहीं भी हगने के लिए गाली देता है, गुज्जरों की तारीफ करता है । गुज्जरों की तारीफ का रहस्य बाद में ज्ञात हुआ बाबा को गुज्जरों से दूध मिलता है । हम चुप हैं और बाबा केजरीवाल की भांति लगातार बारम्बार यही बोले जा रहा है, “सब गंद डालते हैं” । “खीरगंगा दिव्य स्थान था सालों ने नर्क बना दिया, वहीं मंदिर है वहीं लडकियाँ लाते हैं” । बाबा का मिजाज देखकर लग रहा था कि किसी ने उनके साथ कुछ गलत किया है । आखिरकार बाबा ने गुस्से-गुस्से में बोल दिया कि “हरामजादे ढाई हजार रुपया तौला माल बेचते हैं वो भी नकली” । दुखती रग का पता चल गया था । नवीन के कहने पर हमने चाय ली और 20 रूपये की 10 टॉफी खरीदी । अब तक पीछे छूटे दोनों लडके भी आ चुके हैं जिन्होंने हमें खाने के लिए पराठे दिए । 40 मिनट के ब्रेक के बाद हमने टुंडाभुज छोड़ा, बाबा अभी भी टूरिस्टस को गाली दे रहा था और कुछ ही मिनटों में फटने वाला है ।
बाबा का शॉपिंग मॉल |
पार्वती के साथ चलते-चलते हम कई नालों को पार करते हैं, अभी तक उफनते नालों से कोई परेशानी नहीं हुई । पटरा घाट से पहले सभी नालों पर लकड़ी के कच्चे पुल बने हैं । हम तेजी से भाग रहे हैं, कारण बाबा की सलाह “2 बजे से पहले पटरा घाट पार कर लेना नही तो पानी बढ़ जायेगा । आसमान मे काले बादल हैं, बारिश किसी भी वक्त हो सकती है और हम कुछ ही देर में पीपीपी की पहली चुनौती को टक्कर देने वाले हैं । बताया जाता है कि टुंडा भुज की धार पर अगर ऊपर चढ़ जाएँ तो नेटवर्क आ जाता है और यहाँ से अगर और आगे जाएँ तो आदमी ग्लेशियरों को पार करता हुआ बहुत दूर स्थित न्यूली भी पहुंच सकता है, लेकिन वहाँ तक सिर्फ जिगरवाला ही पहुंच सकता है ।
पटरा घाट की दीवारों जे जूझता नवीन |
पटरा घाट पर चुनौतियाँ कम नहीं है |
25 मिनट बाद हम पटरा घाट की चढ़ाई शुरू करते हैं, बारिश अभी भी शुरू नहीं हुई है इसलिए काला पहाड़ सूखा है । हम धीरे-धीरे व ध्यान से काली चट्टान पर चलने लगते हैं, नीचे एक बड़ा स्नो ब्रिज है जिसको पार्वती ठोकर मारती बह रही है । मैं नवीन को बार-बार ध्यान से चलने की नसीहत दे रहा हूँ, कुछ कदम चलकर मैं फिर उसे टोकता हूँ “सावधान रहें सतर्क रहें”, हो सकता है बाद में नवीन को भी यह महसूस हुआ होगा कुछ ज्यादा ही अनूप सोनी हो गया है । पटरा घाट पौने दो घंटे में बिना किसी क्षति के पार होता है, पार करने से पहले हमें कई छोटे-बड़े नाले क्रोस करने पड़े जिनमें दो सबसे बड़े थे । अगर इस पहाड़ को 12 बजे से पहले पार किया जाये तो ज्यादा बेहतर होगा, मेरी यह सलाह जनहित में जारी है ।
खूबसूरत पार्वती घाटी |
ढाई बज चुके हैं हम अभी पैरों पर हैं और अब तक किसी भी गद्दी पार्टी से कोई एनकाउंटर नही हुआ । मेरा घुटना दर्द की तरंगें छोड़ रहा है जो मुझे आह से अहा तक बोलने पर मजबूर कर रहा है । अब बड़ी घास शुरू हो गई है, सुना है ऐसी घासों में भालू छुपकर रहता है, डर से हम जोर-जोर से बात करते हैं तो कभी सिटी बजाते हैं । हमारी बाईं तरफ गुस्सेल डीबीबोकरी नाला पार्वती में मिल रहा है, यहाँ से डीबी के दायीं तरह दो ऊँची चोटियां दिखती हैं, अभी दोनों ने ही बादलों का ताज पहना हुआ है । यहीं डीबी के सामने एक हट बना है और एक तार बंधा है आरपार आने-जाने को । यहाँ गद्दियों को होना चाहिये था पर अभी यहाँ कोई नहीं है ।
पार्वती नदी की शोभा बढ़ाते स्नो ब्रिज |
