पिन पार्वती पास से अंजान कोल : अंजान कोल-मनाली (Pin Parvati Pass to Unknown col : Unknown Col-Manali)
2 सितम्बर 2017
अंजान कोल ताजा बर्फ में डूबा है । सूरज ने निकलते ही आधी परेशानी हल कर दी । अपनी जान हथेली पर रखकर सुरक्षित बेस कैंप पहुंचने का सपना है । टी-शर्ट से दोनों को बांधकर लांधने लगे गहरी और छिपी क्रेवासों को । कोई तो था जो हमें बचाना चाहता था, हर पल यह एहसास बढ़ता ही जा रहा था । यात्रा दो लोगों की जो पार्वती ग्लेशियर पर फंसे और सकुशल नीचे उतरने में भी कामयाब रहे । शरीर को सुरक्षित देखना त्यौहार से कम नहीं है ।
बर्फ लगातार 2 घंटे गिरी । तापमान के माइनस में गिरने में पहले ही डर उठ खड़ा हुआ । बाहर बर्फ है भीतर डर है । बार-बार टेंट पर गिरी बर्फ को हटाना पड़ रहा है । अजीब-अजीब विचार आ रहे हैं । “अगर बर्फबारी न रुकी तो, बस टेंट डटा रहे, अगर सच में भालू आ गया तो क्या होगा, हाइपोथर्मिया न हो जाये” ।
“मुंह को कवर नहीं करना है, सिर को टेंट से थोड़ा दूर रखना, जितने कपड़े बैग में है सब पहन लो, अगर ठण्ड लगने लगे तो बिना देर किये मुझे बताना, और सुबह 4 बजे ही निकल जायेंगे नीचे”, सारी हिदायतें नूपुर को देकर मैंने अपने आप को स्लीपिंग बैग में छुपा लिया ।
रात के 2 बजे हैं और हम दोनों नींद से बहुत दूर डर के साथ लेटे हैं । मुंह से निकले हर शब्द का जन्म डर और बेचैनी के सायें में हो रहा है । नूपुर की आवाज से वो बहुत चिंतित महसूस हो रही है । खुद के भीतर झांककर देखने पर पता चला कि मेरा हाल उससे भी ज्यादा बुरा है । खुद से ज्यादा मुझे नूपुर की फ़िक्र हो रही है । उसकी सलामती का ख्याल आते ही मुझे और ज्यादा टेंशन महसूस हो रही है ।
न जाने कब नींद आ गयी एहसास ही न हुआ । जब-जब आँख खुलती तब-तब नूपुर से उसके हाल पूछता । वो पूरी तरह ठीक थी । सुबह 4:30 बजे आँख फिर से खुली । नूपुर बोल रही है “चलते हैं”, “थोड़ी देर में चलते हैं” बोलकर मैं अभी-अभी आये सपने के बारे में सोचने लगता हूँ ।
“नूपुर को हाई-फाई देकर मैं ग्लेशियर को देखने लगा, हम सही सलामत नीचे पहुंच गये हैं और मैं ग्लेशियर को छुकर उसको नमस्कार करता हूँ”, सपने के टूटते ही मैंने स्लीपिंग बैग में करवट बदली । न जाने क्यों अचानक ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मुझमें नई ताकत आ गयी है । उस वक़्त जो ख्याल आया था उसे लिख रहा हूँ, “स्लीपिंग बैग में लेटे–लेटे पूरे शरीर के रौंगटे खड़े हो गये, एहसास होता है जैसे ये अंजान कोल कुछ कह रहा है” ।
सुबह के 6 बज चुके हैं और टेंट से बाहर निकलते ही महसूस होती है इस जगह की ऊर्जा । अब कल हुई सारी गलतियाँ याद आ रही हैं कि "कैसे मुझे बोल्डर टेंट के रूप में दिखाई दिए, पपप के सामने खड़े होकर भी गलत रास्ता चुन लेना, नूपुर की बात न मानना, और अंत में यहाँ पहुंच जाना" । अब लग रहा है जैसे इस जगह ने सभी खतरों के बावजूद हमें यहाँ बुलाया और अब कह रहा है कि “घबराओ मत तुम लोग सुरक्षित हो...मेरे साथ” ।
सूरज निकल चुका है । उसकी पीली रोशनी दोनों को आत्मविश्वास प्रदान कर रही है । जहां तक नज़रें जा रही हैं वहां तक सिर्फ और सिर्फ बर्फ ही दिखाई दे रही है । साफ़ मौसम को देखते हुए हमने इस कोल की धार पर चलते हुए 'पिन पार्वती पास' पहुंचने का तय किया ।
टेंट को थोड़ा सुखाकर हमने पैक कर लिया 'पपप' के लिए । सुबह के 7:30 बजे हम चल पड़े धार के ऊपर लेकिन 20 मीटर बाद ही इतना थक गये कि 5400 मी. ने इशारा कर दिया कि “अब वापस जाओ” । दोनों ने एक-दूसरे को देखा और फैसला कर लिया कि जो हुआ उसे भूलकर अब बस नीचे उतरना है ।
मेरे पास एक पूरी बाजू का टी-शर्ट है जिसपर इंग्लिश में “लव लाइफ” (Love Life) लिखा है उसकी एक बाजू से नूपुर को बाँधा और दूसरी से खुद को । ताजा बर्फ़बारी से सारी खुली क्रेवास अब छुप गयी थी जोकि हमारे लिए एक नई मुश्किल थी । ऐसे क्रेवास जोन में हमेशा नौसिखिया पर्वतरोही आगे चलता है उसके पीछे प्रशिक्षित अनुभवी पर्वतारोही, और ऐसा इसलिए होता है अगर नौसिखिया क्रेवास में गिरता है तो अनुभवी पर्वतारोही अपनी आइस-अक्स के इस्तेमाल से ग्राउंड पर सेल्फ-अरेस्ट करके उसकी जान बचा सकता है और हाँ इसमें पुली सिस्टम भी शामिल होता है । परन्तु यहाँ हमने उल्टा किया मैं आगे चला जबकि नूपुर पीछे । ऐसा मैंने इसलिए किया क्योंकि एक तो हमारे पास आइस-अक्स नहीं थी और दूसरा मुझे खुदपर यकीन था कि ‘फर्स्ट-मैन’ बनकर मैं छिपी क्रेवासों को ढूंढ़कर उनसे पार पा सकता हूँ ।
“जहां मैं कदम रखूं सिर्फ और सिर्फ वहीं अपना पैर रखना है, नजारों को भूल जाओ और मुझसे बस 2 कदम ही दूर रहना”, सबकुछ समझाकर ग्लेशियर पर सुबह 8 बजे कदम रखा ।
