31 घंटे में फ्रेंडशिप पीक समिट (5194 मी.) Friendship peak summit (5194 m) in 31 hours

27 अक्टूबर 2018
पीर-पंजाल माउंटेन रेंज की गोद में पली-बढ़ी एक बेहद मशहूर चोटी “फ्रेंडशिप पीक” है, इसकी ऊँचाई “इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन” के हिसाब से 5289 मीटर है और यह हिमाचल प्रदेश के कुल्लू डिस्ट्रिक्ट की अति फेमस घाटी “सोलांग” में स्थित है । आईये जानते है इस पीक के बारें में जिसने इतने कम समय में “नॉन-टेक्निकल पीक” व “ट्रैकिंग पीक” जैसी बड़ी-बड़ी उपाधियां अपने नाम कर ली । 

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फ्रेंडशिप पीक अक्टूबर 2018

हवाई योजनाएं :

हेल रेस सोलांग वैली में पिछले 3 साल से ट्रेल रनिंग रेस आयोजित करता आ रहा है । हर साल भीतर धंसती आँखों में एक सपना लेकर सोलांग पहुंचते कि “सब मिलकर इस बार ब्यास कुंड और फ्रेंडशिप पीक चढ़ेंगे”, लेकिन रेस के बाद ट्रैकर बनने से ज्यादा मजा ग्रिजली भालू बनने में आता है जिसके तहत दुनिया की कोई भी ताकत शरीर को अगले 6 महीनों के लिए हाईब्र्नेशन मोड़ जाने से नहीं रोक सकती । 

अटैक:

तीन दिन में जालसू जोत फिर बीड के आसपास एक 26 किमी. लम्बा ट्रैक निपटाकर तैयारी पूर्ण होती है । अब वक्त था अटैक करने का और खुद को 1550 मीटर (बीड) से 2450 मीटर (सोलांग) पर ले जाने का । रास्ते में आने वाली सभी समस्याओं का सामना करते हुए हम 24 अक्टूबर की शाम को मनाली पहुंचते हैं, “आज रात यहीं कटेगी” उद्घोष के साथ शुरू हुआ वो खेल जिसमें अब पी.एच.डी. मिल गयी है, “मिशन चीप रूम” । कई साल पहले चंबा से त्रिलोकीनाथ ट्रैकिंग अभियान से वापस आते हुए नवीन जोगता के कहने पर हम मनाली स्थित धर्मशाला में रुके थे जहां उस जमाने में एक कमरे का किराया मात्र 20 रूपये था । देर से पहुंचने के चक्कर में “कमरा न मिलने का” डर हर कदम पर सता रहा था । नूपुर और बैगों को बाहर छोड़कर जैसे ही मैंने धर्मशाला में कदम रखा वैसे ही मैं धर्मशाला के मैनेजर के सामने खड़ा था । फरियाद सुनते ही उसने सिरे से खारिज कर दिया गया और बाहर की ओर मिडिल फिंगर करके इशारा किया कि “सामने वाले होटल में रूम मिल जायेगा यहां तो शाम से ही हाउस फुल हो जाता है” । 

मिडिल फिंगर की दिशा में बढ़ते ही डबल चिन अंकिल से टकराता हूँ वो भारी आवाज में 200 रूपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से डोरमैटरी दिखाते हैं । वहां 4 बैड हैं जिनमें से 2 पर अधेड़ उम्र के चचा लोगों ने आठ बाय चार के कमरे को धुआँ-धुआँ कर रखा है । बीड़ी के धुएं व पिछवाड़े से निकली हीलियम गैसों को नजरअंदाज करते हुए मैं 300 में 2 बैड की मांग रखता हूँ जिसपर डबल चिन अंकिल का कहना है “इतना सस्ता और साफ़ कमरा पूरे मनाली में कहीं और नहीं मिलेगा” । 

