21 दिसम्बर 2017
साल जा रहा है, कैलेंडर पर नंबर बदलने वाला है । लोगों ने 4 अंकों (2017) के साथ कुछ को चिपका दिया है । जिन्दगी कैद हो गई है 365 दिनों में, जिसकी कलाइयों पर सोमवार से शुक्रवार की बेड़ियाँ बंधी हैं । जब भी निराश होती है तो शनिवार और इतवार का ठुल्लू पकड़ा देते हैं । जिन्दगी बेजुबान क्या हुई हमने उसे जानवर ही समझ लिया । आज की फिलोसफी समाप्त हुई चलो हर दिन को नया साल बनाएं ।
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विंटर कैम्पिंग हनुमानगढ़ पीक ट्रेक 2017 (pc : Nupur Singh) |
तो 2 टीमें है । पहली का नाम “स्नो एकादश”, दूसरी का नाम “नो स्नो इलेवन” । स्नो एकादश का मैं कैप्टेन हूँ, मेरी टीम में मैं ही खिलाड़ी हूँ और “नो स्नो इलेवन” की कैप्टेन
नूपुर सिंह है, और उसकी टीम में भी वो ही एकमात्र होनहार प्लेयर है । विपक्षी टीम की कैप्टन दिल्ली के मुख्यमंत्री की तरह जोर-शोर से मानती है कि “ऊपर बर्फ नहीं मिलेगी”, वहीं मैं देशी अड़ियल हरियाणवी ताऊ की तरह कहता हूँ कि “ऊपर बड़ी भारी बर्फ होगी” ।
स्नो एकादश और नो स्नो इलेवन के बीच कई बार भिडंत हुई लेकिन कोई नतीजा नहीं । समुन्द्र तल से 1525 मी. पर बैठकर भला 3070 मी. की जानकारी कैसे मिल सकती है । “बर्फ होगी”, “बर्फ नहीं होगी”, विषय पर गृह युद्ध वायरल हो गया । “
पिछली बर्फ 12-13 दिसम्बर को गिरी थी, 10 दिन हो गये हैं अब तो धरती भी गीली नहीं होगी ऊपर”, बोलकर विपक्ष की महिला कैप्टेन ने शिकायत दर्ज करायी । मेरी तो समझ ही नहीं आ रहा था कि “10 ताने पर मिनट की एवरेज देने के बावजूद वो तैयारियां ऐसे कर रही थी जैसे हिमाचल के नये मुख्यमंत्री के साथ फोटो खिंचवाने का गोल्डन मौका हाथ लगा हो” । तानों का एनालिसिस बताता है कि ऊपर बर्फ नहीं होगी और तैयारियों के श्लोक की माने तो दिस विल बी अ ब्लास्टिंग ट्रिप” ।
20 की रात तक सारी तैयारियां पूरी हो गयी । समस्त तैयारियों की व्याख्या सप्रसंग इस प्रकार है :
1 टेंट : 2 मेन
2 रकसैक : 45-50 लीटर के (विद पोंचो सिर्फ एक),
2 मैट्रेस : एक ब्रांडेड और दूसरा अनब्रांडेड (रमेश की दुकान से फ्री वाला प्लस थोड़ा फटा हुआ)
2 स्लीपिंग बैग : एक प्लस 5 डिग्री और दूसरा माइनस 5 वाला,
एक-एक जोड़ी एक्स्ट्रा कपड़े, फुल पैएर थर्मल, मोटी फ़ोलादी जैकेट, 2-3 जोड़ी जुराबें, दस्ताने, एक जोड़ी चप्पल, सन ग्लासेस
एक कैमरा, 2 लेंस, मोबाइल, पॉवर बैंक, टोर्च, हेडफ़ोन,
