आखिरी मुलाकात हनुमानगढ़ के साथ (Last Encounter with Hanumangarh)

पिछले कल से पहले सम्पूर्ण हिमालय ने दिवाली की ख़ुशी में नया शाल ओढ़ लिया है । अब आप 3000 मीटर पर जाओ और धूप में नहाते हुए पर्वतों की शोभा देखो । वैसे तो हनुमानगढ़ मैं पहले भी बहुत बार जा चुका हूँ लेकिन इस बार अलग होने वाला हैं ।

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हनुमानगढ़ चोटी (3080 मीटर)

जब सोलांग (2450 मी.) पर बर्फ गिरेगी तो हनुमानगढ़ (3080 मी.) पर तो गिरेगी ही गिरेगी । पिछले 2 दिनों से मन का हाल भटकती आत्मा के जैसा हो रखा है । पल-पल आँखें मौसम पर टिकी रही कि मौसम साफ़ होते ही निकल पडूंगा । तो आख़िरकार मौसम साफ हुआ पिछले कल लेकिन मैं नहीं गया । हर बार छत्त पे जाता गढ़ को बर्फ में डूबे देखता और फिर भीतर आ जाता ।

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यहाँ से शुरू होती है कभी न खत्म होने वाली चढ़ाई 

इस बार का क्लाइंब खास होने जा रहा है क्योंकि इस बार मेरा इस पीक को फास्टेस्ट टाइम में क्लाइंब करने का इरादा है । रात से ही सीने में अंगारे जल रहे हैं । रोज की तरह आज भी लेट ही उठा और उठते ही फटाफट सारी तैयारियां पूरी करी जिनमें शामिल थे 2 केले, 1 छोटी चोकलेट, 200 मिली. पानी, गोप्रो, और जी.पी.एस डिवाइस

बीड से निकलते-निकलते समय 11:03 हो गया । मुझे याद है अभी कुछ ही हफ़्तों पहले मैं और नूपुर हनुमानगढ़ गये थे, उस दिन हमने 26 किमी. के ट्रैक में 2600 मीटर का हाईट गेन किया था, समय 8 घंटे लगे थे । आज भी मुझे खुद से यही उम्मीद थी कि शरीर उस दिन की भांति व्यवहार करेगा । तो मुठ्ठी और दाढ़ भींचकर मैं निकल पड़ा आर-पार की जंग के लिए ।

हनुमानगढ़ टॉप समिट लक्ष्य रखा सवा दो घंटे । सबसे पहला टारगेट है मीडोज, जहाँ 17 मिनट में पहुंचने के चक्कर में मेरी कोख में भयानक दर्द होने लगा । पांचवे गियर से पहले गियर तक आने में गाड़ी को समय नहीं लगा । दर्द असहनीय था और लक्ष्य आकाश सा दूर ।

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मीडोज

मीडोज पहुंचने में 18 मिनट लगे, यहाँ तक हाईट गेन 300 मीटर हो गया । फिर से स्पीड तेज हो गयी, अगला टारगेट है बेयर केव जोकि यहाँ से 250 मीटर ऊपर है । पिंडलियों में मानो हीलियम भर गयी है, घुटने से नीचे संशेशन शुरू हो गया, रास्ता अभी तक कुछ भी तय नहीं हुआ है । कोख का दर्द फिर से लौट आता है जो अब यह सोचने पर मजबूर कर रहा है कि गद्दियों के डेरे से वापस आ जाऊंगा । 47 मिनट में भालू-गुफा पहुंचता हूँ, यह एक जंगल है जिसमें गद्दियों की माने तो काला भालू व जंगली सूअर कभी भी देखा जा सकता है, शुक्र है मैं उस लायक नहीं कि ये लोग मुझे अपने दर्शनों से कृतार्थ करें ।

