30 जनवरी 2018
“31
जनवरी को स्पेशल मून निकलने वाला है, तो जालसू पर धावा बोलने को तैयार रहना”, बोलकर रॉकी ने फ़ोन
काट दिया । गूगल ने बताया कि “यह चंद्रग्रहण है और इस दौरान ऐसी स्थिति बनेगी जब
मून, मून न होकर सूपर मून और फिर ब्लू मून में परिवर्तित होता दिखेगा । इस आकाशीय
घटना को ‘सूपर ब्लू मून’ कहा जाता है” । वैसे इसे “कयामत की रात” नाम देना भी गलत
न होगा ।
कमरुनाग मंदिर यात्रा : जनवरी 2018 |
बड़का जी (अरविन्द कार्टूनिस्ट) किसी कारणवश साथ नहीं चल पाएंगे । बड़का जी से बात करके रॉकी ने प्लान को कुछ समय के लिए ठन्डे बस्ते में डाल दिया । तो अब हम रह गये सिर्फ 2, मैं और पहाड़ी क्वीन “आल्सो नोन एज ‘नूपुर सिंह’ ।
पिछले 2
सालों से कमरुनाग मेरे दिमाग में कुंडली मारकर बैठा है और 28 जनवरी तो उसने कुंडली
को जैसे ही कसा वैसे ही दर्द के मारे मुंह से ‘तरुण गोएल’ निकला । नूपुर को
आगाह कर दिया कि “अब जालसू नहीं कमरुनाग जायेंगे और एक रात पवित्र झील पर बिताकर
वापस आ जायेंगे” ।
कंप्यूटर
जी ‘तरुण गोएल’ को फोन मिलाया जाए । “राम राम” से बात शुरू हुई और ‘अमित तिवारी’ पर खत्म । गोएल साब
के अनुसार तिवारी जी बिलकुल लेटेस्ट घूमकर आये हैं ‘शिकारी देवी’ । लेकिन शिकारी
देवी क्यूँ हमें तो सिर्फ कमरुनाग तक ही जाना है । गोएल साब तिवारी जी का नम्बर व्हाटसेप
कर देते हैं और अगले मिनट हमारी वार्तालाप शुरू हो जाती है ।
“अभी
लेटेस्ट कंडीशन का तो पता नही क्योंकि हम बर्फ गिरने से पहले गये थे । जंजैहली तक
ट्रेल बढ़िया बनी है और रास्ते में कोई समस्या न आए इसलिए आपको इस रूट की
जी.पी.एक्स. (GPX) फाइल रात को भेज दूंगा । कमरुनाग के बाद सिर्फ
एक जगह पानी मिलेगा वहीं से आगे का स्टॉक फुल कर लेना, वैसे हमने तो बर्फ
को पिघला लिया था । कमरु और शिकारी दोनों पर ही सराय खुली मिलेंगी लेकिन ध्यान
रखना लकड़ी के फर्श वाली सराय में आग मत जलाना और हाँ ‘बूढा-केदार’ जाना मत भूलना
वहाँ स्पिति की तरह जमे हुए वाटर फॉल मिलेंगे”, जानकारी का जानदार
बूटा तिवारी जी ने मुझे पिला दिया था ।
जहां
प्लान सिर्फ एक रात कमरुनाग झील पर रात बिताकर वापस लौटने का था वहीं अब हम जंजैहली
निकलेंगे वाया शिकारी देवी एंड बूढा केदार । तो अब प्लान यह है कि “हम बीड से कमरुनाग
पहुंचेंगे सैम डे, नेक्स्ट डे शिकारी देवी और लास्ट डे सीधा बीड” ।
2 बैग पैक हो गये जिसमें मैट्रेस, स्लीपिंग बैग, एक 6 बाय 4 का
कम्बल,
बर्तन-भांडे, पुलाव-पेस्ट, चाय सामग्री, सूप,
गज्जक, अमरुद,
चावल, एक
जोड़ी कपड़े, थोड़ा मैकउप का सामान, हैण्ड टावेल और एक दर्जन
आलू के पराठे ।
तिवारी
जी से जी.पी.एक्स. फाइल रात 11 के बाद प्राप्त हुई । एक्युवेदर से आशीर्वाद
