श्रीखंड महादेव कैलाश एक पवित्र तीर्थयात्रा है । यह स्थान हिन्दू भगवान शिव से सम्बन्धित है और पांच कैलाशों में से एक गिना जाता है । अति दुर्गम रास्ते पर चलते हुए श्रद्धालु समुन्द्र तल से 5140 मी. (16864 फुट) की ऊंचाई पर स्थित इस खंडित शिवलिंग तक पहुंचते हैं । इस पर्वत के दायीं दिशा में स्थित है ‘किन्नर कैलाश’ और बायीं दिशा से यह ‘ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क’ से जुड़ा है । क्या आपको पता है श्रीखंड महादेव 6 अलग-अलग रास्तों से पहुंचा जा सकता है । आईये जानते हैं यह 6 रास्ते कौन-कौन से हैं ।
क्या है पौराणिक महत्व : श्रीखंड महादेव की पौराणिकता मान्यता है कि भस्मासुर राक्षस ने अपनी तपस्या के बदले भगवन शिव से वरदान मांगा था कि वह जिस पर भी अपना हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा । राक्षस प्रवृति के कारण उसने माता पार्वती से शादी करने की ठान ली । इसलिए भस्मापुर ने भगवान शिव के ऊपर हाथ रखकर उन्हें भस्म करने की योजना बनाई । निरमंड स्थित देवधांक गुफा में प्रवेश करके भगवन शिव श्रीखंड पहुंचे और श्रीखंड शिला के रूप में समाधिस्त हो गए । दूसरी तरफ भगवान विष्णु ने भस्मासुर की मंशा को नष्ट करने के लिए माता पार्वती का रूप धारण किया और फलस्वरूप उन्होंने भस्मासुर को अपने साथ नृत्य करने के लिए राजी किया। नृत्य के दौरान भस्मासुर ने अपने ही सिर पर हाथ रख लिया और भस्म हो गया ।
यह स्थान आज भी भीम डुआरी में लाल रंग की धरती के रूप में देखा जा सकता है । भस्मासुर के समाप्त हो जाने के बाद भी जब भगवान शिव श्रीखंड रूपी शिला से बाहर नहीं आये तब गणेश, कार्तिकेयन और माँ पार्वती ने इसी स्थान पर घोर तपस्या की तब जाकर महादेव श्रीखंड शिवलिंग रूपी चट्टान को खंडित करके बाहर आये ।
श्रीखंड महादेव एक 72 फीट ऊँचा खंडित शिवलिंग है । प्रत्येक साल यह यात्रा सावन मास में आधिकारिक तौर पर मात्र 2 हफ़्तों के लिए खुलती है । साल 2014 से यह यात्रा प्रशासन के हाथ में चली गयी है जिसके तहत सभी यात्रियों का यात्रा पंजीकरण सिंहगाड में होता है । अभी तक पंजीकरण के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है ।
श्रीखंड महादेव पहुंचने के लिए मुख्यतः 2 ही मार्गों का इस्तेमाल किया जाता रहा है परन्तु कुछ घुमक्कड़ तीसरे रास्ते से भी अवगत होंगे । इस साल (2017) जब मैंने यह यात्रा पूरी करी तब कई प्रकार की जानकारी हाथ लगी । स्थानियों और गद्दियों से प्राप्त जानकारी के हिसाब से श्रीखंड महादेव 6 अलग-अलग रास्तों से पहुंचा जा सकता है ।
श्रीखंड पहुंचने का पहला मार्ग : निरमंड – बागीपुल - जाओं - क्या आप यकीन मानोगे कि श्रीखंड महादेव पहुंचने का यही रास्ता सबसे आसान है । जितने भी लोगों ने श्रीखंड के दर्शन इस रास्ते से किये हैं वो जानते हैं कि यह रास्ता कितना आसान है लेकिन अगर इसकी तुलना दूसरे रास्तों से करें तो यही रास्ता बचता है जो आपको सुगम महसूस होगा ।
जाओं गाँव से शुरू होती इस यात्रा की श्रीखंड महादेव तक एकतरफा दूरी लगभग 25.5 किमी. है । जाओं समुन्द्र तल से 1949 मी. पर स्थित और श्रीखंड महादेव की ऊँचाई 5140 मी. है । यात्रा के इस मार्ग से जाने पर सिंहगाड़ में प्रत्येक यात्री का ऑफलाइन पंजीकरण होता है ।
आधिकारिक तौर पर शुरू हुई यात्रा में यात्रियों को विभिन्न प्रकार की सहायता प्राप्त होती हैं जैसे मेडिकल सहायता, सर्च एंड रेस्क्यू, स्थानीय पुलिस, लंगर और कई स्थानों पर रहने और खाने की निशुल्क व्यव्स्था । पगडण्डी की कम चौड़ाई और लगातार खड़ी चढ़ाई के कारण अभी तक इस मार्ग पर खच्चर व घोड़ों की सुविधा मौजूद नहीं है । पिछले कुछ सालों से बढती श्रधालुओं की संख्या ने स्थानीय लड़कों को पोर्टर व गाइड बनकर अतिरिक्त कमाई करने का अवसर प्रदान किया है ।
जाओं कैसे पहुंचे : दिल्ली से शिमला की रोड़ दूरी 350 किमी. है और शिमला से दत्तनगर की दूरी 125 किमी. है । इक्चुक यात्री दिल्ली से वॉल्वो या आर्डिनरी बस (403 रु. प्रति-व्यक्ति किराया) से लगभग 12 घंटे के सफ़र के बाद दत्तनगर पहुंच सकते हैं । दत्तनगर से हर घंटे सरकारी बस बागीपुल जाती है जिसका किराया प्रति-व्यक्ति 50-60 रु. रहता है । दत्तनगर से बागीपुल की दूरी लगभग 41 किमी. है और बागीपुल से जाओं की दूरी मात्र 7 किमी. है । सभी प्रकार की बस सेवा सिर्फ बागीपुल तक ही सीमित है । बागीपुल से आगे-जाने के लिए आपको स्थानीय गाड़ियों से लिफ्ट या टैक्सी बुक करनी होगी जिसका किराया 100-150 रु. है ।
