1877 रू. में 2 कैलाश दर्शन : भीम डुआरी - श्रीखंड महादेव – भीम तलाई (2 Kailash visited in just 1877 rupees : Bhim dwar – Shrikhand Mahadev – Bhim talai)

24 जुलाई 2017
दिन में तो लंगर वालों की उदारता देखने को मिली ही ऊपर में रात में उदारता ने गर्मी का रूप ले लिया । मेरा मतलब रात 10 बजे बाहर जब तेज बारिश शुरू हो चुकी थी तब मैं अपने स्लीपिंग बैग में घुस चुका था । अहा...अच्छा लगता है जब गर्मागर्म स्लीपिंग बैग अपने एहसास से आपको मदहोश कर दे और नींद के दरवाजे पर छोड़ दे लेकिन रात में जहाँ तापमान घटना चाहिए था वहीं तेजी से बढ़ना शुरू हो गया । शायद सपने में मुझे इस बात का एहसास हो चुका था कि अगले 30 सेकंड में अगर मैं स्लीपिंग बैग से बाहर नहीं आया तो मौत निश्चित है ।

सोमवार 24 जुलाई 2017 सुबह के सवा नौ बजे श्रीखंड कैलाश के दर्शन हुए 

अब तक आँखे खुल चुकी थी और इस बोरी को खोलना बाकी था जिसमें मेरा पूरा शरीर भुन रहा था, जल्दी ही  मैंने इसकी चैन खोली और चैन की सांस ली । जनरेटर की लाइट अभी भी जली थी जिसमें मुझे लंगर वालों की उदारता स्लीपिंग बैग के ऊपर पड़ी हुई मिली हरे कम्बल के रूप में ।

मेरी फड़फड़ाहट देखकर शर्मा जी को शायद ख्याल आया कि फरीदाबादी लड़का ठण्ड से काँप रहा है इसलिए उन्होंने एक कम्बल और डाल दिया मेरे ऊपर । मेरे 7 बार ‘प्लीज नहीं’ और ‘नहीं चाहिए’ की दरखास्त को बिल्कुल अनसुना कर दिया गया । अब हालात ये थे कि इस उदारता से मुझे डर लगने लगा इसलिए मैंने सारी फड़फड़ाहट को छोड़कर एकदम स्थिर लेटना ठीक समझा । समय रात के 11 हुआ था और लंगर की गतिविधियाँ शांत होने लगी थी । प्रधान जी जो कि 23 बार श्रीखंड महादेव के दर्शन कर चुके हैं, ने कदम बढ़ाएं जनरेटर बंद करने के लिये अचानक उन्होंने मेरी तरफ देखा और एंड मूवमेंट पर कदम पीछे मोड़ लिए । वो कोने में गये जहां से उन्होंने एक कम्बल अपने हाथ में ले लिया, मुझे डर लगने लगा कि कहीं वो मेरी तरफ ना जाएँ और मैं प्लीज-प्लीज मन-ही-मन बोलने लगा लेकिन ‘जाको रखे साईंयां मार सके न कोई’, तीसरा कम्बल मेरी कई सारी फरियादों के बाद भी मेरे ऊपर आ गिरा ।

लाइट ऑफ हो चुकी थी, बाहर बारिश काफी तेज हो चुकी थी और मेरा कमर से ऊपर का हिस्सा स्लीपिंग बैग और उदारता से बाहर था । मुझे समझाने का मौका भी नहीं मिला कि “यहाँ के मौसम के हिसाब से मेरी -5 डिग्री वाली बोरी काफी है” । मुझे नींद आ गई ये सोचते हुए कि “इस बार तो नहीं हो पायेगा लेकिन जल्द ही श्रीखंड महादेव टॉप पर एक पूरी रात बिताऊंगा” ।

“हर हर महादेव, ॐ नम: शिवाय, जय श्रीखंड महादेव की”, समुन्द्र तल से 3710 मी. की ऊँचाई पर, इंसानी बस्ती से 19-20 किमी. दूर हिमालय की ऊँचाइयों पर ये जयकारे जब कानों में पड़े तो आँखों का खुलना स्वाभाविक है । अन्दर अँधेरा था और बाहर से कैसी भी रोशनी का कोई सबूत नहीं मिल रहा था । मैंने अंदाजा लगाया कि समय शायद रात के दो-ढाई हुआ होगा और अभी उन लोगों का दल निकल रहा है जिन्हें टॉप तक पहुंचने में थोड़ा ज्यादा समय लगेगा । ऐसा सोचकर मैंने फिर से सोने का प्रयास किया ।