प्राप्त करके 29 की सुबह 14 साल पूरानी एक्टिवा पर 9 बजे कूच किया । 380 का
पेट्रोल भराकर लड़की दौड़ पड़ी चैल चौक की ओर जहां इसे पार्क होना है । पहले हमने
सोचा था कि एक्टिवा को रोहांडा तक खींचकर ले जायेंगे लेकिन बाद में गोयल साब ने इस
योजना को चैल चौक में स्थगित करने को बोला । उन्होंने श्रीमान दिनेश जी का नंबर भेजा
जिनकी मदद से हमें श्रीमान मनोज जी का कांटेक्ट नंबर प्राप्त हुआ जोकि चैल चौक के
ही बासिन्दे हैं । 3 घंटे में लगभग 120 किमी. का रास्ता तय करके हमने एक्टिवा को
मनोज भाई को सुपुर्द किया ।
चैल चौक
से रोहांडा के लिए प्राइवेट बस दोपहर 1:15 बजे निकलेगी तब तक हमने चैल चौक (1420
मी.) बस स्टैंड पर इंतजार करना बेहतर समझा । जनवरी का महीना है, हवा ठंडी है और धूप
निकली हुई है । हम दोनों बस स्टैंड की सीढियों पर बैठकर धूप की गर्माहट को महसूस
कर रहे हैं, कुल मिलाकर माहौल सुहावना बना हुआ है कि तभी एक
आंटी आती हैं और हम दोनों के बीच बैठ जाती हैं ।
मैं नूपुर को फ़ोन में दिखा रहा
हूँ कि कोई लड़का शिकारी देवी पर स्कीइंग कर रहा है । शिकारी देवी का नाम आते ही
आंटी मुझे देखने लगती हैं और मैं हमारे पास ही खड़े एक लड़के को जिसने गोद में बच्चा
लटकाया हुआ है, उसे देखकर ऐसा लग रहा है जैसे उसका बाल विवाह
हुआ हो । स्कीइंग करते लड़के की फोटो आंटी को दिखाता हूँ और बताता हूँ कि “शिकारी
पर स्कीइंग लायक बर्फ गिर गयी है” ।
“मुझे
तो कम दिखाई देता है”, सरकाजम भाव में बोलकर आंटी ने सोने की अंगूठी को
घुमाया, जो उन्होंने सीधे हाथ की छोटी वाली ऊँगली में पहनी हुई थी ।
“मैं
बीड से आया हूँ, बैजनाथ, पालमपुर के पास
रहता हूँ”, बोलकर मैंने उनके सवाल का जवाब दिया ।
“अच्छा
वहां तो मिरांडा हस्पताल है”, बोलकर कई बार उन्होंने आँखें झपकाई, मुझे ऐसा लगा जैसे
मेरी ढाढ़ी में ओ.पो.डी. को ढूंढ रही हो ।
“मिरांडा
नहीं आंटी टांडा हॉस्पिटल”, बोलकर मैंने बाल विवाह पीड़ित की ओर देखा जो
हमारी सार्क वार्ता में भाग लेने को उतेजित दिखाई दे रहा था ।
“हाँ
हाँ वही...सुना है अच्छा हस्पताल है आँखों के लिए, मुझे अपनी आँखों का
इलाज करवाना है लेकिन दोनों में से किसी भी लड़के के पास टाइम नही है मुझे वहां ले
जाने को”, बोलकर उन्होंने उदास चेहरा बनाया ।
“अच्छा हॉस्पिटल
है और जितना देर करोगी उतनी ज्यादा आँखें खराब होती जायेंगी, अगर चाहो तो मैं ले
चलूँगा आपको”, मेरा डायलाग सुनकर आंटी फ्लैट हो गयी और अब
बिलकुल नर्म स्वभाव से मुझे लुक दिया, दूसरी ओर बाल विवाह
पीड़ित का चेहरा ऐसा हो गया जैसे पिछले 3 दिन से उसे बाथरूम न जाने दिया गया हो ।
“अच्छा
बेटा कहाँ जा रहे हो ?”, (मुझे बेटा बोला,
यु हू)
“जी
