पराशर झील - जब एडवेंचर सजा बन गया (फोटो स्टोरी, भाग -2), Prashar Lake - When the adventure becomes trouble (Photo Story, Part - 2)
1 मार्च 2015
मंडी से खड़ी चढ़ाई, लैंड-स्लाइड, बारिश और अब बागी के बस स्टैंड में 2 टैंटों में हम 3 । शाम को पास की एकमात्र दुकान पर जब हमने डिनर किया तभी स्थानियों ने हमें चेतावनी दे दी कि “ऐसे खराब मौसम में आगे जाना खतरनाक होगा” । हम खाते-खाते उनकी चेतावनियाँ सुनते रहे और अब बिना एडवेंचर के वापस जाना हमारे साथ जात्ती होगी ।
मंडी से खड़ी चढ़ाई, लैंड-स्लाइड, बारिश और अब बागी के बस स्टैंड में 2 टैंटों में हम 3 । शाम को पास की एकमात्र दुकान पर जब हमने डिनर किया तभी स्थानियों ने हमें चेतावनी दे दी कि “ऐसे खराब मौसम में आगे जाना खतरनाक होगा” । हम खाते-खाते उनकी चेतावनियाँ सुनते रहे और अब बिना एडवेंचर के वापस जाना हमारे साथ जात्ती होगी ।
तापमान -2 डिग्री ⓒ Sanoj vazhiyodan |
चाय-शॉप में ही हमने मीटिंग की कि “पराशर लेक यहाँ से सिर्फ 18-19 किमी. ही रह गई है अगर कल जल्दी निकले तो ज्यादा-से-ज्यादा झील पर हम 3 घंटे में पहुँच सकते हैं और 1 घंटे में वापस यहाँ आ सकते हैं” । “सारा सामान यहीं छोड़ देंगे ताकि आना-जाना जल्दी और आसान हो सके”, बोलकर मैंने चाय वाले को खाने के पैसे दिए । हम इंसान ही थे लेकिन दुकान में बैठे सभी लोग हमारी बातें सुनकर ऐसे मुंह बना रहे थे जैसे कल हिमाचल सरकार उन्हें हमारे रेस्क्यू पर भेजेगी, वो भी फ्री । आज हमने 30 किमी. साइकिलिंग की, बाकी का सफ़र कल सुबह शुरू होगा चाहे बारिश रुके या नहीं ।
आज के दिन को सोचते हुए ऑंखें और स्लीपिंग बैग की ज़िप बंद करी । ये बागी (2100 मी.) है, कल की रात काफी भयानक बीती जिसका रंग हम तीनों के घबराये चेहरों पे साफ़-साफ़ दिखाई दे रहा था । तेज हवाएं ऐसे दौड़ रही थी जैसे ओलंपिक में गोल्ड मैडल जितना हो । रात में जितनी बार भी ऑंखें खुली उतनी ही बार ये ख़याल आये बिना रहा नहीं गया कि “या तो टैंट उड़ जायेगा या ये बस स्टैंड” । पूरी रात बारिश होती रही, रह-रहकर बिजलियाँ कड़कती रही । जिन हालातों में रात को सोये थे सैम-टू-सैम उन्हीं हालातों में सुबह खुद को पाया । रात को तापमान 4 डिग्री चला गया था, अच्छा किया जो स्लीपिंग बैग -5 डिग्री वाले लाये नहीं तो कुदरत ने हमें सबक सिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी ।
बादल का फटना, टूटा पुल और पागल नदी ⓒ Dhanush k dev |