मेरी दाईं तरफ जब खांसने और धीमी आवाज में बातें करने की आवाज कानों में गुनगुनाई तो आँखे फिर से खुल गई । बिना ज्यादा सोचे-समझे मैंने बगल में लेटे एक यात्री का स्वीचड ऑफ़ मोबाइल पुन: चालू करवा दिया समय जानने के लिए । 3:55, बोलकर उन्होंने उबासी ली । धन्यवाद बोलकर मैंने करवट ली ।
चलने का समय आ गया । 5 मिनट बाद मैं उठा, तीनों उदारताओं को तह कर दिया, स्लीपिंग बैग को उसके छोटे से बैग में पैक कर दिया ।

कल शाम को ही एक छोटा बैग तैयार कर लिया था जिसमें रेनवियर, हेडलैंप, सनग्लास, कैमरा, पानी की बोतल, बिस्कुट, ग्लूकोस, लड्डू, मेरी पर्सनल आई-डी, घर का फ़ोन नंबर और कुछ पैसे लेकर भीम-डुआरी से तड़के 4:20 पर निकला । बाहर आकर सबसे पहले मुंह धोया और चल पड़ा । लंगर वालों की जानकार फैमली भी मेरे साथ-साथ ही निकली ।

मैं उम्मीद कर रहा था कि कम-से-कम अगर चलते वक़्त यहाँ चाय-बिस्कुट मिल जाते तो अच्छा रहता । रात को भीषण बारिश हुई थी जिस वजह से बेहिसाब कीचड़ हो गई थी पूरे रास्ते पर । रिमझिम बारिश अभी भी जारी थी और अँधेरा भी काफी था । चलते हुए मुझे टार्च और हेडलैंप की लाइट दूर पार्वती-बाग़ के नीचे तक दिखाई दी ।
थोड़ा आगे चलते ही एक जगह आई जहां की मिटटी एकदम लाल थी और उसपर से पानी बह रहा था । इस जगह को ‘लाल पानी’ के नाम से भी जाना जाता है । मान्यताओं की माने तो पांडव काल में इस स्थान पर बकासुर नामक राक्षस रहता था जो श्रीखंड महादेव के दर्शन करने जाने वाले यात्रियों को परेशान करता था । महायोद्धा भीम ने उसका इसी स्थान पर वध किया था । भस्मासुर का वध स्थल भी इसी स्थान को माना जाता है । बकासुर और भस्मासुर के रक्त की वजह से इस स्थान का रंग लाल का हो गया है ।

‘लाल पानी’ पार करके थोड़ा सीधा रास्ता आता है लेकिन कीचड़ ने मेरी तरह सभी के लिए मुश्किलें बढ़ा रखी थी । भीम डुआरी से 400-500 मी. आगे एक बड़ा झरना आता है जिसे ‘पार्वती झरने’ के नाम से भी जाना जाता है । 2015 में यहाँ बर्फ का पुल बना हुआ था लेकिन इस बार इसे पानी पर रखे पत्थरों पर चढ़कर ही पार करना था, बिना किसी समस्या के यह पार हो गया । बारिश बंद होने के साथ ही रेनवियर बैग में वापस आ गये और हेडलैंप भी क्योंकि रोशनी काफी हो चुकी थी ।

पार्वती झरने से श्रीखंड महादेव तक तीखी चढ़ाई ही चढ़ाई है और इस शुरू होती चढ़ाई ने मेरी परीक्षा लेनी शुरू कर दी । खाली पेट होने के एहसास ने मुझे मजबूर कर दिया बैग से बिस्कुट का पैकेट निकालने पर लेकिन अफ़सोस बिस्कुट नमकीन थे और सांसे फूलने की वजह से मेरा मुंह सुखा हुआ था ऐसा लग रहा था जैसे मैंने सूखा आटा खा लिया हो । 2 बिस्कुट बड़ी मुश्किल से पानी के साथ निगले जल्द ही इन्होंने अपने भीतर होने का सबूत दिया ।

अब चलने में अच्छा महसूस होने लगा । कैमरा वापस कंधे पर आ चुका था, होटों पर मुस्कान भागने लगी थी, शानदार नज़ारे स्वागत करने लगे थे, कुल मिलाकर इंजन गर्म हो गया था ।
55 मिनट में पार्वती बाग़ पहुँचा जहां सिर्फ पानी पीकर आगे बढ़ गया । यहाँ लगे बोर्ड के अनुसार : माता पार्वती बगीचा भीम-डुआरी और नैन सरोवर के बीच स्थित है । यह स्थान बहुत ही मनमोहक दृश्यों से भरा पड़ा है । वैसे तो थाचडू के बाद ही रंग-बिरंगे फूलों का मनोहारी दृश्य दिखने लग जाता है, परन्तु माँ पार्वती बगीचा बाकि सभी स्थानों से भिन्न है । यहाँ अनेक प्रकार के फूलों, जड़ी-बूटियों के अलावा महादेव का मनपसंद ‘ब्रह्मकमल’ भी पाया जाता है ।
“तुलसी वीरवां बाग़ में सिंचत ही कुम्लाय ।
  राम भरोसे जो रहे, पर्वत पर लहराय” ।।