ग्लेशियर पर ताजा बर्फ 3-4 इंच थी जिसने पहले से भीगे जूतों के भीतर पैरों को सुन्न कर दिया । अगर पैरों में आत्मा बसती तो इस वक़्त वो बाहर निकल जाती । डंडे से मैं हर कदम पर 3 बार ग्लेशियर की सतह पर वार करता फिर कदम आगे बढ़ाता । धूप थी, डर था और कल से ज्यादा गहरी और चौड़ी छिपी दरारें थी । नूपुर थोड़ा धीरे चलने को बोल रही थी, और मैंने उसकी बात मान ली ।
बहुत बार हद से ज्यादा चौड़ी दरारों ने रास्ता रोक दिया जिसका परिणाम हमें उसके किनारे चलते-चलते सही स्थान ढूँढना पड़ता पार करने के लिए । कुछ क्रेवासों की चौड़ाई और गहराई ने रूह तक को हिला दिया था । मैं बार-बार पीछे देख रहा था कि नूपुर ठीक है या नहीं । वो ठीक थी और आज ज्यादा फिट लग रही थी ।
45 मिनट लगे क्रेवास ज़ोन को पार करके 'कटोरी ग्लेशियर' पहुंचने में । कोल से हमने ऐसा रास्ता चुना जो छोटा और थोड़ा कम मुश्किल था । यह दरारों से भरा शार्टकट था । बेशक दरारें खत्म हो गयी थी परन्तु ग्लेशियर नहीं । यहाँ पहुंचकर हमने रिलैक्स महसूस किया । मेरे लिए तो यहाँ पहुंचने का मतलब था खोयी आत्मा को वापस पा लेना । हमने बेस कैंप पहुंचने तक काफी मस्ती करी । ग्लेशियर पर दौड़ना, फिसलना और जीवन को वापस पा लेने की ख़ुशी ।
“नूपुर को हाई-फाई देकर मैं ग्लेशियर को देखने लगा, हम सही-सलामत बेस कैंप पहुंच गये हैं”, यह कोई सपना नहीं बल्कि असलियत है, साक्षात है । अगले साल 'पपप' को एक और मौका दिया, पक्का । आखिरी बार ग्लेशियर को निहारकर मैंने उसे छुकर उसके स्पर्श को माथे से लगाया यह बोलकर कि “अगले साल फिर मुलाक़ात होगी बडका जी” ।
डर के दूर होते ही भूख की याद आई । नूपुर के पूछने पर मैंने बेस कैंप से नीचे उतरकर मैगी बनाने का प्रस्ताव रखा जिसे उसने एकदम मान लिया । हम तेज थे, काफी तेज, डेब्रिस इलाके को पार करने में हमने देर न करी और दौड़ लगा दी नीचे । पहली पानी की धारा पर पहुंचकर हमने मुंह हाथ और पैर धोए, थर्मल उतारे, दांत साफ़ किये, जले चहरे पर क्रीम लगाई, मैंने बालों को हाथ से सीधा किया और नूपुर ने कंघे से ।
मैंने 2015 में बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स किया था, वहां 2 लड़कियां थी सर्च एंड रेस्क्यू कोर्स में जिनको देखकर मैंने महसूस किया था कि शायद ही लडकियां एक अच्छी ट्रेकर हो सकती हैं लेकिन फिर मैं दार्जिलिंग गया एडवांस माउंटेनियरिंग कोर्स के लिए यहाँ मेरा विश्वास वापस लौटा कि लड़कियां अच्छी नहीं बहुत तेज ट्रेकर होती हैं । और आज अपने साथ चलती इस लड़की को देख रहा हूँ जोकि अभी तक मेरी देखी बेस्ट ट्रेकर है । ऐसी तेज और हिम्मती ट्रेकर पहली बार देखी है ।
बेस कैंप से नीचे लौटते हुए हमें ऊपर जाते 2-3 ग्रुप मिले, जिन्हें देखकर मुंह से बस यही निकला “काश ये लोग कल आ जाते” । सारे ग्रुप आज हाई कैंप पर हाल्ट करेंगे और कल 'पिन पार्वती पास' क्रॉस करेंगे । इन्हें देखकर नूपुर ने मुझसे बोला भी कि "बाबा चलो चलते हैं ये लोग खाना खिलाने की बात भी कर रहे हैं” । लेकिन उस वक़्त मैं जैसे अपने-आप में ही नहीं था, कल और आज के ग्लेशियर और क्रेवास ने मुझे दिमागी तौर पर बहुत थका दिया था । ऊपर से अब मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था दोनों की जान के साथ । मेरे मना करने के बाद हम फिर से नीचे उतरने लगे, तेज ।
मानतलाई से पहले रूककर जैसे ही ‘सूपी-मैगी’ खायी मानो आत्मा शरीर में वापस लौट आई हो । छोटे चूल्हे ने यहाँ कोई नखरे नहीं किये एक ही बार में जल गया । घुटने तक गहरे नाले को हमने जूते गले में टांगकर पार किया । मानतलाई हमने 11:30 पार किया । आज का टारगेट उड़ी थाच है और वहां से पहले मतलब ही नहीं बनता रुकने का । ऐसा इसलिए बोल रहा हूँ क्योंकि हमारे पास सिर्फ 2 ही पैकेट मैगी के बचे हैं । तो अब प्लान ये है कि आज उड़ी थाच और कल टुंडा भुज ‘मौसम विभाग टीम’ के साथ रुकने का है जहां हमें कम से कम एक टाइम का खाना मिल ही जायेगा ।
मानतलाई के बाद नॉन-स्टॉप चलते हुए हमने उड़ी थाच में 3:30 बजे सांस ली । आज यहाँ कोई नहीं है हमारे सिवा, ऊपर जाते हुए रशियन ग्रुप हमारा पड़ोसी था यहाँ तक । टेंट लगाने के बाद पहले हमने आराम किया फिर शाम को थोड़ी स्ट्रेचिंग के बाद आखिरी मैगी को बनाया और खुद को गहरी नींद के हवाले कर दिया ।
आज का दिन भी कल के दिन जितना ही लम्बा और थका देने वाला रहा । आज हमने 8 घंटे में 19.5 किमी. लम्बा ट्रेक किया । यह सफ़र 5400 मी. से 3803 मी. पर खत्म हुआ । आशा है बारिश नहीं आयेगी ।
आज शुक्रवार 1 सितम्बर 2017 (दिन : 07) है । सुबह 6 बजे उठकर बिना कुछ खाए पिये हमने अपना आगे का सफ़र 7:30 बजे शुरू किया । आज का लक्ष्य 18 किमी. दूर टुंडा भुज है । घाटी में मौसम साफ़ नहीं है काले बादलों ने इसको अपनी छत बना लिया है । 3-4 किमी. चलते ही बारिश शुरू हो गयी । रेनवियर काम पर लग गये । बारिश तेज है और हम भी ।