श्रीखंड जाते समय प्राकृतिक शिव गुफा, निरमंड में सात मंदिर, जाओं में माता पार्वती सहित नौ देवियां, परशुराम मंदिर, दक्षिणेश्वर महादेव, हनुमान मंदिर अरसु, आदि स्थानों के दर्शन किये जा सकते हैं ।
यात्रा मार्ग पर कहां रुकें : पार्वती बाग़ तक प्रसाशन और स्थानियों की ओर से कई स्थानों पर यात्रियों के लिए निशुल्क रहने और खाने की सुविधा उपलब्ध है । लंगर की व्यव्स्था निरमंड, जाओं, सिंहगाड़, थाचडू, और भीम डुआरी में सुनिश्चित की गई है । निरमंड, जाओं और सिंहगाड़ में यात्रियों के लिए निशुल्क ठहरने की व्यव्स्था भी है । थाचडू और भीम डुआरी में सीमित टेंटों की वजह से ‘पहले आओ पहले पाओ’ के आधार पर लंगर वाले ठहरने की सुविधा उपलब्ध कराते हैं । इस यात्रा का अंतिम पढ़ाव पार्वती बाग़ है जिसे साल 2017 से आपातकालीन स्थिति के लिए बचाकर रखा गया है । यहाँ सिर्फ वृद्ध और उन यात्रियों को शरण मिलती है जिन्हें श्रीखंड महादेव से लौटते हुए देर हो जाती है । यहाँ प्राइवेट टेंट व खाना इसलिए गुज़ारिश है कि दर्शन वाले दिन अपने साथ कम-से-कम 1000 रु. नकद रखें ।
यह तो हुई प्रसाशन और लंगर वालों की बात, अब बात करते हैं प्राइवेट टेंटों की । प्राइवेट टेंट अपनी भूमिका ब्राटी नाला के बाद निभाते हैं । खुम्बा डुआर, थाटी बील, थाचडू, तनैन गई, काली टॉप, भीम तलाई, कुंशा, भीम डुआरी और पार्वती बाग़ इन सभी जगहों पर यात्रियों को प्राइवेट टेंट की सुविधा मिलती है ।
मोबाइल नेटवर्क की उपलब्धता : इस दुर्गम मार्ग पर काली घाटी को छोड़कर बाकी लगभग सभी जगहों पर नेटवर्क मौजूद है । इस इलाके में बी.एस.एन.एल (BSNL), एयरटेल, और आईडिया का नेटवर्क मिलता है । फ़ोन में बैटरी हो तो जाओं, सिंहगाड़, खुम्बा डुआर, थाटी बील, थाचडू, काली टॉप से अपने परिजनों से बात होनी सम्भव है ।
काली घाटी के बाद नेटवर्क नहीं है लेकिन मजे की बात है भीम बही पर नेटवर्क उपलब्ध है । इस साल कुछ यात्रियों ने तो सकुशल दर्शन का समाचार अपने परिजनों को श्रीखंड के सामने से दिया । बिजली सिंहगाड़ से आगे कहीं नहीं है । कुछ स्थानों पर जरनेटर के द्वारा बिजली मौजूद है जैसे थाचडू, भीम डुआरी, और पार्वती बाग़ । ध्यान रखें मोबाइल का नेटवर्क खराब मौसम पर निर्भर करता है और कैमरा नहीं होने की स्थिति में मोबाइल के साथ पॉवर बैंक अवश्य रखें ।
श्रीखंड पहुंचने का तीसरा मार्ग : बंजार - बठाहड़ – इस साल श्रीखंड से लौटते समय थाचडू में एक यात्री मिला, जिसका नाम पी. आर. मेहता है, उनसे बात करके पता चला कि वो बठाहड़ (2050 मी.) के रहने वाले हैं और बठाहड़ से ही श्रीखंड महादेव के दर्शन करें हैं ।
अब वह वापसी जाओं के रास्ते से कर रहें हैं । जहां सबकी हालत लगातार होती बारिश और लम्बे ट्रैक के बाद बेहद खराब थी वहीं यह साहब जाओं पहुंचकर आज ही बश्लेऊ जोत (3277 मी.) पार करके अपने घर बठाहड़ पहुंचेंगे, कमाल की स्प्रिट है पहाड़ी लोगों की ।
मेहता साहब की माने तो बंजार-बठाहड़ से श्रीखंड महादेव के दर्शन करना बाकी दोनों रास्तों से कहीं ज्यादा आसान है । पहाड़ी लोगों का आसान कितना आसान होता है यह हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं तो जब तक इस रास्ते पर खुद जाकर इसकी आसानी का पता न चल जाये तब तक इसे कठिन ही मानना बेहतर होगा वैसे भी जो रास्ता हिमालय में 5000 मी. से ऊपर ले जाता हो वो आसान तो बिल्कुल भी नहीं हो सकता ।
यह मार्ग भी मुख्यतः स्थानियों के द्वारा ही प्रयोग किया जाता रहा है । इन्टरनेट पर इसके बारें में कहीं भी किसी भी प्रकार की कोई जानकारी मौजूद नहीं है । ध्यान रहे इस मार्ग पर किसी भी प्रकार की कोई सुविधा मौजूद नहीं है इसलिए यात्रियों को टैंट, स्लीपिंग बैग, और खाने के सामान को खुद ही उठाना होगा वैसे स्थानीय भी आपकी इस मामले में मदद कर सकते हैं अगर वो उपलब्ध हो तो ।
यहाँ इस मार्ग के बारें में जितनी भी जानकारी दी जा रही है उसका समस्त श्रेय मेहता साहब को ही जाता है ।
हिमालय का यह हिस्सा ‘ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क’ का हिस्सा है और ‘फलाचन घाटी’ में स्थित है । बठाहड़ गाँव के साथ-साथ ‘फलाचन नदी’ बहती है जिसका उद्गम स्थान श्रीखंड के ग्लेशियरों को माना जाता है और वहीं कहीं स्थित है स्थानीय देवता ‘फलाच’ का मंदिर । मेहता जी कहते हैं कि स्थानीय इस मार्ग से श्रीखंड के दर्शन 3 दिन में करते हैं ।
बठाहड़ कैसे पहुंचे : शिमला से बठाहड़ पहुंचने का आसान और छोटा रास्ता NH-5/NH-305 होकर जाता है जिसकी वाहन योग्य दूरी 191 किमी. है । यह रास्ता शिमला-ठियोग-कुमारसैन-आनी-जलोड़ी पास और बंजार होकर बठाहड़ पहुंचता है ।
