बलेनी पास : टपरियों का ट्रैक, बलेनी बेस कैंप - सल्ली (Baleni Pass : The trek of huts, Baleni Base Camp - Salli)

1 जनवरी 2018
चंद्रेला माता मंदिर से चलकर बलेनी पास के बेस तक पहुंच गये । हम चार लोग एक शानदार टपरी में हैं । यह नए साल की रात है । अगले दिन खीर बनाकर चारों ने गर्मजोशी से नए साल का स्वागत किया । बाहर बर्फ है आगे और भी ज्यादा बर्फ है । दोपहर 2 बजे वापस चलना शुरू किया यह सोचकर की 3-4 बजे तक सल्ली पहुंच जायेंगे । जैसे ही अंदर पैकिंग शुरू हुई वैसे ही बाहर बर्फ गिरने लगी । “हैप्पी न्यू ईयर”

A beautiful winter trek in dhauladhar range. Rohit kalyana www.himalayanwomb.blogspot.com
विंटर बलेनी पास ट्रेक 2018

मेरी घड़ी बता रही है कि बलेनी पास के बेस कैंप की ऊँचाई समुन्द्र तल से 2850 मी. है, अभी समय रात के 9:30 हुआ है, तापमान -7.5 डिग्री है, ठंडी हवा बह रही है, चांदनी रात है, बर्फ चांदी की तरह चमक रही है और ढाई घंटे में नया साल आने वाला है । कल अमावस्या होगी और चाँद पूरा हो जायेगा इसलिए आज वो रात नहीं जब बड़का जी को आकाशगंगा (मिल्की वे) के फोटो मिल सकें । 30 मिनट बाहर बिताकर चारो भीतर आ गये । बाहर बर्फ ने वो रौंगटे भी खड़े कर दिए जो अभी तक उगे भी नहीं थे और भीतर आग की गर्माश ने जो याद दिलाया वो ये था “जिगर मा बड़ी आग है” । 

रॉकी (पहाड़ों वाला) को जुखाम लगा है, वो कई बार बाम लगा चुका है । हाल ही में रॉकी ‘हिमानी चामुंडा’ गया था जहां इस वायरस से उसे घेर लिया । तब से ही बेचारा पीड़ित है । छींक है, नाक लीक है और रुमाल ठीठ है । चूल्हे के पास बैठा है और नाक बुल्स आई की भांति लाल है । उसके मोबाइल में बजते पुराने गानों ने माहौल कुछ ‘ऋषि कपूर’ नुमा बना रखा है । 

बड़का जी (अरविन्द कार्टूनिस्ट) आज भी खानसामा हैं । उन्हें देखकर एहसास हो रहा है मानो माँ अनपूर्णा स्वयं टपरी में अवतरित हुई हो । देवी अनपूर्णा का हाथ जिस प्रकार कार्टून बनाने में कुशल है उसी भाँती स्वादिष्ट भोजन बनाने में भी । “ला क 3 पैग बलिये”, बजते ही बड़का जी ने लेटे-लेटे पंजाब का वर्ल्ड फेमस भंगड़ा पा दिया । ब्लैक कॉफ़ी के बाद चूल्हे पर पुलाव रख दिए हैं पकने को । पुलाव का साथ देगी उसकी अर्धांग्नी जिसे हम सभी ‘आलू-मटर’ के नाम से जानते हैं । 

नूपुर (नूपुर सिंह) ठण्ड से पीड़ित है । हर 15 मिनट बाद जोरदार फुरफुरी के साथ वो दोहराती है कि “हमें कुछ ज्यादा ही सर्दी लगती है” । कुछ पुराने गाने, नुसरत की कवालियाँ सुनकर लड़की खुद को अलग महसूस कर रही है, उसे क्या पता कि अलग वो नहीं ये तीन हैं । “पानी खत्म हो गया है”, उसके बोलते ही इस काम का टेंडर मैंने उठा लिया । 

