पराशर झील - जब एडवेंचर सजा बन गया (फोटो स्टोरी, भाग -1), Prashar Lake - When the adventure becomes trouble (Photo Story, Part - 1)
1 मार्च 2015
तीन दोस्त एडवेंचर के लालच में साइकिल पर दिल्ली से पराशर झील पहुंचे जहां उनका स्वागत लैंड स्लाइड, बारिश, ओलों, उफनती नदी और बर्फीले तूफ़ान ने किया । भारी बर्फ़बारी के बीच जब कोई भी न मिले मदद के लिए, जब मन पर हाइपोथर्मिया, फ्रोसबाईट और ठण्ड से मर जाने का साया मंडराने लगे, जब आगे बढ़ना भी उतना ही खतरनाक लगे जितना पीछे हटना तब ऐसा क्या होता है जो हमें जिंदा रहने को मजबूर करता है ?। तो चलो ले चलता हूँ चित्रों की सहायता से ऐसी ही एक यात्रा पर जहां एडवेंचर सजा बन गया ।
बेसिक माउंटेनियरिंग कोर्स पर जाने से पहले मैं हिमालय में कहीं छोटी और साहसिक साइकिलिंग ट्रिप करना चाह रहा था, ऐसी ही चाहत मेरे एक जोड़ी आई.आई.टीयन दोस्तों की भी थी क्योंकि वो भी बोरिंग एग्जाम से पहले अपने आप को फ्रेश करने की सोच रहे थे ।
कहां जाएँ ? इस सवाल के लिए हमें कई दर्जन मीटिंगे करनी पड़ी जिनके तहत ये फैसला लिया गया कि "पराशर झील" जायेंगे जो कि मंडी (हिमाचल प्रदेश, भारत) से लगभग 49 किमी. दूर है। गहरे नीले पानी की झील के किनारे लकड़ी का बना तीन मंजिला मंदिर है जो कि समुन्द्र ताल से 2730 मी. की ऊंचाई पर स्थित है । यह मंदिर ऋषि पराशर को समर्पित है ।
हमने अपनी यात्रा दिल्ली से 26 फरवरी 2015 को हिमाचल रोडवेज बस से शुरू की जो कि अगले 4 दिन बाद वापस हमें दिल्ली ले आयेगी । चूँकि हम साइकिल पर इस यात्रा को मंडी से शुरू करेंगे इसलिए बस की छत्त को तीनों साइकिलों की सेज बनाया । बस अपने तय समय शाम 4:40 पर चल पड़ी । अगली सुबह बस ने सुरक्षित हमें मंडी बस स्टॉप पर उतारा जहां से बिना किसी आराम के यात्रा को शुरू कर दिया ।
तो ये है हमारी फोटो कहानी जो वास्तव में जीवन के लिए संघर्ष में बदल गयी ।
साइकिल ट्रिप फाइनल होने के बाद सबसे पहले मैंने साइकिल पर केरिअर लगाया । 45 ली. के रकसैक में टेंट, स्लीपिंग बैग, और एक जोड़ी सादा कपड़े डालकर साइकिल के पिछवाड़े बाँध दिया । मम्मी का आशीर्वाद लेकर सुबह जल्दी तैयार होकर साइकिल पर घर से निकल पड़ा । चलती साइकिल इतने सामान के साथ किसी रिक्शे से कम नहीं लग रही थी । फरीदाबाद से दिल्ली आई.आई.टी पहुंचने में मुझे डेढ़ घंटा लगा यहाँ से हम तीनों एक साथ साइकिलिंग करते हुए कश्मीरी गेट बस अड्डे पहुंचे ।
ये फरवरी है और माहौल उतरती ठंठ जैसा है। बस अड्डे में तीन साइकिल और तीन बड़े बैगों के साथ हमें गार्ड्स के साथ काफी बहस करनी पड़ी अंदर घुसने के लिए, हो-हल्ला सुनकर गेट इंचार्ज आया जिसने अपनी समझदारी का परिचय दिया और हमें अच्छी तरह से चेक करके अन्दर आने दिया ।