“क्या हुआ?”, नूपुर का स्वर सुनते ही मानो उनपर केजरीवाल का भूत सवार हो जाता है अब उनकी नजरों में मुझसे गिरा हुआ इंसान कोई नहीं है । नूपुर ने सारा खेल खराब कर दिया है अब वो जबरन मुझे तहखाने वाले कमरे को दिखाते हुए बोलते हैं “इस कमरे का दाम 500 रूपये है और लड़की के साथ डोरमैटरी में कोई ऊँच-नीच हो गयी तो कौन जिम्मेवार होगा?”, बोलते हुए उनकी पहली चिन दूसरी से टच हो जाती है । ऑफर और नसीहत लेने के बाद मैं धर्मशाला के गेट पर पहुंचा ही था कि धर्मशाला के मैनेजर ने तरस खाते हुए हमें आख़िरकार एक रूम दे ही दिया । आधार कार्ड की कॉपी और 45 रूपये चुकाते ही हमें मनाली कोंकर करने की फिलिंग आने लगी । 

रात 9 बजे तक हमने डिनर व छोटी-मोटी शॉपिंग करके खुद को नींद के हवाले कर दिया । 

अ चिल डे ऐट सोलांग : 

साढ़े सात बजे उठे, अंगड़ाईयाँ राजों वाली थी । 9 बजे धर्मशाला छोड़ी और “हिडिम्बा भोजनालय” में आलू के पराठे खाकर राजों की तरह नाक में ऊँगली डाले मनाली बस स्टैंड पहुंचते हैं । लोहे के बैंचों पर बैग रखकर मैं तड़ी में पूछताछ विंडो में मुँह डालता हूँ और पूछता हूँ “सोलांग की बस कितने बजे जाएगी?” । टाटा 407 से भी छोटे केबिन में 2 लोग खाकी जर्सी पहने बैठे बी.एस.एन.एल. के सस्ते प्लानों के बारें में बात कर रहे हैं । मुझे और मेरे सवाल को उन्होंने इस प्रकार इग्नोर कर दिया जैसे मेरा सम्बन्ध #मीटू कैम्पेन से रहा हो । 

“सर जी सोलांग की बस कितने बजे जाएगी?”, सर के सम्बोधन ने काम किया और जवाब मिला “दोपहर डेढ़ बजे, अभी वाली जस्ट 5 मिनट पहले निकली है” । उसके जवाब ने मेरे सिग्नल उड़ा दिए थे । यह बयान नूपुर को सुना ही रहा था कि 6-7 टैक्सी चालकों ने हमें घेर लिया । अब यह जो स्थिति है यह इतनी ज्यादा पेचीदा है कि “यहां हुई एक भी गलती आपको कसोल दर्शन करवा सकती है” । नूपुर वुमन इम्पावरमेंट से प्रेरित होकर ब्यान जारी करती है “50 रूपये हैं हमारे पास चलोगे सोलांग?”, जिसके बाद कसोल ले जाने वाली भीड़ तितर-बितर हो जाती है । 

इस सम्पूर्ण स्वांग से मैंने एक सीख ली कि “दाढ़ी बड़ी करने से आप वंडरलस्ट बनो या न बनो बाकि चरसी तो आप हो ही” । 

36 रूपये के दो टिकट के साथ हम केयलोंग वाली बस में बैठे हैं जिसका कंडक्टर नूपुर को देखते हुए मनाली के बुजुर्ग कंडक्टर को अंड-बंड बक रहा है जिसने औरत को एच.आर.टी.सी. के प्रावधान के हिसाब से 25% डिस्काउंट नहीं दिया । नूपुर मेरी ओर देखती है मानो बोलना चाहती है “ये किस औरत की बात कर रहा है ? । बस हमें पलचान उतारती है, यहाँ से पैदल सोलांग पहुंचने में 20 मिनट लग जाते हैं । रोशन लाल मिलते ही “वेलकम टू सोलांग” बोलकर हमारा स्वागत करता है । 

सबसे पहले हम उस महत्वपूर्ण काम को निपटाते हैं जिसके लिए हम बीड से सोलांग आये हैं और उसके बाद पूरी सोलांग वैली का हंसी का पात्र बनते हैं । ‘योगा मैट्रेस’ का स्वर हनुमान टिब्बा तक जाता है, हर कोई हमारे ट्रैकिंग मैट्रेस को देखकर ‘योगा मैट्रेस’ बोल-बोलकर हँसे जा रहा है । शोले जैसा सीन बन जाता है अब नूपुर भी दोनों ट्रैकिंग मैट्रेस को देखकर कालिया की तरह हंस रही है और मुझे अपने फूफा के लडके रामदेव की याद आ रही है । 