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बेयर केव 

अब तक सभी गद्दी नीचे उतर चुके हैं और जो नहीं उतरे वो हाल ही में खराब हुए मौसम के चलते फंसे हैं धन के साथ । मुझे उम्मीद नहीं थी कि कोई मुझे मिलेगा लेकिन मुझे गद्दियों के 7-8 घोड़े मिले । फोटो खींचकर आगे बढ़ जाता हूँ । रास्ता एक ही कंटूर लाइन पर चल रहा है और धीरे-धीरे ऊँचाई की ओर बढ़ रहा है । अब ऊपर गद्दियों का डेरा दिखाई देता है, मुझे भी वहीं जाना है क्योंकि रास्ता वहीं से ऊपर चढ़ता है । चढ़ाई है, धूप है और अंग-अंग में दर्द का प्रवाह ।

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गद्दियों के डेरे से पहले 
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मैं और बेबी मेमना 

पूरे एक घंटे में यहाँ पहुंचता हूँ, ऊँचाई लगभग 2200 मीटर है यहाँ नये जन्मे मेमने हैं । मन पक्का करता हूँ और खुद को मोटिवेट करके खुद से टक्कर लेता हूँ । पथरीला रास्ता शुरू हो जाता है, हार्टबिट्स आउट ऑफ़ कंट्रोल हो रही है । आज मानो शरीर पर मेरा कंट्रोल छूट गया है । 400 मीटर ऊपर जाकर सोचता हूँ कि बस 500 मीटर हाईट गेन और रह गया है, समय अंदाजन 30 मिनट और लगना चाहिए । चढ़ाई है और टांगे काँप रही हैं ।

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पैराग्लाइडिंग फुल ऑन

स्पीड स्लो से सुपर स्लो हो गयी है । चलते हुए अब तक एक घंटा 43 मिनट हो गये हैं । सवा दो घंटे का लक्ष्य फीका पड़ता महसूस हो रहा है । अब ढाई घंटे का नया लक्ष्य बनाकर धीरे-धीरे चल रहा हूँ, आज शरीर ने अति कर दी है । मैं चाहकर भी इससे तेज नहीं चल पा रहा हूं ।

टिब्बियों का राज शुरू होता है, रास्ता थोड़ा टेक्नीकल हो जाता है अब पैरों के साथ-साथ हाथों का भी भरपूर इस्तेमाल हो रहा है । पिछले दिनों हुई बारिश से मिटटी गीली है, जूते फिसल रहे हैं । अंग-अंग हर नये कदम को रोक देना चाहता है । सवा दो घंटे हो जाते हैं, मैं अभी भी गढ़ से 180 मीटर नीचे हूँ । घुटनों पर हाथ रखकर तेज चलना चाहता हूँ लेकिन चाहते हुए भी नहीं चल पाता ।

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गद्दी डेरे से ऊपर 

प्रयास और कठिन हो जाते हैं जब ट्रेल पर बर्फ शुरू हो जाती है । अपर बॉडी घुटनों पर झुक गयी है । “बस थोड़ा और, बस थोड़ा और”, बोल-बोलकर खुद को यकीन दिलाता हूँ कि पहुंचने वाले हैं । बड़ी घास एक-दो बार रास्ता भी भटकाती है । आज मैं टिब्बियों के ऊपर से नहीं जाना चाहता, एक कंटूर लाइन को फॉलो करना शुरू करता हूँ जो लगभग 7 मिनट बाद मुझे हनुमानगढ़ के दर्शन कराती है ।

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दर्शन हुए हनुमानगढ़ के 

 अंतिम 100 मीटर मुझे झंझोड़कर रख देते हैं । आज मानों मैंने अपने साथ हिंसा करी । खुद से खुश भी हूँ और खुद से शिकायत भी करता हूँ । पूरे 2 घंटे 34 मिनट में “हनुमानगढ़ चोटी” पर पहुंचता हूँ । यहाँ 5 लोग पहले से ही मौजूद हैं ।

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हनुमानगढ़ चोटी 3080 मीटर

मूर्ति के सामने बैठ जाता हूँ और भरे गले से बोलता हूँ “यह आखिरी मुलाक़ात है...अब नहीं आऊंगा” । पूरे पेट में दर्द, पिंडलियाँ दुःख रही हैं, साँसे अनियंत्रित हैं, और न जाने कोख में क्यूँ इतना असहनीय दर्द शुरू हो गया । मूर्ति से जवाब चाहता हूँ लेकिन वो कोई जवाब नहीं देती ।

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"यह आखिरी मुलाक़ात है"