लगातार चलते-चलते 3 घंटे से ज्यादा हो गया है और भीगते-भीगते 2 घंटे से ऊपर । भूख से बुरा हाल है, शरीर का एक-एक अंग खाना और आराम मांग रहा है । हमारी सारी उम्मीदें गद्दियों पर टिकी हैं जो हमें आते वक़्त मिले थे । आशा करता हूँ कि हमारी उम्मीद न टूटे । पहले पांडू पुल के बाद दूसरे गीले पांडू पुल को पार करना दोनों के लिए टेड़ी खीर बन गया । एक-दूसरे की सहायता के बाद दोनों ने इस खतरे को 10 मिनट में पार किया ।
दोपहर के 2 बजे हम गद्दियों के डेरे में पहुंचे लेकिन यहाँ कोई नहीं है, सब जा चुके हैं, उम्मीदें टूट चुकी थी । हैरान-परेशान हम एक दूसरे को देख रहे थे कि तभी दूर एक टेंट दिखाई दिया जिसनें उमीदों को फिर से जीवित कर दिया । भीगते-भीगते दौड़ते-दौड़ते वहां पहुंचे जहां उम्मीदों को खाना मिलने वाला था ।
भीगते टेंट के बाहर भीगते गद्दी कुत्ते ने कई बार भौंक कर हमारा स्वागत किया । हम भी बिना डरे बेधडक टेंट में घुसे । यहाँ 2 गद्दी हैं जो लगभग नींद में बेहोश हैं । मैंने कई बार आवाज लगाई जिसे अनसुना कर दिया गया, फिर कुत्ते ने भौंककर हमारा काम आसान करने का नाकामयाब प्रयास किया, अब भी कोई हलचल नहीं । आख़िरकार मुझे भीतर घुसकर गेट के पास लेटे गद्दी को झंझोड़ना पड़ा । दोनों ने नींद से जागते इंसान को देखा ।
अरे ये तो वही गद्दी भाई है जो हमारे साथ टुंडा भुज से चले थे । हमारे नमस्कार के बाद उन्होंने हमारा स्वागत किया अपने आशियाने में और आनन-फानन में उन्होंने कई प्रयासों के बाद छोटे से चूल्हे में आग जलाकर चाय बनाने को रख दी । हमारी सारी स्टोरी सुनने के बाद उन्होंने हमारी हिम्मत की दाद दी और फिर अपनी गहरी नींद का राज बताया । “रोज रात को भालुओं से सामना करना पड़ रहा है इस वजह से पूरी रात पहरा देते हैं और दिन में सोते हैं, हम दोनों थोड़ी देर पहले ही खाना खाकर सोये थे”, बोलकर उन्होंने बीड़ी सुलगा ली ।
चाय के बाद उन्होंने बिना देर किये आटा गूंदना शुरू कर दिया जिसका हमने कोई विरोध नहीं किया । अब तक दूसरे गद्दी अंकल भी उठ गये थे उन्होंने भी हमें पहचान लिया था । और हमारी कहानी सुनकर उन्होंने पिछले हफ्ते घटी एक घटना हमारे साथ शेयर करी । उन्होंने बताया कि “पिछले हफ्ते एक ग्रुप आया था जिसमें एक लड़की इतनी बीमार हो गई थी की उड़ी थाच पहुंचने से पहले ही उसकी मौत हो गयी” । मौत का कारण उन्हें नहीं पता था ।
खातिरदारी शानदार रही, हमें चाय, दूध, भेड़ का देशी घी, खिला-पिलाकर उन्होंने अलविदा कहा । वैसे तो उनके अनुसार हमें वहां रुक जाना चाहिए लेकिन हमने आज ही टुंडा भुज पहुंचने का इरादा बताया । हमने उनका मोबाइल नंबर ले लिया । दोनों गद्दी उतराला के रहने वाले हैं और यह स्थान बीड़ के काफी पास है । हमने उनसे अगली बार उतराला में मिलना पक्का किया ।
खाने ने भीतर जाते ही ऊर्जा का विस्फोट कर दिया था । पटरा घाट ने स्पीड को धीमा कर दिया । पूरा पटरा घाट का पहाड़ काले पत्थर का है, यह खड़ा है और अब गीला भी है । हमने धीरे-धीरे रुकते-रुकते पूरी सावधानी से इसे पार किया । बारिश में इसे पार करना बहुत बड़ी मुर्खता थी, यहाँ पहली गलती की सजा ही मौत है ।
पटरा घाट पार करते ही एक गद्दी डेरा मिला जोकि नीचे जा रहा था लेकिन तेज बारिश ने इन्हें आज यहीं रुकने पर विवश कर दिया । पटरा घाट पार करने का मतलब था कि सारी मुसीबतें खत्म हो जाना । कई घंटों से लगातार भीगते हुए अब ऐसा महसूस हो रहा था जैसे शरीर बाहर से तो भीगा ही भीतर से भी भीग गया है ।
टुंडा भुज पहुंचते-पहुंचते शाम हो गयी । 'मौसम विभाग टीम' अभी भी वहीँ थी और हमें देखते ही उनके चेहरों पर हैरानी के भाव आ गये । वो जानना चाहते थे कि ऐसा क्या हुआ जो हम लोग स्पिति न जाकर वापस इसी रास्ते से आ गये । जब तक हमने उनके सवालों का जवाब दिया तब तक उन्होंने हमारे लिए कॉफ़ी बना दी । पूरा शरीर भीगने की वजह से पत्ते की तरह थर-थर काँप रहा था ऐसे में कॉफ़ी ने इस हलचल को शांत करने में अहम भूमिका निभाई ।
इस टीम के प्रमुख ‘नीटू’ ने हमें हमारा टेंट लगाने से मना कर दिया वो चाहते थे कि हम उनके ब्रांड न्यू ‘3 मैन’ को लगाकर उसमें रात बिताये । उनका कहा मानते ही हमने तुरंत टेंट को गाड़ दिया परन्तु एक समस्या ने घेर लिया । टेंट की छत नीचे गिर रही थी और उसे स्टेबल करने वाली स्टिक कहाँ और कैसे लगानी थी उसका हमें पता ही नहीं चल रहा था ।
30 मिनट लग गये इस पहेली को सुलझाने में तब तक बारिश का पानी वहां भी पहुंच गया जहां अब तक नहीं पहुंचा था । बारी-बारी से हमनें गीले कपड़े उतारकर रूखे कपड़ें पहन लिये । शुक्र है रकसैक के भीतर का सारा सामान सूखा था । रात को चावल-राजमा का डिनर करते-करते पूरी टीम ने हमारे सकुशल लौट आने पर बधाई दी और बचकर निकल आने का श्रेय हमारे अच्छे कर्मों को दिया । नीटू के हिसाब से ग्लेशियर के उस हिस्से पर कोई नहीं जाता ।
