2-जुलाई-2018
स्टोक कांगड़ी चढ़ने का नशा ज्यादा देर न टिक सका, लेह में 1200 के कमरे ने सरेआम “नरक में जाओगे सब” बोलने पर मजबूर कर दिया । हमारे पास दो ख़बरें थी, खुशख़बरी के अंडर लेह से मनाली बस का टिकट 640 रु. प्रति व्यक्ति है और दुखखबरी के मुताबिक अगले दो दिन बस की सीटें फुल हैं । ‘नेहा स्वीट्स’ की जलेबी व ‘फ़ूड कॉर्नर’ के लाइम सोडे ने इन ‘टू डेज’ को ‘ब’ से बेहतरीन बना दिया ।
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माउंट यूनम चोटी (6092 मीटर) [फोटो : नूपुर सिंह] |
तो संवेदनशील जानकारी यह है कि रोज़ सुबह सवा चार लेह से मनाली दो बसें जाती हैं, एक है डीलक्स, जिसका किराया 870 रु. है और दूसरी है सामान्य बस, जिसका किराया 640 रू.प्रति यात्री है । टिकट लेते हुए हो गया पंगा, हमें जाना है भरतपुर (बारालाच्ला से पहले) और कंडक्टर बोल रहा है कि “टिकट मिलेगा तो केलोंग तक का नहीं तो टैक्सी कर लो” । आनन-फानन में आपातकालीन मीटिंग बैठी जिसमें सर्वसहमती से “केलोंग का टिकट लेकर भरतपुर उतर जायेंगे” का फैसला लिया गया । तुरंत 485 रु. प्रति व्यक्ति की दर से तीन टिकट फटे ।
1455 रु. की तीन टिकट, और दो दिन का लगभग 4000 खर्चा चुकाकर मुझे लड़की के बाप सी फीलिंग आने लगी, जिसने किडनी गिरवी रखकर डबल बैड और सिलाई मशीन दहेज़ में दी हो । दो दिन हाईबर्नेट मोड़ में बिताकर 29 जून की सुबह 3:30 पर हमने गेस्ट हाउस छोड़ा । बस निर्धारित समय से 10 मिनट देर से चली । चोगलम्सर से कुछ आर्मी के जवान चढ़े जिन्होंने 30 मिनट तक पूरी बस को इसलिए सर पे उठाए रखा क्योंकि उनकी बुकिंग डीलक्स बस में थी और टिकट कटवाने और रोड़ पर लेटने के बाद भी ड्राईवर ने बस नहीं रोकी । कंडक्टर की आवाज कोई नहीं सुन रहा है कि “भाइयों सारी सीट फुल हैं, जगह नही है” । जवानों ने ड्राईवर को एक्स्ट्रा इनकम का लालच दिया कि “आचो कारू से पहले पकड़ना है हरी बस को, खैंच दो गाड़ी 100 की स्पीड से” ।
ड्राईवर सकते में आ गया, उसने पहले कंडक्टर का मुंह देखा जो अभी भी बोले जा रहा है कि “सीट नहीं है, कहां बैठोगे?”, फिर उसने जवानों की ओर देखा और बिफर गया । “मैं बस चलाता हूँ फरारी नहीं, 100 की स्पीड से जाना है तो टैक्सी बुक कर लो”, चिल्लाते हुए उसने ब्रेक लगा दिए । आखिरकार अब सबको कंडक्टर की बात सुनाई दी जब उसने स्लो मोशन में अपनी बात दोबारा कही “इस बस में जगह नहीं है, बैठकर क्या मेरे सिर पर जाओगे?” । तीनों जवानों ने आँखों-आँखों में ट्रेनिग में सीखी खुफिया भाषा में कुछ देर नैन-मटक्का किया और चिल्लाकर ऐलान किया “हम खड़े होकर जायेंगे”, “मनाली के तीन टिकट फाड़ दो”, बोलकर दूसरे जवान ने बैग नीचे रख दिया ।
15 मिनट के स्वांग के बाद आख़िरकार बस दोबारा चल पड़ी । ‘तांगलंग ला’ आने वाला है, जहां अभी भी पूरी बस बेहोश है वहीं तीसरा जवान अभी भी हरी बस के ड्राईवर को गलियां दे रहा है जिसका साथ अब कंडक्टर भी बड़े उत्साह से दे रहा है मानो कोई पुराना बदला ले रहा हो ।
