किस्से जालसू पास के (Stories Of Jalsu Pass)


धौलाधार पर्वत श्रृंखला में जालसू पास को अन्य पासों की तुलना में एक आसान ट्रेक माना जाता है । इस पास का इस्तेमाल बैजनाथ से मणिमहेश कैलाश तक पहुंचने के लिए किया जाता है । वैसे तो स्थानीय पपरोला से नयाग्राम तक भी इसका इस्तेमाल करते हैं, मतलब यह पास काँगड़ा को चंबा से जोड़ता है । हम तीन लोगों ने अक्तूबर महीने में जालसू से मणिमहेश कैलाश के दर्शन किये ।
Jalsu Pass Trek Rohit kalyana
जालसू जोत (3445 मीटर)
यह बरसात के बाद का अक्तूबर है, मानसून हिमालय से वापस जा रहा है अगले साल फिर वापस आने के लिए । पूरी बरसात कहीं नहीं गये, सारा समय बीड़ में बिताया । कुछ छोटे-मोटे ट्रेक और साइकिलिंग हमारे हिस्से आई । सदियों से जालसू पास को “टू डू लिस्ट” में रखा हुआ था लेकिन समस्या यह थी कि यह लिस्ट कहाँ रखी थी यही भूल गया था ।

बात है 15 अक्तूबर 2018 की, जब हम तीन लोगों ने असले-बारूद के साथ जालसू के तरफ कूच किया । मौसम बढ़िया था और साथी भी । मेरे अलावा, नूपुर थी और नगरोटा के राजा साहब थे, नाम है पहाड़ो वाला, रॉकी, अमित कटोच । इस आदमी के तीन नाम है, राजे हैं तो पोसिबल है । हम तीनों पहाड़ो वाला की पिंटू से (पुंटो कार) से निकले । हमारा पहला पड़ाव पपरोला रहा जहाँ से हमने ट्रेक के लिए जरूरी सामान की खरीदारी करी ।

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हाइड्रो रिजर्व कंजर्वेशन बॉडी 
जल्द ही हम उतराला पहुंचे, समय लगभग साढ़े दस का था । पहले से फैसला हो चुका था कि गाड़ी से उतरते ही धावा बोल देंगे, जवान खून सभी का ट्रेक पर दौड़ने के लिए उछाल मार रहा था, लेकिन सेल्फियों के चक्कर में हमने पूरे 45 वहीं बिताये । आखिरकार अब जब चलने का समय आया तो पता चला कि गाड़ी और भी आगे तक जा सकती है । हमने बिनवा हाइड्रो प्रोजेक्ट पर कार पार्क करी और यहीं से चढ़ाई शुरू करने का तय किया । वैसे से ज्यादातर लोग वहीं से ट्रेक शुरू कर देते हैं जहाँ हमने पहले पिंटू को पार्क किया था, याद के लिए ट्रेक वहां से शुरू होता है जहाँ एक बड़ी वाटर बॉडी है ।

हाइड्रो प्रोजेक्ट से ही तीखी चढ़ाई लगी, तीनों का तेल पहले निकला पसीना बाद में । कुछ लोगों ने बताया था प्रोजेक्ट पर कि यह रास्ता भी जालसू के मुख्य मार्ग से मिलता है गाँव क्रोस करने के बाद । अभी रास्ते में मिले एक अंकिल ने बताया कि पहले पानी की टंकी आयेगी फिर स्कूल आयेगा फिर गाँव आयेगा उसके बाद जालसू का सीधा रास्ता आयेगा । तो पानी की टंकी तक अपने समस्त औजार अस्त-व्यस्त हो गये । स्कूल पार हुआ, और फिर गाँव आया । गाँव को देखकर तीनों के मन में पहला ख्याल यही था कि “क्या यहाँ पलायन की प्रक्रिया पूर्ण हो गयी है?” । दूर-दूर तक हमें कोई नहीं दिखाई दिया । दस-एक मिनट के बाद कुछ बच्चों की आवाज आई, बातचीत से पता चला कि जालसू का रास्ता गाँव को पार करके आता है । बच्चे हमारे साथ आगे तक गये । अब रास्ता तो पता चल गया लेकिन यह नहीं पता चला कि गाँव वाले कहाँ गायब है ।