जेब में एक ‘वेट-टीस्सु’ है, माथे पर हेडलैंप, पैरों में चप्पल, हाथ में एक 10 लिटर की कैनी, और पेट में गुडगुड लेकर चल पड़ा हूँ ‘लैंड माइनस’ बिछाने । चाँद की रौशनी इतनी तेज है कि हेडलैम्प को बंद कर दिया । पेंट को कमर से नीचे सरकाते ही तेज हवा ने सारा खेल बिगाड़ दिया । 10 मिनट के ‘वार्म-उप’ के बाद भी खेल शुरू न हो पाया । कैनी भरकर निराश ही खिलाडी पवेलियन लौट आया इस उम्मीद में कि कल छक्कों की हेट्रिक मारूँगा । 

पुलाव इतने लाजवाब बने कि मैं खुद को 3 बार लेने से रोक नहीं पाया । ऐक्चुली 4 बार । इस बीहड़ में ऐसा आराम हरपल जिंदगी सफल होने का सबूत देता है । हो सकता है हमारे फोटो देखकर आप भी ऐसी ही किसी जगह जाना चाहो लेकिन याद रहे इसके पीछे कठोर मेहनत और 15-15 किग्रा. के भारी रकसैक हैं जिन्हें किसी पोर्टर ने नहीं बल्कि हम चारों ने मिलकर उठाया । 

रात के 11:30 चारों ने खुद को स्लीपिंग बैग में बंद करने से पहले नए साल की शुभकामनायें आपस में बांटी । रात में ठण्ड की वजह से मेरी कई बार आंख खुली और हर बार बड़का जी और रॉकी को बात करते सुना । न जाने इतनी रात को किस अफ़्रीकी देश की आर्थिक अवस्था पर बहस कर रहे थे । छोटी हंसी, कुछ करवटें और गोद पहाड़ों की । 

1 जनवरी 2018, नया साल मुबारक हो

आ ही गया जिसका पिछले 365 दिनों से इंतजार था । मुझे तो लगा था कि “पूरी बारात के साथ आयेगा, गाजे-बाजे के साथ लेकिन ये तो कायर निकला । तब आया जब हम सो रहे थे” । उठते ही चारों ने अंग्रेजी तरीके से हाथ मिलाकर नये साल की मुबारकबाद शेयर की । 

नये साल पर रॉकी की फरमाईश पूरी हुई, बड़का जी ने खीर बनायी है । खीर से पहले सभी ने ताजा बना पुलाव और छोले की सब्जी पर हाथ साफ़ किया । दिन के 11 बजे तक बड़का जी को चूल्हे ने नहीं छोड़ा । बैठे-बैठे खीर के साथ-साथ उनमें भी उबाल आता रहा कि “कब बाहर जाऊं और अमेजिंग क्लिक करूं?” । 

वैसे तो हमारा प्लान बलेनी पास तक जाने का था लेकिन अब हम आगे नहीं जायेंगे । थोड़ा आगे जाकर देखा था बर्फ की गहराई काफी गहरी थी । इत्मिनान के पल बिताकर हमने 1 बजे पैकिंग शुरू कर दी । बाहर झांककर देखा तो बर्फ़बारी शुरू हो गयी और सर पर बादलों ने अपनी कला का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया । वो नाच रहे थे और गिरा रहे थे “बर्फ” सफ़ेद फ़ोहे ।

टपरी का सारा सामान जैसे का तैसा जमाकर हम चल पड़े । चल पड़े वापस, सीने से सरककर गोद में । एक घंटे तक चलते रहे, बर्फ भी साथ-साथ गिरती रही और पैरों में कुचलती रही । कभी कोई कमर तक घुस जाता तो कभी कोई । इस तरह घुस्सम-घुस्सा तकरीबन एक घंटे चली । राइल पहुंचकर हमने ब्रेक लिया, चाय बनाई और सूपी मैग्गी बनाकर आगे के सफ़र के लिए खुद को तैयार किया । 

जल्द ही धलेध भी पार हो गया, और चंद्रेला माता का मंदिर भी । सूरज ढल गया और अँधेरा शुरू हो गया । रॉकी और बड़का जी ने बता दिया कि “अब खामोश नहीं चलना है, हँसना है, गाना है और बात करते चलना है” । रॉकी ने ब्लूटुथ में गाने बजा दिए । बढ़ते अँधेरे ने सबकी लाईटें निकलवा दी । हमने पैरों को स्पीड के हवाले कर दिया । चंद्रेला माता मंदिर से सल्ली प्रोजेक्ट तक हमें शायद 1 घंटा लगा होगा । दोपहर 2 बजे चलकर हम सल्ली शाम 7 बजे पहुंचे । जैसे-तैसे चार भारी बैगों ने शेरपा (मारुती 800) में जगह पायी । 