रोशन गब्बर की भांति हमारे एक-एक सामान का बारीकी से जायजा लेता है और मन ही मन बुदबुदाता है मानो बोल रहा हो “लाइफ इंश्योरेंस तो करवा रखा है ना?” । तो रोशन की घोषणा के बाद जोनी हमें समिट के लिए कुछ गियर इशू कर देता है । 

अब हम टेंट में हैं, कभी मैं अपने रकसैक को देखता हूँ तो कभी रोशन से मिले असला-बारूद को । सामान ज्यादा है और बैग...उसकी तो बात ही मत करो । रोशन से हमें स्नो शूज, गैटेर्स, आइस-अक्स, क्रेम्पोंस और रोप मिली है, इसके अलावा नूपुर को वाटरप्रूफ ट्रैक पैंट और माईनस 10 डिग्री वाला स्लीपिंग बैग भी मिला है जिससे मुझे जलन होती है । वो उतनी खुश है जितने दिल्ली वाले तब होते हैं जब केजरीवाल मफलर लपेट कर सर्दियों का आहावन करता है । एक घंटे के दंगल के बाद आख़िरकार 45 लीटर रकसैक में मैं 50 किग्रा. सामान ठूंसने में कामयाब हो जाता हूँ । “क्या बतमीजी है” के लगातार आते स्वर बता रहे हैं कि नूपुर के रकसैक का वजन उसके खुद के वजन से ज्यादा हो गया है । 

अपने-अपने रकसैक उठाने के बाद हम बैठ गये हैं, नूपुर का फेस ‘मटरफेस’ हो गया है और मेरा शिटफेस (हिंदी : ‘गू-फेस’) । 

सोलांग से फ्रेंडशिप समिट कैंप : 

रोशन के हिसाब से हम धुन्धी से ‘लेडी लेग कैंप’ तीन घंटे में पहुंच जायेंगे और वहां से समिट कैंप तक आधा घंटा और लगेगा । इस ज्ञानवर्षा के बाद हमने तय कर लिया कि सुबह आराम से निकलेंगे । अगली सुबह साढ़े सात बजे उठकर हमने सोलांग वैली 09:50 पर छोड़ी । रोशन ने अपने कैंपर से हमें धुन्धी छोड़ दिया जहां से हमने ट्रैक शार्प 10:34 शुरू किया । 

जी.पी.एस. ऑन हो गया और रकसैक उठाते ही हम ऑफ़ । इतना भारी रकसैक मैंने या तो माउंटेनियरिंग कोर्स में उठाया था या तब जब चाय के पैसे न चुका पाने पर उत्तराखंड में पौनी बनके लोड फैरी करनी पड़ी थी । 200 मीटर ही चले थे कि अपने खच्चर बनने पर संदेह यकीन में बदलता महसूस होने लगा । नूपुर को देखकर आभास हो रहा है कि रकसैक ने नूपुर को उठाया हुआ है और रकसैक स्वयं समिट पे जा रहा है । 


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नूपुर, भारी रकसैक और हनुमान टिब्बा 

ब्यास कुंड से आती ब्यास नदी के किनारे चलते-चलते जल्द ही हमने पलचानी नाला पार कर लिया । सामने इस घाटी का मुखिया हनुमान टिब्बा बर्फ का मुकुट पहने तन्नाये खड़ा है, वहीं बाकी पहाड़ी चोटियों ने मानो मन ही मन हनुमान टिब्बा को अपना स्वामी मान लिया है । सभी रानियाँ सफ़ेद बर्फ के आँचल से चुपके-चुपके इठलाती हुई अपने स्वामी के दर्शन कर रही हैं । राजा अपनी समस्त रानियों पर मुस्कान बिखेर रहा है । मौके का फायदा उठाकर मैं भी समिट की दुआ मांगता हूँ । 

