यमुनोत्री : 100 रु के कमरे में रोया, भाग-2, Yamunotri : Cried in the room of Rs. 100, Part-2

9 मई 2010
बेहिसाब सुन्दरता को देखकर मेरा खुला मुंह देखकर किसी ने पीछे से पुकारा “है न सुंदर”, मैंने भी पीछे बिना देखे कहा “बिना किसी शक के” । पीछे वाले व्यक्ति ने जब अगला सवाल किया “पहली बार आये हो यहाँ भाई जी ?”, तब मैं उनकी तरफ पलटा और पुरे आत्मविश्वास के साथ कहा “बिलकुल पहली बार, यूँ समझ लीजिये कि एकदम नौसिखिया हूँ” । जिस तरह मैं पहाड़ों की तरफ मोहित हुआ हूँ उससे तो यही साबित होता है जैसे पिछले किसी भी जन्म में मेरा पाला पहाड़ों से नहीं पड़ा ।


Yamuna river Yamunotri Temple Hot water spring saptrishi kund chaar dhaam jankichatti solo self supported backpacking Rohit kalyana himalayan womb himayalanwomb.blogspot.com
यमुनोत्री धाम यात्रा 2010

मेरे जवाब के बाद दोनों ने दोस्ताना मुस्कान बिखेरते हुए हाथों को मिलाया और अपने-अपने नाम एक-दुसरे के साथ बांटे । उन्होंने अपना परिचय दिया कि वो “युमनोत्री मंदिर के प्रमुख पंडित जी के लड़के है और कपाट खुलने के बाद मंदिर जा रहे हैं अपने पिताजी का हाथ बटाने”, हमारा सम्बन्ध युनियाल परिवार से है जिन्हें मंदिर में रीती-रिवाज के अनुसार पूजा करने का सौभाग्य प्राप्त है” । मेरा परिचय नैनो कार से भी छोटा था, “मैं फरीदाबादी हूँ, मुझे यहाँ आना और आपसे मिलना अच्छा लगा है” ।

भले ही उन्होंने पेंट-कमीज पहन रखी थी लेकिन मेरे लिए तो वो पंडित जी ही थे । पंडित जी ने बहुत सा इतिहास बताया जिसमे युमनोत्री और उसके पंडितों का उल्लेख था । बेशक पंडित जी ने बहुत बहुमूल्य जानकारी बांटी थी मेरे साथ लेकिन मुझे कुछ ही बातें याद रही जैसे कि ये मंदिर युमना नदी का उद्गम स्थल है, यहाँ की ऊंचाई 3291 मी. है, यह मंदिर बन्दरपुंछ पर्वत के पीछे स्थित है, पहले यहाँ की यात्रा हनुमानचट्टी से शुरू होती थी लेकिन बाद में जानकीचट्टी तक रोड बनने के बाद पैदल यात्रा सिर्फ 6 किमी. ही रह गई, यहाँ 2 गर्म पानी के कुण्ड है, पहला सूर्य कुण्ड और दूसरा गौरी कुण्ड ।

बातों और जानकारी के बीच अचानक झरना आ गया और हमारे होंठ अपने आप ही खामोश हो गये, वो बात अलग है इस हम में सिर्फ मैं अकेला ही शामिल था क्योंकि पंडित जी के लिए तो ये रोज की दिनचर्या थी । मैं एक टक इस नजारे को देख रहा था और पंडित जी बोले जा रहे थे कि चलो आगे और भी आएंगे भी बड़े वाले ।
और बड़े झरने के लालच में मैं चल पड़ा । 15 मिनट बाद लालच फलीभूत हुआ जब सच में बड़ा झरना आया । यहाँ हम रुके, बैठे, पास की दुकान वाला पंडित जी का जानकर था । दुकान वाले लड़के ने झुककर पंडित जी के पैर छुए और उन्हें नमस्कार किया । पंडित जी के आदेश पर कुछ ही मिनटों में 2 गर्मागर्म चाय के कप हम दोनों के हाथ में थे । हिमालय, चाय, और झरना, ज़िन्दगी में और क्या चाहिए ।