अंगड़ाई लेती नई उमीदों के साथ सुबह 6 बजे उठे और बाहर टूटे पुल को देखकर उम्मीदों पर भी बादल फट गया । 3 दिन से लगातार होती बारिश ने यहाँ बने अकेले पुल को उखाड़ फैका है जो हमे नदी पार पहुंचता । बिना देर किये हमने टैंट और बाकी सामान पैक करके चाय वाले की दुकान में रख दिया । यहाँ से आगे कुछ पैसे, कुछ बिस्कुट, हम तीन और हमारी तीन साइकिल ही जाएँगी । ख़राब मौसम से ज्यादा ख़राब होता है गीले जूतों को फिर से पहनना और आखिरी बचे सूखे कपड़ों को बारिश के हवाले कर देना । स्थानियों ने ‘बेस्ट ऑफ़ लक कहा’, चेहरे के भाव ऐसे थे जैसे बोलना चाह रहें हो “हिमाचल सरकार पैसे भी देगी तब भी नहीं आने वाले तुम्हारे रेस्क्यू के लिए” । लकड़ी के झूलते पुल को पार करते ही पहली परीक्षा पास हुई । यहाँ से आगे हमारी मदद के लिए कोई नहीं होगा, अब हम ही होंगे हमारी मदद के लिए । 7:35 पर निकल पड़े झील के लिए जो लगभग 20 किमी. दूर है और वहां तक का रास्ता खड़ी चढ़ाई से भरा पड़ा है । 10 रु. वाली एक-एक कप चाय पीकर चल पड़े कुदरत का सामना करने । #अब_मंजिल_दूर_नहीं
खराब मौसम इसे और मुश्किल बनाता है ⓒ Dhanush k dev |
बारिश, ठंडी हवाएं, भीगते हम, और अब ओले, एक एडवेंचर सफ़र से आप और क्या उम्मीद कर सकते हो? । 2150 मी. की ऊँचाई पर ओलों का आकार तो पता नहीं लेकिन इतना जरुर पता है कि ये लगते बहुत जोर से हैं । अभी तक हमने 4 किमी. ही कवर किया है और इन 4 किमी. ने हमारी सारी ऊर्जा चूस ली है । ठण्ड लग रही है, थकावट महसूस हो रही है और हम इसे जल्द-से-जल्द खत्म करना चाहते हैं ।
टूटती उमीदों के आगे बैठा है मौका ⓒ Dhanush k dev |
4 घंटों में सिर्फ 8 किमी. और फिर 3 घंटे का रेस्ट, जनता हूँ ये अच्छी प्लानिंग का हिस्सा नहीं है लेकिन ये सफ़र को आधे में खत्म करने से कहीं बेहतर था । अब तक हम तीनों का जोश बारिश ने ठंडा कर दिया था और हम आगे न जाने के बारे में सोचने लगे थे कि अचानक एक मिटटी का छोटा सा कमरा दिखाई दिया, जिसका दरवाजा भी खुला था । तीनों ने एक दूसरे को देखा और अगले 15 मिनट में हम इसके भीतर आग जलाकर खुद को सुखा रहे थे । यहाँ हमने बिस्कुट खाएं, आगे के प्लान पर बात की । पूरे 3 घंटे लगे यहाँ से निकलने में । बाहर अभी भी बारिश और ओले गिर रहे हैं और हममें से कोई भी दुबारा अपने कपड़ों को भिगोना नहीं चाहता । दोपहर ढ़ाई बजे फिर से हम साइकिल की सीट पर थे । #नई_और_सुखी_उम्मीदें
और बर्फ गिरने लगी ⓒ Sanoj vazhiyodan |
6 घंटों से हमने कोई भी जीवित प्राणी नहीं देखा है और अब हाल ये है कि पहले बारिश, फिर ओले और अब बर्फ़बारी शुरू हो गयी है । पहले इस बीहड़ में फंसने का शक था लेकिन लगातार होती तेज बर्फ़बारी अब इसे यकीन में बदल रही था । तापमान ने जीरो डिग्री होते ही मुश्किलों को बढ़ा दिया था । हम ठण्ड से काँप रहे थे और ये सोचकर ज्यादा ठण्ड लग रही थी कि हमारे पास एक भी गर्म कपड़ा नहीं है ।