कुल्लू से भी बंजार पहुंचा जा सकता है, वहां से यह दूरी मात्र 40 किमी. ही है । बंजार से बठाहड़ की मोटरएबल दूरी 19 किमी. है । बंजार की ऊँचाई 1356 मी. और बठाहड़ 2050 मी. पर स्थित है । बठाहड़ इस मार्ग का बेस कैंप है जहां से रास्ता आगे पैदल शुरू होता है |
बठाहड़ मार्ग की जानकारी : बठाहड़ गाँव समुन्द्र तल से 2050 मी. की ऊँचाई पर स्थित है । यहीं से पैदल यात्रा शुरू होती है । इस यात्रा का पहला पढ़ाव फलाचन नदी के उद्गम पर आता है जहां फलाच देवता का मंदिर भी स्थित है ।
यहाँ की ऊँचाई 3670 मी. के आसपास है । पहले दिन लगभग 1650 मी. का हाईट होता है । दिन भर चलते यात्रियों को इस मार्ग पर कई जगह गद्दियों के डेरे मिलते हैं ।
दूसरा दिन यात्रा सुबह जल्दी शुरू होती है । इस दिन की शुरुआत ही तीखी चढ़ाई से होती है जिसके तहत 2-3 किमी. की दूरी तय करने में ही करीबन 650 मी. का हाईट गेन हो जाता है । मेहता साब ने बताया कि ऊपर पहुंचकर यह रास्ता 2 मार्गों की ओर घूमता है ।
पहला यहाँ से रास्ता नीचे उतरकर भीम तलाई और कुंशा में मिलता है और दूसरा ऊपर से ही भीम डुआरी पहुंचता है । दूसरे दिन का ठहराव भीम डुआरी में होता है जहां यात्री दिन भर की थकान के बाद गर्मागर्म खाना खाकर अपने आप को अच्छी नींद के हवाले करते हैं ।
तीसरा दिन श्रद्धालु भीम डुआरी से जल्दी चलकर श्रीखंड महादेव के दर्शन करते हैं । तो यह थी जानकारी श्रीखंड महादेव पहुंचने के तीसरे मार्ग की ।
तो यह थी वह जानकारी जो इस साल (2017) में मुझे स्थानियों और गद्दियों से प्राप्त हुई । साल 2018 में ऊपर लिखे कुछ मार्गों से इस यात्रा को सम्पन्न करने की योजना है । आशा करता हूँ 2018 में कम-से-कम 3 मार्गों से तो परिचित हो ही जाऊंगा ।
उपरोक्त 6 मार्गों में से मैंने मात्र जाओं वाले रास्ते को ही देखा है । पाठकों व घुमक्कड़ों से अनुरोध है कि इस जानकारी को तब तक पुख्ता न समझें जबतक मैं या आपमें से कोई इन मार्गों का स्वयं अनुभव न कर लें ।
अगर किसी पाठक को उपरोक्त जानकारी या स्थान के नाम में कोई त्रुटि दिखाई देती है तो कृपया अपनी टिप्पणी कमेन्ट बॉक्स में अवश्य दर्ज कराएँ, सही जानकारी को तुरंत लेख में शामिल किया जायेगा ।
आप सभी से अनुरोध करता हूँ कि जिसके पास भी उपरोक्त मार्गों के बारे में सही जानकारी मौजूद है वो कमेंट बॉक्स में उसे लिखकर इस लेख को पूर्ण करने में योगदान दें ।
धन्यवाद यहाँ आने के लिए और आशा करता हूँ कि आपको यह लेख पसंद आया होगा ।
श्रीखंड महादेव कैलाश |
क्या है पौराणिक महत्व : श्रीखंड महादेव की पौराणिकता मान्यता है कि भस्मासुर राक्षस ने अपनी तपस्या के बदले भगवन शिव से वरदान मांगा था कि वह जिस पर भी अपना हाथ रखेगा वह भस्म हो जाएगा । राक्षस प्रवृति के कारण उसने माता पार्वती से शादी करने की ठान ली । इसलिए भस्मापुर ने भगवान शिव के ऊपर हाथ रखकर उन्हें भस्म करने की योजना बनाई । निरमंड स्थित देवधांक गुफा में प्रवेश करके भगवन शिव श्रीखंड पहुंचे और श्रीखंड शिला के रूप में समाधिस्त हो गए । दूसरी तरफ भगवान विष्णु ने भस्मासुर की मंशा को नष्ट करने के लिए माता पार्वती का रूप धारण किया और फलस्वरूप उन्होंने भस्मासुर को अपने साथ नृत्य करने के लिए राजी किया। नृत्य के दौरान भस्मासुर ने अपने ही सिर पर हाथ रख लिया और भस्म हो गया ।
यह स्थान आज भी भीम डुआरी में लाल रंग की धरती के रूप में देखा जा सकता है । भस्मासुर के समाप्त हो जाने के बाद भी जब भगवान शिव श्रीखंड रूपी शिला से बाहर नहीं आये तब गणेश, कार्तिकेयन और माँ पार्वती ने इसी स्थान पर घोर तपस्या की तब जाकर महादेव श्रीखंड शिवलिंग रूपी चट्टान को खंडित करके बाहर आये ।
श्रीखंड महादेव एक 72 फीट ऊँचा खंडित शिवलिंग है । प्रत्येक साल यह यात्रा सावन मास में आधिकारिक तौर पर मात्र 2 हफ़्तों के लिए खुलती है । साल 2014 से यह यात्रा प्रशासन के हाथ में चली गयी है जिसके तहत सभी यात्रियों का यात्रा पंजीकरण सिंहगाड में होता है । अभी तक पंजीकरण के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया शुरू नहीं हुई है ।
श्रीखंड महादेव पहुंचने के लिए मुख्यतः 2 ही मार्गों का इस्तेमाल किया जाता रहा है परन्तु कुछ घुमक्कड़ तीसरे रास्ते से भी अवगत होंगे । इस साल (2017) जब मैंने यह यात्रा पूरी करी तब कई प्रकार की जानकारी हाथ लगी । स्थानियों और गद्दियों से प्राप्त जानकारी के हिसाब से श्रीखंड महादेव 6 अलग-अलग रास्तों से पहुंचा जा सकता है ।
