1877 रू. में 2 कैलाश दर्शन : भीम तलाई – जाओं - ज्यूरी (2 Kailash visited in just 1877 rs : Bhim talai – Jaon - Jeori)
25 जुलाई 2017
“भारतीय हिमालय, ऊंचाई समुन्द्र तल से 3556 मीटर, आप टेंट के भीतर हैं और स्लीपिंग बैग में सो रहे हैं, बाहर तेज बारिश हो रही है, रह-रहकर बादलों के गर्जने की दहाड़ सुनाई दे रही है, टेंट के बाईं तरफ रंग-बिरंगे फूल धरती के सौंदर्य की शोभा बढ़ा रहे हैं और दाईं तरह मीठे पानी के झरने कुदरत की दीवानगी में बह रहे हैं, आपके टेंट के सामने 5000 मीटर ऊँचे विशाल बर्फीले पहाड़ शांत खड़े है ताकि आप उसके आँगन में बिना किसी चिंता के सो सकें” । अगर पहाड़ों में आकर भी आपके साथ ऐसा नहीं हो रहा है तो परेशान मत होना क्योंकि जल्द ही यह होने वाला है ।
रात को स्वादिष्ट नींद आई वो बात अलग है कि दो-तीन बार मुझे संदेह भी हुआ कि कहीं टेंट से पानी लीक होकर स्लीपिंग बैग पर तो नहीं गिर रहा है । यह जगह ही कुछ ऐसी है जहां आँखें खोलने से पहले ही आपको ‘हर हर महादेव’ के स्वर सुनाई देने लगते हैं ।
सुबह आँख 6 बजे खुली और आज कई दिन बाद शौच जाने का सुनहरा मौका मिला । पास ही बहते पानी से मुंह को चमकाया और वापस टेंट में आकर नाश्ते का इंतजार करने लगा । जलते चूल्हे के सामने आलू के पराठे बनाने की प्रक्रिया को अंजाम दिया जा रहा था । सवा सात चाय के कप के साथ दो आलू के पराठे मेरे सामने थे । यह एक बेहतरीन खाना था, धनीराम ठाकुर के हाथों में जादू है बिना बोले मैं रह नहीं पाया ।
7:45 पर नाश्ते के 80 रूपये चुकाकर शुरू किया मैंने अपना वापसी का सफ़र । बाहर काले बादल पिछले तीन दिन की तरह आज भी सीना ताने खड़े थे, बारिश शुरू होने से पहले ही बंद हो चुकी थी और कहीं-कहीं से सूरज की रोशनी धरती को छूने का प्रयास कर रही थी, इस दृश्य को देखकर मुझे किसी के बेहिसाब सुंदर सपने में होने का एहसास हुआ लेकिन गीले जूते और जुराबों ने मुझे गीली सच्चाई से रूबरू कराया और किसी के सपने से खुद की वास्तविकता में ला खड़ा किया । आज चौथा दिन है गीले जूतों को पहनते रहने का, पैरों की त्वचा लगातार पानी के संपर्क में रहने से गली-गली और एकदम सफ़ेद हो गई है ।
रोज की तरह पहले 5-10 मिनट चढ़ाई पर चढ़ते हुए संघर्षपूर्ण रहे । ऊपर से ये तो काली टॉप की खड़ी चढ़ाई है । जैसे ही इंजन गर्म हुआ वैसे ही पैरों ने रफ़्तार पकड़ ली और काली टॉप पर 35 मिनट में पहुंच गया । टॉप पर मैंने अपने रेनवियर वापस रकसैक के हवाले कर दिए और कैमरे को ड्यूटी पर लगा दिया ।
श्रीखंड महादेव के दर्शन करके जब आप वापस लौटते हैं तब काली टॉप तक ही आपको जी-तोड़ चढ़ाई का सामना करना पड़ता है इसके बाद तो जाओं गाँव तक ढलान है जोकि घुटनों तो इतना तंग कर देती है कि पैर लड़खड़ाने लगते हैं ।
ऑंखें घाटी में दोनों तरफ घूम रही थी, होटों पर ब्लू-पॉपी को देखकर मुस्कराहट आ रही थी, मन के खुश होने का सबूत मिल रहा था, दोनों पैर उम्मीद से अच्छा काम कर रहे थे, आजतक इतना फिट कभी महसूस नहीं किया ।
भीम तलाई से थाचडू सवा घंटे में पहुंचा जहाँ लंगर में रूककर गर्मागर्म मीठी-मीठी खीर खाई । पन्द्रह मिनट यहाँ बिताकर तैयार हो गया थाचडू से ब्राती नाला तक लुढकने के लिए ।
मानसून के दौरान जंगल में ट्रैकिंग करने का एक फायदा यह है कि यहाँ अगर कीचड़ भी होगी तो आप फिसल नहीं सकते क्योंकि यहाँ बेशुमार पेड़ों के पत्तों ने सारे रास्ते पर अपना कब्ज़ा किया हुआ है जबकि वहीँ जब पार्वती बाग़ से नीचे उतर रहा था तो अनलिमिटेड कीचड़ और बेहिसाब फिसलन का सामना करना पड़ा क्योंकि वहाँ कहीं भी पेड़ नहीं है, हाँ घास जरुर है लेकिन भीगने की वजह से वो भी चिकनी चमेली बनी हुई थी ।