देखा जाये तो यह स्थान इस यात्रा का आखिरी बैस-कैंप है । यात्री ज्यादा-से-ज्यादा इस स्थान तक रात बिता सकते हैं । प्रशासन की तरफ से इस बार यहाँ का ठेका जाओं गाँव के किसी ठेकदार को दिया गया है और इस बार इस स्थान को आपातकालीन स्थिति के लिए भी इस्तेमाल किया जा रहा है । यहाँ 40-50 लोगों के रुकने की व्यव्स्था है । पुलिस कर्मी और रेस्क्यू टीम पूरी मुस्तैदी के साथ तैनात है, इनकी मुस्तैदी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस बार 4 जुलाई से लापता एक युवक को इन्होंने 21 दिन बाद ढूंढा । क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हेलीकॉप्टर की उड़ान भी मददगार साबित नहीं हुई । उचित हो अगर सभी यात्री इस यात्रा को करते हुए खुद पर ही आश्रित रहें और पूरी तैयारी से चलें ।

पार्वती बाग़ को पार करते ही रॉक-गार्डन शुरू हो जाता है, रॉक-गार्डन मतलब जहां चारों तरफ पत्थर ही पत्थर हो । अब आगे का सारा रास्ता लगभग-लगभग पत्थरों पर चढ़ते हुए ही पार करना होगा । कई यात्री यहाँ तक पहुंचते-पहुंचते ही आउट ऑफ़ एनर्जी महसूस कर रहे थे इन्हें मैंने पत्थरों पर फिसलन की वजह से बाल-बाल बचते देखा । पैर फिसलने की वजह से यह यात्रा कई बार आखिरी यात्रा सिद्ध हो जाती है ।

अभी तक तन और मन ने एकजुट होकर काम किया, यहाँ तक कोई परेशानी नहीं हुई इसलिए भीम-डुआरी से नैन-सरोवर एक घंटे 40 मिनट में पहुंच गया । 6 बजे यहाँ पहुंचकर अच्छा लग रहा था लेकिन यहाँ धुंध और बर्फ की वजह से बहुत ठण्ड थी । मेरी तो साँसे तब रुक गई जब मैंने कुछ लोगों को इस सरोवर में नहाते हुए देखा । हो सकता है ये मुर्खता हो लेकिन कभी मैं भी इसमें डुबकी लगाकर इस मुर्खना का हिस्सा बनना चाहूँगा ।

कुछ पल के लिए यहाँ बैठा और यहाँ की ठण्ड को हड्डियों तक महसूस किया । आधा बिस्कुट, एक लड्डू, और 3 घूंट ग्लूकोस का पानी पीकर यहाँ से आगे बढ़ गया । यहाँ से 150-200 मी. की ऊँची दीवार पार करके ऊपर पहुंचना है जहां से रास्ता एक धार पर मिलता है । इसी धार (Ridge) पर आगे बढ़ते हुए यात्री श्रीखंड महादेव के सामने पहुंच जाते हैं । इस दीवार पर चढ़ना कोई आसान काम नहीं हैं क्योंकि इस स्थान पर एक गलती आपको मौत के मुंह में पहुंचा सकती है । यहाँ मैंने यात्रियों को सबसे बड़ी गलती करते हुए देखा और वो यह कि जब वो थक जाते तो रुक जाते और साँसों को पुन: नियंत्रित करने लगते । ऐसा सभी करते हैं मैं भी करता हूँ लेकिन समस्या यह है कि आपको थकने पर अपनी पीठ पहाड़ की तरफ रखनी है नहीं तो ग्रेविटी आपको सीधा नीचे से ऊपर ले जाएगी । चढ़ाई चढ़ते हुए हमेशा पहाड़ की तरफ अपनी पीठ रखे ऐसा करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप हाथ और पैरों की मदद से खुद को गिरने से सम्भाल सकते हो । चेहरा पहाड़ की तरफ करके रेस्ट करने पर आप पीठ के बल पीछे की और गिरोगे तब न हाथ काम आएंगे और न पैर ।