थमसर जोत की ओर मुंह करके मुझे जवाब मिलता है कि “आपका सबसे बड़ा प्रतियोगी कोई और नहीं बल्कि आप खुद होते हो” । आज शायद मेरा शरीर तैयार नहीं था लेकिन मैंने उसे बेहोश होने तक पुश किया, परिणाम “मैं खुद से ही हार गया”

बरोट वाले भाई मुझे लड्डू का प्रसाद देते हैं, हम एक दूसरे के फोटो खींचते हैं । मैं अपने साथ लाया केला और पानी पीता हूँ और दूर-दूर तक फैली चोटियों को पहचानने का प्रयास करता हूँ । थमसर जोत, जालसू जोत, नोहरू जोत, बड़ा ग्राम, कोठीकोड और उहल नदी से पहचान मेरी पुरानी है ।

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दृश्य जो अनंत दर्शन कराये

01:57 पर नीचे भागना शुरू करता हूँ । बर्फ है, रास्ता गीला है, कई बार फिसलता हूँ और रास्ता भटकता हूँ । हनुमानगढ़ की तरफ नीचे से देखें तो बहुत सी धार हैं जो आती हैं, इन्हीं में से एक पर मैं पहुंच जाता हूँ जिसका एहसास मुझे लगभग 10 मिनट बाद एक किलिफ पर पहुंचकर होता हैं । जी.पी.एस. की मदद से पुन: सही रास्ते पर आता हूँ लेकिन थोड़ी देर में फिर से गलत रास्ता । पैर कांपते हैं, शरीर अव्यवस्थित है ।

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उतराई शुरू

सही रास्ते पर आने के बाद दौड़ता हूँ, यह सोचकर कि कम-से-कम घर 4 में तो पहुंचू । जल्द ही गद्दी डेरे पर पहुंचता हूँ, फिर बेयर केव पर, और मीडोज पार करते ही रोड पर पहुंच जाता हूँ । अगले 7 मिनट के तेज प्रयास के बाद घर पहुंच जाता हूं ।

थका हूँ, होश उड़े हुए हैं । पानी पीते हुए खुद से बोलता हूँ “आज जैसा दिन पहले कभी नहीं रहा”

आज 15.85 किमी. का ट्रैक हुआ जिसमें 1740 मीटर हाईट गेन के साथ कुल समय 4 घंटे 10 मिनट लगा




Comments

  1. आपका सबसे बड़ा प्रतियोगी कोई और नहीं बल्कि आप होते हो....जय हो बाबा जी

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    1. अनिल शर्मा जय हिमालय, लेख पढने और कमेन्ट के लिए तहेदिल से धन्यवाद । शुभकामनाएं...

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  2. ऐसी आखरी मुलाकातें मत किया करो रोहित भाई। सेहत से कोई समझौता नहीं होना चाहिए। शरीर साथ दे तभी ऐसे ट्रैक किया करो। भगवान ना करे कोई गड़बड़ हो गयी तो फिर नीचे से ही ताकना पड़ सकता पहाडों को। ट्रैकिंग में आपको तो अच्छे से पता मजबूत शरीर कितना जरूरी है। मेरी शुभकामनाएं हमेशा आपके साथ। आपकी दीपावली शुभ हो और आपको लक्ष्मी जी का वरदान मिले।

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    1. जी भाई आगे से ध्यान रखूँगा । सलाह और पोस्ट पढने के लिए धन्यवाद । शुभकामनाएं...

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  3. उड़ चला मन☺️☺️

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  4. हे भगवान इस रोहित को थोड़ी बुद्धि दो ताकि इसे समझ आ जाए कि तबियत ठीक ना हो तो घर में आराम करना चाहिए ना कि पहाड़ों पर चढ़ना चाहिए

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    1. आपकी सलाह का स्वगत है । आशा करता हूँ हिमराज की कृपा आपपर बनी रहेगी । शुभकामनाएं...

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  5. हे भगवान इस रोहित को थोड़ी बुद्धि दो ताकि इसे समझ आ जाए कि तबियत ठीक ना हो तो घर में आराम करना चाहिए ना कि पहाड़ों पर चढ़ना चाहिए

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