थाचडू से कोई एक-डेढ़ किमी. नीचे ‘कुफरी ग्रुप’ मिल गया, सभी को फिर से देखकर मुझे बड़ी ख़ुशी हुई । कुफरी ग्रुप प्रसाद ग्रहण कर रहा था । विक्की ग्रुप लीडर बोल रहा था कि “तुम्हारे जाने के बाद हम भी कोई पंद्रह-बीस मिनट ही रुके थे ऊपर उसके बाद नीचे उतर आये । ऊपर तो हमारा सारा माल ख़राब ही हो गया क्योंकि वहां जितनी भी बीड़ी-सिगरेट भरके पी एक का भी असर नहीं हुआ, ऊपर से ठण्ड ने सिट्टी-पिट्टी और गुम कर दी, कपड़े अलग से भीग गए” ।
हम सभी एकसाथ नीचे उतरने लगे, भोले के जयकारे लग रहे थे, भजन गाये जा रहे थे, चुटकुले चल रहे थे, बातें-किस्से रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे । समा हसीन हो गया था, कुल मिलाकर फुल मज़ा आ रहा था । मैंने अपनी लाइफ में सिर्फ 3-4 बार ही ग्रुप के साथ ट्रेवलिंग की है और सच बताऊँ तो 1-2 बार को छोड़ दें तो अनुभव अच्छा नहीं रहा लेकिन इस ‘कुफरी ग्रुप’ को देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा और दिल में एक विचार बहुत तेजी से आया की भविष्य में ग्रुप के साथ घुमा जा सकता है ।
कुफरी ग्रुप के साथ सिर्फ एक ही समस्या थी और वो थी उनका हर 100-200 मी. पर रुकना और सुट्टा लगाना, इस वजह से मेरी स्पीड धीरे हो गई और मैं थकावट महसूस करने लगा । विक्की ग्रुप लीडर को बताकर मैं आगे निकल गया जैसे ही मैंने आगे बढ़ने के लिए कदम बढ़ाएं वैसे ही विक्की ग्रुप लीडर की आवाज आई कि जाओं में इंतज़ार करना साथ में चलेंगे, सूमो नीचे ही खड़ी है । चलते-चलते मैं मुड़ा और अंगूठा दिखाकर आगे निकल गया, अंगूठा मीन्स थंबस उप ।
नॉन-स्टॉप चलते हुए मैंने दोपहर 12:15 बजे सिंहगाड़ में सांस ली । अब बस 3 किमी. का सफ़र ही बाकी बचा है जिसे मैं पूरी तरह इंजॉय करते हुए चलना चाहता था । सिंहगाड़ पार करते ही हल्की-हल्की बारिश शुरू हो गई लेकिन मैंने रेनवियर नहीं निकाले यह सोचकर कि तेज नहीं होगी । फिर तो ऐसा हो गया जितने कदम आगे बढ़ाता जाता बारिश उतनी ही तेज होती जाती । भीगते-भीगते खुद भी रेनवियर पहने और रकसैक को भी उसका बरसाती पहनाई । जब बारिश ज्यादा तेज हो गई तो मैंने रुकने की सोची लेकिन जब जाओं आँखों के सामने ही दिखाई देने लगा तब रुकने का मन ही नहीं किया । दोपहर एक बजे जाओं में एक चाय की दूकान पर अपना रकसैक उतारा जो लगभग भीग चुका था । सच बताऊँ तो तेज बारिश में रैनवियर फ़ैल हो जाते हैं पानी कुछ-न-कुछ करके भीतर घुस ही जाता है, मैं भीग चुका था ।
लगभग आधा-घंटा मुझे कुफरी ग्रुप का इंतजार करना पड़ा, सभी सूमो के पास डेढ़ बजे पहुंचे और पहुंचते ही ड्राईवर सहित ग्यारह लोग चार पहियों के डब्बे में लध गये ।
ग्रुप लीडर विक्की आगे बैठा और ड्राईवर को बोल रहा था सभी को देवढ़ाक उतार देना जहां से हम लोग देवढ़ाक के दर्शन करके आपको दत्तनगर ब्रिज पर मिलेंगे, जैसे ही ग्रुप लीडर विक्की ने ये बात कही वैसे ही सभी ने ऐसे रियेक्ट किया जैसे उन्हें नसबंदी के बदले 500 रूपये नहीं मिलने वाले । रोड पर लगा देवढ़ाक का बोर्ड आया जहां ग्रुप लीडर विक्की ने उतरकर ऐलान किया कि जिसे भी चलना हो वो चल सकता है और जो नहीं जाना चाहते वो लोग सूमो से दत्तनगर ब्रिज पर हमारा इंतज़ार करेंगे । मुझे लगाकर सिर्फ छह लोग ही तैयार हुए । पक्की सड़क से दाईं तरफ एक जीप ट्रैक निकलता है देवढ़ाक की ओर, हमने भी उसी रास्ते को फॉलो किया जो कि टोटल डाउन हिल था । लगभग 2 किमी. उतरकर हम देवढांक पहुंचे जहां जूते उतारकर सभी ने छोटे से मुंहाने वाली गुफा में प्रवेश करके वो स्थान देखा जहां से किद्वंती है कि महादेव घुसे थे और श्रीखंड टॉप पर निकलकर एक शिवलिंग रूपी शिला के रूप के समाधिस्थ हुए थे ।
