3 नवम्बर 2017
हनुमानगढ़ चोटी अपने नाम के हिसाब से संकट मोचन हनुमान जी को समर्पित है । यहाँ की ऊँचाई 3079 मी. है और बीड़ से पैदल दूरी 8.5 किमी. है । पर्वत के टॉप पर हनुमान जी की मूर्ति और साथ में उनका गदा, कुछ लाल झंडे, त्रिशूल और एक दान पेटी रखी है । यह पीक 360 डिग्री का अद्भुत दृश्य दिखाती है । इन दृश्यों में खास हैं यह पांच पास, थम्सर जोत, जालसू पास, नोहरू, गेरू, और सारी पास जिनके मौसम साफ़ होने पर एक साथ जादुई दर्शन होते हैं ।
यहाँ पहुंचने के कई रास्ते हैं जैसे कि पहला है बिलिंग से सीधा ऊपर पैदल, दूसरा बिलिंग और चैना पास के बीच स्थित खड्ड से, तीसरा राजगुन्दा से चौथा सतबहनी मंदिर से वाया धत्ती और पांचवे से हम चढ़े जो इन सभी में मुश्किल और लम्बा है ।
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हनुमानगढ़ चोटी अपने नाम के हिसाब से संकट मोचन हनुमान जी को समर्पित है । यहाँ की ऊँचाई 3079 मी. है और बीड़ से पैदल दूरी 8.5 किमी. है । पर्वत के टॉप पर हनुमान जी की मूर्ति और साथ में उनका गदा, कुछ लाल झंडे, त्रिशूल और एक दान पेटी रखी है । यह पीक 360 डिग्री का अद्भुत दृश्य दिखाती है । इन दृश्यों में खास हैं यह पांच पास, थम्सर जोत, जालसू पास, नोहरू, गेरू, और सारी पास जिनके मौसम साफ़ होने पर एक साथ जादुई दर्शन होते हैं ।
सितम्बर में एक लिस्ट बनाई थी जिसके हिसाब से हमें हनुमानगढ़ पीक जाना था लेकिन आलस के कारण हर दिन इसे पीछे-पीछे खिसकाता ही चला गया । 31 अक्टूबर को जब घर से दिवाली मनाकर बीड़ पहुंचा तब नूपुर ने हनुमानगढ़ चलने की बात बोलकर मुझे नाटक करने पर मजबूर कर दिया । “देखो आज आया हूँ, रात बस में जागते हुए कटी है तो कल की सुबह तो देर तक सोना बनता है, परसों चलते हैं, क्या ख्याल है” । बोलकर मेरे भीतर बैठे आलसी बच्चे ने उंगलियाँ क्रॉस कर ली । “परसो चलते हैं, “डन”, बोलकर नूपुर रूम में चली गयी । बाद में आलसी बच्चा बहुत देर तक घेंट फाड़ता रहा ।
कल दोपहर को दुकान जा रहा था कि तभी बीड़ के मशूहर डाक्टर मिल गये डॉ. मशहूर गुलाटी राजकुमार । बातो-बातो में मैंने उन्हें बताया कि कल तो मैं और नुपुर हनुमानगढ़ जा रहें हैं । यह सुनते ही उन्होंने माथे पर ऊँगली रखकर गिनती बोलनी शुरू कर दी । “दो, तीन, पांच, हम्म और आठ”, बोलते-बोलते एकदम से उन्होंने कल निकलने का समय पूछा । लड़खड़ाई जबान से मैंने 6 बोला । “छह, पांच, ग्यारह और तीन, दो, आठ घंटे लगेंगे तुम लोगों को हनुमानगढ़ जाकर वापस आने में और दोपहर 2 बजे तक पहुंचोगे बीड़”, बोलकर वो मरीज देखने लगे । और इधर मेरे पैरों को जैसे बिच्छु ने काट लिया हो महसूस होने लगा । “आठ घंटे तो बहुत ज्यादा होते हैं, ये तो रहा”, बड़बड़ते- बड़बड़ते मैं घर आ गया ।