माता जी शिकारी देवी जा रहे हैं”, कहते ही मैंने बाल विवाह पीड़ित को देखा और कसम
खाकर कहता हूँ उसका 3 दिन से रोका बाँध टूट गया था ।
“अभी तो
बहुत बर्फ है वहां, पिछले साल 2 लड़के दबकर मर गये थे”, कहकर उन्होंने मेरे
लिए चिंता के भाव दर्शाए ।
“मैं तो
आंटी गाइड हूँ, इसको ले जा रहा हूँ ट्रैक पर, मैंने तो मना किया
था कि अभी काफी बर्फ होगी लेकिन शहरी लड़की है मानती नहीं है (यह वाक्य धीरे से
आंटी के कानों तक पहुंचाया)”, बोलकर आंटी को मैंने अपनी टीम का टीमलीडर बना
दिया दूसरी तरफ बाल विवाह पीड़ित ने नूपुर को ऐसे घूरा जैसे 3 दिन बाथरूम न जाने का
कारण नूपुर ही हो ।
बेचारी नूपुर
बेखबर ऊपर से कानों में इयरफोन
आंटी ने
सोने की अंगूठी को घुमाना रोककर मेरी ओर से अपना चेहरा बाईं तरफ बैठी नूपुर की ओर
स्लो-मोशन में ऐसे घुमाया जैसे कि नूपुर अभी-अभी पद्मावती फिल्म देखकर आई हो ।
मेरे लिए तो उस वक्त समय रुक गया था । आंटी ने पहले नूपुर को दाएं से बाएं देखा
फिर नीचे से ऊपर और अंत में दोनों की आँखे चार होते ही आंटी के मुंह से स्वर्णिम
शब्द फूटे ।
“हिरोइन
बनने आई हो?”, हम्म (यह बिल्कुल ऐसा था जैसे मोदी साहब राहुल बाबा से पूछ रहे हों “अले
ले ले...पी.एम. बनना है)
बेखबर
नूपुर के ऊपर देशी जैविक मिशाइल दागा गया था वो भी ‘मेड इन सुंदरनगर’ । एक जोर की
आवाज ने मेरी हंसी रोक दी थी, मुझपर हमला हुआ था, आई रिपीट मुझपर हमला हुआ था (इट
मीन्स देशी बम्ब ने अपना काम कर दिया था) । मेरे बाएं कंधे पर जोरदार मुक्का मारकर
माउंटेन क्वीन ने मुझे बता दिया था कि वो हिरोइन नहीं बल्कि ऊल्ट्रा हिमालयन गोट बनना
चाहती है ।
नूपुर
का शिकायत भरा चेहरा मानो कह रहा हो जैसे नीरव मोदी मेरी वजह से 11 हजार करोड़ लेकर
भागा है, बाल विवाह पीड़ित का सब्र का बाँध टूट चुका था, यहाँ सिर्फ आंटी ही अकेली
थी जो मेरे पक्ष में थी । उस समय तो वो मेरे लिए किम जोंग-उन से भी टक्कर ले सकती
थी फिर ये शहरी लड़की चीज़ जी क्या है ।
“अब भी
वक्त है, वापस चले जाओ नहीं तो मारे जाओगे”, आख़िरकार बाल-विवाह पीड़ित ने ये शब्द
बस में चढ़ने से पहले हमपर तेजाब की तरह फैंके । गीली पेंट में उसने धमकी दी या
भविष्यवाणी करी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल ही नहीं बल्कि बेहद आसान था ।
शिक्षा
: जब बिना डायपर के बच्चा गोद में हो और कमर से नीचे घनघोर मानसून ने रोम-रोम को
तर-बतर कर दिया हो तब मुंह से धमकी नहीं ‘हाय’ निकलती है ।
अगला
सीन यह था कि बस ने चैल चौक को छोड़ दिया है । नूपुर हैरान है कि “आंटी ने क्या
सोचकर ऐसा बोला?” । और मैं बाल-विवाह पीड़ित के ब्यान से परेशान हूँ कि “उसने हमें
ऐसा श्राप क्यूँ दिया?” । फंस जाओगे बोल देता लेकिन सीधा ही मारे जाओगे । आई थिंक