देवढांक दर्शन के बाद थके हुए सभी यात्री दत्तनगर ब्रिज की ओर बढ़ चले जहां सूमो हम सभी का इंतज़ार कर रही थी । हमें और दो किमी. चलना पड़ा सूमो तक पहुंचने के लिए, जहां पहुंचकर पता चला कि आई.टी.बी.पी. (ITBP) के एक अफसर हम सभी को निम्बू-पानी पिलाना चाहते हैं । यह प्रस्ताव ग्रुप लीडर ने सहर्ष स्वीकार किया और जल्द ही निम्बू-पानी के ठन्डे गिलास हमारे हाथों में थे । आई.टी.बी.पी. के अफसर वर्दी में थे और इस कठिन यात्रा की सफलता पर सभी को बधाई दे रहे थे । सक्सेना जी जो कि कुफरी ग्रुप के ही मेम्बर हैं उनके कहने पर हमने ‘हर हर महदेव’ के साथ-साथ भारत माता की जय के नारे भी लगायें ।
सूमो दत्तनगर बस स्टैंड पहुंची जहां वक़्त आ चुका था इस नायाब कुफरी ग्रुप से विदा लेने का । सभी ने फिर से मिलने का वादा किया और कुफरी-भ्रमण पर मेरे आने का स्वागत किया । सूमो के जाने से पहले मैं बस इतना ही कह पाया कि “आपके इस शानदार ग्रुप से मिलकर मुझे दिल से ख़ुशी हुई और आप सभी के साथ मेरा बहुत अच्छा समय बीता” ।
4 बसें जब हाथ देने से भी नहीं रुकी तब मुझे अक्ल आई कि मैं बस स्टैंड पर नहीं खड़ा हूँ और जल्द ही मैं वहां पहुंच गया जहां बस रूकती हैं । पांचवी बस हाथ देते ही रुक गई रूकती भी कैसे नहीं उसे सवारियां जो उतारनी थी । यह बस सिर्फ रामपुर नये बस स्टैंड तक ही जाएगी । मैंने भी एक टिकट ले लिया जोकि 40 रु. का मिला ।
3:40 मैं रामपुर पहुंचा जहां बस स्टैंड पर पूछताछ करके पता चला कि रात 11 से पहले कोई भी बस नहीं है जो रिकोंगपियो जाए । अब क्या करें ? सोचते-सोचते आईडिया आया कि ज्यूरी चलता हूँ वहाँ उनू महादेव मंदिर में रुकने की जगह मिल सकती है । अगले 5 मिनट में मैं सराहन जाने वाली बस में था जिसमें 20 का टिकट लगा और ज्यूरी शाम 4:40 पर उतरा ।
कदम उनू महादेव मंदिर की ओर बढ़ने लगे और दिल में हर कदम पर यहीं दुआ निकल रही थी कि मंदिर में रुकने की जगह मिल जाये । मंदिर के गेट पर पहुंचकर 4 दिन से भीगे जूते उतारकर मंदिर में दाखिल हुआ । मंदिर के आँगन में महाराज गिरी जी मिल गये जिन्हें नमस्कार करके मैंने अपनी यात्रा और अपनी जरुरत बताई । सबकुछ सुनकर उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा कि “यहाँ रुकने के लिए कुछ विशेष नहीं चाहिए, जो चाहिए वो यह कि तुम्हें यहाँ होना चाहिए इस व्यव्स्था का लाभ उठाने के लिए” । उन्होंने हाथ से इशारा किया की जाओ उस हॉल में अपना सामान रख लो और गर्म-पानी में नहा लो ।
इस इंसान के व्यवहार ने मेरा मन मोह लिया । हॉल में सामान रखकर मैं गर्म-पानी के कुण्ड में नहाया । यह मंदिर ज्यूरी में स्थित है और यहाँ गर्म पानी का कुण्ड है ।
पिछली बार 18 जुलाई को नहाया था और आज 25 तारीख है । यहाँ मौसम गर्म है इसलिए मुझे टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहनने पड़े । मंदिर में घूम रहा था तो एक बाबा और आये वो सीधा गिरी महाराज के पास पहुंचे । गिरी महाराज ने मेरी ओर इशारा करते हुए कहा कि इन महाराज जी से जानकारी ले लेना किन्नर कैलाश यात्रा के बारें में ये वहीँ से दर्शन करके आ रहे हैं । “महराज आप तो कल यहाँ से जाकर आज दर्शन करके यहाँ लौट भी आये”, बोलकर गिरी महाराज ‘शंकर-शंकर’ बोलकर उनके हाथ को अपने हाथ में लेकर जोर से ठहाका मारकर हंसने लगे । #लाइफ_लाफ़_एंड_बाबे