2 घंटे में हम नुआली (3365 मीटर) पहुंचते हैं, अब हमने ब्यास कुंड जाने वाली ट्रेल को छोड़ दिया है और एक नई जलधारा को पकड़ लिया है जो फ्रेंडशिप के गिलेशियर से आ रही है, इसे शायद ‘सेरी नाला’ कहते हैं । नुआली रुककर हम एक-एक केला खाते हैं और अपने-अपने रकसैक आपस में बदल लेते हैं । अब तीखी चढ़ाई शुरू हो गयी है ऊपर से नूपुर वाला रकसैक मेरे कन्धों को कुचल रहा है । 65 लीटर के हिसाब से उसके शोल्डर स्ट्रैप बहुत कमजोर व कम चोड़े हैं, हर कदम पर वो हड्डियों पर प्रहार कर रहा है । अब तक मेरी सौड सी भर चुकी है । 


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नीचे दिखता नुआली 

खच्चर की तरह गर्दन नीचे करके मैं धीरे-धीरे ऊपर बढ़ रहा हूँ, नीचे नूपुर दिखाई देती है जो दूर मुझे किसी भेड़ू सी प्रतीत होती है । ऊपर से नीचे तीन ट्रैकर उतर रहे हैं, वो बता रहे हैं समिट पर पावडर स्नो है, एक कदम ऊपर रखो 4 कदम नीचे फिसलों वाला गेम ऑन है । बिना रुके दोनों खच्चर ‘लेडी लेग कैंप’ 2 घंटे 55 मिनट में पहुंचते हैं जहां की ऊँचाई 3821 मीटर है । 
यहाँ एक और टीम बैठी है जो 29 अक्टूबर को समिट अटेम्प्ट करेगी । रोशन ने उन्हें हमारे बारे में पहले ही बता रखा है इसलिए वो हमारे लिए चाय बनाते हैं और हम रोशन से प्राप्त पैक्ड लंच का आहावन करते हैं । बेस्ट वीशेज व कुछ जोड़ी गुड-लकों के लेन-देन पश्चात हम आगे बढ़ जाते हैं, आज की मंजिल फ्रेंडशिप पीक का समिट कैंप है । 


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लेडी लेग कैंप साईट 

एन.आर.आई. लड़की के साथ आया गाइड बताता है कि समिट कैंप पर पानी नहीं है । उसकी चेतावनी के बाद हम अपनी-अपनी पानी की बोतल यहीं से भर लेते हैं और पूरे कॉन्फिडेंस में आगे बढ़ते हैं कि “पानी नहीं मिलेगा तो हम बर्फ पिघला लेंगे” । 

चढ़ाई अभी भी जारी है, भारी वजन से 20 इंच का सीना सिकुड़कर 10 इंच ही रह गया है । धूप गर्म है फिर भी ठंडी हवा की मार है । जहां पीछे से हनुमान टिब्बा सहारा दे रहा है वहीं फ्रेंडशिप पीक सौतेला व्यवहार कर रही है । चेहरा सुन्न हो गया है पहाड़ की छाती से आती ठंडी हवाओं से । 

रॉक गार्डन शुरू होता है, चढ़ाई अब टेक्निकल हो गयी है । हनुमान टिब्बा और फ्रेंडशिप पीक एक-दूसरे से आमने-सामने खड़े हैं, बेख़ौफ़ व अटल । एक छोर पर राजा है तो दूसरे छोर पर नकचढ़ी प्रेमिका और बीच में हाल ही में बने दो खच्चर । हनुमान टिब्बा पर धूप है, फ्रेंडशिप पर काले घने बादल । फ्रेंडशिप का गुस्सा बढ़ते ही बर्फ के फोहे गिरने लगते हैं । थोड़ा हिनहिनाने के बाद आखिरकार मैं पैर पटकता हुआ फ्रेंडशिप समिट कैंप पर पहुंचता हूँ । पीछे देखता हूँ नूपुर का अता-पता नहीं, हाँ एक रकसैक ऊपर आता जरुर दिखाई देता है । 


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बर्फ़बारी और बादलों में घिरी पीक...हमारी 