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रस्ते में सुरगों, बड़ी-बड़ी पानी की नालियों की भरमार है । बीड़ से अपने साथ आलू के पराठे लाये थे, नदी पार करने से पहले हमने पेट पूजा करी । यहाँ कोई भेड़पाल बैठा है, लेकिन वो अभी यहाँ है नहीं...हाँ 20-25 मेमनों को देखना अति लुभावना है । बनू खड्ड में पानी ज्यादा नहीं है, जूते उतरने से पहले ही नदी पार हो गयी । लगभग एक घंटे चलने के बाद बारिश शुरू हो गयी अच्छी बात थी कि हम एक झोपड़ी में थे । यह बक्लुद्दु है जहाँ हमें कुछ लोग भी मिले, सभी स्थानीय है और साल के लगभग 8-9 महीने यहीं बिताते हैं । खैर जबतक बारिश रुकी तब तक हमने एक-एक प्याला चाय का ग्रहण किया ।

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अब तक रास्ता ज्यादा मुश्किल नहीं था, कहीं-2 चढ़ाई थी तो कहीं-2 समतल । धौलाधार में वैसे भी इस ट्रेक को आसान ट्रेक के श्रेणी में रखा जाता है । शाम होने से पहले हम अपने गंतव्य तक पहुंच गये । यह परई (2298 मीटर) है, यहाँ कुछ टपरीयां बनी हैं और यहाँ तक पैदल दूरी 10 किमी. हो जाती है । इस बार भारी बारिश के चलते ट्रेकर भी कम ही आये इस तरफ इसलिए ज्यादातर टपरियां खाली है सिवाय एक के । अकेले अंकिल ने बताया कि “एक टपरी तो पिछले दिनों बाड़ में लगभग बह ही गयी थी । उस टपरी के भीतर 2 लोग थे, पति-पत्नी दोनों ही स्थानीय है । आदमी को शराब पीने की आदत है, बाड़ वाले दिन भी वो धुत्त होकर टपरी में सोया था बीवी बाहर से दौड़ती हुई आई और उसे बाहर निकाला । चार में से दो दीवार लगभग बह गयी हैं, बस इतना ही नुकसान हुआ उनका” ।

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परई में अंकिल के टपरी
इस उपरोक्त किस्से के साथ अंकित ने अपना खाता खोला । हम आज की रात यहीं बिताने वाले हैं और रामसिंह अंकिल ने इतने किस्से सुना दिए जितने उन्हें याद भी नहीं थे ।

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रामसिंह जी, जितनी उम्र उससे हजार गुणा किस्से हैं इनके पास
किसा नंबर वन: देयोल के रहने वाले हैं और किसी जमाने में उनके पास 30-40 घोड़े व् खच्चर हुआ करते थे । उस वक्त ज्यादातर विदेशी ही ट्रेकिंग करते थे भारत में, तब इनके जानवर काम आते थे । इन्होंने घोड़े व् खच्चरों के साथ लेह, ज़न्स्कर, काँगड़ा से चंबा, पांगी घाटी, स्पीति से पैन्गोंग लेक आदि ट्रेक किये हुए हैं । कई बार इन्होंने अंग्रेजों को बीहड़ों में भी छोड़ा है पूरे पैसे न मिलने पर । लगभग 30 साल इस काम को करने के बाद इन्होंने अपने परिवार और अपनी सुरक्षा के चलते सभी घोड़े-खच्चर बेच दिए । अब पिछले 18 साल से यहाँ परई में चाय की टपरी चला रहे हैं ।