अन्दर आने पर पूरा बस अड्डा हमें ही देख रहा था, देखे भी क्यूँ न हम अनुभवी साइकिलिस्ट जो लग रहे थे। बस अड्डे के हंसने पर समझ आया कि साइकिल के टायरों ने पीछे कई जोड़ी हाईवे बना दिए थे । माहौल को देखते हुए हमने जल्द-से-जल्द वहां से खिसक जाना ठीक समझा । नीचे बस तैयार खड़ी थी और हमने कंडक्टर को बताकर तीनों साइकिलों को बस की छत्त के हवाले कर दिया ।
प्रति साइकिल 300 रु. किराया लगा मंडी तक ।
सुबह सूरज देवता और हमने एकसाथ ही धरती पर कदम रखे । मंडी ठंडी थी तापमान 16 डिग्री था और आराम जीरो । आगे का कार्यक्रम इस प्रकार रहा बस से उतरते ही सबसे पहले हमने आलू के पराठों को खाली पेट में लुढकाया चाय के साथ । 'ठाकुर रेस्टोरेंट' के माई-बाप ठाकुर साब ने साफ़-साफ़ शब्दों में साफ़ कर दिया कि हम लोग बड़े आराम से पराशर जा सकते हैं ।
अब जब ठाकुर साब ने बोल ही दिया है तो देख लेंगे । नाश्ता निगलकर हम 7:30 चल पड़े पराशर की ओर ।
हमारा आज ही पराशर लेक पहुंचे का प्लान है जो कि मंडी से लगभग 49 किमी. है और इस पुरे रास्ते पर चढ़ाई के सिवा कुछ नहीं मिलने वाला । इंजीनियर तो ठीक चल रहे थे लेकिन मेरी तो मंडी से निकलते ही वाट लगनी शुरू हो गयी । साइकिल का तो पता नहीं लेकिन मन के पहियों की हवा धीरे-धीरे जरुर निकलने लगी 49 किमी. की चढ़ाई को सोचकर ।
अच्छा हुआ जो रस्ते में लैंड-स्लाइड मिला, कम-से-कम इसके बहाने रुकने का तो मौका मिल गया, बेशक ये छोटा था और साइकिल के लिए तो बहुतेरा रास्ता भी था लेकिन बहाना बहाना ही होता और आराम के लिए तो कुछ भी चलेगा । अभी सिर्फ 12 किमी. ही हुए हैं पैडल चलाते हुए और ऐसा लग रहा है जैसे शरीर से ऊर्जा की एक-एक बूंद खींच ली गयी हो ।
हमारे मन को अच्छी तरह पता है कि पराशर तक सारा रास्ता चढ़ाई से लैस है लेकिन फिर भी कल्पना कर रहा है समतल और डाउन-हिल की।
थकावट अपने शबाब पर है। 3 किमी. आगे चलते ही बारिश शुरू हो गयी । अब रकसैक को केरिअर से उतारकर कन्धों पर डालना पड़ा । यहाँ पहले रकसैक को कवर पहनाया फिर खुद को । अभी तक हम भीतर से गीले थे पसीने की वजह से लेकिन अब हम बाहर से भी गीले हैं, धन्यावद बारिश को ।
बागी रुकने का प्लान अच्छा था लेकिन वो यहाँ से पूरे के पूरे 6 किमी. दूर था । इन 6 किमी. में हमने साइकिल के साथ खुद को भी घसीटा । शाम साढ़े चार बजे आखिरकार हम बागी पहुंचने जहां पहुंचकर हममे टेंट लगाने की हिम्मत भी नहीं बची थी । शुक्र है कुछ छोटे मसीहा वहां आ गये हमारी मदद के लिए । 15 मिनट में टेंट लग गये थे और मसीहाओं की मदद से हम कोने में छिपी एक चाय की दूकान भी मिल गयी ।
आज यहीं डेरा डालेंगे और आशा करता हूँ कल मौसम अच्छा रहेगा और हम सही-सलामत पराशर झील पहुंच जायेंगे । आज के लिए इतना ही बाकि अगले भाग में ।
उम्मीद है पहला भाग सभी को अच्छा लगेगा, गर्भ में एक बार फिर सभी का स्वागत है ।
भाग-2 : बागी-पराशर फारेस्ट गेस्ट हाउस
भाग-3 : पराशर झील-मंडी