2 नवम्बर तो मैं पूरे दिन इस मामले से भागता ही दिखा लेकिन शाम को बिल्ली ने चूहे को दबोच ही लिया । “तो बाबा कल कितने बजे निकल रहे हैं ?”, आँखें फेरते हुए उसने मेरी तरफ देखा । जब मेरे दांत दिखाने से काम नहीं चला तो मैंने ‘थिंग्स टू कैरी’ को अपना हथियार बनाया । मैं जानता था ऐसी हरकतें करके इस बार मेरा बचना मुश्किल है । “सुबह 6 बजे निकलते हैं या फिर अर्ली मोर्निंग”, बोलकर मैंने जीभ को दांत तले दबाया । वैसे मैं अर्ली मोर्निंग का वक़्त सुबह 9 के बाद ही काउंट करता हूँ । “आपका अर्ली मोर्निंग हम अच्छी तरह से जानते हैं, छह बजे चलेंगे”, बोलकर उसने ढ़लते सूरज को निहारा । मुंह से “हाँ ठीक है छह बजे चलते है इसमें क्या दिक्कत है” बोलकर मैंने मन में कई बार “शिट शिट शिट” बोला ।
शाम को प्लान में थोड़ा ट्विस्ट आया, तब मुझे लगा कि अब तो पक्का कैंसिल हो जायेगा । एक बार फिर से भीतर बैठे आलसी लड़के ने फिंगर क्रोस कर लिए क्योंकि बिना खाने के 8 घंटे में तो हमारे ही घंटे बज जायेंगे । “दीदी आप ऐसा करना कि सुबह 6 बजे आकर 2-2 आलू के पराठे बना देना, हम सुबह उन्हें अपने साथ ले जायेंगे”, नूपुर को बोलते हुए मैंने सुना । दूसरी तरफ दीदी (दीदी यहाँ खाना बनाने आती हैं) की गर्दन आज्ञाकारी लड़की की तरह दाएं से बाएं ऐसे घूम रही थी जैसे झुला झूलता है । “तो ठीक है 4 बजे आ जाऊं”, बोलकर दीदी ने नूपुर को देखा । “क्या दीदी इतनी टेंशन लेने की जरुरत नहीं है, आराम से छह बजे आना” । “ओके बोलकर दीदी अपने घर चली गयी ” । बाद में आलसी लड़के ने मुझे बहुत कुछ बुरा-भला कहा लेकिन अपना दिल तो ठहरा दरियादिल सारी गालियाँ इग्नोर कर दी ।
शाम को नूपुर को गुड नाईट से पहले “सुबह उठा देना” बोलकर मैं अपने रूम में आ गया । “ठीक है बोलकर वो अपने रूम में चली गयी । मैंने रूम में आकर कोई भी अलार्म नहीं लगाया और उम्मीद कर रहा था कि नूपुर भी भूल जाये । सोने से पहले सोचा कि अगर दीदी सात बजे खाना बनाती हैं तो फिर मुझे न जाने का बहाना मिल सकता है या क्या पता दीदी देर तक सोती ही रहे और आयें ही ना । कुछ तो पक्का होगा जिस वजह से हम नहीं जा पाएंगे । मेरी सोच भीतर बैठे आलसी लड़के को बहुत पसंद आई शायद तभी वो पेट पकड़ पकडकर हंस रहा था ।
अगली सुबह, कयामत का दिन । मैं सो रहा था कि अचानक आँख खुल गयी, मुझे लगा कि कोई गेट पर है । लेकिन वहां कोई नहीं था सिवाय मेरे वहम के । समय देखा तो सवा छह बज चुके थे और तापमान 13 डिग्री पहुंच गया था । अभी तक दीदी और नूपुर का कोई अता-पता नहीं है शायद प्लान कैंसिल । लेकिन वो कहते हैं ना “बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से होए” । नुपुर ने दरवाजा खटखटा दिया । अब ये कहावत तो बिलकुल गलत है इसे “बोया बीज बबूल का” होना चाहिए ।
सुबह के 7 बजे हैं, हम दोनों तैयार हो चुके हैं और नाश्ता भी पैक करके बैग में रख लिया है । दीदी ने अपना वादा निभाया । 2 बैग तैयार हुए पहला नूपुर ने लिया जोकि एक हाईडरेशन पैक है दूसरा मैंने जिसमें पानी की एक खाली बोतल, 5 मुठ्ठी किशमिश, गोप्रो कैमरा, छोटा मोबाइल, पिचकू सोस और दीदी के आलू के पराठे ।
मौसम ठंडा है, मैंने जैकेट डाल रखी है । बीड़ 1525 मी. की ऊँचाई पर है और अभी तापमान 15 डिग्री हो गया है । स्थानीय किसानों ने 5 बजे ही खेतों पर धावा बोल दिया है । इस सीजन में प्याज और कनक बीजी जाएगी । सभी बहुत गर्मजोशी से कुह्लों के पानी को अपने-अपने खेतों में पहुँचाने के काम में पूरी श्रध्दा से जुटे हैं । और इधर मेरी श्रध्दा, भक्ति और आस्था एक साथ तीनों कम्बल में छुट गयीं ।