पोर्टेबल चूल्हा, 2 सिलिंडर, 1 फोर्क, 2 चम्मच (एक प्लास्टिक, एक स्टील का), 1 कप (प्लास्टिक), 1 प्लास्टिक कटोरी, 1 पतीली नुमा छोटा बर्तन (सिल्वर का),
6 केले, 1 बड़ा परले-जी, टाटा चाय, 200 ग्रा. चीनी, पाउडर मिल्क, 6 मैगी, 2 यिप्पी, 4 मैगी मसाला (फॉर एक्स्ट्रा स्पाइस), 6 पराठे (आलू के), 2 बड़ी गज्जक, 1 छोटा नमकीन का पैकेट, 2 बड़े पैकेट सूप के (वेज सूप ओनली),
1 लीटर गाय का दूध, 2 लीटर पानी (ऊपर पानी नहीं है), 200 एम.एल. मिटटी का तेल,
और एक आइस अक्स (जिसका इस्तेमाल भालू से बचने के लिया जायेगा) ।
उपरोक्त सामान जी.एस.टी. के साथ 312 रु. का पड़ा जिसपर हमें 2 रु. की अति भारी छूट मिली ।
14 साल पुरानी
‘आंटी जी’ एक्टिवा को नूपुर ने चलाया है लेकिन आजतक वो इसकी काबिलियत पर शक करती है । उसकी माने तो एक्टिवा इतनी पुरानी हो गयी है कि “अब उसमें दम नहीं रहा पहाड़ों पर चढ़ने का” । लेकिन यहाँ मेरा मानना बिल्कुल अलग है “ओल्ड इज ओल्ड...लड़की अभी भी होनहार और मजबूत है बशर्ते उसके उड़ते रंग में कोई कमी न निकाली जाये, और उसके घिसे हुए टायरों की, और ब्रेक की, और 5 लीटर की छोटी सी टंकी की, और डिम से भी कम रौशनी वाली हेडलाइट की, बाकी तो परफेक्ट है...भला कोई कमी निकाल दे लड़की (एक्टिवा) में” ।
21 की सुबह पराठों का नाश्ता हो गया है, दोनों एक्टिवा पर लध गये हैं, अपने-अपने रकसैक के साथ । मुझे अपने रकसैक से जलन हो रही थी कमबख्त का वजन मुझसे ज्यादा है । सही 9:30 बजे चल पड़े बीड़ से बिलिंग की ओर । बीड़ की ऊँचाई 1550 मी. है और बिलिंग की 2450 मी. । 14 किमी. में तकरीबन 1000 मी. का हाईट गेन होता है ।
सवा दस बजे एक्टिवा को पार्क करके बढ़ चले गढ़ की ओर । जहां कुछ ही दिनों पहले समूचा बिलिंग बर्फ से ढका था वहीं आज मैदान साफ़ है । शॉर्टकट से 12 नंबर मोड़ पार किया । चैना पास की पहाड़ी पर नजर पड़ते ही नूपुर को एहसास होने लगा कि ऊपर बिल्कुल भी बर्फ नहीं मिलने वाली । इस वक़्त तो ऐसा लग रहा था अगर सच में ऊपर बर्फ न मिली तो लड़की कोमा-वोमा में भी जा सकती है । “क्या बात कर दी ‘गो-नाले’ में धूप का मतलब ही नहीं है वहां भयंकर बर्फ होगी”, बोलकर मैंने कदम आगे बढ़ाया ।
बिलिंग से 2 किमी. आगे पहुंचते ही बर्फ शुरू हो गयी । मैं विपक्षी टीम की महिला कैप्टेन के एक्सप्रेशन देखना चाह रहा था कि क्या होगा ? । बर्फ कम थी...कम क्या इतनी थी कि अगले ढाई मिनट में पिघल जाएगी । “इतनी भारी बर्फ, लगता है मुझे अपने गेटेर्स निकलने पड़ेंगे”, कहकर उनसे मेरा और बर्फ दोनों का मजाक उड़ाया । अपना तो ठीक है लेकिन बर्फ की बेज्जती सही नहीं जायेगी । “जय माँ महेश्वती”, बदला लिया जायेगा...अवश्य लिया जायेगा । तड़ी में मैं भी डायलॉग मारकर आगे बढ़ गया “माँ से कहना छेनू आया था” ।
