पिन पार्वती पास से अंजान कोल : मानतलाई झील-पार्वती ग्लेशियर-अंजान कोल (Pin Parvati Pass to Unknown col : Mantalai Lake-Parvati Glacier-Unknown Col)

28 अगस्त 2017
मानतलाई से जब रास्ता पिन पार्वती पास की ओर चढ़ता है तब वहां की जमीन दिखाती है 7 से ज्यादा पर्वतों के शिखर । पार्वती ग्लेशियर के गर्भ से झांकती 10 से भी ज्यादा झीलें जो हिमालय के मुकुट में जड़ी मणियों जैसी चमकती हैं । गलत कॉर्डिनेट्स और गलत दिशा में जाते पैरों के निशानों का पीछा करते-करते हम जहां पहुंचे वहां दिल दहल गया । यह कोल है पिन पार्वती पास नहीं है । अपनी मंजिल 5319 मी. थी 5400 मी. नही । हम फंस गयें हैं अकेले, क्रेवास, मौलिन और बर्फ़बारी के बीच ।

Solo Trekking to Pin Parvati Pass
मौलिन, क्रेवास, पार्वती ग्लेशियर और रौंग टर्न 

रात को न जाने बारिश कब रुकी । रात अच्छी और गर्म नींद आयी । हम अकेले और सुरक्षित थे । सुबह टेंट के बाहर दिखते नज़ारे ने दोनों को सजीव कर दिया । धूप निकल आई थी और पहाड़ों के गले में किरणें प्रेमपूर्वक लिपट रही थी । हमने चाय पी और मैग्गी का नाश्ता किया । टेंट के सूखने का थोड़ा इंतजार किया, अब वक़्त है मानतलाई को छोड़ने का । रात को बनाये प्लान के मुताबिक आज हम तेज चलते हुए ‘पपप’ को पार करके ही दम लेंगे । यह आखिरी दिन है इस घाटी में ।

सुबह के आठ बजे थे जब हम चले । आगे का रास्ता थोड़ा संदेह भरा था लेकिन अचानक मिले पेंट के नीले निशानों ने इसे हमारे लिया आसान बना दिया । थोड़ी देर दलदली जमीन पर चलते हुए दोनों ने आज का पहला नाला पार किया जिसके लिए हमे अपने जूते उतारने पड़े । पानी ग्लेशियर से आ रहा था जिसने ‘माइंड फ्रीज’ करने में पूरी भूमिका निभाई ।

नीले निशान के इशारे के बाद हम एक खड़े पहाड़ पर चढ़ने लगे । यहाँ पीने के पानी के बहुत से झरने हैं इसलिए बेस कैंप तक पानी की कोई समस्या नहीं है । चलते हुए एक घंटे से ज्यादा हो गया था और नीले निशानों ने जहां पहुंचाया वहां से स्वर्ग का नज़ारा दिखा । कोकशेन पर्वत (5780 मी.), गुशु पिशु पर्वत (5674 मी.), स्नो पीक (5640 मी.), पिरामिड पीक (6036 मी.), कुल्लू आईगर (5646 मी.), साउथ पारबती (6127 मी.), ट्विन पीक (5470 मी.), रिज पीक (5805 मी.) को देखने के बाद पिछले 3-4 दिन की मेहनत सार्थक लगी ।
यहाँ से नीचे पार्वती ग्लेशियर ग्लौफ ज़ोन है जहां काफी सारी क्यूट-क्यूट झीलें हैं, और मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूँ जब आप खुद उन्हें अपनी आँखों से देखोगे तब आप उनके प्यार में पड़े बिना न रह सकोगे ।