सफ़ेद पगड़ण्डीयाँ ⓒ Sanoj vazhiyodan |
अब साइकिल चलाना और मुश्किल हो गया । पहले चढ़ाई पर नहीं चल रही थी अब बर्फ पर । हालत ये थी कि ब्रेक लगाने के बाद भी साइकिल कण्ट्रोल में ही नहीं आ रही थी, टायर बार-बार फिसल रहे थे और कई बार हम गहरी खाई में गिरते-गिरते बचे । अभी भी उम्मीद थी झील पर पहुंचने की और आज ही वापस बागी आने की । #जमती_उम्मीदें
साइकिल के साथ डर को धकेलना ⓒ Dhanush k dev |
कन्धों पर एडवेंचर ⓒ Rohit kalyana |
5-6 इंच में हम थोड़ी परेशानी के साथ चल सकते हैं लेकिन हमारी साइकिल नहीं । जब बर्फ में छुपते रास्ते को ढूँढना पहेली बन गया तब कुदरत ने इसे हमारे लिए और मुश्किल बना दिया । शरीर ठण्ड से काँप रहा था, उंगलियाँ सुन्न हो गई थी, बर्फ लगातार गिर रही थी, जहां हमें साइकिल पर होना चाहिए था वहीँ वो हमारे ऊपर आ गयी । बादलों की तेज गर्जना हमे कलेजे तक डरा रही थी । इस तरह फंसने वाले काफी किस्से पढ़े है जिनमें लोग अपनी जान तक गवां बैठते हैं । कई बार ये ख्याल आने लगे कि “अगर आग जलाने के लिए लकड़ियाँ नहीं मिली तो क्या होगा ? तीनों एक साथ सटकर बैठ जायेंगे और इस काली रात के बीतने का इंतजार करेंगे” । अब सच में डर लगने लगा है, मन में रह-रहकर अजीब-अजीब ख्याल आने लगे हैं, अपना जीवन असुरक्षित मालूम पड़ने लगा है । पता नहीं कहां तक हमे ऐसे ही चलना होगा ? ।
-3 का शिकंजा ⓒ Sanoj vazhiyodan |
हम वापस जाने की सोच रहे थे क्योंकि मौसम हर कदम पर और ज्यादा खराब होता जा रहा था, ऊपर से हम सारा सामान भी बागी में ही छोड़ आये । तीनों बुरी तरह से काँप रहे थे, तापमान -3 डिग्री था और हम सिर्फ रेन-वियर में थे । बर्फ ने सारे माइलस्टोन को अपने कब्जे में ले लिया है, कुछ नहीं पता कि झील कितनी दूर और रह गयी है । लेकिन इतना जरुर पता था कि झील यहाँ से 4-5 किमी. दूर होगी जहां तक कुछ घंटों में पहुंचा जा सकता है ।
“पीछे जाना हमे और ज्यादा मुसीबत में डाल सकता है” । मुंह से बर्फ हटाते हुए धनुष ने कहा कि “2 किमी. और चलते है अगर फिर भी कोई नहीं मिला तो फैसला करेंगे कि आगे जाना है या नहीं ?” । हालत ये थी कि 2 किमी. और चलने के ख्याल से ही नफरत होने लगी । 30 घंटों से जूते, हेलमेट, दस्ताने और सारे कपड़े गीले थे ऊपर से गिरते तापमान ने तीनों के दिलों में हाईपोथार्मिया का डर और बैठा दिया । सनोज ने कई बार कोशिश कि लेकिन यहाँ मोबाइल में नेटवर्क भी नहीं आ रहा है । काश ये बर्फ़बारी रुक जाएँ ।
नो मेन्स लैंड ⓒ Sanoj vazhiyodan |