7 बजकर 20 मिनट पर हमने घर छोड़ा हनुमानगढ़ के लिए, जिसकी अनुमानित ऊंचाई हम दोनों ने 3000 मी. मान रखी है । पहले कदम के साथ ही मेरे फेफड़े फेंह-फेंह करने लगे । पहले मुझे डॉ. राजकुमार के बताये आठ घंटों की याद आई फिर घर पर जमकर खाई दिवाली की मिठाइयों की । अंत में मुंह से बुलशिट निकला मिठाइयों को नहीं आठ घंटों को ।
10 मिनट बाद चढ़ाई शुरू हो गयी । एक अंतिम बार मैंने कोशिश करी आलसी लड़के को खुश करने की लेकिन नुपुर के शब्दों ने हम दोनों की बोलती बंद कर दी । “क्यूँ अकेले जाने का प्लान है क्या, या फिर इसे अकेले जाकर फास्टेस्ट समिट करके नया रिकॉर्ड बनाना है, अब आपके चहरे पर दाढ़ी मूंछ नहीं है इसलिए सोच समझकर एक्सप्रेशन देना” । डैम इन दाढ़ी मूंछों ने तो मेरी वाट लगा दी है । चेहरे से निर्वस्त्र हो गया हूँ ।
अब तो कोई आखिरी उम्मीद भी न बची लेकिन अचानक एक बिल्कुल छोटा सा लैंड-स्लाइड दिखाई दिया, जिसे मैंने अपना अगला हथियार बनाने की सोची । आलसी लड़के ने तुरंत रोना बंद कर दिया । “ओह शह, अब कैसे जायेंगे यह तो मैन ट्रेल पर ही लैंड स्लाइड हो गया”, बोलकर मैंने आँखे नचाई । “मैन ट्रेल आगे है”, पीछे से आवाज आई । जैकेट की चैन खोलते ही मैंने पीछे मुड़कर देखा कि क्या उसको भी पसीना आ रहा है ?, माथे को हाथ से पोंछते हुए उसने पसीनों की पुष्टि कर दी । इट मीन्स मिठाइयों का असर उसपर भी हुआ है । आई होप 3-4 किमी. पर मिठाईयां हमें वापस चलने पर विवश कर देगीं । “ऐसा हुआ तो तेरे मुंह में घी-शक्कर”, बोलकर आलसी लड़का आलती-पालथी मारकर बैठ गया ।
शुरू के 20 मिनट बहुत मुश्किल रहे । पूरा शरीर पसीना-पसीना हो गया, जैकेट उतारने तक की नौबत आ गयी । मैं घर से ही पानी की बोतल को खाली लाया था कि रास्ते में भर लूँगा लेकिन यहाँ तो पानी है ही नहीं । प्यास से बुरा हाल था इसलिए पहले तो मुंह से “ओह नो” निकला फिर आलसी लड़के ने याद दिलाया कि यह तो मौका है, मैंने उसे ‘ओह नो’ के लिए सॉरी बोला फिर “ओह येस” बोलकर उसे हाई-फाई दिया ।
“पानी के बिना तो चलना मुश्किल है, मुझे लगा था कि यहाँ पानी मिल जायेगा लेकिन यहाँ तो एक बूंद भी नही है, अब क्या करें ?”, बोलकर मैंने भीतर होम सिस्टम चलाया जिसपर गाना बज रहा था “मैं परेशां परेशां परेशां परेशां”, नहीं नहीं, सॉरी ये तो आलसी लड़के का गाना है । मेरा तो था “अच्छा चलता हूँ दुआओं में याद रखना” । #वापसी_की_ख़ुशी
“पानी नीचे वाले घरों से मिल जायेगा जोकि यहाँ से लगभग 2 मिनट की दूरी पर हैं”, बोलकर उसने मेरा पसंदीदा गाना बंद कर दिया । शायद इस बार उसका गाना चल गया था “ऐसी थाकड़ है थाकड़ है ऐसी थाकड़ है” ।
पैर पिटते हुए मुझे 20 मी. नीचे जाना पड़ा । 20 मी. उतराई, नीचे जाना, पहाड़ है, कोई घर की सीडी थोड़ी है, उतरकर फिर चढ़ना है, मामूली बात है क्या । “क्या बकवास है इससे अच्छा तो घर से ही पानी भर लाता तो अच्छा रहता”, पहले 2 घूंट पिया फिर बोतल भरी । नूपुर के पास पहुंचने तक को मुझे शरीर में कमजोरी फील होने लगी ।