“कोई तो कह रहा था कि बर्फ क्या धरती भी गीली नहीं मिलेगी?”, 6 इंच बर्फ में घुसते हुए मैंने बढ़त लेनी चाही । “हाँ तो कौनसा इतनी बर्फ में हमें हाइपोथर्मिया हो जायेगा”, बोलकर कप्तान साहिबा ने बचाव करना चाहा । जब लगातार बर्फ आनी शुरू हो गयी तो बल्ला “स्नो एकादश” के होनहार कैप्टेन के पास आ गया । फिर तो हर बॉल स्नो लाइन आई मीन बाउंड्री लाइन के पार दिखी । “ऊपर देखेंगे यहाँ कौनसा धूप आती है”, बोलकर कप्तान साहिबा ने मुंह बनाया । रस्सी जल गयी मगर बल नहीं गया डायलॉग तो देखो । मुझे पूरा यकीन है ऊपर तो बर्फ होगी ही होगी बल्कि पिछली साइड तो इतनी होगी कि “बन्दा डूब ही जायेगा” ।
सवा ग्यारह बजे हम ‘गो-नाले’ के द्वार पर खड़े थे । बिलिंग से यहाँ तक की दूरी 4 किमी. है जिसे हमने 1 घंटे में पूरा कर लिया । ‘गो-नाले’ का ब्लू प्रिंट कहता है कि “मुख्यत इसको गद्दी इस्तेमाल करते हैं । इसका स्टार्ट पॉइंट 2553 मी. है, टॉप पॉइंट 3003 मी. और दूरी मात्र 1 किमी. । 1 किमी. में 556 मी. का हाईट गेन होता है ऊपर से जान का खतरा कॉम्प्लीमेंटरी ।
यहाँ से गढ़ जाना मुझे बेहद पसंद है । यह रोमांचक है, चलेंजिंग है और इसके साथ-साथ चलने में जो मजा है वो तो महबूबा के साथ भी न मिले कभी । जैसे-जैसे कदम ऊपर बढ़ते गये वैसे-वैसे बढती बर्फ ने मुश्किलें खड़ी कर दी । इसका कोण लगभग 70 डिग्री है जो इसे मुश्किल बनाता है और जब बर्फ गिरी हो तब ये आप पर इतनी तीखी नजर रखता है जैसे कह रहा हो कि “गलती मत करना मेरा तो सिर्फ पत्थर ही लुढ़केगा लेकिन तुम्हारी जान चली जायेगी, फिर मत बोलना माउंटेन्स कालिंग आई मस्ट गो” ।
खैर हमने कोई गलती नहीं करी और पूरी ताकत और ध्यान से आगे बढे । भरी रकसैक बेशक हर कदम पर ऊँगली कर रहा था । शैतान बैगों की वजह से स्पीड कम हो गयी थी । सबसे ज्यादा मुश्किल अंतिम हिस्से को पार करने में आई जहां 3 फीट से ज्यादा बर्फ थी । कमर तक बर्फ में घुसकर इससे भी पार पाया ।
2 बजे हम हनुमानगढ़ चोटी पर खड़े थे जहां बर्फ थी, धूप थी और ठण्ड थी । खांसते हुए मैंने अपने अंतिम डायलॉग के साथ पूरी सीरीज को अपने नाम कर लिया, “कोई कह रहा था कि ऊपर बर्फ वर्फ कुछ न मिलेगी” । “कोई क्या हम ही बोल रहे थे”, बोलकर उसने मैच समाप्त किया । मेन ऑफ़ द सीरीज का ख़िताब मेरे नाम रहा और उभरते सितारे की शील्ड विपक्षी कप्तान को मिली ।