2 किमी. वाला प्लान सिर्फ 800 मी. चलते ही फ़ैल हो गया । हर कोई एक ही बात सोच रहा था कि साइकिलों के साथ आगे बढ़ना हमें और मुश्किल में फंसा रहा है, तो क्यूँ न इन्हें यहीं छोड़कर आगे चले मदद ढूंढने । दोनों अपनी-अपनी बात कह चुके थे अब मेरी बारी थी “ऐसा करते है अगले मोड़ तक चलते हैं जो कि यहाँ से शायद 100 मी. दूर है उसके बाद अगर कुछ नहीं मिला तो साइकिलों को वहीं छोड़कर आगे बढ़ जायेंगे” । मरते क्या न करते चल पड़े आखिरी 100 मी. की लड़ाई को जीतने ।
आखिरी सांसें ⓒ Sanoj vazhiyodan |
ये 100 मी. साइकिल कन्धों पर ही रही । हम टूट गये थे, हम गीले थे, बुरी तरह थक गये थे । एडवेंचर की तलाश हमें बहुत दूर ले आई थी, अब ये सच में सजा बन गया था । रह-रहकर दिमाग में ये ख्याल आ रहा था कि “अगर आगे भी कोई नहीं मिला तब क्या होगा ?” बर्फ के साथ तेज चलती ठंडी हवा ने पसलियाँ तक जमा दी, लगातार कांपने से पसलियों में दर्द होने लगा । तीनों पत्ते की तरह कांप रहे थे । शब्द मुंह से अटक-अटककर निकल रहे थे । शरीर की भीतरी गर्मी कई घंटों पहले ही खत्म हो गई जिस वजह से सिर में तेज दर्द उठने लगा । सफ़ेद बर्फ में तीनों के चेहरे काले पड़ने लगे थे ये सोच-सोचकर कि “अगर आगे कोई नहीं मिला तो क्या होगा?” ।
अगर हम तीनों में से किसी को कुछ हो गया तो उसके घरवालों को क्या जवाब देंगे, ये सोचकर तो मेरी टाँगे ही कांपने लगी, टांगे जड़ हो गयी जैसे उन्हें लकुवा मार गया हो, मन उल्टी करने का हो गया । बाकी दोनों को देखकर मैं सच में डर गया और मुझे रोना आने लगा । मैंने नम होती आँखों से पहले दोनों को देखा फिर अपने चारों तरफ फैली सफ़ेद चादर को और कांपते होटों की मदद से बोला “मंजिल सिर्फ 4-5 किमी. आगे है और वहां से पहले मैं नहीं चाहता कि हम तीनों में से किसी को भी कुछ हो, इतने पास आकार अब हार नहीं माननी है । हम आगे बढ़ेंगे, पराशर पहुंचेंगे और वहां आराम भी करेंगे” । तीनों ने जोश में हाथ मिलाया और चल पड़े मंजिल की ओर, ज़िन्दगी की ओर । आज वो दिन नहीं जब हममें से कोई मरेगा” ।
देवदूत के दर्शन ⓒ Rohit kalyana |
वहां कोई है, सनोज बोलकर रुक गया । हम दोनों ने कन्धों से साइकिल नीचे उतारी और सनोज की बताई दिशा में देखा । वहां कुछ नहीं दिखा सिवाय उड़ती बर्फ के । हम आगे बढ़ने लगे लेकिन सनोज फिर से बोला वहां कोई है और वो जोर-जोर से चिल्लाने लगा...हेल्प...हेल्प...हेल्प । हम दोनों मुड़े, साइकिल को बर्फ पर लिटा दिया, आँखों को गीले दस्तानों से साफ़ किया, दो-तीन बार आँखों को बंद किया-खोला और फिर देखा...कुछ नहीं दिखा, फिर देखा कुछ नहीं, फिर से देखा “अरे वहां कोई है”, मैंने बोला और मैं भी सनोज की तरह हेल्प...हेल्प चिल्लाने लगा । ऊपर कोई है, कोई इंसान जैसा दिखने वाली सफ़ेद परछाई है, कोई पेड़ भी हो सकता है । साफ़-साफ़ देखना मुश्किल है गिरती बर्फ में, अरे ये क्या पेड़ हाथों से ऊपर आने का इशारा कर रहा है ।