“नूपुर नूपुर, मैंने कोई 10-15 बार चिल्लाया”, लेकिन लड़की का कोई अता-पता नही । पता नहीं कहाँ चली गई ?, “कहीं कोई भा”, “चुप कर साले” आलसी लड़के को डांटते हुए मुझे टेंशन होने लगी । भालू वाली बात पर मुझे संदेह होने लगा । अब मेरे सामने 2 ही रास्ते थे या तो आलसी लड़के की बात मानकर घर चला जाऊं या फिर थोड़ा ऊपर जाकर उसे ढूंढने की बेमन कोशिश करूँ । वैसे मैंने सिर्फ 2 ही बार उसका नाम चिल्लाया था, इस बात पर हम दोनों खूब हँसे ।
ऊपर चलते हुए मैं सोचने लगा कि अगर नहीं मिलेगी तो घर जाकर मुंह-हाथ धोकर एक नींद ले लूँगा । “मजा आ जायेगा फिर तो”, भीतर से आवाज आई । कभी-कभी पूरी कायनात आपके विरुद्ध हो जाती है । नूपुर सामने बैठी दिखाई दी । “बड़ी देर लगा दी आने में बाबा, पानी मिल गया” । उसने सरकारी स्कूल के हेड मास्टरईन की तरह पूछा ।
पानी मिल तो गया लेकिन बहुत ज्यादा नीचे जाना पड़ा पानी लेने । “आप कहाँ चली गयी थी मैं नीचे ढूंढ रहा था, एक बार तो मुझे लगा कि भालू-वालू का चक्कर तो नहीं हो गया” । “मैं तो यहीं थी और आप तो चाहते ही हो कि सच में मुझे भालू ले ही जाये” । “अरे नहीं ऐसी बात नहीं है मैं भला ऐसा क्यूँ चाहूँगा”, भीतर से “झूठे” का इको साउंड गूंजा ।
चलते हुए हमने गद्दियों के मिलने की उम्मीदें छोड़ दी थी लेकिन दूर पहाड़ पर भेड़े-ही-भेड़े दिखाई देते ही मैंने नूपुर को बोल दिया “चाय का जुगाड़ हो गया” ।
सुबह जल्दी ट्रैकिंग पूरे दिन के टाइम टेबल तो तबाह कर देती है । और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि ट्रैकिंग तो रोज हो जाये लेकिन जल्दी उठना नहीं । इतनी जल्दी न फ्रेश हो पाते हैं, पूरे दिन पेट में गुडूर-गुडूर होती रहती है और पीछे से निकलती गैसें जो ओजोन लेयर में छेद करने पर तुली रहती हैं । और ये सर्दियाँ सबसे पहले नाक की नकपटी पर पिस्तौल रख कर उसे डर से बहने पर मजबूर कर देती हैं । आज जंगल शांत था लेकिन मेरी नाक नहीं । सुपूड-सुपूड की कैसेट पूरे दिन बजती रही । बाकी मैंने भी इस प्रक्रिया में अपना भरपूर योगदान दिया मीटर को हर 5 सैकेंड बाद ऊपर खींचकर ।
सवा नौ बजे हम गद्दियों के डेरे पर पहुंच गये जहां उन्होंने एक-एक गिलास पानी पिलाकर हमारा स्वागत किया । बुजुर्ग गद्दी अंकल जिनका चेहरा अर्नाल्ड स्वाज्नेगर जैसा लग रहा था ने हमारे सामने खाने की पेशकश रखी । हमने उनका धन्यवाद किया और अपने साथ लाये खाने का जिक्र किया । वहां करीबन 6-7 गद्दी थे जिन्होंने एक साथ हम दोनों को रास्ते के बारे में बताना शुरू कर दिया । कोई बोल रहा है नीचे से जाना, कोई बोल रहा है ऊपर से जाना, किसी के हिसाब से पानी नहीं मिलेगा रास्ते में, किसी के हिसाब से सीधे हाथ से जाना तो किसी के हिसाब से हम अगर उल्टे हाथ से नहीं गये तो समझो गयी भैंस पानी में ।