श्रीखंड पहुंचने का पहला मार्ग : निरमंड – बागीपुल - जाओं - क्या आप यकीन मानोगे कि श्रीखंड महादेव पहुंचने का यही रास्ता सबसे आसान है । जितने भी लोगों ने श्रीखंड के दर्शन इस रास्ते से किये हैं वो जानते हैं कि यह रास्ता कितना आसान है लेकिन अगर इसकी तुलना दूसरे रास्तों से करें तो यही रास्ता बचता है जो आपको सुगम महसूस होगा ।
जाओं गाँव से शुरू होती इस यात्रा की श्रीखंड महादेव तक एकतरफा दूरी लगभग 25.5 किमी. है । जाओं समुन्द्र तल से 1949 मी. पर स्थित और श्रीखंड महादेव की ऊँचाई 5140 मी. है । यात्रा के इस मार्ग से जाने पर सिंहगाड़ में प्रत्येक यात्री का ऑफलाइन पंजीकरण होता है ।
आधिकारिक तौर पर शुरू हुई यात्रा में यात्रियों को विभिन्न प्रकार की सहायता प्राप्त होती हैं जैसे मेडिकल सहायता, सर्च एंड रेस्क्यू, स्थानीय पुलिस, लंगर और कई स्थानों पर रहने और खाने की निशुल्क व्यव्स्था । पगडण्डी की कम चौड़ाई और लगातार खड़ी चढ़ाई के कारण अभी तक इस मार्ग पर खच्चर व घोड़ों की सुविधा मौजूद नहीं है । पिछले कुछ सालों से बढती श्रधालुओं की संख्या ने स्थानीय लड़कों को पोर्टर व गाइड बनकर अतिरिक्त कमाई करने का अवसर प्रदान किया है ।
जाओं कैसे पहुंचे : दिल्ली से शिमला की रोड़ दूरी 350 किमी. है और शिमला से दत्तनगर की दूरी 125 किमी. है । इक्चुक यात्री दिल्ली से वॉल्वो या आर्डिनरी बस (403 रु. प्रति-व्यक्ति किराया) से लगभग 12 घंटे के सफ़र के बाद दत्तनगर पहुंच सकते हैं । दत्तनगर से हर घंटे सरकारी बस बागीपुल जाती है जिसका किराया प्रति-व्यक्ति 50-60 रु. रहता है । दत्तनगर से बागीपुल की दूरी लगभग 41 किमी. है और बागीपुल से जाओं की दूरी मात्र 7 किमी. है । सभी प्रकार की बस सेवा सिर्फ बागीपुल तक ही सीमित है । बागीपुल से आगे-जाने के लिए आपको स्थानीय गाड़ियों से लिफ्ट या टैक्सी बुक करनी होगी जिसका किराया 100-150 रु. है ।
श्रीखंड जाते समय प्राकृतिक शिव गुफा, निरमंड में सात मंदिर, जाओं में माता पार्वती सहित नौ देवियां, परशुराम मंदिर, दक्षिणेश्वर महादेव, हनुमान मंदिर अरसु, आदि स्थानों के दर्शन किये जा सकते हैं ।
यात्रा मार्ग पर कहां रुकें : पार्वती बाग़ तक प्रसाशन और स्थानियों की ओर से कई स्थानों पर यात्रियों के लिए निशुल्क रहने और खाने की सुविधा उपलब्ध है । लंगर की व्यव्स्था निरमंड, जाओं, सिंहगाड़, थाचडू, और भीम डुआरी में सुनिश्चित की गई है । निरमंड, जाओं और सिंहगाड़ में यात्रियों के लिए निशुल्क ठहरने की व्यव्स्था भी है । थाचडू और भीम डुआरी में सीमित टेंटों की वजह से ‘पहले आओ पहले पाओ’ के आधार पर लंगर वाले ठहरने की सुविधा उपलब्ध कराते हैं । इस यात्रा का अंतिम पढ़ाव पार्वती बाग़ है जिसे साल 2017 से आपातकालीन स्थिति के लिए बचाकर रखा गया है । यहाँ सिर्फ वृद्ध और उन यात्रियों को शरण मिलती है जिन्हें श्रीखंड महादेव से लौटते हुए देर हो जाती है । यहाँ प्राइवेट टेंट व खाना इसलिए गुज़ारिश है कि दर्शन वाले दिन अपने साथ कम-से-कम 1000 रु. नकद रखें ।
यह तो हुई प्रसाशन और लंगर वालों की बात, अब बात करते हैं प्राइवेट टेंटों की । प्राइवेट टेंट अपनी भूमिका ब्राटी नाला के बाद निभाते हैं । खुम्बा डुआर, थाटी बील, थाचडू, तनैन गई, काली टॉप, भीम तलाई, कुंशा, भीम डुआरी और पार्वती बाग़ इन सभी जगहों पर यात्रियों को प्राइवेट टेंट की सुविधा मिलती है ।
यात्रा के दौरान ठहरने के स्थान, उनकी क्षमता और किराया दर्शाती तालिका |
मोबाइल नेटवर्क की उपलब्धता : इस दुर्गम मार्ग पर काली घाटी को छोड़कर बाकी लगभग सभी जगहों पर नेटवर्क मौजूद है । इस इलाके में बी.एस.एन.एल (BSNL), एयरटेल, और आईडिया का नेटवर्क मिलता है । फ़ोन में बैटरी हो तो जाओं, सिंहगाड़, खुम्बा डुआर, थाटी बील, थाचडू, काली टॉप से अपने परिजनों से बात होनी सम्भव है ।
काली घाटी के बाद नेटवर्क नहीं है लेकिन मजे की बात है भीम बही पर नेटवर्क उपलब्ध है । इस साल कुछ यात्रियों ने तो सकुशल दर्शन का समाचार अपने परिजनों को श्रीखंड के सामने से दिया । बिजली सिंहगाड़ से आगे कहीं नहीं है । कुछ स्थानों पर जरनेटर के द्वारा बिजली मौजूद है जैसे थाचडू, भीम डुआरी, और पार्वती बाग़ । ध्यान रखें मोबाइल का नेटवर्क खराब मौसम पर निर्भर करता है और कैमरा नहीं होने की स्थिति में मोबाइल के साथ पॉवर बैंक अवश्य रखें ।
जाओं से श्रीखंड महादेव का सैटलाइट नक्शा |
जाओं से श्रीखंड महादेव का दूरी व ऊँचाई का चार्ट |
श्रीखंड पहुंचने का दूसरा मार्ग : ज्यूरी - फांचा – इस साल (2017) श्रीखंड महादेव दर्शन की तैयारी मेरी इसी रास्ते से थी लेकिन बाद में ज्ञात हुआ कि इस मार्ग पर कहीं बादल फटने से परिस्थितियां सामान्य नहीं है, तो अब समस्त उम्मीद 2018 पर टिकी हैं । 5373 मी. के विशाल हाईट गेन के साथ फांचा से इस मार्ग की पैदल दूरी करीबन 18 किमी. है ।