बच गये ⓒ Sanoj vazhiyodan |
पहले पेड़ को देखा फिर हमने एक-दूसरे को देखा, सभी की भीगी ऑंखें एक हुई, हाथ मिलकर तीनों ने साइकिल रोड़ पर खड़ी करी और पेड़ की तरफ बढ़ने लगे, ज़िन्दगी की तरफ चलने लगे, खुद की तरफ बढ़ने लगे । सुबह 7:35 से चलते-चलते आखिरकार शाम 5:51 पर हम अपनी मंजिल से मिले । रोड़ से पेड़ के पास पहुंचने में हमें 15 मिनट लग गये, ये चढ़ाई थी और हम बार-बार फिसल रहे थे । पेड़ के लिए सम्मान था और हम सभी सम्मानवश उसके पैरों में गिर जाना चाहते थे लेकिन हम ऐसा कुछ भी नहीं कर पाए क्योंकि यहाँ तो गंगा ही उल्टी बहने लगी । पेड़ ने पास आते ही हमें खरी-खोटी सुनानी शुरू कर दी ।
“तुम लोग पागल हो, दिखाई नहीं देता मौसम कितना खराब है, साइकिल उठाई और आ गये यहाँ मरने, अरे मरने को तो शहरों में जगह कम थोड़ी है, पता नहीं कहां-कहां से आ जाते हैं”, बोलकर वो अंदर चले गये । बाकी दोनों का तो पता नहीं लेकिन मुझे पेड़ से मिलकर ऐसा लगा कि “हम गलत जगह आ गये हैं, इससे अच्छा तो तभी थे जब हम इनसे नहीं मिले थे” । “अभी मन नहीं भरा है क्या जो अभी भी बर्फ में भीग रहे हो...चलो अंदर आ जाओ”, पेड़ के शब्द सुनकर बिना देर किये हम उनके कमरे में आ गये ।
आज कोई नहीं मरा सिवाय एडवेंचर के ⓒ Rohit kalyana |
अंदर आने पर हमें नये पेड़ के दर्शन हुए । उन्होंने बिना देर किये चूल्हा तेज कर दिया और चाय बनाने के लिए बर्तन रख दिया । उनका स्वाभाव एकदम बदल गया, अब वो हमसे एकदम प्यार से पेश आ रहे थे । उनके कहने पर हमने अपने गीले जूते, मोज़े, दस्ताने, रेन-वियर, उतारकर कमरे के बाहर रख दिए । गर्मागर्म चाय हाथ में देते हुए पेड़ ने अपने और यहाँ के बारे में बताना शुरू किया कि “यहाँ कई दिनों से मौसम बेहद खराब चल रहा है इसलिए पिछले हफ्ते से यहाँ कोई भी नहीं आया है । मेरा आज सुबह मंडी जाने का प्लान था लेकिन इस बर्फ़बारी ने कदम रोक दिए ।
वैसे मेरा नाम ‘रामसिंह’ है और मैं यहाँ फारेस्ट गेस्ट हाउस का केयर-टेकर हूँ”, और आप लोग? । मैं रोहित हूँ, फरीदाबाद से, ये सनोज है दिल्ली से इंजीनियर की पढ़ाई कर रहा है, वो लम्बे बालों वाला धनुष है ये भी दिल्ली से इंजिनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है, बोलकर मैंने गहरी सांस ली । चूल्हे की गर्मी ने शरीर को ऊर्जा से भर दिया और बातों-बातों में कब चाय का कप कब खाली हो गया पता ही न चला ।
गुड नाईट ⓒ Rohit kalyana |