मैं साँसे नियंत्रित कर ही रहा होता हूँ कि हवा और तेज हो जाती है । आखिरकार यह क्या माजरा चला है यहां? । जानने को जैसे ही मैं मुड़ता हूँ मानो पहाड़ के संवाद सुनाई देते हैं । फ्रेंडशिप नहीं चाहती है कि हम समिट करें, वो हनुमान टिब्बा से शिकायत करती है कि “बर्फ गिरने के बाद भी चैन की सांस नहीं लेने देते, पता है ना इन्हीं जैसों की वजह से हमारी क्या दुर्दशा हो गयी है” । हनुमान टिब्बा शांत है वो प्यार से बोलता है “क्यूँ इतना अशांत होती हो, सैलानी हैं कर लो स्वीकार । बर्फ गिरने के बाद तुम बोर भी बहुत जल्दी हो जाती हो” । वो मुंह बनाती है, ये बादलों को आदेश देता है । धूप में फ्रेंडशिप का चेहरा चमकने लगा है, मानो वो शर्मा रही है । दूर खड़ा पहाड़ प्रेमिका को एक-टक देखता है । “अच्छा ठीक है मैं स्वीकार करती हूँ इन्हें, अब ऐसे मत देखो मुझे शर्म आती है” । 


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फ्रेंडशिप पीक समिट कैंप 

और तभी हवा व बर्फ दोनों बंद हो जाती है, मानो आशीर्वाद मिल गया पहाड़ का । रकसैक आ गया है...आई मीन नूपुर आ गयी है हमने टेंट पिच कर लिया है । आसपास के सभी पानी के स्रोत्र सूख चुके हैं, अच्छी बात है एक बड़े बोल्डर के नीचे थोड़ी बर्फ मिल जाती है जिसे हम पिघलाकर इस्तेमाल कर सकते हैं । 

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चाय की तैयारी

तापमान -4.5 है और हम चाय का शुभारम्भ करते हैं । नूपुर चावल बनाती है और मैं बाहर से बर्फ का इंतजाम । शाम ढलने लगी है, तापमान गिर रहा है । हनुमान टिब्बा पर केसरी रंग चढ़ गया है, वहीं फ्रेंडशिप लज्जा से अपने ही आँचल में सिमटी जा रही है । 

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हनुमान टिब्बा पर छाई लालिमा 

पहले प्लान सुबह 2 बजे उठने का था,
फिर ढाई बजे हो गया, 
“3 चलते हैं!”,
और आँख लगते-लगते ये 4 हो गया । 

रात 9 बजे तापमान -8.5 पहुंच गया । "क्यूँ न कल स्टोव ऊपर लेकर चले, टॉप पर बैठकर चाय बनायेंगे?" । जवाब में नूपुर हाँ बोलती है लेकिन फिर मैं मना कर देता हूँ अपने दबे-कुचले कन्धों को याद करके । पहाड़ को शुभरात्रि बोलकर हमने दिन को पैक किया । 

समिट डे “पहाड़ की पुकार” : 

अलार्म ने नूपुर को और नूपुर ने मुझे सवा तीन बजे उठाया । टेंट के भीतर तापमान -4.5 है । अच्छा हुआ जो हम तीन लेयर नीचे और चार लेयर ऊपर पहनकर सोए अन्यथा सर्द रात ने हमारी केंचुली सी छिल देनी थी । नींद अच्छी व गर्म आई । स्लीपिंग बैग से निकलना दूसरा सबसे मुश्किल काम था और पहला स्नो शूज को पहनना । सज-धज कर माउंटेनियर बनने में आधा घंटा लग गया और टेंट से बाहर निकलते ही घंटे लग गये, अंडाश्यों को सिकुड़ने में पल भर भी न लगा । 

27 अक्तूबर 2018, समय : तड़के 04:34, तापमान -8.2 डिग्री 

रकसैक कन्धों पर है जिसमें खाने के सामान के साथ-साथ क्रेम्पोंस और गेटेर्स ने जगह पाई । बाहर अभी भी थोड़ा अंधेरा है लेकिन टेंट से झांकते ही हनुमान टिब्बा के स्वर्णिम दर्शन होते हैं, सूरज की पहली किरणों ने अपने हाथों से पहाड़ को सोने का ताज पहनाया । हम फ्रेंडशिप की ओर मुंह करके बढ़ चले हैं । मौसम शांत व ठंडा है, राजा की प्रेमिका ने सफ़ेद चादर ओढ़ रखी है मानो इतनी जल्दी उठना नहीं चाहती हो । 


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हनुमान टिब्बा "द किंग"