बर्फ बीट करके टेंट लगाने में हमें 20 मिनट लग गये । महिला कप्तान गिले जूते खोलकर पवेलियन पहुंच गयी जहां उसने चाय-पानी की व्यवस्था करनी शुरू कर दी । इस दौरान मैं जंगल में जाकर लकडियाँ ले आया । गर्मागर्म सूप के साथ दोनों ने आलू के पराठे खाएं । बाद में केले और गज्जक का दौर भी चला ।
मौसम इतना साफ़ था कि सारी पहाड़ियों का नजारा फोर-के (4k) से कम न था । नजारों में ख़ास रहा थम्सर जोत, नोहरू पास, जालसू पास, सरी पास, बड़ाग्राम, कोह्ठीकोड़ गाँव, बिलिंग, चैना पास, उतराला, उहल नदी व राजगुन्दा गाँव । धूप जाने लगी थी हमने चाय के चुस्की के बाद थोड़ी हथकंडे बोल्डरिंग में आजमायें ।
शाम साढ़े 5 बजे आग जला ली । यहाँ तापमान हर आधे घंटे में गिर रहा था । साढ़े सात बजे तापमान जीरो डिग्री पहुंच गया और 8 बजे -2 । आग थी, खाना था और सोने के लिए टेंट व बढ़िया स्लीपिंग बैग । साढ़े आठ बजे दोनों ने आखिरी 2 पराठों को मैगी के साथ लपेट दिया । 9 के बाद बीड़ से लाये दूध को गर्म करके पीने में जो मजा आया उतना तो किसी लड़की को पाऊट करके सेल्फी खिचाने में भी न आया होगा ।
रात 10 बजे नाईट फोटोग्राफी की असफल कोशिश के बाद दोनों टेंट में आ गये और कुछ ही देर में बेहोश । शुभ रात्रि ।
अगला दिन सुबह के 7:30 बजे है टेंट के बाहर से सवाल आया “बाबा चाय पियोगे?”, “हाँ” बोलकर मैं भी टेंट से बाहर आ गया । रात को नींद तो आई लेकिन उतनी अच्छी नहीं क्योंकि टेंट बर्फ पर लगा था और बर्फ ने माहौल ठंडा रखने की पूरी कोशिश की । रात तापमान -5 गया शुक्र है स्लीपिंग बैग अच्छा था नहीं तो जोर्ज मेलोरी बनने में टाइम नहीं लगता ।
जैसे ही धूप ने टेंट सुखाया वैसे ही हमने उसे पैक कर लिया । मैगी और केलों का नाश्ता हो गया और अब वक़्त था यहाँ से कूच करने का । सवा नौ बजे हमने पिछली साइड उतरना शुरू किया । गढ़ की इस साइड से चैना पास और राजगुन्दा उतरा जा सकता है । इस तरफ बर्फ की गहराई ज्यादा थी कहीं 2 फीट थी तो कहीं-कहीं 3 फीट । बिलिंग पहुंचने में हमे ज्यादा समय नहीं लगा क्योंकि उतराई तो तेज और रोमांच से भरी थी । “हम दौड़े, उड़े, गिरे, छलांगे, फिसलना, लुढकना और कोई शिकायत नहीं जिन्दगी से” ।
डेड घंटे में हम बिलिंग पहुंच गये जहां से एक्टिवा लेकर सीधा बीड़ । हमने तो इस वीक में लगातार 2 विंटर ट्रेक लपेट दिए और आप क्या कर रहे हैं इस वीकेंड पर दोस्तों ??