मौरे प्लेन्स (कान्छुथांग) तक तो सोते-सोते ही सफर हुआ । शायद सुबह 10 बजे बस पांग में रुकी । बस से उतरते ही कुछ सहयात्रियों ने बीड़ियों का कभी न खत्म होता दौर शुरू कर दिया, एलीट ग्रुप ने संडास में लैंड माइन्स बिछाये । इसी बीच बिहारी मजदूर बीड़ी के बाद पराठे खा रहे हैं, नूपुर मैगी, मैं अमूल कूल, गौरव लस्सी पी रहा है और पास ही अंकिल-आंटी उल्टी के दौर के बाद राजमा-चावल की शुरुआत कर रहे हैं ।
लाचुंचुंग-ला पार करके गौरव ने ब्यान जारी किया कि “मैं अभी 6000 मीटर के लिए तैयार नहीं हूँ इसलिए मैं सीधा मनाली जाऊंगा” । बयान शर्मनाक था फिर भी इसे पूर्ण समर्थन प्राप्त हुआ । अच्छा हो सकता है आप लोग सोच रहे हो कि लेह-मनाली बस का सफ़र कैसा है?, तो यहां मैं आपको बताना चाहूँगा कि “जो इंसान दो दिन पहले स्टोक कांगड़ी चढ़कर आया हो उससे किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया पूछने वाला 5 दिन की कैद और 500 रु. नगद जुर्माने का हकदार होगा” ।
नकी-ला, गाटा लूप्स और सरछु नींद के बीच ही गुजर गये, बीच-बीच में जब भी आँख खुलती तीसरा जवान अभी भी हरी बस वाले ड्राईवर को मारना चाहता था । बस ने तीन बजे भरतपुर उतारा, जहां मैंने अपनी सीट पहले जवान को ऑफर करी । सुबह 4 बजे से खड़े-खड़े आखिरकार जब 11 घंटे बाद सीट मिली तो मानो उसकी आँखों से आंसू लुढ़क गये, वो बोला कुछ नहीं, बस बैठ गया । गौरव को ‘गुड लक’ बोलकर हम अपने ठिकाने पर उतर गये । तीसरे जवान के अंगारे अभी भी धधक रहे थे ।
माउंट यूनम की जितनी जानकारी हमारे पास है उससे सिर्फ यही ज्ञात होता है कि “यह एक ट्रैकिंग पीक है जिसकी ऊँचाई 6000 मीटर है” । भरतपुर का सबसे आखिरी ढाबा हमारा अड्डा है । यहां का मैनेजर टशी है और मालिक उसका ताऊ (अंकिल) है । बाद में ताऊ ने बताया कि “दो दिन पहले ही दो लड़कों ने यूनम समिट ट्राई किया था लेकिन खराब मौसम की वजह से उन्हें बेस कैंप से वापस आना पड़ा” । ताऊ ने हमें ढाबे से ही यूनम पीक के दर्शन कराये । उन्होंने यह भी बताया कि उनका एक जानकार बंदा है दारचा में, जोकि 3-4 बार ‘टेम्पो-ला’ क्रोस कर चुका है ।
आज हम यहीं रुकेंगे और कल सुबह बेस कैंप कूच करेंगे । शाम को यहां दो बाइक सवार पहुंचे जिन्होंने बताया कि “खोक्सर के बाद पागल नाले में भयानक मलवा आ गया है, वहां भारी जाम व हाहाकार मचा हुआ है, दोपहर तीन बजे जैसे ही मशीन ने मलवा क्लियर किया वैसे ही हम सीधा यहां पहुंच गये” । उसके हैरान चेहरे को देखकर एकबार को तो मुझे लगा कि “पृथ्वी ही बह गयी है” । अब हमें गौरव की चिंता होने लगी, लेकिन अच्छी बात यह बताई कि कोई भी हताहत नहीं हुआ एंड अर्थ इस आल्सो सेफ ।
