17 जुलाई 2017
एक समय की बात है जब मेरी नई-नई पहाड़ों से जान-पहचान हुई थी । मेरे दो दोस्त इस जान-पहचान को रिश्तेदारी में बदलने के लिए मुझे नैनीताल ले जाना चाहते थे लेकिन मैंने मना कर दिया क्योंकि मेरा सारा काम ऑफिस के भूतिया कंप्यूटर पर ही होता था नहीं तो कौन कमबख्त रिश्तेदारी नहीं बनाना चाहता था और वो भी पहाड़ों से लेकिन समस्या थी बरगद से पेड़ सा भीमकाय कंप्यूटर जिसे बैग में डालकर नैनीताल नहीं ले जाया जा सकता था । समस्या का हाल मास्टर साब ने सुझाया जब उन्होंने अपना लैपटॉप साथ लेकर चलने बात कही । मास्टर का लैपटॉप बॉस के सामने लालीपॉप की तरह रख दिया जिसे मुहं में डालते ही उन्होंने “हाँ” की मोहर लगा दी इस सफ़र के लिए ।
एक समय की बात है जब मेरी नई-नई पहाड़ों से जान-पहचान हुई थी । मेरे दो दोस्त इस जान-पहचान को रिश्तेदारी में बदलने के लिए मुझे नैनीताल ले जाना चाहते थे लेकिन मैंने मना कर दिया क्योंकि मेरा सारा काम ऑफिस के भूतिया कंप्यूटर पर ही होता था नहीं तो कौन कमबख्त रिश्तेदारी नहीं बनाना चाहता था और वो भी पहाड़ों से लेकिन समस्या थी बरगद से पेड़ सा भीमकाय कंप्यूटर जिसे बैग में डालकर नैनीताल नहीं ले जाया जा सकता था । समस्या का हाल मास्टर साब ने सुझाया जब उन्होंने अपना लैपटॉप साथ लेकर चलने बात कही । मास्टर का लैपटॉप बॉस के सामने लालीपॉप की तरह रख दिया जिसे मुहं में डालते ही उन्होंने “हाँ” की मोहर लगा दी इस सफ़र के लिए ।
चलो शुरू करते हैं चश्मों की कहानी
19
जुलाई 2010 की गरम शाम को हमने अपनी यात्रा शुरू की हरे और सफ़ेद रंग की कोल्ड्रिंक
के साथ । हमारी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था अरे भई हम भरी गर्मी में ठन्डे इलाके में
जो जा रहे थे ।
रेल
लगभग खाली- खाली ही थी इसलिए यहाँ पर हम तीनों का कब्ज़ा था । जिसका जो मन किया
उसने वो किया और मास्टर ने ये किया । धन्य हो आप मास्टर
रात
11:30 बजे ट्रेन ने हमें काठगोदाम उतारा जहां से 300 रु देकर हम कुछ घंटों में
नैनीताल उतरे । यहाँ हल्की -हल्की बारिश ने छींटे मारकर हमें पवित्र किया । अगली
सुबह संदीप अपनी रिपोर्ट बनाता हुआ ।
अब
मास्टर की बारी, लकड़ी के फर्श वाला ये कमरा हमें 600 रु में मिला लेकिन अभी तो ये
हमारे लिये दफ्तर से कम नहीं था ।
चश्मों
की दूकान पर अचानक कदम रुक गये जब सिर पर 10-10 चश्मे लगाये एक भाई जी ने आवाज
लगायी चश्मों में चश्मे “नैनीताल के चश्मे”, आइये-आइये और ले जाइये मात्र 100 में
। बहती गंगा में हाथ धो डाले और 2 चश्मे 150 में अपनी नाक पर टिका डाले ।
नैनीताल
का चक्कर लगाते हुए मास्टर अपने स्टाइलिश अंदाज़ में ।
शीतला
मंदिर के गेट पर पहुंचे ही थे कि भीतर से अचानक बाँसुरी की मीठी धुन सुनाई पड़ी, मास्टर
ने एक सच्चे कला प्रेमी होने का सबूत दिया जब नेत्रहीन बांसुरीवादक के साथ उन्होंने
कुछ इत्मिनान के पल बिताये ।
नैनीझील
का चक्कर लगाने के बाद हम एक सस्ती सी टैक्सी ढूँढने लगे मुक्तेश्वर जाने के लिए ।