उसकी अरेंज मेरिज हुई है । बेचारा पुअर गाय ।
बस में एक
तरफ ‘काली घगरी’ बज रहा है वहीँ दूसरी तरफ मैं और नूपुर खुद को रोहांडा की अदालत
में पेशी को लेकर विचार-विमर्श कर रहे हैं । मैंने रिहर्सल कर ली है कि “नहीं नहीं
हम तो सिर्फ कमरुनाग तक ही जा रहे हैं”, और अगर इस डायलाग से नतीजा नहीं निकला तो
बेसिक और एडवांस माउंटेनियरिंग कोर्स को भी ऐड कर दूंगा ।
ढाई बजे
बस से उतरते ही पूरे रोहांडा की नज़रें हमें ऐसे घूरती हैं जैसे लेनिन साब का पुतला
हमारी वजह से गिराया गया हो और इस कम्युनिज्म से बचने के लिए हम तुरंत “ठाकुर
भोजनालय” में प्रवेश कर गये जहां हमने दाल-चावल और कढ़ी का लंच किया । ठाकुर साब जब
कढ़ी देने दोबारा आये तब जानबूझकर मैंने खाने की तारीफ करी ताकि उनसे रूट की
जानकारी ली जा सके लेकिन ठाकुर साब ने हमे पूरी तरफ इग्नोर कर दिया (आख़िरकार पुतला
गिराने वालों को कैसे माफ़ किया जा सकता है) परन्तु जूनियर ठाकुर पर हम शहरी लोगों
का जादू चल गया था ।
“आपके
80 रूपये हो गये और कमरू का रास्ता सामने वाली सीढियों से जाता है, रास्ता ठीक है
लेकिन ऊपर बर्फ मिलेगी”, बोलकर उसने अपने पापा को 500 का नोट दिया जिसके बदले
उन्होंने हमें 420 रु. और आज ही वापस आने की सलाह दी, मानना पड़ेगा कि “खाना अच्छा
था सलाह नहीं” ।
3 बजे
यात्रा शुरू हुई और मात्र 100 मीटर चलने पर ही हमें लगभग 6 जोड़ी आँखों ने घूरा जिनमें
से 7-8 ने सवाल भी किये । “कमरुनाग तक ही जा रहे हैं, बस वहीं तक जायेंगे, एक कदम
भी आगे नहीं बढ़ाएंगे और कल तक लौट आएंगे, इन्कलाब जिंदाबाद”, सभी को यही जवाब देकर
हमने झटपट चढ़ाई शुरू करी । अगर यहाँ वाद-विवाद में फंसते तो पक्का आज हमें दीवार
में जिन्दा चिनवा दिया जाता, मेरा तो चलता है लेकिन नूपुर का ताजा-ताजा हिरोइन
बनने का सपना जरुर टूट जाता ।
और चढ़ाई शुरू हुई |
3 किमी. 53 मिनट में पूरे हो गये और इसी बीच रोहांडा के 4 लड़के नीचे आते दिखे । बातचीत से पता चला कि “आज ही गये थे, आज ही मतलब सिर्फ 3 घंटे पहले और आज ही नीचे जा रहे हैं । नीचे से मतलब “40 मिनट में नीचे पहुंच जायेंगे” । आई मस्ट से इट वाज ए हेल ऑफ़ अ फ़ास्ट परफॉरमेंस ।
फोटो के लगभग बीच में दिखती सराय |
लौंडों के हिसाब से हमें आधा घंटा लगना चाहिये था लेकिन सराय के बाद 20-25 मिनट फालतू लग गये सही रास्ते पर आने में । तो शाम 05:09 मिनट पर दोनों कमरुनाग पहुंच गए, जहां हम दोनों के आलावा दूर-दूर तक कोई नहीं था । सूरज ढलने वाला था, चारों तरफ उसने पीली रौशनी फैला रखी थी । जहां नजर जाती वहां बर्फ थी, झील लगभग जमी हुई थी । इस नज़ारे को 100 में से 100 नम्बर और उसके एहसास के लिए पूरी में से पूरी जिंदगी ।