रात 9 बजे हमने स्लीपिंग बैग में घुसकर आज के दिन को अंजाम तक पहुंचाया । कल सीधा दोपहर तक बरशैनी पहुंचना है जहां से बस लेकर मनाली । इस प्लान पर बात ख़त्म करके नींद को काम पर लगा दिया ।
आज हमने 10 घंटे में 16 किमी. की दूरी तय करी । पिछले 2 दिनों में हमने इतना कम खाया है कि शरीर खुद को जलाकर इसकी भरपाई कर रहा है । बारिश अभी भी हो रही है । “गुड नाईट”
पार्वती घाटी में आखिरी दिन (दिन 08) शुरू हुआ सूरज की चमचमाती रोशनी के साथ । पिछले कई दिनों से चलती जद्दोजहद अंततः आज समाप्त होने वाली है । टेंट समेटने से पहले मौसम विभाग टीम ने मैगी का न्यौता देकर हमें अपना फैन बना लिया । आज हमारा प्लान सीधा मनाली पहुंचने का है, मतलब कि यहाँ से बरशैनी पैदल और फिर बस से मनाली ।
सुबह 8 बजे चल पड़े बरशैनी जोकि टुंडा भुज से 18 किमी. दूर है । यहाँ से रास्ता लगभग समतल ही है उम्मीद है पैदल सफ़र दोपहर 3-4 बजे तक पूरा हो जायेगा । अलविदा के साथ चल पड़े घर की ओर ।
पहले पुल को पार करते हीदो-दो हाथ मेरा मतलब दो-दो पैर हुए कीचड़ से । जब दूसरी बार पैर फिसला तब मैं कल हुई भीषण बारिश को क्रेडिट दिए बिना रह न सका । नूपुर भी जूझती दिखी इस कीचड़ से । गुज्जर डेरे तक पहुंचते-पहुंचते तो दोनों का बुरा हाल हो गया था कीचड़ से । पहले प्लान था कि गुज्जर डेरे पर रूककर गर्मागर्म दूध पियेंगे लेकिन कीचड़ ने सारा मजा किरकिरा कर दिया । डेरे को दूर से बाय-बाय बोलकर आगे बढ़ गए ।
खीरगंगा हम 2 घंटे 30 मिनट में पहुंचे । जैसा माहौल जाते वक़्त था वैसा ही अभी है, चारों तरफ टूरिस्टों की अफरा-तरफी है । थोड़ा आगे जाकर बारिश शुरू हो गयी, हमने एक दूकान पर रूककर चाय और परले-जी बिस्कुट खाए । रेनवियर पहनकर फिर से दौड़ पड़े अपनी मंजिल की ओर ।
इस बार हमने रुद्रनाग झरने वाले रास्ते से जाना ठीक समझा । यह उतराई है और आई.सी के बाद रास्ता दाहिने तरफ नीचे जाता है । इस रास्ते ने हमें एक लकड़ी के पुल पर पहुंचाया जिसके नीचे से पार्वती नदी अपने पूरे उफान पर पथरीली दीवारों को टक्कर मार रही थी ।
दोपहर 2 बजे नक्थान गाँव पहुंचते ही दोनों को पुलगा का जंबो डैम दिखा जिसने हमें और तेज चलने को आतुर कर दिया । आधे घंटे में हम बरशैनी के द्वार पर थे । बारिश फिर से शुरू हो गई थी, अब हमें बस का इंतजार करना होगा मनाली पहुंचने के लिए । बारिश हमें ज्यादा भिगो न पाई । थैंक्स टू मौहाली वाले अंकल को जिन्होंने हमें भुंतर तक लिफ्ट दे दी ।
पिछली बार हमने खाना पैसे देकर जाते वक़्त खीरगंगा में खाया था और अब पूरे 7 दिन बाद भुंतर में । थोड़े इंतजार के बाद हम प्राइवेट बस में थे जिसने लम्बे जाम में फसाकर हमें खूब बोर किया । रात 8:30 बजे बस से पहला कदम मनाली की घरती पर रखते ही हमारा लम्बा और दुर्गम सफ़र समाप्त हुआ ।
यह सफ़र 26 अगस्त 2017 को शुरू हुआ जिसके तहत हमें पिन पार्वती पास पार करके काजा पहुंचना था लेकिन पपप पहुंचने से पहले ही हम रास्ता भटक गये जिस वजह से हमें सैम रास्ते से वापस आना पड़ा । पिछले 8 दिनों में हमने 55 घंटे 55 मिनट चलकर 107 किमी. लम्बा रास्ता तय किया । इन 8 दिनों में बीड़ से मनाली, मनाली से सोलंग वैली 2 दिन आना जाना, खाद्य सामग्री, बस का किराया और वापसी बीड़ तक कुल 3350 रु. खर्च हुए दो लोगों पर ।
यह सफ़र यहीं समाप्त होता है । इस ट्रेक से हम दोनों को खासकर मुझे बहुत कुछ नया सीखने और समझने को मिला ।
आशा करता हूँ आप सभी को यह अनुभव पसंद आया होगा । किसी भी घुमंतू प्राणी को पिन पार्वती पास के बारें में कोई भी प्रश्न पूछना हो तो बेझिझक पूछे ।
धन्यवाद
भाग-1 : खीरगंगा-टुंडा भुज
भाग-2 : उड़ी थाच-मानतलाई झील
भाग-3 : अंजान कोल
अंजान कोल ताजा बर्फ में डूबा है । सूरज ने निकलते ही आधी परेशानी हल कर दी । अपनी जान हथेली पर रखकर सुरक्षित बेस कैंप पहुंचने का सपना है । टी-शर्ट से दोनों को बांधकर लांधने लगे गहरी और छिपी क्रेवासों को । कोई तो था जो हमें बचाना चाहता था, हर पल यह एहसास बढ़ता ही जा रहा था । यात्रा दो लोगों की जो पार्वती ग्लेशियर पर फंसे और सकुशल नीचे उतरने में भी कामयाब रहे । शरीर को सुरक्षित देखना त्यौहार से कम नहीं है ।
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अंजान कोल 5400 मी. पार्वती ग्लेशियर (PC : नूपुर) |
बर्फ लगातार 2 घंटे गिरी । तापमान के माइनस में गिरने में पहले ही डर उठ खड़ा हुआ । बाहर बर्फ है भीतर डर है । बार-बार टेंट पर गिरी बर्फ को हटाना पड़ रहा है । अजीब-अजीब विचार आ रहे हैं । “अगर बर्फबारी न रुकी तो, बस टेंट डटा रहे, अगर सच में भालू आ गया तो क्या होगा, हाइपोथर्मिया न हो जाये” ।
“मुंह को कवर नहीं करना है, सिर को टेंट से थोड़ा दूर रखना, जितने कपड़े बैग में है सब पहन लो, अगर ठण्ड लगने लगे तो बिना देर किये मुझे बताना, और सुबह 4 बजे ही निकल जायेंगे नीचे”, सारी हिदायतें नूपुर को देकर मैंने अपने आप को स्लीपिंग बैग में छुपा लिया ।