रेल-पेल मच गयी कुछ समझ नहीं आया फिर एंड में जब सब बोल चुके तब अर्नाल्ड ने बोलना शुरू किया मैंने उनकी बात पूरे ध्यान से सुनी । “यहाँ से धार से सीधा ऊपर जाना, फिर माल वाला (भेड़ों वाला) रास्ता मिलेगा जिसे पकड़कर ऊपर चलते जाना, (2 छोटी खांसी), वो टिब्बी (चोटी) दिखाई दे रही है उसके नीचे से जाना, फिर दूसरी टिब्बी आयेगी उसके ऊपर से जाना, फिर तीसरी टिब्बी आयेगी वहां से पहले नीचे फिर ऊपर चढ़ना, चौथी टिब्बी की धार पर चलना और फिर लाल झंडी आ जाएँगी, वहीं बैठे हैं हनुमान । पानी की खोज मत करना तुम्हे नहीं मिलेगा । 2 दिन पहले ही 2 विदेशी भी ऊपर गयें हैं । "ये कौनसे ऊपर की बात कर रहे हैं", आलसी ने पूछा ।
छोटे गद्दी ने कहा कि आप लोगों को कम-से-कम 2 घंटे लग जायेंगे हनुमान तक पहुंचने में, और अर्नाल्ड की माने को डेढ़ घंटे में हम हनुमान तक पहुंच जायेंगे अगर बिना रुके तेज चले तो । छोटे गद्दी ने वापसी में आकर मिलने को कहा ताकि हमे बकरी के दूध की चाय पिला सके । हमने वादा करके वहां से साढ़े नौ बजे चलना शुरू किया सभी को धन्यवाद बोलकर ।
जब से चले हैं तब से चढ़ाई के अलावा सिर्फ गद्दी मिले हैं । यहाँ से चढ़ाई दुगनी तीखी हो गयी है । अजीब सी घास पूरे कपड़ों पर लिपट रही है और चुभ रही है । जब कोई चारा न रह गया तो भीतर बैठा आलसी लड़का भी कहीं घूमने निकल गया उसके जाते ही मेरा भी इंजन गर्म हो गया और अब माइलेज भी ठीक आने लगी ।
2360 मी. पर रूककर हमने एक-एक जीवनदायी पराठा खाया । थोड़े से किशमिश, कुछ घूंट पानी और गाड़ी को सीधा चौथे गियर में डाल दिया । लेकिन लगातार आते बोल्डरों ने स्पीड को थोड़ा स्लो कर दिया ऊपर से अब जब घने जंगल में पहुंच गये तो मुझे भालू के भय ने दबोच लिया । इसलिए मैं जूतों से आवाज करते-करते चलने लगा और उस वक़्त तो कुछ ज्यादा ही खांसने लगा । अब समझ पाना मुश्किल था कि भालू की वजह से खांसी आ रही है या दिवाली की मिठाइयों की वजह से । मैंने भालू को जिम्मेवार माना ।
जंगल के इस हिस्से में पगडण्डी कोई फिक्स नहीं है, यह रास्ता सिर्फ भेड़ों द्वारा ही इस्तेमाल किया जाता है इसलिए यहाँ इतनी फैशनेबल ट्रेल्स है जितनी कहीं और नहीं । यहाँ अर्नाल्ड की गाइड-लाइनस बहुत काम आयीं । पूरे रास्ते हम सिर्फ एक ही बार रास्ता भटके । चलते हुए कब पहली दूसरी तीसरी और चौथी टिब्बी आई पता ही न चला लेकिन जो पता चला वो ये था कि चढ़ाई ने पैरों को गाली देने पर मजबूर कर दिया था । काश पैर बोल पाते तो शायद हाथ-पैर एक कर देते ।
दूर से जैसे ही मुझे हनुमानगढ़ के लाल झंडे दिखाई वैसे ही मैंने नुपुर को खुशखबरी पहुंचाई । हम दोनों ही थकान से पस्त थे लेकिन यहाँ अचानक पहुंचने पर बहुत ख़ुशी हुई । ख़ुशी तब त्यौहार में बदल गयी जब यहाँ से हमने 360 डिग्री का स्वर्णिम दृश्य देखा ।
यहाँ हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित की गयी है स्थानियों द्वारा । मूर्ति को देखकर थोड़ा अचरज हुआ क्योंकि हनुमान जी को मैंने कभी भी जीभ निकालते हुए और दोनों हाथों को हैंड्स उप की स्थिति में नहीं देखा । बाद में पता चला कि आज से बहुत समय पहले किसी ने एक मूर्ति को गढ़ा था बाद में स्थानियों ने इसे केसरिया रंग में रंगकर हनुमान बना दिया । और हनुमान के साथ गढ़ इसलिए लगा क्योंकि यह स्थान चेक पोस्ट था बड़ा भंगाल गाँव के राजा का । वैसे इस इलाके के आसपास ऐसे गढ़ काफी सारे देखे जा सकते हैं ।