और एक बात रेस्ट करते हुए बाकी यात्रियों के लिए रास्ता छोड़े, मतलब पगडण्डी के बीच में आराम करते हुए पीछे और आगे वाले के लिए समस्या खड़ी न करें किनारे खड़े होकर सांस लें । ऐसी स्थिति में हादसों का प्रतिशत बढ़ जाता है । सच बताऊँ तो कई बार मुझे लगा था कि मेरे आगे चलने वाला लड़का कभी भी मेरे ऊपर गिर सकता है क्योंकि थकावट की वजह से उसके पैर काँप रहे थे और वो हर 2-3 कदम बाद रुक जाता था । माउंटेनियरिंग कोर्स में हमें बताया गया था कि पहाड़ हो या ज़िन्दगी मुश्किल रास्तों को हमेशा तेजी से पार करना चाहिए । मैंने भी ऐसा ही किया बिना रुके इस दीवार को पार किया और ऊपर जाकर पानी के 2 घूंट पीकर खुद को नार्मल किया ।

यहाँ ऊपर बर्फ है और आगे का 50 मी. तक का रास्ता इसी पर चलते हुए पार करना है । इस रास्ते पर मैं अकेला था मेरे आगे वाले पीछे ही बैठ गये । धीरे-धीरे और पूरे ध्यान से इसे पार करने में मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं आई । आड़ी पड़ी बर्फ पे चलने का भी एक सही तरीका होता है जो आपको आसानी से और सुरक्षित पार पहुंचा सकता है ।
एक और चढ़ाई शुरू हुई जहां से घाटी के दोनों तरफ का नज़ारा दिखाई देता है, लेकिन मुझे नहीं दिखाई दिया क्योंकि यहाँ तेज हवा के साथ धुंध उड़ रही थी । धुंध की नमी ने मेरे कपड़ों को गीला करना शुरू कर दिया था इसलिए जल्द ही मुझे रेनवियर पहनने पड़े ।
इस चढ़ाई के ऊपर पहुंचने पर थोड़ी सी बर्फ आई, यहाँ से रास्ता दाई तरफ मुड़ता है धार पर होते हुए । मौसम साफ़ नहीं था नहीं तो यहाँ से अविश्वसनीय दृश्य दिखाई देते हैं । अब पहली बार मुझे थकावट महसूस होने लगी थी, ऐसा होते ही मैं तुरंत रुक गया और कुछ बिस्कुट, एक लड्डू और ग्लूकोस का पानी पीकर खुद को कुछ % रिचार्ज किया आगे के लिए ।

सफ़र आगे बढ़ा तो खड़ी चढ़ाईयाँ शुरू हो गई, अब वक्त था चलने के लिए पैरों के साथ-साथ हाथों का भी इस्तेमाल करने का । इसी स्थान पर पहली बार 2 लड़कों को ऊपर से नीचे आते देखा । आगे वाले यात्रियों ने उनसे बात की तो पता चला दोनों आज रात डेढ़ बजे ही निकल गये थे भीम डुआरी से और अब दर्शन करके सीधा नीचे जाओं जा रहे हैं । अगर दोनों आज ही जाओं पहुंच जाते हैं तो यह कठिन यात्रा दो दिन में ही पूरी हो जाएगी ।

सभी ने जोर से हर-हर महादेव का जयकारा लगाया और धीरे-धीरे चलने लगे । इन पथरीले रास्तों पर चलते हुए मैंने एक बात और महसूस की और वो ये कि “कुछ लोग डंडों के साथ चल रहे थे और ज्यादातर समय उनके डंडे पत्थरों की दरारों में घुस जाते जिस वजह से उनका शरीर असंतुलित हो जाता, ऊपर से डंडे को बार-बार पत्थरों के बीच से निकालने पर उन्हें अतिरिक्त ऊर्जा खर्च करनी पड़ रही थी । मैं तो बस इतना ही कहना चाहूँगा जहां डंडे की जरुरत हो वहां डंडे के साथ चलो और जहां हाथों की मदद चाहिए हो वहां हाथों का सहारा लो । चुनाव आपका है पथरीली चढ़ाई पर डंडा या चार पैर वाले जानवर की तरह चलना ।

अब मैं सच में थक गया था और मुझे थकान की वजह से दो बार रुकना पड़ गया था । तीसरी बार जैसे ही मैंने रुकना चाहा वैसे ही मुझे कुफरी वाला ग्रुप दिखाई दिया जिन्होंने मुझे अपनी गाड़ी में लिफ्ट दी थी । ‘बम-भोले’ बोलकर सभी ने मेरा स्वागत किया । विक्की जोकि ग्रुप लीडर था उसने सभी को निर्देश दिए कि आधे घंटे का रास्ता और रह गया है और सभी सिर्फ-और-सिर्फ रास्ते पर फोकस करेंगे, कोई भी न नज़ारे देखेगा और न पीछे देखेगा सबकी नजर इस पतले रास्ते पर होनी चाहिए ।