3 घंटे तक चूल्हे पर खुद को सुखाने के बाद हमने दाल-चावल का शाही डिनर किया । बाहर बर्फ अभी भी गिर रही थी, मौसम वैसा ही बना हुआ था, एकदम नकचढ़ा । पेड़ ने रात के 9 बजे हमें एक कमरा दिखाया जो बिना किसी शक और सवाल के तीनों को पसंद आ गया । कमरा सुंदर बनाया हुआ था, लकड़ी की छत्त, लकड़ी का फर्श, लकड़ी की दीवारें और लकड़ी के बैड पर मुलायम-मुलायम मखमली कम्बल और रजाई । अगर 10-11 घंटे कड़ी मेहनत करने पर आपको ऐसा स्वागत मिलता है तो समझ जाना कि ज़िन्दगी आपसे खुश है ।
गुड नाईट बोलने से पहले जो बातें हुई उनके अनुसार कल सुबह जल्दी उठकर पराशर लेक जायेंगे और फिर साइकिल उठाकर वापस मंडी वाया बागी ।
आज का दिन बहुत लम्बा रहा और ये अपने साथ वो सब लाया जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी । जिन हालातों में हम फंसे उनसे निकलकर हम वापस जा सकते थे, हम आपस में चिड़चिड़ा व्यवहार कर सकते थे, हम आपस में लड़ सकते थे, एक-दूजे पर गलत फैसले लेने का इल्जाम लगा सकते थे, एक-दूसरे का साथ छोड़ सकते थे लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ । कारण सिर्फ इतना था हम तीनों को एक-दूजे पर विश्वास था, विश्वास था सामने वाले के फैसले पर, विश्वास था सामने वाले के विश्वास पर । बेशक कई बार हमें लगा कि शायद ये दिन हमारा आखिरी हो सकता है, ये दिन ठीक नहीं था यहाँ आने के लिए लेकिन ये दिन न ही आखिरी हुआ और न ही ये दिन गलत था यहाँ होने के लिए । जीवन का आधार है “विश्वास”, इसी के सहारे ये दुनिया चल रही है और हम तीनों ने आज इसका अनुभव भी कर लिया । #विश्वास_वाला_एडवेंचर
आशा करता हूँ हमारा महा एडवेंचर आपको पसंद आयेगा । आपकी उपस्थिति इस ब्लॉग के लिए आशीर्वाद है । एक बार फिर से स्वागत करता हूँ हिमालय के स्वर्णिम गर्भ में ।
भाग-1 : दिल्ली-मंडी-बागी
भाग-3 : पराशर झील-मंडी
भाग-1 : दिल्ली-मंडी-बागी
भाग-3 : पराशर झील-मंडी
बहुत दिनों से दर पे आँखें लगी थीं
ReplyDeleteबहुत देर कर दी हुजूर लिखते लिखते
जैसे ताबड़तोड़ घुमाई करते है
वैसे ही फटाफट लिखाई किया करे।
पढकर हम भी घुम लिये।
धन्यवाद ।
.
साब ब्लॉग पढ़कर घूमना नहीं माना जायेगा, आपको जाना ही होगा तभी असली मजा आयेगा । कमेंट करने के लिए शुक्रिया
Deleteमैंने कही पढा था कि रतन टाटा ने कहा हैं कि मै पहले फसले लेता हुए फिर उनऐ सही साबत करता
ReplyDeleteand you did it brother
🍵👍👍
I hope you understand me .I don't know why i cant coMMent on blog
तारीफ के लिए धन्यवाद्, सिर्फ ये कहना चाहता हूँ कोई भी समस्या सुलझाई जा सकती है अगर विश्वास और धैर्य रखे ।
Deleteजिन हालातों में रात को सोये थे सैम-टू-सैम उन्हीं हालातों में सुबह खुद को पाया
ReplyDelete2150 मी. की ऊँचाई पर ओलों का आकार तो पता नहीं लेकिन इतना जरुर पता है कि ये लगते बहुत जोर से हैं ।
शरीर ठण्ड से काँप रहा था, उंगलियाँ सुन्न हो गई थी, बर्फ लगातार गिर रही थी, जहां हमें साइकिल पर होना चाहिए था वहीँ वो हमारे ऊपर आ गयी ।