साल खत्म हो रहा है सफ़र नहीं । यह तो बस एक पड़ाव था मंजिल अभी बहुत दूर है तब तक होश रखो ऐ यारों क्योंकि जिंदगी बेहोशी में जी जा सकती है लेकिन घुमक्कड़ी नहीं । जब 2017 हमारे लिए नहीं रुका तो हम क्यूँ रुके 2018 के लिए, उठ जाओ ब्रो...एक अंगड़ाई ले लो और फिर से घुस जाओं रजाई में । फिलोसफी खाने को नहीं देगी सिर्फ माँ ही है जो खाने को देगी । बड़े दिन हो गये हैं माँ से बात किये हुए, रात सपना भी आया था...चलो फ़ोन करता हूँ । पहले 2 सवाल करती थी अब सिर्फ एक ही करती है कि “शादी कर करेगा?” । देखता हूँ इस बार क्या बहाना बनता हूँ । जब तक मैं अपनी माँ को कॉल करता हूँ तब तक चाहो तो आप भी अपनी प्यारी माँ से बात कर सकते हो ।
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बिलिंग से हनुमानगढ़ चोटी का ऊँचाई का नक्शा |
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बिलिंग से 2 किमी. आगे और बर्फ शुरू (pc : Nupur Singh) |
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स्वागत है गो नाले में |
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नूपुर झूझती हुई खड़ी चढ़ाई और बर्फ से |
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नाले का अंतिम पड़ाव और 2 फीट से ज्यादा बर्फ (pc : Nupur Singh) |
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कन्धों तक धंसी नूपुर |
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100 मी. का फुल पॉवर पुश (pc : Nupur Singh) |
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"जय हो" चौथी बार आया हूँ पिछले 2 महीनों में (pc : Nupur Singh) |
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बर्फ पर लगा हमारा टेंट, बोल्डर के नीचे रसोई और ऊपर गढ़ |
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तापमान 2 डिग्री है चलो थोड़ी मस्ती करें (pc : Nupur Singh) |
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हनुमानगढ़ पीक "जय श्री राम" (pc : Nupur Singh) |
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पहचाना...थम्सर जोत है |
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नूपुर, रसोई और आशियाना |
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एकान्त और उत्सव (pc : Nupur Singh) |
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टॉप से दिखता कोहठीकोड का नज़ारा |
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सिलसिला (pc : Nupur Singh) |
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अब ये भागेगी...रुकेगी तो नहीं लेकिन गिरेगी जरुर |
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छलांग के बाद (After) (pc : Nupur Singh) |
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छलांग से पहले (Before) (pc : Nupur Singh) |
रूट की GPX फाइल का
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कल्याणा भाई अपनी एक झोपड़ी हनुमानगढ़ चोटी पर बना लो बार-बार आने जाने से छुटकारा तो मिलेगा और वहां रहकर कुदरत को पूरी तरह से एंजॉय करना हां एक बात लगता है इस बार गो नाला को देखना ही पड़ेगा ऐसे नाले से याद आया कि जब धनछो से आगे मणिमहेश की तरफ जाते हैं तो बीच में इसी तरह का पत्थर का नाला आता है उस पर मैं चढा तो नहीं लेकिन एक बार उतरने का मौका मिला है बड़ी खतरनाक होती है उतराई, हर कदम पर धूम धड़ाका होने के चांस जोर-शोर से बने रहते हैं।
ReplyDeleteसंदीप भाई गुफा तो पोसिबल नहीं है हाँ लेकिन कुटिया अवश्य बना सकता हूँ । आओ फिर कभी आपका भरपूर तहेदिल से स्वागत है । ठीक कहा आपने धन्चो वाले नाले के बारें में, मैं चढ़ा था उसपर...बड़ा मजा आया था ।
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ReplyDeleteसच खूब मजा आया होगा, बर्फ, पहाड़ की बातें ही कुछ और है
ReplyDeleteनव वर्ष की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
कविता जी टिपण्णी के लिए धन्यवाद । न तो पहाड़ों की बातें अलग है न ही बर्फ की, अलग है तो सिर्फ हमारा सोचना । कुदरत तो चाहकर भी अलग नहीं हो सकती हमसे, हमीं उपलब्ध नहीं हैं उसके रस को चखने के लिए । आपको भी नव वर्ष की ढेरों बधाइयाँ। स्वस्थ्य रहें ।
Deleteआनंद आ गया रोहित भाई
ReplyDeleteथैंक यू भाई जी आनंद प्राप्त करने के लिए । शुभकामनाएं...
DeleteBhai ko namskar
ReplyDeletebahut hi gajab ka likha hai
भाई को भी नमस्कार, धन्यवाद शब्दों के लिए । शुभकामनाएं...
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