सुबह 8:30 बजे हम सभी भीम-बही पहुंचे । यहाँ कहीं-कहीं थोड़ी बर्फ पड़ी थी । स्थानियों के अनुसार यहाँ रखे आयताकार पत्थरों को महाबली भीम द्वारा लाया गया है और प्राचीन लिपि में उन्होंने इन शिलाओं पर कुछ सन्देश भी लिखे हुए हैं, बहुत से लोग शिलाओं पर बने इन बिन्दुओं को भीम का गणित मानते हैं । कहा जाता है कि भीम ने ये शिलाएं स्वर्ग जाने के लिए लगाईं थी और इसी वजह से यह स्थान आज भीम-बही के नाम से प्रसिद्ध है ।

कुफरी ग्रुप के साथ मैं कदम से कदम मिलाकर चल रहा था । ग्रुप लीडर विक्की ने बताया कि नीचे से अभी तक मैंने किसी को भी सिगरेट नहीं पीने दी है इसलिए हम लोग इतनी जल्दी यहाँ तक पहुंच गये है लेकिन हाँ ऊपर पहुंचकर सभी भोले का प्रसाद ग्रहण जरुर करेंगे ।
भीम-बही शिलाओं को पार करके शुरू हुआ बर्फ वाला रास्ता, जिसे सभी आखिरी ग्लेशियर कह रहे थे । पगडण्डी पर बर्फ लगभग 70 मी. तक फैली थी । रास्ता ढलान पर था और बर्फ ने उसे और ज्यादा मुश्किल बना दिया था लेकिन सभी लोग धीरे लेकिन सुरक्षित पार करने में सफल हुए । अगर इस स्थान पर क्लाइम्बिंग रोप या कोई स्टील का तार बाँध दिया जाएँ तो इस स्थान पर होने वाले हादसों को टाला जा सकता है । 2014 में इसी स्थान पर 2 भाईयों की जान इसी बर्फ पर फिसलकर हुई थी जो सीधा खाई में जा गिरे थे ।

बर्फ के दुर्गम रास्ते को पार करके वो जगह आई यहाँ सभी यात्रियों ने अपने जूते उतार रखे थे । इस जगह को ‘चरण-पादुका’ के नाम से भी जाना जाता है इसलिए यात्री यहाँ से आगे अपने जूते-चप्पल नहीं ले जाते, यहाँ से आगे उन्हें नंगे पैर ही रास्ता तय करना होगा ।
सुबह के सवा नौ (9:15) बजे थे जब मैं श्रीखंड महादेव के सामने पहुंचा । भीम-डुआरी (3710 मी.) से श्रीखंड महादेव (5227 मी.) 5-6 किमी. की दूरी तय करने में मुझे 4 घंटे 55 मिनट का समय लगा । इन 5-6 किमी. में  लगभग 1517 मी. का हाईट-गेन किया जोकि 217 मी. प्रति किमी. के हिसाब से बहुत ज्यादा है ।

यहाँ धुंध काफी थी और भीड़ भी । मैं फटाफट दर्शन करके नीचे जाना चाहता था क्योंकि यहाँ मौसम बेहद खराब था । ओस लगातार गिर रही थी और भिगो रही थी । जूते उतारकर जैसे ही मैंने कदम बढाएं वैसे ही श्रीखंड पर छाये काले बादल एक तरफ हो गये और नीला आकाश दिखाई दिया जिसने श्रीखंड महादेव के वहां मौजूद सभी श्रद्धालुओं को साफ़-साफ़ दर्शन करवाएं । ऐसा होते देख सभी ने एक स्वर में जयकारा लगाया ‘हर हर महादेव” । इसी साफ़ मौसम का फायदा उठाते हुए मैं कुछ फोटो खींचने में भी कामयाब रहा ।

जब इस हल्के भूरे रंग के शिवलिंग के सामने खड़ा हुआ तो एक बिलकुल ही नये एहसास ने मुझे छुआ । उस एहसास ने मुझे कुछ पल के लिए वहीँ बाँध दिया, हिलने तक न दिया, शरीर का एक-एक रोंआ खड़ा हो गया । अब सोचता हूँ तो जो समझ आता है वो यह कि उस समय मेरे ही एहसासों ने मुझे छुआ । #फुल_पॉवर