डीबीबोखरी नाले पर स्थित बादलों में उलझी चोटी |
पार्वती घाटी को फूलों की चादर ने पूर्णत काबू किया है, तरह-तरह के फूलों में नीले फूलों ने बाजी मार रखी है । आगे बढ़ते हुए ब्लू कारपेट पर चलने की फीलिंग आ रही है । नजरें तरस गयीं हैं गद्दियों को देखने को लेकिन सभी पता नहीं कहां गायब हैं । अब समय दोपहर के 3 बज चुके हैं और सिवाय दो घोड़ों के हमें कुछ नहीं दिखाई दिया । मायूसी, टूटी टांगों और कुचलते कन्धों को लेकर हम ओन द वे हैं । लगभग 2 दर्जन से ज्यादा नालों को पार करके हमें दूर कुछ टेंट दिखाई देते हैं । हमारी टांगों में बस इतनी भी शक्ति नहीं बची है कि वहां तक पहुंच सकें । घिसड़ते हुए हम शाम 4 बजे उस स्थान पर पहुंचते हैं जहाँ हमें डेरे दिखाई दिए थे । मैं मुआइने के लिए जाता हूँ, मुख्य रास्ते से लगभग 100 मीटर दूर कुछ टेंट लगे हैं, वहाँ एक कुत्ता हैं जो मुझपर टूट पड़ना चाहता है । मैं हेल्प-हेल्प चिल्लाता हूँ और भागकर बंद टेंटों में घुसकर जान बचाना चाहता हूँ, अंतत 5-7 मिनट के बाद मेरी फरियाद सुनकर एक बंदा टेंट से निकलता है, जिसके बाद कुत्ता अपना दोस्त टाइप हो जाता है ।
खूबसूरत पार्वती घाटी |
मैं भागकर नवीन को लेकर आता हूँ, उसे बताता हूँ कि “अभी चाय मिल जाएगी और रात को खाना भी मिल जायेगा” । लड़के से बात करके हम अपना टेंट लगाते हैं । गद्दियों के बारें में पूछने पर लड़का बताता है कि “सभी आजकल ऊपर बैठे हैं और बाकी आगे निकल गये हैं” । आगे भी गद्दी हैं ये हमारे लिए गुड न्यूज थी । चाय पीते-पीते आगे लड़का बताता है कि “हम लोग तो जड़ी-बूटी वाले हैं, मेरे बाकि साथी अभी ऊपर गये हैं, आएंगे थोड़ी देर में” । कुछ देर में बाकी लोग भी आ जाते हैं, सभी मिलाकर कुल 7-8 जने हैं । सूरज ढल रहा हैं, बादल छट गये हैं और ऊपर से आये लड़का लोग सामने एक पहाड़ की ओर ऊँगली करके बताते हैं कि “ऊपर एक शिवलिंग रूपी पत्थर है और हम वहाँ जाना चाहते हैं” । मैं शिवलिंग वाले पर्वत के फोटो खींचता हूँ, धूप की रोशनी में शिवलिंग सोने की तरह चमकता दिखाई देता है ।
पांडू पुल से पहले अपना टेंट |
दिख रहा है सुनहरा शिवलिंग, है ना खास |
साढ़े नौ बजे हम खाना खाकर सोते हैं । आज हमें उड़ी थाच पहुंचना था लेकिन पटरा घाट के बाद घुटने की वजह से मेरी स्पीड काफी कम हो गई थी । अब कल का टारगेट मानतलाई झील रखा है और परसों का पिन पार्वती पास क्रोस करने का । लडकों ने बताया कि “यहाँ से लगभग 20-25 मिनट का रास्ता है पांडू पुल का” । आज हमने खीरगंगा से जड़ी-बूटी वालों तक 16 किमी. की दूरी 8 घंटे में तय करी, जिसमें 600 मीटर का हाईट गेन हुआ, काफी खराब प्रदर्शन रहा ।
खूबसूरत पार्वती घाटी |
जड़ी-बूटी बोरों में भरते हुए |
Day 03: पांडू पुल से थोड़ा पहले से मानतलाई झील
रात को नींद बढ़िया आई, सुबह छह बजे उठकर हमने टेंट पैक किया । बाहर धूप के साथ ठंडी हवा के बीच जड़ी बूटी गैंग हमें दाल-चावल का नाश्ता कराती है और बदले में कोई पैसा लेने से मना कर देती है । हम इस स्थान को साढ़े आठ बजे छोड़ते हैं । बढ़िया मौसम को देखते हुए हम फोटो खींचते हुए चल रहे हैं । जल्द ही इस रूट की दूसरी बड़ी चुनौती पर पहुंचते हैं, पत्थरों के सूखे होने के कारण पांडू पुल आराम से पार हो जाता है, अगला पुल भी पार हो जाता है । अब इस घाटी की सबसे बड़ी चुनौती बाकी बची है जिसे हम परसों पार करेंगे ।