हनुमानगढ़ पीक की ऊँचाई 3079 मी. है, यहाँ के कोरडीनेट्स 32.081431, 76.755434 हैं । हम यहाँ 11:30 पर पहुंचे, यहाँ पहुंचने में हमें 4 घंटे 10 मिनट का समय लग गया । बीड़ से हनुमानगढ़ की पैदल दूरी लगभग 8.5 किमी. है जिसमें हाईट गेन 1528 मी. होता है । चोटी इतनी रमणीय है कि यहाँ से बहुत सारी जगहें दिखाई देती हैं जैसे, सारी पास, नोहरू पास, थम्सर पास, जालसू पास, बड़ाग्राम, राजगुंदा गाँव, चैना पास, बिलिंग, और मौसम साफ़ होता तो भूभू जोत भी दिखाई देता ।
यहाँ पहुंचने के कई रास्ते हैं जैसे कि पहला है बिलिंग से सीधा ऊपर पैदल, दूसरा बिलिंग और चैना पास के बीच स्थित खड्ड से, तीसरा राजगुन्दा से चौथा सतबहनी मंदिर से वाया धत्ती और पांचवे से हम चढ़े जो इन सभी में मुश्किल और लम्बा है ।
30 मिनट यहाँ बिताकर हमने 12 बजे हनुमान जी से विदाई ली । वापसी के पहले ही कदम के साथ भीतर बैठा आलसी लड़का फिर से वापस आ गया । उसके हिसाब से अगर मैं तेजी से नीचे उतरूं तो आराम करने का बहुत टाइम मिलेगा, उसके “क्या बोलता है”, के जवाब में मैं सिर्फ यही बोल पाया कि “चल कोशिश करते हैं” । वैसे भी डॉ. साब के आठ घंटे वाले श्राप को तोड़ने के लिए हमारे पास अभी भी तीन शेष हैं ।
नुपुर को रनिंग बहुत पसंद है लेकिन मुझे सिर्फ ट्रैकिंग । रनिंग-वानिंग से अपना कोई नाता नही है लेकिन कभी-कभी उतराई में दौड़ते हुए उतरने का फायदा जल्दी पहुंचना हो जाता है । धीरे-धीरे पैरों को चलाना शुरू किया, कभी थोड़ा दौड़ना और कभी थोड़ा चलना । स्पीड थोड़ा और तेज होने का कारण गद्दियों की चाय भी थी जो जल्द ही हमारे पेट में होगी वाया मुंह । इस तरह रन-वाक करते-करते हम गद्दियों के डेरे पर एक बजे पहुंच गये । जहां न चाय थी और न ही कोई गद्दी । जाते हुए उन्होंने बता ही दिया था कि माल को वापस डेरे में 3 बजे लायेंगे । चाय के लिए इन्तार किया जा सकता है लेकिन आज नहीं जब हमे आठ घंटे के श्राप को भी तोड़ना है । यहाँ एक-एक लोटा पानी पीकर आगे बढ़ गये ।
नीचे उतरते हुए हम 2 बार रास्ता भटके जिस वजह से 20-30 मिनट खराब हो गये और कई सो कैलोरी भी । समय की बर्बादी तो हमे तेज चलकर ही पूरी करनी होगी लेकिन कैलोरी की भरपाई हमने तभी कर डाली, एक स्थान पर रूककर बचे हुए पराठे खाकर । यहाँ बैठकर दोनों ने अपने-अपने गम बांटे । नुपुर ने बताया कि उसका घुटना बहुत दर्द कर रहा है और मैंने बताया कि मेरा उल्टा घुटना, उल्टे पैर का अंगूठा, सीधे पैर का एंकल । फाइनली दोनों के विचार दर्द पर जाकर मिले ।
जैसे ही किशमिश और पराठों ने अपना काम शुरू किया वैसे ही हमने भी अपने काम में तेजी लायी । भीतर बैठा आलसी लड़का अब एक्टिव हो गया था और हर कदम पर बोले ही जा रहा था “येस, कमोन बॉय, यू कैन डू इट, रन फ़ास्ट” । पता नहीं क्यूँ वो इंग्लिश में बोल रहा था । उसे चुप कराने के लिए मुझे भी इंग्लिश में “शट उप” बोलना पड़ा वैसे मैं उसे शत्रु स्टाइल में “खामोश” बोलना चाहता था पर फिर वो मेरा मजाक बनाता ।