मेरी
रिकॉर्डिंग के हिसाब से रोहांडा से कमरुनाग तक की दूरी 4.3 किमी. है, जिसमें 820
मी. का हाईट गेन होता है । शुरुआत से जो चढ़ाई शुरू होती है वो झील तक कायम रहती है
। रोहांडा से लगभग 800 मी. आगे रास्ते में एक दुकान भी आती है जहां अभी तो कोई
नहीं था, फिर धार पर चलते हुए दुकान से आगे लगभग 1 किमी. बाद सराय आती है जिसके
पीछे से रास्ता ऊपर चढ़ता है, और मेरे ख्याल से सराय और झील के बीच में हमें कोई घर
या झोंपड़ी नहीं मिली ।
पूरे रास्ते में मिली अकेली दुकान, जो फ़िलहाल बंद है |
30 जनवरी 2018, बर्फ शुरू हुई झील से मात्र 1 किमी. पहले, क्या कहते हो इस बार कम बर्फ़बारी के पीछे किसका हाथ होने की आशंका है? ।
यहाँ
सराय काफी है और ज्यादातर अभी भी खुली हैं । 15 से ज्यादा का मुआयना करने के बाद
वास्तु के नियमों पर खरी उतरने वाली एक सराय को चुना, जिसमें सिर्फ एक दरवाजा है
और 2 खिड़कियाँ हैं । सूरज के जाने से पहले हमने लकड़ियों और पानी का पर्याप्त
इंतजाम कर लिया । सर्दियां हैं और स्थानियों ने सभी नलों में लकड़ी ठोककर उन्हें
बंद कर दिया है लेकिन हमें तो पानी मिल गया, थैंक्स टू तिवारी साब ।
सराय जिसमें हमने रात बिताई |
सराय के भीतर आफ्टर झाड़ू |
बाहर तापमान -1.5 है जोकि एक्युवेदर के हिसाब से -6 डिग्री कम है ।
कमरुनाग
झील : इस झील को भी उत्तराखंड की जानी-मानी झील रूपकुंड की तरह ही रहस्यमयी होने
का खिताब प्राप्त है । पूरे साल में 14 और 15 जून को स्थानीय
समय के हिसाब से ‘एक तारीख’ और हिमाचली भाषा में ‘साजा’, गर्मियों के इन दो दिनों
में देवता कमरुनाग पूरी दुनिया को दर्शन देते हैं ।
क्योंकि कमरुनाग घाटी के सबसे बड़े देवता हैं और हर मन्नत पूरी करते हैं इसलिए
इनकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है । हिमाचल प्रदेश के मण्डी शहर से लगभग
60 किलोमीटर दूर रोहांडा है, यहीं से लगभग 5 किमी. लम्बी पैदल
यात्रा शुरु होती है ।
देवता के मंदिर के सामने एक झील है, जिसे
‘कमरुनाग झील’ के नाम से जाना जाता है । यहां पर लगने वाले मेले में हर साल
भक्तों की काफी भीड़ जुटती है और पुरानी मान्यताओं के अनुसार भक्त झील में
सोने-चांदी के गहनें तथा पैसे डालते हैं । सदियों से चली आ रही इस परम्परा के
आधार पर यह माना जाता है कि इस झील के तल में अरबों का खजाना दबा पड़ा है । देव
कमरुनाग को वर्षा का देव माना जाता है । एक मान्यता के अनुसार भगवान कमरुनाग
को सोने-चांदी व पैसे चढ़ाने की प्राचीन मान्यता है । कमरुनाग
में ‘लोहड़ी’ पर भव्य पूजा का आयोजन भी किया जाता है ।
यह भी माना जाता है कि “इस झील में अपने शरीर का कोई भी गहना चाहे सोने