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नींद में फ्रेंडशिप 

रास्ता पथरीला है, अँधेरे में कभी कैरेन दिखते हैं कभी नहीं । रास्ता भूलते हैं फिर सही रास्ते पर आते हैं, इस तरह मौरेन-गार्डन में भटकते हुए हमें 2 घंटे बीत जाते हैं । 

बर्फ का इलाका शुरू हो गया है, राजा की प्रेमिका कच्ची नींद में फुसफुसाती है “राईट से चलना और ध्यान से चलना, लेफ्ट साइड से रास्ता अच्छा नहीं है” । पर्वत के लेफ्ट में देखता हूँ, बड़ी-बड़ी क्रिवासों का राज है, क्रिवास जो प्रेमिका को अलंकृत कर रही है उसके गले की शोभा बढ़ाकर । सोचते हुए आगे बढ़ता हूँ कि “कहीं ये सफ़ेद हार राजा ने तो नहीं दिया अपनी प्रेयसी को” ? । 

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वर्दीधारी

बर्फ की गहराई बढ़ते ही हमने स्नो शूज को गेटेर्स से ढक लिया है साथ ही क्रेम्पोंस भी अब अपनी ड्यूटी निभाने को तैयार हैं । मैं आगे चल रहा हूँ नूपुर थोड़ा पीछे है । साँसे हाई हैं, हर 4 कदम बाद उन्हें नियंत्रित करना पड़ रहा है । जूतों में पैर की उँगलियाँ इतनी ठंडी हो गयी है मानो कट जायेंगी । नाक का शीघ्रपतन लगातार जारी है, कान सुन्न है उन्हें या तो बाहर से आती तेज हवा का शौर सुनाई दे रहा है या भीतर धड़कते दिल की आहट ।


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कदमताल समिट की ओर (फोटो: नूपुर सिंह)

2 दिन पहले ही एक तीन लोगों की टीम ने समिट किया था जिसके निशान बर्फ पर साफ़-साफ़ देखे जा सकते हैं, रोशन ने बताया था कि “बस उन्हीं निशानों को फ़ॉलो करना टॉप तक पहुंच जाओगे” । दोनों रुककर केला खाते हैं, ठंडी हवा से नूपुर का फेस तुत्मखान की मूर्ति जैसा लग रहा है मेरा?...वही हिंदी वाला । 

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निशान पैरों के पहाड़ पर 

साढ़े तीन घंटे बाद हम प्रेमिका के मखमली कंधें पर पहुंचते हैं जहां से दिओ टिब्बा, इन्द्रासन, इंद्र का किला, रतन थडी और बहुत सी अनजानी चोटियाँ दिखाई देती हैं । नूपुर बोलती है “हमारे तो मटर छिल गये हैं” जिसपर मेरा बोलना है “मेरी तो मोमबत्ती सी बुझ गयी” । 

शोल्डर के बाद बर्फ गहरी है और पावडर रूप में दूर-दूर तक बिछी है । यह पावडर स्नो है, एक कदम ऊपर 2 कदम नीचे । कमर तक बर्फ पहुंच गयी है, टांगें गायब हो गयी है, नीचे देखता हूँ तो लगता है कमर के बल ही चल रहा हूँ । 


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चोटी के कंधें पर नूपुर

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धूप का आगमन (फोटो: नूपुर सिंह)

हम राजा की प्रेमिका की और देखते हैं मानो पूछ रहे हो “धूप कब तक आती है यहां मेमसाब?” । सवाल के बदले थोड़ी देर में धूप मिल जाती है । अब ट्रेल और ज्यादा साफ़ दिखाई दे रही है बाकी तापमान में ज्यादा फर्क नहीं पड़ा, पहले -6.2 था अब -9.2 हो गया है । अब हम क्रिवास के लगभग ऊपर से चल रहे हैं, जो भी फिसला उसे तरुण गोएल पंडोह डैम में रिसीव करेंगे । हरयाणा रोडवेज के पीछे लिखी लाइन को याद करके मैं फिर से बर्फ में घुस जाता हूँ “सावधानी हटी, दुर्घटना घटी” । 