श्रीखंड महादेव 5140 मी. (16864 फुट) की ऊँचाई पर स्थित है । 75 फुट ऊँचाई और 46 फुट व्यास के साथ इस विशाल शिला का आकर शिवलिंग जैसा है । शिवलिंग के मध्य दरार है जो इसे कई भागों में बाँटती है । मान्यता है कि इस दरार में गुप्त भेंट डालने से मनचाही मुराद पूरी हो जाती है । यहाँ मौजूद पंडित जी ने बताया कि न जाने कब से श्रद्धालु इस दरार में भेंट डाल रहे हैं लेकिन ये दरार है कि भरने का नाम ही नहीं ले रही है ।

श्रीखंड महादेव के बारे में जो कथा प्रचलित है वह यह कि “भोलेनाथ भस्मासुर को ‘भस्म करने’ का वरदान देकर खुद ही मुश्किल में पड़ गये, क्योंकि भस्मासुर माँ पार्वती को पाने के लालच में महादेव के पीछे पड़ गया । निरमंड स्थित देवधांक गुफा में प्रवेश करके महादेव श्रीखंड पहुंचे और इस शिवलिंग शिला के रूप में समाधिस्त हो गए । भगवान गणेश, कार्तिकेयन और माँ पार्वती ने इसी स्थान पर घोर तपस्या की तब जाकर महादेव इस चट्टान को खंडित करके बाहर आये । खंडित होने का सबूत अभी भी इस शिवलिंग में साफ़-साफ दिखाई देता है ।
45 मिनट भोले के साथ बिताकर मैं वापस चल पड़ा । कुफरी ग्रुप श्रीखंड के पीछे सिगरेटों में प्रसाद भरकर उन्हें सुलगाने का अथक प्रयास कर रहा था । 10 बजे चलने से पहले मैंने बिस्कुट खाया, एक लड्डू और कुछ घूंट पानी पीकर गाड़ी में किक मारी वापसी के लिए ।

उतराई ऊपर से रास्ते में बर्फ, कई बार फिसला लेकिन सैफ्ली बर्फ वाले रास्ते को पार कर लिया । नॉन-स्टॉप चलता रहा और डेढ़ घंटे में नैन सरोवर पहुंच गया, जहां बैठकर वही पुरानी डाइट फिर से शरीर में पहुंचाई । डाइट में इस बार थोडा वैरीऐशन आया इस बार काजू और किशमिश भी खाने को मिले । #थैंक्स_टू_कुल्लू_बॉयज
कुछ पल यहाँ बिताकर जल्द ही मैं नीचे को बढ़ चला इस बार भीम-डुआरी तक साथ देने के लिए कुल्लू के दो साथी मिल गये । इनका स्टेमिना काफी अच्छा था, उनकी स्पीड को मैच करने के लिए मुझे अतिरिक्त कैलोरी बर्न करनी पड़ी जिसका भार मेरे 53 किग्रा. वजन वाले शरीर को उठाना पड़ा । नैन सरोवर से पार्वती बाग़ तक हम तेज चले और पार्वती बाग़ से भीम-डुआरी तक दौड़ते गए । नैन सरोवर से भीम-डुआरी तक हम लोगों को मात्र 30 मिनट लगे, अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हम किस स्पीड से पहुंचे । #हिमालयन_गोट

2015 में मैं किसी मुर्दा की तरह भीम-डुआरी पहुंचा था लेकिन इस बार ऐसा बिल्कुल भी नहीं हुआ । मैं सुरक्षित सही-सलामत यहाँ पहुंच चुका था, पैर एकदम बढ़िया काम कर रहे थे, मन अच्छा था और खुश था । कुल मिलाकर मेरे लिए यह यात्रा बहुत ही मजेदार रही ।

एक सलाह : अगर आप फिट हैं तो आपको कुदरत नये-नये एहसासों ने रूबरू करवाएंगी, और अगर आप थक गयें हैं और हर सांस के साथ आपको सिर्फ अपनी थकावट का ही ख्याल है तो न आप किसी नये दृश्य या एहसास को देख व समझ पाएंगे बल्कि ऐसी परिस्थिति में कुदरत भी आपका अपने आप से वंचित कर लेगी । मेरा व्यायाम मुझे फिट नहीं रखता बल्कि मेरी यात्रायें मुझे सुपर फिट रखती हैं हमेशा ।
तो दोपहर 1 बजे भीम-डुआरी पहुंचा जहाँ सम्पूर्ण लंगर ने मुझे श्रीखंड दर्शन के लिए मुबारकबाद दी बदले में मैं सिर्फ उन्हें हाथ जोड़कर शुक्रिया ही बोल पाया । खाना शुरू करने से पहले 8-10 मिनट तक थोड़ी हल्की स्ट्रेचिंग करी ।