जब मैंने किन्नर कैलाश से लौटने वाले बाबा की तरफ देखा तो पाया मेरी ही तरह वो भी एकदम दुबले शरीर के मालिक हैं, उनके चहरे पर कहीं-कहीं दाढ़ी थी और जो थी भी वो भी बहुत छोटी थी, उनकी जटाएं कमर तक लम्बी थी, सफ़ेद रंग के छोटे के टुकड़े से खुद को ढका हुआ था, उनका पेट बिलकुल मेरे पेट की ही तरह कमर से चिपका हुआ था, गाल भी उनके भीतर धंसे हुए थे । कुल मिलाकर वो एकदम साधारण बाबा थे हम आम इंसानों की तरह लेकिन जो अकेला अंतर था वो उन्हें हम आम इंसानों से अलग कर रहा था वो था उनकी चमकती आँखें । पहली बार मुझे एहसास हुआ कि किसी की आँखें इतनी भी गहरी हो सकती हैं । भीतर से झांकती उन आँखों ने मानो सबकुछ खुद में समाया हो । मेरे लगातार उनके चेहरे की तरफ देखने से वो हंसने लगे और मैं भी । वह पल मेरे लिए वहीं रुक गया था और मैं उस हंसी के भंवर में बह गया था । #आदमी_हूँ_आदमी_से_प्यार_करता_हूँ
एक बड़ा ग्रुप आया मुरादाबाद से जिसमें टोटल 20 यात्री थे और मजे की बात यह थी कि सभी ताजा-ताजा श्रीखंड महादेव के दर्शन करके यहाँ पधारे थे और कल भीमकाली के दर्शन करके वापस मुरादाबाद चले जायेंगे । इस ग्रुप में कुक भी थे जिन्होंने आते ही चाय तैयार कर दी, जिसमें मुझे स्पेशल हिस्सा मिला । गिरी महाराज ने आकर उन्हें और मुझे दोनों को बोल दिया कि इस लड़के को खाना खिला देना । उनके कहने की वजह से सभी मुझे ख़ास समझ रहे थे जबकि मैंने सभी को साफ़-साफ़ बता दिया कि मैं भी आप लोगों की तरह ही श्रीखंड महादेव के दर्शन करके यहाँ आया हूँ और कल किन्नर कैलाश को निकालूँगा ।
रात 9 बजे खाना तैयार हुआ, खाना क्या था बस स्वाद का स्वर्ग था । खाना सर्व करने वाले ने मेरी प्लेट में कुछ ज्यादा ही खाना डाल दिया सभी के कहने पर, खाना इतना स्वादिष्ट था कि मैं उस एक्स्ट्रा खाने को भी खा गया । इस शाही खाने के मेनू में चावल, आलू-टमाटर की सब्जी, पुड़ी शामिल थी ।
रात साढ़े दस बजे सभी हॉल में लेटे और लगभग ग्यारह बजे मैं आज के शानदार दिन को याद करते हुए नींद को प्यारा हुआ ।
आज का ट्रैक भीम तलाई (3556 मी.) से शुरू होकर जाओं गाँव (1949 मी.) में खत्म हुआ जहां से कुफरी ग्रुप के साथ देवढांक के दर्शन भी हुए । आज के दिन का खर्चा 140 रु. रहा और अभी तक इस यात्रा पर कुल 977 रु. खर्च हो चुके हैं ।
आशा करता हूँ आप सभी को श्रीखंड महादेव यात्रा का अंतिम भाग पसंद आया होगा । आपके सुझावों के इंतजार रहेगा तब तक हर हर महादेव ।
भाग 1 : बीड़-शिमला (Bir-Shimla)
भाग 2 : शिमला-थाचडू (Shimla-Thachdu)
भाग 3 : थाचडू-भीम डुआरी (Thachdu-Bhim Dwari)
भाग 4 : भीम डुआरी - श्रीखंड महादेव – भीम तलाई (Bhim dwar – Shrikhand Mahadev – Bhim talai)
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खुम्बा डुआरी से दिखाई देता जादुई नज़ारा |
रात को स्वादिष्ट नींद आई वो बात अलग है कि दो-तीन बार मुझे संदेह भी हुआ कि कहीं टेंट से पानी लीक होकर स्लीपिंग बैग पर तो नहीं गिर रहा है । यह जगह ही कुछ ऐसी है जहां आँखें खोलने से पहले ही आपको ‘हर हर महादेव’ के स्वर सुनाई देने लगते हैं ।
सुबह आँख 6 बजे खुली और आज कई दिन बाद शौच जाने का सुनहरा मौका मिला । पास ही बहते पानी से मुंह को चमकाया और वापस टेंट में आकर नाश्ते का इंतजार करने लगा । जलते चूल्हे के सामने आलू के पराठे बनाने की प्रक्रिया को अंजाम दिया जा रहा था । सवा सात चाय के कप के साथ दो आलू के पराठे मेरे सामने थे । यह एक बेहतरीन खाना था, धनीराम ठाकुर के हाथों में जादू है बिना बोले मैं रह नहीं पाया ।