मेरा आग्रह पंडित जी ने ठुकरा दिया जब मैंने चाय के पैसे देने चाहे और पंडित जी का आग्रह दुकान वाले लड़के ने ठुकरा दिया जब उन्होंने पैसे देने चाहे । 3 जिंदादिल और जीवित मुस्कान एक साथ हंसी ।

कुछ और झरनों के हुस्न की तारीफ करते हुए हमें अपनी मंजिल दिखाई दी । 250 मी. और, बोलकर पंडित जी ने हाथ से इशारा करके मंदिर दिखाया । उनके हाथ जोड़ने के बाद मैंने भी अपना सम्मान प्रकट दिया और हाथ जोड़े मंदिर के ओर । 5:30 शाम को हम मंदिर पहुंचे जहां से पंडित जी ने एक बार फिर से हाथ मिलाकर जाने की बात कही लेकिन इस बार मैंने अपना हाथ वापस खिंच लिया और मेरी अगली हरकत ने तो उन्हें चौंका ही दिया । वो हंसने लगे जब मैंने उनके पैर छुए और बोले “जीते रहो, खुश रहो” ।

गर्म पानी के कुण्ड को अब बंद किया जाना था इसकी सफाई के लिए इसलिए मेरे पास सिर्फ 15 मिनट थे खुद को इसके हवाले करने के । 15 मिनट में से 1 मिनट कपड़े उतरने में लगा और दुसरे मिनट तो मैं गर्म पानी से उड़ती भाप के बीच था ।

बाहर फैलते अँधेरे को देखते हुए मैं पंडित जी के बारे में सोचने लगा कि “वो एक अच्छे इन्सान है” । बेशक पुरे रास्ते मेरे लिए वो पंडित जी रहे और उनके लिए मैं ‘भाई जी’ । “भाई जी बाहर आ जाइये सफाई करनी है”, किसी ने अँधेरे में से पुकारा और मैंने मिनट भी नहीं लगाया बाहर आने और कपड़े पहनने में ।

पंडित जी के बताये अनुसार पास ही मुझे 100 रु में एक रूम मिल गया जहां अपना सामान रखकर मैं युमनोत्री मंदिर में दाखिल हुआ । ये आरती का वक़्त था, घंटियाँ बज रही थी, संस्कृत में मन्त्र भी पढ़े जा रहे थे, यमुना माता की प्रतिमा के पास खड़े पंडित जी दिखाई दिये । सभी लोग जोर-जोर से आरती गा रहे थे । वहां जो माहौल बना था वो सभी को अपने भीतर समा लेना चाहता था ।

आरती के बाद मैंने पास के ढ़ाबे पर खाना खाया और बढ़ती ठण्ड को देखते हुए जल्दी ही अपने रूम में आ गया । कमरे के खालीपन ने मुझे याद दिलाया कि मैं कहां और किन परिस्थितियों से आया हूँ । बिजली की गति से अचानक मुझे घर की, परिवार की, और उन लोगों की याद आई जिन्होंने कुछ ही दिनों पहले अपने शरीर को त्यागा । और मैं रो पड़ा, मैं रोया और खूब रोया । नम आँखों के पायदान पर जैसे ही नींद की दस्तक हुई वैसे ही आंसुओं को गालों पर लुढ़क कर सूख जाना पड़ा । #100_रु._के_आंसू ।

रात को जिनती जल्दी नींद ने अपने आगोश में लिया था सुबह उतनी ही जल्दी उसने मुझे रिहा किया । रिहा सिर्फ नींद ने ही किया था विचारों ने नहीं । रिहा सिर्फ सिर्फ रात से हुआ था दिन से नहीं । #खुद_से_रिहाई
सफ़ेद रजाई से जैसे ही मुहं बाहर निकाला वैसे ही हिमालय के ठन्डे-2 हाथों ने मेरे सूखे गालों को सहलाया ।  आंखे खोलते ही एक और आंसू बह निकला मानो आँखे भी इनकी मंजिल नहीं । पहले छत फिर बेरंग दीवारों को निहारा फिर अपने मन की जमीन को जो अनावश्यक असीमित खरपतवार रूपी विचारों से पटी पड़ी थी, हमेशा सोचता हूँ लेकिन कभी हल उठाया नहीं इसे उपजाऊ बनाने के लिए ।

