यमुनोत्री : 100 रु के कमरे में रोया, भाग-1, Yamunotri : Cried in the room of Rs. 100, Part-1

8 मई 2010
नई नौकरी पकड़े हुए अभी 6 महीने ही हुए थे और छोड़ने में 6 मिनट भी नहीं लगे । परिवार में हुई एक के बाद अचानक 2 लोगों की मृत्यु ने पुरे परिवार के साथ मुझे भी तोड़ दिया था । जितने भी लोगों ने अपने करीबी लोगों की आखिरी सांसों को बेहद करीब से महसूस किया है वो इसे समझ सकते है कि कैसे ये समय हमें तन और मन से विक्लांग बना देता है और मेरी ही तरह सभी लोग इस बात से भी सहमत होंगे कि समय सभी घावों को भर देता है परंतु थोड़ा समय जरुर लेता है ।

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यमुनोत्री धाम यात्रा 2010

जहां घर पर सभी के मन जो हुआ है उसे फिर से अन-हुआ करना चाहते थे वहीँ मेरी पतंग की डोर यहाँ से टूटकर हिमालय के शिखरों पर उड़ना चाह रही थी । लगातार एक महीने शौक के भंवर में उड़ने के बाद आख़िरकार डोर टूट गई और पतंग “यमुनोत्री” में गिरी पहुंच गई ।

5 मई 2010 को जब घर पर बताया कि मैं यमुनोत्री जाना चाहता हूँ तो बिना किसी सवाल के अर्जी पर ‘हाँ’ की मोहर लग गयी । काले छोटे बैग में एक जोड़ी कपड़े डालकर 7 मई शाम को घर से निकला । यमुनोत्री के बारे में मुझे सिर्फ दो ही बातें पता थी, पहली यह चार धाम में से ये एक धाम है और दूसरी यहाँ की बस देहरादून और मसूरी से मिलती है ।

पिछले कई सफ़र दोस्तों के साथ किये और ये नाम भी उन्हीं के रहे लेकिन इस बार सफ़र को मैं खुद के साथ करके इसे नाम भी खुद के ही करना चाहता था इसी सोच के साथ कश्मीरी गेट से देहरादून की बस में बैठ गया जो मुझे पहाड़ों की रानी ‘मसूरी’ तक ले जाएगी । बस का किराया तो अब याद नहीं लेकिन 80 रु का बेस्वाद खाना जरुर याद है जो मेरठ पार करने के बाद ढ़ाबे पर खाया था ।

देहरादून तक तो कोई समस्या नहीं हुई लेकिन मसूरी के घुमावदार रास्तों ने सिर को चरखे की तरह घुमा दिया । शुक्र है वमन होने से पहले ही मसूरी देवी पहुंच गये । बस ने तड़के 6:15 पर मसूरी लाइब्रेरी उतारा जहां लाइब्रेरी बंद थी और बाज़ार खुल रहा था ।

कई लोगों से बात की पर उन्हें कुछ मालूम ही नहीं था कि यमुनोत्री की बस कहां से मिलेगी ? 7-8 लोगों से ‘नहीं’ का जवाब पाकर मुझे खुदको बड़ा अजीब लगा कि “जब यहाँ के लोगों को ही नहीं पता तो फिर मेरा क्या होगा” ? । मेरा लटका मुंह देखकर सफ़ेद कमीज पहने हँसमुख से दिखने वाले अंकल ने पूछा “यमुनोत्री जा रहे हो?” । हाँ जी अंकल जी पर आपको कैसे पता ?, वो हंसने लगे और बोले जिनसे तुमने पूछा वो सब यहीं तक घुमने आये है उन्हें नहीं पता कि ‘पहाड़ों की रानी’ मसूरी से आगे ‘पहाड़ों का राजा’ मशहूर भी है ।

उनके हाथ में लटकी केतली को देख ही रहा था कि अचानक वो बोल पड़े चाय पियोगे ? पहले दो बार नहीं-नहीं बोलकर तीसरी बार उनकी उदारता को मैंने हाँ बोल दिया । 5 कदम चलते ही हम दोनों उनकी चाय की दूकान पर पहुंच गये जो गुरूद्वारे के सामने वाले रोड पर थी । गर्मागर्म चाय का कप हाथ में आने से पहले मैंने अपनी गरम जर्सी पहन ली । बेशक फरीदाबाद में गर्मी अपने चर्म पर है लेकिन यहाँ 2006 मी. की ऊंचाई पर अच्छी-खासी ठण्ड है । जहां मैं चाय पीता रहा वहीँ हँसमुख अंकल मुझे यमुनोत्री तक का रास्ता अपने बच्चे की तरह बताते रहे ।