7:45 पर नाश्ते के 80 रूपये चुकाकर शुरू किया मैंने अपना वापसी का सफ़र । बाहर काले बादल पिछले तीन दिन की तरह आज भी सीना ताने खड़े थे, बारिश शुरू होने से पहले ही बंद हो चुकी थी और कहीं-कहीं से सूरज की रोशनी धरती को छूने का प्रयास कर रही थी, इस दृश्य को देखकर मुझे किसी के बेहिसाब सुंदर सपने में होने का एहसास हुआ लेकिन गीले जूते और जुराबों ने मुझे गीली सच्चाई से रूबरू कराया और किसी के सपने से खुद की वास्तविकता में ला खड़ा किया । आज चौथा दिन है गीले जूतों को पहनते रहने का, पैरों की त्वचा लगातार पानी के संपर्क में रहने से गली-गली और एकदम सफ़ेद हो गई है ।
रोज की तरह पहले 5-10 मिनट चढ़ाई पर चढ़ते हुए संघर्षपूर्ण रहे । ऊपर से ये तो काली टॉप की खड़ी चढ़ाई है । जैसे ही इंजन गर्म हुआ वैसे ही पैरों ने रफ़्तार पकड़ ली और काली टॉप पर 35 मिनट में पहुंच गया । टॉप पर मैंने अपने रेनवियर वापस रकसैक के हवाले कर दिए और कैमरे को ड्यूटी पर लगा दिया ।
श्रीखंड महादेव के दर्शन करके जब आप वापस लौटते हैं तब काली टॉप तक ही आपको जी-तोड़ चढ़ाई का सामना करना पड़ता है इसके बाद तो जाओं गाँव तक ढलान है जोकि घुटनों तो इतना तंग कर देती है कि पैर लड़खड़ाने लगते हैं ।
ऑंखें घाटी में दोनों तरफ घूम रही थी, होटों पर ब्लू-पॉपी को देखकर मुस्कराहट आ रही थी, मन के खुश होने का सबूत मिल रहा था, दोनों पैर उम्मीद से अच्छा काम कर रहे थे, आजतक इतना फिट कभी महसूस नहीं किया ।
भीम तलाई से थाचडू सवा घंटे में पहुंचा जहाँ लंगर में रूककर गर्मागर्म मीठी-मीठी खीर खाई । पन्द्रह मिनट यहाँ बिताकर तैयार हो गया थाचडू से ब्राती नाला तक लुढकने के लिए ।
मानसून के दौरान जंगल में ट्रैकिंग करने का एक फायदा यह है कि यहाँ अगर कीचड़ भी होगी तो आप फिसल नहीं सकते क्योंकि यहाँ बेशुमार पेड़ों के पत्तों ने सारे रास्ते पर अपना कब्ज़ा किया हुआ है जबकि वहीँ जब पार्वती बाग़ से नीचे उतर रहा था तो अनलिमिटेड कीचड़ और बेहिसाब फिसलन का सामना करना पड़ा क्योंकि वहाँ कहीं भी पेड़ नहीं है, हाँ घास जरुर है लेकिन भीगने की वजह से वो भी चिकनी चमेली बनी हुई थी ।
थाचडू से कोई एक-डेढ़ किमी. नीचे ‘कुफरी ग्रुप’ मिल गया, सभी को फिर से देखकर मुझे बड़ी ख़ुशी हुई । कुफरी ग्रुप प्रसाद ग्रहण कर रहा था । विक्की ग्रुप लीडर बोल रहा था कि “तुम्हारे जाने के बाद हम भी कोई पंद्रह-बीस मिनट ही रुके थे ऊपर उसके बाद नीचे उतर आये । ऊपर तो हमारा सारा माल ख़राब ही हो गया क्योंकि वहां जितनी भी बीड़ी-सिगरेट भरके पी एक का भी असर नहीं हुआ, ऊपर से ठण्ड ने सिट्टी-पिट्टी और गुम कर दी, कपड़े अलग से भीग गए” ।
हम सभी एकसाथ नीचे उतरने लगे, भोले के जयकारे लग रहे थे, भजन गाये जा रहे थे, चुटकुले चल रहे थे, बातें-किस्से रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे । समा हसीन हो गया था, कुल मिलाकर फुल मज़ा आ रहा था । मैंने अपनी लाइफ में सिर्फ 3-4 बार ही ग्रुप के साथ ट्रेवलिंग की है और सच बताऊँ तो 1-2 बार को छोड़ दें तो अनुभव अच्छा नहीं रहा लेकिन इस ‘कुफरी ग्रुप’ को देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा और दिल में एक विचार बहुत तेजी से आया की भविष्य में ग्रुप के साथ घुमा जा सकता है ।
कुफरी ग्रुप के साथ सिर्फ एक ही समस्या थी और वो थी उनका हर 100-200 मी. पर रुकना और सुट्टा लगाना, इस वजह से मेरी स्पीड धीरे हो गई और मैं थकावट महसूस करने लगा । विक्की ग्रुप लीडर को बताकर मैं आगे निकल गया जैसे ही मैंने आगे बढ़ने के लिए कदम बढ़ाएं वैसे ही विक्की ग्रुप लीडर की आवाज आई कि जाओं में इंतज़ार करना साथ में चलेंगे, सूमो नीचे ही खड़ी है । चलते-चलते मैं मुड़ा और अंगूठा दिखाकर आगे निकल गया, अंगूठा मीन्स थंबस उप ।