तीन दोस्त एडवेंचर के लालच में साइकिल पर दिल्ली से पराशर झील पहुंचे जहां उनका स्वागत लैंड स्लाइड, बारिश, ओलों, उफनती नदी और बर्फीले तूफ़ान ने किया । भारी बर्फ़बारी के बीच जब कोई भी न मिले मदद के लिए, जब मन पर हाइपोथर्मिया, फ्रोसबाईट और ठण्ड से मर जाने का साया मंडराने लगे, जब आगे बढ़ना भी उतना ही खतरनाक लगे जितना पीछे हटना तब ऐसा क्या होता है जो हमें जिंदा रहने को मजबूर करता है ?। तो चलो ले चलता हूँ चित्रों की सहायता से ऐसी ही एक यात्रा पर जहां एडवेंचर सजा बन गया ।
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मन में डर और कन्धों पर साइकिल सवार, पराशर लेक की ओर बढ़ते कदम ©Rohit Kalyana |
कहां जाएँ ? इस सवाल के लिए हमें कई दर्जन मीटिंगे करनी पड़ी जिनके तहत ये फैसला लिया गया कि "पराशर झील" जायेंगे जो कि मंडी (हिमाचल प्रदेश, भारत) से लगभग 49 किमी. दूर है। गहरे नीले पानी की झील के किनारे लकड़ी का बना तीन मंजिला मंदिर है जो कि समुन्द्र ताल से 2730 मी. की ऊंचाई पर स्थित है । यह मंदिर ऋषि पराशर को समर्पित है ।
हमने अपनी यात्रा दिल्ली से 26 फरवरी 2015 को हिमाचल रोडवेज बस से शुरू की जो कि अगले 4 दिन बाद वापस हमें दिल्ली ले आयेगी । चूँकि हम साइकिल पर इस यात्रा को मंडी से शुरू करेंगे इसलिए बस की छत्त को तीनों साइकिलों की सेज बनाया । बस अपने तय समय शाम 4:40 पर चल पड़ी । अगली सुबह बस ने सुरक्षित हमें मंडी बस स्टॉप पर उतारा जहां से बिना किसी आराम के यात्रा को शुरू कर दिया ।
तो ये है हमारी फोटो कहानी जो वास्तव में जीवन के लिए संघर्ष में बदल गयी ।
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मेरा रिक्शा दिल्ली आई.आई.टी की पार्किंग में ©Rohit Kalyana |
ये फरवरी है और माहौल उतरती ठंठ जैसा है। बस अड्डे में तीन साइकिल और तीन बड़े बैगों के साथ हमें गार्ड्स के साथ काफी बहस करनी पड़ी अंदर घुसने के लिए, हो-हल्ला सुनकर गेट इंचार्ज आया जिसने अपनी समझदारी का परिचय दिया और हमें अच्छी तरह से चेक करके अन्दर आने दिया ।
प्रति साइकिल 300 रु. किराया लगा मंडी तक ।
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मंडी में चाय-पराठे का नाश्ता ©Sanoj Vazhiyodan |
अब जब ठाकुर साब ने बोल ही दिया है तो देख लेंगे । नाश्ता निगलकर हम 7:30 चल पड़े पराशर की ओर ।
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अंग्रेजों के ज़माने के विक्टोरिया ब्रिज को पार करने पर दिखता नज़ारा ©Dhanush K Dev |
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एक छोटे लैंड-स्लाइड को साफ़ करता पहाड़ों की डगर का पीला साथी ©Rohit kalyana |
हमारे मन को अच्छी तरह पता है कि पराशर तक सारा रास्ता चढ़ाई से लैस है लेकिन फिर भी कल्पना कर रहा है समतल और डाउन-हिल की।
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कमान्द आई.आई.टी. पार करते ही बारिश शुरू हो गयी ©Dhanush K Dev |