रात के 2 बजे हैं और हम दोनों नींद से बहुत दूर डर के साथ लेटे हैं । मुंह से निकले हर शब्द का जन्म डर और बेचैनी के सायें में हो रहा है । नूपुर की आवाज से वो बहुत चिंतित महसूस हो रही है । खुद के भीतर झांककर देखने पर पता चला कि मेरा हाल उससे भी ज्यादा बुरा है । खुद से ज्यादा मुझे नूपुर की फ़िक्र हो रही है । उसकी सलामती का ख्याल आते ही मुझे और ज्यादा टेंशन महसूस हो रही है ।
न जाने कब नींद आ गयी एहसास ही न हुआ । जब-जब आँख खुलती तब-तब नूपुर से उसके हाल पूछता । वो पूरी तरह ठीक थी । सुबह 4:30 बजे आँख फिर से खुली । नूपुर बोल रही है “चलते हैं”, “थोड़ी देर में चलते हैं” बोलकर मैं अभी-अभी आये सपने के बारे में सोचने लगता हूँ ।
“नूपुर को हाई-फाई देकर मैं ग्लेशियर को देखने लगा, हम सही सलामत नीचे पहुंच गये हैं और मैं ग्लेशियर को छुकर उसको नमस्कार करता हूँ”, सपने के टूटते ही मैंने स्लीपिंग बैग में करवट बदली । न जाने क्यों अचानक ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मुझमें नई ताकत आ गयी है । उस वक़्त जो ख्याल आया था उसे लिख रहा हूँ, “स्लीपिंग बैग में लेटे–लेटे पूरे शरीर के रौंगटे खड़े हो गये, एहसास होता है जैसे ये अंजान कोल कुछ कह रहा है” ।
सुबह के 6 बज चुके हैं और टेंट से बाहर निकलते ही महसूस होती है इस जगह की ऊर्जा । अब कल हुई सारी गलतियाँ याद आ रही हैं कि "कैसे मुझे बोल्डर टेंट के रूप में दिखाई दिए, पपप के सामने खड़े होकर भी गलत रास्ता चुन लेना, नूपुर की बात न मानना, और अंत में यहाँ पहुंच जाना" । अब लग रहा है जैसे इस जगह ने सभी खतरों के बावजूद हमें यहाँ बुलाया और अब कह रहा है कि “घबराओ मत तुम लोग सुरक्षित हो...मेरे साथ” ।
सूरज निकल चुका है । उसकी पीली रोशनी दोनों को आत्मविश्वास प्रदान कर रही है । जहां तक नज़रें जा रही हैं वहां तक सिर्फ और सिर्फ बर्फ ही दिखाई दे रही है । साफ़ मौसम को देखते हुए हमने इस कोल की धार पर चलते हुए 'पिन पार्वती पास' पहुंचने का तय किया ।
टेंट को थोड़ा सुखाकर हमने पैक कर लिया 'पपप' के लिए । सुबह के 7:30 बजे हम चल पड़े धार के ऊपर लेकिन 20 मीटर बाद ही इतना थक गये कि 5400 मी. ने इशारा कर दिया कि “अब वापस जाओ” । दोनों ने एक-दूसरे को देखा और फैसला कर लिया कि जो हुआ उसे भूलकर अब बस नीचे उतरना है ।
मेरे पास एक पूरी बाजू का टी-शर्ट है जिसपर इंग्लिश में “लव लाइफ” (Love Life) लिखा है उसकी एक बाजू से नूपुर को बाँधा और दूसरी से खुद को । ताजा बर्फ़बारी से सारी खुली क्रेवास अब छुप गयी थी जोकि हमारे लिए एक नई मुश्किल थी । ऐसे क्रेवास जोन में हमेशा नौसिखिया पर्वतरोही आगे चलता है उसके पीछे प्रशिक्षित अनुभवी पर्वतारोही, और ऐसा इसलिए होता है अगर नौसिखिया क्रेवास में गिरता है तो अनुभवी पर्वतारोही अपनी आइस-अक्स के इस्तेमाल से ग्राउंड पर सेल्फ-अरेस्ट करके उसकी जान बचा सकता है और हाँ इसमें पुली सिस्टम भी शामिल होता है । परन्तु यहाँ हमने उल्टा किया मैं आगे चला जबकि नूपुर पीछे । ऐसा मैंने इसलिए किया क्योंकि एक तो हमारे पास आइस-अक्स नहीं थी और दूसरा मुझे खुदपर यकीन था कि ‘फर्स्ट-मैन’ बनकर मैं छिपी क्रेवासों को ढूंढ़कर उनसे पार पा सकता हूँ ।
“जहां मैं कदम रखूं सिर्फ और सिर्फ वहीं अपना पैर रखना है, नजारों को भूल जाओ और मुझसे बस 2 कदम ही दूर रहना”, सबकुछ समझाकर ग्लेशियर पर सुबह 8 बजे कदम रखा ।
ग्लेशियर पर ताजा बर्फ 3-4 इंच थी जिसने पहले से भीगे जूतों के भीतर पैरों को सुन्न कर दिया । अगर पैरों में आत्मा बसती तो इस वक़्त वो बाहर निकल जाती । डंडे से मैं हर कदम पर 3 बार ग्लेशियर की सतह पर वार करता फिर कदम आगे बढ़ाता । धूप थी, डर था और कल से ज्यादा गहरी और चौड़ी छिपी दरारें थी । नूपुर थोड़ा धीरे चलने को बोल रही थी, और मैंने उसकी बात मान ली ।
बहुत बार हद से ज्यादा चौड़ी दरारों ने रास्ता रोक दिया जिसका परिणाम हमें उसके किनारे चलते-चलते सही स्थान ढूँढना पड़ता पार करने के लिए । कुछ क्रेवासों की चौड़ाई और गहराई ने रूह तक को हिला दिया था । मैं बार-बार पीछे देख रहा था कि नूपुर ठीक है या नहीं । वो ठीक थी और आज ज्यादा फिट लग रही थी ।
45 मिनट लगे क्रेवास ज़ोन को पार करके 'कटोरी ग्लेशियर' पहुंचने में । कोल से हमने ऐसा रास्ता चुना जो छोटा और थोड़ा कम मुश्किल था । यह दरारों से भरा शार्टकट था । बेशक दरारें खत्म हो गयी थी परन्तु ग्लेशियर नहीं । यहाँ पहुंचकर हमने रिलैक्स महसूस किया । मेरे लिए तो यहाँ पहुंचने का मतलब था खोयी आत्मा को वापस पा लेना । हमने बेस कैंप पहुंचने तक काफी मस्ती करी । ग्लेशियर पर दौड़ना, फिसलना और जीवन को वापस पा लेने की ख़ुशी ।