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क्रेवासों से पार पाती नूपुर

लगभग 200 मीटर बाद बर्फ अचानक से सख्त हो जाती है, मैंने स्पीड बढ़ा दी है, ऊपर समिट से पहले फिक्सड रोप दिखाई देने लगी है । नूपुर को बोलना चाहता हूँ कि जल्दी आओ बस पहुंच गये लेकिन नहीं बोलता और तेज साँसों के साथ पीली रोप तक पहुंचता हूँ । टॉप दिख रहा है लेकिन न कोई झंडा है न कैरेन । लास्ट के लगभग 50 मीटर एक शॉट में पूरा करता हूँ । 

“मैं समिट पर हूँ”, सोचता हूँ थोड़ा नम होता हूँ । राजा के सामने नतमस्तक हूँ और प्रेमिका के माथे को चूमकर अपनी ऊर्जा अर्पण करता हूँ । दूर से घेपन गोह का सौम्य चेहरा दिखाई देता है, राजा की रानियाँ नजरें बचाकर हमें देखती हैं, पीर पंजाल के राजा इन्द्रासन ने दुआएं भेजी हैं । 


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फ्रेंडशिप पीक समिट 

खड़े होने के लिए टॉप पर जगह बनाकर नूपुर को आवाज लगाता हूँ “आ जाओ थोड़ा ही रह गया” । हर कदम बाद वो खुद को नियंत्रित करती आगे बढ़ रही है, थकी है और बर्फ में फसी है । समिट पर पहुंचते ही उसके पहले शब्द हैं “हमारे तो मटर छिल गये” । हम हँसते हैं और आख़िरकार दोनों समिट पर खड़े हैं । पहाड़ों के बीच, आशीर्वाद लेते हुए । 


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समिट की बधाई 

आयुष कुमार ने बताया है कि "बहुत साल पहले इस बेनाम चोटी को इंडियन-फ्रेंच सयुंक्त टीम ने समिट किया था और तब इस दोस्ताना कदम के कारण इस पीक का नाम ‘फ्रेंडशिप’ पड़ा" । 

फ्रेंडशिप पीक की ऊँचाई आई.एम.ऍफ़. वाले 5289 मीटर बताते हैं । जी.पी.एस. डिवाइस ने 5194 मीटर और  कैसियो क्लाई घड़ी ने ऊँचाई 5140 मीटर दिखाई । सुबह 04:34 चलकर हम टॉप पर 10:30 बजे पहुंचे (5 घंटे 56 मिनट) । इस चोटी का डंका ‘ट्रेकिंग पीक’ के नाम से सारे जहां में बजता है । यहां के कोर्डिनेटस 32°23'45.43 N, 77°06'34.56 E हैं । हवा के बढ़ने के बाद हम पूरे 41 मिनट बाद यहां से नीचे उतरना शुरू करते हैं (11:11am) । 

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फ्रेंडशिप पीक का डिटेलड मैप 

फिक्स्ड रोप की वजह से तीखी ढलान से उतरना काफी आरामदायक रहा । नीचे उतरते हुए अचानक मुझे रोशन की आवाज सुनाई देती है “बाबा जी यहां नेटवर्क भी आता है लाइव हो जाओ” । तुरंत ही म्यूचुअल एग्रीमेंट के बाद नूपुर ने अपने फोन से फेसबुक पर लाइव  कर दिया । (नूपुर ने फेसबुक पर पोस्ट भी डाला इस अभियान के बारें में जो इतना वायरल हुआ कि ट्रम्प साहब ने खुद तारीफ करी नूपुर की, यकीन नहीं आता तो यहाँ देखें

फिर जो हम फिसलते हैं तशरीफ़ के बल तो सीधा शोल्डर तक रगड़ते जाते हैं, अच्छा बीच में एक बार मैं छोटी सी हिड्डन क्रिवास के दर्शन भी कर आता हूँ । कभी-कभी माउंटेनियरिंग कोर्स में सीखे दाव पेंच आपकी जान बचाने में कारगर सिद्ध होते हैं । 

सोल्डर पर कल लायी हुई एक-एक रोटी खाते हैं गोभी की सब्जी के साथ और थोड़ा पानी पीकर फिर से फिसलते हैं । नूपुर बर्फ पर डर रही है, मैं उसे समझाता हूँ यहां गिरोगी तो चोट नहीं लगेगी । मैं दौड़ता हूँ फिर फिसलता हुआ राजा की प्रेमिका के सफ़ेद आँचल से पार निकल जाता हूँ । अब हमने क्रेम्पौंस व गेटेर्स उतार दिए हैं और तेजी से अपने टेंट पर पहुंचते हैं (01:21pm) ।

