21 जुलाई 2017
“जब जेब में पैसे हों तो दिमाग अलग तरह से काम करता है और जब नहीं हों तो काम कम करता है भटकता ज्यादा है । मैं भी इसी भूल-भुलैया में लम्बे समय तक भटकता रहा । अब जो याद है वो ये कि 'कभी अकेले घूमता था खुद के साथ दीवानों की तरह' । फरवरी 2016 के बाद बहुत सी जगहें घुमा लेकिन जहां कदम अकेले चले वो जगह थी चादर ट्रैक” ।
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श्रीखंड महादेव यात्रा 2017 |
सदियों बाद मुझे 4700 रु. नसीब हुए । बहुत मेहनत लगती है बिना कुछ करे पैसे इकठ्ठे करने में ।
4700 रु. आते ही प्लान बनाया चार कैलाश एक-साथ घूमने का । हो सकता है चार कैलाश
एक-साथ घूमना मुश्किल न हो लेकिन 4700 रु. में घूमना तो पक्का मुश्किल काम है ।
2013 से जिसने एक भी रुपया नहीं कमाया हो उसके लिए ये पैसे किसी बड़े खजाने से कम नहीं
थे और अब वक़्त था इस खजाने को सीड़ी बनाकर हिमालय की ऊंचाईयों को छूने का ।
एक हफ्ते तक मैंने काफी सोचा और एक एक्सेल वर्कशीट बनाई जिसमें अपना सारा कम-से-कम
खर्चा लिखा लेकिन यहाँ एक प्रॉब्लम आ गई और वो ये कि अकेले पब्लिक ट्रांसपोर्ट का खर्चा
ही 3978 रु. आया । सारा पैसा
तो किराया चुकाने में ही खर्च हो जायेगा तो ग़ालिब खायेगा क्या और निचोड़ेगा क्या?।
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4 कैलाशों के एक-साथ दर्शन का प्लान ।
नोट : उपरोक्त टेबल सिर्फ बस का अनुमानित किराया बताता है ।
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एक-दो दिन ऐसे ही बीत गये ये सोचते हुए कि 'क्या करूँ क्या न करूँ'?। 2
फेसबुकिया मित्र (संदीप पाटील और अंशुमन मिश्रा) भी इन्हीं रास्तों पर चलने वाले
थे और फ़ोन पर बात करके उन्होंने मेरी पूरी-पूरी मदद का वादा किया लेकिन..."ये जो
‘लेकिन’ है ना मेरी ज़िन्दगी में मदद लेने ही नहीं देता”, उनकी मदद की तहेदिल से
सराहना की और फिर वही करने लगा जो हमेशा से करते हुए आया हूं । इतने पैसों में
जितना हो पायेगा उतना ही मुसाफिर घूमेगा... दट्स इट ।
21 जुलाई 2017 सुबह ही अपना रकसैक पैक कर लिया, बैग में नीचे दिए गये
स्नैपशॉट के अनुसार सारी जरुरी सामग्री भर ली गई ।
कैलाश दर्शन हेतु सामान की चेक लिस्ट
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बीड़ जोकि धौलाधार रेंज के आधार में स्थित है और यहाँ मानसून में नॉन-स्टॉप
भयंकर बारिश होती है आज मुझे भी अपनी शुरुआत इसी बारिश की गवाही में करनी है ।
रिमझिम बारिश की नटखटी बूंदों ने मेरा स्वागत किया जिन्हें मैंने अपने बालों से
भरे चहरे पर महसूस किया ।
शाम 5:10 पर मैं बीड़ से निकला बस स्टैंड की ओर, 5:15 बस स्टैंड पर पहुंचा
जहां मकान-मालिक को ऑफिस कम घर की चाबी सौंपकर 5:30 पर बीड़ से बैजनाथ की बस में
बैठ गया । टिकट 20 रु. का लगा ।
बाहर अभी भी बारिश हो रही थी और भीतर कल रात सिंघाड़ में रुकने का विचार बह
रहा था । 6:10 पर बस ने बैजनाथ बस स्टैंड पर उतारा जहां पानी की छई छप्पा छई से
बचते हुए पूछताछ खिड़की पर पहुंचा । खिड़की खाली थी और चाय के कप भरे । एच.आर.टी.सी.