हमने लंच व डिनर भरभर के खाया । स्टोक कांगड़ी समिट का किस्सा सुनकर अंकिल ने घोषित कर दिया कि हम लोग पहाड़ी बकरे की भांति दो से ढाई घंटे में बेस कैंप पहुंच जायेंगे । पास ही दिखती यूनम को देखकर मैंने भी मिमियाने हुए पारले-जी जुगाला ।
अगली सुबह हम आराम से उठे, जब रास्ता ही दो घंटे का है तो जल्दी जाकर क्या अंडे छिलेंगे । नाश्ता करके हमने अगले दो दिन के लिए बैग में फ्राइड राइस, बिस्कुट, टॉफी, केक, और चोकलेट रख लिये । टशी और ताऊ को परसों मिलेंगे बोलकर हम सुबह 10:30 बजे निकले बेस कैंप के लिए ।
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रास्ते से दिखता भरतपुर व मनाली-लेह हाईवे [फोटो : नूपुर सिंह] |
ताऊ के बताये रास्ते के हिसाब से हमें सबसे पहले बहुत दूर दिखते झंडे तक जाना है फिर यूनम रिवर क्रोस करके बेस कैंप पहुंचना है । वैसे यहां जितने टेंट लगे हैं उनमें से आजतक कोई भी यूनम पीक नहीं गया, ज्यादातर बंगाली लोग इसको समिट करते हैं तो जो कहानी दादा लोग सुनाता है वही ये लोग हमें भी सुना दिए ।
जल्द ही जी.पी.एक्स फाइल ने हमें नदी पार करवा दिया । सुबह का समय था तो नदी आसानी से पार हो गई । धीरे-धीरे ऊँचाई बढ़ने लेकिन थकान महसूस का कोई अता-पता नहीं, नूपुर अच्छा कर रही है वो मुझसे थोड़ा ही पीछे है ।
12:25 पर हम बेस कैंप पहुंचे । भरतपुर से बेस कैंप तक एक बड़ा रॉक गार्डन है जिसमें बीच-बीच में कैर्न (पत्थरों की ढेरियाँ) बने हैं । यहां की ऊँचाई 5000 मीटर है, टैंट की जगह और पीने का पानी भरपूर मात्रा में उपलब्ध है ।
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रॉक गार्डन टुवर्ड्स बेस कैंप [फोटो : नूपुर सिंह] |
बेस कैंप से पास ही दिखती यूनम को देखकर दोनों का मन ललचाने लगा कि “चलो सामान यहीं छोडकर समिट को चलते हैं वापसी में कैंप कर लेंगे यहां” । 15 मिनट गहरी वार्तालाप के बाद आखिरकार मैंने फतवा जारी किया कि “इतनी भी क्या जल्दी है, आज आराम करते हैं और कल सुबह जल्दी निकलकर समिट करके वापस मनाली” ।
10 मिनट में टैंट गाड़ दिया, 2 बजे फ्राइड राइस का लंच भी कर लिया, आराम भी कर लिया, आसपास घूम भी लिए और फोटो भी खिंच लिए, अब क्या? । पिछले दो हफ्तों में यह अकेला दिन है जब इतना आराम नसीब हुआ है । सात बजे डिनर करके दोनों बेहोश हुए सुबह 4 बजे का अलार्म लगाकर ।
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बेस कैंप, टेंट व पीछे दिखती यूनम [फोटो : नूपुर सिंह] |
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सामने दिखती 5850 मी. ऊँची चोटी |
नूपुर के उठाने पर आँख खुली, टाइम सवा चार हो रहा था, बाहर अंधेरा था, मैं सो गया “पांच बजे चलेंगे” बोलकर । अगला अलार्म सही टाइम पर बोला, पांच बजे उठकर हमने मेरे रकसैक में पानी, चोकलेट, बिस्कुट और केक रखकर 5:36 पर दूसरी बार 6000 मीटर की और कदम बढ़ाये ।
मौसम साफ़ था । इतनी ऊँचाई से सूर्यादय पहली बार देखा, स्वर्णिम रौशनी में कुदरत ने स्नान किया, मैंने समिट की दुआ मांगी ।