3 घंटे लगातार चलते हुए बेस कैंप हम 11 बजे पहुंच गये । इस स्थान ने हमें बहुत कंफ्यूज किया क्योंकि अब नीले निशान खतम हो गये थे, कहीं कोई कैर्न (Cairn= पत्थरों की ढेरियाँ) नहीं थे और न ही अब रास्ता समझ आ रहा था । यह जगह रॉक गार्डन है और एक चौड़ी गली के समान महसूस होती है जिसमें सामने एक पानी का सोर्से है । नूपुर के फ़ोन पर कॉर्डिनेट्स हमें बायीं तरह जाने को बोल रहे हैं । कोई और चारा समझ न आते हुए हमने लेफ्ट साइड से लुढ़के मलवे (Debris) पर चढ़ने का फैसला किया । मोरैन (Moraine) के साथ-साथ यह स्थान ‘रॉक फॉल’ जोन भी है मतलब खतरा पैरों के नीचे और सिर के ऊपर भी मंडरा रहा है । मैं जल्द-से-जल्द यहाँ से निकलना चाहता था ।

1 घंटे की मेहनत के बाद हम दोनों नाले के ऊपर पहुंच गये जहां बैठकर हमने आखिरी बन्न और जैम को खत्म किया । कॉर्डिनेट्स अभी भी पता नहीं किस तरफ इशारा कर रहें हैं । तेज धूप में थोड़े खाने ने शरीर को काफी संतुष्टि प्रदान करी । दोनों ने आगे का प्लान यह बनाया कि थोड़ा और ऊपर जाकर ऊँचाई से आगे के रास्ते का जायजा लेंगे और अगर रास्ता दिख जाता है तो बढ़िया नहीं तो फिर कॉर्डिनेट्स का पीछा करेंगे ।

दोपहर के 1 बजते ही इस जगह को बादलों ने पूरी तरह घेर लिया । थोड़ा ऊपर पहुंचकर दूर मुझे 2 टेंट दिखाई दिए । जिन्हें देखकर मुझे बहुत सुकून मिला । सोचने लगा कि अगर आज रात यहाँ रुकते हैं तो कल आराम से आगे का रास्ता पूछकर पिन पार्वती पास को पार कर जायेंगे । अब काले बादल और तेज हवा का डर गायब हो गया था । दोनों जल्द ही उन टेंटों की तरफ बढ़ने लगे ।

शिवराम की जानकारी ठीक महसूस होती नज़र आ रही थी क्योंकि नीचे हमने बेस कैंप छोड़ दिया और उसके हिसाब से ग्लेशियर के जस्ट नीचे एडवांस बेस कैंप आयेगा जोकि अब हमें साफ-साफ़ दिखाई दे रहा है । शिवराम ने कहा था कि बेस कैंप से सिर्फ 2 घंटे का रास्ता है ‘पपप’ तक । बेस कैंप पार किये हमें 1 घंटा तो हो ही गया है और शायद सामने दिखते ग्लेशियर के पीछे ही पास है । 1-2 घंटे की और मेहनत के बाद हम चाहे तो आज ही दूसरी घाटी में पहुंच सकते हैं । लेकिन अगर टेंटों वाली जगह रुक भी जाते हैं तो भी अच्छा है वैसे भी मौसम की स्थिती नाजुक हो गयी है ।

2-3 तेज बहती छोटी धाराओं को पार करके जैसे ही हम उन टेंटों के पास पहुंचे तो वो हुआ जो आजतक मेरे साथ कभी नहीं हुआ । यह भ्रम था यहाँ कोई टेंट-वेंट नहीं हैं, यहाँ 2 बड़े बोल्डर हैं जो दूर से मुझे 2 टेंट महसूस हुए । इन बोल्डरों को देखकर मुझे बहुत हैरानी हुई क्योंकि आज से पहले कभी भी मुझे मतिभ्रम (Hallucination) नहीं हुआ । दूर से मुझे यह दोनों पीले और सफ़ेद रंग के दिखाई दिए थे । मैं इतना भी थका नहीं था कि मुझे मतिभ्रम होने लगे, तन के साथ-साथ मन से भी एकदम फिट था लेकिन फिर भी न जाने यह क्या हुआ ? ।