बड़का जी ने हमारे आज वापस बीड निकलने पर रोक लगा दी, उनकी माने तो इतनी ठण्ड में हम बीड पहुंच तो जायेंगे लेकिन हमारी “बकरी” बन जाएगी । उनकी बात हमने मान ली वैसे ही कौन कमबख्त बकरी बनना चाहेगा । परिणामस्वरूप धर्मशाला में उन्होंने हमारे लिए एक कमरे की व्यवस्था भी कर दी वो भी फोन पर ही । शाहपुरा में हमने चाय पी जिसके बाद सबसे पहले रॉकी को ड्राप किया फिर बड़का जी ने हम दोनों को धर्मशाला छोड़ा जिसके बाद उन्होंने घर का रुख किया । 

यह सफ़र शुरू हुआ था कि हम बलेनी पास जायेंगे लेकिन मुझे नहीं लगता कि बलेनी जाकर भी इतना मजा आता जितना बेस कैंप तक आया । अरविन्द कार्टूनिस्ट और रॉकी को धन्यवाद देना चाहूँगा इस बेहतरीन ट्रेक पर ले जाने के लिए । 

शब्दों को यहीं विराम देते हैं और फोटोस को काम पर लगाते हैं । सोच रहा हूँ इस पोस्ट के बाद एक और पोस्ट डालूं जिसमें इस ट्रिप के शानदार फोटोस को आप सबके सामने रखूं । चलो तब तक मजे करो और हाँ नया साल आप सभी को मुबारक हो । 

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सल्ली से बलेनी पास का सेटेलाइट नक्शा

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सल्ली से बलेनी पास का ऊँचाई का नक्शा

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कल शाम का नजारा जहां बर्फ का काबू है

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चूल्हे पर आज तक की सबसे बेहतरीन खीर बनती हुई

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"ओ लाके 3 पैग बलिये..."

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बड़का जी और उनका किचन

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10 बजे धौलाधार का रूप

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आजकल सभी टपरियाँ इसी प्रकार बर्फ में डूबी हुई हैं

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रंगीन टेंट सिर्फ इसलिए कि फोटोग्राफी अच्छी होगी

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नूपुर ने कुछ यूँ शुरू करी वापसी

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बर्फबारी और बड़का जी...

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रॉकी "द पहाड़ी तेंदुआ" 

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कुछ दिनों में यह सब टपरी बर्फ में डूबने वाली हैं 

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राइल से धलेध की ओर

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बलेनी घाटी का अनोखा दृश्य

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बलेनी जोत गेरुआ ओढ़ते हुए 

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चंद्रेला माता मंदिर 

Comments

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    1. आपको भी नववर्ष की नवीनतम बधाईयाँ।

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  2. जोत तक नहीं पहुंच पाए कोई बात नहीं
    यात्रा को जी भर के जियो मनमौजी की टोली जिंदाबाद हमने पढ़ने में पूरी यात्रा का आनंद लिया
    लिखते रहो पढ़ते रहो पढ़ते रहो पढ़ते रहो

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    1. अहा...यह टिप्पणी घुमक्कड़ी की परिभाषा पर खरी उतरती है । शुभकामनाएं भाई जी ।

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  3. Kya baat hai.. Badka ji... Jiyo.. Hamari puri duyaen aapke sath...

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  4. Kya baat hai.. Badka ji... Jiyo.. Hamari puri duyaen aapke sath...

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  5. Kya baat hai.. Badka ji... Jiyo.. Hamari puri duyaen aapke sath...

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  6. Sabse Badiya new year to Aapka hi Bana h rohit ji

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  7. Sabse Badiya new year to Aapka hi Bana h rohit ji

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    1. यह तो एक प्रयास है हर दिन न्यू इयर की भांति जीने का । धन्यवाद और शुभकामनाएं।

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