(HRTC) का समस्त स्टाफ एक ही धुन में चाय की चुस्की ले रहा था जिसकी आवाज मुझे
बाहर तक आ रही थी । #सुपड़_ सुपड़_और_ सुपड़
“हाँ बताओ क्या चाहिये ?”, बोलकर मोटे पेट वाले अंकल ने मुझे ऐसे देखा जैसे
मैं उनकी चाय में गिरी मक्खी होऊं जिसे उन्होंने कुछ देर पहले ही बाहर निकालकर फैंका
हो ।
"मुझे कुछ नहीं चाहिए सर, बस कृपया यह बता दीजिये कि शिमला की बस कितने बजे
की है और क्या टिकट अभी मिल जायेगा” ? । “बेटे शिमला की बस 6:20 की है और टिकट
बराबर वाली खिड़की से मिलेगा”, बोलकर उन्होंने स्माइल पास की । कभी-कभी कुछ बातें
समझ से परे हो जाती हैं यहाँ भी ऐसा ही हुआ मोटे अंकल की मधुरता देखकर, पता नहीं
चाय ज्यादा मीठी थी या मेरा सर का संबोधन ।
“चार बोतल वोडका काम मेरा रोजका”, बगल वाली खिड़की में मुंह डालने से पहले
ही श्री श्री 1008 बाबा यो यो हनी सिंह महाराज जी के ये मधुर शब्द कानों में पड़ते
ही सारी पिक्चर क्लियर हो गई कि "खिड़की के पीछे जो महापुरुष बैठे हैं वो श्री श्री
1008 बाबा यो यो हनी सिंह महाराज जी के घोर परमभक्त हैं" । घोड़े की नाल के आकर वाली
खिड़की से जैसे ही मैंने झाँका तो जो दृश्य मैंने देखा वो किसी बस अड्डे के होने की
तरफ इशारा तो बिलकुल नहीं कर रहा था ।
अविस्मर्णीय दृश्य की झलकियाँ :-
“घोर परमभक्त के बालों की कटिंग ज्यों-की-त्यों श्री श्री 1008 बाबा यो यो
हनी सिंह महाराज जी जैसी थी, उन्होंने नीचे वाले होंठ को ऊपर वाले दांतों के तले
दबा रखा था, दोनों हाथों से मोबाइल को टेढ़ा पकड़ा हुआ था जिससे साफ-साफ महसूस हो
रहा था कि वो महाराज जी का विडियो देख रहे हैं, कलाइयों में लाल, हरे, और पीले रंग
के 108 दानों का ब्रिस्लेट बंधा था जो बाबा बॉब मारले से निजी सम्बन्धों की पुष्टि
कर रहा था, पीले रंग के टी-शर्ट पर बना हाथ का निशान साफ़-साफ़ कॉमेडियन कपिल शर्मा
के तकिया कलाम “बाबा जी का ठुल्लू” की उपस्थिति दर्ज करा रहा था । इतनी महान
आत्माओं की मौजूदगी में उस छोटे से टिकट काउंटर का माहौल जादुई था । घोर परमभक्त
ने दोनों आँखों को बंद किया हुआ था और गर्दन को दायें से बाएं फिर बाएं से दायें
नचा रहे थे, कभी-कभी सीधे हाथ की दो उंगलियों को खड़ा करके ‘V’ का निशान बनाकर उन्होंने कूलता का प्रमाण-पत्र दिया” ।
सर, भाई जी, जैसे संबोधन जब कोई आपके सामने होते हुए भी न सुने तब समझ लेना
चाहिए कि सामने वाला कोई बहुत बड़ा तपस्वी है । अपनी ओर रिझाने के लिए मुझे खिड़की को
जोर-जोर से थपथपाना पड़ा तब जाकर घोर परमभक्त ने अपने दिव्य चक्षु मेरी ओर घुमाये,
बेशक मेरा इरादा बिलकुल भी उनकी गहन समाधि को तोड़ने का नहीं था लेकिन मेरी इसी