बैड से उठकर पहले दांतों को साफ़ किया फिर मन में फैलती गन्दगी को देखा । जूतों के फीते बांधते हुए सोचने लगा कि “मल-मूत्र त्यागकर ही अपने शरीर को स्वच्छ बना सकता हूँ क्योंकि मन को साफ़ करने की हिम्मत मुझमे नहीं है ।“ #मन_ही_मुक्ति_बेड़ी_भी

काले बैग और काले मन के साथ सुबह की आरती में शामिल हुआ ये सोचकर कि कभी तो सफ़ेद रोशनी से सामना होगा । घंटियों के बीच मेरी नज़रे पंडित जी को ढूंढ रही थी जो मुझे सुबह कहीं दिखाई नही दिए ।
8 बजे एक और बार हाथ जोड़कर इस स्थान को वापस चल पड़ा घर की और । मुझे नहीं पता था कि मंदिर के पीछे दिखते पहाड़ पर चढ़ा जा सकता है या नहीं लेकिन मैं वहां जाना चाहता था, मैं वहां होना चाहता था चाहे इसके लिए मुझे किसी को पैसे ही क्यों न देने पड़े साथ चलने के लिए ।

वापसी का पैदल सफर शांत रहा वहीं झरने न जाने क्यूँ मूक ही दिखाई पड़े । चाय वाले लड़के की दूकान पर रुका और अपने विचार टी-बॉय के सामने रखा । मेरा विचार सुनते ही वो बोल पड़ा “अरे भाई जी कल ही मुझे बता देते तो मैं आपको ऊपर ले जाता” । उसकी उत्सुकता ने मुझमें लालच भर दिया, बिना ज्यादा सोचे मैं तुरंत बोल पड़ा “क्या आज चल सकते हैं ?” । माफ़ी चाहता हूँ भाई जी अब तो 1 हफ्ते के लिए मुश्किल है क्योंकि आज सुबह ही मेरा भाई नीचे चला गया है और वो अब एक हफ्ते के बाद ही आयेगा ।

एक कप चाय के पैसे उसे चुका कर मैं सिर्फ इतना ही बोल पाया कि “भाई जी अगली बार चलेंगे”, उसने भी खुश होकर कहा “पक्का भाई जी” । ‘जय माँ युमनोत्री’ बोलकर अगली बार के लिए मैं वहां से रवाना हो गया ।
जानकीचट्टी पर मेरी ही तरह कुछ सवारियां देहरादून जाने वाली बस का इंतजार कर रही थी और उन्हीं कुछ लोगों में एक खास इंसान मिला मुझे । उनका नाम शायद ‘रविंदर’ था वो देहरादून के ही रहने वाले है और सबसे बड़ी बात वो कालेज की पढाई पूरी करने के बाद से लगातार घूम रहे हैं, अब उनकी उम्र 48 साल है । उन्होंने बताया कि उनकी शादी हो चुकी है और 2 बच्चे भी है । उन्होंने महादेव का धन्यवाद् देते हुए कहा कि “पत्नी जॉब करती है और बच्चों की देखभाल भी करती है, बेशक मैं घर से पैसे नहीं लेता लेकिन कमाता भी नहीं हूँ, अपना गुजारा 2-4 दिन यहाँ वहां काम करके चला लेता हूँ” ।