दोनों हाथों को जोड़कर मैंने हंसमुख अंकल को पहले नमस्कार किया फिर धन्यवाद् किया और उनके कहे अनुसार मसूरी बस अड्डे की और चल पड़ा, चल पड़ा मतलब ऑटो से । 15 रु देकर बस अड्डे पहुंचा जहां कुछ बसे नहा-धोकर तैयार खड़ी थी और कुछ नहा रही थी । बस स्टैंड साफ़ और छोटा सा था । 7 लोगों की लाइन के बाद मेरा नंबर आया । सरीये की जाली में पैसों से भरे हाथ के बदले निराशा हाथ लगी । जाली के पीछे बैठे टिकट काटने वाले जीव ने मुंह बनाकर कहा कि “जानकीचट्टी की बस निकल गई है”, ओह शिट बोलकर मैं सोच ही रहा था कि अब क्या करूँ कि तभी जाली वाले कठोर जीव ने जोर से चिल्लाकर कहा “टिकट नहीं लेना तो एक तरफ हो जाओ” । मुझे लगा की इस बार वो मुझपर जानबूझकर चिल्लाया ।

जहां मेरे आगे जाली वाला व्यक्ति राक्षस दिखाई दे रहा था वहीँ पीछे वाला मसीहा । पीछे वाले मसीहा व्यक्ति ने सुझाव दिया और मैंने उसे तुरंत मानकर ‘बड़कोट’ का टिकट ले लिया । बाद में मसीहा ने कहा कि बड़कोट से सारी दुनिया जानकीचट्टी ही जा रही है वहां से तुम्हें जानकीचट्टी पहुंचने में कोई समस्या नहीं आयेगी । पहली सूरज की किरण जैसे ही पेड़ों के बीच से हम दोनों पर पड़ी कसम से ऐसा लगा जैसे कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे हो ।

श्रीकृष्ण ने दूसरे रथ पर सवार होकर चम्बे की तरफ कूच किया वहीं अर्जुन ने बड़कोट की ओर । रथ चल पड़ा और साथ में सूरज देवता भी । जल्द ही हमने केम्पटी फॉल पार कर लिया । अच्छा किया जो सुबह कुछ खाया नहीं वरना तो मैं भी एक फॉल शुरू कर चुका होता । यमुना पुल पार करते ही पहली बार यमुना नदी के दर्शन हुए । कैसी असमानता है, यमुना नदी यहाँ कितनी सफ़ेद बहती है और कालिंदी कुंज में कितनी काली । हमने अपने लालच की पूर्ति के लिए एक नदी को स्वच्छ से अस्वच्छ कर दिया है । फैक्ट्रियों के लालच का रंग पूरी वफ़ादारी से चढ़ा नदी पर जिसने इसे ‘काला’ बना दिया ।

दोपहर तो यहाँ की भी बहुत गर्म है इसका एहसास होता तो नहीं लेकिन बड़कोट से मिली खचाखच भरी बस में बादलों की तरह उड़ती पसीनों की गंध ने इसका एहसास कराते हुए मुझे सिर से पाँव तक झंझोड़ दिया । पाँव तक इसलिए क्योंकि ये सफ़र मुझे खड़ा होकर जो करना है । बस में जितनी सवारियां थी उससे ज्यादा तो सामान था । इसे बस नहीं मालगाड़ी कहना ज्यादा अच्छा रहेगा ।

कंडक्टर ने किराया लेते हुए कहा कि ड्राईवर के पीछे बैठी सवारियाँ आगे उतर जायेंगी और जब मैंने ड्राईवर के आस-पास देखा तो बस देखता ही रह गया क्योंकि वहां कोई सवारी नहीं सिर्फ सामान के बोरे ही बोरे रखे थे । वहीं कहीं उनके बीच ड्राईवर भी बैठा होगा । खड़े होकर सफ़र करना कोई मुश्किल काम नहीं होता अगर एक सामान्य से ज्यादा मोटी औरत मेरे ऊपर नहीं गिरती, बस के खाली स्थान को भरने के लिए अक्सर बस ड्राईवर ऐसी ट्रिक अपनाते हैं तेज ब्रेक लगाकर । #ख़ुफ़िया_ड्राईवर

दोपहर 2:30 बजे लड़खड़ाती लातों के सहारे जानकीचट्टी उतरा, पैर और कमर अगर बोल पाते तो शायद इंग्लिश में जरुर F**k you बोलते मुझे । बेशक शरीर के साथ मन भी थका हुआ था इस सफ़र से लेकिन यहाँ की धरती पर पैर रखते ही जैसे मुझपर जादू हो गया ।