खोज बारिश शुरू होते ही खत्म हो गयी जब एक मारुती आल्टो हमने 800 रु में बुक करी ।
रस्ते
में सेब के बाग़ देखकर तीनों ने एक स्वर में बोला “स्टॉप”, और अगले ही पल हमारी
खोपड़ी आगे वाली सीट से टकराई क्योंकि भाई जी ने एकदम से हैण्डब्रेक जो लगा दिए थे
। उसकी गलती नहीं थी सेबों को देखकर हम चिल्लाये ही कुछ इस तरह थे ।
पेड़ों पर लाल सेब ऐसे लग रहे थे मानो कुदरत खुद
दुल्हन के रूप में खड़ी हो सेब रूपी लाल बिंदी लगाके । सेबों के साथ हमारी पहली
मुलाकात कुछ खट्टी रही क्योंकि मेरा वाला कच्चा सेब था ।
मास्टर
एक विदेशी के साथ । आप हैं ‘रामवीर’ जो नेपाल के रहने वाले हैं । सेब के मौसम में
यहाँ आकर कुछ पैसे कमा लेते है । ये पूरा-पूरा सीजन यहीं रहते है और बागों को
बच्चों की तरह पलते हैं ।
बच्चों
का पलना हमें ज्यादा मंहगा नहीं पड़ा । 12 किलो 350 रु में हमें एक अच्छी डील लगी ।
मुक्तेश्वर
मंदिर के पास 1 जोड़ी मुक्त हंसी ।
रोड
से मंदिर की दुरी ज्यादा नहीं थी लेकिन हम दिल्ली के लोंडों का तो बैंड ही बज गया
था इसे नापने में । “ऐसा पत्थर मैंने पहली बार देखा है”, मास्टर के शब्द सुनकर हम
भी पहुंचे अजीब से चमकीले पत्थर को देखने के लिए, और हाँ सुस्ताने भी।
30
मिनट लग गये मंदिर तक पहुँचने में, हालत लगभग पस्त थी लेकिन यहाँ से दिखते नज़ारों
ने मोहित कर दिया ।
फेमस
व्यू पॉइंट से जो नज़ारें दिखे उन्हें किसी कहावत में ढाला जा सकता है जैसे कि “कहीं
धूप, कहीं छाँव” । बादलों को चीरते हुए सूरज की किरणें अपनी वफादारी से एक अनोखा
प्रकाश-स्तम्भ बना रही थी ।
आज
मैं ऊपर आसमां नीचे”, सिर्फ पहाड़ ही हैं जहां मास्टर अपनी फुल फॉर्म में रहते हैं
हमेशा ।
दोपहर
2 बजते ही मेरा भी काम शुरू हो गया । फ़ोन पर 18 कॉल करके ग्राउंड टीम से डेटा लेना
और फिर उसे एक्सेल में कम्पाइल करने में पूरा 1 घंटे का समय लगा ।
एक
हरफनमौला खिलाडी की तरह मास्टर अपने चर्म पर, संगीत के जानकार होने के साथ-साथ
उन्हें अध्यात्म की भी काफी जानकारी हैं । #प्राकृतिक _अवस्था
काले
बादलों के बीच से आती सुनहरी किरणें किसी फुलझड़ी से कम नहीं लाग रही थी । प्रकृति
ने खुद ही खुद को कल्पना बना दिया ।
पहाड़ों
की पुकार सुनकर अनसुनी नहीं हुई और बरखा शुरू हो गई । ये नज़ारा किसी मिक्स सूप से
कम नहीं था जहां हमारे आनंद के लिए बारिश, धूप, सूरज, किरणें, बादल, और पहाड़ सबकुछ
मौजूद थे ।
साँझ
होने से पहले ही तीनों ने नैनीताल में दस्तक दी जहां सबसे पहले हमने पेट भर खाना खाया
फिर थोड़ी खरीदारी करी ।
बेशक
बहुत से जीव हमारा इंतजार चिड़ियाघर में कर रहे थे लेकिन पहले इन्हें तो जी-भरकर
देख ले जो कि इस बोर्ड के रक्षक हैं । #मास्टर_शेर_और_5_कुत्ते
नैनताल
के जू में आपका स्वागत है । यहाँ किसी भी प्रकार का खाद्य पदार्थ ले जाना सख्त मना
है, ये मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि सोशल मेसेज देना भी तो जरुरी है । 25 रु का टिकट
लेकर तीनों ने प्रवेश किया ये बोलते हुए कि “देखते हैं यहाँ के चिड़ियाघर में