नूपुर ने शायद टेंट ध्यान से नहीं देखे थे वो तो बस मेरे पीछे-पीछे यहाँ तक पहुंच गयी । लेकिन अच्छी बात यह हो गई कि गलती से ही सही पर हम सही जगह पहुंच चुके थे क्योंकि पहले जिस दिशा में जा रहे थे उस दिशा में एक बहुत बड़ा हैंगिंग ग्लेशियर दिखाई दे रहा था जो क्रेवासों से भरा पड़ा था । हमने बात करके ग्लेशियर पर चढ़ना तय किया और आज ही ‘पपप’ को पार करने पर जोर दिया ।

पहले कदम रखते ही ग्लेशियर पर एक ठंडी हवा ने छुकर जैसे मुझे जगा सा दिया । नूपुर को समझा दिया कि “बिल्कुल मेरे पीछे-पीछे ही चलना है, नजारों को इग्नोर करके सिर्फ और सिर्फ रास्ते पर ध्यान देना है” । गहरी सांस लेकर दोनों ने ग्लेशियर पर चढ़ना शुरू किया, यहाँ से मुझे थोड़ी चिंता होने लगी रास्ता भटकने की । कॉर्डिनेट्स के हिसाब से हम थोड़ा ही दूर है पास से ।

ग्लेशियर में छोटी-छोटी बहुत सी पानी की नालियां बह रही हैं, इन नालियों के किनारे चाकू से भी तेज हैं, एक गलती और हो सकता है आप अपने आपको घायल कर लें । मेरे जूतों की अकड़ तो इन्होंने पहले 10 मी. में ही निकाल दी । 30 मिनट बाद ग्लेशियर ने रूप बदल लिया । थैंक्स टू शिवराम क्योंकि उसका बताया कटोरी वाला ग्लेशियर हमारे सामने था । ‘कटोरी ग्लेशियर’ के सामने जमीन दिखाई देते ही हमारे चेहरों पर हंसी आ गयी, शायद हम पहुंच गये ।

5 मिनट में कटोरी ग्लेशियर पार हो गया और जमीन पर पहुंचकर दोनों एक बार फिर से मायूस हो गये । यह पास नही है, यहाँ तो सिर्फ कुछ पत्थरों को खड़ा किया हुआ है । इन्टरनेट पर देखे फोटो के हिसाब से यहाँ प्रार्थना-झंडे होने चाहियें और हमारे कॉर्डिनेट्स भी इसे पिन पार्वती पास मानने से इन्कार कर रहे हैं । शिवराम के हिसाब से हमें यहाँ सबकुछ अपने आप समझ आने वाला था, अब सिर्फ यही समझ आ रहा है कि भांग पिये इंसान की कोई बात नहीं माननी चाहिए । यहाँ बैठकर हमने चाकलेट खाई और थोड़ा पानी पीकर खुद को शांत किया ।

मुझे यह जगह बहुत बड़ी उलझन महसूस हुई, पता नहीं यह पास है भी या नहीं ? । और अगर इसे पास मानूं तो यहाँ से पिन नदी या कोई धारा दिखाई देनी चाहिए । लेकिन यहाँ से कुछ नहीं दिखाई दे रहा है सिवाय और ऊँचे बर्फ से ढके पहाड़ों और ग्लेशियरों के । मुझे अकेले ऐसी जगह फंसना उतना मुश्किल नहीं लगता जितना किसी और के साथ । बहुत डर लगता है किसी की जान अपनी वजह से जाते हुए देखना ।