समिट के लिए मैं पूरी तरफ फिट था और नूपुर सुपरफिट दिख रही है । जय माता दी और लेट्स रॉक के उद्घोषों के साथ यात्रा शुरू हुई । बेस कैंप के सामने ही एक छोटा नाला बहता है हमने उसी के साथ-साथ ऊपर चढ़ना शुरू किया । मौसम ठंडा था और हर कदम पर हवा पतली होती जा रही है ।
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संघर्ष जारी है, समिट की तैयारी है |
30-40 मिनट बाद पहला ओवरहैंग क्रोस करके दोनों थोड़े खुले इलाके में पहुंचे जहां सिर्फ और सिर्फ पत्थर ही पत्थर बिखरे पड़े हैं । कुछ देर चलने के बाद बर्फ शुरू हो गई, गिरनी नहीं गिराने । बर्फ के बीच बहती जलधारा को पार करके धीरे-धीरे इंच-दर-इंच ऊपर खिसकने लगे । हमारा अंदाजा है ज्यादा-से-ज्यादा 5 घंटे में टॉप पर पहुंच जायेंगे ।
जितना ऊपर जाते जा रहे हैं उतनी बर्फ की मोटाई बढ़ती जा रही है । हमने पांच मिनट का ब्रेक लिया, मेरी सांसे सातवें आसमान पर हैं और नूपुर की शायद पांचवे या छठे पर रही होगी ।
अचानक मौसम बदलने लगा, जहां थोड़ी देर पहले तक तेज धूप थी वहीं अब धुंध छाने लगी, विजिबिलिटी 10 फीट रह गई । बर्फीला इलाका शुरू हो गया है यहां से पीछे मुड़कर देखने पर नूपुर सात समुन्द्र पार दिखाई दे रही है । यहां बर्फ की कोख से झांकते पत्थर हैं, जिनपर ब्लैक आइस जमी है ।
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मौसम व नूपुर की नाजुक स्थिति |
बर्फ कौमपैक्ड है, मतलब सख्त है । अब आगे बढ़ने के लिए बर्फ को ठोकर मारकर तोड़ना होगा ताकि जूते के लिए सीड़ी जैसा स्लॉट बन सके, यूपी वाली यूनम को ट्रेल रनिंग शूज से चढ़ रही है । यहां तो मेरे येती शूज भी फिसल रहे हैं फिर ट्रेल रनिंग शूज किस खेत की मूली हैं । अंतिम 200 मीटर ने मेरी घज्जियां उड़ा दी । लगातार बर्फ को तोड़ते हुए चलने से मेरा रिजर्व खत्म हो गया, खांसते वक्त जब फेफड़ा छाती फाड़कर बर्फ पर गिरा तब एहसास हुआ कि “ब्रो सीन ऑफ़ है” ।
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उठते पहाड़, उखड़ती साँसें [फोटो : नूपुर सिंह] |
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हर कदम नया, काटो बर्फ साँसें आगे बढो [फोटो : नूपुर सिंह] |
10:05 पर शिखर पर पहुंचे, अब न बादल बचे, न धुंध, न ऊर्जा और न अहंकार । खुद को समेटकर बैठा हूँ समिट पर, सांसें नियंत्रित हो रही हैं लेकिन एहसास नहीं । शिखर को छूते ही रीढ़ से शुरू हुई सिहरन मन तक गई जिसने गहरी संतुष्टि का अनुभव कराया ।
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यूनम का शिखर 6092 मीटर |
नूपुर अभी भी बैठी हुई है, उसका सिर झुका हुआ है मानो पहाड़ को धन्यवाद दे रही है । वो आसपास घूमती है, उसकी नियंत्रित सांसों को देखकर लग रहा है उसे पहाड़ से आशीर्वाद मिल गया है । हम दोनों एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं, पहाड़ को दुआएं देते हैं । अब वक्त है कुछ खाने का, टॉप पर स्थित बर्फीली रिज पर बैठकर दोनों नाश्ता करते हैं, बातें करते हैं, हँसते हैं और शिखर को थोड़ा नाश्ता व एहसास अर्पण करते हैं ।