क्या-क्या मिलेगा" ।
बहुत
से सुन्दर और सभ्य जीवों को देखने का मौका मिला लेकिन सभी में ये हिरण मेरा पसंदीदा
रहा क्योंकि इसने खुद को छूने दिया ।
नैनीताल
के चिड़ियाघर से दिखता एक और खुबसूरत और नायाब नज़ारा ।
मुक्तेश्वर,
चिड़ियाघर के बाद अब बारी थी लोकल नैनीताल घुमने की, जहां शुरुआत हुई इस चर्च से
जिसका नाम “संत फ्रांसिस कैथोलिक चर्च” है । हम दोनों की तरह ही संदीप ने भी “प्रभु
ईशु” के सामने हाथ जोड़कर उनका अभिनन्दन किया ।
जब
से हम तीनों नैनीताल वापस आये थे तब से ही मास्टर थोड़े क्रुद्ध दिख रहे थे और वजह
थी संदीप का हर कहीं फोटो खिंचवाना । बेशक आइसक्रीम ठंडी थी लेकिन मूड गरम हो गया
था ।
ये
तो सिर्फ एक झलक है अगर सारी फोटो दिखाऊँ तो मिनी-कॉमिक्स बन जाये । #संदीप_काऊबॉय
150
रु में एक घंटा पैदल बोट का किराया पढ़कर तीनों ने कुछ देर गुफ्तुगू की और तय ये
हुआ कि मास्टर नाव चलाने नहीं चल रहे है हमारे साथ । पहले तो मुझे लगा कि संदीप की
वजह से मास्टर ने मना कर दिया है लेकिन वापस आकर पता चला कि मास्टर झील के किनारे
बैठे कुछ संगीतकारों के पास बैठकर आनंद ले रहे थे ।
इस सफ़र का आखिरी फोटो मेरे और संदीप के नाम और हो भी क्यों ना 1 घंटे बोटिंग करके
पैरों में दर्द जो होने लगा था ।
उम्मीद करता हूँ सभी मुसाफिरों को “नैनीताल
के चश्मे” लेख पसंद आया होगा । आपके सुझावों का स्वागत है ।
अगले लेख तक के लिए नमस्कार । और हाँ इस सफ़र पर
2300 रु. प्रति व्यक्ति खर्चा आया ।
ब्लॉगिंग की सहायता से प्रकृति की तरफ इशारा करना दिलचस्प है। और हिंदी में है तो कहना ही क्या!
ReplyDeleteप्रकृति को एक अलग ही तरह की अनुभति से दर्शन करना, , न कि एक शहरी की या टूरिस्ट की निगाहों से, वरन एक साधारण प्रकृति प्रेमी व्यक्ति की भांति से, अपने आप में एक असाधारण सुंदरता है।
मोबाइल की कलम से निकले यह संस्मरण काफी कुछ अमिट स्मृतियां समेटे हुए हैं।
अगले अंकों की प्रतीक्षा रहेगी - गौमुख, स्पिति,ताबो, कल्पा, छितकुल, सांगला,किन्नौर, ग्राम्फु, रूपकुंड, मानिला व इको विलेज, केयलोंग, आदि। - मास्टर :-)
आपके साथ ने हमेशा मेरा व्यक्तिगत विकास किया है। आशा करता हूँ ये सफ़र हमारा यूँ ही जारी रहेगा । अगले अंक जल्दी ही प्रकाशित होंगे । बहुत बहुत शुक्रिया लेखनी से निकले शब्दों के भाव को समझने के लिए ।
Deleteनैनीताल की पहली पोस्ट एक सांस मे पढ ली।
ReplyDeleteधन्यवाद के साथ-साथ स्वागत है यहाँ।
DeleteYe to bahut hi badiya story lagi mujhe "नैनीताल के चश्मे (फोटो स्टोरी)".
ReplyDeleteपंचतन्त्र की कहानियाँ पढ़कर मुझे अच्छे आईडिया आते हैं
Deleteमुक्तेश्वर गहगमने के लिए बहुत अच्छी जगह है। आप मेरे पोस्ट मुक्तेश्वर में घूमने की जगह को पढ़ सकते है।
ReplyDeleteनैनीताल के बारें में आपके लेख ने सम्पूर्ण जानकारी दी है। मेरा लेख भी देखें नैनीताल के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल
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