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तेज भूख और तेज बारिश ©Dhanush K Dev |
मंडी से चले हमें 5 घंटे हो गये हैं लेकिन अभी तक हम कहीं भी नहीं पहुंचे हैं, ऊपर से रस्ते में अभी तक कोई भी दुकान नहीं मिली । शुक्र है इंजीनियर भाई नमकीन चिप्स ले आये नहीं तो पता नहीं क्या होता हमारा । दिल्ली से चढ़ा साइकिलिंग का हैंगओवर तेज होती बारिश में धीरे-धीरे उतर रहा था ।
मंजिल अभी भी 21 किमी. दूर है लेकिन अब एक भी पैडल नहीं चलाया जा रहा है । हम तीनों की एक जैसी हालत थी । हम चुप थे, मौसम नहीं, हम थक गये थे, बुँदे नहीं । चेहरे से टपकती बूंदों के साथ हमने एक-दुसरे की तरफ देखा शायद सभी वो ही बात सोच रहे थे जो मैं सोच रहा था "आज यहीं टेंट लगा लेते हैं"। मैं अपने मन की बात बोलने ही वाला था कि तभी बाकि दोनों एक-साथ बोल पड़े।
सनोज के बागी रुकने के प्लान पर सोचा जा सकता था लेकिन धनुष के आज ही पराशर पहुंचने के प्लान को हमने आँखें दिखाकर हवा में उड़ा दिया । हम दोनों के बागी के भारी मतदान का धनुष को भी समर्थन करना पड़ा ।
मंजिल अभी भी 21 किमी. दूर है लेकिन अब एक भी पैडल नहीं चलाया जा रहा है । हम तीनों की एक जैसी हालत थी । हम चुप थे, मौसम नहीं, हम थक गये थे, बुँदे नहीं । चेहरे से टपकती बूंदों के साथ हमने एक-दुसरे की तरफ देखा शायद सभी वो ही बात सोच रहे थे जो मैं सोच रहा था "आज यहीं टेंट लगा लेते हैं"। मैं अपने मन की बात बोलने ही वाला था कि तभी बाकि दोनों एक-साथ बोल पड़े।
सनोज के बागी रुकने के प्लान पर सोचा जा सकता था लेकिन धनुष के आज ही पराशर पहुंचने के प्लान को हमने आँखें दिखाकर हवा में उड़ा दिया । हम दोनों के बागी के भारी मतदान का धनुष को भी समर्थन करना पड़ा ।
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3 लोग, 3 साइकिल, 2 टेंट और एक बस स्टैंड ©Sanoj Vazhiyodan |
आज यहीं डेरा डालेंगे और आशा करता हूँ कल मौसम अच्छा रहेगा और हम सही-सलामत पराशर झील पहुंच जायेंगे । आज के लिए इतना ही बाकि अगले भाग में ।
उम्मीद है पहला भाग सभी को अच्छा लगेगा, गर्भ में एक बार फिर सभी का स्वागत है ।
भाग-2 : बागी-पराशर फारेस्ट गेस्ट हाउस
भाग-3 : पराशर झील-मंडी
waiting for second part...very determined decision.
ReplyDeleteशुक्रिया अंजना जी, अगले भाग की तैयारी जोरो-शोरों से चल रही है। जल्द ही आपके सामने होगा।
Deleteबहुत ही सुन्दर विवरण ।
ReplyDeleteसुंदर तो वो लोग हैं जिनको बेजुबान विवरण भी जीवंत जान पड़ता है। धन्यवाद् आपकी जीवन्तता को।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद् शर्मा जी...
DeleteBahut accha aisa laga mano mai bhi tum logo ke sath Hu, keep it up, My friend Rohit
ReplyDeleteGaurav bhai sochne se kaam n chalega, plan bna lo vhaan jaane ka. Thanks for appreciation.