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पहला एहसास, पहाड़ के साथ |
समिट 6092 मीटर पर स्थित है, बेस कैंप से यूनम की दूरी 2.52 किमी. है जिसमें 937 मीटर का हाईट गेन होता है । हमें बेस कैंप से टॉप तक पहुंचने में 4:52 मिनट का समय लगा ।
माउंट यूनम अपर लाहौल, हिमाचल में स्थित एक नॉन-टेक्निकल पीक है । यह पीक बारालचला पास के समीप यूनम झील (4800 मीटर) के साथ लगते भरतपुर स्थान के पीछे स्थित है । यूनम के कोर्डीनेट्स 32.818453, 77.404563 हैं और इस चोटी की ऊँचाई 6092 मीटर है ।
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ऊँचा पहाड़, गूंजती दहाड़ |
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चाहत आसमान की जब पूरी हो जाए [फोटो : नूपुर सिंह] |
स्टोक कांगड़ी पर फोटो न खींच पाने की सारी कमी यूनम पर पूरी कर ली । करीबन 10 मिनट तो हम फोटो ही खींचते रहे । शरीर में ऊर्जा के संचार के बाद 10:34 पर हमने यूनम से विदा ली । धूप से बर्फ सॉफ्ट हो गई है, अब चलने में मजा आ रहा है । मैं दौड़ते हुए तेजी से नीचे उतरता हूँ, लेकिन नूपुर धीरे-धीरे ही उतर रही है । थैंक्स टू माय ट्रैकिंग शूज लेकिन पिघलती बर्फ ने सारे कवच तोड़ते हुए पैरों को भीगो दिया और अंत में उन्हें सुन्न कर दिया ।
बर्फ खत्म होते ही जूते सूखने शुरू हो गये और वहीं बेस कैंप पर कुछ लोग भी दिखाई देने लगे । बेस कैंप हम 12:20 पर पहुंचे, यहां दो लोग मिलकर टेंट लगा रहे हैं । बातचीत में पता चला कि एक बंगाली ग्रुप है जो चार जुलाई को समिट अटेम्प्ट करेगा । एक-एक करके सभी दादा लोग नीचे से ऊपर प्रकट होने लगे । आज इनका लोड़ फेरी है, कल ये लोग बेस कैंप पर कब्जा कर लेंगे और परसों हाईट गेन के बाद अगले दिन समिट अटेम्प्ट ।
हमारे उतरे हुए मुंह देखकर ग्रुप लीडर ने हम दोनों को जूस और पराठा दिया जिसपर मैं उसे “दो गर्लफ्रेंड मिले” का आशीर्वाद देता हूँ । लगभग 14-15 का झुण्ड है, सबको बधाई देते हुए हमने टेंट पैक कर लिया । और 12:44 पर पूरे बंगाली समाज को राम राम बोलकर नीचे दौड़ लगाई ।
यूनम नदी तक पहुंचने में समय नहीं लगा, रोकेट की गति से नीचे पहुंचे । धूप तेज है जिसने नदी को गहरा और तेज बना दिया है । 10 मिनट तक जब पार करने की सही जगह नहीं मिली तब आखिरकार हमने घुसकर यूनम नदी को पार किया । पानी जांघों से ऊपर है और साँसे छाती से बाहर ।
1:50 पर भरतपुर पहुंचकर दूसरा समिट सकुशल पूर्ण हुआ । फटाफट लंच करके अब इंतजार था मनाली जाने वाली बस का जोकि तीन बजे आयेगी । बस समय से पहले पहुंची और ढाई बजे हमने बस में धावा बोला, सीट मिल गई है । हम दोनों के दायें बाएं बरो (BRO) बैठे हैं अपने-अपने मुरझाएं चहरे लेकर ।