किस्सा नंबर टू: एक बार एक साधु सफ़ेद कपड़ों में त्त्वानी से यहाँ आ गया, अकेला वो भी पैदल । रात के अँधेरे में उन्होंने ऊँगली से इशारा करके बताया कि उस पहाड़ के पीछे त्त्वानी है वहीं से वो आया था । शाम का वक्त था जब वो लगभग बेहोश होने की स्थिति में खड्ड पार से आवाज लगा रहा था । मैं पानी लेने बाहर गया था अचानक उसकी आवाज सुनी तो जैसे-तैसे उसे खड्ड पार कराकर यहाँ लाया । बाद में साधु ने बताया कि उसे त्त्वानी से जालसू जोत पार करके मणिमहेश की तरफ जाना था लेकिन कई दिन जंगल में अकेले भटकते-2 अब वो वापस जाना चाहता था । मैंने उसे उतराला से त्त्वानी जाने का आसान रास्ता बता दिया । कई हफ्तों बाद पता चला कि वो साधु फिर से त्त्वनी से अकेला निकला है परई के लिए लेकिन इस बार वो बरसात में निकला, मानसून चला गया लेकिन साधु यहाँ नहीं पहुंचा । बाद में एक गद्दी ने जानकारी दी कि एक महात्मा सफेद कपड़ों में ऊपर जंगल में मरा हुआ है । मै व्याकुल हो गया उस साधु के बारें में सोचकर, मैं गद्दी के साथ उस स्थान पर गया वहां अब सिर्फ सफ़ेद कपड़े और हड्डियों का ढेर ही रह गया था, ये वही साधु था । हम दोनों ने उसके कपड़े और अस्थियों को इकठ्ठा करके उसका वहीं क्रियाकर्म कर दिया ।

किस्सा नंबर थ्री: एक बार 2 नेपाली आये मेरे पास, उनके पास बंदूकें थी । उन्होंने मुझे लालच दिया कि रीछ मारना है, आप बताओ कि कहाँ बैठता है, किस तरफ ज्यादा मिलते हैं । अगर मारने में कामयाब हो गये तो खूब पैसा देंगे आपको । मैं लालच में आ गया और पूरे एक हफ्ते तक हमने एक काले भालू का पीछा किया । उसकी हर हरकत और दिनचर्या पर बारीकी से नजर रखी । फिर वो दिन आ गया जब उन्होंने उसकी गुफा को हरे पत्तों से ढककर उसमें धुंआ कर दिया और गुफा के एकमात्र गेट पर दोनों बन्दूक लेकर बैठ गये । भालू गुफा में चिल्लाया और तेजी से बाहर निकला, उतनी ही तेजी से नेपाली ने गोली चलाई । गोली भालू के पैर पर लगी लेकिन उसे कुछ नहीं हुआ । पहली बार मैंने देखा कि भालू कितना समझदार प्राणी है । उसने बहते खून को रोकने के लिए एक पौधे के कुछ पत्ते तोड़े और उसे अपने जख्म पर लगा लिया । बस इस हरकत के बाद हम सीधे मेरी टपरी में आ गये । उस दिन के बाद से मैंने कसम खा ली कि अब कभी लालच नहीं करूंगा ।

किस्सा नंबर फोर: आगे अंकिल ने बताया कि यहाँ से एक और रास्ता जाता है जो कि अरु पास तक जाता है । बीच रास्ते में एक छोटी झील है और ऊपर पहाड़ पर किसी राजा के महल के अवशेष हैं, अगर चलना चाहो तो मैं दिखा सकता हूँ, हमारा जवाब था कि “नेक्स्ट टाइम पक्का देखेंगे” ।
किस्सा नंबर फाइव: किसी जमाने में यहाँ के राजाओं ने पंजाब के मुस्लिम गुज्जरों को उनके जानवर चराने के लिए जगहों का परमिट दिया । आगे अंकिल ने बताया कि वो सभी जगहें चारे के हिसाब से बहुत उपयुक्त थी । जब भी गद्दियों के डेरे उन स्थानों से गुजरते तब-तब दोनों समूहों में गाली-गलोच होता । एक बार स्थिति हाथापाई तक पहुंच गयी । हुआ यूँ कि एक गुज्जर ने गद्दी पर हाथ उठा दिया था बस फिर क्या था वो अपने गाँव चोबिन आया जहाँ से अपने साथ लगभग 50 लोगों को लेकर जालसू जोत पहुंचा । फिर वहां दिन दहाड़े नरसंहार हुआ, गद्दियों ने वहां बैठे सभी गुज्जरों को मौत के घाट उतार दिया । बाद में गुज्जरों के परिवार के सदस्यों ने उनके शवों को जोत के अरे-परे दफना दिया । इस हादसे के पश्चात फिर कभी कोई घटना न सुनने को मिली न ही देखने को । उनकी कब्रों को आज भी जोत के आसपास पहचाना जा सकता है ।