इस घाटी के मुंहाने पर गानवी गाँव स्थित है जिसकी वजह से इस घाटी को स्थानीय भाषा में ‘गानवी वैली’ भी कहते हैं । ज्यूरी समुन्द्र तल से 1381 मी. पर स्थित है और यहीं से इस मार्ग का आरम्भ होता है । सीधी चढ़ाई और जमी बर्फ के खड़े टुकडें इसे अत्यधिक दुर्गम बनाते हैं ।
श्रीखंड पहुंचने के इस मार्ग पर गद्दियों के अलावा अन्य किसी भी प्रकार की कोई सुविधा मौजूद नहीं है जोकि इसे और मुश्किल बनाता है ।
नीचे इस मार्ग से सम्बन्धित जानकारी देने का प्रयास कर रहा हूँ, हो सकता है निम्नलिखित स्थानों के अलावा भी कुछ और स्थान हो जहां यात्रियों के लिए अतिरिक्त सुविधा मौजूद हो ।
फांचा कैसे पहुंचे : रामपुर से ज्यूरी की मोटरएबल दूरी 25 किमी. है । ज्यूरी से फांचा तक वाहन योग्य मार्ग बना हुआ है जिसकी कुल लम्बाई लगभग 15 किमी. है । फांचा समुन्द्र तल से 2214 मी. की ऊँचाई पर स्थित है । गाँव होने के कारण यहाँ रहने और खाने की सभी सुविधाएँ मौजूद हैं । फांचा में अंग्रेजों के समय का बना फारेस्ट रेस्ट हाउस भी है जिसमें 2 रूम के साथ 4 बैड हैं ।
फांचा मार्ग की जानकारी : श्रीखंड महादेव पहुंचने का यह दूसरा मार्ग ज्यूरी से शुरू होता है जिसे मुख्यतः सराहन व ज्यूरी के स्थानीय निवासी इस्तेमाल करते हैं । आइये लेते है जानकारी इस मार्ग पर स्थित कुछ स्थानों की जहां यात्री ठहर सकते हैं ।
फांचा : ज्यूरी के बाद फांचा इस मार्ग का पहला ऐसा स्थान है जहां यात्रियों को रहने और खाने की सुविधा उपलब्ध होती है । यहाँ तक सड़क बनी हुई है और यह स्थान ज्यूरी से लगभग 15 किमी. दूर है । फांचा से श्रीखंड की पैदल दूरी 18 किमी. है ।
फांचा कंदा : फांचा के बाद अगला स्थान फांचा कंदा आता है जोकि फांचा से 3 किमी. दूर है और 2450 मी. की ऊँचाई पर स्थित है । यहाँ यात्रियों को मानसून में भीगते हिमाचली गद्दियों के कुछ डेरे दिखाई दे सकते हैं । सभी परिचित है कि गद्दी किस प्रकार बीहड़ में लोगों की रहने से लेकर खाने तक की जिम्मेवारी उठा लेते हैं ।
अगर रास्ते के बारें में किसी को कोई संदेह हो तो गद्दियों से श्रीखंड महादेव मार्ग के बारें में जानकारी ली जा सकती है, आख़िरकार यह इलाका उनका ही तो है ।
फांचा कंडा में एक पुराना शेड भी मौजूद है, जो रहने योग्य है या नहीं अभी तक मुझे इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है । फांचा कंदा से थोड़ा आगे पानी का एकमात्र स्तोत्र है, यहाँ पानी की बोतल भरना न भूलें ।
सपावा : हो सकता है इस स्थान को किसी दूसरे नाम से पुकारा जाता हो लेकिन इस लेख के लिए मैं ‘सपावा’ ही इस्तेमाल करूंगा । फांचा कंदा के बाद अगला स्टेशन सपावा आता है । यहाँ तक रास्ता आपको घने जंगलों के गलियारों में घुमाता है ।
फांचा कंदा से सपावा की दूरी 5 के आसपास है और यह स्थान 3287 मी. पर स्थित है । सीजन में कुछ गद्दी यहाँ भी अपना डेरा डालते हैं नसीब अच्छा रहा तो उनसे भेंट हो सकती है ।
मजबौन : मजबौन सपावा से करीबन 6.5 किमी. दूर है । यहाँ की ऊँचाई 4000 मी. के आसपास है और इस 6 किमी. लम्बे रास्ते पर छोटे-बड़े बोल्डर-ही-बोल्डर बिखरे पड़े है । इस स्थान को रॉक गार्डन कहना ज्यादा अच्छा होगा । यह स्थान आखिरी स्थान होगा जहां आपको गद्दी भाई मिल सकते हैं ।
भीम बही - श्रीखंड महादेव : मजबौन से चलकर यह रास्ता भीम बही में जाकर मिलता है । मजबौन से भीम बही तक डंडा धार जैसी तीखी चढ़ाई है ऊपर से यात्रियों को खड़े ग्लेशियरों का भी सामना करना पड़ता है । इस स्थान से आगे सिर्फ जमी बर्फ होने के कारण हो सकता है रास्ता ढूंढने में यात्रियों को समस्या का सामना करना पड़े ।
भीम बही की ऊंचाई 4890 मी. है और मजबौन से लगभग 3 किमी. दूर है । यहाँ जूतों की अच्छी परीक्षा होती है जब हर कदम पर यात्रियों को ठोकर मार-मारकर पैर रखने के लिए ग्लेशियर पर जगह बनानी पड़ती है । इस स्थान पर डंडा आपका अच्छा साथ निभा सकता है बशर्ते आप उसे लायें हों ।
फांचा से श्रीखंड महादेव का सैटलाइट नक्शा |
फांचा से श्रीखंड महादेव का दूरी व ऊँचाई का चार्ट |
श्रीखंड पहुंचने का तीसरा मार्ग : बंजार - बठाहड़ – इस साल श्रीखंड से लौटते समय थाचडू में एक यात्री मिला, जिसका नाम पी. आर. मेहता है, उनसे बात करके पता चला कि वो बठाहड़ (2050 मी.) के रहने वाले हैं और बठाहड़ से ही श्रीखंड महादेव के दर्शन करें हैं ।
अब वह वापसी जाओं के रास्ते से कर रहें हैं । जहां सबकी हालत लगातार होती बारिश और लम्बे ट्रैक के बाद बेहद खराब थी वहीं यह साहब जाओं पहुंचकर आज ही बश्लेऊ जोत (3277 मी.) पार करके अपने घर बठाहड़ पहुंचेंगे, कमाल की स्प्रिट है पहाड़ी लोगों की ।