DeleteKeep it up Rohit.
Deleteबहुत ही अच्छा विवरण किया आप ने मानो ऐसा लग रहा है हम भी आप के साथ हो।।
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया, ऐसा न कहो क्योंकि वहां का मजा शब्दों को पढ़कर नहीं बल्कि वहीं जाकर आयेगा, तैयारी शुरू कर दो ।
Deleteवाह रोहित भाई, रोमांचक विवरण पढते हुए लेख कब समाप्त हुआ पता ही न लगा, बाकि की दर्द भरी दास्तां लिखो, भाई
ReplyDeleteऐसे काम न चलेगा
संदीप भाई जी...
Deleteसंदीप भाई जी...
कब से आपके सिर्फ एक कमेंट का इंतजार था, और आज आख़िरकार आपने ये इंतजार भी खत्म कर दिया संदीप ।
सच्चे कद्रदान चौखट पे आयें तो दिल बाग़-बाग़ हो जाता है । स्वागत है गर्भ में, और जल्द ही दर्द भरी दास्ताँ आपके रूबरू होगी ।
धन्यवाद एक बार फिर से ।
Bahut badhiya rohit bhai👍👍
Deleteबहुत धन्यवाद् अजय भाई
Deleteयात्रा लेख शुरू में ही खतरनाक लग रहा है जाहिर है आगे आने वाली परेशानियों से भी सामना होने वाला है
ReplyDeleteशानदार लेख अगले भाग का इंतज़ार रहेगा
यात्रा लेखन का तो पता नहीं लेकिन हाँ आगे आने वाली परेशानियों का पता है, "बेहद खतरनाक", शुक्रिया गर्भ में आने के लिए
Deleteबढ़िया पोस्ट ...अगले भाग का बेसब्री से इंतजार
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट ...अगले भाग का बेसब्री से इंतजार
ReplyDeleteयहाँ आने के लिए धन्यवाद् और अगला भाग जल्द ही आपके सामने होगा
Deleteरोमांच से भरपूर यात्रा व लेखन का अंदाज़ भी शानदार अगले लेख का इंतज़ार रहेगा 👍
ReplyDeleteशुक्रिया हौसलाअफजाई के लिए अमित भाई
DeleteBhai aap ka no send karna
ReplyDeleteभाई जी मोबाइल नंबर ब्लॉग के होम पेज पर अपडेट कर दिया है, वहां से आप ले सकते हैं.
Deleteवाह!! रोचक विवरण। मैं इधर देर से पहुँचा लेकिन इसका फायदा हुआ कि अगले भाग के लिए इन्तजार नहीं करना पड़ा।
ReplyDeleteतहे दिल से स्वागत है आपका गर्भ में, देर से आए लेकिन दुरूस्त आए।
Deleteबहुत ख़ूब भाई जी, मजा आ गया। अपकी अगली ट्रिप का इंतजार रहेगा........
ReplyDeleteधन्यवाद् और स्वागत है आपका यहाँ
Deleteबढिया रोहित भाई,,, पता नही क्यो पढने के बाद मुझे भी पैरो में थकान सी महसूस होने लगी है। ☺अच्छा लिखा है।
ReplyDeleteहा हा.....लिखना सफल हुआ अगर पैरों में थकान महसूस हो रही है तो...
Deleteबहुत बढ़िया यात्रा विवरण रोहित भाई वाह मजा आ गया पढ़कर ऐसा लग रहा था जैसे आप के पीछे में बैठा हूं
ReplyDeleteहा हा...मेरे पीछे मत बैठना भाई जी साइकिल का कैरियर सिर्फ 15 किग्रा. ही वजन सह सकता है। स्वागत है आपका यहाँ और शुभकामनाएं।
ReplyDeleteHi Rohit,
ReplyDeleteGreat to hear such inspiring story. I would love to hear about what really happened next. Do read about the Journey to the floating islandtoo.