अब वक़्त था कुछ खाने का और ज्यादा देर न करते हुए सबसे पहले मैंने दाल-चावल खाए और फिर गर्मागर्म मीठी चाय पीकर, पेट में फिट मशीन को खाना पचाने के काम पर लगा दिया ।
लंगर में आकर जैसे ही बैठा वैसे ही किसी ने जबदस्ती मुझे कम्बल ओढ़ा दिया । कम्बल में आते ही मैंने भी कमर को सीधा कर दिया और सोने का भरपूर प्रयास किया लेकिन बहुत कम होता है कि मुझे दिन में नींद आये । काफी देर तक लेटे-लेटे सोचता रहा कि आगे जाऊं या आज यहीं आराम करूँ । यहाँ रुकने के कई फायदे थे और सबसे बड़ा फायदा था यहाँ मेरा कोई भी खर्चा नहीं हो रहा था और अगर आगे गया तो वहां रहने और खाने का खर्चा निश्चित है । आगे बढ़ने का प्लस पॉइंट यह भी है कि कल का सफ़र थोड़ा छोटा हो जायेगा जो कि मेरे हल्के शरीर के हिसाब से काफी अच्छी बात होगी, तो ठीक है आगे निकलते हैं ।

लंगर वालों ने आज वहीं रुकने का आग्रह किया लेकिन मेरे कल के सफ़र को मध्यनजर रखते हुए मुझे जाने की इजाजत दे दी और साथ में लंगर की तरफ से प्रसाद भी दे दिया जिसमें लड्डू थे । सभी को हाथ जोड़कर नमस्कार किया और भीम-डुआरी से दोपहर ढाई बजे (2:30) निकल पड़ा भीम तलाई के लिए ।
बारिश अभी भी हो रही थी इसलिए रेनवियर वापस से शरीर के ऊपर आ चुके थे और गीले जूते-जुराब भी लेकिन नीचे से । मुझे अच्छी तरह याद है पिछली बार भी मैं भीम तलाई ही रुका था और तब भी बारिश में ही भीगता हुआ गया था । लास्ट टाइम भीम-डुआरी से भीम तलाई 6 किमी. का ट्रैक 2 घंटे में पूरा किया था । इस बार भी मैं इतना समय सोचकर ही चला था ।

बारिश तेज हो गई थी, शुरुआत में तो कुछ लोग मिले मुझे भीम-डुआरी की ओर आते लेकिन बाद में कोई नहीं मिला । जाने वाले भी सब पीछे रह गये अब मैं अकेला ही तेजी से बिना रुके अपनी आज की मंजिल की ओर बढ़ रहा था । सच बताऊँ इस तरह अकेले सफ़र करने में मुझे दिल से मजा आता है, कभी-कभी तो लगता है सिर्फ अकेले रहने और चलने के लिए ही ट्रैकिंग करता हूँ ।

खड्ड में उतरना फिर चढ़ना, कभी सीधा रास्ता मिले तो कभी कीचड़युक्त, कई पानी से भरे खड्डों को पार करना पड़ा जोकि बारिश में अपने चर्म पर थे, कुंशा और अंत में एकमात्र स्नो-ब्रिज को पार करके यात्री 4 बजकर 5 मिनट पर भीम तलाई पहुंच गया । टाँगे ऐसे व्यवहार कर थी जैसे उनको पंख लग गयें हो, यह 6 किमी. का ट्रैक पूरा करने में मात्र एक घंटे 35 मिनट का समय ही लगा ।

पहले ही टेंट वाले ने रेट बताकर मुझे बिदका दिया । अब 400 रु. रहने और खाने का बोज ये यात्री उठाने में सक्षम नहीं है । आगे बढ़ा और अगले टेंट वाले ने ढाई सौ रूपये बोले रुकने और खाने के, मैंने कम कराने का प्रयास किया लेकिन उसने सिर्फ 50 रु. ही कम किये ।

200 रु. में डील पक्की करके सबसे पहले खुद को रेनवियर और पानी से भरे जूतों से रिहा किया । टेंट के भीतर चूल्हा जल रहा था जिसने अगले 4 घंटों तक मेरे लिए ड्रायर का काम किया । रात 8 बजे दाल-चावल, राजमा और रोटी का बेहिसाब स्वादिष्ट खाना खाकर आत्मा तक तृप्त हो गई । रात 9 बजे स्लीपिंग बैग में घुसकर मैं लगभग साढ़े नौ बजे तक नींद को प्यारा हो गया ।