पांडू पुल |
पांडू पुल के बाद दूसरा पुल |
खूबसूरत पार्वती घाटी |
10 बजे हम उड़ी थाच पहुंचते हैं जहाँ कुछ टेंट लगे हैं । स्टाफ से बात करके पता चलता है कि उनका ग्रुप मानतलाई झील के दर्शन करके आज यहीं वापस आयेगा” । वो हमें नाश्ते को पूछते हैं जिसपर हम दोनों का एक साथ कहना है “धन्यवाद भाई जी” । यहाँ भी घाटी की सुन्दरता चरम पर है, रंग-बिरंगे फूलों के बीच चलना एक अलग ही ऊर्जा प्रदान कर रहा है । आगे एक गद्दी मिलता है, 15 मिनट का ब्रेक लेकर हम उनसे बात करते हैं । वो बताते हैं कि “आगे भी कई डेरे हैं, झील से पहले भी और झील के बाद भी” । पिछली बार मैंने कई गुफाओं को देखा था झील के आसपास अगर वहाँ गद्दी मिल गये तो सोने पे सुहागा हो जाएगा ।
उड़ी थाच |
खूबसूरत पार्वती घाटी |
फूलों का कारवां अभी भी कायम है, चारों तरफ हरियाली है और जब भी चोटियां बादलों के पीछे से झांकती तो हमें अपने गर्भ में समेटे ग्लेशियर दिखाती । 12 बजे हम एक गुफा के पास ब्रेक लेते हैं जहाँ कोई नहीं है । मैं मौके का फायदा उठाते हुए अपने दांत साफ करता हूँ, मुंह धोता हूँ और साथ में गंदे जुराबों को धोकर बैग से बंधे ट्रेकिंग पोल पर सुखा देता हूँ । समतल रास्ता समाप्त होते ही हल्की चढ़ाई में बदल जाता है । यहाँ चारों तरफ पत्थर ही पत्थर हैं, सामने ऊपर मानतलाई झील है और हमारे दाहिनी तरफ बादलों के बीच बर्फ से ढकी सफेद चोटियां हैं । दो बकरी वाले मिलते हैं जो एक कुत्ते को घसीटते हुए नीचे ले जा रहे हैं । थोड़ा आगे एक अंकिल मिलते हैं, उनका कहना है कि “वो पिछले कई दिनों से बुखार से पीड़ित हैं अगर तुम्हारे पास कोई गोली-वोली हो तो दे दो” । हमारे पास तो खाने को खाना भी नहीं था फिर गोली तो बहुत आगे की चीज है । बकरियों के साथ वो आगे निकल जाते हैं यह बोलकर कि “पैरासिटामोल तो वो कई दिनों से ले रहा हूँ लेकिन कुछ फर्क नहीं पड़ रहा” ।
इतने फूल तो फूलों की घाटी में भी न होंगे |
दोपहर दो बजे हम मानतलाई झील पहुंचते हैं, पिछली बार यहाँ खूब बारिश हुई थी । इस बार मौसम बढ़िया है, उड़ी थाच वाला ग्रुप झील के दर्शन करके अब वापस जा रहा है । हम रुककर सुस्ताते हैं, खूब फोटो खींचते हैं बाकी नवीन को बताता हूँ कि मंढेर वाला गद्दी इस झील को पानी में घुसकर पार कर देता है । अभी तो पानी बहुत है और रंग बिलकुल मटियाला, सुना है कभी यह नीला भी होता है ।
इससे सुंदर घाटी अभी तक नहीं देखी |
पार्वती नदी का उद्दग्म स्थल |
मानतलाई झील |
जितने परेशान हैं उतने ही हैरान भी कि आखिर ये गद्दी गये तो गये कहाँ । हम मानतलाई से काफी आगे आ चुके हैं और अभी तक कोई गद्दी नहीं दिखाई दिया । शाम होने जा रही है और सूरज भी तैयारी कर रहा है डूबने की, दोनों खोजी बीहड़ में भटक रहे हैं । अब तक हमारी स्पीड काफी कम हो जाती है और जब गद्दियों को पहाड़ के बिलकुल ऊपर देखते हैं तो हम खुद को मृत समझने लगते हैं । मौसम के खराब होते मिजाज और गर्म चाय के मोह को छोड़ते हुए हम थोड़ा आगे जाकर टेंट लगाने का फैसला करते हैं । यहाँ घास है लेकिन पीने के लिए पानी नहीं है, गद्दियों के बाद पानी खोजते हुए हम अंततः अपने टेंट को गाड़ते हैं । टेंट लगते ही मौसम ठीक हो जाता है, अब रकसैक का सारा सामान तेज आती धूप में सुखाया जा रहा है । रात होने में बहुत समय बाकी है लेकिन हमने अभी से ड्राई फ्रूट्स खाने शुरू कर दिए हैं । यहाँ से आगे एक नाला है जिसे पिछले साल भी क्रोस किया था, उस समय पानी घुटने तक था लेकिन इस बार इसका बहाव तेज महसूस हो रहा है ।