गीले काले बादल आसमां के तारों पर मानों सूख रहे थे, सूरज की रोशनी छन-छनकर धरती का श्रृंगार कर रही थी, ठण्डी हवा रूमानी माहौल की तैयार में थी, घाटी के अंत में दिखते सफ़ेद बर्फ की टोपी पहने काले पहाड़ यात्रियों को अपनी ओर लुभा रहे थे, बच्चे हवा के पहियों पर दौड़ रहे थे, यात्री ‘पर्यटक सुचना केंद्र’ के चक्कर लगा रहे थे, शरारती किरणें ‘स्व. राजेन्द्र सिंह रावत‘ की प्रतिमा पर सम्मान की तरह लिपट रही थी, घोड़े-खच्चर वाले यात्रियों से मोल-भाव कर रहे थे और मैं खुद को भूलकर इस दृश्य को जी रहा था मानो ये सम्पूर्ण दृश्य मेरा स्वागत कर रहा हो ।

अभी समय ज्यादा हुआ भी नहीं था ऊपर से यमुनोत्री का पैदल सफ़र लम्बा भी नहीं है तो देर किस बात की “चलो शुरू करते हैं”, बोलकर खुद से चल पड़ा शुरू करने को । कुछ कदम चलते ही एक स्वागत बोर्ड मिला जिसपर लिखा था “श्री यमुनोत्री मंदिर समिति सभी श्रद्धालुओं का यमुनोत्री आगमन पर हार्दिक स्वागत करती है” । बिना किसी की उपस्थिति के स्वागत समारोह शांतिमय तरीके से पूरा हुआ । #WelcomeToHeaven

दोपहर 3 बजे अपनी सारी थकान भूलकर मैंने यात्रा शुरू कर दी थी । इन्टरनेट से मिली जानकारी के हिसाब से यमुनोत्री जानकीचट्टी से 6 किमी. दूर है और धरती के राजा सागर के तल से 3291 मी. की ऊँचाई पर स्थित है । ज्यादा से ज्यादा 6 किमी का सफ़र तय करने में 3 घंटे का टाइम लग सकता है, मतलब 6 बजे मैं यमुनोत्री में होऊंगा ।

शेष अगले भाग में, तब तक के लिए नमस्कार ।

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मसूरी मॉल रोड़ से दिखाई देता 'दर्शन'

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मसूरी लाइब्रेरी

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तुझमें जीने लगा हूँ 

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बस से खिंचा केम्पटी वाटर फॉल का फोटो 

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माँ यमुना के पहले दर्शन

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लैंड स्लाइड को साफ़ करती मशीन 

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लाखामंडल और अन्य धार्मिक स्थानों की दूरियाँ दिखाता बोर्ड

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बीच वाले पहाड़ पर दिखता लाखामंडल 

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यमुना के पठारों पर फैले खेत

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जानकी चट्टी

Comments

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    1. उत्साहवर्धन के लिए तहेदिल से शुक्रिया शर्मा जी।

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  2. बढिया लेख,,, लय बनी हुई है।

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    1. शुक्रिया सचिन भाई, इस लय में बहने के लिए ।

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    2. Super ..waiting for next part

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  3. बढ़िया यात्रा, भाई

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद् सुशील भाई

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  4. बढ़िया यात्रा, भाई

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  5. Very good. Keep it up, one day you must achieve your goal.

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    1. शुक्रिया हरेंदर भाई जी, स्वागत है आपका गर्भ में

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  7. Kya baat bhai tusi great ho really

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  8. Kya baat bhai tusi great ho really

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  9. बढिया संस्मरण फोटो भी अच्छे हैं।

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  10. This comment has been removed by the author.

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  11. प्रिय रोहित, आप का यात्रा करने और उसपर लिखने का अंदाज़ बहुत सरल और सच्चा है जो आजकल बहुत कम मिलता है. इस उम्र में आप का यात्रा करने का जनून विस्मय कारी है अच्छा है. अभी और पढकर फिर लिखूंगा , मिलूँगा शुक्रिया.

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    1. वकील साब नमस्कार, उत्साहवर्धन का तहेदिल से स्वागत करता हूँ। पढ़िये, लिखिये, मिलिये ।

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  12. यमुनोत्री जाने के लिए मैं भी गया था किंतु बड़कोट से मैं बनाल खाई चला गया बनाल खाई से मैं लौटा वहां से पहले मंदिर ने बड़ा प्रभावित किया पुजैली में श्री रघुनाथ जी का मंदिर है वह ग्राम सभा बकरे ठी कही जाती थी वहां में आदिवासियों के बीच में रहा और आदिवासियों का जीवन के जीवन में उनके प्रेम ने मुझे बड़ा प्रभावित किया और मैं वहां 3 हफ्ते रुको वहां से मैं बड़कोट आया और वहां मैं श्री चंद्रेश्वर धाम चंद्रेश्वर महादेव का मंदिर है उसके महंत श्री पवन दास जी महाराज उनके होगा वहां से मैं गंगनानी भी गया एक संयोग है कि मैं आने के बाद वापस लौट आया लखनऊ।

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    1. आपका अनुभव काफी गहरा प्रतीत हो रहा है, काश इस अनुभव् को कहीं पढने का मौका मिल सके

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