बस के आने से पहले ही मुझे इस इंसान की बातों में मुझे रस आने लगा था, जैसे ये कोई अपना हो । दोनों बस में साथ-साथ ही बैठे देहरादून तक । उन्होंने आगे बताया कि “घरवालों के दबाव में मुझे शादी करनी पड़ी जिसका मेरा कोई इरादा नहीं था । कुछ सालों तक मैंने नौकरी करी और परिवार की सारी जिम्मेवारी सम्भालने की भी लेकिन अध्यात्म ने धीरे-धीरे ही मुझे अपनी गिरफ्त में ले लिया । नौकरी छोड़कर मैं हिमालय में अधाधुंध घूमता रहा, बाल बड़े हो गये और दाढ़ी भी, घरवालों के साथ-साथ अब तो बाहर वाले भी मुझे पागल कहने और मानने भी लगे हैं, यहाँ तक कि बच्चे भी पास नहीं आते हैं ।

मैं घुमा भी ऐसे नहीं जहां जाता वहां रहने ही लग जाता । जैसे अभी युमनोत्री से मैं 15 दिन बाद घर जा रहा हूँ, सच बताऊँ तो मैं घर नहीं पता नही कहां जा रहा हूँ । कहीं भी इसलिए जा रहा हूँ क्योंकि यहाँ भी मुझे चैन नहीं आता । इसी आत्म-संतुष्टि की वजह से मुझे यहाँ से वहां भटकना पड़ रहा है ओर एक बात बताऊँ रोहित भाई आपको ‘मैं जल्दी ही वहां पहुंच जाऊंगा’ ।

शाम को देहरादून उतरकर इस शानदार इंसान को मैंने प्रणाम किया जिसे लोग अब पागल कहने लगे हैं, बेशक हुलिये से लगता भी पागल ही है । जल्दी ही यहाँ से मुझे दिल्ली की बस मिल गई ।

बस में बैठकर अपना हमेशा वाला काम करने लगा “सोचना”, सोचने लगा अपने सफ़र के बारे में, पंडित जी, चाय वाला लड़का, युमनोत्री मंदिर, 100 रु. वाला कमरा, बर्फ से ढके पहाड़, झरने, और आखिर में पागल इंसान, इन सभी में से न जाने क्यूँ हाड़-मांस से बने उस पागल इंसान ने मुझे बहुत प्रभावित किया । आँख लगने से पहले पागल इन्सान के आखिर में कहे शब्द याद आये “मैं जैसा हूँ कोई मुझे इसी रूप में क्यों स्वीकार नहीं करना चाहता, क्यों हर कोई मुझे अपने हिसाब से बदलना चाहता है । कुदरत ने मुझ पागल को थोडा बहुत हिम्मती भी बनाया है  क्योंकि मैंने अपनी ज़िन्दगी का रिमोट किसी और के हाथ में देना गवारा नहीं समझा” । #हिम्मतवाला_पागल

अगले दिन यानि 10 मई को मैं अपने घर पहुंचा जहां गर्मी बढ़ गई थी और सभी के मन सब्र से शांत हो गये थे । अच्छा लगा सभी के साथ खुद में होते इस बदलाव को देखकर । तो यहीं मैं इस यात्रा के लेख को समाप्त करना चाहता हूँ और अपनी यात्रा में मिले सभी लोगों की अच्छी सेहत और शांति के लिए प्रार्थना करता हूँ । इस स्वर्णिम यात्रा पर 2558 रु. का खर्च आया ।

धन्यवाद इस लेख को पढ़ने के लिए, आपके सुझावों का स्वागत रहेगा ।

Yamuna river Yamunotri Temple Hot water spring saptrishi kund chaar dhaam jankichatti solo self supported backpacking Rohit kalyana himalayan womb himayalanwomb.blogspot.com Hindi Bloging
जानकीचट्टी से दिखता यमुनोत्री का ताज

Yamuna river Yamunotri Temple Hot water spring saptrishi kund chaar dhaam jankichatti solo self supported backpacking Rohit kalyana himalayan womb himayalanwomb.blogspot.com Hindi Bloging
पंडित जी

Yamuna river Yamunotri Temple Hot water spring saptrishi kund chaar dhaam jankichatti solo self supported backpacking Rohit kalyana himalayan womb himayalanwomb.blogspot.com Hindi Bloging
बढाते हैं पहला कदम