थोड़ा आगे जाकर मैंने रास्ते का जायजा लेना चाहा । अब मेरे दाईं तरह विशाल ग्लेशियर है जिसका नाम ‘पार्वती ग्लेशियर’ है,  सामने बर्फ से ढका पर्वत जिसकी ऊँचाई 5416 मी. है खड़ा है, इसी पर्वत के दाहिने कंधे पर कहीं 'शाकारोड पास' स्थित है, बाईं तरफ ग्लेशियर की धारायें बह रही हैं । नीचे झांकर देखा तो पता चला नीचे जा तो सकते हैं लेकिन यह रास्ता सामने से खड़े पहाड़ ने बंद किया हुआ है । अपने नसीब को अजमाने के लिए मैंने नीचे गर्दन करके देखना शुरू किया कि कहीं किसी के पैरों के निशान दिखाई दे जाएँ । वैसे भी यह जगह दलदली है और हमारे पैरों के नीचे भी ग्लेशियर है । 5 फुट दूर मुझे जूतों के निशान दिखाई देते ही मैंने राहत की सांस ली ।

एक बार फिर से हम अपने पैरों पर थे किसी अंजान इंसान के पैरों का पीछा करते हुए । हम दोनों को कॉर्डिनेट्स की दिशा ने पूरी तरह कंफ्यूज कर दिया क्योंकि अब पैरों के निशान हमें बाईं तरफ ले जा रहें हैं और कॉर्डिनेट्स हमें दाईं तरह जाने को बोल रहे हैं । कॉर्डिनेट्स को पूरी तरह इग्नोर करके हमने पैरों का पीछा करना शुरू कर दिया । यह निशान किसी ग्रुप या कुछ लोगों के नहीं थे बल्कि सिर्फ एक ही इन्सान के जूतों के थे । कई बार तो यह ख्याल भी आया कि “ऐसा न हो कोई यहाँ अकेला भटक गया हो और अब हम उसी का पीछा कर रहें हों” ।
जब तक जमीन पर थे तब तक ठीक था लेकिन जैसे ही पैरों के निशान लेफ्ट साइड के जंबो ग्लेशियर पर चढ़ने लगे तब मुझे बहुत चिंता होने लगी क्योंकि शुरुआत में ही ग्लेशियर के एक गहरी क्रेवास दिखाई दे रही है जो आगे और चौड़ी और गहरी क्रेवास होने का संकेत दे रही हैं ।

नूपुर पीछे है, थक गयी है, पानी पी रही है । मैं उसे देख रहा हूँ, बादलों की हलचल को महसूस कर रहा हूँ, चारों तरफ ग्लेशियर से घिरे होने के बारें में सोच रहा हूँ । सामने एक बड़ा ग्लेशियर है जिसमें उससे भी बड़ी क्रेवास है, वहां मुझे मौलिन (Moulin=जहां से पानी ग्लेशियर की सतह में जाता है) दिखाई दे रहा, जो बोल रहा है कि "इस तरफ आने की बिल्कुल भी मत सोचना नहीं तो मुसीबत में पड़ जाओगे" । इसके बाईं तरफ मोरैन ऐरिया है जिसके ऊपर मुझे कैर्न की आकृति वाली पत्थरों की ढेरियाँ महसूस हो रहीं हैं । मुझे यह ‘पास’ जैसा महसूस हो रहा है लेकिन वहां जाने का रास्ता बिल्कुल समझ नहीं आ रहा । मुझे फिर से मतिभ्रम होने का डर है इसलिए मैं नूपुर को वह स्थान दिखाता हूँ । उसके मना करने के बाद मुझे भी लगता है कि वह पास नही है और "हम रोंग टर्न ले लेते हैं 'पपप' से सिर्फ आधे घंटे की दूरी पर" ।