जिन हालातों में हम फंसे उनसे निकलकर हम वापस जा सकते थे, हम आपस में चिड़चिड़ा व्यवहार कर सकते थे, हम आपस में लड़ सकते थे, एक-दूजे पर गलत फैसले लेने का इल्जाम लगा सकते थे, एक-दूसरे का साथ छोड़ सकते थे लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ । कारण सिर्फ इतना था हम तीनों को एक-दूजे पर विश्वास था, विश्वास था सामने वाले के फैसले पर, विश्वास था सामने वाले के विश्वास पर ।
wonderful गजब दोस्त, गजब,
जीवन को बचाकर रोमांच का आनन्द उठाते रहना, हिम्मत कभी न हारना क्योंकि जीवन के आगे कोई वस्तु अनमोल नहीं होती है। इन दोनों जवानों से भी मिलाना कभी, ये भी दिल्ली वाले तो मैं भी दिल्ली वाला, अन्त में एक बार फिर गजब-गजब
संदीप भाई जी का एक बार फिर से स्वागत है...इनमे से एक भाई अभी गुडगाँव में जॉब करता है और दूसरा हैदराबाद में कार्यरत है। मुशिकल समय में क्या करना है ये मैंने भली-भांति सीखा है आपके ब्लॉग से ।
Deleteआज डूबते को तिनके का सहारा वाक्य सही साबित हुआ बहुत ही खतरनाक यात्रा व्रतांत
ReplyDeleteहा हा...बिलकुल सटीक कहावत है इस एडवेंचर के लिए । शुक्रिया लोकेन्द्र भाई कमेंट के लिए ।
Deleteबहुत ही बड़ा रिस्क लिया भाई लोग बहुत ही दिलचस्प कहानी है आप लोगो की में तो कहता हूँ इसे पब्लिश करनी चाहिए आप की कहानी पढ के लोग को ये एहसास होगा की आप नहीं वो लोग भी इस एडवेंचर का हिन्सा है।। best of luck
ReplyDeleteवीरेंदर भाई रिस्क तो था लेकिन तीनों के साथ और साहास ने इसे थोडा आसान बना दिया । जी हाँ ये किस्सा 2 मैगजीन्स में छप्प चुका है । गर्भ में स्वागत है ।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद् उत्साहवर्धन के लिए ।
Deleteऐसा एडवेंचर करना बहुत हिम्मत का काम है वो हिम्मत आपने दिखायी तीनो ने मिल के दिखायी बहुत सुंदर विवरण इस कठिन एडवेंचर का जय हो पर जीवन बहुत अमूल्य है सावधानी के साथ घूमते रहो 🙏
ReplyDeleteबिलकुल सहमत हूँ आपके शब्दों कि "जीवन बहुत अमूल्य है", इस रोमांचक सफ़र से जीवन की अमुल्यता का पूरा बोध हो गया । धन्यवाद् यहाँ आने के लिए ।
Deleteअकल्पनीय..!
ReplyDeleteअदभुत...!!
रोमांचक..!!!
रोहित भाई आप तीनों ने गजब का हौसला दिखाया..
अकल्पनीय..!
Deleteअदभुत...!!
रोमांचक..!!!
अरुण भाई आपके तीनों शब्दों ने अपना काम कर दिया है मेरे चहरे पर हंसी लाकर अकल्पनीय..!
गर्भ में स्वागत है भाई जी...
ये मुश्किल पल जिन्दगी में बहुत कुछ सिखा जाते हैं, ये ही जिन्दगी है
ReplyDeleteठीक कहा भाई जी, हमें तो कुछ ज्यादा ही सीखा गए।
Deleteग्रेट भाई
ReplyDeleteथैंक्स ब्रदर....