मेहता साहब की माने तो बंजार-बठाहड़ से श्रीखंड महादेव के दर्शन करना बाकी दोनों रास्तों से कहीं ज्यादा आसान है । पहाड़ी लोगों का आसान कितना आसान होता है यह हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं तो जब तक इस रास्ते पर खुद जाकर इसकी आसानी का पता न चल जाये तब तक इसे कठिन ही मानना बेहतर होगा वैसे भी जो रास्ता हिमालय में 5000 मी. से ऊपर ले जाता हो वो आसान तो बिल्कुल भी नहीं हो सकता ।
यह मार्ग भी मुख्यतः स्थानियों के द्वारा ही प्रयोग किया जाता रहा है । इन्टरनेट पर इसके बारें में कहीं भी किसी भी प्रकार की कोई जानकारी मौजूद नहीं है । ध्यान रहे इस मार्ग पर किसी भी प्रकार की कोई सुविधा मौजूद नहीं है इसलिए यात्रियों को टैंट, स्लीपिंग बैग, और खाने के सामान को खुद ही उठाना होगा वैसे स्थानीय भी आपकी इस मामले में मदद कर सकते हैं अगर वो उपलब्ध हो तो ।
यहाँ इस मार्ग के बारें में जितनी भी जानकारी दी जा रही है उसका समस्त श्रेय मेहता साहब को ही जाता है ।
हिमालय का यह हिस्सा ‘ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क’ का हिस्सा है और ‘फलाचन घाटी’ में स्थित है । बठाहड़ गाँव के साथ-साथ ‘फलाचन नदी’ बहती है जिसका उद्गम स्थान श्रीखंड के ग्लेशियरों को माना जाता है और वहीं कहीं स्थित है स्थानीय देवता ‘फलाच’ का मंदिर । मेहता जी कहते हैं कि स्थानीय इस मार्ग से श्रीखंड के दर्शन 3 दिन में करते हैं ।
बठाहड़ कैसे पहुंचे : शिमला से बठाहड़ पहुंचने का आसान और छोटा रास्ता NH-5/NH-305 होकर जाता है जिसकी वाहन योग्य दूरी 191 किमी. है । यह रास्ता शिमला-ठियोग-कुमारसैन-आनी-जलोड़ी पास और बंजार होकर बठाहड़ पहुंचता है ।
कुल्लू से भी बंजार पहुंचा जा सकता है, वहां से यह दूरी मात्र 40 किमी. ही है । बंजार से बठाहड़ की मोटरएबल दूरी 19 किमी. है । बंजार की ऊँचाई 1356 मी. और बठाहड़ 2050 मी. पर स्थित है । बठाहड़ इस मार्ग का बेस कैंप है जहां से रास्ता आगे पैदल शुरू होता है |
बठाहड़ मार्ग की जानकारी : बठाहड़ गाँव समुन्द्र तल से 2050 मी. की ऊँचाई पर स्थित है । यहीं से पैदल यात्रा शुरू होती है । इस यात्रा का पहला पढ़ाव फलाचन नदी के उद्गम पर आता है जहां फलाच देवता का मंदिर भी स्थित है ।
यहाँ की ऊँचाई 3670 मी. के आसपास है । पहले दिन लगभग 1650 मी. का हाईट होता है । दिन भर चलते यात्रियों को इस मार्ग पर कई जगह गद्दियों के डेरे मिलते हैं ।
दूसरा दिन यात्रा सुबह जल्दी शुरू होती है । इस दिन की शुरुआत ही तीखी चढ़ाई से होती है जिसके तहत 2-3 किमी. की दूरी तय करने में ही करीबन 650 मी. का हाईट गेन हो जाता है । मेहता साब ने बताया कि ऊपर पहुंचकर यह रास्ता 2 मार्गों की ओर घूमता है ।
पहला यहाँ से रास्ता नीचे उतरकर भीम तलाई और कुंशा में मिलता है और दूसरा ऊपर से ही भीम डुआरी पहुंचता है । दूसरे दिन का ठहराव भीम डुआरी में होता है जहां यात्री दिन भर की थकान के बाद गर्मागर्म खाना खाकर अपने आप को अच्छी नींद के हवाले करते हैं ।
तीसरा दिन श्रद्धालु भीम डुआरी से जल्दी चलकर श्रीखंड महादेव के दर्शन करते हैं । तो यह थी जानकारी श्रीखंड महादेव पहुंचने के तीसरे मार्ग की ।
बठाहड़ से श्रीखंड महादेव का सैटलाइट नक्शा |
बठाहड़ से श्रीखंड महादेव का ऊंचाई चार्ट |
श्रीखंड पहुंचने का चौथा मार्ग : गुशैणी – बनायाग मार्ग – श्रीखंड कैलाश पहुंचने का चौथा मार्ग गुशैणी से निकलता है । इस मार्ग की जानकारी भीम डुआरी में मिले एक गद्दी से मिली । गद्दी भाई के अनुसार रास्ता तो है वहां से लेकिन बेहद खतरनाक है ।
इस मार्ग के खतरों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह मार्ग आपको सीधा कार्तिक स्वामी पर्वत (5100 मी.) के आधार के निकट पहुंचाता है । कार्तिक स्वामी से मार्ग ‘हिम्मती यात्री’ को श्रीखंड पर्वत के पीछे से ऊपर चढ़ाता है । इस मार्ग से श्रीखंड महादेव पहुंचना यात्रा नहीं बल्कि पर्वतीय अभियान होगा ।
गुशैणी तक वाहन योग्य मार्ग बना हुआ है । बंजार से गुशैणी लगभग 10 किमी. दूर है । इस स्थान की ऊँचाई 1585 मी. है ।
गुशैणी से मार्ग ‘तीर्थन घाटी’ में बहती ‘तीर्थन नदी’ के साथ-साथ आगे बढ़ता है । मार्ग कई गांवों को पार करता हुआ वहां पहुंचता है जहां तीर्थन नदी बनायाग ग्लेशियर का रूप ले लेती है, इस स्थान का गद्दी भाई ने ‘बन्याग’ नाम बताया ।
यह मार्ग ‘ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क’ के साथ-साथ तीर्थन घाटी का भी हिस्सा है । उनके अनुसार ‘बनायाग’ से आगे ग्लेशियर पर 11 छिपी झील हैं ।