दोपहर के 3 बजकर 20 मिनट हो गये हैं और हम अभी भी कहीं नहीं पहुंचे हैं । पैरों के निशान ग्लेशियर चढ़ाकर गायब हो गये । चढ़ाई है एकदम तीखी, आइस पर जूते फिसल रहे हैं, यहाँ हवा बहुत ठंडी है, हाथ सुन्न हो रहे हैं । मैं सोच रहा हूँ कि "इस ग्लेशियर के आखिर में पास होगा और मौसम खराब होने से पहले हमें वहां पहुंचना ही होगा" । नूपुर पानी पीते-पीते बोल रही है कि “बाबा वापस चलते हैं हमारे हिसाब से यह रास्ता नहीं है, कॉर्डिनेट्स भी बिल्कुल ही दूसरी तरह इशारा कर रहें हैं” । “हम पास ही हैं ‘पास’ के थोड़ा ऊपर जाकर पक्का हमें पास दिखना शुरू हो जायेगा”, बोलकर मैं फिर से चढ़ना शुरू कर देता हूँ ।

नूपुर के दिमाग में यह विचार घर कर गया है कि हम रास्ता भटक गयें हैं और हमें वापस जाना चाहिए । मेरे दिमाग में यह विचार जम गया है कि हम ‘पास’ के बहुत पास है, अगर सामने वाली रिज पर पहुंच जायें तो पक्का पास दिखाई देगा । दोनों ही यहाँ पहली बार हैं और दोनों ही समझ रहें हैं कि जो हम सोच रहें हैं वो ही सही है ।
यहाँ ग्लेशियर में दरारें हैं, कुछ खुली हैं तो कुछ छिपी । दरारों तक सब ठीक था लेकिन यहाँ मौलिन (Moulin=बड़े गढ्ढे जहां से पानी सीधा ग्लेशियर की सतह तक जाता है) भी है । अब मेरे पैर रुक गयें हैं और मुझे सच में डर महसूस होने लगा है । क्रेवास से मुझे डर इसलिए नहीं लग रहा है क्योंकि मैंने पहले भी कई ग्लेशियर पर इन्हें पार किया है और एडवांस माउंटेनिरिंग कोर्स में तो इनमें उतर भी चुका हूँ लेकिन मौलिन से यह मेरी पहली मुलाकात है । मैं डर रहा हूँ, वो मुझे डरा रहा है और मैं नूपुर को थोड़ा और, थोड़ा और बोलकर पुश कर रहा हूँ ।

रिज पर शाम 4 बजे पहुंचे जहां से ग्लेशियर के आखिर में मुझे पत्थरों की ढेरियाँ दिखाई दी । इन ढेरियों ने वहां ‘पर्वतीय पास’ होने का प्रमाण दिया लेकिन मुझे अपने देखे पर थोड़ा शक हुआ । नूपुर का इंतजार किया उसने भी वहां पत्थरों की ढेरियाँ होने की बात को माना । पास अभी भी लगभग एक किमी. दूर है और अब प्रॉपर क्रेवास जोन शुरू हो गया है । ‘प्रॉपर क्रेवास जोन’ का मतलब हर कदम पर मुंह खोले आड़ी, खड़ी और पड़ी दरारें ।

नूपुर अभी भी आगे जाने से मना कर रही है और मैं अभी भी आगे जाने पर अड़ा हूँ । वो बहस कर रही है, मैं भी बहस कर रहा हूँ ।
“बाबा अभी भी वक़्त है वापस चलते हैं, आगे हम और गलत रास्ते पर फंसते जा रहे हैं” ।
“इतना पास आकर अब वापस जाने का कोई मतलब नहीं है नूपुर, देखो वो रहा ‘पपप’ पास ”, बोलकर मैंने उसकी तरफ देखा ।
“मौसम देखो, जगह देखो, नीचे उतरने में ज्यादा समय नहीं लगेगा”, बोलकर उसने हाथ से नीचे की तरह इशारा किया ।
“थोड़ी देर में पहुंच जायेंगे, ये तो रहा, साथ-साथ चलेंगे”, मैंने सुझाया ।
“कॉर्डिनेट्स इस तरफ नहीं बता रहें हैं पास को, और ये भी पास नहीं हुआ तो फिर क्या करेंगे और अगर पहुंच भी गये तो टेंट कहाँ लगायेंगे” ?, कई सवाल करके उसने बढ़त बनानी चाही ।
“देखो पेनिक होने से कोई फायदा नहीं है, आधे घंटे का रास्ता रह गया है, ऊपर जगह नहीं मिली तो ग्लेशियर पर ही टेंट लगा लेंगे”, अब परेशान मत हो बोलकर मैंने उसका डंडा भी ले लिया जिसे वो टुंडा भुज से लाई थी ।