कंडक्टर ने बताया कि “यह बस सिर्फ केलोंग तक जाएगी, मनाली के लिए केलोंग से चेंज कर लेना” । बिना देर किये हमने केलोंग के दो टिकट ले लिए । पौने पांच केलोंग पहुंचे जहां से अगली बस 6 बजे मनाली चल पड़ी । ज्यादातर रास्ता सोते-सोते ही कटा । बस ने रात साढ़े दस बजे मनाली उतारा । आठ घंटे के तोड़-फोड़ सफर के बाद बाकी बचा समय हमने डिनर और कमरा ढूंढने में बिताया । मनाली स्वीट्स में 100 की थाली और पास ही एक 500 के कमरे ने यात्रा को विराम दिया ।
माउंट यूनम (6092 मी.) का ट्रैक शुरू होता है भरतपुर (4709 मी.) से, जिसकी एक तरफा पैदल दूरी लगभग 4.52 किमी. है, 1419 मी. के हाईट गेन के साथ । भरतपुर से बेस कैंप (5188 मी.) की पैदल दूरी सिर्फ 2 किमी. है और हाईट गेन 482 मी. का होता है । बेस कैंप से यूनम टॉप की पैदल दूरी 2.52 किमी. है जिसमें 937 मी. का हाईट गेन होता है । हमें भरतपुर से बेस कैंप पहुंचने में 02 घंटे 10 मिनट का समय लगा, बेस कैंप से यूनम टॉप 4 घंटे 52 मिनट, यूनम टॉप से वापस बेस कैंप 01 घंटा 46 मिनट और बेस कैंप से भरतपुर तक 01 घंटा 23 मिनट का समय लगा और कुल खर्चा लेह से यूनम, मनाली और वापस बीड़ तक 8785 रूपये रहा ।
तो यह था सारा प्रपंच दो चोटियां का ।
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मेरी आशाओं की चढ़ाई पहाड़ पर |
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दूर क्षितिज पर उड़ती अभिलाषाएं |
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ढूंढो नूपुर कहाँ है ? |
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तुम रहते शिखर पर और हम अहंकार पर [फोटो : नूपुर सिंह] |
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सपने में देखा था कभी यह, आज पूरा हो गया [फोटो : नूपुर सिंह] |
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तू है...तो मैं भी हूँ [फोटो : नूपुर सिंह] |
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यूनम का सारा खर्चा व जानकारी |
वाह...उस्ताद जी गजब कर दिया। अब जल्दी से किताब छाप दो
ReplyDeleteगजब तो आप लोग करते हो पहले पढ़ते हो फिर मुझे उत्तेजित करते हो किताब लिखने के लिए । शुभकामनाएं...
Deleteबहुत बहुत बधाई हो रोहित भाई समिट पूरा करने की। निस्संदेह यह एक कठिन यात्रा थी, पर आपके होंसले ने इसे पूरा कर दिया।
ReplyDeleteइसके लिए बधाई व अगली यात्राओं के लिए शुभकामनाएं
अक्षय भाई को राम राम, भाई आपको फोलो करता हूँ और यकीन मानो भयानक तरीके से आप आगे बढ़ रहे हो घुमक्कड़ी में । हिमालय राज आप पर कृपा बनाये रखे ।
Deleteदिल से बहुत बहुत बधाई बाबा
ReplyDeleteआपको तहेदिल से शुभकामनाएं, पोस्ट पढने व कमेंट करने के लिए । शुभकामनाएं...
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