Deleteएडवेंचर भी बहुत जरूरी है दोस्त... कभी ना भूल पानी वाली एक रोचक यात्रा... मैं भी अपनी यात्रा पर ब्लॉग लिखता हूँ। कभी समय मिले तो पढ़ना रोहित जी >>> www.mainmusafir.com (मैं मुसाफिर डॉट कॉम )
ReplyDeleteगौरव जी आपका स्वागत है यहाँ, आपके कमेन्ट का शुक्रिया और आपका ब्लॉग तो मेरी लिस्ट में पहले से ही शामिल है। अब तो वहाँ चक्कर लगता रहेगा।
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बहुत ही जबरदस्त यात्रा
ReplyDeleteथैंक यू प्रतीक जी....स्वागत है यहाँ
Deleteमजा आ गया रोहित भाई। एक कमी रह गई सिचुएशन के हिसाब से तो भूत मिलना चाहिए था पर नही मिला।
ReplyDeleteवेसे शिकारी देवी टेम्पल वाले क्षेत्र में ये भूत ओर आत्मा वाला चक्कर बहुत बताये। क्या ऐसा है। मेरी उद्विग्नता को शांत जरूर करे। एक बार फिर शानदार लेखन के लिए शुभकामनाये।
मोहित जी स्वागत है....वहां हमारे आलावा शायद और कोई भूत नहीं था । शिकारी देवी तो अभी तक गया नहीं हूँ लेकिन जल्द ही वहां के भूतों का स्वाद चखुंगा। जिसने जैसा देखा उसने वैसा पाया । आपको भी शुभकामनायें
Deleteवो कहते हैं न अंत भला तो सब भला। राम सिंह जी के व्यहवार अपनापन लिए हुए था। यात्रा वृत्तांत पढ़कर मज़ा आया।
ReplyDeleteहिंदी फिल्मों की तरह है अगर कहानी के अंत में दुखभरा हो रहा है तो समझ जाना की अभी एंड नहीं हुआ है । यात्रा वृतांत की तारीफ के लिए शुक्रिया ।
Deleteभाई हम पढ रहे है फिर भी मौसम का बिगडना, बर्फ का तुफान, वह थकावट व साईकिल का कंधो पर पडा बोझ की तकलीफ महसूस कर ही सकते है लेकिन आपने यह सब सहा। आगे से स्थानीय लोगो की भी मान लिया करो। अगर वह व्यक्ति नही मिलता तब आपको बहुत मुश्किल हालातों का सामना करना पडता। अच्छा लिखा है sachin3304.blogspot.in
ReplyDeleteइस सफ़र से बहुत कुछ सीखने को मिला, अपने ठीक था कि "आगे से स्थानीय लोगों की भी मन लिया करो", ऐसी परिस्थितियों के बाद को स्थानियों की माननी ही पड़ेगी । वैसे से भी कभी-कभी ठोकर खाना भी अच्छा होगा है अपने व्यक्तित्व को और निखारने के लिए...धन्यवाद् विचार सांझा करने के लिए ।
Deleteऐसी ही घटना हमारे साथ भी हो चुकी है सन 2001 में। बस फर्क ये था कि हम साइकिल पर न हो के पैदल थे और 3 कि जगह 13 थे। कालेज से बिना किसी को बताए निकल गए थे पराशर के लिये। हमें भी रात फारेस्ट रेस्ट हाउस में ही बितानी पड़ी थी।।।।
ReplyDeleteओह...आशा करता हूँ आप सभी सुरक्षित रहे होंगे। लगता है फोरेस्ट गेस्ट है हाउस सभी के लिए नई जिंदगी का आगमन बनता ही बनता है।
Deleteये पढ़ कर अब तो लग रहा है कि पराशर जाना सच में ही एक बहुत बड़ा रिस्क है लेकिन इस रिस्क को जो शब्दों में आपने पिरोया है वो सच में पाठक के मन में सिहरन ,रोमांच पैदा कर देता है ।आपकी कलम का कमाल है,ऐसा लगता है कि मैं भी आपके साथ ही इस एडवेंचर का मजा ले रहा हूँ।बहुत खूब लिखा और आपके जज्बे को सलाम ।
ReplyDeleteसर 50 किमी की राइड के लिए आपने 50 हज़ार किमी की प्रैक्टिस कर ली है, देश अपनी ग्रोथ को देख रहा है ।
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