किस्सा नंबर सिक्स: गाँव की लडकियाँ घास काटने गयी हुई थी जंगल में, लगभग सभी शाम तक अपने-2 घर आपस आ गयी सिवाय एक के । उस एक लडकी को खूब ढूँढा गया लेकिन कहीं कोई अता-पता न चला । दिन, हफ्ते, महीनों बीत गये पर लडकी न जाने कहाँ गायब हो गयी । फिर पूरे 2 साल बाद एक लड़की बिना कपड़ों के घिसड्ती हुई गाँव में पहुंची । उसने बताया कि वो वही लडकी है जो गाँव से गायब हो गयी थी । आगे लडकी ने बताया कि “एक भालू मुझे उठाकर ले गया था जब मैं घास काट रही थी । भालू मुझे अपनी गुफा में लेकर गया जहाँ उसने कई दिन तक मेरे तलवे चाटे । कई दिन बाद जब वो गुफा से बाहर गया तब मैंने वहां से भाग जाने की सोची लेकिन मैं खड़ी ही नहीं हो पाई, लेकिन मैं रैंगकर गुफा के गेट तक पहुंची तो पता चला कि गुफा के मुहाने को भालू ने एक बहुत बड़े पत्थर से बंद किया था जिसे हटा पाना मेरे लिए नामुमकिन था । उसने मुझे कई महीने उस गुफा में बंद रखा, वो पहले मांस लाता फिर जब उसने देखा कि मैं मांस नहीं खाती तो वो न जाने कहाँ से फल लाया । मैं भूखी थी मैंने फल खाए । एक दिन भालू ने मेरे साथ शारीरिक सम्बंध बनाएं, अब वो रोज-रोज मेरे साथ सम्बंध बनाने लगा । समय बीतता गया और मैं गर्भवती हो गयी । कुछ महीनों बाद 2 काले भालू के बच्चों को जन्म दिया । डिलीवरी के कुछ दिन बाद न जाने भालू कैसे गुफा के गेट को खुला छोड़ गया, और बस मौके का फायदा उठाकर मैं वहां से भागी और सीधा यहाँ पहुंची । गाँव वालों को उसकी बात सुनकर बहुत हैरानी हुई । सभी लोग उससे बात ही कर रहे थे कि तभी भालू के चिल्लाने की आवाज गाँव तक आने लगी, साथ ही दोनों भालू के बच्चे गाँव तक पहुंच गये जिन्हें गाँव वालों ने मार डाला । बाद में भालू कहाँ गया किसी को नहीं पता लेकिन कई महीने वो गाँव के आसपास घूमता देखा गया ।

किस्सा नंबर सेवन: यहाँ काले भालू बहुत हैं अगर आप लोग एक दिन और रुको तो आपको भी दर्शन कराता हूँ काली मौत से । अंकिल ने बताया कि खेत में काम पूरा होने के बाद गाँव वाले अपने जानवरों को यहाँ जंगल में छोड़ जाते हैं । यहाँ बहुत से पालतू पशु घूमते रहते हैं । अभी जब पिछले दिनों खूब बारिश हो रही थी तब एक शाम बाहर से गाय के चिल्लाने की आवाज आई, जैसे ही मैं टोर्च लेकर बाहर गया तो देखा कि टपरी के गेट के आगे ही भालू ने एक गाय का गला काट दिया है । लाइट को देखकर वो भाग गया । अगले आधे घंटे बाद फिर से आवाज हुई इस बार फिर जब मैं बाहर गया तब पता चला उसने एक और गाय को फाड़ दिया है । यह किस्सा तीन बार चला उसके बाद मैंने सोचा कि हो सकता है अगला नंबर मेरा हो । फिर मैं अपनी टपरी से बाहर नहीं निकला । सुबह बाहर निकलकर देखा तो चारों तरफ जानवरों के शव कटे-फटे पड़े थे । वाकई में दो शव तो हम तीनों ने भी देखें ।