हम 5000 मी. से ऊपर थे जिसका असर हम दोनों पर साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था । लेकिन अच्छी बात यह हुई कि हमने आगे जाने की बहस को पीछे छोड़कर आगे बढ़ना शुरू कर दिया । और अब मेरा फर्ज बनता है डर को दिल से निकालकर दोनों को सही-सलामत टॉप पर पहुँचाने का । पिछले कई घंटों से क्रेवासों से सम्भल-संभलकर चलने ने मुझे मानसिक तौर पर बहुत थका दिया था । और वापस जाकर फिर से मैं इस टोरचर को फिर से सहना नहीं चाहता था ।

बेसिक और एडवांस कोर्स की शिक्षा यहाँ काम आई । हमें सिखाया गया था कि छिपी दरारों को कैसे ढूंढे और उनसे कैसे बचे । ‘आइस एक्स’ से 3 बार जोर से ग्लेशियर पर मारे, यदि 3 बार में आइस-एक्स ग्लेशियर में गढ़ या घुस जाती है तो रास्ता बदले और अगर 3 बार मारने के बाद भी आइस एक्स ग्लेशियर में नहीं घुसती है तो आप अगला कदम वहां रख सकते हैं । यह प्रक्रिया बहुत धीमी है पर कारगर है ।

डंडे से मैंने ऐसा करना शुरू कर दिया । मैं आगे और नूपुर पीछे । हर कदम पर ग्लेशियर को 3 बार हिट करता । मैं तन और मन दोनों से बहुत थक गया था । यह प्रक्रिया बहुत थका देने वाली है । कुछ कदम आगे बढ़ने के बाद मुझे एहसास होने लगा कि “काश पहले ही नूपुर की बात मान लेता तो अब तक हम बेस कैंप पहुंच जाते लेकिन अब पीछे जाना मुश्किल है” ।

जहां मैं कदम रखता नूपुर भी वहीँ रखती । मैं यहाँ से जल्द-से-जल्द निकलना चाहता था लेकिन इस क्रेवास ऐरिया में समा जाने का खतरा इतना ज्यादा था कि न चाहते हुए भी पूरा ध्यान एक-एक कदम पर देना पड़ रहा था । मुझे खुद से ज्यादा नूपुर की चिंता हो रही थी कि उसे कुछ हो न जाए । हम डर रहे थे और चल रहे थे ।

हमने शॉर्टकट लेने का प्लान बनाया । शॉर्टकट ढीले पत्थरों से सीधा जोत की धार पर छोड़ेगा । छोटी सी हाई एलटीट्युड बहस के बाद आख़िरकार दोनों ने शॉर्टकट लेना तय किया । कुछ कदम ढीले पत्थरो पर रखते ही मैं नीचे स्लिप हो गया । एक गहरी सांस लेने के बाद मैंने नूपुर को मेरे पीछे आने का इशारा कर दिया । कुछ कदम बाद वो भी फिसलने लगी । "यहाँ लगातार ऊपर से पत्थर लुढ़क कर हमारे आसपास से गिर रहे हैं । मेरे एक कदम रखते ही ढेर-का-ढेर नीचे लुढ़कता, अब नूपुर के घायल होने का खतरा बढ़ गया था क्योंकि वो नीचे से ऊपर जो आ रही थी" ।