सबकुछ समेटकर यहां से निकलने में हमें 02:45 बज जाते हैं । सोलांग का ख्याल आते ही हम स्पीड पकड़ते हैं, लेडी लेग कैंप साईट 03:10 पर पहुंचते हैं । एन.आर.आई. लड़की वाली टीम अभी भी यहीं बैठी है, गाइड बोलता है कि “आज रात हम यहीं से समिट अटेम्प्ट करेंगे”, जिसपर नूपुर का बोलना है “तुम्हारे पपीते फटने तय हैं” । मैगी ब्रेक के बाद हम धुन्धी की ओर दौड़ते हैं । समय 03:40 हो गया है, शाम ढल रही है, हवा और ठंडी होती जा रही है और...जाते-जाते राजा की प्रेमिका को निहारते हैं जो बादलों के बीच दुबकी है मानो खुद को मिलन के लिए सजा रही हो । 

"झूम-झूम के नाचूं मैं
गली-गली पगली कहलाऊं,
अपनी वीणा की तान पर
मैं गीत तेरे प्रेम के गाती जाऊं,
पत्थर मारे लोग मुझे अब
कैसे मैं इनको समझाऊं,
ना चाहूँ तुम्हें चरित्र स्वरूप
उस पर हक है रुक्मण का,
ना चाहूँ मुरली की मधुर मिठास
उस पर तो हक गोपी राधा का,
मीरा को तो बस यूं मिल जाओ
मैं दासी तुम मेरे प्रभु हो जाओ,
पूर्ण प्रेम की लौ में गिरधर
मैं...मैं ना रहूँ बस तुम हो जाओ..." (सौजन्य: पूजा त्यागी)

लेडी लेग से चलते ही हम अपने-अपने रकसैक बदल लेते हैं, नूपुर का रकसैक भारी है फिर भी हम 35 मिनट में नुआली पहुंचने में कामयाब हो जाते हैं । 5 मिनट विश्राम के बाद दौड़ फिर से शुरू होती है धुन्धी की ओर जहां पहुंचने का टारगेट मैं 6 बजे का रखता हूँ । 04:05 से भागते हुए धुन्धी 05:32 पर पहुंचते हैं । लेडी लेग से धुन्धी तक नूपुर के रकसैक में मेरा देवगोड़ा बना दिया । 

6 बजे हमें धुन्धी पुल से लिफ्ट मिल जाती है और साढ़े छह बजे हम सोलांग पहुंचते हैं जहां जोनी, राजा व बाकी स्टाफ हमें समिट की बधाई देता है वहीं रोशन का कहना है “रम पियोगे?” । 


फ्रेंडशिप पीक की जी.पी.एक्स. (GPX) फाइल यहाँ से करें डाउनलोड

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ट्रैक की पूरी जानकारी व खर्चा 

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कंधें पर जोर...

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चढ़ाई है या दीवार ?

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टॉप पर फिक्स्ड रोप 

और अंत में आखिरी फोटो जिसका सम्पूर्ण क्रेडिट कुल्लू के आयुष कुमार को जाता है । पिछले एक हफ्ते से लड़के ने अपने जुनूनी होने का जो सबूत दिया है वह नीचे वाली फोटो में साफ-साफ दिखाई देता है । चोटियों के नामों की सटीक खोज के लिए भाई पाताल तक पहुंच गये । आयुष भाई आप पहाड़ों के आगे झुकते हो मैं आपके आगे । उल्ट्रा उफ्फ परफोर्मेंस के लिए आपको कुल्लू घाटी का शौधकर्ता घोषित किया जाना चाहिए ।

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बिजली महादेव से शिकर बह तक 

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मियार से मनाली तक


Comments

  1. vaah vaah,worth reading,may you reach many more heights,keep it up bhai,Jai Shiv Shakti!!

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    1. जय माँ भगवती आयुष भाई, अपना समय देने के लिए धन्यवाद। हिमराज की कृपा आप पर बनी रहे । शुभकामनाएं...

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  2. मुझे नहीं पता था इस ब्लॉग में इतना अद्भुत खजाना छुपा है

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