हरकत की वजह से मुझे हाफ मोक्ष प्राप्त हुआ ।
मुझसे बिना कुछ पूछे ही घोर परमभक्त ने घोषणा कर दी कि “सर्वर डाउन है बाद
में आना”, उनके ये शब्द पूरे बस स्टैंड में ऐसे गूंजे जैसे महाभारत में जब समय का
पहिया बोलता था, “मैं समय हूँ” ।
सर्वर डाउन है सुनकर सारा भक्तिमय माहौल जैसे उत्तेजित हो उठा, बारिश और
जोर से होने लगी, बिजलियाँ कड़कने लगी, एक-साथ सभी बसें जोर-जोर से हॉर्न बजाने
लगी, कीचड़ उछलने की वजह से 2 औरतें प्रकाश की गति से भी तेज गति से एक-दूजे पर
लपकी, छोटे सींगों वाले काले रंग के बेरोजगार सांड ने भी बेवजह सींग मारना शुरू कर
दिया । सारा माहौल एक ही तरफ इशारा कर रहा था और मैं ग्लोबल वार्मिंग की हिंट को
समझ चुका था । इस दुनिया में हर इंसान जिस काम को सबसे आखिर में करना चाहता है
मुझे वही करने के लिए प्रेरित किया गया या यूँ कहो कि बाध्य किया गया क्योंकि उसके
सिवाय अब कोई भी चारा शेष नहीं रह गया था । तो चलो करते हैं अंतिम कार्य ‘इंतजार’
।
10 मिनट बाद घोर परमभक्त ने स्वयं ही मुझे खिड़की के भीतर से पुकारा और ‘आज
का शुभ विचार’ मुझसे बांटा “सर्वर उप हो गया है बोलो कहां की टिकट काट दूँ?”, 6:20
वाली बैजनाथ टू शिमला की डबल साइड वाली सीट में से हो सके तो खिड़की वाली सीट देना ‘महाराज
जी’ । मेरे वाक्य के अंतिम शब्दों पर ध्यान देते हुए उन्होंने कीबोर्ड के कुछ बटन
जोर-जोर से दबाएँ और कंप्यूटर स्क्रीन को देखकर गर्दन हिलाकर बोले “खिड़की वाली कोई
भी सीट उपलब्ध नहीं है” । “डबल-साइड में बीच की कोई सीट दे दो अगर खाली है तो”,
बोलकर मैं थोडा सकपकाया । “हम्म...16 नंबर कैसी रहेगी?”, बोलकर उन्होंने हाथ से 'V'
बनाया ? “अच्छी रहेगी”, गुनगुनाकर मैंने ऑंखें झपकाई ।
230 रु. चुकाकर सफ़र की शुरुआत करी । बाद में मैंने सोचा कि मुझे ‘महाराज जी’
नहीं बोलना चाहिए था, चलो ‘महाराज’ तो ठीक था लेकिन फिर ‘जी’ की पुंछ नहीं लगानी
चाहिये थी, पक्का यही वजह रही मुझे खिड़की वाली सीट नहीं देने की । शायद घोर
परमभक्त ने मेरी बुद्धि भ्रष्ट कर दी थी तभी तो मैं एडवांस बुकिंग न कराने की बजाय
अपने शब्दों के चयन पर हैरान हो रहा था ।
इंतजार करते हुए जब भूख लगी तो एक 10 वाला टाइगर बिस्कुट ले लिया और
बिस्कुट हाथ में आते ही बस भी आ गई, इसे कहते है टाइगर की शक्ति ।
रकसैक को पैरों में ही रखना पड़ा क्योंकि सामान ज्यादा होने की वजह से वह
ऊपर रैक में घुस ही नहीं पाया । करेक्ट 6:20 पर बस ने बैजनाथ को छोड़ा । अब कोई
डर नहीं था सिवाय एक के और वो था घुमावदार रास्तों का । इतना ज्यादा घूमने-फिरने