हमने जिगज़ैग (Z) चलकर इस परेशानी को सुलझाने की कोशिश करी । पत्थर अभी भी लुढ़क रहे हैं लेकिन नूपुर नीचे लगभग सेफ है । शाम 5 बजे दोनों जान हथेली पर रखकर धार पर पहुंच गये ।

यह कोई पास नहीं है बल्कि यह तो एक कोल है । कोल (Col=2 पर्वतों या 2 घाटियों के बीच वह न्यूनतम या कम-से-कम स्थान जहां से धार या घाटी को पार किया जा सके, इसके टॉप पर बहुत कम स्थान होता है) पर पहुंचकर मेरा रहा-सहा दम भी निकल गया । यहाँ कुछ पत्थर खड़े किये हुए हैं, एक झंडा है जिसपर हनुमान का चित्र बना है, झंडे का रंग बता रहा है कि यह बहुत पुराना है, एक मोमबत्ती, पिचकी हुई प्लास्टिक बोतल । और घाटी के दूसरे तरफ एक बहुत बड़ा ग्लेशियर है, जिसने मेरे डर को और बढ़ा दिया ।

बिना कुछ सोचे-समझे मैंने तुरंत अपने रकसैक से टेंट निकाला जिसे हम दोनों ने 10-15 मिनट में खड़ा कर दिया । धार होने की वजह से यहाँ हवा तेज चलेगी, हो सकता है हमारा टेंट उड़ जाये इसलिए मैंने 10 मिनट और फ़ालतू खर्च किये टेंट को अच्छी तरह बाँधने और गाढ़ने में । पास पड़े लम्बे पत्थरों से टेंट की सभी कीलों को ढक दिया ।

यह कोल मानतलाई झील से लगभग 9+ किमी. दूर और 5400 मी. की ऊँचाई पर है । यहाँ पहुंचने में हमें पूरे 9 घंटे लगे । यहाँ के कॉर्डिनेट्स 31.846061, 77.841841 हैं । इस स्थान को देखकर प्रतीत होता है जैसे सालो से यहाँ कोई नहीं आया ।

जब तक नूपुर चाय का सामान बैग से निकाल रही है तब तक मैं पानी ले आता हूँ । आते वक़्त मैंने एक गढ्ढा देख लिया था जोकि लगभग 400 मी. ऊपर था इस धार के । जैसे ही मैंने उस गढ्ढे के ऊपर जमी बर्फ को तोड़कर पानी निकालना चाहा वैसे ही इस ग्लेशियर की भयानक सच्चाई मेरे सामने आ गयी । यह एक मौलिन है जिसपर बर्फ पड़ी है । पानी भरते-भरते मेरे हाथ सुन्न हो गये और डर का हिसाब लगाना मुश्किल था । यह बात मुझे नूपुर को बतानी थी कि सामने वाले ग्लेशियर से दूर रहना है लेकिन मैं दिमागी तौर पर इतना थक गया था कि सबकुछ भूल गया ।

टेंट में पहुंचकर और बुरी ख़राब का सामना करना पड़ा । हमारे छोटे चूल्हे ने इतनी ऊँचाई पर जलने से मना कर दिया । काफी देर प्रयास किये लेकिन कोई फायदा नहीं । 9 घंटे लगातार चलने के बाद अगर आपको कुछ खाने को न मिले तो इससे ज्यादा बुरा और क्या हो सकता है । भूखे पेट मज़बूरी में दोनों को अपने-अपने स्लीपिंग बैग में घुसना पड़ा । परेशानियाँ तब और बढ़ गयीं जब नूपुर के सिर में दर्द होने लगा और मुझे उल्टी । लगता है  मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुईं थी जिसका डर था आख़िरकार वो हो गया ।

5400 मी. पर बर्फ गिरने लगी ।

Pin parvati pass trekking map
मानतलाई झील से पिन पार्वती पास का सैटेलाइट नक्शा

Camping Near Mantalai lake
पिरामिड पर्वत, पार्वती घाटी

Mantalai lake to Base camp
जब नज़ारे दिलकश हो तो कोई क्यों न खुद को मुश्किल में डाले