नॉन-स्टॉप चलते हुए मैंने दोपहर 12:15 बजे सिंहगाड़ में सांस ली । अब बस 3 किमी. का सफ़र ही बाकी बचा है जिसे मैं पूरी तरह इंजॉय करते हुए चलना चाहता था । सिंहगाड़ पार करते ही हल्की-हल्की बारिश शुरू हो गई लेकिन मैंने रेनवियर नहीं निकाले यह सोचकर कि तेज नहीं होगी । फिर तो ऐसा हो गया जितने कदम आगे बढ़ाता जाता बारिश उतनी ही तेज होती जाती । भीगते-भीगते खुद भी रेनवियर पहने और रकसैक को भी उसका बरसाती पहनाई । जब बारिश ज्यादा तेज हो गई तो मैंने रुकने की सोची लेकिन जब जाओं आँखों के सामने ही दिखाई देने लगा तब रुकने का मन ही नहीं किया । दोपहर एक बजे जाओं में एक चाय की दूकान पर अपना रकसैक उतारा जो लगभग भीग चुका था । सच बताऊँ तो तेज बारिश में रैनवियर फ़ैल हो जाते हैं पानी कुछ-न-कुछ करके भीतर घुस ही जाता है, मैं भीग चुका था ।
लगभग आधा-घंटा मुझे कुफरी ग्रुप का इंतजार करना पड़ा, सभी सूमो के पास डेढ़ बजे पहुंचे और पहुंचते ही ड्राईवर सहित ग्यारह लोग चार पहियों के डब्बे में लध गये ।
ग्रुप लीडर विक्की आगे बैठा और ड्राईवर को बोल रहा था सभी को देवढ़ाक उतार देना जहां से हम लोग देवढ़ाक के दर्शन करके आपको दत्तनगर ब्रिज पर मिलेंगे, जैसे ही ग्रुप लीडर विक्की ने ये बात कही वैसे ही सभी ने ऐसे रियेक्ट किया जैसे उन्हें नसबंदी के बदले 500 रूपये नहीं मिलने वाले । रोड पर लगा देवढ़ाक का बोर्ड आया जहां ग्रुप लीडर विक्की ने उतरकर ऐलान किया कि जिसे भी चलना हो वो चल सकता है और जो नहीं जाना चाहते वो लोग सूमो से दत्तनगर ब्रिज पर हमारा इंतज़ार करेंगे । मुझे लगाकर सिर्फ छह लोग ही तैयार हुए । पक्की सड़क से दाईं तरफ एक जीप ट्रैक निकलता है देवढ़ाक की ओर, हमने भी उसी रास्ते को फॉलो किया जो कि टोटल डाउन हिल था । लगभग 2 किमी. उतरकर हम देवढांक पहुंचे जहां जूते उतारकर सभी ने छोटे से मुंहाने वाली गुफा में प्रवेश करके वो स्थान देखा जहां से किद्वंती है कि महादेव घुसे थे और श्रीखंड टॉप पर निकलकर एक शिवलिंग रूपी शिला के रूप के समाधिस्थ हुए थे ।
देवढांक दर्शन के बाद थके हुए सभी यात्री दत्तनगर ब्रिज की ओर बढ़ चले जहां सूमो हम सभी का इंतज़ार कर रही थी । हमें और दो किमी. चलना पड़ा सूमो तक पहुंचने के लिए, जहां पहुंचकर पता चला कि आई.टी.बी.पी. (ITBP) के एक अफसर हम सभी को निम्बू-पानी पिलाना चाहते हैं । यह प्रस्ताव ग्रुप लीडर ने सहर्ष स्वीकार किया और जल्द ही निम्बू-पानी के ठन्डे गिलास हमारे हाथों में थे । आई.टी.बी.पी. के अफसर वर्दी में थे और इस कठिन यात्रा की सफलता पर सभी को बधाई दे रहे थे । सक्सेना जी जो कि कुफरी ग्रुप के ही मेम्बर हैं उनके कहने पर हमने ‘हर हर महदेव’ के साथ-साथ भारत माता की जय के नारे भी लगायें ।
सूमो दत्तनगर बस स्टैंड पहुंची जहां वक़्त आ चुका था इस नायाब कुफरी ग्रुप से विदा लेने का । सभी ने फिर से मिलने का वादा किया और कुफरी-भ्रमण पर मेरे आने का स्वागत किया । सूमो के जाने से पहले मैं बस इतना ही कह पाया कि “आपके इस शानदार ग्रुप से मिलकर मुझे दिल से ख़ुशी हुई और आप सभी के साथ मेरा बहुत अच्छा समय बीता” ।
4 बसें जब हाथ देने से भी नहीं रुकी तब मुझे अक्ल आई कि मैं बस स्टैंड पर नहीं खड़ा हूँ और जल्द ही मैं वहां पहुंच गया जहां बस रूकती हैं । पांचवी बस हाथ देते ही रुक गई रूकती भी कैसे नहीं उसे सवारियां जो उतारनी थी । यह बस सिर्फ रामपुर नये बस स्टैंड तक ही जाएगी । मैंने भी एक टिकट ले लिया जोकि 40 रु. का मिला ।
3:40 मैं रामपुर पहुंचा जहां बस स्टैंड पर पूछताछ करके पता चला कि रात 11 से पहले कोई भी बस नहीं है जो रिकोंगपियो जाए । अब क्या करें ? सोचते-सोचते आईडिया आया कि ज्यूरी चलता हूँ वहाँ उनू महादेव मंदिर में रुकने की जगह मिल सकती है । अगले 5 मिनट में मैं सराहन जाने वाली बस में था जिसमें 20 का टिकट लगा और ज्यूरी शाम 4:40 पर उतरा ।