ऑनलाइन नक्शों पर ‘बनायाग ग्लेशियर’ के साथ 11 झीलों को देखा जा सकता है । यात्रा के इस अपरिचित मार्ग पर कई बार नालों को भी पार करना होगा । उन्होंने आगे बताया कि गद्दी अपने डेरे ‘बनायाग ग्लेशियर’ से पीछे ही लगाते हैं ।
जब तक कि कोई पुख्ता सबूत या जानकारी न मिल जाये तब तक गद्दी भाई द्वारा दी गई जानकारी पर ही निर्भर होना पड़ेगा ।
गुशैणी से श्रीखंड महादेव का सैटलाइट नक्शा |
श्रीखंड पहुंचने का पांचवा मार्ग : झाकड़ी - श्रीखंड महादेव – निरमंड और ज्यूरी के बीच एक मार्ग और स्थित है जिसके द्वारा श्रीखंड महादेव तक पहुंचा जा सकता है । श्रीखंड महादेव पहुंचने का पांचवा मार्ग झाकड़ी से निकलता है । झाकड़ी समुन्द्र तल से 1181 मी. की ऊँचाई पर स्थित है ।
ज्यूरी बस स्टैंड पर किन्नर कैलाश जाने के लिए पोवारी की बस का इंतजार कर रहा था । मेरे साथ एक स्थानीय निवासी खड़े थे जिनसे बात करके इस मार्ग के बारे में पता चला । झाकड़ी से श्रीखंड महादेव के दर्शन उन्होंने कुछ साधुओं के साथ कई साल पहले किये थे ।
उनकी माने तो यह मार्ग फांचा वाले रास्ते से भी अत्यधिक कठिन है । हिमाचल रोडवेज चलती जानकारी के बीच ही आ गई जिस वजह से इस मार्ग के बारे में सिर्फ इतनी ही जानकारी मिल पाई है कि झाकड़ी से भी रास्ता है श्रीखंड महादेव पहुंचने का ।
इन्टरनेट पर भी मैंने कई दिन बिताएं लेकिन इस रास्ते के बारे में कोई जानकारी मौजूद नहीं है । आशा करता हूँ भविष्य में इस मार्ग से यात्रा करके श्रीखंड शिखर तक पहुँचूं ।
झाकड़ी से श्रीखंड महादेव का सैटलाइट नक्शा |
श्रीखंड पहुंचने का पांचवा मार्ग : खीरगंगा – श्रीखंड मार्ग – श्रीखंड कैलाश पहुंचने का छठा मार्ग खीरगंगा से शुरू होता है । समय के साथ-साथ यह मार्ग अतीत और ग्लेशियरों के नीचे दब चुका है । यात्रा के दौरान मैंने काफी लोगों से इस मार्ग की जानकारी लेनी चाही लेकिन किसी को इस मार्ग के बारे में पता नहीं है ।
इस रास्ते के बारें में बताने वाला कोई इंसान नहीं बल्कि एक टिन का बोर्ड है जो श्रीखंड महादेव के शिखर पर लगा हुआ है ।
बोर्ड पर ये शब्द लिखे हुए हैं “ऐसी मान्यता है कि श्रीखंड से एक मार्ग खीरगंगा व मणिकर्ण को भी निकलता है परन्तु मार्ग बहुत ही कठिन व ग्लेशियरों से भरा है” । इन्टरनेट व गूगल मैप की मदद भी किसी काम न आई इस मार्ग को श्रीखंड से जोड़ने में । नीचे दिए गये सैटलाइट नक़्शे को देखकर आप खुद भी अंदाजा लगा सकते हैं इस मार्ग की पहेली का ।
अतीत में रहें होंगे सुपर क्रेजी खोजी जिन्होंने इस मार्ग को खोजा होगा । वर्तमान में इस एकमात्र बोर्ड के अलावा कहीं और कोई सबूत न प्राप्त होने के कारण प्रतीत होता है कि भविष्य में भी यह मार्ग छुपा ही रहेगा ।
खीरगंगा - श्रीखंड मार्ग का एकमात्र सबूत |
खीरगंगा व श्रीखंड महादेव का सैटलाइट नक्शा |
तो यह थी वह जानकारी जो इस साल (2017) में मुझे स्थानियों और गद्दियों से प्राप्त हुई । साल 2018 में ऊपर लिखे कुछ मार्गों से इस यात्रा को सम्पन्न करने की योजना है । आशा करता हूँ 2018 में कम-से-कम 3 मार्गों से तो परिचित हो ही जाऊंगा ।
उपरोक्त 6 मार्गों में से मैंने मात्र जाओं वाले रास्ते को ही देखा है । पाठकों व घुमक्कड़ों से अनुरोध है कि इस जानकारी को तब तक पुख्ता न समझें जबतक मैं या आपमें से कोई इन मार्गों का स्वयं अनुभव न कर लें ।
अगर किसी पाठक को उपरोक्त जानकारी या स्थान के नाम में कोई त्रुटि दिखाई देती है तो कृपया अपनी टिप्पणी कमेन्ट बॉक्स में अवश्य दर्ज कराएँ, सही जानकारी को तुरंत लेख में शामिल किया जायेगा ।
आप सभी से अनुरोध करता हूँ कि जिसके पास भी उपरोक्त मार्गों के बारे में सही जानकारी मौजूद है वो कमेंट बॉक्स में उसे लिखकर इस लेख को पूर्ण करने में योगदान दें ।
धन्यवाद यहाँ आने के लिए और आशा करता हूँ कि आपको यह लेख पसंद आया होगा ।
श्रीखंड महादेव पहुंचने के 6 मार्ग |
6 ways to reach Shrikhand Mahadev |
गजब जानकारी एकत्रित की है भाई......अगले साल महादेव के मिलन में आपके लेख की बहुत सहायता मिलेगी......����������
ReplyDeleteलेख का कार्य पूरा होगा अगर एक भी घुमक्कड़ को इस जानकारी का फायदा हो यात्रा के दौरान
Deleteयह जानकारी सोने पर सुहागा जैसी रही,
ReplyDeleteबेहतरीन जानकारी जुटायी।
दूसरे वाली साइड से पंजीकरण तो नहीं हो पायेगा।
शुक्रिया संदीप भाई, यह लेख लिखने में महीने से भी ज्यादा लग गया । जाओं के अलावा कहीं और से पंजीकरण नहीं होता है ।
Deleteबेहतरीन जानकारी.......नरेश सहगल ,अम्बाला
ReplyDeleteसहगल साहब का स्वगत है...