यह एक बहुत लम्बा दिन रहा जिसमें दिनभर मौसम पूरे उफान पर रहा । आज भीम-डुआरी (3710 मी.) से श्रीखंड महादेव (5140 मी.) के दर्शन करके भीम तलाई (3556 मी.) रुका । टोटल 20 किमी. का ट्रैक किया जिसे तय करने में 11 घंटे 45 मिनट का समय लगा ।

इस लम्बे दिन का खर्चा 200 रु. आया और अभी तक इस यात्रा का कुल खर्चा 837 रूपये हो चुका है ।
आशा करता हूँ आप सभी को श्रीखंड महादेव के दर्शन करके अच्छा लगा होगा । आपके सुझावों का इंतजार रहेगा तब तक "हर हर महादेव"' ।

श्रीखंड महादेव की शानदार सफल यात्रा के बाद चलो “किन्नर कैलाश” ।

नीचे दिखता भीम डुआरी और ऊपर दिखाई देता इन्द्रधनुष

सुबह 2 बजे ही लग जाती हैं ये कतारें 

गिनना है तो गिन लो बहुत सारे लोग हैं जो पार्वती बाग़ की और बढ़ रहे हैं

पार्वती बाग़ जहां हर प्रकार की आपातकालीन स्थिति के लिए पुलिस और रेस्क्यू टीम तैयार रहती है 

रॉक गार्डन नैन सरोवर से पहले 

पार्वती बाग़ के टॉप पर कुछ यात्री सांस लेते हुए 

पीले और लाल निशान पूरे रास्ते पर बने हैं यात्रियों को भटकने से बचाने के लिए 

नैन सरोवर 


हुजूम है जनाब जो उमड़ पड़ा है दर्शन को

ये है वो दीवार जहाँ होश खो जाते हैं

गिरोगे तो कहाँ जाओगे देख लो, और अगर सम्भल गये तो कहाँ पहुंचोगे ये सोचना मत भूलना

हर हर महादेव

धुंध हटते ही कैमरे से हमला बोल दिया 

श्रीखंड महादेव के गर्भ में रखी शिव-पार्वती की प्रतिमा 

कैलाश के पीछे का नज़ारा जहां भोले की फ़ौज भर-भरकर जी रही है 

इस शिला को गणेश-पार्वती कहा जाता है 

तू ही निशब्द

पंडित जी पार्वती बाग़ से रोज श्रीखंड आते हैं #अल्ट्रा_एथलीट

और वापसी फिर वापस आने के लिए 

भीम डुआरी से श्रीखंड कैलाश का सैटेलाइट नक्शा जिसमें दूरी, ऊंचाई का विवरण है 

भाग-1 : बीड़-शिमला (Bir-Shimla)
भाग-2 : शिमला-थाचडू (Shimla-Thachdu)
भाग-3 : थाचडू-भीम डुआरी (Thachdu-Bhim Dwari)

Comments

  1. बहुत बढिया पोस्ट है।

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  2. पोस्ट पढ़कर ही मन के सूखे मरुस्थल में हरियाली छा गयी प्रत्यछ देखकर तो दिल हरा भरा हो जाएगा!

    बहुत बढ़िया रोहित भइया आपके अच्छे स्वास्थ्य की ढेरों शुभकामनाएं

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    1. प्रत्यक्ष देखकर तो जनाब जीवन का मिलन कुदरत से हो जायगा। धन्यवाद आपकी शुभकामनायों के लिए। आशा करता हूँ आप भी अच्छा कर रहे हों

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  3. दिल बाग बाग हो गया श्रीखंड महादेव के दर्शन कर के

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    1. शुक्रिया व शुभकामनाएं गौतम साब

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  4. जी भोले।।।
    "भोले की फौज
    करेगी मौज"
    अति सुंदर।।।

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  5. दिल की गहराई से लिखा गया लेख,
    सावधानी बताते चलो,अच्छा काम है, दूसरों को लाभ मिलेगा।

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    1. आपका कमेन्ट हमेशा ही अतिरिक्त ऊर्जा देता है। प्रयास जारी हैं आपके अभियान की तरह। धन्यवाद भाई जी

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  6. Superb description sir maine bhi Shrikhand yatra ki thi 2016 main ki thi bahit amazing experience hai please give me all detailed for Kinner kailash

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    1. Thanks for your comment Navin. Soon I'll upload the information regarding kinner kailash yatra.

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  7. वाह! अद्धभुत वर्णन,, फोटो देखकर अच्छा लग रहा है जय भोले नाथ

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया सचिन भाई।

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  8. बहुत बढ़िया लेख रोहित भाई।

    कम पैसों में ज्यादा जगह घूमना ही असली घुमक्कड़ी है

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