Yamuna river Yamunotri Temple Hot water spring saptrishi kund chaar dhaam jankichatti solo self supported backpacking Rohit kalyana himalayan womb himayalanwomb.blogspot.com Hindi Bloging
छोटे झरने

Yamuna river Yamunotri Temple Hot water spring saptrishi kund chaar dhaam jankichatti solo self supported backpacking Rohit kalyana himalayan womb himayalanwomb.blogspot.com Hindi Bloging
यमुना चली नीचे और हम ऊपर 

Yamuna river Yamunotri Temple Hot water spring saptrishi kund chaar dhaam jankichatti solo self supported backpacking Rohit kalyana himalayan womb himayalanwomb.blogspot.com Hindi Bloging
पक्के रास्तों पर कच्चे कदम 

Yamuna river Yamunotri Temple Hot water spring saptrishi kund chaar dhaam jankichatti solo self supported backpacking Rohit kalyana himalayan womb himayalanwomb.blogspot.com Hindi Bloging
राहों के मंदिर 

Yamuna river Yamunotri Temple Hot water spring saptrishi kund chaar dhaam jankichatti solo self supported backpacking Rohit kalyana himalayan womb himayalanwomb.blogspot.com Hindi Bloging
यमुनोत्री धाम में आपका स्वागत है 

Yamuna river Yamunotri Temple Hot water spring saptrishi kund chaar dhaam jankichatti solo self supported backpacking Rohit kalyana himalayan womb himayalanwomb.blogspot.com Hindi Bloging
हिमालयी गर्भ 

Yamuna river Yamunotri Temple Hot water spring saptrishi kund chaar dhaam jankichatti solo self supported backpacking Rohit kalyana himalayan womb himayalanwomb.blogspot.com Hindi Bloging
यमुनोत्री धाम मंदिर 

Yamuna river Yamunotri Temple Hot water spring saptrishi kund chaar dhaam jankichatti solo self supported backpacking Rohit kalyana himalayan womb himayalanwomb.blogspot.com Hindi Bloging
आरती से पहले गर्म कुंड की सफाई 

Yamuna river Yamunotri Temple Hot water spring saptrishi kund chaar dhaam jankichatti solo self supported backpacking Rohit kalyana himalayan womb himayalanwomb.blogspot.com Hindi Bloging
100 रु. का कमरा

Yamuna river Yamunotri Temple Hot water spring saptrishi kund chaar dhaam jankichatti solo self supported backpacking Rohit kalyana himalayan womb himayalanwomb.blogspot.com Hindi Bloging
यमुनोत्री मंदिर 

Yamuna river Yamunotri Temple Hot water spring saptrishi kund chaar dhaam jankichatti solo self supported backpacking Rohit kalyana himalayan womb himayalanwomb.blogspot.com Hindi Bloging
सेल्फी यमुना संग 

Comments

  1. जय यमुना मैया की
    बहुत सुन्दर फोटोज
    मुझे भी यमुना मैया ने अपनी गोद में 9 दिन रखा था साल 2016 में
    आपकी यात्रा ने यादें ताज़ा कर दी
    पंडित जी का नाम उनियाल बताया हमारे पंडित जी मुकेश उनियाल थे बड़े दयालु सज्जन पूरा परिवार सज्जन

    ReplyDelete
    Replies
    1. लिखना सफल हो जाए जब आप जैसे किसी बन्धु को अतीत के कुछ स्वर्णिम पल याद आ जाएं । जिसे पढ़ते ही चेहरे पर मुस्कुराहट दबे पाँव आ जाए। धन्यवाद जी

      Delete
  2. जिन्दगी का सफर यूं ही चलता रहेगा, पागल घुमक्कड़ एवं घुमक्कड़ पागल मिलते रहेंगे क्योंकि सब भाग्य से मिलता है तो घुमक्कडी सौभाग्य से। चित्रों के साथ कैप्शन जरुर लगाएँ। कहीं घुमक्कडी के दौरान भेंट भी हो सकती है। लेखन सतत जारी रखें । मै आते रहुंगा पढने।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद यहाँ आकर कमेन्ट करने के लिए। जी जरूर अगर आपसे न मिला तो अवश्य किसी न किसी घुमक्कड़ पागल से मिल लूँगा। आपकी उपस्थिति का सदैव इन्तजार रहेगा।