“नूपुर को हाई-फाई देकर मैं ग्लेशियर को देखने लगा, हम सही-सलामत बेस कैंप पहुंच गये हैं”, यह कोई सपना नहीं बल्कि असलियत है, साक्षात है । अगले साल 'पपप' को एक और मौका दिया, पक्का । आखिरी बार ग्लेशियर को निहारकर मैंने उसे छुकर उसके स्पर्श को माथे से लगाया यह बोलकर कि “अगले साल फिर मुलाक़ात होगी बडका जी” ।
डर के दूर होते ही भूख की याद आई । नूपुर के पूछने पर मैंने बेस कैंप से नीचे उतरकर मैगी बनाने का प्रस्ताव रखा जिसे उसने एकदम मान लिया । हम तेज थे, काफी तेज, डेब्रिस इलाके को पार करने में हमने देर न करी और दौड़ लगा दी नीचे । पहली पानी की धारा पर पहुंचकर हमने मुंह हाथ और पैर धोए, थर्मल उतारे, दांत साफ़ किये, जले चहरे पर क्रीम लगाई, मैंने बालों को हाथ से सीधा किया और नूपुर ने कंघे से ।
मैंने 2015 में बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स किया था, वहां 2 लड़कियां थी सर्च एंड रेस्क्यू कोर्स में जिनको देखकर मैंने महसूस किया था कि शायद ही लडकियां एक अच्छी ट्रेकर हो सकती हैं लेकिन फिर मैं दार्जिलिंग गया एडवांस माउंटेनियरिंग कोर्स के लिए यहाँ मेरा विश्वास वापस लौटा कि लड़कियां अच्छी नहीं बहुत तेज ट्रेकर होती हैं । और आज अपने साथ चलती इस लड़की को देख रहा हूँ जोकि अभी तक मेरी देखी बेस्ट ट्रेकर है । ऐसी तेज और हिम्मती ट्रेकर पहली बार देखी है ।
बेस कैंप से नीचे लौटते हुए हमें ऊपर जाते 2-3 ग्रुप मिले, जिन्हें देखकर मुंह से बस यही निकला “काश ये लोग कल आ जाते” । सारे ग्रुप आज हाई कैंप पर हाल्ट करेंगे और कल 'पिन पार्वती पास' क्रॉस करेंगे । इन्हें देखकर नूपुर ने मुझसे बोला भी कि "बाबा चलो चलते हैं ये लोग खाना खिलाने की बात भी कर रहे हैं” । लेकिन उस वक़्त मैं जैसे अपने-आप में ही नहीं था, कल और आज के ग्लेशियर और क्रेवास ने मुझे दिमागी तौर पर बहुत थका दिया था । ऊपर से अब मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था दोनों की जान के साथ । मेरे मना करने के बाद हम फिर से नीचे उतरने लगे, तेज ।
मानतलाई से पहले रूककर जैसे ही ‘सूपी-मैगी’ खायी मानो आत्मा शरीर में वापस लौट आई हो । छोटे चूल्हे ने यहाँ कोई नखरे नहीं किये एक ही बार में जल गया । घुटने तक गहरे नाले को हमने जूते गले में टांगकर पार किया । मानतलाई हमने 11:30 पार किया । आज का टारगेट उड़ी थाच है और वहां से पहले मतलब ही नहीं बनता रुकने का । ऐसा इसलिए बोल रहा हूँ क्योंकि हमारे पास सिर्फ 2 ही पैकेट मैगी के बचे हैं । तो अब प्लान ये है कि आज उड़ी थाच और कल टुंडा भुज ‘मौसम विभाग टीम’ के साथ रुकने का है जहां हमें कम से कम एक टाइम का खाना मिल ही जायेगा ।
मानतलाई के बाद नॉन-स्टॉप चलते हुए हमने उड़ी थाच में 3:30 बजे सांस ली । आज यहाँ कोई नहीं है हमारे सिवा, ऊपर जाते हुए रशियन ग्रुप हमारा पड़ोसी था यहाँ तक । टेंट लगाने के बाद पहले हमने आराम किया फिर शाम को थोड़ी स्ट्रेचिंग के बाद आखिरी मैगी को बनाया और खुद को गहरी नींद के हवाले कर दिया ।
आज का दिन भी कल के दिन जितना ही लम्बा और थका देने वाला रहा । आज हमने 8 घंटे में 19.5 किमी. लम्बा ट्रेक किया । यह सफ़र 5400 मी. से 3803 मी. पर खत्म हुआ । आशा है बारिश नहीं आयेगी ।
आज शुक्रवार 1 सितम्बर 2017 (दिन : 07) है । सुबह 6 बजे उठकर बिना कुछ खाए पिये हमने अपना आगे का सफ़र 7:30 बजे शुरू किया । आज का लक्ष्य 18 किमी. दूर टुंडा भुज है । घाटी में मौसम साफ़ नहीं है काले बादलों ने इसको अपनी छत बना लिया है । 3-4 किमी. चलते ही बारिश शुरू हो गयी । रेनवियर काम पर लग गये । बारिश तेज है और हम भी ।
लगातार चलते-चलते 3 घंटे से ज्यादा हो गया है और भीगते-भीगते 2 घंटे से ऊपर । भूख से बुरा हाल है, शरीर का एक-एक अंग खाना और आराम मांग रहा है । हमारी सारी उम्मीदें गद्दियों पर टिकी हैं जो हमें आते वक़्त मिले थे । आशा करता हूँ कि हमारी उम्मीद न टूटे । पहले पांडू पुल के बाद दूसरे गीले पांडू पुल को पार करना दोनों के लिए टेड़ी खीर बन गया । एक-दूसरे की सहायता के बाद दोनों ने इस खतरे को 10 मिनट में पार किया ।
दोपहर के 2 बजे हम गद्दियों के डेरे में पहुंचे लेकिन यहाँ कोई नहीं है, सब जा चुके हैं, उम्मीदें टूट चुकी थी । हैरान-परेशान हम एक दूसरे को देख रहे थे कि तभी दूर एक टेंट दिखाई दिया जिसनें उमीदों को फिर से जीवित कर दिया । भीगते-भीगते दौड़ते-दौड़ते वहां पहुंचे जहां उम्मीदों को खाना मिलने वाला था ।
भीगते टेंट के बाहर भीगते गद्दी कुत्ते ने कई बार भौंक कर हमारा स्वागत किया । हम भी बिना डरे बेधडक टेंट में घुसे । यहाँ 2 गद्दी हैं जो लगभग नींद में बेहोश हैं । मैंने कई बार आवाज लगाई जिसे अनसुना कर दिया गया, फिर कुत्ते ने भौंककर हमारा काम आसान करने का नाकामयाब प्रयास किया, अब भी कोई हलचल नहीं । आख़िरकार मुझे भीतर घुसकर गेट के पास लेटे गद्दी को झंझोड़ना पड़ा । दोनों ने नींद से जागते इंसान को देखा ।