Deleteवाह...भाई जी गजब की जानकारी दी है।
ReplyDeleteधन्यवाद शब्दों के लिए, आशा करता हूँ जानकारी काम आयेगी ।
DeleteBhai ji bhut acha lga aap ki es bhumuly jankari Ko ped ker . . Me Jon baly tasty se 2 bar Yatra ker Chuka Hun agly saal kuch neya try kerun ga
ReplyDelete.
.
Thnxxx Bhai
धन्यवाद यहाँ आने के लिए और आशा करता हूँ उपरोक्त जानकारी आपकी अगली यात्रा में काम आयेगी ।
Deleteश्रीखंड महादेव यात्रा के कई ब्लॉग मैंने पढ़े . आपका यात्रा वृत्तान्त सबसे बेहतरीन रहा और हर कदम का हिसाब रखा है आपने इतनी जानकारियों का खजाना पहली बार ही देखने को मिला भाई साहब दिल से धन्यवाद.
ReplyDeleteधन्यवाद चंद्रेश भाई, समय लगा इस जानकारी को इकठ्ठा करने में लेकिन अब खुश हूँ कि यह जानकारी अब तैयार है अपना किरदार निभाने के लिए । शुभकामनाएं...
DeleteThank yoy
ReplyDeleteVery very useful
ReplyDeleteधन्यवाद यहां आने के लिए...
Deletehello- in which month did you go there?
ReplyDeleteजून में भाई जी
Deletekya me apka article ke kuch part apni site me copy kar sakta hu kya ?
ReplyDeleteकर लो सर,
Deleteबहू त शुक्रिया आपका,, ढेर सारी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए
ReplyDeleteअगर आप अपना संपर्क नंबर शेयर कर सके तो बहुत अच्छा रहेगा। 9463574858 (स्नी)
ReplyDeleteसर मेरा फोन खो गया है
Deleteसर आपने भोले के भक्तों को जानकारी स्पष्ट एं मानचित्रों द्वारा दी उसके लिये कृतग हुं आपके लिऐ धन्यवाद शब्द भी छोटा रहेगा
ReplyDeleteजय भोलेनाथ जय महाकाल आपके द्वारा जानकारी बहुत ही सुंदर है आपके इस प्रयास से भक्तों को भोले बाबा के दर्शन हो सकते हैं राह में कुछ समस्याएं तो है लेकिन भोले बाबा के आशीर्वाद से सब दूर हो जाएगी यह गद्दी भाई कौन है इसका बताएं जय भोलेनाथ जय श्री खंड भोलेनाथ
ReplyDeleteis December a good time to visit ?
ReplyDeleteबिल्कुल नहीं, सिर्फ सावन मास में ही यात्रा शुरू होती है। अन्य किसी महीने में वहां पहुंच पाना असंभव है।
Deleteधन्यवाद भाई, बहुत बढ़िया समझाया आपने ।
ReplyDeleteमेरे हिसाब से यात्रा के दौरान बारिशें बहुत तेज़ होती हैं, क्या मानसून के बाद जब यात्रा समाप्त हो जाती है तब जाया जा सकता है ?, किसी प्रकार की कोई परमिशन तो नहीं लेनी पड़ती ?
यात्रा मानसून में शुरू होती है आधिकारिक तौर पर, अगर आप उसी समय जाएँ तो बेस्ट है। इस समय आपको सारी सुविधाओं का लाभ मिलेगा, टेंट, लंगर, मेडिकल टीम और रेस्क्यू टीम सभी तैनात रहती है ।
Deleteबाकी अन्य किसी समय जाना समस्या खड़ी कर सकता है अगर आप एक अनुभवी पर्वतारोही हो तो बात अलग है ।
Nice Job Bro
ReplyDeleteGod bless you..
Jai Bhole Nath
धन्यवाद जी, हर हर महादेव
Deletejai mahadev bhai ji bahut badiya post h lekin jaan jokhim me dalkar yatra na kare jaon wala rasta hi best h koi record thodi banana h apne pariwar ki soche .
ReplyDeletemaine july 2020 me yatra ki thi bahut hi saandaar yatra my life ki .jai bhole
धन्यवाद सर, आपकी सलाह पर पूरा ध्यान दिया जायेगा, बाकी हर हर महादेव ।
Deleteकमाल है भाई आपने लॉक डाउन में ही दर्शन कर लिए
Deleteजैसे की रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया ऑफलाइन है तो जितने भी यात्री जाते है दर्शन के लिए सब का रजिस्ट्रेशन हो जाता है या वापस भी लौटा दिए जाते है लोग।
ReplyDeleteउतने पैरामीटर नहीं बने अभी तक इंडिया में, कोई तकलीफ में है तब भी जा सकता है । रजिस्ट्रेशन सभी का हो जाता है वो बात अलग है जो फिट नहीं वो श्रीखंड के सामने ही नहीं पहुंच पाता
DeleteMai kheerganga wale track se aapke sath jana chahta hu
ReplyDeleteअब तो मेरी उम्र हो गयी
Deleteहर हर महादेव,सर आपका लेख पढ़ना शुरू किया तो अंतिम तक पढ़ने से पहले रुक नहीं सका, आपने बहुत मेहनत की, बड़ी रोचक , ज्ञान वर्धक जानकारी मेरी बड़ी इच्छा है यात्रा करने की , भोलेनाथ पुर्ण करें, श्री किन्नोर कैलाश के बारे में भी जानकारी दे,
ReplyDeleteधन्यवाद, प्रयास करूंगा जानकारी देने की
Deleteहर हर महादेव,बहुत रोचक जानकारी,एक बार शुरु की तो पुरा पढ़ने पर ही रुका,
ReplyDeleteधन्यवाद जी, यह स्थान ही अलौकिक है
Delete