दौड़-भाग दोपहर सवा दो बजे खत्म हुई जब हम दोनों रोड़ पर पहुंच गये । हनुमानगढ़ से बीड़ पहुंचने में हमें मात्र 2 घंटे 15 मिनट का समय लगा । इस ट्रेक की आने-जाने की कुल दुरी 17 किमी. है जिसे कवर करने में हमे 6 घंटे 55 मिनट का कुल समय लगा मतलब श्राप से लगभग 1 घंटे 5 मिनट पहले । दोनों की हालत नाजुक थी । नीचे पहुंचकर हमने मुश्किल से ही कोई बात की, चुपचाप घर आ गये और फ्रेश होने की तैयारियां करने लगे ।
जहां मैं थका हुआ था वहीँ भीतर बैठे आलसी लड़के ने पैर पसारकर मुझे भी आराम करने को कहा । हिमाचल की सर्दियों में अगर पसीना आ जाएं और आपको धूप में बीन-बैग पर लेटने का मौका मिल जाये तो समझ जाना आपने पक्का कोई अच्छे कर्म कियें हैं । जहां मैं सिर्फ आँखें बंद करके पूरे शरीर के दर्द का जायजा लेता रहा वहीं आलसी लड़का भीतर खराटे लेता दिखा ।
तो साहिबान यह थी हनुमानगढ़ की एकदिनी ट्रैकिंग जिसपर एक रुपया भी खर्च नहीं हुआ । आशा करता हूँ पसंद आयेगी । आलसी लड़का अब सोने को बोल रहा है, तो ठीक है भाई लोगों शुभ रात्रि ।
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यहाँ तक जंगली सूअर पाए जाते हैं जिनके दांत होते हैं |
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गद्दियों की मेहनत का नतीजा....एक शानदार रास्ता |
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फोटो के बीच में दिखता हनुमानगढ़ |
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गद्दी निवास |
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टीम गद्दी |
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पूरा रास्ता धार पर चलता है |
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धौलाधार रेंज सामने वाली रिज के पीछे |
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और पहुंच गये |
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गढ़ में खड़े हनुमान जी |
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हनुमानगढ़ |
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Photo Credit : नुपुर |
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हनुमानगढ़ से दिखाई देते पास और स्थान (Photo Credit : नुपुर) |
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बढ़िया रोहित भाई
ReplyDeleteशायद किसी दिन मैं भी चलूँ तुम्हारे साथ कहीं..
खुशनसीबी का इंतजार रहेगा...
Deleteबहुत बढिया भाई जी
ReplyDeleteशुभकामनाएं आपको शर्मा जी...
Deleteबहुत बढिया रोहित ।
ReplyDeleteत्यागी साहब के शब्दों का स्वागत है।
Deleteबहुत बढ़िया भाई जी।
ReplyDeleteआलसी लड़के की जितनी कम सुनो उतना ही सही है जी
हा हा....लेकिन ये आलसी लड़का मेरा सुपर फेवरेट है । इसको नहीं छोड़ सकता...
Deleteट्रैकिंग में मेरा फेवरेट कोई है तो कल्याणा है।
ReplyDeleteसम्मान, प्रतिष्ठा और संस्कार आपके लिए । शुभकामनाएं संदीप भाई...
Deleteभाई बीड़ मे कहां रूके हो ?? हम भी बीड़ घाटी से हैं।मेहमान नवाजी का मौका दीजिए। बहुत सी चीजों में आदर्श है आपका ये आलसी लड़का अपना।
ReplyDeleteअर्जुन भाई राम राम, भाई जी बीड में बस स्टैंड के पास।
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