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लाजवाब किस्से और हम
कब तक किस्सा सुनेंगे कल हमें जोत पर भी जाना है । खाना खाकर रात 12 बजे हम सोये । अगली सुबह तीनों चाय पीकर चल पड़े जोत की ओर । पिछले कल भी हमने एक नये रास्ते से सफर की शुरुआत करी थी और आज भी हमने परई से सीधा ऊपर चढ़ने का तय किया । यहाँ से शुरू हुई चढ़ाई सीधा हमें जोत तक ले गयी । परई से जोत तक पहुंचने में पूरे 3 घंटे का समय लगा । मौसम साफ़ था जोत के पास एक गद्दी मिला माल के साथ, अब वो वापस नीचे जा रहा है । लगभग 11 बजे का समय था हम तीनों जोत पर खड़े थे । सामने मणिमहेश कैलाश के दर्शन हो रहे थे, वहीं सामने कहीं कुजा चोटियाँ हैं । हमारे राईट साइड में लंघा किन्नौरी है, लेफ्ट में अरु जोत व धौलाधार है जो इन्द्रहार की तरफ जाती है, सामने नयाग्राम दिखाई देता है और वहीं कहीं लाके वाली माता है । यहाँ धूप खिली है, हरी घास है और एक छोटी झील है, जिसके बारें में बताया जाता है कि यहाँ हुई गद्दी-गुज्जर की लडाई से पहले इसमें हमेशा पीने योग्य पानी रहता था लेकिन उस घटना के बाद यह झील सूखती चली गयी व् पानी भी पीने योग्य न रहा । हम लोग फोटो खींचते हैं, सेब खाते हैं और लगभग 2 घंटे जोत पर बिताकर वापस चल पड़ते हैं परई ।

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जालसू पास की ऊँचाई जीपीएस पर 3445 मीटर आती है, परई से हमें 4.5 किमी. की दूरी तय करनी पड़ी जोत तक पहुंचने में । अब हमने नीचे उतरना शुरू कर दिया, इस बार हम पारम्परिक मार्ग के नीचे उतरते हैं । रास्ते में लैंड स्लाइड है जहाँ एक गद्दी का माल फंसा हुआ है । हम थोड़ी देर खोतरू रेस्ट करते हैं फिर सीधा परई और वहाँ से तेज गति से सीधा हाइड्रो प्रोजेक्ट पर जहाँ पिंटू पार्क है । गाड़ी में बैठकर हम उतराला पर ब्रेक लेते हैं जहाँ सभी चाय के साथ समोसे खाते हैं । पहाड़ों वाला पपरोला से नगरोटा चला जाता है और हम वहां से बस लेकर बैजनाथ फिर बीड़ की बस लेकर सीधा घर ।

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मणिमहेश कैलाश 
ट्रेक के तथ्य:
·         बैजनाथ से उतराला रोड से दूरी 11.7 किमी. है ।
·         उतराला से हाइड्रो रिजर्व की दूरी 6.7 किमी. है, यहाँ तक आप अपनी गाड़ी लेकर जा सकते हैं ।
·         हाइड्रो रिजर्व से परई की पैदल दूरी 10 किमी. है (ज्यादा से ज्यादा 3 घंटे) ।
·         परई से जालसू जोत की पैदल 4.5 किमी. है (ज्यादा से ज्यादा 4 घंटे) ।
·         उतराला से जालसू के बीच 2 स्थानों पर रुकने व् खाने की व्यवस्था है ।
·         यहाँ टेंट की आवश्यकता नहीं है, अपना स्लीपिंग बैग कैरी किया जा सकता है ।
·         अप्रेल से जून और सितम्बर से नवम्बर तक का समय उपयुक्त है ।


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जोत पर स्थित छोटी से झील 

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चलो घर चले 

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क्या लगता है इस बार कौन जीतेगा?


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सुकून के दो पल और दो जन

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कहीं रस्ते में

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गद्दी डेरे के पास माता लाके वाली का मंदिर 

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सामने दिखता लंघा किन्नौरी

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डल ऑन जोत


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पहाड़ो वाला जालसू पर, कैलाश के सामने 

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थोड़े अतिरिक्त बन्दरलस्ट

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मणिमहेश कैलाश 

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मणिमहेश कैलाश 
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चलो वापस

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आल द बेस्ट




Comments

  1. Aap aa hi gye vapis bade Dino se intjar tha Aapka

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  5. So a women got pregnant from a bear and gave birth to bear Cubs..wow..

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