कदम उनू महादेव मंदिर की ओर बढ़ने लगे और दिल में हर कदम पर यहीं दुआ निकल रही थी कि मंदिर में रुकने की जगह मिल जाये । मंदिर के गेट पर पहुंचकर 4 दिन से भीगे जूते उतारकर मंदिर में दाखिल हुआ । मंदिर के आँगन में महाराज गिरी जी मिल गये जिन्हें नमस्कार करके मैंने अपनी यात्रा और अपनी जरुरत बताई । सबकुछ सुनकर उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा कि “यहाँ रुकने के लिए कुछ विशेष नहीं चाहिए, जो चाहिए वो यह कि तुम्हें यहाँ होना चाहिए इस व्यव्स्था का लाभ उठाने के लिए” । उन्होंने हाथ से इशारा किया की जाओ उस हॉल में अपना सामान रख लो और गर्म-पानी में नहा लो ।
इस इंसान के व्यवहार ने मेरा मन मोह लिया । हॉल में सामान रखकर मैं गर्म-पानी के कुण्ड में नहाया । यह मंदिर ज्यूरी में स्थित है और यहाँ गर्म पानी का कुण्ड है ।
पिछली बार 18 जुलाई को नहाया था और आज 25 तारीख है । यहाँ मौसम गर्म है इसलिए मुझे टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहनने पड़े । मंदिर में घूम रहा था तो एक बाबा और आये वो सीधा गिरी महाराज के पास पहुंचे । गिरी महाराज ने मेरी ओर इशारा करते हुए कहा कि इन महाराज जी से जानकारी ले लेना किन्नर कैलाश यात्रा के बारें में ये वहीँ से दर्शन करके आ रहे हैं । “महराज आप तो कल यहाँ से जाकर आज दर्शन करके यहाँ लौट भी आये”, बोलकर गिरी महाराज ‘शंकर-शंकर’ बोलकर उनके हाथ को अपने हाथ में लेकर जोर से ठहाका मारकर हंसने लगे । #लाइफ_लाफ़_एंड_बाबे
जब मैंने किन्नर कैलाश से लौटने वाले बाबा की तरफ देखा तो पाया मेरी ही तरह वो भी एकदम दुबले शरीर के मालिक हैं, उनके चहरे पर कहीं-कहीं दाढ़ी थी और जो थी भी वो भी बहुत छोटी थी, उनकी जटाएं कमर तक लम्बी थी, सफ़ेद रंग के छोटे के टुकड़े से खुद को ढका हुआ था, उनका पेट बिलकुल मेरे पेट की ही तरह कमर से चिपका हुआ था, गाल भी उनके भीतर धंसे हुए थे । कुल मिलाकर वो एकदम साधारण बाबा थे हम आम इंसानों की तरह लेकिन जो अकेला अंतर था वो उन्हें हम आम इंसानों से अलग कर रहा था वो था उनकी चमकती आँखें । पहली बार मुझे एहसास हुआ कि किसी की आँखें इतनी भी गहरी हो सकती हैं । भीतर से झांकती उन आँखों ने मानो सबकुछ खुद में समाया हो । मेरे लगातार उनके चेहरे की तरफ देखने से वो हंसने लगे और मैं भी । वह पल मेरे लिए वहीं रुक गया था और मैं उस हंसी के भंवर में बह गया था । #आदमी_हूँ_आदमी_से_प्यार_करता_हूँ
एक बड़ा ग्रुप आया मुरादाबाद से जिसमें टोटल 20 यात्री थे और मजे की बात यह थी कि सभी ताजा-ताजा श्रीखंड महादेव के दर्शन करके यहाँ पधारे थे और कल भीमकाली के दर्शन करके वापस मुरादाबाद चले जायेंगे । इस ग्रुप में कुक भी थे जिन्होंने आते ही चाय तैयार कर दी, जिसमें मुझे स्पेशल हिस्सा मिला । गिरी महाराज ने आकर उन्हें और मुझे दोनों को बोल दिया कि इस लड़के को खाना खिला देना । उनके कहने की वजह से सभी मुझे ख़ास समझ रहे थे जबकि मैंने सभी को साफ़-साफ़ बता दिया कि मैं भी आप लोगों की तरह ही श्रीखंड महादेव के दर्शन करके यहाँ आया हूँ और कल किन्नर कैलाश को निकालूँगा ।
रात 9 बजे खाना तैयार हुआ, खाना क्या था बस स्वाद का स्वर्ग था । खाना सर्व करने वाले ने मेरी प्लेट में कुछ ज्यादा ही खाना डाल दिया सभी के कहने पर, खाना इतना स्वादिष्ट था कि मैं उस एक्स्ट्रा खाने को भी खा गया । इस शाही खाने के मेनू में चावल, आलू-टमाटर की सब्जी, पुड़ी शामिल थी ।
रात साढ़े दस बजे सभी हॉल में लेटे और लगभग ग्यारह बजे मैं आज के शानदार दिन को याद करते हुए नींद को प्यारा हुआ ।