अरे ये तो वही गद्दी भाई है जो हमारे साथ टुंडा भुज से चले थे । हमारे नमस्कार के बाद उन्होंने हमारा स्वागत किया अपने आशियाने में और आनन-फानन में उन्होंने कई प्रयासों के बाद छोटे से चूल्हे में आग जलाकर चाय बनाने को रख दी । हमारी सारी स्टोरी सुनने के बाद उन्होंने हमारी हिम्मत की दाद दी और फिर अपनी गहरी नींद का राज बताया । “रोज रात को भालुओं से सामना करना पड़ रहा है इस वजह से पूरी रात पहरा देते हैं और दिन में सोते हैं, हम दोनों थोड़ी देर पहले ही खाना खाकर सोये थे”, बोलकर उन्होंने बीड़ी सुलगा ली ।
चाय के बाद उन्होंने बिना देर किये आटा गूंदना शुरू कर दिया जिसका हमने कोई विरोध नहीं किया । अब तक दूसरे गद्दी अंकल भी उठ गये थे उन्होंने भी हमें पहचान लिया था । और हमारी कहानी सुनकर उन्होंने पिछले हफ्ते घटी एक घटना हमारे साथ शेयर करी । उन्होंने बताया कि “पिछले हफ्ते एक ग्रुप आया था जिसमें एक लड़की इतनी बीमार हो गई थी की उड़ी थाच पहुंचने से पहले ही उसकी मौत हो गयी” । मौत का कारण उन्हें नहीं पता था ।
खातिरदारी शानदार रही, हमें चाय, दूध, भेड़ का देशी घी, खिला-पिलाकर उन्होंने अलविदा कहा । वैसे तो उनके अनुसार हमें वहां रुक जाना चाहिए लेकिन हमने आज ही टुंडा भुज पहुंचने का इरादा बताया । हमने उनका मोबाइल नंबर ले लिया । दोनों गद्दी उतराला के रहने वाले हैं और यह स्थान बीड़ के काफी पास है । हमने उनसे अगली बार उतराला में मिलना पक्का किया ।
खाने ने भीतर जाते ही ऊर्जा का विस्फोट कर दिया था । पटरा घाट ने स्पीड को धीमा कर दिया । पूरा पटरा घाट का पहाड़ काले पत्थर का है, यह खड़ा है और अब गीला भी है । हमने धीरे-धीरे रुकते-रुकते पूरी सावधानी से इसे पार किया । बारिश में इसे पार करना बहुत बड़ी मुर्खता थी, यहाँ पहली गलती की सजा ही मौत है ।
पटरा घाट पार करते ही एक गद्दी डेरा मिला जोकि नीचे जा रहा था लेकिन तेज बारिश ने इन्हें आज यहीं रुकने पर विवश कर दिया । पटरा घाट पार करने का मतलब था कि सारी मुसीबतें खत्म हो जाना । कई घंटों से लगातार भीगते हुए अब ऐसा महसूस हो रहा था जैसे शरीर बाहर से तो भीगा ही भीतर से भी भीग गया है ।
टुंडा भुज पहुंचते-पहुंचते शाम हो गयी । 'मौसम विभाग टीम' अभी भी वहीँ थी और हमें देखते ही उनके चेहरों पर हैरानी के भाव आ गये । वो जानना चाहते थे कि ऐसा क्या हुआ जो हम लोग स्पिति न जाकर वापस इसी रास्ते से आ गये । जब तक हमने उनके सवालों का जवाब दिया तब तक उन्होंने हमारे लिए कॉफ़ी बना दी । पूरा शरीर भीगने की वजह से पत्ते की तरह थर-थर काँप रहा था ऐसे में कॉफ़ी ने इस हलचल को शांत करने में अहम भूमिका निभाई ।
इस टीम के प्रमुख ‘नीटू’ ने हमें हमारा टेंट लगाने से मना कर दिया वो चाहते थे कि हम उनके ब्रांड न्यू ‘3 मैन’ को लगाकर उसमें रात बिताये । उनका कहा मानते ही हमने तुरंत टेंट को गाड़ दिया परन्तु एक समस्या ने घेर लिया । टेंट की छत नीचे गिर रही थी और उसे स्टेबल करने वाली स्टिक कहाँ और कैसे लगानी थी उसका हमें पता ही नहीं चल रहा था ।
30 मिनट लग गये इस पहेली को सुलझाने में तब तक बारिश का पानी वहां भी पहुंच गया जहां अब तक नहीं पहुंचा था । बारी-बारी से हमनें गीले कपड़े उतारकर रूखे कपड़ें पहन लिये । शुक्र है रकसैक के भीतर का सारा सामान सूखा था । रात को चावल-राजमा का डिनर करते-करते पूरी टीम ने हमारे सकुशल लौट आने पर बधाई दी और बचकर निकल आने का श्रेय हमारे अच्छे कर्मों को दिया । नीटू के हिसाब से ग्लेशियर के उस हिस्से पर कोई नहीं जाता ।
रात 9 बजे हमने स्लीपिंग बैग में घुसकर आज के दिन को अंजाम तक पहुंचाया । कल सीधा दोपहर तक बरशैनी पहुंचना है जहां से बस लेकर मनाली । इस प्लान पर बात ख़त्म करके नींद को काम पर लगा दिया ।
आज हमने 10 घंटे में 16 किमी. की दूरी तय करी । पिछले 2 दिनों में हमने इतना कम खाया है कि शरीर खुद को जलाकर इसकी भरपाई कर रहा है । बारिश अभी भी हो रही है । “गुड नाईट”
पार्वती घाटी में आखिरी दिन (दिन 08) शुरू हुआ सूरज की चमचमाती रोशनी के साथ । पिछले कई दिनों से चलती जद्दोजहद अंततः आज समाप्त होने वाली है । टेंट समेटने से पहले मौसम विभाग टीम ने मैगी का न्यौता देकर हमें अपना फैन बना लिया । आज हमारा प्लान सीधा मनाली पहुंचने का है, मतलब कि यहाँ से बरशैनी पैदल और फिर बस से मनाली ।
सुबह 8 बजे चल पड़े बरशैनी जोकि टुंडा भुज से 18 किमी. दूर है । यहाँ से रास्ता लगभग समतल ही है उम्मीद है पैदल सफ़र दोपहर 3-4 बजे तक पूरा हो जायेगा । अलविदा के साथ चल पड़े घर की ओर ।
पहले पुल को पार करते ही
खीरगंगा हम 2 घंटे 30 मिनट में पहुंचे । जैसा माहौल जाते वक़्त था वैसा ही अभी है, चारों तरफ टूरिस्टों की अफरा-तरफी है । थोड़ा आगे जाकर बारिश शुरू हो गयी, हमने एक दूकान पर रूककर चाय और परले-जी बिस्कुट खाए । रेनवियर पहनकर फिर से दौड़ पड़े अपनी मंजिल की ओर ।