      Delete
  3. आपकी घुमक्कडी को दिल से सलाम। मजा आ रहा है आपके वृतांत पढ कर। फोटो के नीचे कैप्शन जरूर लगाए। जिससे पाठक उस फोटो के बारे में जान सके।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद गर्भ में आने के लिए । हिम्मती हैं आप सब जो बिना किसी लालच के अपने शुद्ध अनुभव मुझसे बाँटते हैं।

      Delete
  4. बहुत खूब रोहित जी, शानदार लेखन।

    ReplyDelete
  5. बहुत खूब रोहित भाई

    ReplyDelete
  6. बहुत खूब रोहित भाई

    ReplyDelete
  7. अच्छा वर्णन

    ReplyDelete
  8. बहुत सुंदर संस्मरण।आगे भी पढाते रहिए जल्दी जल्दी।कल दिन भर आपकी टाइमलाइन चेक करता रहा😃

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद् अनिल जी, तो कितने नंबर मिले मुझे टाइमलाइन में...

      Delete
  9. जय यमुना माता
    रोहित भाई यात्रा लेख बहुत ही शानदार और सरल है

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद भाई जी, कोशिश पूरी है इसे सरल बनाने की।

      Delete
  10. "मेरा आग्रह पंडित जी ने ठुकरा दिया जब मैंने चाय के पैसे देने चाहे और पंडित जी का आग्रह दुकान वाले लड़के ने ठुकरा दिया जब उन्होंने पैसे देने चाहे । 3 जिंदादिल और जीवित मुस्कान एक साथ हंसी ।" यही तो है असली भारतीयता चंद पलो का परिचय दोस्ती में बदल जाती है

    ReplyDelete
    Replies
    1. ठीक कहा आपने, और इन्सानियत का भी। स्वागत है आपका।

      Delete
  11. अकेले यमुनोत्री की यात्रा ये ही है असली घुमक्कड़ की पहचान...

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया उत्साह बढ़ाने के लिए।

      Delete
  12. बहुत अच्छा लेखन रोहित भाई। घुमक्कडी जिंदाबाद।

    ReplyDelete
  13. धन्यवाद व स्वागत है यहाँ आपका। प्रकृति का प्रेम जिन्दाबाद

    ReplyDelete
  14. रोचक यात्रा वृत्तांत। झोला उठाओ और चल दो। यही है घुमक्क्ड़ी की पहचान और ऐसे ही मिलता है घुमक्क्ड़ी का मज़ा।

    ReplyDelete
    Replies
    1. विकास भाई धन्यवाद आपके कमेन्ट का । और आपने बिलकुल ठीक कहा झोला उठाओ और चल दो...

      Delete
  15. रोहित भाई, कल मेरे मित्र प्रतीक गांधी ने बातों बातों में कहा कि मुझे आपके ब्लॉग पढ़ने चाहिए।कारण था शिकारी देवी ट्रेक के बारे मे चर्चा। तुरंत आपको ढुंढा,सच मे मजा आ गया। 12 मई 2017 को मैं भी पहली बार यमुनोत्री और वहां के सौन्दर्य के दर्शन किए। यह विवरण पढते हुए सारी यादें जीवंत हो उठी। आप और लिखते रहें हम भी आपको फाँलो करने की कोशिश करेंगे। धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. प्रतीक भाई को राम राम जिनकी वजह से आप यहाँ पहुंचे । धन्यवाद सर आपकी तारीफों का । शिकारी देवी ट्रेक के बारें में कोई जानकारी चाहिये हो तो बेझिझक सम्पर्क करना । शुभकामनाएं...

      Delete

Post a Comment

Youtube Channel