आज का ट्रैक भीम तलाई (3556 मी.) से शुरू होकर जाओं गाँव (1949 मी.) में खत्म हुआ जहां से कुफरी ग्रुप के साथ देवढांक के दर्शन भी हुए । आज के दिन का खर्चा 140 रु. रहा और अभी तक इस यात्रा पर कुल 977 रु. खर्च हो चुके हैं ।
आशा करता हूँ आप सभी को श्रीखंड महादेव यात्रा का अंतिम भाग पसंद आया होगा । आपके सुझावों के इंतजार रहेगा तब तक हर हर महादेव ।
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थाचडू से जाओं जाते यात्री |
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डंडा-धार का धना जंगल |
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बादलों के बीच दिखता जाओं गाँव |
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इतनी भी आसन नहीं है ये तीखी उतराई |
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ब्राती नाला और सिंहगाड़ के बीच |
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मुश्किल पर आकर्षित रास्ते |
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वैरी नियर कॉल |
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सतलुज के किनारे |
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देव ढांक से दिखता दत्तनगर |
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देव ढांक का गेट |
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यह आकृति गुफा के भीतर दिखाई देती है |
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शिव स्थल |
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देव ढांक से दत्तनगर के बीच |
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पहचान लो किसके जैसा दिखता है |
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भीम तलाई से जाओं गाँव के बीच का नक्शा |
भाग 1 : बीड़-शिमला (Bir-Shimla)
भाग 2 : शिमला-थाचडू (Shimla-Thachdu)
भाग 3 : थाचडू-भीम डुआरी (Thachdu-Bhim Dwari)
भाग 4 : भीम डुआरी - श्रीखंड महादेव – भीम तलाई (Bhim dwar – Shrikhand Mahadev – Bhim talai)
ग्रुप में यात्रा करने का अलग ही रुप होता है ग्रुप यात्रा सिरदर्द भी साबित हो जाती है जब कोई एक जिद्दी इंसान उसमें हो तो.. अकेले यात्रा में अलग ही धुन होती है। न बंधन न रोक टोक...
ReplyDeleteआदमी हो आदमी से प्यार करते हो, आज के समय यही कोई नहीं करना चाहता, अपना काम निकालने की पडी है लगभग सभी को,
गर्म पानी में हम भी नहाये थे जब बाइक पर स्पीति गये थे।
आपकी सभी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ संदीप भाई मलिंग । किसी के पास हमारे लिए समय न हो कोई बात नहीं क्योंकि कम से कम हमारे पास अपने लिए तो बेहिसाब समय है । धन्यवाद आपके कमेंट का।
Deleteबहुत बढिया भाई जी।ऐसे ही अपने अनुभव साझा करते रहिए।
ReplyDeleteशुक्रिया यहाँ आने के लिए शर्मा जी ।
Deleteबहुत शानदार अनुभव भाई
ReplyDeleteआपका स्वागत है हिमालय जी तराई में भाई जी....
Deleteबेहतरीन यात्रा वृतांत भाई जी
ReplyDeleteहम तो आप के साथ ही यात्रा कर के धन्य महसूस कर रहे है
धन्यवाद महेश भाई यहाँ आकर अच्छा महसूस करने के लिए, शुभकामनाएं
Deleteकुफरी ग्रुप भी सही चल रहा था लगभग हर जगह आपको मिला। बहुत बढिया रहा यह सफर
ReplyDeleteकभी-कभी कुछ लोग ग्रुप घुमक्कड़ी को जीवंत कर देते हैं। धन्यवाद व शुभकामनाएं
Deleteशानदार लेख भाई।
ReplyDeleteग्रुप यात्राएँ किसी को अच्छी लगे या न लगे, मुझे तो कतई पसन्द नही है। खासकर हिमालय में , पर्वतारोहण करते समय आपका साथी इस हो जो आपके साथ कदमताल करता हुआ चले