इस बार हमने रुद्रनाग झरने वाले रास्ते से जाना ठीक समझा । यह उतराई है और आई.सी के बाद रास्ता दाहिने तरफ नीचे जाता है । इस रास्ते ने हमें एक लकड़ी के पुल पर पहुंचाया जिसके नीचे से पार्वती नदी अपने पूरे उफान पर पथरीली दीवारों को टक्कर मार रही थी ।
दोपहर 2 बजे नक्थान गाँव पहुंचते ही दोनों को पुलगा का जंबो डैम दिखा जिसने हमें और तेज चलने को आतुर कर दिया । आधे घंटे में हम बरशैनी के द्वार पर थे । बारिश फिर से शुरू हो गई थी, अब हमें बस का इंतजार करना होगा मनाली पहुंचने के लिए । बारिश हमें ज्यादा भिगो न पाई । थैंक्स टू मौहाली वाले अंकल को जिन्होंने हमें भुंतर तक लिफ्ट दे दी ।
पिछली बार हमने खाना पैसे देकर जाते वक़्त खीरगंगा में खाया था और अब पूरे 7 दिन बाद भुंतर में । थोड़े इंतजार के बाद हम प्राइवेट बस में थे जिसने लम्बे जाम में फसाकर हमें खूब बोर किया । रात 8:30 बजे बस से पहला कदम मनाली की घरती पर रखते ही हमारा लम्बा और दुर्गम सफ़र समाप्त हुआ ।
यह सफ़र 26 अगस्त 2017 को शुरू हुआ जिसके तहत हमें पिन पार्वती पास पार करके काजा पहुंचना था लेकिन पपप पहुंचने से पहले ही हम रास्ता भटक गये जिस वजह से हमें सैम रास्ते से वापस आना पड़ा । पिछले 8 दिनों में हमने 55 घंटे 55 मिनट चलकर 107 किमी. लम्बा रास्ता तय किया । इन 8 दिनों में बीड़ से मनाली, मनाली से सोलंग वैली 2 दिन आना जाना, खाद्य सामग्री, बस का किराया और वापसी बीड़ तक कुल 3350 रु. खर्च हुए दो लोगों पर ।
यह सफ़र यहीं समाप्त होता है । इस ट्रेक से हम दोनों को खासकर मुझे बहुत कुछ नया सीखने और समझने को मिला ।
आशा करता हूँ आप सभी को यह अनुभव पसंद आया होगा । किसी भी घुमंतू प्राणी को पिन पार्वती पास के बारें में कोई भी प्रश्न पूछना हो तो बेझिझक पूछे ।
धन्यवाद
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सुबह 6 बजे टेंट से दिखता दृश्य (PC : नूपुर) |
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धार के दाईं तरह पार्वती घाटी में चमकते पहाड़ और ग्लेशियर (PC : नूपुर) |
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टेंट के सामने बर्फ से ढका मौलिन (PC : नूपुर) |
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5400 मी. और अंजान कोल (PC : नूपुर) |
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निकलने की तैयारी |
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लगभग 22 घंटे बाद पेट पूजा की तैयारी |
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नाले को पार करते हुए नूपुर |
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मानतलाई झील |
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पांडू पुल (PC : नूपुर) |
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मैं, नूपुर और गद्दी डेरा (PC : नूपुर) |
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पटरा घाट की ओर (PC : नूपुर) |
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पटरा घाट में बारिश (PC : नूपुर) |
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सावधानी हटी दुर्घटना घटी (PC : नूपुर) |
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वापस जाते गद्दी और हम (PC : नूपुर) |
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रुद्रनाग झरना (PC : नूपुर) |
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बरशैनी (PC : नूपुर) |
भाग-1 : खीरगंगा-टुंडा भुज
भाग-2 : उड़ी थाच-मानतलाई झील
भाग-3 : अंजान कोल
गजब का हौसला है आपका....
ReplyDeleteअगले साल ppp जाओ तो बताकर जाना रोहित भाई।
ReplyDeleteआपके साथ चलने को तैयार हूं जी।
न खाने की समस्या है न चलने की। दिन में कितना भी चलवाओ कोई दिक्कत नही। एक हफ्ता अगर बिस्किटों पर भी काटना लड़े तब भी कोई दिक्कत नही भाई
वाह
Deleteआज रीडर के पुराने बचे लेख पढ रहा हूँ।
ReplyDeleteशानदार यात्रा का जानदार समापन...
आप दोनों का मुस्कान भरा फोटो सबसे ज्यादा पसंद आया।
जीवन बढने का नाम, यात्रा में मुसीबतें न आये तो याद ही नहीं रहती।
अगली यात्रा में स्पीति तक हम सब साथ जायेंगे,
संदीप भाई को हैण्ड शैक । आपकी टिप्पणी पोस्ट को पूर्ण कर देती है । काश आप देख पाते कि आपके कमेन्ट को पढ़कर भी मेरे होटों पर मुस्कान डोल जाती है । स्वस्थ रहें ।
Deleteवाह
ReplyDeleteजितनी जबरदस्त यात्रा उस से कई गुना बढ़कर लेखन
वन्दन है आप दोनों को
वेलकम जी...शुक्रिया तारीफ है आशा करता हूँ आप आते रहेंगे और हम लिखते रहेंगे । शुभकामनाएं
Deleteगज़ब रोहित भाई रौंगटे खड़े हो गए पढ़ कर
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