चांदी का ही क्यूँ न हो चढ़ाने से हर मन्नत पूरी होती है ।
झील पैसों से भरी रहती है, ये सोना-चांदी
कभी भी झील से निकाला नहीं” । यह भी मान्यता है कि ये झील सीधे
पाताल तक जाती है । इस में देवतायों का खजाना छिपा है ।
यहाँ से कोई भी इस खज़ाने को चुरा नहीं सकता ।
क्योंकि माना जाता है कि कमरुनाग के खामोश प्रहरी इसकी रक्षा करते हैं । एक
नाग की तरह दिखने वाला पेड़ इस स्थान के चारों ओर है ।
जिसके बारें में कहते हैं कि ये नाग देवता अपने असली रुप में आ जाता है अगर कोई इस
झील के खजाने को हाथ भी लगाए तो ।
बढ़ती
ठण्ड को मध्यनजर रखते हुए शाम 7 बजे हमने चूल्हा जलाया । अहा...आग के जलते ही मानो
शरीर में फिर से जान आ जाती है । सर्दियों में तो यह कहना गलत न होगा कि “जल नहीं
अग्नि ही जीवन है” ।
सबसे
पहले चाय बनी, फिर बीड से लाये आलू के पराठों के साथ हमने डिनर किया । लगभग 4 घंटे
आग के पास बैठे रहे और करीबन साढ़े दस बजे दोनों अपने-अपने स्लीपिंग बैग में घुस
गये । बेशक तापमान -7.5 तक गिरेगा लेकिन तैयारियां हमारी भी कम नहीं हैं, -5
डिग्री स्लीपिंग बैग के साथ-साथ 6 बाय 4 का मुलायम कम्बल और फैदर जैकेट का तकिया,
लगता है आज की रात मखमली बितेगी ।
वैसे तो
हमारे पास जी.पी.एक्स. (GPX) फाइल है लेकिन फिर भी मुझे रूट को लेकर थोड़ा
संदेह है और बर्फ को लेकर उससे भी ज्यादा । नींद का झौंका आया ही था कि नूपुर ने
आवाज लगाकर उठा दिया “बाबा यहाँ तो शायद चूहे हैं”, “सो जाओ...हमें कुछ नहीं
करेंगे”, बोलकर मैंने जैसे ही आँखें बंद करी वैसे ही खोल ली । मूषक महाराज ने
स्लीपिंग बैग पर पकड़म-पकड़ाई खेलना शुरू कर दिया था ।
अभी तक
सिर्फ रूट और बर्फ दोनों को लेकर टेंशन में था लेकिन अब तीसरी टेंशन ने कुतर-कुतर
शुरू कर दी थी । न जाने आज की रात कैसी कटने वाली है । आशा करता हूँ स्लीपिंग बैग
से झांकते मेरे मुंह पर कोई अत्याचार नहीं होगा ।
कमरुनाग मंदिर की सीमा आपका स्वागत करती है । |
बलखाती राहें कमरू की |
जय देव कमरू की |
अधजमी हुई कमरुनाग झील |
जमी हुई झील व सामने दिखता कमरू देवता का मंदिर |
खुली हुई सरायें |
झील को अलविदा कहती किरणें |
देव कमरुनाग मंदिर |
देव कमरुनाग की प्रीतिमा |
गुड नाईट |
कमरुनाग के रास्ते का एलेवेशन नक्शा |
कमरुनाग के रास्ते का सैटेलाइट नक्शा |
यहाँ से आप रोहांडा से कमरुनाग मंदिर तक के मार्ग की जी.पी.एक्स. (GPX) फाइल डाउनलोड करके अपनी यात्रा को सुगम बना सकते हो ।
Thank to God aapne Intjar khatm to kiya
ReplyDeleteइन्तजार का फल हमेशा मीठा होता है ।
Deleteबर्फ वाली फोटो देख कर मजा आ गया , बहुत सुंदर
ReplyDeleteकँवर साब को नमस्कार।
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