के बाद भी मेरा सिर बन्दर की तरह गुलाटियां मारने लगता है पहाड़ी रास्तों पर ।
जोगिन्दरनगर पार करने के बाद तो डर कुछ ज्यादा ही हावी हो गया, ये इतना हावी हो
गया कि जब बस डिनर के लिए रुकी तो डर को निकालना पड़ा । जी हाँ उल्टी हो गई, अच्छा
हुआ हो गई नहीं तो सफ़र सफ्फरिंग बन जाता मेरे लिए ।
पद्दर पहुंचते-पहुंचते नींद ने अपने आगोश में ले लिया जिसके बाद शिमला तक
सिर्फ कुछ ही पॉइंट याद है जैसे जब बस मंडी बस अड्डे में घुसी, अनजानी जगह पर चाय
के लिए रुकी, और कहीं पर किसी चीखते पुरुष सवारी के ब्लेडर को बचाने के लिए ।
बस ने तड़के 4:30 पर शिमला नये वाले बस स्टैंड में प्रवेश किया । पूछताछ पर
पता चला कि पांच के बाद ही रामपुर की बस आयेगी । मुझे भी यही बस पकड़नी है क्योंकि
ये ही मुझे दत्तनगर उतारेगी जहां से आगे मैं बागीपुल के लिए बस लूँगा ।
अब जब बस लगभग एक घंटे बाद आयेगी तो क्यों न वही काम कर लिया जाये जिसे सभी
अंत में करना चाहते हैं ‘इंतजार’ । बीड़ से शिमला की दूरी लगभग 250 किमी. है, और इस
यात्रा के पहले दिन का खर्चा 437 रु. रहा ।
आशा करता हूँ इस यात्रा
का पहला लेख सभी को पसंद आएगा । जुड़े रहिये क्योंकि अगली कड़ी में मुसाफिर जाओं से
थाचडू 10.5 किमी. की खड़ी चढ़ाई पांच घंटे पंद्रह मिनट में चढ़ेगा ।1877 रु. में 2 कैलाश दर्शन : शिमला-थाचडू (2 Kailash visited in 1877 rs. : Shimla-Thachdu)
शानदार लेख, कल्याणा महाराज जी,
ReplyDeleteपूरी लय ताल में लिखा हुआ लग रहा है।
नक्शा लगाने की शायद आवश्यकता नहीं है। नक्शे का स्क्रीन शाट बेहतर रहेगा।
कुछ लोग है इस दुनिया में जिनकी सलाह मानना मुझे अच्छा लगता है, स्क्रीन शॉट लगा दूंगा अगली बार से । दिल से धन्यवाद् आपकी तारीफ का ।
Deleteआगे वाला भी लिखो भाई मजा आने लगा है
ReplyDeleteअच्छा लगा कि कोई और पढने के लिए उतावला हो उठा है । दूसरा भाग जल्द ही छापेगा । शुबकामनाएं
Deleteरोहित भाई मजा आगया जिस प्रकार की लेखनी हैं। वाकई शानदार
ReplyDeleteजिसने जैसा देखा उसने वैसा पिया,
Deleteआपके शानदार कमेंट को हमने धन्यवाद दिया ।
बढ़िया शुरुआत यात्रा की......
ReplyDeleteप्रयास जारी हैं
Deleteकमाल का लिखते हो भाई
ReplyDeleteधन्यवाद तारीफ का भाई जी
Deleteबहुत बढिया ढ़ग से उन महाश्य़ का वर्णन किया,,, आपके लेख पर लेट आया लेकिन अब एक साथ पढ़ लूंगा।
ReplyDeleteसचिन भाई का स्वागत है और यहाँ आने के लिए धन्यवाद। प्रयास जारी हैं इसे ऐसा ही बरकरार रखने के लिए।
Deletehahahaha।
ReplyDeleteभक्त का बहुत अच्छा वर्णन किया रोहित भाई। अपनी भी हालत कुछ आपके जैसी है। घूमने को दिल करता है, ओर पैसे..... क्या ह ना, विद्यार्थी हूँ