Mantalali lake to pin parvati pass base camp
चढ़ाई शुरू पीछे चमकती स्नो पीक

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10 से भी ज्यादा झीलें हैं पार्वती ग्लेशियर के ग्लोफ़ में

kokshane peak, ghushu pishu peak
कोकशेन पर्वत

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बैस कैंप से थोड़ा पहले, डेब्रिस जोन 

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यही हैं वो बोल्डर जिन्होंने मुझमें मतिभ्रम पैदा किया 

parvati glacier
पार्वती ग्लेशियर पर पहला कदम (PC : Nupur)

pin parvati pass base camp and parvati glacier
कटोरी ग्लेशियर की ओर बढ़ते हुए (PC : Nupur)

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खराब मौसम, पार्वती ग्लेशियर और मुश्किल (PC : Nupur) 

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कटोरी ग्लेशियर को पार करती नूपुर

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कटोरी ग्लेशियर के बाद आया पास जैसा दिखने वाला स्थान जिसे हमने 'फैक पास' का नाम दिया 

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सामने दिखता पिन पर्वती पास और हमने लिया लेफ्ट टर्न मतलब रोंग टर्न 

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अंजान पैरों के निशानों ने यहाँ लाकर छोड़ दिया 

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पहली रिज की ओर बढ़ते हुए 

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मौलिन जोन शुरू और डर भी 

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फंस गये क्रेवास और ग्लोफ़ के बीच

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पार्वती ग्लेशियर अपने चर्म पर

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अति भयंकर आखिरी पुश, नूपुर डेब्रिस ज़ोन से जूझती हुई 

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अंजान कोल जहाँ एक तरफ कुआँ है तो दूसरी तरफ खाई 

भाग-1 : खीरगंगा - टुंडा भुज
भाग-2 : मानतलाई झील

Comments

  1. भांग पिये इंसान की कोई बात नहीं माननी चाहिए - बस यही जीवन की सच्चाई है दोस्त

    दूसरा इतना बड़ा पन्गा लेना नहीं चाहिए

    तीसरा, बढ़िया यात्रा लेखन

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    1. मछली काम कर गयी अजगर को फसा लायी । धन्यवाग गोयल साब सलाह व टिप्पणी का । बाकी प्रणाम है मेरी ओर से आपको ।

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    1. धन्यवाद द्वारका जी...शुभकामनाएं

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  3. Replies
    1. सुनकर शौक लगा । कैसा रहा खोने के बाद का सफ़र ?

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  4. घुमक्कड़ आफ दा 2017 का खिताब आपकी जोडी के नाम।
    आप दोनों ने धमाल की हिम्मत दिखायी।
    अब आगे की यात्रा में आसानी की उम्मीद है..

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    1. घुटने लांगु संदीप भाई । स्नेह के लिए धन्यवाद । शुक्रिया नौसिखिये ब्लोगेरों का मनोबल बढाने के लिए । सप्रेम नमस्कार और सम्मान आपके लिए ।

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  5. I was lost here for 5days no food .we went straight from mantalai .even not reached the base 1 . we were first to go and survive in that col reached kinnaur rupi valley,from Kullu��

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    1. मुशकिल परिस्थितियाँ ही जीवन की असली परीक्षा होती हैं आयुष जी । जी मैं समझ रहा हूँ आप किस तरफ निकले। शुभकामनाएं आने वाली यात्राओं के लिए

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  6. Pin Parvati is my dream trek. Apke insta account or blog se bhaut kuch sikhne ko mila hai sir ji. Apka knowledge next level hai. Aise hi apne experience share krte raho sir ji. 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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    1. पहाड़ ने जो दिखाया वो आपके सामने रख दिया बस । बाकी धन्यवाद

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  7. Insta account kis name se ha apka

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