जब भूखे सोये थे |
यह हमने ठीक किया कि आज शाम को इस गहरे नाले को पार नहीं किया, कल सुबह-सुबह इसका पानी कम होगा तब काफी आसानी होगी इससे जंग । सूरज डूबने के साथ ही बारिश शुरू हो जाती है, तेज बारिश । हम कल पास क्रोस करने की बातें करते हैं, बाहर होती बारिश से भीतर मन परेशान हो उठता है । रात नौ बजे हम सो जाते हैं, बारिश अभी भी जारी हैं ।
आज जड़ी बूटी वालों से लेकर यहाँ तक 16.4 किमी. की दूरी तय हुई, हाईट गेन सिर्फ 776 मीटर ही हुआ और यहाँ की ऊँचाई 4134 मीटर है ।
Pyramid Peak 6036 Meter |
जितने नाले इस ट्रेक पर पार करते हैं उतने तो इंसान पूरे जीवन में क्रोस करता है |
भयावह था इन्हें पार करना |
तेज पानी के बहाव में देर नहीं लगती इन कच्चे पुलों को बहने में |
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खीरगंगा से मानतलाई झील तक की जानकारी |
सचमुच यह एक रोमांचक यात्रा है। शुरू में दोस्त का आगे ना जाने का फैसला फिर भी आगे बढ़ने का जनून, खीरगंगा का आधुनिकीकरण का वर्णन। दर्द से करहाते और शायद 20 से 25 किलो का बैग कंधो पर उठाते हुए आगे बढ़ते रहने का सफर। नालो को पार करना भूखे सो जाना सब कुछ आँखे खोल कर पढ़ने को विवश करता है।
ReplyDeleteभाई आप ग़ज़ब लिखते हो।
धन्यवाद सचिन भाई, तारीफ भरे शब्दों के बदले खास आपके लिए अगली कड़ी की तैयारी चल रही।
DeleteBhut mja aaya apki aapbiti pd kr
DeleteEsa lga jese me khud es trip pr hu
बहुत बढ़िया भाई जी, मज़ा आ गया
ReplyDeleteखुराना साब अब आप भी बना ही लो प्रोग्राम इस ट्रिप का।
Deleteभाई अकेला इतनी दूर तो नही,अपना विचार बताओ तो बात करते है. बाकी ब्लॉग पढ़कर मज़ा आ गया उस दिन, आज फिर पढते है
Deleteमैं भी गया था पिछली साल सितंबर में सोलो राइडर बनके , मानतलाई से वापिस होना पड़ा | फुड पवाइजनिंग ने हालात खराब कर दिये थे, गद्दियों के बताने पे मैने मशरूम खाये थे उनको खाने के बाद दो दिन तक कुछ भी नहीं खा पासा था���� अब इतनी टशन ले ली है की पिन पास और भाभा पास दोनों एक साथ करने है
ReplyDeleteसोलो ट्रेवल्स के बहुत किस्से सुने और देखे हैं, टशन बस इतना ही लेना कि खुद को वापस भी ला सको, बाकी इंसान के जज्बे से ऊपर कुछ नहीं।
Deleteवापस किसे होना है गालिब हमें तो इन्ही पहाड़ो में खोना है खुद की तालाश में 😍
Deleteओहो पुराने आशिक हो फिर तो आपको कोई नहीं रोक सकता...
Deleteइन ख़ूबसूरत घाटियों पार्वती नदी, फूलो से भरे इस महोल को आपकी आँखो से देखने का बेहद मज़ा आया।
ReplyDeleteरोमांचक साहसिक ओर खबसूरत
Thnxx to तरुण गोयल who shared ur blog on his timeline
धन्यवाद आप दोनों का, शुक्रिया यहां आने के लिए।
Deleteअब इस पोस्ट को लाइक करने का ओप्सन किधर कू है???? ऐसे कैसे चलेगा रे बाबा.....
ReplyDelete😍😍😍😍😍😍😍😍😍
वेरी वेरी गुड पोस्ट, आई लव डिस पोस्ट....
बटन कोई भी दबाओ, वोट मोती जी को ही जायेगा
DeleteLAC पर चल रहे वर्तमान हालात के मद्देनज़र भारत सरकार को आपको लेह में तत्काल प्रभाव से पोस्टिंग दे देनी चाहिए।
ReplyDeleteसर दैट विल बी ऐ गुड आईडिया फॉर खाम्प्न देश
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